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भर्तहरि

  भर्तहरि   डॉ रवीन्द्र पस्तोर   भाग एक  तीन दिन से लगातार पानी बरस रहा है, इसलिए क्षिप्रा नदी पूरे उफान पर है। रामघाट पर बने सब मंदिर डूब गए है। ऐसा लगता है की नदी का जल घाटों की दीवाल तोड़ कर नगर में प्रवेश करने पर उतारू दिख रहा है। पानी का वेग बहुत तीव्र है। मैं अकसर नदी को सिंधिया घराने की छतरियों से देखने जब तब आ जाता हूँ। आज रात नींद खुल जाने से यहाँ आ कर खड़ा ही हुआ था। हालांकि अभी आसमान में बहुत अधिक बादल थे। लेकिन बीच - बीच में चाँद बादलों में से झांक लेता था। ऐसे ही एक पल में मैंने देखा की नदी के उस पार जूना अखाड़े का विशाल त्रिशूल सामने चमक गया। दूसरे पल मुझे लगा की एक मानव आकृति नदी की और बढ़ रही है। कुछ और बाद जब चांदनी की रोशनी हुई तो दिखा कि वे एक साधु है जिन के शरीर पर एक कोपीन के अलावा कुछ नहीं था। उनकी लम्बी - लम्बी जटाए नीचे पाँव तक लटक रही है और वे नदी की ओर आ रहे है। कम रोशनी के कारण पहचानना कठिन था। वह नदी के घाट पर चढ़े और नदी के पानी पर ऐसे चलने लगे मानो जमीन पर चल रहे हो।  नदी के तेज बहाव को चीरते हुए वह नदी के इस ओर आ रहे थे। अभी र...