Final भर्तृहरि

भर्तृहरि

                              Startups’ Dilemma

          BHARTRAHARI

                               Startups’ Dilemma

 

                                  लेखक

                       

                     डॉ. रवीन्द्र पस्तोर

                    दीपक कुमार सेन

 

 

     © Dr. Ravindra Pastor and Deepak Kumar Sen

 

 

 

 

 

प्रस्तावना 

दोस्तों! हम सब को जिंदगी कम से कम एक बार ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां हम अपने आप को चौराहे पर खड़ा पाते है। हमें सही रास्ते के चुनाव को करने में हमेशा दुविधा होती है। यदि हम एक रास्ता चुन भी लेते है तो हमें जिंदगी भर अफ़सोस उन रास्तों को ना चुनने के लिये रहता है, जिनका चुनाव हमने नहीं किया। हम सोचते है कि काश मैने वह रास्ता चुना होता तो मेरी ऐसी हालत नहीं होती। छोड़े गये रास्तों का आकर्षण हमेशा पीछा करता है और हम जीवन भर पछताते रहते है। 

काश, मैने वह बिषय चुना होता।काश, मैने वह कॉलेज चुना होता। काश, मैने वह लड़का या लड़की चुनी होती। काश, मैने यह शादी नहीं की होती। काश, मैने उस कम्पनी को चुना होता। काश, मैने अपना स्टार्टअप शुरू किया होता। मन हमेशा हमें यतीत या भविष्य का भ्रमण कराता रहता है। वर्तमान में टिकता नहीं है, और जीवन में है तो केवल वर्तमान। यतीत जा चुका। केवल स्मृति शेष है। भविष्य आया नहीं केवल कल्पना मात्र है। काश….काश…. और…. काश। 

दोस्तों! मनुष्य नामक प्राणी को छोड़कर प्रकृति के ज्यादातर जानवर, पक्षी, पेड़ पौधे उनके प्राकृतिक स्वाभाव नेचुरल इन्सटिंक्ट से जीते है। उन्हें चुनाव करने की आजादी नहीं है। 

यह आजादी केवल मनुष्य के पास है। स्वतंत्रता हमेशा जिम्मेदारी के साथ आती है। अकेले नहीं। मनुष्य अपने चुनाव से जीता है। हमारे निर्णय ही हमारा जीवन निर्मित करतें है। लेकिन जब हमारे निर्णयोँ के परिणाम हमारे अनुरूप नहीं आते जैसे हमने सोचे थे तो हम अपने निर्णय की जिम्मेदारी खुद ना उठा कर उसके भार को उसका भर हमारे आसपास के लोगों पर डालने की कोशिश करते है। कभी कभी तो हम ईश्वर, भाग्य, पूर्व जन्मों के कर्म फल या किसी के दिए गए श्राप से जोड़ कर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश करते है। 

हम हमेशा अपने को सही सिद्ध करने के लिए दो पैरामीटर बनाते है। एक अपने लिये तथा दूसरा दूसरे के लिये। 

संसार में निर्णय केवल वही ले सकते है जो अर्द्ध सत्य को जनता है। सभी अदालतों के निर्णय अर्द्ध सत्य पर आधारित होते है। जो पूर्ण सत्य जानेगा वह निर्णय नहीं कर सकेगा। क्योंकि तब वह कार्य का कारण भी जनता है। शृंखला बहुत बड़ी हो जाती है। किस के सिर जिम्मेदारी डालोगे। 

हम सोचते है कि ऐसी समस्याऐं हमारे पूर्वजों के समाने नहीं थी। यह आधुनिक समाज की देन है। हां, यह अर्द्ध सत्य है। पूर्ण सत्य नहीं। जीवन की समस्यों को हम  दैहिक, दैविक तथा भौतिक तीन भागों में विभाजित कर सकते है। 

दैहिक समस्याऐं हमारी लाइफ स्टायल से जुड़ी होती हैं जो हर पीढ़ी तथा हर व्यक्ति के लिये अलग-अलग होती है। 

दैविक समस्याऐं मनोवैज्ञानिक समस्याऐं है जो हर पीढ़ी या हर व्यक्ति में सामान होती है और तीसरी तरह की समस्याऐं है भौतिक, जो हमारी आर्थिक स्थित, पोजीशन, पावर तथा टेक्नोलॉजी तक पहुंच के कारण अलग-अलग होती है। जो हर पीढ़ी या हर व्यक्ति में सामान होती है। 

इन समस्याओं के समाधान खोजने का काम हर पीढ़ी के मनीषियों ने किया है। हमारी पिछली पीढ़ियों ने अध्यात्म का मार्ग चुना और हमने विज्ञान का। लेकिन समाधानों के परिणाम लगभग एक जैसे ही रहे। अपने इस उपन्यास में हमने राजा और आम आदमी की समस्याओं की समानता तथा आधुनिक समस्याओं के पुरानी पीढ़ी के समाधानों से सुलझाने का प्रयास किया है। 

हमारा मानना है कि पूर्व काल में जब हमारा समाज समृद्धि के शिखर पर था तब भी वह अपने अंतर्द्वंदों से जूझ रहा था और आज जब हम पुनः समृद्धि की ओर बढ़ रहे है तब भी जूझ रहे है। 

हमने आधुनिक पीढ़ी के अंतर्द्वंदों का समाधान जिस तरह इस उपन्यास में पिरों कर दिया है आशा है हमारा यह प्रयास आप को पसन्द आयेगा। आप को अपना जीवन देखने की नई दिशा तथा एक नया दृष्टिकोण मिलेगा। 

इस कहानी का तानाबाना बुनने के लिये उपलब्ध साहित्य, इतिहास तथा भौगोलिक तथ्यों पर उपलब्ध सामग्री के आलावा स्थानों का भ्रमण कर की गई रिसर्च को अपने अनुभवों की कसौटी पर कश कर निकले निष्कर्षो के परिणामों का आधार है। 

तथ्य केवल लिखित किताबों में ही नहीं होते बल्कि उनका अधिकांश भाग पुरात्वत सामग्री के साक्ष्य, लोगों से संवाद, साक्षात्कार, उनकी कहानियां, उनकी मान्यताऐं, लोक धारणाओं से मिलता है। तभी घटना का चित्रण पूरा होता है।  

मेरा सत्य ही अंतिम सत्य है, ऐसा हम लोगों का दुराग्रह नहीं है। हर पाठक की घटना की अपनी व्याख्या होगी। अपना भोगा हुआ यथार्थ  होगा। अपनी मान्यताऐं होगी। जिनका हम सम्मान करते है। 

इस आशा के साथ यह पुस्तक आपके हाथों में सौप रहे है कि इसे पढ़ने में लगा समय व्यर्थ गवाया समय न लगे। जीवन के कुछ सत्य, कुछ समस्यायों के समाधान तथा जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण। 

आप के विचार, प्रितिक्रिया तथा सुझावों का हमेशा इंतजार रहेगा। अपने आप को रोकिये मत व्यक्त करियेगा तो परस्पर संवाद बनेगा, विवाद बनेगा। बिना मित्रता के शत्रुता नहीं हो सकती। तो मित्रता और शत्रुता दोनों ही आपस में जुड़ने के करक है। चुनाव आप का है।   आप पक्ष में हो या विपक्ष में स्वागत है। निरपेक्ष मत रहियेगा ।


                     डॉ. रवीन्द्र पस्तोर

                    दीपक कुमार सेन

 




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                                      रामघाट

अवंतिका में मध्यरात्रि का सन्नाटा। सीलनभरी हवा का झौंका। रात्रिचर पक्षियों का कलरव। खामोश रात से निकलता अनहद नाद। भक्तों के आशियाना बने आश्रम। पूर्णिमा की रात में दत्त अखाड़े का चमकता त्रिशूल। रामघाट में कलकल करके बहती पावन, क्षिप्रा नदी। 

अमेरिका से प्रोजेक्ट के सिलसिले में दिल्ली आये रवि और स्मिता उज्जैन फील्ड विजिट पर आये थे। रवि और स्मिता ने रात क्षिप्रा होटल में ही बिताई। रवि घर नहीं गया, क्योंकि उसका परिवार इंदौर शिफ्ट हो गया था। दोनों का मन उत्साहित था और खुद को भाग्यशाली समझ रहे थे कि अपना रिलेशन महाकाल की नगरी से शुरू कर रहे हैं। यह नगर दोनों के लिए नया नहीं था। दोनों जब आईआईटी और आईआईएम इंदौर में पढ़ते थे तबसे महाकाल आते थे। साथ ही रवि मूल रूप से उज्जैन का रहने वाला था और स्मिता इंदौर की निवासी थी। बारिश के बाद इस शाम का अहसास कुछ अलग ही महसूस हो रहा था। 

शाम के वक्त दोनों एक दूसरे के साथ घूम रहे थे। चलते-चलते बीच-बीच में सीलन भरी हवा दोनों को छू जाती थी। जाने अनजाने दोनों के हाथ एक दूसरे से छू जाते थे।एक सिहरन दोनों के बदन में दौड़ जाती थी। हवा के झोंके से स्मिता के खुले बाल उड़ कर रवि के कन्धे से छू रहे थे। बीच-बीच में कुछ देर शांत रहने के बाद दिल्ली के प्रोजेक्ट के बारे में भी बात कर रहे थे। दोनों के मन में अलग-अलग तरह के विचार उमड़ घुमड़ रहे थे। मगर दोनों एक दूसरे से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। स्मिता का दुपट्टा हवा में लहरा रहा था। मानो दुपट्टा दोनों के मन के विचारो को हवा के जरिये अभिव्यक्त कर रहा हो। काफी देर से दोनों खामोश थे और रामघाट के आसपास के नजारे को देख रहे थे।

इसी बीच धीरे-धीरे राम घाट पर सूर्य अस्त हो रहा था। सूर्य के लालिमा क्षिप्रा नदी पर फ़ैल गई थी। आसपास के मंदिरों का रंग भी सूर्य की लालिमा के कारण बदल गया था। मंदिरों में आरती की तैयारियां शुरू हो गई थी।  साथ ही राम घाट पर होने वाली मनमोहक सन्ध्या आरती की तैयारियां चल रही थी। राम घाट पर आरती के लिये नगाड़ें, आरती पात्र, आरती की सामग्री और खड़े होने की चौकियां राखी जा रही थी। इसके साथ ही आरती करने वाले पीला कुर्ता और सफ़ेद धोती पहने कई पुरोहित घाट पर सामान को व्यवस्थित कर रहे थे। 

राम घाट पर लगीं लाइटें जल रही थी। महाकाल के मन्दिर के शिखर पर लगा बल्ब भी जल गया था। आरती के लिये आस पास घूमते लोग एकत्र हो कर घाट कि दोनों तरफ की सीढ़ियों पर बैठ गए थे। और आरती शुरू होने का इंतजार करने लगे। नदी के बीच में चल रही नावें राम घाट की ओर बढ़ रही थी। सभी के अंतर मन में शृद्धा भक्ति तथा अध्यात्म के भाव उमड़ रहे थे। 

अचानक राम घाट का वातावरण भक्ति मय हो गया। रवि तथा स्मिता भीधूप, कपूर तथा आरती की बत्तियों से शुद्ध देशी घी की महक राम घाट पर गई। कुछ देर बाद आरती शुरू हो गई।  घंटे घड़ियाल, शंख तथा नगाड़े बजने लगे। पुरोहित पवित्र क्षिप्रा को आरती करने लगे। आरती में  भाग लेने के लिये आ रहे थे। करीब एक घंटे बाद आरती समाप्त हो गई।  राम घाट की लालिमा का स्थान कालिमा ने ले लिया था। राम घाट खाली हो गया था। लेकिन, रवि एवं स्मिता घाट पर ही टहल रहे थे। दोनों का मन अभी होटल जाने का नहीं कर रहा था। इनको राम घाट की आध्यात्मिकता का वातावरण अपनी तरफ खींच रहा था। 

रामघाट में शाम को आश्रम में आरती की घंटियों और घंटे बजने लगे रवि और स्मिता चुपचाप बैठे रहे। इस माहौल का रवि आदी था, लेकिन चुप बैठी स्मिता के अंतर्मन में कोलाहल मचा हुआ था। मन में मची हलचल बेहतर होती है, क्योंकि अधिकतर अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर बन जाती है।

काफी देर के बाद स्मिता ने कहामुझे उज्जैन के इतिहास के बारे में कुछ भी नहीं पता जबकि मैं कई दफा उज्जैन आयी हूं।

कुछ देर चुप रहने के बाद रवि ने स्मिता की तरफ  देखकर कहाभारत के प्राचीन आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नगर में अवंतिका का शुमार होता है। इसका विवरण स्कन्द पुराण में बाकायदा एक खंड के रूप में मिलता है। सनातन धर्म के त्रिदेव का संबंध इस नगर से है।

स्मिता ने तपाक से पूछावह कैसे?

रवि ने बतायामहाकाल के नगर के रचनाकार सृष्टि निर्माता भगवान शिव हैं। यहां महर्षि संदीपनी का आश्रम भी है, जिसमें बलराम, श्रीकृष्ण और सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की थी। इसके साथ ही भगवान राम का संबंध भी इस शहर से जुड़ा है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने राजा दशरथ का पिंड दान क्षिप्रा नदी में किया था। इसी कारण इस घाट का नाम रामघाट पड़ गया।

स्मिता की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। उसने पूछातुम उज्जैन के  दो नाम क्यों ले रहे हो?

रवि रामघाट पर स्मिता के साथ सीढ़ियों पर बैठते हुए बोलावर्तमान उज्जैन को इतिहास में अवन्ति, उज्जयिनी, कनकश्रृंगा, पद्मावती, अमरावती, कुशस्थली, कामुद्वति, भोगवती, विशाला एवं प्रतिकल्पा के नाम से भी जाना जाता था। भारत के सोलह जनपद में अवन्ति भी एक था। अवन्ति उत्तर एवं दक्षिण दो भागों में विभक्त थी। उत्तरी भाग की राजधानी उज्जैन थी तथा दक्षिण भाग की राजधानी महिष्मति थी।

स्मिता की चुप्पी को प्रश्न मानकर रवि ने उज्जैन के बारे में बताना शुरू किया।

रवि ने कुछ देर शांत रहने के बाद कहना शुरू कियाभारतीय इतिहास में कई राजा हुए हैं जिन्होंने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की है। इनमें सबसे प्रसिद्ध छठवीं सदी के अवन्तिका के राजा विक्रमादित्य हैं। इनके दरबार में विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान नौ रत्न थे, जिसका अनुसरण भारत और कई देशों के राजाओं और बादशाहों ने किया।

इन नौ रत्नों में संस्कृत के कालजयी लेखक कालिदास। खगोलविद् एवं गणितज्ञ वराहमिहिर और गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त के नाम प्रमुख है। ब्रह्मगुप्त ने जीरो को पहली दफा एक अंक के रूप में मान्यता दी थी। 

वराहमिहिर ने कुसुमपुर में आर्यभट्ट से मिलने के बाद खगोल विज्ञान और गणित के अध्ययन में अपना पूरा जीवन लगा दिया। वराहमिहिर ने छठवीं शताब्दी के आरंभ में कालगणना के आधार पर आर्यभट्ट के समान पृथ्वी को गोलकार बताया था। वराहमिहिर द्वारा अवन्तिका में विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल स्थापित किया। यह  गुरुकुल सात सौ वर्षों से अधिक समय तक  विश्व में विख्यात ।

स्मिता चुपचाप सुन रही थी और सोच रही थी कि इंदौर में बचपन से लेकर जवानी तक का अधिकांश वक्त बिताने के बाद भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

स्मिता को यह बात बहुत रोचक लगी और उसके मन में इस बारे में अधिक जानने की जिज्ञासा पैदा हो गई। यह मानवी स्वभाव का एक हिस्सा है कि किसी विषय पर जानकारी मिलाने पर व्यक्ति उस बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करना चाहता है। कई बार जानकारी देने वाला यदि जानकर है तो वह पूरी बात तथ्य के साथ बता देता है। मगर यदि व्यक्ति विषय विशेष का जानकर ना हुआ तो वह आधी अधूरी जानकारी दे देता है और  इसी तरह से जनश्रुति का जन्म हो जाता है। यह कालांतर में सच बन जाता है। और जनमानस मूल तथ्य से हैट जाते है। यह जनश्रुति अर्ध सत्य से पूर्ण सत्य बन जाती है। 


रवि ने आगे बताना शुरू कियासबसे प्राचीन कालगणना का आरंभ वराहमिहिर द्वारा निर्मित विक्रम संवत् से आरंभ हुआ। बारह महीनों के नाम सहित एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों के नाम रखने का प्रचलन विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। 

स्मिता ने रवि की ओर देखते हुए पूछा- क्या तुम इस सम्बन्ध में कुछ ओर जानते हो?

रवि ने स्मिता की आखों में देखते हुए बताया - जैसे में तुम को बता रहा हूँ वैसे ही इसी आधार पर महीने का हिसाब सूर्य एवं चन्द्रमा की गति पर रखा जाता है। पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा के नक्षत्र के आधार पर महीनों का नामकरण हुआ। चंद्र वर्ष और सौर वर्ष में अंतर होने के कारण तीन वर्ष में इसमें एक महीना जोड़ा जाता है। जब  ग्रीनविच रेखा को काल गणना के लिये जीरो डिग्री मेरेडियन नहीं माना जाता था, तब अवन्तिका से गुजरने वाले देशांतर को शून्य डिग्री माना जाता था। और  उज्जैन से गुजरने वाली साढ़े तैतीस डिग्री अक्षांश कर्क रेखा को आधार मानकर काल गणना की जाती थी। जिस जगह यह दोनों रेखाएं एक दूसरे को काटती है, उसी जगह पर मंदिर का निर्माण किया गया था। इसको महाकाल मन्दिर कहा जाता है, क्योंकि संस्कृत में समय को काल भी क़हा जाता है और देवाधिदेव महादेव समय के अधिष्ठाता है। 

सूर्य सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाने में करीब 365 दिन का वक्त लगाती है। महीनों के नाम विक्रम संवत में चैत्र, बैसाखी, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन और सप्ताह के दिनों के नाम ग्रहों के आधार पर रखे गये। 

वैदिक ज्योतिष में सात ग्रह माने गए हैं और सभी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले समय के क्रम में इस प्रकार हैं:- शनि चक्कर लगाने में लगभग 30 वर्ष लेता है। बृहस्पति एक चक्कर लगाने में लगभग 12 वर्ष लेता है। मंगल यानि मार्स एक चक्कर लगाने में लगभग 686 दिन लेता है। शुक्र यानी वीनस सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 224 दिन लेता है। बुध यानी मर्करी सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 87 दिन लेता है। चंद्र यानी मून सूर्य की परिक्रमा में लगभग 27 दिन का वक्त लेता है।

रवि ने देखा की स्मिता इस जानकारी में बहुत अधिक रूचि ले रही है। रवि ने आगे बताया की सप्ताह के दिनों का नामकरण भी विक्रम संवत् से ही शुरू हुआ। ज्योतिष विज्ञान में होरा शास्त्र को कार्य सिद्धि का अचूक माध्यम माना गया है। शुभ मुहूर्त के अभाव में कोई मंगल कार्य न रुके इसके लिए ज्योतिष में होरा चक्र की व्यवस्था बनाई गई है। सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक 24 होरा होती हैं और एक सूर्योदय से एक सूर्यास्त तक होरा की संख्या 12 होती है। प्रत्येक दिन के प्रारंभ में सूर्योदय के समय जिस ग्रह की होरा होगी  उसी ग्रह के नाम पर उस दिन का नाम कारण किया गया है।इसी के आधार पर सप्ताह का पहला दिन रविवार, दूसरा सोमवार,  तीसरा मंगलवार, चौथा बुधवार, पांचवां बृहस्पतिवार, छठा शुक्रवार तथा सातवां शनिवार नाम रखे गए है। महीनों तथा सप्ताहों के इन्हीं दिनों को आज सम्पूर्ण विश्व में माना जाता है। यह भारत की विश्व को अनूठी देन है।    

रवि ने कहा एक महत्वपूर्ण बात को हमेशा याद रखनाउज्जैन के ज्योतिष में महारत रखने वाले व्यास परिवार ने भारत की आजादी का मुहूर्त निकाला था और उनकी सलाह के आधार पर भारत की आजादी को मध्य रात्रि में 12 बजे मनाया गया था। ज्योतिष, गणित एवं खगोल विज्ञान को दिए गए अनमोल योगदान को भारत और इसके नागरिक शायद ही कभी भूल सकें।

कुछ देर बाद रवि और स्मिता रामघाट में बनी सीढ़ियों में बैठकर अपने विचारों में खो गये कलकल करती क्षिप्रा नदी और महाकाल के मंदिर की तेज घंटियों का भी दोनों पर कोई असर नहीं पड़ रहा था।



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एक संवेदनशील व्यक्ति की तरह रवि को भी बचपन के महाकाल याद आने लगे। उज्जैन के एक मिडिल क्लास परिवार में रवि का जन्म हुआ था और स्कूल के दिनों से ही उसे शाम होने के बाद रामघाट पर अकेले बैठना अच्छा लगता था। उन दिनों हल्की सीली हवा चलती थी और नजदीक में बह रही क्षिप्रा नदी 

 उफान पर होती थी। नदी की तीव्र गति से बहती धारा का शोर लगातार आता था। पानी से भीगे पत्ते जुगनूं की रोशनी में यदाकदा चमक जाते थे। बहुत समय क्षिप्रा के किनारे बिताने के कर भूख लगने के कारण दोनों होटल वापिस आ गये। 

वक्त हाथ में बंद मुठ्ठी की तरह फिसलता गयाI रवि पढ़ने में बहुत होशियार था और हमेशा उसके परीक्षा में अच्छे नंबर आते थे। इसके साथ ही रवि ने जेईई का इग्जाम भी दिया और उसका सलेक्शन आईआईटी इंदौर में हो गया। यहां से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद रवि ने आईआईएम इंदौर से ही एमबीए कर लिया और इसके बाद रवि के साथ उसकी सहपाठी स्मिता अमेरिका कंपनियों में चले गए। पहलेदोनों ने अलग कंपनियों को ज्वाइन किया। कुछ अरसे पहले ही स्मिता रवि की कंपनी में गयी। पढ़ाई के समय तीनों की तिकड़ी की दोस्ती की मिसाल दोनों संस्थानों में दी जाती थी। मगर मगर दोनों का दोस्त अमन भारत में ही रह गया।

रवि की स्वच्छ छवि तथा पढ़ाई के अच्छे रिकॉर्ड के कारण जब वह कालेज के किसी कार्यक्रम में भाग लेता तो उसके साथी बड़े उत्साह के साथ उसका हौसला बढ़ाते थे। कालेज में देश विदेश की कई बड़ी कंपनियां प्लेसमेंट के लिए रही थी। रवि केवल सबसे तीन नामचीन कम्पनियों के इंटरव्यू में गया और तीनों में वह चयनित हो गया।

काफी सोच विचार के बाद रवि ने एक अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय कंसल्टेशन कम्पनी में प्लेसमेंट स्वीकार कर लिया। नौकरी ज्वाइन करने के बाद उसकी पोस्टिंग वाशिंगटन में हुई। कंपनी के ऑफिस में उसकी ट्रेनिंग शुरू हुई। जब उसने नौकरी शुरू की तब शुरू के कुछ दिन बहुत कठिनाइयों भरे थे। सबसे ज्यादा परेशानी उसे अमेरिकन संस्कृति के रीत रिवाज़ अपनाने में हुई। मगर रवि ने तेजी से अमेरिकन संस्कृति को अपनाना शुरू किया और केवल छह माह के अंदर भीतर तथा बाहर से अमेरिकन बन गया। ऐसी जीवन शैली की उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

रवि के सेक्शन में समांथा, स्मिता, रमेश, तथा क्रिस्टीना काम करते थे। इन सभी को भारत सरकार द्वारा गरीबी हटाने के लिए चलाई जा रही योजनाओं एवं प्रोजेक्ट का अध्ययन कर अधिक कारगर बनाने पर सलाह देना था। कई सप्ताह तक चली रस्साकशी के बाद आखिरकार प्रोजेक्ट का जमीनी सर्वे करने के लिए रवि एवं स्मिता को नई दिल्ली भेजा गया।

आफिस के आला अधिकारियों ने सोचा दोनों ने साथ पढ़ाई की है। नौकरी भी साथ कर रहे हैं तो दोनों बेहतर काम कर सकते हैं। दोनों नई दिल्ली के मौर्या शेरेटन होटल में ठहरे। दिन भर दोनों को विश्व बैंक एवं भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ मिलकर काम करना था। दोनों दफ्तरों के बीच की दूरी अधिक थी और कुछ ऐसी ही दूरी रवि एवं स्मिता के बीच भी बन गयी थी। एक मीर घाट तो दूसरा पीर घाट की तरह थे।

दोनों को लगता की पहले की तरह दोनों के विचारों में कोई समानता नहीं है। मगर नई दिल्ली का काम दोनों को साथ में करना था। दिन की शुरुआत होटल की लॉबी में नाश्ते से होती। इसके बाद दोनों निकल जाते, दिन भर प्रजेंटशन, स्प्रेडशीट पर आंकड़े देखने में निकल जाता। दोनों सवाल पूछते, नोट्स लेते समझने की कोशिश करते। देर रात तक अपने कमरों में योजनाओं के दस्तावेजों का अध्यन करते। विभिन्न कमेटियों की रिपोर्ट पढ़ते।

रात के खाने के बाद दोनों में काम को लेकर खूब बहस होती। हालांकि दोनों भारतीय पृष्ठभूमि से आये थे लेकिन गरीबी की समझ एवं उसे दूर करने के तरीकों पर बहुत अधिक मतभेद होने के कारण शायद ही किसी विषय पर सहमत होते थे। कभी-कभी यह बहस बहुत कटु हो जाती और दोनों एक दूसरे से बात करने से बचते थे, लेकिन व्यवसायिक मज़बूरी से दोनों को साथ काम करना पड़ रहा था। दोनों अभी बहुत भावुक उत्साही थे।

दोनों के लिए यह पहला प्रोजेक्ट था, इस कारण शायद प्रोफेशनल पर्सनल जीवन में अंतर नहीं कर पा रहे थे। पिछले दिनों जब वह रात के खाने पर गरीबी रेखा के सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर बात कर रहे थे तो दोनों के बीच बहस इतनी तीखी हो गई कि रवि बिना खाना खाये उठकर अपने कमरे में चला गया। सोने जाते समय उसका मन इतना परेशान तथा बेचैन था कि वह बिस्तर पर लेटा-लेटा अपने वर्तमान काम के बारे में सोच रहा था कि वह यह काम क्यों कर रहा है? जब काम करने की स्वतंत्रता नहीं है? जब केवल दो लोगों की टीम एक मत नहीं है? इतना तनाव किस बात के लिए?

रवि को शायद लगता था कि स्मिता बदल गयी है और व्यक्तिगत तौर पर नफ़रत करती है। इसी कारण वह उसे पसंद नहीं करती है। इसलिए रवि जो भी कहता, स्मिता उसके ठीक विपरीत बोलने लगती है। यह कहानी शायद उसी दिन शुरू हो गई थी जब भारत के लिए इस प्रोजेक्ट की टीम बनाई गई थी। स्मिता ने टीम की घोषणा के समय ही रवि के नाम पर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया था। रवि को उम्मीद थी की स्मिता का यह व्यवहार शायद बदल जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

अगले दिन दोनों कृषि भवन में ग्रामीण विकास मंत्रालय में गरीबों के लिए हाल ही में शुरू की गई महात्मा गाँधी रोजगार गारंटी योजना का गरीबों पर होने वाले प्रभावों की रिपोर्ट की समीक्षा का प्रेजेंटेशन देख रहे थे। जब प्रेजेंटेशन के बाद चर्चा शुरू हुई तब स्मिता का कहना था कि अस्थाई तौर पर रोजगार देकर क्या गरीबी दूर हो सकती है? वह भी जब इस योजना पर इतना अधिक बजट खर्च होने के वाबजूद कोई स्थाई संरचना का निर्माण नहीं हो रहा है।

स्मिता का यह भी तर्क था कि इससे परिवारों को तात्कालिक लाभ तो मिलता है, लेकिन बजट का लीकेज इतना अधिक है कि भ्रष्टाचार को बढ़ावा ही मिल रहा है। यदि गरीबों को सीधा लाभ देना भी है तो सीधे उनके खातों में महीने की धनराशि सीधे बैंक से स्थानांतरित की जा सकती है या उतने पैसे के मूल्य के वाउचर दिए जा सकते है।

वहीं, रवि का तर्क था कि बिना मेहनत के पैसा देना लोगों को आलसी निकम्मा बना देगा। गैर पात्र लोग भी अपना नाम योजना में जुड़वाकर गलत तरीकों से लाभ लेने में सफल हो जायेंगे। मनरेगा में मेहनत का काम मांगने केवल जरूरतमंद ही आते है। इसमें भुगतान काम के आधार पर किया जाता है, ना कि दिन के आधार पर। इससे मेहनतकश जरूरतमंद को रोजगार भी मिल जाता है। पब्लिक में आत्मसम्मान आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

यह बहस चल ही रही थी कि योजना के ज्वांइट सेक्रेटरी ने कहायह योजना संविधान में रोजगार की गारंटी के तहत दी जाती है। इस कारण यह योजना संविधान संशोधन के बिना बंद नहीं हो सकती। इसलिए केवल इसके इम्प्लीमेंटेशन में सुधार किया जा सकता है। यह सुनकर स्मिता को आगे बहस करने में कोई रूचि नहीं रही और रवि भी स्मिता की बॉडी लैंग्वेज को देखकर चुपचाप बैठा रहा। आखिर दोनों थे तो एक ही टीम के। बैठक समाप्त हो गई और दोनों होटल वापस गये। होटल लौटते समय पूरे रास्ते भर दोनों ने टैक्सी में चुप ही बने रहे।


3


सुबह दोनों ने अलग- अलग समय नाश्ता किया फिर जब टैक्सी आई तो दोनों काम पर चले गये। बीती रात स्मिता से बहस के दौरान रवि को स्मिता की तरफ खिंचाव महसूस हुआ तब उसने सोचना शुरू किया कि इस बार वह ऐसा मौका हाथ से जाने नहीं देगा। अपनी तरफ से एक कोशिश वह जरूर करेगा। हालांकि उसे भरोसा नहीं था कि वह कभी इतनी हिम्मत जुटा सकेगा या नहीं।

रात में खाने के लिए जब वह नीचे आये तब रवि ने देखा कि स्मिता अभी भी दुखी नजर रही है। रवि ने यह बात जान कर स्मिता को कहा कि खाना खाने के पहले क्यों बार में चलकर वाईन पी जाए। यह बात स्मिता को पसंद आई और दोनों बार में कोने की टेबिल पर आकर बैठ गए। बार में रौशनी बहुत कम थी और अभी लोग भी अपेच्छाकृत कम थे। बार में शोरगुल नहीं के बराबर था। स्मिता दीवाल की तरफ की कुर्सी पर बैठकर मेनू कार्ड देखने लगी। अचानक स्मिता ने रवि से पूछा  ‘कौन सी वाइन लेगा।

रवि ने कहाक्यों आज सुला वाइन ट्राइ की जाए।

स्मिता ने इस ब्रांड का नाम नहीं सुना था, तो उसने पूछा  “यह कौन सी वाइन है?”

रवि ने बताया  “यह महाराष्ट्र के नासिक में राजीव सावंत द्वारा शुरू किया गया ब्राण्ड है। भारत में बनाने बाली सबसे अच्छी वाइन बनाते हैं।

दोनों ने रेड वाइन का ऑर्डर किया और कुछ देर बाद वेटर ने दो गिलास रेड वाइन की बोतल लाकर टेबिल पर रखी। जैसे ही वह बोतल खोलकर सर्व करने को हुआ स्मिता ने उसके हाथ से बोतल लेकर रवि के गिलास में वाइन डाली, फिर खुद के गिलास में वाइन लेकर उसे गिलास में घुमाने लगी। दोनों ने कम्पनी के बारे में बातें करना शुरू कर दी, लेकिन यह बातें कब अमेरिका से इण्डिया प्रोफेशनल से पर्सनल हो गई पता ही ना चला।

वाइन की बोतल ख़त्म हो रही थी, लेकिन बातें रोचक हो रही थी तो स्मिता ने बिना रवि से पूछे एक और बोतल का ऑर्डर किया। वह रवि की निजी ज़िंदगी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाह रहीं थी।

स्मिता ने पूछा "तुमने शादी की क्या?"

रवि ने कहा "अभी तक तो नहीं"

जब हिम्मत कर रवि ने यहीं प्रश्न किया तो स्मिता ने बताया कि उसने अपने अमेरिका आने के बाद मार्टिन से शादी की थी। शादी के कुछ दिन बात मार्टिन को साऊथ अफ्रीका अपने पेरेन्ट के पास जाना पड़ा और वह अमेरिका में ही रुकी रही। अभी दो वर्ष पहले दोनों ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया है। मार्टिन अब साऊथ अफ्रीका में ही रह रहा है। अब दोनों में कोई सम्पर्क भी नहीं रहा। वह तीन साल से अकेली अपने माता पिता के साथ अमेरिका में रहती है। उसका एक छोटा भाई है जो गर्लफ्रेंड के साथ अलग रहता है।

दोनों वाइन खत्म कर खाने के लिए डायनिंग रूम में गये। अधिक पी लेने के कारण स्मिता को सहारा देकर रवि टेबिल तक लाया। पहली बार रवि ने स्मिता को हाथों से छूआ था, दोनों के शरीर में करंट दौड़ गया। टेबिल पर बैठकर स्मिता ने रवि की पसंद की डिश आर्डर की। जब दोनों खाना खाकर उठे तो स्मिता फिर लड़खड़ा गई तब रवि ने उसे सहारा देकर लिफ्ट से उसके कमरे तक ले गया। स्मिता ने डिजिटल चाबी से कमरा खोलने की कोशिश की, लेकिन कमरा नहीं खुला। तब रवि ने एक हाथ से उसे पकड़ा दूसरे हाथ में उसकी चाबी लेकर कमरा खोला। उसे सहारा देकर बिस्तर तक ले गया और स्मिता को बिस्तर पर लिटाकर दिया। स्मिता लगातार अपनी कहानी बता रही थी तो रवि बिस्तर के पास कुर्सी पर बैठ गया।

नशे में बातें करते हुए स्मिता बिस्तर पर और रवि कुर्सी पर सो गए। सुबह जब स्मिता उठी तो उसे रात की कुछ बातें ही याद रही थी। स्मिता ने रवि को जब उठाया तो अचकचा कर उठा।  वह रात की बातों को याद करने को कोशिश कर ही रहा था कि यकायक स्मिता ने रवि को अपने आलिंगन में ले लिया। शुरू में रवि उसके कंधों पर अपने हाथ रखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। मगर स्मिता ने रवि को बहुत कसकर जकड़ लिया तथा उनके अधर आपस मिल गए।  

कुछ दिनों के बाद दोनों अमेरिका वापस लौट गये। वापस आकर दोनों ने अपनी रिपोर्ट आफिस में सब्मिट कर दी।

रवि स्मिता इण्डिया से अमेरिका लौटकर लिव इन रिलेशन में एक साथ रहने लगे थे। स्मिता अपने माता पिता के आपर्टमेंट को छोड़कर रवि के अपार्टमेंट में रहने गई थी। यहां दो कमरे थे एक रवि का और दूसरा स्मिता का। किचन, ड्राइंग कॉमन रूम थे। दोनों ने तय किया कि घर खर्च आधा - आधा बाँट लेंगे।

दोनों ने अपने संबन्धों की जानकारी कंपनी में दे दी थी, क्योंकि कंपनी की पॉलिसी के तहत यह जरुरी था। दिन गुजरते गए और दोनों एक दूसरे के अनछुए पहलूओं से परिचित होने लगे। दोनों को लगने लगा कि वे कितना भिन्न सोच रखते है। कितना भिन्न महसूस करते है तथा एक ही घटना पर कितनी भिन्न प्रतिकिया देते हैं।

शुरू में सब कुछ बहुत रोमांटिक था, एक कहता तो दूसरा मान लेता था। लेकिन कुछ अंतराल के बाद मत मतान्तर, पसंद नापसंद सामने आने लगी। रवि धीरे - धीरे अपने ऑफिस के कामों में ज्यादा व्यस्त होकर वक्त बिताने लगा। स्मिता भी घर से ज्यादा बाहर दोस्तों के साथ समय बिताती। अब दोनों कभी कभार केवल रात का खाना साथ खाते थे। कभी - कभी तो कौन सा खाना आर्डर करना, इसी बात पर बहस हो जाती। अंत में दोनों को लगने लगा था कि इस सम्बन्ध का अब और कुछ नहीं हो सकता। इसे आगे बढ़ाने या अगले स्तर पर ले जाने का कोई औचित्य नहीं बचा था। इस कारण दोनों ने निश्चय किया कि दोनों फिर अलग - अगल रहेंगे। 

स्मिता अपना सामान लेकर अपने माँ पिताजी के पास चली गई, लेकिन उसका कुछ सामान अभी भी रवि के अपार्टमेंट में रह गया था। वह कभी फ़ोन करके कुछ सामान लेने आती थी, लेकिन दोनों का व्यवहार एक दूसरे के प्रति इतना ठंडा हो गया था कि ऐसा लगता कि जैसे दोनों कभी मिले ही हो। आमना सामना होने पर वे एक दूसरे को उपेच्छा के भाव से ही देखते थे। यह व्यवहार जानबूझ कर नहीं किया जा रहा था, बल्कि यह स्वाभाविक व्यवहार हो गया था।

रवि को स्मिता का व्यवहार कई दफा बहुत परेशान कर देता था। ब्रेकअप के बाद उसे एक ही ऑफिस में काम करना अच्छा नहीं लगता था। रवि अपने रिलेशनशिप को समझने की बहुत कोशिश करता। हमेशा से वह एक सामान्य ढंग से जीवन जीना चाहता था। वह जब देखता कि स्मिता ऑफिस के दूसरे लड़कों से हँस कर बातें कर रही है या उनके साथ बाहर जाती तो उसके बर्दास्त से बाहर हो जाता। उसे हमेशा अपनी नाकामी का अहसास होता कि वह एक रिश्ता ठीक से सम्हाल नहीं सका। 

यह रिजेक्शन उसके आत्मविश्वास को बहुत ठेस पहुँचता था। उसे हमेशा लगता की ऑफिस के लोग उसके बारे में ही बातें करते है। यदि दो लोग आपस में हँस रहे होते तो उसे लगता जैसे वे उस पर ही हँस रहे है। इस हीन भावना से बाहर आने में उसे कई दिन लग जाते। इसका असर उसकी सेहत तथा काम पर बहुत बुरी तरह हो रहा था। कुछ ही दिनों में रवि अवसादग्रस्त होने लगा था। रवि को रात भर नींद नहीं आती और वह स्मिता के साथ बिताए दिन भूल ही नहीं पाता। इस घर के हर सामान के साथ उसकी यादें जुड़ी है। दोनों ने उसके पसंद से ही अधिकांश चीजें खरीदी थी। जितना वह भूलने की कोशिश करता, उतना उन यादों के भंवर में फंसता चला जाता।

इस हालात के चलते सोने के समय को छोड़कर रवि को दिनभर हर क्षण अज्ञात भय सताता रहता था। रवि को अपने चारों तरफ ऐसा जान पड़ता जैसे  सब उसके खिलाफ षड़यंत्र रच रहे हैं। यदि कोई हंसता तो उसे लगता जैसे उसी का उपहास उड़ा रहे है।

4​​

                                          रूद्राक्ष

इधर, इंडिया में रवि और स्मिता का दोस्त अमन अपना स्टार्टअप शुरू कर रहा था। रवि और अमन दोनों वीक एन्ड पर इस सिलसिले में ज़ूम काल या व्हाट्सएप्प पर बात करते थे। अमन कई बार रवि से इण्डिया लौटकर स्टार्टअप ज्वाइन करने का आग्रह कर रहा था, लेकिन रवि अभी तक इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया था कि नौकरी छोड़कर स्टार्टअप ज्वाइन करे। 


एक दिन अमन ने फिर उसे ज़ूम काल किया था। रवि वीक एंड होने से घर पर अकेला ही था। वह कही बाहर घूमने नहीं जाता था। अमन ने रवि को बहुत डिप्रेशेन में देखा। वह बहुत बीमार लग रहा था। दाढ़ी बड़ी हुई थी, बाल बिखरे थे। कपड़े भी गंदे थे, शायद कल से कुछ खाने से उसकी आवाज बहुत सुस्त लग रही थी। अमन को स्मिता की कहानी पता थी। रवि उससे लगभग हर बात शेयर करता था। अमन को रवि एवं स्मिता की लिव इन, अलगाव और आफिस की सियासत के बारे में सब कुछ पता था।   

अमन ने उस दिन रवि को खूब समझाया, “जिस तरह वह ऑफिस के कामों को ठीक से नहीं कर पा रहा है तो आज नहीं तो कल कम्पनी उसको टर्मिनेट कर देगी। टर्मिनेशन के बाद यदि वह स्टार्टअप ज्वाइन करेगा तो उन्हें फण्डिंग मिलने में बहुत दिक्कत होगी। यदि वह अभी रिजाइन कर स्टार्टअप करने इण्डिया आता है तो उसकी वैल्यू बहुत होगी, जो आगे चलकर फण्डिंग उठाने में मददगार होगी।” 

अमन ने इंडिया में अपनी वेंचर फण्ड की नौकरी छोड़कर ही स्टार्टअप शुरू किया था। इसलिए उसे पता था कि फण्डिंग कैसे मिलती है तथा किसको मिलती है?

आखिरकार रवि ने हिम्मत जुटाई और रिजाइन कर दिया। अमन के साथ स्टार्टअप में डायरेक्टर बनने के लिए अमेरिका को गुडबॉय करके रवि इंडिया वापस गया। वापस आने के बाद रवि ने अपने घर जाने की बजाय अपने दोस्त के स्टार्टअप को समझने के लिए अलग रूकना बेहतर समझा। रवि के मन में एक डर था कि यदि वह सीधे घर जाता है तो एक आम मध्यमवर्गीय परिवार की तरह उसे भी सबकी बात सुननी पड़ेगी। अभी तक रवि ने घर में यह हवा भी नहीं लगने दी थी कि उसने नौकरी छोड़ दी है और वह इंदौर में है। वह अमेरिका की तरह ही हर रविवार को घर वालों से वीडियो कॉल करता था।

अमन के साथ स्टार्टअप ज्वाइन करने के बाद रवि बहुत दिनों से महाकाल के दर्शन करने जाना चाहता था। मगर स्टार्टअप संबंधी परेशानियों के कारण वह उज्जैन नहीं जा नहीं पा रहा था। एक दिन जब दोनों चाय पी रहे थे तब रवि ने अमन से उज्जैन चलने के लिए पूछा, लेकिन उसका मन कहीं जाने का नहीं था तो रवि अपनी मोटर साइकिल से रात उज्जैन गया। यकायक बहुत तेज पानी बरसने लगा था तो वह निकट रुद्राक्ष होटल में ही रुक गया था। 

स्टार्टअप शुरू करने की भागमभाग में उसे कभी अकेलापन महसूस नहीं हुआ। वह अक्सर अपने मन की बातें अमन के साथ शेयर कर लिया करता था। अकेला होने से उसका मन फिर से पुरानी यादों में खो गया और उसे अपने इस दुनिया में नहीं रहे पिता जी याद आये। जब वह अमेरिका में था तब कोविड के समय उनकी मृत्यु हो गई और उस वक्त रवि नहीं पाया था। फिर तो यादों का सिलसिला चल निकला। उसे अपने जीवन की सब असफलता याद आने लगी।

जब उसके पिता जी थे कहते थे कि तुम जीवन में कुछ कर नहीं सकते। जब स्मिता उसके साथ रह रही थी तब अक्सर वह भी यही वाक्य दोहराती थी। जब स्मिता का ख्याल मन में आया तब उसे स्मिता याद आई

रात में कब पानी बरसना बंद हो गया, उसे पता चला था। रातभर स्मिता के साथ बिताए दिन याद आते रहे। सुबह जब उसकी नींद खुली, तब घड़ी में तीन बज रहे थे। इसे ख्याल आया कि क्यों उन जगहों पर जाये जहां वह स्मिता के साथ गया था। रात को कब पानी बरसना बंद हो गया, इसका रवि को पता चला। इसके बाद रवि की आंखों से नींद छूमंतर हो चुकी थी और बारिश थम गयी थी। इसी बीच रवि को ख्याल आया कि क्यों वह उन जगहों पर जाय जहां कभी वह स्मिता के साथ गया था। बस उसने मोटर साइकिल उठाई और पहुंच गया रामघाट, लेकिन क्षिप्रा उफान पर होने के कारण वह ऊपर दीवाल पर खड़ा हो गया।

रामघाट पर बने सब मंदिर डूब गए थे। पानी का प्रवाह बहुत तेज था और ऐसा लगता था कि नदी का जल घाटों की दीवाल तोड़कर नगर में प्रवेश करने पर उतारू है। रवि को सिंधिया घराने की छतरियां दिखाई दी और अपने स्कूल के दिन याद आने लगे जब वह अक्सर नदी को सिंधिया घराने की छतरियों से देखने आता था और क्षिप्रा तट के किनारे के इस नजारे को देखता था।

 वहीं इस वक्त रवि को अपना शहर अजनबी लग रहा था। इस वक्त आसमान में बहुत अधिक बादल थे, लेकिन वक्त बेवक्त चाँद बादलों से झांक लेता था।

ऐसे में रवि ने अचानक देखा की नदी के दूसरी तरफ दत्त अखाड़े का विशाल त्रिशूल चमक रहा था। दूसरे पल रवि को लगा की एक मानव आकृति नदी की तरफ बढ़ रही है। कुछ देर बाद बादल छटे और चांदनी की रौशनी फैलने लगी तब दिखाई दिया कि एक योगी रवि की तरफ आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रहा था जिनके शरीर पर एक कोपीन के अलावा कुछ नहीं था।

योगी की लम्बी जटाएं पाँव तक लटक रही थी और वह नदी की तरफ रहे थे। बलिष्ठ बाहें आगे पीछे चलने के साथ हिल रही थी। चांदनी में योगी का कलावर्ण चमक रहा था। कम रौशनी के कारण पहचानना कठिन हो रहा था। वह नदी के घाट पर चढ़े और नदी के पानी पर ऐसे चलने लगे मानो जमीन पर चल रहे हों। नदी के तेज बहाव को चीरते हुए योगी नदी से इस तरफ रहे थे। हवा तीव्रता के साथ चल रही थी। इस कारण नदी में ऊँची लहरें उठ रही थी। बादल भी तेजगति से उड़ रहे थे। वातावरण में नमी ठंडक फैली थी। एक तो बरसात की रात तथा बादलों की काली परछाई के कारण नदी का पानी कुछ ज्यादा ही काला दिख रहा था। हवा में नमी के कारण हलकी बूदाबंदी शुरू हो गई थी।

दोनों किनारों पर लगी स्ट्रीट लाइट की रौशनी रहस्यपूर्ण लग रही थी। इस बीच में योगी बीच नदी में गए थे। नदी की तेज धार पर योगी की सुडौल लंबी टांगे पानी पर चल रही थी। ऐसा लग रहा था कि मानो नदी के पानी पर चलना उनका रोज का काम हो। रवि उन योगी की हिम्मत या फिर यूं कहें कि उत्साह को देखकर आश्चर्यचकित हो रहा था। रवि को ऐसा लग रहा था कि मानो योगी को जीवन का कोई मोह हो। उनने शायद डर पर काबू पा लिया था। तभी तो वह प्रकृति के नियमों को चुनौती देने की हिम्मत रखते हैं।

रवि के मन की स्थिति भांप गये थे और वह उस तक पहुंचने के लिए तेज कदम बढ़ा रहे थे। इसी बीच योगी के पहुंचने से पहले रवि ने यकायक नदी में छलांग लगा दी, लेकिन वह पानी में नहीं गिरा। उसका शरीर योगी की बाहों में झूल गया। योगी ने तेजी से आगे बढ़कर उसे पकड़ लिया था। रवि इस अप्रत्याशित घटना से हतप्रभ हो उठा था। योगी उसे फिर किनारे की दीवाल तक लाये और उसे उठाकर ख़ुद दीवार पर चढ़ गये। उन्होंने बहुत स्नेह से बोले — "बच्चा ! अभी तुम्हारा समय नहीं आया है।"

रवि ने अपनी आँखें मीढ़तें हुए कहा - “महाराज! आपने मुझ अभागे को क्यों बचाया?"

"अलख निरंजन" योगी ने जयकार किया। "बच्चा ईश्वर ने किसी को अभागा नहीं बनाया।"

रवि को कुछ समझ नहीं रहा था। यह सपना है या हकीकत में उसके साथ हो रहा है। वह कुछ बोलना चाह रहा था, तभी योगी ने उसके मुँह पर उँगली रख दी और वह चुप रह गया। उसकी आँखे प्रश्नवाचक रूप में खुली थीं, तभी योगी ने कहा — "आदेश"

रवि विष्मृत था। चाँद बादलों के पीछे छुप गया था। 

योगी ने कहा — "सुबह भर्तृहरि की गुफा पर आना वहीं तुम्हें तुम्हारे सभी सवालों के जबाब मिल जायगे।"

जब रवि ने चेहरा उठाकर देखा तो योगी गायब हो गये थे। रवि ने चारों तरफ देखा, चांदनी की रौशनी में देखा कोई नहीं था। रवि वही दीवाल पर ही बैठ गया। उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। उसने उसके सपना को हकीकत में बदलते देखा, लेकिन उसके मन को लग रहा था कि अभी सपना ही चल रहा है। जब वह उठा तो देखा एक पुजारी उसे उठा रहा है। शायद उसे नींद गई थी। सुबह हो गई थी और लोग घाट पर नदी देखने रहे थे।

पुजारी ने पूछा — "भाई दीवाल पर क्यों सो रहे हो? नदी में गिर जाओगे।"

रवि के चेहरे पर हंसी गई। वह कुछ नहीं बोला।

रवि ने पुजारी से पूछा — "भर्तृहरि गुफा कहा है?"

पुजारी ने बताया — "यदि आप मंगलनाथ मंदिर के पुल से नदी के उस तरफ जायेंगे तो सबसे अंत में नदी के किनारे भर्तृहरि गुफा है।'

रवि ने पुजारी का धन्यवाद किया और बिना वक्त गंवाए मोटर साइकिल स्टार्ट कर पुजारी के बताए मार्ग पर चल दिया। उसने ऊपर दुकान से फूल, पूजा का सामान प्रसाद लिया गुफा की तरफ चलने वाला था, तभी उसने दुकानदार से गुफा के बारे में पूछा — "भईया! यह किसका मंदिर है?"

दुकानदार ने गुफा की ओर सिर झुकाकर नमस्कार किया और बोला — "यह एक ऐसी गुफा जहां राजा भर्तृहरि ने बारह साल तक तपस्या की थी। गुफा में तपस्या से इंद्र का सिंहासन डोल गया था। इंद्र ने वज्र प्रहार किया था, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं। ऐसा दावा है कि इसी गुफा से राजा भर्तृहरि चारधाम के लिए जाया करते थे। इसी प्रकार कई वर्षों तक तपस्या करने से उस पत्थर पर भर्तृहरि के पंजे का निशान बन गया था यह निशान आज भी भर्तृहरि की गुफा में राजा की प्रतिमा के ऊपर वाले पत्थर पर दिखाई  देता है। यह पंजे का निशान काफी बड़ा है, जिसे देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजा भर्तृहरि की कद-काठी कितनी विशालकाय रही होगी।"

दुकानदार को नमस्कार कर जब वह गुफा के द्वार पर गया। वहां उसने साथ लाये फूल चढ़ाये, प्रसाद लगाया, शीश नवाया। तभी उसके पास एक लड़का आया। रवि को लगा की प्रसाद लेने आया है। उनसे उसे प्रसाद दिया। वह लड़का रवि को गोरखनाथ के आश्रम तक ले गया। वहां उसकी मुलाकात एक योगी से हुई, जो आश्रम के महंत थे। रवि को देखकर बैठने को एक आसन दिया। कमरे में रौशनी कम थी। 

योगी ने रवि  दुःखी देख कर पूछा कि इतने उदास क्यों हो? योगी रवि से उत्तर ना मिलने पर कुछ और बोल रहे थे।योगी की सारी बातें रवि की समझने की सीमा से बाहर हो रही थी। उसे कुछ सिर पैर समझ नहीं रहा था।

रवि ने योगी को ध्यान से देखा उनकी  उम्र लगभग रवि जीतनी ही लगी। समवयस्क जानकर रवि को अच्छा लगा कि इनसे बात की जा सकती है। उन्होंने गेरुआ वस्त्र धारण किये थे, कानों में बड़े बड़े कुण्डल लटक रहे थे। उनकी बड़ी आँखे चमकदार थी। चेहरे पर अपूर्व शांति थी तथा ओठों पर मंद मुस्कान। ऐसे व्यक्तित्व से उसकी मुलाकात शायद कभी नहीं हुई थी। आश्रम के बाहर गायें चारा चर रहीं थी।कमरे में काला कुत्ता योगी के पास बैठा था जो थोड़ा डरावना लग रहा था। अन्दर भक्तगण भजन गए रहे है-

नगर उज्जैन के राजा भर्तहरि,

हो घोड़े असवार,

एक दिन राजा दूर जंगल में,

खेलन गए शिकार,

संग के साथी बिछड गए सब,

राजा भए लाचार,

किस्मत ने जब करवट बदली,

छूटा दिए घर बार,

होनहार टाली ना टले,

समझें ना दुनियाँ दीवानी,

राजपाट तज बन गया जोगी,

काई मन में ठानी,

राणी राजा भर्तहरि से अरज करे।…….”

रवि ने अपना धैर्य छोड़ते हुए पूछा, "महाराज ! मेरी समझ में कुछ भी नहीं रहा है। रात से इतनी घटनाएं मेरे साथ हो चुकी है कि मेरी मति काम नहीं कर रही है, अब आप ही कृपा कर बताएं कि यह सब क्या है?"

योगी ने बताया की जब बच्चा तुम नदी में कूद रहे थे तब भर्तृहरि महाराज ने बचाया। यहाँ आने की प्रेरणा उन्हीं ने दी तथा उन्हीं ने मुझे "आदेश" दिया।

योगी ने कड़कदार आवाज में पूछा, "उज्जैन कब आये और घाट पर क्या कर रहे थे?"

रवि बोला — “कल शाम जब मैं इंदौर से उज्जैन अपनी मोटर साइकिल से आया था।

मुझको ख्याल आया कि क्यों वह उन जगहों पर जाये जहां  स्मिता के साथ गया था। इसके बाद वह मोटर साइकिल से रामघाट पहुंचा, लेकिन क्षिप्रा नदी उफान पर होने के कारण  ऊपर दीवाल पर खड़ा हो गया।”

"यह स्मिता कौन है?" योगी ने अपने आसान पर सीधा बैठते हुए पूछा।

रवि ने झिझकते हुए योगी को बताया कि स्मिता उसकी दोस्त थी। और दोनों अमेरिका में साथ रहते थे। फिर जीवन में कुछ ऐसा मोड़ आया कि हम दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। 

स्मिता का नाम सुनकर उसका ख्याल मन में आया तो उसे पुराना वक्त याद गया।


5

                                    जीवन

हर दौर में व्यक्ति की समस्याएं लगभग एक जैसी ही होती है। और व्यक्ति उनका समाधान वक्त और परिस्थिति के हिसाब से तलाश लेता है। व्यक्ति कि अधिकतर समस्याएं साइकोलॉजीकल ही होती है। मगर उनका समाधान वक्त के अनुसार होता है।  

योगी ने कहा — राजा भर्तृहरि के जीवन की कई समानताएं तुम्हारी जिंदगी जैसी ही थी। 

रवि का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया और बोला — ऐसा कैसे हो सकता है?

योगी ने उत्तर दिया — मुझे तेरे बारे में सब पता है। धरती पर जीवन के आरंभ से वर्तमान दौर तक वक्त कितना भी बीत जाये समस्याएं एक जैसी ही रहती हैं। बस वक्त के साथ समस्याएं अलग लगने लगती है। हालंकि, यही कारण है कि अलग अलग युगों में जन्म लेने वाले व्यक्तियों की जिंदगी में कभी कोई अंतर नहीं आता है।

रवि अचानक अपने बचपन के बारे में बताने लगा — जबसे मैंने होश सम्हाला तबसे ही पिता जी मेरी तुलना पड़ोसियों के बच्चों से करते थे। जिसमें किसी बच्चे का कद तेजी से बढ़ रहा था। किसी का रंग गोरा था और कोई पढ़ने में होशियार था। कोई हम उम्र का बच्चा गाना अच्छा गाता तो कोई किसी म्यूजिकल इनस्ट्रूमेन्ट को बेहतर बजाता था। वहीं कोई क्लास फैलो खेल में अच्छे था। 

उनकी आदत थी कि  जब मैं खेलने जाता तो कहते पढ़ते क्यों नहीं हो! जब पढ़ते तो कहते खेलते क्यों नहीं हो! यह सब कुछ सुनकर मैं  अपने प्रति पूरी तरह संशयग्रस्त हो गया तथा मेरा  आत्मविश्वास हिल गया था। मैं हमेशा एक अज्ञात भय में रहने लगा था । इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मेरा बचपन हमेशा के लिए नष्ट हो गया।

योगी ने कहा - बचपन की कोई मधुर स्मृति तुम्हारे मन में नहीं है। पिता के प्रति स्नेह का बन्धन कभी बना ही नहीं। 

रवि ने आगे बताया कि जब हमारे दोस्त अपने माता-पिता, दादा-दादी या नाना - नानी की सुखद यादें  मेरे सामने आपस में साझा करते तब मुझको लगता कि सभी मिलकर मनगढ़ंत कहानियाँ बना रहे है या फिर उनकी किस्मत अच्छी थी कि उनका ऐसे परिवारों में जन्म हुआ था।

रवि के मन में योगी की बात को लेकर उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। योगी शांत होकर बैठ गया और रवि का मन बचपन की ​स्मृतियों के उपवन में विचरण करने लगा। जीवन बेहद अटपटा होता है जिसे जब जो मिलता है तब उसका मूल्य समझ नहीं पाता और जब समय बीत जाता है तब व्यक्ति बीते वक्त की यादों से भर जाता है। यही कुछ रवि के साथ हो रहा था और वह अपने बचपन के दिनों के बारे में सोचने लगा।  

 

किस तरह रवि के माँ व पिता के बीच आये दिन झगड़ा होता तो वह बाहर चला जाता। उसे दोनों का झगड़ना न तो अच्छा लगता और न कारण समझ आता। शुरूआत में परिवार के लोगों ने झगड़ा न करने के लिए दोनों को समझाया, लेकिन रवि के माता पिता पर कोई असर नहीं हुआ। कुछ अरसे के बाद रवि आत्म केंद्रित होता गया।

 

रवि के कोई ज्यादा दोस्त नहीं थे, न वह कोई और गतिविधि में भाग लेता। इसके चलते उसकी दोस्ती किताबों से हो गई और वह खूब पढ़ने लगा। कुछ वक्त बाद किताबें रवि के अकेलेपन की सच्ची साथी बनती गई। रवि के पास पढ़ने के लिए खूब समय होता। घर में रखी लगभग सभी धार्मिक पुस्तकें उसने पढ़ ली, जिसके बाद वह जिला पुस्तकालय का सदस्य बन गया। रवि नियमित पुस्तकालय जाता, क्योंकि उसे वहां पढ़ने की खूब आजादी होती थी।

 

इसके बाद यहीं से पुस्तकें उसके अकेलेपन का सहारा होती चली गयी तथा कहानियों के पात्र उसके दोस्त। वाचनालय के आखिरी कोने में रखी खिड़की के पास की बेंच उसका स्थाई अड्डा बन गया था। जब रवि पुस्तकालय की आलमारी से कोई पुस्तक निकलता तब कागज की महक उसे घेर लेती। जब उंगली में थूक लगाकर पेज पलटता तब कागज का स्वाद बहुत भाता। वह किताबों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारने लगा। उम्र बढ़ने के साथ उसके लेखकों तथा विषयों का दायरा बढ़ता गया।

 

जब वह किताब पड़ता तब उसके पात्र किताब से बाहर निकल उसको घेर लेते और वह खुद को कहानी का हिस्सा महसूस करता। जैसे वह घटनाएं अभी उसके सामने घट रही हो। कल्पना एवं वास्तविक संसार की सीमा समाप्त हो जाती तथा उसकी चेतना कहानी के संसार में विचरण करती। वह पात्रों के दुख से दुखी व सुख से सुखी होता। यह आदत जुनून की हद तक चली गई।

कालेज के समय वह खुद अपनी कहानियां लिखने लगा। पात्रों को रचते समय उसे लगता की वह खुद सृष्टा हो। दिन-ब-दिन रवि की कहानी के पात्र का व्यक्तित्व एवं चरित्र बढ़ता जाता तब वह उससे स्वतंत्र हो जाता।

 

इस तरह से पात्र स्वयं के चरित्र का निर्माण खुद करने लगते। तब रवि अर्द्धचेतन अवस्था में चला जाता। मन तथा हाथ का सम्बन्ध जुड़ जाता। विचार मन में आते और हाथ कागज पर उतारता जाता। वह केवल माध्यम ही रह जाता। यह अवस्था कभी कुछ मिनट तो कभी घंटों चलती। जब मन व हाथ का सम्बन्ध  टूटता तो उसे फिर सोचकर लिखना पड़ता था, तब वह भाव प्रवणता नहीं रहती। इसके बाद फिर वह लिखना बंद कर देता और इंतजार करता उस अवस्था को प्राप्त करने की, जिसमें वह बिना सोचे लिख सके। इस अवस्था में जो लिखा जाता वह लेखन अतीन्द्रिय व अदभुत होता।

 

लेखन के कारण उसको अपनी कुंठाओं से बाहर निकलने में बहुत मदद मिली। उसका आत्मविश्वास लौट आया। 

रवि पढ़ने में बहुत होशियार था, जिससे हमेशा उसके परीक्षा में अच्छे नंबर आते रहे। स्कूल और देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में बहुत अच्छा रिजल्ट लाता। इस कारण उसे हमेशा अच्छे संस्थानों में छात्रवृत्ति के साथ पढ़ने का मौका मिला। उसने खेलकूद, साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस कारण विद्यार्थियों के साथ  संस्थान के स्टाफ का चहेता बन गया। वह संस्था के सभी आयोजनों में अबसे आगे रहता। समय बीतते रहा और वह अपनी पढ़ाई के अंतिम वर्ष में आ गया।

 

रवि की स्वच्छ छवि तथा पढ़ाई के अच्छे रिकॉर्ड के कारण जब वह कालेज के किसी कार्यक्रम में भाग लेता तो उसके साथी बड़े उत्साह के साथ उसका हौसला बढ़ाते थे।

 योगी ने रवि को अचानक बताया कि कुछ ऐसे ही हालात राजा भर्तृहरि के भी थे। रवि चुप हो गया और राजा भर्तृहरि के बारे में जानने की उसकी उत्सुकता चरम पर पहुंच  गई।  

कुछ देर शांत रहने के बाद योगी ने कहना शुरू किया  — भर्तृहरि के पिता राजा गर्दभिल्ल उज्जैन में पहली शताब्दी के आरंभ से शासन कर रहे थे। वह एक वीर राजा थे।  जिनके पराक्रम से विदेशी आक्रांता भी डरते थे। भर्तृहरि अपने पिता का बड़ा बेटा था। इसलिए उसके पिता ने कुल की परंपरा के अनुसार उसके छोटे भाई विक्रम के स्थान पर राजा बनाया था। न तो वह अपने छोटे भाई जितना प्रतापी, चतुर, बुद्धिमान व बलशाली था और न राजनीति में कुशल था। लेकिन उसे अपने पिता की बात मानना पड़ी। भर्तृहरि की रूचि कभी राजकाज में नहीं थी।



 

भर्तृहरि का मन पढ़ने लिखने में अधिक रमता था। उसने अपनी पहली रचना श्रृंगार शतक लिख ली थी। इसमें भर्तृहरि ने स्त्रियों के सौंदर्य और उनके हाव-भावों का वर्णन किया है। भर्तृहरि का रसिक स्वभाव होने के कारण वह हमेशा सुन्दर स्त्रियों से घिरे रहते जो उनके मनोरंजन के लिए तरह-तरह की लीलाएं करती। संगीत, नृत्य, नाटक, शाश्त्रार्थ, पठन-पाठन तथा लेखन में राजा भर्तृहरि का मन रमता था।

 योगी ने आगे बताया — महल में भोग विलास के साधनों की कमी न थी। कभी राजा का एकांत में होने का मन करता तो वह जंगल में चला जाता था। क्षिप्रा नदी कल-कल करके साल भर बहती रहती। नदी के कारण महाकाल वन बहुत सघन वन था। इसमें कई तरह के जंगली जानवर निवास करते थे। राजा को जंगल में शिविर लगाकर रहना प्रिय था। वहां वह शिविर में रहकर शांति से लिखने पढ़ने का काम कर पाते थे। यदा-कदा राजा भर्तृहरि शिकार करने की आदत को पूरा करते थे। हालांकि शिकार करने का कोई विशेष शौक नहीं था।

भर्तृहरि को बेमन से राजा का उत्तराधिकारी बनना पड़ा था। योगी ने रवि की तरह देखा  तो वह ध्यान से सुन रहा था।राजा भर्तृहरि कमजोर नहीं दिख सकता है। राजा को हमेशा मजबूत, निडर, साहसी तथा उत्साह से भरा होना चाहिए। सो भर्तृहरि ने हमेशा ऐसा ही किया वह बाहर से जितने शांत दिखते अंदर उतने ही अशांत होते।

जब लोग अपनी प्रकृति के अनुसार अपनी वृत्ति नहीं चुन पाते है तब ऐसे लोग बाहर से जितने भी सफल लगते हो  उनके अन्दर उतना ही असंतोष का तूफान चलता रहता है।  जिसका अंदाज किसी को नहीं होता है। 

रात में जब वह अकेले होते तब यह अंदर की बैचेनी बाहर आ जाती। पिता ने बेटे की ख़ुशी के लिए उनकी पहली शादी बचपन में कर दी तथा दूसरी शादी पड़ोसी राज्य के राजा की बेटी के साथ कर दी गयी। इस कारण भर्तृहरि को पिता की मर्जी से शादी करना पड़ी। दो रानियों व अनेक दास दासियों के बावजूद भर्तृहरि खुश नहीं थे। मालवा प्रदेश का उज्जैन राज्य बहुत विशाल हो गया था, क्योंकि भर्तृहरि के छोटे भाई विक्रम निरन्तर राज्य के विस्तार के लिए पड़ोसी राज्यों को लड़ाइयों में पराजित कर उनके राज्यों को उज्जैन में मिलाते जा रहा थे।

भर्तृहरि अक्सर बाहर ही रहते और राज्य के सभी कामकाज विक्रम को देखने पड़ते थे। एक तो राजकाज की समस्याओं के कारण दूसरे महल के अंदर की कलह व षड़यंत्रों के कारण भर्तृहरि हमेशा परेशान व उदास रहते। उनका कोई अंतरंग मित्र भी नहीं था जिससे वह मन की बात कर अपना मन हल्का कर सके। वह अपने आपको हमेशा अकेला ही पाते। पिता तो अब थे नहीं और छोटा भाई राजा का प्यारा, हमराज व विश्वास पात्र था, वह लड़ाइयों पर ही होता था। इस कारण वह जब भी अवसर पाते शिकार करने जाने लगे तथा इसी बीच राजा भर्तृहरि ने दूसरे ग्रन्थ नीति शतक को लिखने की शुरुआत कर दी थी।

उज्जैन के महाकाल वन में एक दिन राजा शिकार के लिए गये थे। कई दिन शिकार के पीछे भागकर राजा थक गये थे। वह शिकार लेकर राजमहल लौटना चाहता थे। अभी सैनिकों ने शिविर से तम्बू हटाना शुरू ही किया था, तभी एकाएक भारी बारिश के कारण उन्हें जंगल में अपने तम्बू में रुकना पड़ा। पानी ऐसे गिर रहा था जैसे बदल फट पड़ा हो और अंधेरा बढ़ रहा था। राजा अपने तम्बू में आराम करने चले गये। जंगल में जंगली जानवर, झींगुर तथा मेंढ़क विचित्र आवाजें निकालने लगे, जिनके कारण जंगल बहुत डरावना लग रहा था।

 खाना खाकर राजा जल्दी सो गये। थकान के कारण राजा गहरी नींद में थे, लेकिन एक जानवर ने राजा के तम्बू की तरफ आना चाहा तो पहरेदारों ने आवाजें लगाना शुरू किया। जानवर भागते समय राजा के तम्बू से टकरा गया जिससे राजा की नींद खुल गई।

 

जंगल रात में भी शांत नहीं था। राजा को ऐसा लग रहा था जैसे रात में जंगल में एक अलग लोक ही जाग रहा हो। दिन में जंगल में जो आवाजें सुनाई देती है, वह आवाजें रात में सुनाई नहीं दे रही थी। रात की आवाजें अलग थीं। राजा का यह अनुभव कुछ विचित्र था। उन्हें महल से ज्यादा जंगल में शांति महसूस हो रहीं थी। पानी बरसने से झरकर पत्तों से अभी भी गिर रहा था। जंगल में मिट्टी की भीनी सुगंध आ रही थी। कुछ देर बाद बारिश रुक गयी। राजा का मन कविता कहने लगा और वह कुछ गुनगुना रहे थे, लेकिन किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। 

दिन में जब वह दरबारियों से घिरा रहता तब भी भर्तृहरि को मन की आवाजें सुनाई नहीं देती थी। कुछ समय के बाद राजा भर्तृहरि को अंधेरे में कुछ दिखने लगा था। वह सोच रहा था कि हमारी आँखें कैसे उजाले व अंधेरे में देखने की अभयस्त हो जाती है। 

अपने बिस्तर पर लेटकर राजा का मन धीरे-धीरे बेचैन हो उठा। पुरानी यादों का कारवां चल निकला। हमारा मन भी कितना विचित्र है कि सुखद यादें आसानी से भूल जाता है, लेकिन दुखद यादें हमेशा याद रखता है। चाह कर भी हम कभी भूल नहीं पाते है। जैसे ही वह अकेले होते वह बेचैन हो जाते। बाहर सब शांत होता लेकिन मन में विचारों का सैलाब आ जाता। दिमाग इतना गरम हो जाता मानो अभी फट जायेगा।

 

जब दर्द असहनीय हो गया तब राजा पलंग छोड़कर बाहर आ गये। फिर अकेले ही जंगल के अनजान रास्ते पर मंत्रमुग्ध से निकल पड़े। चारों तरफ जुगनूं ऐसे चमक रहे थे, मानो जंगल में दीपमाला जल बुझ रही हो। असंख्य जुगनूं और मेढ़कों की करकस टर्र-टर्र की आवाज, जंगली सियारों की आवाज तथा पास के गॉव से कुत्तों के रोने की आवाजें आपस में मिलकर जंगल को डरावना बना रही थी। ऊपर से धुप्प काली रात तथा पानी बरसने से भीगी मिट्टी व पेड़ जंगल को रहस्यमय बना रहे थे। पेड़ों पर सोते बन्दर यकायक उफ़...उफ़ की आवाजें निकालने लगे व एक डाल से दूसरी डाल पर कूदकर अपने साथियों को किसी अनजान खतरे से सावधान करने लगे।

योगी ने राजा भर्तृहरि के बचपन की बातें बताते हुई रवि का बताया कि राजा का बचपन भी उतना ही उलझा हुआ था जितना की किसी आम बच्चे का बचपन हो सकता है।  जैसे तुम्हारा बचपन तुमने बताया। जिंदगी में हर चीज उस तरह नहीं मिलती है जिस तरह सोचा जाता है। जीवन के हर पड़ाव में कोई न कोई कमी बरक़रार रहती है।  


6                                

 पिंगला

चुपचाप बात सुन रहे योगी से रवि ने कहा — स्मिता को पढ़ाई के दौरान में बहुत चाहने लगा था। अमन स्मिता और मैं हमेशा साथ घूमते थे, पढ़ाई करते, जब भी इंस्टिट्यूट में प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए ग्रुप बनाये जाते तो हम तीनों हमेशा एक ही ग्रुप में रहते थे। स्मिता हमेशा से पढ़ाई में बहुत होशियार थी। उसके विचार हर विषय पर बहुत स्पष्ट होते थे।  वह अपना मत बहुत मजबूती के साथ रखती थी। कई दफा बहुत बहस हो जाती। अमन तथ मुझे उससे अंततः सहमत होना ही पड़ता था। स्मिता के प्रति मेरा आकर्षण इसी कारण शुरू हुआ था। लेकिन, वह बहुत स्वतंत्र विचारों की स्वछन्द लड़की थी। इस कारण में अपनी ब्भावनाओं को चाहते हुए भी उसे कभी बता नहीं सका था। 

जब में अपने कमरे में अकेला होता तब उसी की यादों में खोया रहता था। जब हम दोनों का प्लेसमेंट हुआ और अमेरिका में अलग-अलग कंपनियों में ज्वाइन किया तो मेरा ख्बाव टूट गया। कई वार मैने उसके शहर जा कर मिलाने का मन बनाया लेकिन, मन मसोसकर रह गया। यह कसक हमेशा मेरे मन में दबी रह गई। जब उसने अमेरिका में एक दिन मेरी कम्पनी में ज्वाइन किया तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। मुझे लगा कि अब कभी ना कभी मुझे अपनी फीलिंग्स बताने का मौका मिल ही जाएगा। लेकिन अब में जिस स्मिता से मिल रहा था वह इंदौर वाली  स्मिता नहीं थी। वक्त के साथ उसमें कुछ बदलाव आ गया था। 

नई दिल्ली के टूर के समय स्मिता से बातें करने पर पता चला कि उसे अपनी भावनाओं को बताने का मौका अभी भी है। यह मौका मुझे उज्जैन की फील्ड विजिट के समय मिला। इस बार मैंने हिम्मत करके उसे बता ही दिया। भारत में बिताए दिन हम दोनों की लाइफ में टर्निंग पॉइन्ट साबित हुये।

अमेरिका से लौटने की कुछ दिन बाद स्मिता मेरे फ्लैट पर शिफ्ट हो गई। हम दोनों लिव इन में रहने लगे। शुरू के दिन बहुत रोमानी थे। मगर धीरे-धीरे स्थितियां बदलने लगी। पहले जहां हम दोनों हर विषय पर एकमत होते थे अब शायद ही किसी विषय मर एक मत होते हों। रवि को याद आया कि कैसे वह आफिस के किसी भी काम पर ध्यान नहीं दे पा रहा था। उसे हर बात में अपनी कमी दिखाई देने लगती थी और वह खुद को कोसता रहता। इस कारण रवि का परफॉर्मेंस घटता गया और वह खूब छुट्टियां लेने लगा था।

इससे पहले, मुझे  हमेशा बोलने के पहले यह सोचना होता था कि स्मिता क्या प्रतिक्रिया देगी। यह हमारे इंस्टीट्यूट के दिनों की तात्कालिक भाषण प्रतियोगता जैसा होता था, जिसमें डिब्बे से एक पर्ची निकालकर कभी विषय के पक्ष में तो कभी विपक्ष में बोलना होता था। हालांकि उन दिनों यह हमारी प्रिय प्रतियोगिता होती थी, क्योंकि बोलते समय मुझे अपने मस्तिष्क के सभी ज्ञान का उपयोग पर्ची के विषय के आधार पर करता होता था। इस तरह की प्रतियोगता में कभी मैं प्रथम तो कभी द्वितीय आता था  ऐसा शायद कभी नहीं हुआ जब हम हार गये हो। यह सोचकर रवि को हंसी आ गई, क्योंकि उसकी क्लास में भावना नाम की लड़की थी जिससे हमेशा उसका मुकाबला होता था। कभी भावना प्रथम आती तो कभी वह। यह सिलसिला लगभग तीन साल तक चला। फिर कालेज ख़तम होते ही दोनों के रास्ते अलग दिशाओं में निकल गए। भावना से स्पर्धा करते के कारण लगाव उसकी तरफ होने लगा था, लेकिन मैं कभी उससे  भी कुछ कह नहीं सका। इस बात का मलाल मेरे मन में अभी तक है। 

व्यक्ति का जीवन कितना जटिल है कि इसमें अनेक परतें होती हैं और हर परत पर कुछ न कुछ घटता रहता है। व्यक्ति ऊपर से जैसा दिखता है और अंदर से वैसा नहीं होता। अगर व्यक्ति किसी के साथ रह रहा होता है तब भी साथी उसके बारे में बहुत काम जान पाता है। कभी - कभी तो हम अपने साथ ही कितने अजनबी होते है पता नहीं चलता। अभी तक ऐसा कोई यन्त्र नहीं बना जो व्यक्ति के दिमाग के विभिन्न खंडों पर घटने वाली बातों का पता लगा सके। 

योगी के चेहरे पर एक मुस्कुराहट दौड़ गयी और तिरछी नजर से रवि की तरफ देखते हुए कहा — तेरे मन की उत्सुकता देखकर मुझे कोई अचरज नहीं हो रहा है। इसका विवरण श्रृंगार शतक में भर्तृहरि ने वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, और शिशिर ऋतु में स्त्री के स्वभाव और स्त्री प्रसंग का भी ज़िक्र किया है।शतक के मंगलाचरण में कामदेव को नमस्कार करते हुये भर्तृहरि ने लिखा है, विष्णु और शिव ने  मृग के समान नयनों वाली कामनियों को गृहकार्य करने के लिये सतत् दास बना रखा है उनके रूप का वर्णन करने में वाणी असमर्थ है।  

 


भर्तृहरि लिखते हैं कि स्त्री किस प्रकार मनुष्य के संसार बन्धन का कारण है, मन्द मुस्कराहट से, अन्तकरण के विकाररूप भाव से, लज्जा से, आकस्मिक भय से, तिरछी दृष्टि द्वारा देखने से, बातचीत से, ईर्ष्या के कारण कलह से, लीला विलास से इस प्रकार सम्पूर्ण भावों से स्त्रियां पुरूषों के संसार-बंधन का कारण हैं। 

इसके उपरान्त स्त्रियों के अनेक आयुध गिनाए हैं जैसे भौंहों के उतार-चढ़ाव की चतुराई, अर्द्ध-उन्मीलित नेत्रों द्वारा कटाक्ष, अत्यधिक स्निग्ध एवं मधुर वाणी, लज्जापूर्ण सुकोमल हास, विलास द्वारा मन्द-मन्द गमन और स्थित होना। ये भाव स्त्रियों के आभूषण भी हैं और हथियार भी हैं।

 

विभिन्न ग्रहों से स्त्रियों की तुलना आकर्षक पूर्वक करते हुए भर्तृहरि ने लिखा है कि स्तन भार के कारण देवगुरू बृहस्पति के समान, कान्तिमान होने के कारण सूर्य के समान, चन्द्रमुखी होने के कारण चन्द्रमा के समान और मन्द-मन्द चलने वाली शनि स्वरूप चरणों से शोभित होने के कारण सुन्दरियां ग्रह स्वरूप ही हुआ करती है।

 

योगी ने कहा — तुम इस बात को कुछ यूं समझ सकते हो कि शिविर की  उस रात मंत्रमुग्ध भर्तृहरि क्षिप्रा नदी की तरफ देखते चले जा रहे थे। पास की झाड़ी से किसी खूंखार जानवर ने अचानक  राजा पर हमला कर दिया। राजा की तन्द्रा टूटी और उन्हें अहसास हुआ की वह बिना शस्त्र व सैनिकों के अकेले जंगल में आ गये थे। राजा ने पूरी ताकत लगाकर जानवर पर मुक्का मारा तो जानवर तिलमिला कर दूर जा गिरा। लेकिन वह राजा के दूसरे हाथ का मांस अपने जबड़े में ले गया। 

 

योगी ने आगे बताया कि राजा के घायल हाथ से खून का फव्वारा बह निकला। राजा ने अपनी पगड़ी का वस्त्र फाड़कर कसकर कंधे के पास हाथ पर बांध दिया। इससे खून बहना कम तो हुआ पर बंद नहीं हुआ। बूंद — बूद खून टपक रहा था। राजा के हाथ का दर्द इतना असहनीय था कि वह मन का दर्द भूल गये। उनका चित्त बिलकुल शांत हो गया। वह पानी व खून से तरबतर शिविर की और लौट रहे थे कि उसकी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा।

 

उन्होंने शिविर में पहुंचने के लिए अपनी चाल तेज की लेकिन राजा शिविर से कुछ दूर गिरकर बेहोश हो गये। राजा की जब बेहोशी दूर हो रही थी तो उसने अधखुली आँखों से देखा की कमरे के दरवाजे पर जल रहे दीपक की लौ मंदिम होकर बुझने जा रही थी। शायद तेल खत्म हो रहा था। 

तभी राजा ने देखा की एक बहुत गौरवर्ण हाथ परदे के पीछे से निकला जिसने दीपक में बहुत सावधानी से बिना आवाज किए तेल डाला और दीपक की लौ स्थिर हो गई। इसी वक्त महाराजा को सुन्दर सतरंगी कांच की चूड़ियों की छटा दीपक की लौ में दिखाई दी। हाथ सावधानी से जैसे अंदर आया था, वैसे ही सावधानी से वापस परदे के पीछे चला गया। परदे से अनायास हाथ के टकराने से चूड़ियों की खनक महाराजा के कानों में गूँज उठी। राजा के मन में एक आम आदमी की तरह यह जानने की इच्छा जाग उठी कि आखिर यह कौन है?

 

कुछ दिनों के बाद राजा का बुख़ार टूट गया और हाथ का घाव भी भर रहा था। जंगली जानवर के काटने की जगह कुछ मांस सड़ गया था, जिसे राज वैद्य ने काटकर अलग कर दिया था तथा पत्तों में दवा घाव पर रोज दो बार बांध रहे थे। मूर्छित होने के बाद राजा ने आँखें खोलकर देखा तो यह कमरा उन्हें राजभवन का नहीं लगा, क्योंकि राजा ने राजमहल के शयन कक्ष में जागते वक्त कमरे की छत निहारते कई रातें बिताई थी। इस कारण वह राजमहल की छत की हर चीज को पहचानते थे, लेकिन कमजोरी के कारण मुँह से अभी भी आवाज नहीं निकल पा रही थी।

 

राजा भर्तृहरि केवल देख पा रहे थे, लेकिन चाहकर भी वह किसी को पुकार नहीं पा रहे थे। इसी वक्त कमजोरी के कारण महाराजा की आँखों में हल्की बेहोशी छा गई और बोझिल आँखें बंद हो गई। राजा कुछ दिन बाद पूर्ण स्वस्थ हो कर राजमहल लौट गए। 

इसके बाद राजा के कुछ दिन बहुत व्यस्तता के रहे। राजकाज के पुराने पड़े मामलों को निपटाकर जब राजा रात को विश्राम करने शयन कक्ष में जाते तो नींद नहीं आती। राजा की दो रानियाँ भी उसका मन नहीं बहला पाती थी। इसलिए महाराजा को अक्सर एकांत में उस रात के दीपक की काँपती लौ में देखा सुन्दर चूड़ियों वाला हाथ दिखने लगता। राजा की रुचि यह जानने में होने लगी कि वह कौन थी?

 

राज मर्यादा एवं पद की गरिमा के कारण वह अपने मन की बात किसी से कह भी नहीं पाते थे, लेकिन जब मन की व्याकुलता दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी तो एक दिन एकांत में उन्होंने अपने विश्वस्त सेवक से आखिरकार पूछ ही लिया। 

सेवक ने नज़रें नीची कर बताया कि जब महाराज को गहरा जख्म हो गया था और बरसात के कारण नदी उफान पर थी। कमजोरी के कारण उस हालत में महल लौटना जोखिम भरा होने से महामंत्री जी ने चिकित्सा का इंतजाम निकट के जागीरदार की हवेली में किया था। कुछ हालत ठीक होने पर कुछ दिन बाद आपको महल लाया गया।

 

हालांकि जागीरदार जी ने सबसे अच्छे वैद्य को बुलाया तथा सेवा के लिए अपनी बेटी पिंगला को लगाया था। मगर राज वैद्य का आग्रह था कि आपका समुचित इलाज महल में ही हो सकता है, तब उनके जोर देने पर आपको महल लाया गया था। राजकुमारी पिंगला का नाम सुनते ही राजा ने आँखें नीचे कर ली तो आँखों में रंग बिरंगी चूड़ियों वाला हाथ तैर गया।

 

योगी ने आगे बताना शुरू किया — राजा राजमहल से ही राजकाज किया करते थे। उनका छोटा भाई विक्रम बाहर के काम संभालता था। महाराज ने विक्रम को राज्य का महामंत्री नियुक्त किया था, क्योंकि वह राजकाज में बहुत कुशल होने के साथ साहसी, वीर, बुद्धिमान तथा पराक्रमी था। कई लड़ाइयों में वह अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन कर चुका था। राजकाज में उसकी रूचि थी।  

राज्य की सीमाएँ बढ़ाने में उसे आनंद मिलता था। प्रजा के बीच वह बहुत लोकप्रिय था। जनता की कठिन से कठिन समस्या का समाधान हमेशा उसके पास होता। लोगों के झगड़े निपटना उसका प्रिय काम था। इसलिए लोग उसे न्यायप्रिय मानते थे। राजा भर्तृहरि का वह प्यारा भाई था।

राजा को विक्रम पर बहुत भरोसा था। वह हमेशा उनकी बात मानते थे तथा स्वयं से ज्यादा विक्रम की सलाह पर भरोसा भी करते थे। हालांकि विक्रम उनके पिता गर्दभिल्ल की दूसरी रानी से पैदा हुआ था और राजा से उम्र में छोटा था। छोटा भाई होने के कारण महाराज को आराम करने का खूब समय मिल जाता था जो वह पढ़ने लिखने में लगाते थे।

 

राजा भर्तृहरि के दरबार में एक से एक विद्वान थे। राजा की भी भाषा पर अच्छी पकड़ थी तथा वह गद्य एवं पद्य दोनों तरह से लिख लेते थे। इसलिए राजा भर्तृहरि ने अपना दूसरा ग्रन्थ नीतिशतक पर फिर काम शुरू कर दिया था, जो घायल हो जाने के कारण रुक गया था। इसमें नीति से जुड़े श्लोक लिख रहे थे। राजा भर्तृहरि ने अपने अनुभवों और लोक व्यवहार पर आधारित श्लोक लिखे है।

 

नीति शतक में उन्होंने अज्ञानता, लोभ, धन, दुर्जनता, अहंकार जैसी चीज़ों की निंदा की है। वहीं, विद्या, सज्जनता, उदारता, स्वाभिमान, सहनशीलता, सत्य जैसे गुणों की तारीफ़ की है। महाराज का अधिकांश समय स्वाध्याय में ही व्यतीत होता तथा वह विद्वानों से घिरे रहते। 

सारा दिन विविध विषयों पर चर्चा चलती रहती। कोसों दूर से विद्वान विचार विमर्श करने आते ही रहते, लेकिन रात में जब वह अकेले होते तब अनायास ही वह हाथ उन्हें याद आ ही जाता। कई दिन इसी उहापोह में निकल गए कि किसे एवं कैसे अपनी बात कहें।

योगी ने रवि को ​बताया कि राजा ने जागीरदार को संदेश वाहक से खबर भेजी की राजा कृतज्ञता ज्ञापित करने आना चाहते है। जागीरदार ने राजा के स्वागत की खूब तैयारी की। तैयारियों की जिम्मेदारी खुद पिंगला ने सम्हाल रखी थी। पिंगला तीक्ष्ण बुद्धिवाली विदुषी महिला थी और उसके पिता ने उसे सभी कलाओं में पारंगत करवाया था। 

वह शस्त्र संचालन में निपुण थी तो सुन्दर कवितायेँ भी लिखती थी। राजकाज तथा राजनीति की समझ रखती थी। वह किसी भी विषय पर बेझीझक अपने विचार रख सकती थी। जागीरदार ने अपनी बेटी को बहुत कुशलता के साथ बड़ा किया था, क्योंकि यही उसकी एकमात्र संतान थी। इसलिए इसकी शिक्षा दीक्षा बहुत अच्छे से हुई थी।

 

नियत दिन राजा भर्तृहरि मय सैन्यदल के पधारे। खूब स्वागत सत्कार हुआ, नाच गाना, खाना, पीना चल रहा था। उत्सव अपने चरम पर था, लेकिन राजा की नजर पिंगला पर ही टिकी रही। इस दिन पिंगला ने खुद का सम्पूर्ण शृंगार किया था। पिंगला ने अपनी सबसे सुन्दर चंदेरी की साड़ी पहनी थी, जो इतनी झीनी थी कि शरीर को ढकती कम और दिखती ज्यादा थी। वह इतनी खूबसूरत लग रही थी की मानो रति ही धरती पर उतर आई हो। पिंगला की माँ ने समारोह में आने के पहले उसकी नजर उतरी थी। माथे पर आगे के बालों के पास काजल का टीका लगाया था।

 

राजा भी कई दिनों के बाद बन ठन कर समारोह में आये थे। राजा ने भी धोती कुर्ता तथा उस पर अचकन पहना हुआ था। साथ ही मालवा की रंग बिरंगी पगड़ी बांधी थी, जो भैरूगढ़ में खास मौकों के लिए ही बनी थी। उनकी बलशाली बाहें बहुत सुन्दर लग रही थी। 

पिंगला जब कनखियों से राजा को देखती तब वह राजा को अपनी ओर देखती पाती। राजा रंग बिरंगी चूड़ियों से भरे हाथ देख रहे थे। जब उन दोनों की नजरें मिलती तो पिंगला शरमाकर अपनी नजर नीची कर लेती। जब तब वह अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करती तो चूड़ियाँ बज उठती। यह आँख मट्टके का खेल पूरे समारोह के दौरान चलता रहा।

 

जागीरदार पूरे समय मेहमानों की खातिरदारी में लगा था। पिंगला ऐसी नजरें अच्छे से पहचानती थी। यह प्रकृति का औरत को दिया उपहार है। शर्म के मारे पिंगला की नजरें नहीं उठ रही थी पर वह महाराज को देखना भी चाहती थी तो अपने मन से भी मजबूर थी। इसी दुविधा में समारोह कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला। मानो समय रुक गया हो जो अभी शुरू हुआ और अभी खत्म भी हो गया।

 

राजा भर्तृहरि को बरबस शृंगारशतकम् का श्लोक याद आ गया जिसमें उन्होंने लिखा था कि सबसे उत्तम क्या है? 

भर्तृहरि गिनाते हैं- इस संसार में नव-यौवनावस्था के समय रसिकों को दर्शनीय वस्तुओं में उत्तम क्या है? 

मृगनयनी का प्रेम से प्रसन्न मुख। 

सूंघने योग्य वस्तुओं में क्या उत्तम है? 

उसके मुख का सुगन्धित पवन। 

श्रवण योग्य वस्तुओं में उत्तम क्या है? 

स्त्रियों के मधुर वचन। 

स्वादिष्ट वस्तुओं में उत्तम क्या है? 

स्त्रियों के पल्लव के समान अधर का मधुर रस। 

स्पर्श योग्य वस्तुओं में उत्तम क्या है? 

स्त्रियों का कुसुम-सुकुमार कोमल शरीर। 

ध्यान करने योग्य उत्तम वस्तु क्या है? 

सदा विलासिनियों का यौवन विलास। 

हालांकि राजा भर्तृहरि की यौवन अवस्था अभी गई नहीं थी। फिर भी राजा अपनी एवं पिंगला की उम्र का अंतर पूरी तरह से भूल गये थे और नवयुवक की तरह व्यवहार कर रहे थे। पिंगला के रूप का जादू राजा के सर चढ़कर बोल रहा था। वह पूरी तरह अशक्त थे। उन पर कामदेव ने अपना अधिकार कर लिया था।

 

राजा तीन दिन जागीरदार के यहाँ रुके और पिंगला ने पूरी श्रद्धा और समर्पण से राजा की सेवा की। प्रस्थान के एक दिन पहले रात के खाने के बाद महाराज ने जागीरदार को अपने कमरे में बुलवाया। बहुत सोच विचार कर उन्होंने अपने मन में निश्चय किया कि जाने के पहले वह अपने मन की बात कहकर ही जाना चाहेंगे। राजा को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। जागीरदार तत्काल राजा के सामने उपस्थित हुआ। महाराज ने अपने सामने तख्त पर बैठने का इशारा किया, लेकिन जागीरदार हाथ जोड़कर नजरें नीचे किये खड़ा रहा। राजा ने एक लम्बी सांस लेकर अपने मन की बात कहने का साहस किया।

 राजा भर्तृहरि बोले — पिछले दिनों उनकी देखभाल कर जान बचाने के लिए मैं आपका आभारी हूँ । मैं पिंगला की सेवा से खुश होकर बदले में आपकी पुत्री से  विवाह कर ऋण चुकाना चाहता हूँ , बशर्ते पिंगला इस के लिए राजी हो तो।

जागीरदार को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उसने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उनकी पुत्री इतनी भाग्यशाली होगी, लेकिन जागीरदार ने  कुछ समय चाहा। फिर उसने तेज कदमों से अपने शयनकक्ष में अपनी पत्नी के पास जाकर उसे यह खबर सुनाई। उसकी पत्नी राजा की उम्र तथा पूर्व से दो पत्नियाँ होने के कारण कुछ कहना चाह रही थी, लेकिन जागीरदार ने उतावलेपन से कहा कि इस शुभ घड़ी में कुछ मत कहो। यह हमारी बेटी के सौभाग्य की बात है कि राजा ने खुद यह प्रस्ताव किया है। 

फिर पिंगला की मां ने कहा  "एक बार बेटी की राय भी तो जान लो।" 

इसके बाद जागीदार ने पिंगला को बुला भेजा, लेकिन पिंगला की सेविका उसे पहले ही यह बात बता चुकी थी। पिंगला के आने पर माँ ने प्यार से उसका हाथ पकड़कर उसकी राय जाननी चाही। 

इस पर पिंगला ने अपनी आँखें नीची झुकाकर अपनी सहमति दे दी। शुभ मुहूर्त में धूमधाम से राजा का विवाह सम्पन्न हुआ। दुल्हन बन पिंगला राजभवन क्या आई उसकी महत्वकांक्षा आसमान छूने लगी। पिंगला राजा  के मन की बात जानकर हर इच्छा बिना कहे ही पूरी करती। कोशिश करती कि महाराज हमेशा उसके पास रहे।

 

राजा भी राजकाज विक्रम पर छोड़ पूरे समय पिंगला के कक्ष में बिताते। समय बीतता गया पिंगला के मन में असुरक्षा का डर समा गया कि यदि उम्र ढलने के कारण सुन्दर ना रही तो राजा भर्तृहरि की उसमें रूचि कम हो जाएगी और वह एक और शादी कर लेंगे। पहले भी वह ऐसा कर चुके थे। दूसरी ओर राजा की उम्र बढ़ रहीं थीं और पिंगला की शारीरिक जरूरतें पूरी करने में कमजोर पड़ जाते थे। पिंगला उनकी आखिर तीसरी पत्नी थी और उन्हें अपनी पूर्व की दोनों पत्नियों को भी समय देना होता था।

 

पिंगला हालांकि राजा से उम्र में आधी ही थी, लेकिन वह बहुत बुद्धिमान थी। पिंगला अब तक यह भी जान गई थी कि महाराज अपना राजकाज अपने छोटे भाई विक्रम के कहने पर चलाते हैं।राजा राजकाज में विक्रम की बातों को तवज्जो देते थे और इस मामले पर वह पिंगला की सलाह नहीं मानते थे। इन बातों तथा राजमहल की आंतरिक कलह के कारण उसमें असुरक्षा निरंतर बढ़ रहीं थीं। दूसरी दोनों रानियाँ राजाओं की बेटियां थीं तथा राजमहल में उनके पास उनके मायके से आये सेवक थे, जबकि पिंगला के पिता जागीरदार थे। यह सभी बातें पिंगला को बहुत सालती थीं और पिंगला रानी के चाटुकार हमेशा उसे राजकाज में हस्तक्षेप करने के लिए उकसाते रहते थे।

 

राजा भर्तृहरि के पास चिन्ताएँ अपार थी। राज परिवार में अधिकार, पद तथा सुविधाओं को लेकर षड़यंत्र चलते रहते थे। हालांकि भौतिक सुविधाओं की कमी न थी, लेकिन मन का क्या करें वह भरता ही नहीं। भर्तृहरि अपने भाई विक्रम की मदद से राजकाज व सीमाओं की चिन्ताएँ तो सुलझा लेते थे, लेकिन परिवार की समस्याओं का समाधान तो उनको ही करना होता था। यह समस्याएं भौतिक कम और मनोवैज्ञानिक तथा भावनात्मक अधिक होती थीं, जिनका कोई सीधा हल नहीं होता था। इस कारण महाराज कई दिनों तक मानसिक परेशानी में गुजार देते थे।

 

असुरक्षा तथा असंतुष्टि के कारण पिंगला की निकटता राजमहल के कोतवाल के साथ बढ़ती जा रहीं थीं, क्योंकि वह अपेक्षाकृत युवा था और युवा रानी की हर बात मानने को तैयार रहता। 

हालांकि पिंगला महाराज की प्रिय तथा प्रधान रानी थी और वह अपना अधिकांश समय उसी के साथ बिताते थे, लेकिन पिंगला समय निकालकर अपने प्रिय कोतवाल से अकेले में मिल लेती थीं। पिंगला महाराज के मनोरंजन के लिए कई तरह के समारोह आयोजित करती थीं। इन समारोह में महाराज के मनोरंजन के लिए कलाकार, विदूषक, गायक एवं नर्तक होते थे।

 

राजा भर्तृहरि को अपने विद्वानों की गोष्ठियों की कमी हमेशा खलती थी और वह नीतिशतकम् का नियमित लेखन भी नहीं कर पाते थे। शिकार पर जाना लगभग बंद सा ही था। इन सब व्यस्तताओं के कारण भर्तृहरि राजकाज से भी विमुख से हो गए थे। कई दफा विक्रम के आग्रह के कारण किसी सभा में जाते थे। राजा की यह विमुखता जनता के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि विक्रम ही जनता का ख्याल रखते थे।

 

राजा राजकाज से विमुख हो तो दरबारियों में कई तरह की कानाफूसी होनी शुरू हो जाती है। इसका सीधा असर राजमहल में भी पड़ने लगा था। कुछ अरसे के बाद यह बात महल की दीवारों के बाहर चली गई। 

जब किसी बात की आधिकारिक जानकारी न हो तब लोग कई तरह के कयास लगाने लगते है। पिंगला और कोतवाल की निकटता भी राजमहल के सेवकों से छिपी न रह सकी। राजा से तो किसी के कहने की हिम्मत न हुई, क्योंकि वह पिंगला के कक्ष से कम ही बाहर आते। कुछ दिनों के भीतर ही विक्रम तक कोतवाल और पिंगला के प्रेम प्रसंग की बात पहुंच ही गई।

 

एक दिन रात्रि में विक्रम ने अपनी एक दासी के इशारे पर रानी का पीछा किया। वह कोतवाल से मिलने अंधेरे में राजमहल के घोड़े के अस्तबल में गई थीं। हालांकि विक्रम पूर्ण सावधानी से पीछा कर रहा था, लेकिन अस्तबल में निकट आने पर विक्रम का प्रिय घोड़ा हिनहिना उठा। पिंगला जल्दी से अपने कपड़े ठीक करती अंदर भागी, लेकिन वह जान गई की विक्रम ने उसे देख लिया है। हड़बड़ी में भागते उसका पांव उसकी साड़ी में फंस गया वह गिर गई, लेकिन बदहवास कमरे में आई तभी राजा की नींद खुल गई और पिंगला की ऐसी हालत देखकर उन्होंने पूछा क्या हुआ रानी पिंगला? 

हड़बड़ी में रानी ने आँखों में आंसू भर कर अचानक अपनी लाचारगी दिखाते हुए कहा कि उनके छोटे भाई के कारण उसकी यह हालत हुई है।

 

पहले तो महाराज को अपने कानों पर भरोसा न हुआ, लेकिन त्रिया चरित्र के कारण सत्य हार गया। पिंगला ने बोलने के पहले सोचा था कि यदि वह विक्रम का नाम नहीं लेगी तो वह सुबह कोतवाल और उसके मिलने की बात महाराज को बता देगा। तब वह न घर की रहेगी न घाट की। महाराज के मन से विक्रम को गिराने के लिए उसके मन में हमेशा विचार आते रहते थे, लेकिन वह कहने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाती। इसलिए अचानक इस मौके को अपने पक्ष में करने पिंगला में ना जाने कहाँ से इतनी हिम्मत आ गई और अवचेतन मन की बात संकट की घड़ी में उसकी संकटमोचन बन गई।

 

रात भर राजा ठीक तरह से सो न सके। कई प्रकार के विचार उनके मन में हलचल मचा रहे थे, लेकिन उनके पास इतनी हिम्मत न थी कि वह विक्रम से कुछ कह सके। सुबह होते ही महाराज ने विक्रम को बुलावा भेजा। वहीं दूसरी तरफ विक्रम भी रात भर सोया नहीं था। उसके मन में हलचल थीं कि वह अपनी माँ समान भाभी के संबंध में यह बात राजा से कैसे कहे। कई तरह के विचार मन में उमड़ घुमड़ रहे थे, लेकिन उसे अपने भाई की सुरक्षा की चिन्ता भी थी। इस कारण दिमाग को नियंत्रण करते हुए सारी बात बताना ही उचित समझा।

 

विक्रम सीधे भर्तृहरि के कक्ष में पहुंचा और कक्ष में दोनों भाई अकेले थे तो विक्रम ने पूरी बात बता दी, लेकिन रात में पिंगला ने यहीं कहा था कि देखना विक्रम अपना दोष छिपाने के लिए कोतवाल का नाम लेगा और हुआ भी ऐसा। 

इससे पिंगला की बात सही निकलने के कारण भर्तृहरि ने विक्रम की बात का भरोसा न कर उसे पश्चिम की दूर सीमाओं की सुरक्षा के लिए तत्काल जाने को कहा। विक्रम आज्ञाकारी भाई था उसने जान लिया की भाई अभी भाभी के प्यार में अंधे हैं। इसलिए वह बिना सफाई दिए राजाज्ञा का पालन करने अपने साथियों के साथ तत्काल चला गया।

 

इधर पिंगला की हिम्मत बहुत बढ़ गई उसने भर्तृहरि से मिलने जुलने वालों का आना जाना बंद कर दिया। अब वह कोतवाल से जितनी बार चाहती मिल लेती थी। कोई रोकने टोकने वाला नहीं था। राजमहल में कोतवाल ने केवल अपने विश्वासपात्र सैनिकों को तैनात कर दिया था।

 

विक्रम के ना रहने से जनता की परेशानियां बढ़ती जा रही थीं। भर्तृहरि की हालत से दुखी उनकी पहली रानी क्षिप्रा के उस पार के साधु के आश्रम गई तथा चुपचाप मदद की गुहार लगाई।

एक दिन अचानक राजमहल के दरवाजे पर एक तेजस्वी साधु ने अलख निरंजन का उद्घोष किया। द्वारपालों ने साधु को जाने का कहा, लेकिन वह अलख निरंजन का उद्घोष करता रहा। तीनों रानियाँ बाहर आकर साधु को सत्कारपूर्वक राजमहल में लेकर गई। साधु की लाल बड़ी आँखें बाहर निकल रही थीं, जो गुस्से से भरी थीं। साधु के कानों में बड़े कुण्डल लटक रहे थे। मस्तिष्क पर जटा जूट बाधा था। हाथों में कमण्डल, त्रिशूल तथा कन्धे पर एक बड़ी छोली लटक रही थीं।

 

राजा के अंगरक्षकों ने साधु को बहुत टाला, लेकिन वह राजा से मिलने की जिद पर अड़ा रहा। योग हट देखकर राजा को दरबार में हारकर आना ही पड़ा। साधु राजा भर्तृहरि की दशा देखकर व्यथित हो उठा। उसने मन ही मन प्रतिज्ञा की कि वह भर्तृहरि को इस दलदल से बाहर निकालेगा। साधु ने राजा भर्तृहरि को उपदेश दिया और राजकाज में रूचि लेने को कहा, लेकिन भर्तृहरि में कोई उत्साह नजर न आने पर उनके वंश के पूर्व राजाओं की गाथाएं सुनाई। इसके बाद भी राजा जैसे थे वैसे ही बने रहे और उनकी मुखमुद्रा तनिक भी न बदली। तब साधु ने राजा को मृत्यु का भय बताया, लेकिन इसका भी ज्यादा असर नहीं हुआ।

 

इसके बाद साधु ने राजा भर्तृहरि को अपनी झोली से एक अद्भुत लाल फल निकालकर देते हुए कहा कि यदि तुम यह फल खा लोगे तो तुम सदा के लिए जवान व बलवान बने रहोगे। राजा ने वह फल प्रसाद जानकर श्रृद्धापूर्वक ले लिया। साधु ने राजा भर्तृहरि को आशीर्वाद दिया और फिर साधु बिना कुछ कहे बिना कुछ लिए यकायक उठा और अलख निरंजन की टेर लगाता हुआ राजमहल से निकल गया।

 

राजा भर्तृहरि वह अद्भुत फल लेकर अपने शयनकक्ष में पिंगला के पास आकर सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। चूंकि महाराज अपनी तीसरी पत्नी पर अत्यधिक मोहित थे तो उन्होंने सोचा कि यदि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। यह सोचकर राजा ने पिंगला को वह फल दे दिया। पिंगला फल लेकर चली गई। बात आई गई हो गई, जीवन फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगा।

 जब रात को पिंगला अकेली होती तब वह महल के झरोखे से क्षिप्रा नदी को निहारती। नदी की धारा निर्बाध अल्हड़पन से बहती रहती। नदी की धार नीरव में पिंगला के मन में कामनाओं की बाढ़ देती। सम्पूर्ण महल निद्रा की गोद में होता केवल द्वारपालों की आवाजें कभी नीरवता भंग करती थी। द्वारपाल अक्सर अपनी लाठी ठोककर आवाज करते। एक रात पिंगला जब महल के गवाक्ष में बैठकर नदी निहार रही थी तब उसे दूधिया चांदनी में नीचे सैनिक वेशभूषा में एक युवक दिखा। वह सैनिक वर्दी में वहुत आकर्षक, सुडौल एवं सुन्दर लग रहा था।

 

उसे यह जानने की उत्सुकता हुई कि यह युवक कौन है? उसने अपनी दासी से सुबह पूछा तो दासी ने बताया कि यह नगर कोतवाल है, जो कभी - कभी महल की सुरक्षा व्यवस्था देखने रात में आता है। रानी मन मसोस कर रह गई कुछ न बोली। एक रात नींद नहीं आने के कारण वह छत पर अकेले टहल रही थी। कमरे में गर्मी अधिक होने से वह छत पर नदी की और से आ रही ठंडी हवा में आ बैठी थी।

 

तभी छत पर वह युवक आया। बड़ी विनम्रता से सिर झुकाकर उसने अभिवादन किया और अनुरोध किया कि रात्रि के दूसरे पहर अकेले छत पर जाना सुरक्षा की दृष्टि से ठीक नहीं है। इसके बाद रानी ने कहा कि महाराज राजकाज से बाहर गए है, कमरे में बड़ी गर्मी थी इस कारण वह अकेली छत पर आई थी। फिर रानी उससे इधर उधर के सवाल करती रही और वह युवक बड़ी विनम्रता से उत्तर दे रहा था। रानी ने उसके काम के बारे में जानना चाहा तो उसने बताया कि तीन वर्ष पूर्व उसने राजा को शिकार के समय हुए हमले में संकट के समय उनकी रक्षा की थी, तभी उसके बाद से उसे इस पद पर नियुक्त किया गया था। उसका परिवार गॉव में है तथा वह अकेला राजमहल के पास राज्य से मिले आवास में रहता है। इसी तरह बात करते हुए समय  बीतता रहा, जिसका पिंगला को पता ही न चला। अधिक समय हुआ जानकर कोतवाल आज्ञा लेकर चला गया।

 

पिंगला भी अपने कमरे में आ गई। पलंग पर लेटते ही उसे वह घटना याद आ गई जब एक दिन सुबह राजा को उसके घर घायल अवस्था में लाया गया था। कैसे उसने मन लगाकर उनकी सेवा की थी। सोचते हुए जाने कब उसे नींद आ गई पता ही नहीं चला।

राजा भर्तृहरि ने हटपूर्वक उससे विवाह किया था। पिंगला ने गुरुकुल में भर्तृहरि का शृंगारशतक पड़ा था। भर्तृहरि बहुत विद्वान, पराक्रमी तथा रसिक लगते थे। हालांकि उसकी माँ ने बहुत उत्साह नहीं दिखाया था, लेकिन पति हट तथा जिद के कारण उसकी नहीं चली थी। उसने पिंगला की विदा के पूर्व राजा की बढ़ती उम्र का हवाला देकर ऊंच-नीच का ज्ञान करवाया था।

 

जब वह महल में आई तब उसका वैसा स्वागत नहीं किया गया, जैसा उसने अपने मन में कल्पना की थी। राजा की दो पत्नियों तथा उनके बच्चों की व्यस्तता के कारण उसे अकेलेपन का सामना करना पड़ता था। महल में गृहकलह कभी बहुत कटु हो जाती थी। तब अक्सर वह अपने आप को अपने कमरे में बन्द कर लेती थी। राजा राजकाज में व्यस्त रहते थे। कभी रात को वह वेश बदलकर नगर में प्रजा का हाल चाल जानने जाते थे। 

रानी जब अकेली होती तब वह रात में छत पर इस आशा में टहलती रहती की। शायद उसकी मुलाकात फिर कोतवाल से हो जाए, लेकिन कोतवाल कई दिनों तक उधर नहीं आया। पिंगला के मन से युवा कोतवाल का चेहरा हटता नहीं था, लेकिन उसे अपने पद की गरिमा का ख्याल आता तो वह कोई कदम नहीं उठा पाती। पिंगला राजा भर्तृहरि से बहुत प्यार था, लेकिन मन कभी इतना विचलित हो जाता कि वह अपने मन के सामने हारने लगती।

 

विचारों की उहापोह निरंतर चलता रहता। वह अपने आपसे लड़ रही थी, लेकिन इस बार राजा  भी महीनों से महल नहीं लौट सके थे। इस प्रकार में तीन दिन बीत गए, लेकिन अपनी वासना के कारण उसने अपनी विश्वस्त दासी से कोतवाल को बुला भेजा। वह छत की जगह महल के एक खाली पड़े कक्ष में उससे मिली। फिर वे अक्सर मिलने लगे और कहते है कि दीवारों के भी कान होते है। एक कहावत है — “खैर, खून, खांसी, खुशी, वैर, प्रीत एवं मदपान छुपाने से भी नहीं छुपते है।” आखिरकार कहावत सत्य हो गई।

 

इन दोनों के मिलने की खबर महल के गलियारों से राजा भर्तृहरि के भाई विक्रम तक पहुँच गई। विक्रम ने अपने जासूस लगा दिए। एक रात खबर मिलने पर विक्रम ने रानी को रंगे हाथों पकड़ लिया। वह रानी को छुपकर देख रहे थे, लेकिन रानी को निकलते समय विक्रम दिख गए। वह रानी का बहुत सम्मान करते थे। इसलिए सामने से कुछ न कह सके।

 

विक्रम ने कोतवाल को इधर न आने का हुकुम दिया। वह बहुत डर गया था। राजा भर्तृहरि अभी भी बाहर ही थे। कुछ दिन शांति से बीत गए, लेकिन पिंगला के हट के कारण बुलाने पर कोतवाल को विवश होकर आना ही पड़ता था, क्योंकि वह यह जानता था कि उसकी यह हरकत कभी भी उसका सिर धड़ से अलग करवा सकती है। रानी से एक दो बार उसने अपनी शंका रखने की कोशिश की, लेकिन रानी ने कुछ नहीं सुनने को तैयार थी। एक रात रानी ने उसे अस्तबल में मिलने के लिए बुला भेजा। जब वह उधर जा रहा था उसका सामना विक्रम से होने को था, लेकिन विक्रम की नजर उस पर पड़े उसके पहले ही वह एक खंभे की ओट में छिप गया, लेकिन सतर्क विक्रम को दिख ही गया। वह कुछ न कहे आगे बढ़ गया, क्योंकि उसके साथ दूसरे लोग भी थे। 

 

उस दिन कोतवाल का शरीर पीला पड़ गया था। वह बहुत उदास था उसने कई बार सोचा कि वह वापस चला जाये, लेकिन वह रानी से बहुत डरता था। उसे डर था कि रानी कुछ उल्टा सीधा कांड न कर दे। रानी अनेक मौकों पर अपनी जान तक देने की बात कर चुकी थी। इस कारण वह रानी के त्रिया चरित्र से डरता हुआ पहुँचा। इसे इतना डरा देखकर रानी ने उससे कारण जानना चाहा तो डर के मारे उसने सही बात बता दी। रानी कोतवाल को अंग में भर कर शांत होने को कह रही थी। दोनों बहुत अस्त व्यस्त थे तभी कुछ आवाज हुई और रानी बदहवास हालत में अपने कमरे की ओर भागी तथा राजा से झूठ बोलकर विक्रम को राजमहल से बाहर भिजवा दिया था। भर्तृहरि व विक्रम दोनों के एक ही पिता की दो पत्नियों से पैदा हुए थे। दोनों भाइयों में कभी मतभेद नहीं हुआ, लेकिन पिंगला के कारण दोनों भाइयो में मतभेद हुआ था। विक्रम के राजमहल से जाने के बाद पिंगला का राजकाज में दखल बढ़ गया था।

रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। यह बात राजा नहीं जानते थे। जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा तो वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सकेगा। रानी ने यह सोचकर चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया। वह कोतवाल एक नगरवधू से प्रेम करता था और उसने चमत्कारी फल उसे दे दिया, ताकि नगरवधू सदैव जवान और सुंदर बनी रहे। नगरवधू ने फल पाकर सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह गंदा काम हमेशा करना पड़ेगा। उसे इस नर्क समान जीवन से मुक्ति नहीं मिलेगी।

 

बहुत समय बाद राजा भर्तृहरि को एक दिन अचानक लगा कि दरबार लगाया जाए तो नियत समय पर दरबार सजाया गया। जब यह बात जनता में फैली तब बहुत सारे लोग अपनी फरियाद लेकर दरबार में उपस्थित हुए। भीड़ बहुत थी लोग लाइन से आते अपनी बात राजा भर्तृहरि को बताते, राजा समस्या का समाधान देते और लोग आगे बढ़ जाते। कुछ लोग राजा भर्तृहरि को उपहार देते और सम्मान में झुकते और आगे बढ़ जाते।

 

नगरवधु यह सोचकर चमत्कारी फल लेकर राज दरबार में गई कि यदि उसका राजा यह फल खायेगा तो अधिक समय तक प्रजा की सेवा कर पायेगा। लाइन से महिला राजा भर्तृहरि के सामने आई और महिला ने राजा भर्तृहरि को प्रणाम कर उपहार में एक फल भेंट किया। राजा भर्तृहरि वह अद्भुत फल देखकर चौंक गए।

 

राजा भर्तृहरि वह फल देखकर हतप्रभ रह गए। वह फल उसे जाना पहचाना लगा। राजा ने इशारा किया तो सैनिकों ने उसे एक कमरे में चलने का आग्रह किया। राजा दरबार के महामंत्री ने दरबार समाप्त करने की घोषणा कर दी। भर्तृहरि राजमहल के कमरे में आये और महिला से पूछा कि यह फल उसे कहा से प्राप्त हुआ तथा वह कौन है? 

महिला ने नीची नजरें करके बताया कि राजमहल के कोतवाल उससे मिलने आते है और वह नगरवधू है। यह फल उसे कोतवाल ने दिया था। मैंने सोचा कि मेरे महाराज दयालु, जनप्रिय तथा प्रतापी है। इस फल की सबसे ज्यादा जरूरत हमारे राजा को है। राजा हमेशा जवान रहेंगे तो लंबे समय तक प्रजा को सभी सुख-सुविधाएं देते रहेंगे। इसी कारण में इस फल को आपको भेंट करने लाई थीं। राजा भर्तृहरि ने उस महिला को जाने दिया।

 

राजा भर्तृहरि ने तुरंत कोतवाल को बुलवा लिया। कोतवाल को वह फल दिखाया तो उसकी घिंघि बंध गई। उसे अपनी आसान मृत्यु दिखाई देने लगी, क्योंकि पूरी दुनिया में वह एक ही फल था। सख्ती से पूछने पर कोतवाल ने निराशा के भाव व टूटती आवाज में बताया कि यह फल उसे रानी पिंगला ने दिया था। कोतवाल ने कहा — राजा मैं रानी से नहीं मिलना चाहता था। मैं उन्हें प्यार नहीं करता, लेकिन जब वह बुलाती तो अपनी जान की रक्षा के कारण मजबुरी में मुझे जाना पड़ता था। मैं तो उस नगरवधु से प्यार करता हूँ। कोतवाल की बातों मैं सच्चाई देखकर राजा भर्तृहरि ने उसे जाने दिया।

 

फल लेकर राजा पिंगला के कमरे में आये। पिंगला को फल दिखाए बिना उन्होंने उससे पूछा — मैंने तुम्हें साधु द्वारा दिया गया फल खाने को दिया था, तुमने उसका क्या किया? 

पिंगला ने बहुत आत्मविश्वास से कहा — वह फल तो मैंने उसी दिन खा लिया था। 

तब महाराज ने अपनी जेब से वह फल निकालकर उसको दिखाया तो वह उसे तुरंत पहचान गई, लेकिन जब महाराज ने सख्ती से पूछा तो वह टूट गई और रोने लगी। महाराज तेजी से गुस्से में उसके कमरे से निकल गए।

इसके बाद राजा भर्तृहरि को पूरी सच्चाई मालूम हुई तो वह समझ गये कि पिंगला उसे धोखा दे रही है। महाराज की आँखों के सामने वह सतरंगी चूड़ियों वाला हाथ घूम गया। मानस पटल पर पिंगला की राजनीति उभर रही थी कि कैसे उसने उसके परिवार से उसे अलग कर दिया। कैसे विक्रम की बात पर भरोसा न करके उसे राजमहल से जाने का हुकुम दिया। वह यह स्वप्न में भी नहीं सोच पा रहे थे।

 

क्रोध, ग्लानि व पश्चाताप की आग में राजा भर्तृहरि जल रहे थे। नीतिशतकम् के एक श्लोक में राजा भर्तृहरि ने लिखा - ‘जिस स्त्री का मैं अहो-रात्र चिन्तन करता हूँ, वह मुझसे विमुख है। वह भी दूसरे पुरुष को चाहती है। उसका अभीष्ट वह पुरुष भी किसी अन्य स्त्री पर आसक्त है तथा मेरे लिये कोई अन्य स्त्री अनुरक्त है। अतः उस स्त्री को, उस पुरुष को, कामदेव को, मेरे में अनुरक्त इसका मुझे धिक्कार है।

 

इसलिए राजा को नींद नहीं आ रही थीं। इसी दिन राजा भर्तृहरि ने नीतिशतकम् पूरा कर लिया था। राजा इतने विचलित थे जितने इस रात से पहले वह कभी नहीं रहे। राजमहल, राजपाट, रानी, पटरानी, परिवार से तीव्र वेदना के साथ विरक्ति बढ़ती जा रही थीं। उसने कई बार जीवन में ऐसे भावों का सामना किया था, लेकिन वह विरक्त नहीं हो पाता था। पिंगला का धोखा इतने गहरे लगा था कि इस घाव ने उसकी अंतरात्मा को हिलाकर रख दिया था।

 

राजा भर्तृहरि ने बिना देर किये विक्रम को वापस बुला लिया। विक्रम तीन दिन चलकर रात में उज्जैन पहुंचा। भर्तृहरि ने रात में ही राजपुरोहित को बुलाया, दरबारियों को बुलाया तथा उसका मन पलटे उससे पहले अपने प्रिय भाई को राजपाट सौंपकर अपने हाथों से राज्याभिषेक किया। राजपुरोहितों ने स्वास्तिक मंत्रोच्चार कर उसके सिर पर राजमुकुट पहनाया तथा गद्दी पर बैठाया।

उसने अपने जीवन का सबसे कठिन अंतिम फैसला दरबार में सुना दिया था। खुद जोगी के वस्त्र पहन कर राजमहल से उस दीपक की दिशा में क्षिप्रा के उसपर टीले की और चल दिया। पूर्व दिशा में उषा की लालिमा छा रही थी तथा आशुतोष पश्चिम में अस्त हो रहे थे और पूर्व में सूर्य देव उदित हो रहे थे। उसके मन में महाराज की छवि धूमिल हो रही थीं। नगरवासियों  ने आश्चर्य से देखा की उनका महाराज जोगी का वेष धर कर क्षिप्रा के तट पर पहुंच गया था। क्षिप्रा की धारा शांत भाव से निरंतर बह रही थी। उसने देखा की उस ओर  वही योगी खड़ा उसे इशारों से पुकार रहा हैं। नदी के इस पार एक जीवन छूट रहा है। एक बार नदी के पार जाने पर नया जीवन उसका इंतजार कर रहा है। फिर वापिस लौटना नहीं होगा। भर्तहरि का मन यह दृश्य देख कर निर्मल हो उठा। पुराना कलुषित मन पीछे छूट गया। वह अब विरक्त भाव से नीचे सिर किए निर्भार गति से चला जा रहा था ।

योगी ने रवि को बताया कि स्मिता अकेली ऐसी महिला नहीं है  जिसका स्वभाव ऐसा हो। जब दो वयस्क अलग-अलग परिवारों में पालते बढ़ाते है तब उनकी आदतें, स्वाभाव, रूचि, अरुचि, सोच तथा विचार अलग-अलग होते है। जब ऐसे लोग आपस में रिलेशनशिप में आते है तो शुरू में घर के बहार बहुत काम समय के लिए मिलते है। दोनों तब अपना बेस्ट दिखने की कोशिश करते है। उस समय एक दूसरे के असली चेहरे को पहचानना मुमकिन नहीं होता। मगर जब दोनों आकर्षण वश साथ में रहना शुरू करते है तब असली चेहरा सामने आता है। जब दोनों एक दूसरे की आदतों से सामंजस्य नहीं बिठा पाते है तब यही छोटी-छोटी बातें अलगाव का कारण बन जाती है।  


                                                                          




  7

स्टार्टअप

 रवि ने गंभीरता के साथ बताना शुरू किया कि जब मैं अमेरिका से लौटकर वापस भारत आया था, तब अमन के स्टार्टअप को कहीं से फंडिंग भी नहीं मिली थी और वह बूटस्ट्रैप ही कर रहा था।

अमन ने एक सोशल वेंचर स्टार्टअप ही शुरू किया था और वह जानता था कि यदि रवि अपनी कंसल्टेंट की जॉब छोड़कर उसके स्टार्टअप को ज्वाइन करता है तो उसका अनुभव बहुत काम आयेगा। रवि ग्रामीण विकास में गांव, गरीबी तथा रोजगार पर ही काम कर रहा था। स्मिता, अमन व रवि जब मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट में साथ थे तो वे इसी सेक्टर के प्रोजेक्ट किया करते थे। तीनों की रुचियाँ लगभग एक जैसी ही थी। रवि और अमन हॉस्टल में साथ ही रहते थे। तभी दोनों ने निश्चय किया था कि दोनों प्लेसमेंट से नौकरी लेकर कुछ साल एजुकेशन लोन चुकाने के लिए काम करेंगे, फिर अपना स्टार्टअप शुरू करेंगे।

इसीलिए  रवि ने अमेरिका की  कम्पनी में कंसल्टेंट के तौर पर ज्वाइन किया था तथा अमन ने भारत की एक वेंचर फर्म में इन्वेस्टमेंट मैनेजर के पद पर ज्वाइन किया था। जो इम्पैक्ट फण्डिंग का काम बैंगलोर से करती थी। अब अपने प्रॉमिस को पूरा करने का समय आ गया था। रवि अमन के तर्कों से सहमत था। उसने साथ काम करने का निर्णय कर लिया। वह रिजाइन करके बैंगलोर आ गया।




दोनों ने सोशल वेंचर स्टार्टअप करने का ही निश्चय किया था, लेकिन उन्हें बहुत स्पष्ट आइडिया नहीं था। गांव, गरीबी बेरोजगारी की समस्या तो पता थी, लेकिन यह पता था कि शुरू कहाँ से कैसे करना है

कालेज में प्रोजेक्ट करते करते दोनों को यह पता था की गॉव की समस्याओं पर यदि काम करना है तो खेती में अपार समस्याएं है। दोनों ने एग्रीकल्चर सेक्टर पर बहुत रिसर्च कर खूब डेटा इकट्ठा करना शुरू किया।

रवि अमन के साथ ही रह रहा था ताकि दोनों स्टार्टअप की रणनीति पर डिस्कशन कर बना सके। इंडिया के एग्रीकल्चर सेक्टर के डेटा से उन्हें पता चला की मध्यप्रदेश देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक तेजी से विकास कर रहा है। यहाँ की कृषि विकास दर विगत वर्षों में बीस प्रतिशत ईयर ऑन ईयर है।

इस राज्य को भारत सरकार द्वारा कृषि कर्मण अवार्ड भी निरंतर दिया जा रहा है तो दोनों ने मध्यप्रदेश से अपना काम शुरू करने का निश्चय किया और वे बैंगलोर छोड़कर इंदौर गए। इंदौर देश का सबसे स्वच्छ शहर है तथा यह मध्यप्रदेश का व्यापारिक शहर भी है। एग्रीकल्चर सेक्टर की सभी कंपनियों के कार्यालय इंदौर में ही स्थित है।

हालांकि दोनों के लिए इंदौर शहर नया नहीं था। दोनों ने आईआईएम इंदौर से ही अपना एमबीए पूरा किया था, तब दोनों हॉस्टल के एक ही कमरे में रहते थे। उन दिनों कैम्पस नया बन रहा था तो कॉलेज ने सिल्वर स्प्रिंग्स फेज वन में फ्लैट किराये पर लेकर स्टुडेंट्स को वहां रखा था। कॉलेज लाने ले जाने के लिए बस भेजता था। इसलिए इंदौर के कुछ लोगों से उनका परिचय भी था।

हालांकि ग्रामीण क्षेत्र की हर समस्या दोनों को स्टार्टअप शुरू करने के लिए उपयुक्त लगी, लेकिन जब दोनों बजट, प्रोजेक्शन, प्रॉफिट लॉस के गणना कर बैलेंस शीट बनाते प्रोजेक्ट घाटे में चला जाता। ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या दूर-दूर निवास करती तथा एक जगह से दूसरी जगह की दूरी बहुत ज्यादा है। इसी कारण ज्यादातर स्टार्टअप्स शहरी समस्याओं पर काम करते हैं, क्योंकि वहां जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

दूसरा कारण टेक्नोलॉजी का एडॉप्शन शहरी क्षेत्रों में ज्यादा है तथा लॉजिस्टिक के लिए सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध है। इस कारण दोनों ने निश्चय किया कि वे दोनों ग्रामीण क्षेत्र में ही काम शुरू करेंगे, चाहे काम छोटा ही क्यों हो। 

एक दिन अमन बंगाली चौराहे के सोमवार को लगने वाले साप्ताहिक बाजार में सब्जियाँ खरीदने गया। वहां उसने देखा कि बहुत छोटे दुकानदार जमीन पर बैठकर या हाथ ठेले पर सामान बेच रहे हैं, लेकिन बाजार में सबसे ज्यादा सब्जी की दुकानें थी।

अमन ने नोटिस किया कि ज्यादातर दुकानें महिलाओं ने सम्हाली हुई है और  अमन की उत्सुकता इन दुकानदारों में बढ़ती गई। एक दुकान पर कम भीड़ देखकर उसके पास गया। अमन ने इस बाजार से कद्दू, पालक, लौकी टमाटर ख़रीदे। उसे आलू भी चाहिए थे, लेकिन उस दुकानदार महिला के पास आलू नहीं थे। पूछने पर उसने बताया की वह पास के गांव तिल्लौर से आई है।

ये सब्जियां उसने उसके खेत में ही उगाई हैं, लेकिन अभी आलू का सीजन नहीं है जिस कारण वह आलू नहीं बेच रहीं है। उसने बताया की अभी जो आलू दुकानों पर है, वह कोल्ड स्टोरेज से लाये गये हैं। बड़े किसान व्यापारी आलू खुदने पर कोल्ड स्टोरेज में रख देते है। जब सीज़न खतम होता तब ये लोग कोल्ड स्टोरेज से आलू निकाल कर मण्डी में आढ़त के माध्यम से बड़े दुकानदारों को बेचते तथा बड़े दुकानदार छोटे दुकानदारों को देते, वहां से हाथ ठेले वाले हाट में बेचने के लिए लाते है।

अमन को यह सप्लाई चैन बहुत मजेदार लगी। जब वह वापस आया तो उसने यह अनुभव रवि को बताया। अमन को तो मानो भगवान का वरदान ही मिल गया। रवि को भी लगा कि बस यही हमारा बिजनेस आइडिया है। आगे हम इस सप्लाई चैन को समझने पर काम करेंगे कि कैसे किसान के खेत से सब्जियां किन हाथों से गुजरकर हमारी थाली तक पहुँचती है

कौन किरदार क्या रोल अदा करता है

उसकी लागत क्या है

कितनी सब्जियां खेत से चलकर रास्ते में दम तोड़ देती है?

दोनों सुबह चार बजे उठकर इंदौर शहर की सबसे बड़ी चौइथराम सब्जी मण्डी में नियमित रूप से जाने लगे। कुछ दिनों के बाद दोनों को समझ में आया की हिंदी में यह मुहावरा क्यों है, "क्या सब्जी मण्डी लगा राखी है।" जब कोई किसी की बात सुनने को तैयार हो और सब अपनी बात बोलते रहे और किसी को कुछ समझ आये तो यह मुहावरा ही उपयोग में आता है।

यह सप्लाई चैन एक रिलेरेस जैसी है जिसमें हर खिलाड़ी बिना ज्यादा सोचे समझे अपने हिस्से की दूरी तय करके, अपने हाथ का बेटन अगले खिलाड़ी को पकड़ा देता है। किसान का काम है सब्जियां ऊगाकर मण्डी तक लाना, आढ़तिया का काम है बोली लगाना, थोक व्यापारी का काम है बोली लगाकर माल खरीदना, छोटे दुकानदार का काम है माल थोक दुकान से लेकर ठेले बालों, फेरी लगाने वालों, साप्ताहिक हाट के छोटे दुकानदारों को बेचना, ठेले वालों, फेरी लगाने वालों, साप्ताहिक हाट के छोटे दुकानदारों का काम है ग्राहक को बेचना।

ग्राहक इनसे सब्जियां लेकर घर लाते है। सामान्यतः इस सप्लाई चैन में पांच से छह लोग होते है। कोई ग्रेडिंग के मानक नहीं है, कोई स्थाई परिवहन का साधन नहीं, कोई निर्धारित पैकिंग मटेरियल नहीं, कोई स्टैण्डर्ड बाजार का मूल्य नहीं। सप्लाई चैन का खर्च हर एक किरदार का प्रॉफिट घटाकर किसान को मूल्य मिलता है, ऊपर से मांग एवं सप्लाई तथा मौसम की मार अलग।

हालांकि मंडियों का संचालन सरकार द्वारा किया जाता है, जिसके लिए मंडियों के कानून तथा नियम निर्धारित है, लेकिन धरातल पर मंडियों का संचालन परम्परा के अनुरूप अपने हिसाब से ही हो रहा है। यह सिस्टम पिछले सत्तर सालों से ऐसे ही चल रहा है। किसी ने कभी इसको सुधारने की तरफ ध्यान नहीं दिया। रवि ने निश्चय किया कि वह अपने स्टार्टअप के माध्यम से किसानों की इस समस्या का समाधान निकलेगा। दोनों ने आसपास के गॉवों का भ्रमण करना प्रारम्भ किया। किसानों से बातकर उनकी समस्याओं को समझा।

किसानों ने कहा कि यदि उन्हें गांव में मण्डी से अच्छे भाव मिलेंगे तो वो अपनी सब्जियां उन्हें बेच सकते है। फिर उन्होंने सब्जियों के उपभोक्ताओं को समझना शुरू किया। इन्हें चार श्रेणियों में बांटा। 

पहली श्रेणी है, व्यक्तिगत उपभोक्ता जो अपने घरों के लिए सब्जियां खरीदते है। इनकी खरीदी की मात्रा काम होती है, लेकिन इनकी संख्या बहुत अधिक है। ये लोग अच्छी क्वालिटी बहुत काम दाम में चाहते है। यह नकद खरीदी करते है।

दूसरे नम्बर पर आते है तो होटल, रेस्टोरेन्ट, हॉस्टल, हॉस्पिटल आदि जिसे संक्षेप मेंहोरेकाकहते है। इन्हें क्वालिटी की जगह सस्ती कीमत में सामान लगता है। ये बड़ी मात्रा में सब्जियां प्रतिदिन खरीदते है, लेकिन इनकी संख्या पहली श्रेणी से काम है। यह साप्ताहिक भुगतान करते है।

तीसरे स्थान पर है प्रसंस्करण करने वाले। ये बहुत बड़ी मात्रा में खरीद करते है, लेकिन इनकी संख्या दूसरी श्रेणी से भी कम होती है। इन्हें भी साल भर क्वालिटी की जगह सस्ती कीमत में सामान लगता है। यह मासिक भुगतान करते है, तथा 

चौथी श्रेणी में है कि निर्यातक मार्डन रिटेल सप्लाई चैन के स्टार्टअप्स तथा -कामर्स एवं ऑनलाइन क्विक सप्लाई स्टार्टअप्स। इन्हें अच्छी क्वालिटी का सामान बहुत सस्ती कीमत में चाहिए होता है। इनकी संख्या धीरे से बढ़ रही है, लेकिन यह तत्काल भुगतान करते है तथा कुछ पन्द्रह दिनों में भुगतान करते हैं।

अब समस्या थी कि किस श्रेणी के ग्राहकों के साथ काम शुरू किया जाये। इन्हें महसूस हुआ कि  घरेलू उपभोक्ता सबसे ज्यादा है, लेकिन सीधे किसानों से मॉल लेकर उन्हें सप्लाई करना बहुत महंगा है और इस सेगमेंट में स्पर्द्धा सबसे अधिक है। किसान बिना ग्रेड किये माल बेचते है। किसानों से खरीद कर गोदाम में मॉल लाना फिर ग्रेड करना फिर ग्राहकों को देना बहुत खर्चीला होता है।

मार्जिन सबसे कम है, इस कारण अभी इस सेगमेंट में काम नहीं किया जा सकता है। इसलिए रवि अमन ने दूसरी तथा चौथी श्रेणी के ग्राहकों से काम शुरू करने का निर्णय लिया। यहाँ उन्हें लगा कि शुरू में यदि वह मण्डी के किसी ऐसे व्यापारी के साथ काम शुरू करे, जिनके पास ग्रेडर हो तो कम खर्च में काम शुरू कर सकते है। दोनों को मुकेश नाम के व्यापारी मिले जो उनके साथ काम करने को सहमत हो गए।

इस तरह इन लोगों का काम शुरू हो गया। शुरू में दोनों ही थे तो खुद ग्राहक से बात करके डील करते। मुकेश से सामान लेते, खुद बिल बनाते सामग्री ट्रंसपोर्ट से डिस्पेच करते थे। शुरूआती दिनों में दो या तीन आर्डर आते थे तो वह पूर्ति कर देते थे। कभी कभार दोनों गांव जाते तथा मण्डी में किसानों से बात करते हुए उन्हें समझ आया कि किसानों के पास अलग क्वालिटी का बहुत कम मात्रा में सब्जियां होती है। फिर किसानों की कीमतें उनकी शर्ते भी अलग होने से किसानों से सीधे खरीद कर बेचना कितना पेचीदा है

काम बढ़ाने के लिए आवश्यक था कि दोनों सीधे मण्डी में खरीद करे, उनके पास उनका गोदाम, ग्रेडर तथा पैंकिंग यूनिट हो तो दोनों आसानी से काम बड़ा सकते है।

दोनों ने अपनी बचत का पैसा लगाकर यह इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया और काफी खर्च कर लिया। जब उन्होंने ग्राहक बढ़ाने की कोशिश की तब धीरे उन्हें अहसास हुआ कि ग्राहकों की प्रतिक्रिया उतनी उत्साहजनक नहीं थी जितना उन्होंने सोचा था। इस बीच उन्होंने दो कर्मचारी भी नियुक्त कर लिए थे, लेकिन ग्राहक अग्रिम भुगतान देने को तैयार नहीं होते थे और उधार सामग्री सप्लाई करने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे। 

पुरानी उधारी भी फंस गई थी तो कई दिन वे लोग दिन भर बिना काम के ही बैठे रहते। समय पर मजदूर लगते उनके भुगतान की भी समस्या हो जाती थी। मजदूरों को तो तत्काल भुगतान देना होता, क्योंकि वे तो रोज कुआँ खोदकर पानी पीने वालों में से होते है। कम्पनी के बैंक खाते से पैसे ऐसे निकल रहे थे जैसे फूटे घड़े से पानी।

दोनों दूसरों की समस्याएं सुलझाने निकले थे और अब खुद समस्याग्रस्त हो गए थे। दोनों प्रतिदिन प्रोजेक्शन, प्रेजेंटेशन पिच डेक बनाकर इन्वेस्टर्स को ईमेल भेजते जो पूर्व परचित थे और फोन करते लेकिन बात नहीं बन रहीं थी। खर्चे रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और बिजनेस बढ़ नहीं रहा था। दोनों ने अपने खर्चे कम कर लिए थे। पुरानी बचत से अभी तक काम चल रहा था। दोनों तनाव में रहते और चिढ़ हो गए थे। आपस में मामूली बातों पर झगड़ा हो जाता था। कभी दोनों एक जगह घंटों बिना बात किया बैठे रहते थे।

 

कुछ समय के बाद मजदूरों ने काम पर आना बंद कर दिया था, जो कुछ ऑर्डर्स आते उन्हें सप्लाई देना मुश्किल हो रहा था। बिजली का बिल दे पाने के कारण बिजली काट दी गई थी।  दोनों को रात में नींद नहीं आती थी। मन में हमेशा निराशा घिरी रहती। 

कई दफा दोनों बात करते की क्या झंझट मोल ले ली? अपने हाल किसे से कह भी तो नहीं सकते थे। आँखों की नीचे काले घेरे बनना शुरू हो गए थे। जहां से पैसा मिलने की उम्मीद थी, वह दिन प्रतिदिन समाप्त होती जाती थी। तनाव उनके चेहरों पर साफ दिखता था। दोनों के परिवार इन बातों से बेखबर थे तो वहां से शादी कर लेने का दवाब था। दोनों ने यह धंधा बेचने की कोशिश की लेकिन वह भी संभव नहीं दिख रहा था।

रवि का राजा भर्तृहरि के बारे जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी और उसने उत्सुकता से कुछ कहना चाहाI बीच में ही योगी ने बताया — “राजा भर्तृहरि राज गद्दी छोड़कर योगी बनने की राह पर निकला था। आचार्य के दरवाजे पर पहुँच गया, लेकिन अभी पूरी तरह सबेरा नहीं हुआ था। पूरव में लालिमा धुँधली हो रही थीं। ऐसा लग रहा था कि मानो क्षिप्रा की धारा से एक बड़ा लाला वर्ण गोला ऊपर उठ रहा हो। कुछ ऐसा ही भाव भर्तृहरि के अन्दर भी उठ रहा था। भर्तृहरि ने आखिरी बार उज्जैन की तरफ देखा। राजा मन में अपने के निश्चय को पुनः दृढ़ किया और आश्रम की सबसे निचली सीढ़ी पर बैठ गया। हालांकि नीचे बैठने का उसका अभ्यास नहीं रहा था। वह सिंहासन पर ही बैठने का आदि था।

मन को विचार मथ रहे थे। सारे दृश्य आँखों में तैर रहे थे। माथा दर्द से फट रहा था। एक अज्ञात भय हृदय में समा रहा था। उसे अपने निश्चय पर कई तरह की शंका हो रही थीं। राजमहल में इतने दिनों रहने का अभ्यास था। सुख सुविधाओं का शरीर आदी था। हालांकि वैराग्य भाव मन में गया था। संसार की मोह माया मन से हट गई थी, लेकिन वैराग्य भाव दृढ़ नहीं हुआ था। अभी भी भर्तृहरि राजमहल में रात वासनाओं की अग्नि में जलता दिख रहा था। इस आग में सभी नाते रिश्ते जल रहे थे। उसने हालांकि तीन शादियां की थीं, जिन में दो पिता की इच्छा से तथा एक अपनी पसंद से। उसे हमेशा दूसरे से सुख पाने की कामना रही थीं, जो कल रात जल गई थी। अब उसके मन में दूसरे से सुख पाने की कोई कामना नहीं बची थीं।

बाल्यकाल में पढ़ाई के दौरान उसने पतंजलि का योग सूत्र पढ़ा था, जिसका पहला श्लोक 'अथ योगानुशासनम्' का अर्थ समझाते हुए आचार्य ने कहा था कि जब तक जीवन में सांसारिक भोगों को पाने की लालसा रहती है तब तक जीवन में योग का अनुशासन प्रारंभ नहीं होता है। 

तब उसको यह आचार्य का कथन समझ में नहीं आया था, लेकिन आज उसे प्रत्यक्ष अपने जीवन में घटते देख रहा हैं। यह सोचते हुए ना जाने कब नींद गई पता ही चला। तभी आश्रम का दरवाजा खुला। किवाड़ों की आवाज से उसकी नींद टूट गई।

आँखें खुली तो योगी को सामने खड़ा पाया। योगी को सामने देखकर भर्तृहरि ने उनकी चरण वंदना की। यह योगी के चरणों में राजा का पूर्ण समर्पण था। भर्तृहरि इस वक्त से राजा से योगी बनने की राह पर निकल पड़ा था। योगी ने दोनों हाथों से उसे उठाकर गले से लगा लिया। भर्तृहरि को योगी आश्रम के अंदर ले गया। केवल वह शरीर से अंदर गया वह मन से भी अंदर चला गया।

योगी ने भर्तहरि को नहाने का आदेश दिया एवं नये वस्त्र पहनने के लिए दिए। नहाकर भर्तृहरि ने नये वस्त्र धारण किये और आश्रम के बगीचे से फूल लेकर योगी के सामने दण्डवत प्रणाम किया और योगी के चरणों में पुष्प अर्पण किये। उसके अंदर स्वमं को अर्पण करने का भाव आया। इसके बाद उसने हाथ जोड़कर नजरें नीची कर निवेदन किया, “हे! योगी मैं अपना राजपाट घरद्वार त्याकर आपकी शरण में सन्यासी बनने आया हूँ। कृपा करके मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करें।

 

योगी ने भर्तृहरि की आँखों में सीधे दृष्टि को स्थिर कर देखा, लेकिन भर्तृहरि उन आँखों का तेज सह पाया, उसने अपनी आँखें नीचे कर ली। योगी जान गया कि भर्तृहरि को अभी असल वैराग्य घटित नहीं हुआ हैं। यह मात्र घटना की तत्कालिक प्रतिक्रिया ही है। यह तो पत्नी परिवार से मिले धोखे का मन का राग के विपरीत हो जाना, विराग मात्र ही है। यह वैराग्य नहीं हैं, लेकिन योगी ने जान लिया की भर्तृहरि सच्चे भाव से आया है तो उसने भर्तृहरि की सहायता करने का निश्चय किया।

भर्तृहरि में उसे मुमुक्षु बनने की परछाई दिख रहीं थीं। वह कौतुहल वश नहीं आया था, उसका निश्चय दृढ़ था। योगी ने धीर गम्भीर आवाज में भर्तृहरि को कहा, “यद्यपि तुम परिवार, राजपाट, पत्नी बच्चों को त्याग कर ही मेरे पास आये हो लेकिन अभी तुम पूर्णरूप से नहीं हो। तुम्हें एक वर्ष तक ब्रम्ह्चार्य व्रत का पालन करना होगा। यदि तुम मेरे निर्देश बिना शर्त मान कर, धैर्यपूर्वक रहने में सफल हुए तो फिर तुम्हें शिष्य बनाने का निर्णय लूँगा। यदि तुमने मेरे आदेशों पर सवाल पूछे या शंका की तो तुम्हें पुनः फिर गृहस्थ जीवन में लौट जाना होगा।

योगी की ऐसी बातें सुनकर भर्तृहरि तो आकाश से जमीन पर गिरा। भर्तृहरि को लगा कि वह राजपाट छोड़ कर आया है तो योगी उसे ख़ुशी से शिष्य बना लेंगे, लेकिन उसे लगाकर वह किनारा तो अब रहा नहीं और यह किनारा अभी मिला नहीं। उस का मन डोल उठा।

योगी भर्तृहरि की मानः स्थिति भांप कर बोले, "तुम चाहो तो आश्रम के पास बनी गुफा में अपना बसेरा बना सकते हो।"

भर्तृहरि ने योगी को प्रणाम किया और गुफा की ओर चल दिया। उसने दृढ़ निश्चय किया कि वह बिना शर्त योगी की आज्ञा का पालन करगा। चाहे अब वह बचे या मरे कोई फ़र्ख़ नहीं पड़ने वाला। अब उसके सामने योगी को पूर्ण समर्पण करने के अलावा अन्य कोई रास्ता भी तो नहीं बचा था। वह गुफा में घुसा तो देखा गुफा बहुत छोटी, अंधेरी गंदगी से भरी है। लगता है कि कई दिनों से खाली पड़ी होने से कीड़ेमकोड़ों, छिपकलियों, मकड़ियों तथा चमगादड़ों ने अपना घर बना लिया था। भर्तृहरि के अब यही साथी थे।

आश्रम से योगी ने एक दरी, कंबल, कमंडल का इन्तजाम कर दिया था। भर्तृहरि ने पास से झाड़ियां तोड़कर गुफा इस तरह साफ की कि कोई जीव मर जाए। भर्तृहरि गुफा में तीन दिन योगी के आदेश की प्रतिक्षा करता पड़ा रहा। उसने देखा कि गुफा की छत पर एक मकड़ी का जोड़ा जाला बना रहा था। मकड़ी का जोड़ा आपस में गुथे हुए थे और मकड़ी अपने साथी को धीरे धीरे खा रही है और उसके साथी को इस बात का शायद अहसास भी नहीं हैं, क्योंकि वह छूट कर भागने की कोई कोशिश करता नहीं लग रहा था।

भर्तृहरि ने देखा कि दिन भर में मकड़ी ने उसके साथी को खा लिया था। अब मकड़ी उस जाले में अण्डे दे रहीं थीं। मकड़ी के नये बच्चे आसपास घूम रहे थे। भर्तृहरि को महल में अपनी स्थिति का आभास हुआ।

तीन दिन बीतने पर योगी का बुलावा आया। योगी ने आदेश दिया, “आज से तुम रोज सुबह जा कर महल के सामने झाड़ू लगाओ और रानी से भिक्षा मांग कर लाओ।

योगी ने पहनने के लिए सफेद वस्त्र दिया। एक खप्पर खाना रखने के लिए, तुम्बा पानी रखने के लिए तथा एक लाठी दी। भर्तृहरि को तीन दिन बाद नहाने, कपड़े बदलने को मिला। उसे अब भूख का अहसास भी हो रहा था। यह उसके जीवन में पहली बार था, अब तक नहाना, वस्त्र  बदलना खाना बिना चूके अपने आप होता रहा था। भर्तृहरि को अपने मन की कोई जानकारी ही नहीं थीं कि अब वह क्या लीला दिखने वाला है, जो व्यक्ति इस नगर का राजा रहा हो वह उसी नगर के उसी राजमहल के सामने झाड़ूू लगाकर के उसकी ही रानी से भिक्षा मांगेगा?

भर्तृहरि योगी से वचन से बंधित था। वह कारण नहीं पूछ सकता था। वह कल्पना कर रहा था कि वह उसी की राजधानी में झाड़ू लगाकर भिक्षा मांगने के लिए आवाज लगाये, तो उसे कितनी मार्मिक पीड़ा होगी, लेकिन वह अब कुछ नहीं कर सकता था।

जब उसने पहली बार झाड़ू उठाया तब मन ने सवाल उठाया, “भर्तृहरि! तुम राज्य भोगने के लिए जन्में हो झाड़ूू लगाने भिक्षा मांगने के लिए नहीं। लोग क्या कहेंगे? तुम्हारे परिवार की मर्यादा का क्या होगा? कितनी लज्जा शर्म की बात है?”

भर्तृहरि का मन मलिन होकर गला सूख गया। शर्म अपमान की पीड़ा से शरीर कांप उठा। पसीने से शरीर भींग गया। तनाव मन में इतना बड़ा की उसे चक्कर गया। आँखो के सामने अंधेरा छा गया, वह बेहोश होकर भूमि पर गिर गया। उसकी चेतना कुछ देर बाद लौटी तो उसे योगी को दिया अपना वचन याद आया। उसे ख्याल आया की वापस जाना अब सम्भव नहीं है। यदि वह दुबारा परिवार में लौटा तो राजमहल में उसके लिए कोई जगह नहीं हैं। उसमें भी जग हंसाई ही होगी। दोनों तरफ अपमान जान कर भर्तृहरि ने निश्चय किया कि वह योगी की बात मानेगा।

ऐसा निश्चय मन में ठानकर मन की दुविधा मिट गई। शरीर में चेतना लौट आई। वह उठ खड़ा हुआ तथा कदम राजमहल की ओर उठ गए। राजमहल के द्वारपालों ने जब भर्तृहरि को आता देखा तो इसकी सूचना तत्काल विक्रमादित्य को दी। वह दौड़ कर बाहर आया। अपने बड़े भाई की ऐसी हालत देखकर उसका मन रो पड़ा। सभी रानियाँ बच्चे महल के झरोखों से झाँख रहे थे। जब विक्रम भाई को गले लगाने के लिए आगे बड़ा तब भर्तृहरि ने उसे हाथ के इशारे से दूर ही रोक दिया।

भर्तृहरि ने नीचे मुँह करके राजमहल के नीचे गली में झाड़ू लगाना शुरू किया ही था कि महल के चारों तरफ लोगों की भीड़ लग गई। राजमहल के अंदर से रोने की आवाजें आने लगी। भर्तृहरि ने लोगों पर ध्यान ना देकर अपना काम जारी रखा। फिर उसने जोर से अलख निरंजन की अलख जगाई और राजमहल के द्वार पर खड़े होकर भिक्षा मांगी। पटरानी ने रुंधे गले कांपते हाथों से भर्तृहरि के खप्पर में भिक्षा दी। भर्तृहरि ने फिर अलख निरंजन की अलख जगाई और मुँह नीचे किए बिना किसी से कुछ कहे आश्रम की ओर चल दिया।

नदी के किनारे तक भीड़ उसके पीछे चली। भीड़ के आगे विक्रम नंगे पाँव चल रहा था। क्षिप्रा नदी के किनारे उसने विक्रम को वापस जाने का इशारा किया और खुद नदी के उस पार आश्रम के अंदर जाकर भिक्षा का पात्र योगी के सामने रख दिया। पहले योगी ने भगवान को भोग़ लगाया फिर खुद खाया अपना जूठा बचा भाग भर्तृहरि को खाने का आदेश दिया।

भर्तृहरि ने तीन दिन बाद कुछ मुँह में रखा था। इस जैसा स्वाद उसे कभी भी राजमहल में नहीं आया था। इस क्रम से धीरे - धीरे रोज के भर्तृहरि का अहंकार गलता जा रहा था। हर रोज वह पहले से अपने आपको मन में हल्का होता महसूस करता था। तब उसे समझ आया कि उसके अहंकार को गलाने की योगी की यह साधना थीं। भर्तृहरि अपनी पहली परीक्षा में पास हो गया था। योगी उसकी प्रतिदिन की चाल देखकर जान जाता था।

कुछ अरसे के बाद भर्तृहरि अभ्यस्त हो रहा था। इसी बीच योगी ने भर्तृहरि को रानी पिंगला से भिक्षा माँग कर लाने का आदेश दिया। भर्तृहरि की लिए यह आदेश मर्मांतक था। यह क्षण ऐसा था कि वह सोच रहा था की पृथ्वी फट जाए और वह उस में समा जाए। कई दिनों के बाद उसने अपनी मृत्यु की कामना पूरी शृद्धा से की। 

भर्तृहरि ने महसूस किया कि उसके मन में पिंगला के प्रति अभी भी द्वेष बचा है। उसने सब को माफ़ कर दिया था, लेकिन वह पिंगला को अभी भी माफ़ नहीं कर पाया था। यहाँ तक की वह कोतवाल के घर से भी भिक्षा माँग कर लाया था। भर्तृहरि के मन में तब भी कोई द्वेष भाव नहीं था, लेकिन पिंगला की दी गई पीड़ा अचेतन मन में बहुत गहरे चली गई थी। वह धोखा भूल नहीं पाया था।

भर्तृहरि ने जाना की योगी उसके मन को पढ़ने की विद्या जानते है, लेकिन योगी के आदेश का पालन तो करना ही था सो वह उठकर चल दिया। जितना वह दृढ़ रहने की कोशिश करता मन उतना तेजी से भाग रहा था। वह रंगबिरंगी चूड़ियों का हाथ, वह विक्रम पर आरोप, वह फल का दुबारा उसके पास आना क्या महज संयोग मात्र था? या विधि का विधान या फिर योगी का इंद्रजाल? सवाल अनेक थे, लेकिन प्रश्न अनुत्तरित ही रह थे।

जब मन इतना दुर्बल हो रहा था, तब नगर में वह जहां से गुजरता उसे राजा के रूप में गुजरना याद आता। कोई परिचित दिख जाता तो विचारों की पूरी शृंखला चल पड़ती। कैसे मन कई तरह के खेल खेल रहा हैं, भर्तृहरि दृष्टा की भांति सब देखते चला जा रहा था। इसके बाद गुफा में तपस्या करते हुए वह अपने आप को अपने मन के विचारों में दृष्टा दृश्य के भेद को करने लगा था। 

राजा के रूप में मिले सम्मान का कई बार स्मरण हो रहा था। मानस पटल पर स्मृतियों के छाया चित्र उभर आते। फिर वह अपने वर्तमान को देखता, अपनी वेशभूषा देखता तो स्वप्न टूट जाता। आज साधु के वेश में लोग उसे अलग नजरों से देख कर सम्मान से झुक जाते है। वह भिक्षुक बनाने के संकल्प को अंतःकरण में दुहराता तो यह विचार स्थिर हो जाता।

कई बार यह आसान होता लेकिन अनेक बार कई दिन लग जाते। तब वह योगी के साथ चरणों में बैठ कर सत्संग करता। योगी उसके अशांत चित्र को पकड़ लेता, लेकिन वह देख पा रहा था कि पिंगला कभी चित से निकली नहीं थीं। इसका धोखे के रूप का इंद्रजाल जिसमें वह खुद फॅसा था। 

वास्तव में देखें तो उस अबला नारी का तो कोई इरादा नहीं था वही यत्न कर शादी का प्रस्ताव लेकर गया था। वही अपनी उम्र का ख्याल किये बिना उस मासूम को ब्याह कर लाया था। उसने सोचा था कि जो सुख उसे दो शादियों से नहीं मिला वह सुख वह तीसरी शादी कर पा लेगा, उसे समझ आया कि कैसे उनका मन मकड़जाल में खुद मकड़ी के साथ उलझ गया और जब मकड़ी ने अपने प्राकृतिक गुण के कारण मकड़े को खा लिया तथा नई संतति को जन्म दिया तो हम मकड़ी के योगदान को भूलकर उसे मकड़े के खाने का दोषी मकड़ी को देने लगे।

यह क्या पुरुष मानसिकता है कि आदिकाल से पतन का कारण नारी को मानते रहे है, जबकि पुरुष अपनी वासना को महिमामंडित ही करता रहा हैं। वहीं, पहल पुरुष ही करता है, “अहो! पिंगला ने मेरे जीवन मेंअथकी स्थिति निर्मित कर दी थी उस दिन या तो मैं आत्महत्या कर लेता या योगी बनने की राह पर जा सकता था।

राजा भर्तृहरि सोच रहे थे — “हालांकि चुनना मुझे ही था, लेकिन भला हो पिंगला का यह चुनाव में उसके कारण कर सका। उसके धोखे ने मेरी राह आसान कर दीं, भला हो योगी का उसने रास्ता दिखाकर सन्यास की दिशा दिखा दी। हालांकि चुनाव सरल नहीं था, लेकिन यह निर्णय कर सका।इस तरह काफी देर तक राजा भर्तृहरि स्वः कथन कर रहा था।

जब विचार उस की ओर मुड़ गए तब उसके मन से पिंगला के प्रति कलुष धुल गया। उसने जब अपना चेहरा क्षिप्रा के निर्मल जल में देखा तो जल के शांत तल पर अपना चेहरा ही अनजान लगा। उसका चेहरा कितना बदल गया था। वहां तो राजा वाला रोबदार चेहरा था वह गर्व। उसकी जगह निश्तेज़ चेहरा, धंसी आँखे, बड़ी दाढ़ी विखरे बालों ने ले ली थी। वह उठा और निर्विकार रूप से पिंगला के सामने जाकर खड़ा हो गया। उसने देखा की पिंगला भी कितनी बदल गई थीं। वह तो साधु बनकर अपनी नई जिंदगी शुरू कर चुका था, लेकिन पिंगला क्या करे उसकी समझ नहीं आया। वह नीची नजरों से पिंगला के हाथों भिक्षा पाकर अपनी दूसरी परीक्षा पास कर चुका था।

भर्तृहरि क्षिप्रा के घाट पर आकर बैठा था और सुबह की शीतल बयार चल रहीं थीं। भर्तृहरि को आश्रम आए एक वर्ष से अधिक हो गया था, लेकिन योगी ने अभी तक उसको शिष्य नहीं बनाया था। भर्तृहरि ध्यान मग्न आखें बंद किये बैठा था कि धीरे से योगी ने पीछे से आकर उसके कंधे पर रखा। भर्तृहरि इस छुअन को पहचानता था। क्षिप्रा के निर्मल जल में उसने योगी की छवि देखी। उसने आखें खोली, योगी को नतमस्तक हो कर प्रणाम किया और बोलाआदेश।

योगी उसका ही गीत गाने लगा - ‘मरो वै जोगी मरौ, मरण है मीठा। मरणी मरौ जिस मरणी, गोरख मरि दीठा॥भर्तृहरि योगी का मन्तव्य समझ गया। भर्तृहरि ने श्रृद्धा से योगी की चरण रज अपने माथे पर लगा ली। दोनों फिर आश्रम गए। शाम को भर्तृहरि फिर नदी के किनारे गया। नदी की बहती धार देखकर उसे संसार के चलने का अहसास दिलाता। दूर सूरज डूब रहा था।इधर, भर्तृहरि का मन उदासी से घिरता जा रहा था। मानो बाहर फैलाती कालिमा मन के अंदर भी फैल रही थीं। चारों तरफ मंदिरों में घन्टियां बजना शुरू हो गई थीं। संध्या वंदन का समय था। वह तेजी से उठा और आश्रम की ओर चल दिया। 

आश्रम में योगी धूनी के सामने बैठे थे। वह यकायक योगी के चरणों में गिर गया। योगी ने पकड़कर उठाया, फिर दोनों धूनी के पास बैठ गए। परिंदे घोसलों की और लौट रहे थे। बाहर पेड़ों पर कलरव बढ़ गया था। योगी का वेश, शांत चेहरा, बड़ी बड़ी चमकदार आखें, चेहरे पर सदा रहने वाली मंद मुस्कान तथा कानों में झूलते बड़े कुण्डल, धूनी से उठता धुआँ वातावरण को रहस्यमय बना रहे थे। धूनी की राख में योगी का चिमटा गड़ा था तथा योगी के साथ रहने वाला काला कुत्ता पास में चटाई पर लेटा था।

योगी ने पूछा, “बच्चा क्या बात है आज तुम सुबह से क्यों परेशान हो?’

भर्तृहरि ने सर झुकाकर निवेदन किया, “महाराज पुरानी स्मृतियाँ पीछा नहीं छोड़ती है। कभी जीवन लीला समाप्त करने का मन करता है।

योगी ने गुनगुनाना शुरू किया - “अवधू मन चंगा तो कठौती गंगा, बांध्या मेल्हा तौ जगत चेला। बदंत गोरख सत सरूप, तत विचारै तै रेख रूप॥

योगी के उठाने पर भर्तृहरि के मुँह से अनायास निकला - “आदेश” और वह दण्डवत हो गया।

भर्तृहरि अभ्यास करने आसान पर बैठ गया। उसकी चेतना श्वास पर स्थिर थी और चेतना दीपक की लौ की तरह बिना काँपे सीधी रीढ़ के निचे मूलाधार में महसूस हो रही थी। यह अवस्था कब तक रही भर्तृहरि को समय का भान न रहा। जब उसकी तंद्रा टूटी तो बाहर दूर कुकर व शियार का शोर हो रहा था। गुफा से बाहर आकर आकाश की और देखा तो उसे तारों की स्थिति देख कर पता कि चला की मध्य रात्रि हो रही है।

 

भर्तृहरि ने क्षिप्रा नदी को देखा तो उसे शांत नदी सोती हुई लगी। आकाश में चाँद नदी की शांत सतह पर चमक रहा था। मानो चाँद नदी में नहा रहा हो। भर्तृहरि का चित शांत था वह पुनः गुफा में सोने चला गया।

 

आश्रम में सेवा देते, नगर में भिक्षा मांगते तथा योग साधना करते एक वर्ष बीतने को आ गया था। केवल तीन दिन शेष थे। पूर्णमासी का दिन भर्तृहरि को अवलम्बी की दीक्षा देकर साथी बनाने के लिए योगी ने निश्चित किया। आश्रम में उत्सव का माहौल था, लेकिन भर्तृहरि उदास थे। इसके दूसरे दिन पूर्णमासी थी और राजा भर्तृहरि के गुरु बन जायेंगे। मन में भविष्य की कल्पनाओ का रेला चल रहा था तथा रात साधना में मन नहीं लग रहा था।

 

राजा भर्तृहरि नाथ संप्रदाय का अधिकृत सदस्य होने जा रहा था। गुरु परम्परा की कहानियां मन में घूमने लगी। कितने किस्से, कितनी बातें, अपार ज्ञान। सुबह भर्तृहरि को तैयार किया गया। मुंडन किया गया। क्षिप्रा के शीतल जल में तीन डुबकी लगाकर स्नान कराया गया। बिना सिला वस्त्र पहनाया गया। गले में काली ऊन का एक जनेऊ पहनाया, जिसे 'सिले' कहते हैं। इसमें तीन धागे होते हैं जो इड़ा, पिंगला व सुष्मना नाड़ियों के प्रतीक है। 

 अपनाने के बाद 7 से 12 साल की कठोर तपस्या के बाद ही सन्यासी को दीक्षा दी जाती थी। विशेष परिस्तिथियों में गुरु अनुसार कभी भी दीक्षा दी जा सकती है। दीक्षा देने से पहले एवं बाद में दीक्षा पाने वाले को उम्र भर कठोर नियमों का पालन करना होता था। वह कभी किसी राजा के दरबार में पद प्राप्त नहीं कर सकता, वह कभी किसी राज दरबार में या राज घराने में भोजन नहीं कर सकता, परन्तु राज दरबार व राजा से भिक्षा जरुर प्राप्त कर सकता है। उसे बिना सिले भगवा वस्त्र धारण करने होते है। हर साँस के साथ मन में आदेश शब्द का जाप करना होता है।

किसी अन्य नाथ का अभिवादन भी आदेश शब्द से ही करना होता। सन्यासी योग व जड़ी-बूटी से किसी का रोग ठीक कर सकता है, लेकिन एवज में वह रोगी या उसके परिवार से भिक्षा में सिर्फ अनाज या भगवा वस्त्र ही ले सकता है। वह रोग को ठीक करने के लिए किसी भी प्रकार के आभूषण, मुद्रा आदि ना ले सकता है और न इनका संचय कर सकता। भर्तृहरि को इसी समय की प्रतीक्षा थी। जब उम्र के अंतिम चरण में वह किसी एक स्थान पर रुककर अखण्ड धुनी रमाते हैं तथा कुछ नाथ साधक हिमालय की गुफाओं में चले जाते।

यह वह समय आ गया था। गुरु बता रहे थे — “अविद्या के कारण काम की उत्पत्ति होती है। यह क्लेश चित में सदा तनु, विच्छिन्न व उदार स्वरूप में विद्यमान रहता है। अनित्य, अपवित्र, दुख और आत्मा से भिन्न पदार्थ में यथा क्रम से नित्य, पवित्र, सुख, और आत्मभाव की अनुभूति अविद्या कहलाती है। जब साधक अनित्य में नित्य, अपवित्र में पवित्र, दुःख में सुख एवं अनात्मा में आत्मा भाव का अनुभव करता है तब ही अविद्या का नाश होता है। दृक शक्ति तथा दर्शन शक्ति को एक स्वरुप मन लेना ही अस्मिता क्लेश है। जब साधक क्षेत्र व क्षेत्रज्ञ के भेद को नहीं जानते है तब यह क्लेश उत्पन्न होता है। दूसरों से सुख भोगने की इच्छा ही राग क्लेश है तथा दुख को ना भोगने की इक्छा द्वेष क्लेश है। जीवन के प्रति ममत्व ही अभिनिवेश क्लेश है।”

 

गुरु के श्रीमुख से यह व्याख्या सुनकर भर्तृहरि यह समझ सके कि उन्हें 'संयम' में क्या अभ्यास करना है।

 

भर्तृहरि पांच क्लेश के विलय के लिए अभ्यास कर रहे थे, क्योंकि उन्हें पांच क्लेश को प्रकृति में विलय करना था। इसके बिना पिंगला की उन आँखों से मुक्ति पाने का कोई उपाय न था, जो उसके चित में समय- समय पर उभरती रहती थीं।

इसमें पाँच तन्त्र अहंकार, लिंग व अलिंग सम्मिलित है, जो चेतना मात्र ज्ञान स्वरुप आत्मा है। वह शुद्ध वृति के अनुरूप देखने वाला दृष्टा है। आत्मा का किसी काल में नाश नहीं होता है। इसलिए यह सनातन है तथा सनातन को मानने वाला सनातन धर्मी है। मूल के विद्यमान रहने तक उस कर्म का परिणाम जन्म, आयु, व भोग के रूप में प्राप्त होता रहता है। वह हर्ष व दुख रूपी कर्मफल देते है, लेकिन विवेकी के लिए सभी कर्मफल दुःख रूप ही हो जाते है।

इनके उदय होने पर भर्तृहरि ने गुरु से निदान जानना चाहा तो गुरू ने कहा था — “समय आने पर में खुद तुम्हें अवगत करा दूंगा।” 


इसके बाद नाथ साधु के रूप में परिव्राजक जीवन बिताना था। भर्तृहरि भगवा रंग के बिना सिले वस्त्र धारण करना था। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को 'सींगी सेली' कहते हैं। एक हाथ में चिमटा, दूसरे हाथ में कमण्डल, दोनों कानों में कुण्डल, कमर में कमरबन्ध होगा। जटाधारी रहना होगा। इसके बाद नाथपन्थी भजन गाते हुए घूमना हैं और भिक्षाटन कर जीवन यापन करना हैं।

मानव शरीर की अदृभुत संरचना तथा उनकी शक्तियों को जानकर भर्तृहरि अभिभूत हो उठे। जब गुरु कई बार पिंगला नाड़ी का उल्लेख करते तब भर्तृहरि के मानस पटल पर रानी पिंगला की सूरत उभर आती। जब आखिरी बार भर्तृहरि महल में गुरु के आदेश पर पिंगला से भिक्षा लेने गया था, तब उसने पिंगला की आशा भरी आंखों में जो कातरता देखी थी। वह नजरें उसे फिर दिखाई दे गई और उसका चित डोल गया लेकिन वैराग्य के अभ्यास के कारण वह अपनी कामनाओं पर काबू कर गया। 

यदा कदा गहन ध्यान की अवस्था में वह कातर आँखें उसका पीछा करती थी। जब भर्तृहरि को पिंगला के साथ बिताए गए अनंत अंतरंग पल याद हो आते तब यादों का सैलाब रोकना कठिन हो जाता। हालांकि वह इन यादों से मुक्त होने के लिए गुरु के सानिध्य में अथक प्रयास कर रहा था, लेकिन अभी समाधि दूर थी।

परिवर्तन जीवन का सत्य है। अनिश्चितता हर क्षण है। हम सोचते कुछ है और घट कुछ और ही जाता है। यदि तुम अपना ही जीवन देखो तो तुम्हें लगेगा कि जब भी जीवन में कुछ भी घटा है वह अचानक हो गया है। ज्यादा तर हम जो जीवन की प्लानिंग करते है वह अधिकांश समय पूरी नहीं होती। जो व्यक्ति बदलाव तथा अनिश्चितता में शांत चित्त से लगातार काम करते है वही सफल होते है। 

   योग के माध्यम से जागृत कर मूलाधार से सहस्त्रधार तक लेकर योगी जाते है।                                                   




  8


                                                 दर्शनी दीक्षा


भर्तृहरि की श्रद्धापूर्वक की जा रही कठोर साधना व एक निष्ठा को देखकर गुरु ने औघड़ दीक्षा देने का दिन निश्चय किया। ब्रम्ह्महूर्त में भर्तृहरि को क्षिप्रा में स्नान के लिए ले जाया गया। घाट पर पहले मुण्डन किया गया फिर स्नान। इसके बाद गुरु ने कोटी, भभूत व लगोट का संस्कार करवाया  तथा 'संयम' करने का आदेश दिया गया, जिसके तहत गुरु ने धारणा, ध्यान और समाधि का अभ्यास करने की विधियां बताई गई। इसी से ऋतम्भरा प्रज्ञा का जन्म होने पर साधक पुरानी स्मृतियों से मुक्त हो सकता है। ऋतम्भरा प्रज्ञा से उत्पन्न होने वाले संस्कारों से पूर्व के संस्कार कट जाते है, क्योंकि इसके पहले चित के पांच क्लेश अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष व अभिनिवेश चित में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, व मत्सर उत्पन्न करते रहते हैं।

कई दिनों बाद भर्तृहरि ने गुरु चरणों में दंडवत प्रणाम किया। अब न प्रश्न शेष थे, न क्लेश। दृश्य व दृष्टा अपने स्वरूप में थे। गुरु ने अब भर्तृहरि को दर्शनी दीक्षा देने का मन में निश्चय किया। दर्शनी दीक्षा में उनके कण में छेदकर पक्के कुण्डल धारण करवाए गए। भभूत लगाया गया। पंञ्च संस्कार पूर्ण किये गए।

 

भर्तृहरि ने अलख निरंजन का घोष किया, जिसे आश्रम में सभी ने दोहराया। यह उद्घोष 'दिग्-दिगन्त' में गुंजायमान हो उठा और इसके बाद वह सन्यासी से कनफटा योगी बन गए थे। साथ ही अब वह 'क्रम' में अवस्थित थे। वह अनुभव कर चुके थे कि आत्मा का अपने मूल स्वरुप में स्थित हो जाना ही मोक्ष है। इनके अंदर बाहर का भेद समाप्त हो गया था। यह सब करते हुए बारह वर्ष कब व्यतीत हो गए पता ही नहीं चला। जब उन्हें ज्ञान हो गया तब फिर आदेश से भर्तृहरि ने वैराग्य शतक की रचना प्रारम्भ की।

भर्तृहरि को अब पिंगला से उनका सम्बन्ध व धोखा स्पष्ट हो गया कि वे उनके ही पूर्व जन्म के कर्मो के परिणाम थे और कुछ नहीं। यह ज्ञान होते ही उनका चित निर्मल हो गया। सब यादें तिरोहित हो गई। अब ध्यान चित में गहराने लगा। भर्तृहरि को दृढ़ आसन सिद्ध हो जाने से उन्हें गर्मी, सर्दी, भूख, प्यास, लाभ, हानि, द्वन्द के आघात समाप्त हो गये थे। 

पिंगला का जन्म भर्तृहरि से मिलने के लिए ही हुआ था। वह जागीरदार की छोटी बेटी थी उसकी बड़ी बहन का नाम इड़ा था। इड़ा एवं पिंगला जुड़वाँ बहनें थी। उनकी माँ ने दोनों बहनों को बड़े लाड़ प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया था। जागीरदार ने अपनी पुत्रियों की शिक्षा दीक्षा संदीपनि ऋषि के आश्रम के आचार्यों की देखरेख में 64 कलाओं में दिलवाई थी। पिंगला गीत, वाद्य, नृत्य, नाट्य, चित्रकारी, श्रृंगार, इन्द्रजाल, कूटनीति, वशीकरण, चिकित्सा, उच्चाटन, विधि, सांकेतिक भाषा, रत्न शास्त्र एवं धूत कीड़ा कलाओं में विशेष रूचि होने से अतिशय पारंगत थी। वह बचपन से ही महत्वाकांक्षी एवं नई चुनौतियाँ स्वीकार करने वाली थी। जीतने की असीम इच्छा एव पिता की लाड़ली होने से राजकाज एवं न्याय में पारंगत हो गई थी।

पूर्व जन्मों के संचित संस्कारों कि अनुभूति भर्तृहरि को अभी भी आती जाती रहती है। कई दफा गहन अंधकार में गुफा के अंदर पिंगला की उपस्थिति महसूस करते। पिंगला की कातर आँखें स्पष्ट चमकती दिखती, तब वे पसीने से लथपथ हो जाते।

एक दिन अवसर पाकर उन्होंने गुरु चरणों में अलख जगायी और आदेश का जयकार किया। गुरु समझ गए और उपदेश दिया कि वत्स जैसे पूर्व जन्मों के संचित कर्मो से चित में पाँच क्लेश उत्पन्न होते है, उसी तरह इस जन्म के संस्कारों को छटा क्लेश मान। विवेक ज्ञान होने के बाद भी बीच में संचित संस्कारों के कारण स्थिति विवेक ज्ञान के साथ आती जाती रहती है। विवेक ज्ञान से उत्पन्न सिद्धियों से अनासक्त हो जाने पर सर्वथा विवेक ख्याति होने से मेघ समाधि की प्राप्ति होती है, जिससे क्लेश मूलक कर्म समुदाय की समाप्ति हो जाती है। इसे तुम उपेच्छा के भाव से ही देखो, क्योंकि गन अपने कारण में लीन हो जाने पर कैवल्य प्राप्त होकर तुम आत्मा के अपने वास्तिविक स्वरुप में स्थित हो जाओगे। भर्तृहरि की शंका का समाधान गुरुवाणी से होने के बाद उन्होंने आदेश कह अभिवादन किया। तब गुरु ने उन्हें उज्जैन छोड़कर परिभ्रमण करने का निर्देश दिया। भर्तृहरि ने वैराग्यशतकम् में अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर लिखा -

"भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः।

कालो न यातो वयमेव यातास्त्रणा जीणाज वयमेव जीणाजः।"

हमने विषयों को नहीं भोगा, वरन विषयों ने ही हमें भोग लिया। हमने तपस्या नहीं की, वरन तपस्या ने ही हमें तप्त कर दिया। हमसे काल व्यतीत न हुआ वरन हम ही व्यतीत हो गए। तृष्णा जीर्ण न हुई वरन हम ही जीर्ण हो गए।

भर्तृहरि “आदेश” कहकर अकेले ही उज्जैन से चल पड़े। उनके पास कंधों पर दो जोड़ी कपड़ा, कम्बल, एक में हाथ कमण्डल तथा दूसरे हाथ में दण्ड था। पैरों में खड़ाऊ पहने थे। वह राहगीरों के मिलने पर “अलखनिरंजन” का उद्धोष करते और राजा चौदह साल बाद उज्जैन से बाहर जा रहे थे। जिस गॉंव में शाम हो जाती उसी जगह किसी से आश्रय मांगकर सो जाते या कभी पेड़ों के नीचे सो जाते। भूख लगने पर एक बार भिक्षा मांग कर खाते और लोगों के साथ सत्संग करते। बीमारी को दबा देते तथा बच्चों के साथ खेलते भ्रमण कर रहे थे।  पहली बार उन्होंने समाज को इतने करीब से जाना था। समाज में वर्ण व्यवस्था, जाति, गोत्र, धर्म, संप्रदाय तथा धार्मिक मान्यताओं में इतनी भिन्नताएँ थी, जो उनकी कल्पना से बाहर था। समाज पूर्णता विभाजित था। छुआ छूत, ऊच नीच, को कभी उन्होंने जाना नहीं था। हालांकि जब वे राजकुमार और बाद में महाराज के रूप में समाजजनों से निरंतर मिलना जुलना होता था पर वहाँ मर्यादा बहुत थी। राज औपचरिकताएँ हर किसी को पालन करना होती थी तो इतना विस्तार से जानकारी नहीं हो सकी थी।

ऊपर से हम समाज को सनातनी हिन्दू ही मानते है, लेकिन रोटी बेटी, चिलम, सुल्फी, हुक्का पानी आदि का बहुत पेचीदा तानाबाना है। इसे लोगों के बीच रहकर ही समझा जा सकता है। धर्म के नाम पर समाज में जितनी मत भिन्नता दिखीं उतने ही रीत रिवाज दिखें। इससे समाज के कुछ वर्ग विशेष के साथ बहुत अत्याचार व भेदभाव प्रचलित हो गए है। भर्तृहरि बहुत दुखी हुए और उन्होंने निश्चय किया कि वह धर्म के नाम पर समाज में व्याप्त कुरूतियों को दूर करने के लिए काम करेंगे। उन्हें गुरु का यही “आदेश” लगा जब उन्होंने भर्तृहरि को जाने का आदेश दिया।

भर्तृहरि घूमते हुए अरावली की पहाड़ियों में तथा थार मरुस्थल में बसे गॉवों में परिभ्रमण कर रहे थे। यहाँ ज्यादातर जनजातियों के कबीलों की बस्तियाँ थी। इनमें कुछ चरबाहे एवं घुमन्तु जातियाँ थी। इन में कूड़ा पंथ, चोली पंथ, कांचलिया पंथ आदि मान्यताओं की विभिन्न रीतियाँ प्रचलित थी।इनके अलावा सगुण एवं निर्गुण सम्प्रदाय, शैव व वैष्णव संप्रदाय मानाने वाले लोग बड़ी संख्या में रहते थे। इनके अलावा अनेकों साधू संतों के मानने वाले समाज के लोगों से भर्तृहरि की मुलाकातें  हुई।

रात के सन्नाटे में जब भर्तृहरि की नींद टूटी तो उसे मन में ख्याल आया कि कैसे उसके परिवार वालों ने मोह मुक्त कर दिया। राजपाट त्यागने के बाद भी कई सालों तक परिवार के लोग मिलने आते रहे। जब परिवार का जो मिलाने आता उसकी याद कई दिनों तक आती रहती। भर्तृहरि उनके किसी प्रयोजन का नहीं रहा तो लोगों ने आना बंद कर दिया। सब अपने संसार में व्यस्त हो गये। केवल उसका एक भतीजा गोपीचंद उससे प्रभावित होकर सन्यस्त हुआ।

वह निरंतर निर्भर महसूस कर रहा था। उसे पहली दफा अहसास हुआ कि पारिवारिक सम्बन्धों का मानसिक बोझ कितना होता है। गुरु की बात याद हो आई कि संस्कार नष्ट नहीं होते बल्कि तनु हो जाते है, क्योंकि प्रकृति में कोई ताकत ऐसी नहीं है जो संस्कारों को पूर्णतः नष्ट कर दे। गुरु ने कहा था कि इन्हें भी पाँच क्लेश की भाती समझना चाहिए।

भर्तृहरि जहाँ भी जाते अलख जागते और मढ़िया की स्थापना करते। धूनी जलाते कुछ दिन रहकर किसी योग्य शिष्य को गद्दी पर बैठाकर आगे चल देते। भर्तृहरि ऐसा करते करते वह पांच नदियों के प्रदेश में आ गये थे। यहां रावी, सतजल, चिनाब व सिन्धु नदियों के सहारे बस्तियां बसी हुई थी। इस क्षेत्र के सन्यासियों के स्थानों को डेरा कहा जाता है। हर चार पांच गावों के बीच में एक डेरा जरूर होता है। इन डेरों के भक्तों दिए दान से इनका खर्च चलता है। डेरा मुख्य गुरु होता है। भर्तृहरि लगातार एक डेरे से दूसरे डेरे में जाते रहे तथा अलख जागते रहे। इन डेरों के बीच झगडे भी खूब चलते रहते थे, जिन में खून खराबा, मार पीट, हत्या जैसी घटनाएं बहुत मामूली बात थी। भर्तृहरि की कोशिश से इन डेरों को व्यवस्थित किया जा सका।

बढ़ते हुए भर्तृहरि हिमालय पहुंचे। जहां उन्होंने अनेक वर्षों तक तपस्या की। जब मन विचलित होता तब वह ध्यान लगाते। कुछ दिन बाद गुरु की प्रेरणा से गंगा यमुना के मैदानी इलाके में विचरण करने लगे। वह हाथ में चिमटा और कमण्डल रखते। कानों में कुण्डल धारण करते और कमर में कमर बंध बांधते। जटाजूट रखते तथा गले में सिंगी सेली धारण करते। निरंतर चलते हुए काशी पहुंच गए और काशी ब्राह्मणों की नगरी है। वहां अनेक विद्वानों से विचार विमर्श चलता रहा।

तरह के लोग मिलने आते तथा भिन्न तरह की समस्याएं लेकर समाधान की उम्मीद में आते। लोगों  के चित अशांत होते। मन में अनचाहे विचार चलते रहते। विचार हवा के झोंके की तरह आते। इनके चित कई तरह की अनुभूतियाँ संगृहीत करते। जीवन को नकारात्मकता बहुत बुरी तरह प्रभावित करती। इन समस्यों के समाधान खोजते भर्तृहरि नए प्रयोग करते। लोगों को नई विधियां बताते। अभ्यास कर परिणामों का विश्लेषण करते एवं विधियों को कारगर बनाने के लिए संशोधन करते थे। जब उन्हें कोई समाधान न सूझता तब गुरु से पूछते रहते थे। गोरख पंथ में इतनी विधियां हो गई कि लोग इस पंथ का नाम ‘गोरखधंधा’ रख दिए। हालांकि यह कोई पंथ की प्रशंसा नहीं थी, लेकिन अलग लोगों की अलग प्रकृति होती है। इसलिए उन पर अलग विधियां काम करती है। इसका प्रभाव यह हुआ की पंथ आम लोगों में बहुत जल्दी प्रसिद्ध हो गया। समाज के कथित सबसे निचले तबके के लोग इस पंथ से सर्वाधिक आकर्षित हुए।

शुरु से ही इस पंथ में जाति प्रथा को मान्यता नही दी गई। समाज में उनकी जाति, महिला पुरूषों के लिए पूर्व से ही अनेक रीति रिवाज थे। इस कारण इन पंथ में महिला व पुरुषों में भेद नहीं किया गया और दोनों को समान अधिकार दिए गए। पहली बार यह स्थापित किया गया कि महिलायें भी मोक्ष की उतनी ही अधिकारणी है जितना पुरुष। इससे पहली बार समाज की विदुषी महिलाएं बड़ी संख्या में इस पंथ की तरफ आकर्षित हुई। महिलाओं के प्रयास की निरंतरता व लगाव बहुत गहरा था।

बड़ी संख्या में तथा सारे देस में पंथ की संख्या बहुत बढ़ने से बारह पन्थों का निर्माण शुरू हुआ। इनके नाम आई, सत्य नाथी, नटेश्वर, धर्म नथी, वैराग्य, कपलनी, पागल, गंग नाथी, मनो नाथी, रावल तथा ध्यज पंथ है। तरह का साहित्य लिखा जाने लगा और नाथ पंथ के माध्यम से लोग सिद्धि को प्राप्त कर सके। किसी और के माध्यम से प्राप्त नहीं कर सके। इस कारण इस पंथ में नौ नाथ व चौषट योगियों को मान्यता दी गई, जो साथी समाधि को उपलब्ध होती है तथा अन्य को अग्नि दी जाती।  

उज्जैन के राजा भर्तृहरि के पास 365 पाकशास्त्री यानी रसोइए थे, जो राजा और उसके परिवार और अतिथियों के लिए भोजन बनाने के लिए। एक रसोइए को वर्ष में केवल एक ही बार भोजन बनाने का मौका मिलता था, लेकिन इस दौरान भर्तृहरि जब गुरु गोरखनाथ जी के चरणों में चले गये तब भिक्षा मांगकर खाने लगे थे।

एक बार गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्यों से कहा, “देखो, राजा होकर भी इसने काम, क्रोध, लोभ तथा अहंकार को जीत लिया है और दृढ़निश्चयी है।”

शिष्यों ने कहा, ‘गुरुजी! ये तो राजाधिराज हैं, इनके यहां 365 तो बावर्ची रहते थे। ऐसे भोग विलास के वातावरण में से आए हुए राजा और कैसे काम, क्रोध, लोभ रहित हो गए?”

गुरु गोरखनाथ ने राजा भर्तृहरि से कहा, ‘भर्तृहरि! जाओ, भंडारे के लिए जंगल से लकड़ियां ले आओ।”

राजा भर्तृहरि नंगे पैर गए, जंगल से लकड़ियां एकत्रित करके सिर पर बोझ उठाकर ला रहे थे। गोरखनाथ ने दूसरे शिष्यों से कहा, “जाओ, उसको ऐसा धक्का मारो कि बोझ गिर जाए।”

चेले गए और ऐसा धक्का मारा कि बोझ गिर गया और भर्तृहरि गिर गए। भर्तृहरि ने बोझ उठाया, लेकिन न चेहरे पर शिकन, न आंखों में आग के गोले, न होंठ फड़के। गुरु ने चेलों से कहा,  “देखा! भर्तृहरि ने क्रोध को जीत लिया है।”

शिष्य बोले, “गुरुजी! अभी तो और भी परीक्षा लेनी चाहिए।”

थोड़ा सा आगे जाते ही गुरु ने योगशक्ति से एक महल रच दिया। गोरखनाथ भर्तृहरि को महल दिखा रहे थे। युवतियां नाना प्रकार के व्यंजन आदि से सेवक उनका आदर सत्कार करने लगे। भर्तृहरि युवतियों को देखकर कामी भी नहीं हुए और उनके नखरों पर क्रोधित भी नहीं हुए, चलते ही गए।

गोरखनाथ जी ने शिष्यों को कहा, अब तो तुम लोगों को विश्वास हो ही गया है कि भर्तृहरि ने काम, क्रोध, लोभ आदि को जीत लिया है। शिष्यों ने कहा, गुरुदेव एक परीक्षा और लीजिए। गोरखनाथ जी ने कहा, अच्छा भर्तृहरि हमारा शिष्य बनने के लिए परीक्षा से गुजरना पड़ता है। गुरू ने कहा, “जाओ, तुमको एक महीना मरुभूमि में नंगे पैर पैदल यात्रा करनी होगी।”

भर्तृहरि ने निर्दिष्ट मार्ग पर चल पड़े। पहाड़ी इलाका लांघते हुए राजस्थान की मरुभूमि में पहुंचे। धधकती बालू, कड़ाके की धूप मरुभूमि में पैर रखो तो बस जल जाए। एक दिन, दो दिन यात्रा करते छह दिन बीत गए। सातवें दिन गुरु गोरखनाथ अदृश्य शक्ति से अपने प्रिय चेलों को भी साथ लेकर वहां पहुंचे। गोरखनाथ जी बोले, “देखो, यह भर्तृहरि जा रहा है। मैं अभी योगबल से वृक्ष खड़ा कर देता हूं। वृक्ष की छाया में भी नहीं बैठेगा।”

अचानक वृक्ष खड़ा कर दिया। चलते भर्तृहरि का पैर वृक्ष की छाया पर आ गया तो ऐसे उछल पड़े, मानो अंगारों पर पैर पड़ गया हो। ‘मरुभूमि में वृक्ष कैसे आ गया? छाया वाले वृक्ष के नीचे पैर कैसे आ गया? गुरु जी की आज्ञा थी मरुभूमि में यात्रा करने की।”

कूदकर दूर हट गए। गुरु जी प्रसन्न हो गए कि देखो! कैसे गुरु की आज्ञा मानता है। “जिसने कभी पैर गलीचे से नीचे नहीं रखा, वह मरुभूमि में चलते-चलते पेड़ की छाया का स्पर्श होने से अंगारे जैसा एहसास करता है।’ गोरखनाथ दिल में चेले की दृढ़ता पर बड़े खुश हुए, लेकिन अन्य शिष्यों के मन में ईर्ष्या थी। शिष्य बोले, “गुरुजी! यह तो ठीक है लेकिन अभी तो परीक्षा पूरी नहीं हुई।”

गोरखनाथ जी, रूप बदल कर, भर्तृहरि से मिले और बोले, “जरा छाया का उपयोग कर लो।’

भर्तृहरि बोले, “नहीं, मेरे गुरुजी की आज्ञा है कि नंगे पैर मरुभूमि में चलूं।”

गोरखनाथ जी ने सोचा, “अच्छा! कितना चलते हो देखते हैं।” थोड़ा आगे गए तो गोरखनाथ ने योग बल से कांटे पैदा कर दिए। ऐसी कंटीली झाड़ी कि गंदा फटे-पुराने कपड़ों को जोड़कर बनाया हुआ वस्त्र फट गया। पैरों में शूल चुभने लगे, फिर भी भर्तृहरि ने ‘आह’ तक नहीं की। भर्तृहरि तो और अंतर्मुख हो गए, ’यह सब सपना है, गुरु जी ने जो आदेश दिया है, वही तपस्या है। यह भी गुरुजी की कृपा है’।

अंतिम परीक्षा के लिए गुरु गोरखनाथ ने अपने योगबल से प्रबल ताप पैदा किया। प्यास के मारे भर्तृहरि के प्राण कंठ तक आ गये। तभी गोरखनाथ जी ने उनके अत्यन्त समीप एक हरा-भरा वृक्ष खड़ा कर दिया, जिसके नीचे पानी से भरी सुराही और सोने की प्याली रखी थी। एक बार तो भर्तृहरि ने उसकी ओर देखा पर तुरंत ख्याल आया कि कहीं गुरु आज्ञा भंग तो नहीं हो रही है। इतना सोचना ही हुआ कि सामने से गोरखनाथ आते दिखाई दिए। भर्तृहरि ने दंडवत प्रणाम किया। गुरु बोले, ”शाबाश भर्तृहरि, वर मांग लो। अष्टसिद्धि दे दूं, नवनिधि दे दूं। तुमने सुंदर-सुंदर व्यंजन ठुकरा दिए, युवतियां तुम्हारे चरण पखारने के लिए तैयार थीं, लेकिन तुम उनके चक्कर में नहीं आए। तुम्हें जो मांगना है, वो मांग लो। भर्तृहरि बोले, ‘गुरुजी! बस आप प्रसन्न हैं, मुझे सब कुछ मिल गया। शिष्य के लिए गुरु की प्रसन्नता सब कुछ है। मुझसे संतुष्ट हुए, मेरे करोड़ों पुण्यकर्म और यज्ञ, तप सब सफल हो गए।”

गोरखनाथ बोले, “नहीं भर्तृहरि! अनादर मत करो। तुम्हें कुछ-न-कुछ तो लेना ही पड़ेगा, कुछ-न-कुछ मांगना ही पड़ेगा।’ इतने में रेती में एक चमचमाती हुई सूई दिखाई दी। उसे उठाकर भर्तृहरि बोले, “गुरुजी! कंठा फट गया है, सूई में यह धागा पिरो दीजिए ताकि मैं अपना कंठा सी लूं।”

गोरखनाथ जी और खुश हुए, ’हद हो गई! कितना निरपेक्ष है, अष्टसिद्धि-नवनिधियां कुछ नहीं चाहिए। मैंने कहा कुछ मांगो, तो बोलता है कि सूई में जरा धागा डाल दो। गुरु का वचन रख लिया। कोई अपेक्षा नहीं? भर्तृहरि तुम धन्य हो गए! कहां उज्जयिनी का सम्राट नंगे पैर मरुभूमि में। एक महीना भी नहीं होने दिया, सात-आठ दिन में ही परीक्षा से उत्तीर्ण हो गए।’

जब वह उत्तर से दक्षिण की ओर जाने लगे तब वर्षा काल में चातुर्मास के लिए चुनार में रुक गए। इस यात्रा में उनके साथ उनके शिष्य गोपीचन्द साथ चल रहे थे, क्योंकि उनकी उम्र बहुत अधिक हो गई थी। एक रात उन्हें आभास हुआ कि अंत सयम निकट है और अपने प्रिय शिष्य गोपीचन्द को यह बात बताई। समय आने पर भर्तृहरि ने देह त्याग दी। इस स्थान पर उनके भाई विक्रमादित्य ने समाधि का निर्माण करवा दिया। शरीर छूट जाने के बाद अशरीर रूप में भर्तृहरि अब केवल उज्जैन में रहते हैं।


नाथ आश्रम के महंत ने रवि को राजा भर्तृहरि तथा उज्जैन के बारे में बताना शुरू किया। एक रात राजा को नींद नहीं आ रही थी। वह पलंग पर लेटता फिर खिड़की तक जाता, उसे समझ नहीं आ रहा है कि नींद क्यों नहीं आ रहीं है। मन इतना अशांत क्यों है? मन के अंदर विचार, बाहर विचार और विचारों की निरंतर शृंखला। शरीर कांप रहा था, लेकिन राजा के महल की खिड़की से क्षिप्रा नदी के पार दूर टिमटिमाते दीपक तक जाती, जो एक सन्यासी के आश्रम में जल रहा था और महाराज सोचता कि सन्यासी कितना सुखी है। रात पूर्णता निस्तब्ध थी और आसमान काला, केवल तारे टिमटिमा रहे थे। नीरव रात कितनी रहस्य मय होती है। केवल दूर से झींगुरों की आवाज आ रही है एवं नदी तट पर जुगनूं रह रह कर चमक रहे थे। कभी सुदूर जंगल से कोई जानवर आवाज कर अपने साथियों को खतरे से आगाह करता या महल के नीचे गली में कुत्ते भौंकते या लड़ते आवाज कर देते, जिससे राजा का ध्यान उधर चला जाता और विचार तन्द्रा टूट जाती। वह अक्सर सोचता की राजा बनकर मुझे क्या ही मिला है।

 

वह कल्पना करता की सन्यासी कितना सुखी होगा खूब गहरी नींद सो रहा होगा। यह सन्यासी नया था, राजा ने कुछ दिन पहले ही भिक्षा लेते महल के नीचे खिड़की से देखा था। जब कभी चिंताओं के कारण उसे नींद नहीं आती तब वह दूर नदी के उस पार टीले पर बने आश्रम के दीपक को अक्सर देखा करता। सन्यासी की तरफ उस का आकर्षण बढ़ता जा रहा था।






 

                                                



 

 9

 आरंभ

 

योगी उठकर आश्रम के अंदर चले गए और रवि थक गया था। उसकी आँख आसन पर ही लग गई। सुबह आंख खुलने पर रवि ने देखा कि वही राजा भर्तृहरि उसके सामने खड़े है। रवि का सर श्रृद्धा से चरणों में झुक गया। राजा भर्तृहरि  ने प्यार से पूछा "क्या जानना चाहते हो?"



रवि बोला- "महाराज! समझ नहीं आ रहा कि जीवन कहाँ जा रहा?"

"सब संचित कर्मों का फल है बच्चा" राजा भर्तृहरि ने उसके सिर पर हाथ फिराते हुए बोले।

रवि ने कहा — "महाराज अपनी शरण में ले लो। सफल होने की इच्छा भी समाप्त हो रही है।"

महाराज ने कहा — "अभी तुम्हारे जीवन में 'अथ' का उदय नहीं हुआ है। अभी तुम्हारा फल कच्चा है। इसे पकने दो यदि अभी तोड़ लोगे तो घाव बन जायेगा।"

राजा भर्तृहरि ने रवि के सामने आसन पर बैठते हुए बोले —“बहुत कम व्यक्ति होते है जिनमें किसी काम में सफल होने की जन्म जात प्रतिभा होती है। लेकिन अधिकांश लोगों को यह खोज करना होती है कि वह जीवन में कौन से क्षेत्र में सफल होंगे?

रवि ने फिर पूछा — "महाराज यह 'अथ' क्या है और यह जीवन में कब आता है?"

राजा भर्तृहरि ने समझाते हुए कहा — 'अथ' शब्द का शाब्दिक अर्थ है "अब”।

“यह अथ जीवन के रास्ते के चयन में व्यक्ति के जीवन में तब आता है जब वह या तो अपने जीवन में अनके नौकरियाँ करने के बाद पूरी तरह से निराश और हताश हो गया है या अभी वह विद्यार्थी है और अपनी शिक्षा पूरी कर बाहर आने वाला व्यक्ति जब हर सम्बन्ध में विफल हो जाता है और दूसरे से सुख पाने की आशा समाप्त हो गई।

 

इन परिस्थितियों में हम एक ऐसे चौराहे पर अपने आप को खड़ा पाते है और यह निर्णय नहीं कर पाते है कि हमें किस दिशा में जाना है। यदि हमें सन्यास का पथ ज़्यादा आकर्षित कर रहा है तो यह क्षण आत्मलोकन करने का है कि यह आकर्षण कहाँ से आ रहा है?

 

क्या यह आकर्षण लोगों की सफलता की कहानियां देख, सुन या पढ़कर आ रहा है। अथवा वास्तव में वह मनोवैज्ञानिक प्रकृति हम मैं है, जो सन्यास या संसार के लिए आवश्यक है?


रवि ने जिज्ञासा रखी — "हम कैसे पता करें कि हमारी प्रकृति क्या है?"

 

राजा भर्तृहरि ने हँसते हुए कहा — “व्यक्ति जो कर्म करता है उसके मनोवैज्ञानिक लक्षण उस व्यक्ति की प्रकृति में ही होते हैं। इसलिए हम संवेदनशीलता के साथ लोगों को देख, सुन व हाव भाव बॉडी लैंग्वेज प्रकृति को बहुत हद तक समझ जाते है।” 

यह बहुत गहन आत्मलोकन का विषय है।

राजा भर्तृहरि ने रवि के सर पर हाथ रखा। रवि राजा भर्तृहरि के चरणों में नतमस्तक हो गया। राजा भर्तृहरि ने रवि को कहा- “अभी सन्यास लेने का तुम्हारा समय नहीं आया है। अभी तुम्हें अपनी कर्तव्यों को पूरा करना होगा। तुम वापस जा कर फिर से काम शुरू करो। गुरु की तुम पर कृपा होगी।”

रवि के मुँह से निकला "आदेश" औवि को उसके प्रश्नों के उत्तर मिल गए थे। उसने आखें खोली तो योगी प्रसाद लिए सामने खड़े थे।

रवि ने श्रद्धापूर्वक प्रसाद ग्रहण किया और उत्साहित मन से मोटर साइकिल से उज्जैन की ओर चल दिया। वह संकल्प से भरा था और उसके चेहरे पर ठंडी हवा ताजगी भर रही थी।


रवि उज्जैन से लौटकर शाम को इंदौर अपने घर आया तो अमन उसे देख कर खुश हुआ। अमन ने रवि को बताया कि पिछले दिनों उन्होंने फण्ड रेजिंग के लिए इन्वेस्टर्स को जो प्रपोजल भीजे थे उनमें से दो लोगों ने पिच करने की लिये ज़ूम काल का समय निर्धारित करने को लिखा है। 

रवि ने शृद्धा के साथ अमन को  महाकाल का प्रसाद दिया। प्रसाद लेने के बाद अमन उसकी उज्जैन यात्रा के बारे में पूछने लगा। अमन जानता है कि  रवि अपने पैतृक नगर के बारे में  कुछ अलहदा बातों से रूबरू करायेगा। रवि ने अमन को पलंग पर बैठते हुए राजा भर्तृहरि और योगी के बारे में बताना शुरू किया। 

रवि ने बताना शुरू किया — जब वह उज्जैन रामघाट पर रात को गया तब उसकी मुलाकात नाथ संप्रदाय के राजा भर्तृहरि और नाथ आश्रम के महंत योगी से हुई।

रवि ने अमन को योगी के द्वारा बताई बातें सुनना शुरू किया। रवि बोला योगी ने कहा था 

मैंने अपने जीवन में चार तरह के बच्चे देखे है - पहली तरह के वे बच्चे है जिनमें जन्मजात कोई ना कोई प्रतिभा होती है, जो किसी ना किसी कौशल के साथ पैदा होते है। 

दूसरी तरह के बच्चों के माँ बाप शुरू से निश्चित कर लेते है कि उन्हें अपने बच्चों को क्या बनाना है। ऐसे बच्चों को उस क्षेत्र में अपनी प्रतिभा विकसित करने के लिए माँ बाप अपनी हैसियत से बढ़कर संसाधान जुटाकर बच्चों को सफल होने के लिए अपनी जी जान लगा देते है।अनेक बार ये बच्चे भी जीवन भर अपना कॅरियर इसी क्षेत्र में बनाते है।

 

तीसरे तरह के बच्चों को और न माँ बाप को पता होता है कि बच्चा क्या करेगा। वह नदी की धारा की तरह जीवन में प्राकृतिक स्वभाव से बढ़ता जाता है और अपना रास्ता खुद बनाता है और सफल हो जाता है।

 

चौथी तरह के बच्चे व माँ बाप बहुत कन्फ्यूज़ होते है और वे बचपन से जीवन भर अनेक क्षेत्रों में हाथ अजमाते रहते है और कहीं नहीं पहुँच पाते है।

 

अमन को योगी का यह वर्गीकरण बहुत इंट्रेस्टिंग लगा। 

रवि ने अमन को बताया कि मैने योगी के जीवन के बारे में जानना चाहा तो पूछा "महाराज आप का जीवन कैसा था?"

 

योगी ने अपनी चिलम से एक सुट्टा लगाकर धुआँ रवि की ओर छोड़ते हुए कहा — “मेरा जीवन बहुत साधारण तरीके से गांव में शुरू हुआ और मैं तीसरी श्रेणी का बच्चा था। मैं हमेशा से बहुत औसत दर्जे का विद्यार्थी था। जिसकी पाटी पूजा पिता जी ने गायत्री परिवार के मथुरा आश्रम में गुरूजी की गोद में बड़े अरमानों से करवाई थी। लेकिन उनकी असमय मृत्यु के कारण गांव के स्कूल में पहली कक्षा में नाम लिखाया गया। हालांकि पिता जी खुद अध्यापक थे, लेकिन उनका साथ बहुत अल्पकाल का था। परिवार में खेती का मुख्य काम काज था जो नौकरों के भरोसे होता था। घर के लोग काम की निगरानी करते थे।

 

घर का बड़ा लड़का होने के कारण मुझे पढ़ाई के साथ-साथ खेतों की निगरानी करना होती थीं। इस कारण खेती किसानी का व्यावहारिक ज्ञान बचपन से ही मिलने लगा। कालेज के दिनों में मुझे मेरे शिक्षकों ने जीवन में सफलता का मंत्र दिया- “यदि जीवन में सफल होना है तो भीड़ का हिस्सा मत बनो, हमेशा काम को अलग तरीके से करो।" 

इस ज्ञान ने जीवन को देखने की दिशा बदल दी। इस सीख के बाद से मैं चीजें अलग तरीके से करता हूँ। इसी एक साधारण से वाक्य ने मुझे साधारण से असाधारण बना दिया।

 


 

“हम जानते है कि प्रकृति तीन गुणों सत,रज तथा तम से निर्मित है। हम भी प्रकृति के अंग है तो हमारी रचना इन तीन गुणों से ही हुई है। इनमें से एक गुण दूसरे दो गुणों की तुलना में अधिक सक्रिय होता है। जैसे सत गुण प्रधान व्यक्ति में शम, दम व तप कर्म की प्रवृति के कारण ब्राम्हण वर्ण, रजोगुण प्रधान व्यक्ति में शूरवीरता, तेज प्रवृति के कारण क्षत्रिय वर्ण, या व्यापार, उद्यम की प्रवृत्ति के कारण वैश्य वर्ण तथा तमोगुण की प्रधानता के कारण व्यक्ति में आज्ञा मानाने की प्रवृत्ति के कारण नौकरी करने में प्रवृत होने से शूद्र वर्ण के कर्म करना चुनता है।

 

वर्ण व्यवस्था का अर्थ जाति व्यवस्था से बिलकुल भी नहीं है। न ही कर्म का निर्धारण व्यक्ति के जन्म से है, बल्कि प्राकृतिक गुणों की प्रधानता होने पर ही व्यक्ति अपनी प्रकृति व स्वभाव से अपना कर्म अर्थात व्यवसाय चुनता है। तभी वह न केवल अपने व्यवसाय में सफल होता है बल्कि अपने जीवन से संतुष्ट भी होता है। जब व्यक्ति की प्रवृति व वृत्ति में तालमेल नहीं रहता है तब वह अपने कर्म को कुशलता पूर्वक नही कर पाता है। ऐसा व्यक्ति अपने व्यवसाय में सफल होने के बाबजूद जीवन से असंतुष्ट ही रहता है।”

 

रवि ने योगी की बातों से सहमति जताते हुए कहा — "हां, ऐसा ही है जब हम लोगों की जीवनी पढ़ते है या बहुत सफल लोगों की बातें सुनते है तो वह अपनी मेहनत से अपने व्यवसाय में तो सफल दिखते है, लेकिन अपने जीवन को असफल ही मानते है। मेरे कई दोस्त है, जिनके पास या तो बहुत अच्छी पैकिज की नौकरी है या अपना स्टार्टअप है लेकिन वे हमेशा अपने जीवन से शिकायतें ही करते रहते है।

 

रवि ने पूछा — "ऐसा क्यों होता है?"

 

योगी बोले “कुशलता पूर्वक कर्म करना ही योग है। जब मन, बुद्धि व शरीर एक लय व दिशा में कार्य करते है तो व्यक्ति सहज मन से कर्म कर पाता है। इसलिए जब व्यकि अपनी रुचि या शौक के काम करता है तो वह पूर्णतः सफल व जीवन में संतुष्ट होता है।

 

मिर्जा गालिब ने कहा है- 'जिस शख्स को जिस शगल का शौक हो, और वो उसमें बेतकल्लुफ़ उम्र बसर करे, तो उसका नाम ऐश है।’

 

इसलिए अपनी आजीविका का चयन हमेशा अपनी प्रकृति के आधार पर करना चाहिए। आप जो काम स्वाभाविक ढंग से बिना तनाव के कर पाते है वहीं काम या क्षेत्र आपको अपना व्यवसाय चयन करने का संकेत देता है। यदि आप अपनी प्रवृति के विपरीत रुचि का चयन कर लेते है तॊ आप स्वयं  दुख और अशांति में जीवन जीते है।

 

रवि ने कहा — “व्यक्ति को उद्यमी बनना है या नहीं उसे अपने स्वभाव के आधार पर ही निर्णय करना होगा अन्यथा आज अनेक असफल स्टार्टअप इस तरह के उदाहरण है। और एक ऐसा ही प्रश्न आजकल बहुत पूछा जाता है कि स्टार्टअप कौन शुरू कर सकता है?"

 

योगी ने कहा — “जिन लोगों में रजोगुण प्रधान होता है वे स्टार्टअप शुरू करते है। इनमें वही लोग सफल हो पाते है जो दृढ़ संकल्प के साथ एक काम करते है। जिन की बुद्धि निश्चयात्मक होती है वे एक ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। लेकिन संकल्पहीन मनुष्य की बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहती है। अज्ञानी लोगों में न तो श्रद्धा और न ही ज्ञान है और जो संदेहास्पद प्रकृति के होते हैं उनका निश्चित पतन होता है। संदेहास्पद जीवात्मा के लिए न तो इस लोक में और न ही परलोक में कोई सुख है।”

 

रवि के मन में उत्सुकता हुई तो उसने विनम्रता पूर्वक योगी की शिक्षा के संबंध में पूछा। योगी ने बताया कि आईआईटी मुम्बई से कम्प्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन करने के बाद स्कालरशिप मिलने से वह आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग पर पीएचडी करने एमआईटी अमेरिका चला गया।

वहां से गूगल में चयन हो गया। तो वह प्रोडक्ट मैनेजर के पद पर चार साल काम करता रहा। गूगल तब शुरूआती दिनों में स्टार्टअप ही था।

 

इसके बाद भी मन में शांति ना होने से वीक एन्ड पर  रामकृष्ण मिशन आश्रम जाने लगा। वहीँ से वेदांत में मेरी गहरी रूचि हुई। तो नौकरी छोड़कर कोलकाता आ गया। रामकृष्ण मिशन में वेदांत पढ़ाई के दौरान अपने एक साथी के साथ नेपाल काठमांडू गया। 

 

नेपाल में मेरे गुरु से मेरी मुलकात हुई। गुरु महाराज से दीक्षा लेकर गोरखनाथ सम्प्रदाय ज्वाइन कर लिया। गुरु ने उज्जैन के आश्रम की देखभाल का काम एक साल पहले सौंपा तब से यहीं उज्जैन आश्रम में साधना करता हूँ।

 

"अब तुम ही सोचकर बताओ कि क्या तुम्हारे मन में तुम्हारे स्टार्टअप को सफल बनाने की लालसा है या नही।"

 

योगी ने प्रतिप्रश्न किया।

 

रवि ने सर झुका लिया। वह बहुत देर सोचता रहा, लेकिन कोई उत्तर नहीं सूझा।

 

योगी ने अपने योग बल से जानकर बताया — "तुम्हारे अंदर सफल होने की लालसा है। यह तामसिक गुण प्रधान व्यक्ति के लक्षण है, जो बहुत शुभ है। अभी तुम्हें सतोगुण का उत्कर्ष नहीं हुआ है। अतः अभी तुम्हारे कर्म बाकी है। तुम्हें सांसारिक दायित्व पूरे करने है। तुम्हें उन्हें निभाना ही होगा।"

 

रवि ने पूछा "अब हममें ताकत नहीं है, न ही उत्साह बचा है तो क्या करें?"

 

तब मैंने आत्मवलोकन किया की क्या अभी भी मुझ में रजोगुण बाकी है जो स्टार्टअप के लिए आवश्यक है। मैने अपने आप से बार-बार यह सवाल किया कि क्या करना है? और हर बार जवाब था स्टार्टअप। फिर पीछे मुड़कर देखने का प्रश्न नहीं था। इसलिए अब शुरू करते है  “अथ उद्यमिता अनुशासन।”

 

 

रवि व अमन को आगे यह निर्णय करना था कि अपने स्टार्टअप की रणनीति में क्या बदलाव लाये ताकि काम सही दिशा में चल सके। दोनों ने इंदौर में अपनी नेटवर्किंग बढ़ाना शुरू किया।

 

इंदौर में स्टार्टअप सपोर्ट के लिए अनेक इन्कुवेशन सेंटर यूनिवर्सिटी तथा कॉलेज में बनाना शुरू हो गए थे। इनके एक प्रोफेसर कॉलेज के इन्कुवेशन सेंटर में मेन्टोरिंग के रूप में स्टार्टअप्स को सपोर्ट करते थे। प्रोफेसर ने रवि व अमन को उनका ग्रुप ज्वाइन करने की सलाह दी तो दोनों ने उनके ग्रुप को ज्वाइन कर लिया।

 

ग्रुप की हर रविवार को मीटिंग होती, जिसमें शहर के दस बारह लड़के लड़कियां आते। सभी अलग तरह के या तो अपने स्टार्टअप्स चला रहे थे या चलाना चाह रहे थे। इन मीटिंग्स में कई तरह के विषय विशेषज्ञ लोग भी आते।

 

एक मीटिंग में इंदौर के चर्चित भास्कर सर आये। वह अपना एग्रीकल्चर सेक्टर का स्टार्टअप पिछले पांच साल से रन कर रहे हैं।

 

भास्कर सर ने अपने लेक्चर में बताया कि स्टार्टअप का मतलब है, किसी नए संगठन की शुरुआत करने की भावना। स्टार्टअप में कोई व्यक्ति किसी मौजूदा या भाविष्य के अवसर का पूर्वदर्शन करके मुख्य रूप से कोई कारोबारी संगठन शुरू करता है।

 

स्टार्टअप में एक तरफ जहां भरपूर मुनाफा कमाने की संभावना होती है। वहीं दूसरी तरफ़ जौखिम, अनिश्चितता और अन्य ख़तरों की भी संभावन होती है। अच्छी बात यह है कि उद्यमी पैदा नहीं होते बल्कि बनते है। 'जिस व्यवसाय में लाभ का कोई मार्ग न हो, वह व्यवसाय नहीं, बल्कि एक शौक है।’

 

जब तुम लोगों ने निश्चय कर लिया कि अपना स्टार्टअप कर उद्यमी बनना है तो तुम्हें जानना ज़रूरी है कि इस यात्रा में आने बाले पड़ाव कौन-कौन से है।...तो दोस्तों पहला पड़ाव है उन बाधाओं को समझना जो इस जर्नी में आना ही है। इस से कोई बच नहीं सकता। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि यह रास्ता बहुत अकेला व अनिश्चितताओं से भरा होता है।

 

स्टार्टअप शुरू करना वैसा तो बिलकुल नहीं होता जैसा प्रचारित किया जाता है। इस में आप अपने बॉस बिल्कुल नहीं होते यह यात्रा कहीं नौकरी करने के बिलकुल विपरीत होती है जहां चौबीस घंटे आप इसे जीते है।

 

आगामी रविवार को जब सब लोग बैठ गए तो एक लड़की ने पूछा — “सर एंट्रप्रोन्योर का मतलब क्या होता है तथा शुरू करने में कौन सी बाधाएं आती है?”

 

यह लड़की अपनी पढ़ाई पूरी करके अपना स्टार्टअप शुरू करना चाह रही थी।

 

भास्कर सर ने कहा — “मैने जो पहली बाधा का सामना किया था वह मनोवैज्ञानिक बाधा थी। जो लोग ऐसे परिवारों से आते हैं जहां पहले से किसी तरह का व्यवसाय नही होता है उन व्यक्तियों को मनोवैज्ञानिक बाधाओं का सामना करना होता है। इनमें मुख्य है -

 

असफलता का डर - यह सबसे बड़ी मानसिक बाधाओं मे से एक है जिसका सामन हर उद्यमी करता ही है। इसलिए कहा जाता है, ‘डर के आगे जीत है।’ यही भावना उद्यमी को निवेश, प्रतिष्ठा या वित्तीय स्थिरता का जोखिम उठाने की प्ररणा देती है। प्रत्येक असफलता को मूल्यवान सीख के अनुभव के रूप में देखना चाहिए।

 

आत्म संदेह - कई उद्यमी निरंतर अपनी क्षमताओं पर संदेह अनुभव करते रहते है वह निरंतर अपने निर्णयों पर पुर्नविचार करते हैं। आत्म संदेह उद्यमी की सफलता के लिए एक प्रमुख बाधा बन सकता है। अतः उद्यमी को मेंटोर, रोल माडल एवं एक नेटवर्क का सहारा लेना चाहिए। जहां वह अपने आत्म संदेह पर दूसरों की राय ले सकते है व दूसरों के अनुभवॊं से सीखकर आगे बढ़ सकते है।

 

पूर्णतावादी होना- कोई भी उद्यम या उद्यमी पूर्ण नहीं होता। यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया होती है। यदि उद्यम के संबंध में बहुत ज्यादा विश्लेषण करते है तो शायद अपना व्यवसाय कभी शुरु ही न कर सके। जितनी कम दूरी पर नजर रख आप चलेंगे उतनी अधिक दूरी आप तय कर सकते हैं। समय के साथ प्रगति करने और अपने काम को निखारने पर ध्यान होना चाहिए, निरंतर प्रयास व सुधार करते रहने पर ही समय के साथ-साथ पूर्णता आती है। कोई भी जीवित व्याप्ति पूर्ण नही होता केवल मृत व्यक्ति ही पूर्णता को प्राप्त होता है।

 

अस्वीकृति का डर - कोई भी उद्यम एक परिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा होता है, जहां बहुत सारे लोग भागीदार होते है। किसी भी उद्यमी को ग्राहकों, निदेशकों व भागीदारों से निरंतर संवाद करना होता है जहां अस्वीकृति ही अधिकांश समय आपको मिलती है। अस्वीकृति का डर उद्यमी को मन से निकालना ही होता है, क्योंकि विश्व का कोई भी उद्यमी यह नही कह सकता कि उन्होने अस्वीकृतियों का सामना नहीं किया है।

 

उद्यमी को निन्नानवें प्रतिशत अस्वीकृत होने के लिए मानसिक रूप से तैयारी रखनी चाहिए। अस्वीकृति उद्यमी की यात्रा का अनिवार्य हिस्सा है तथा प्रत्येक अस्वीकृति ही सफल उद्यमी को सही चुनाव का अवसर देती है।

 

इम्पोस्टर सिंड्रोम - यह वह भावना है जहां उद्यमी को लगता है कि वह सफलता के लायक नहीं है और उसे सफलता धोखे से मिली है। यह भाव निरंतर उद्यमी को मानसिक बाधा के तौर पर परेशान करता है।

 

एक अध्ययन के अनुसार भारत के 31 प्रतिशत उद्यमी इम्पोस्टर सिंड्रोम से प्रभावित है। अपने हुनर को नकारना इम्पोस्टर सिन्ड्रोम का प्रमुख लक्षण है। इस समस्या से आपका आत्मविश्वास डिग जाता है। अतः अपनी कबलियत पहचाने व अपने आप को सफलता का श्रेय देना सीखे।

 

फोकस की कमी - उद्यमियों के दिमाग में हमेशा बहुत सारे विचार और सामने बहुत सारे काम चलते रहते हैं जो उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा करते रहते है। इस बाधा को दूर करने के लिए स्पष्ट लक्ष्य, प्राथमिकताएँ व समय प्रबंधन आवश्यक होता है।

 

एक स्टेज के बाद उद्यमी को अपने काम का बँटवारा कर टीम के सदस्यों को वह सभी काम सौंप देना चाहिए जो वे स्वतंत्र रूप से अधिक कुशलता से कर सकते है।

 

अकेलापन - उद्यमी को अपना रास्ता ख़ुद बनाना पड़ता है। इसलिए उद्यमी अक्सर अपने आप को अकेला पाता है। जब आप अपनी टीम के साथ होते है तो आप को लगता है कि रैंक के कारण आपको बहिष्कृत कर दिया गया है। अकेलापन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

 

अज्ञात का डर - जब उद्यमी अपने लक्ष्य निर्धारित करता है तो उन लक्ष्यों तक पहुँचने के अनेक रास्ते हो सकते है। इन बहुत से अनजान रास्तों में से एक का चुनाव करना हमेशा डरावना होता है, क्योंकि आप का एक ग़लत चुनाव पूरे बिज़नेस या पूरी टीम के भविष्य को दांव पर लगा सकता है। अज्ञात के भय से उबरकर ही उद्यमी सफल हो सकता है।

 

दूसरी बाधा है पारिवारिक बाधा - नया व्यवसाय शुरू करना हमेशा रोमांटिक, रोमांचक व चुनौती पूर्ण होता है। इसलिए जिन परिवारों में पूर्व से व्यवसाय नहीं हो रहा होता है वे परिवार नौकरी जैसा सुरक्षित कॅरियर चुनने की सलाह देते हैं।

 

शुरू में उद्यमी को सफलता के लिए परिवार का समर्थन आवश्यक होता है अन्यथा उसे अंदर व बाहर दोनों जगह संघर्ष करना पड़ता है। यदि परिवार समर्थन करता है तो उद्यमी को अनेक लाभ होते है।

 

तनाव कम होना- उद्यमी हमेशा तरह-तरह के तनावों से निरंतर जूझते रहते है। हालाँकि सफल होने के लिए तनाव एक आवश्यक कारक है। लेकिन लम्बे समय तक अधिक तनाव के कारण मस्तिष्क की प्रतिक्रिया प्रणाली शरीर में कार्टीशोल व एंडरनल हार्मोन्स का स्राव करती है जिससे स्पष्ट सोच व निर्णय लेने की क्षमता, जोखिम उठाने की क्षमता व उत्पादकता प्रभावित होती है।

उद्यमी अवसाद ग्रस्त हो जाते है। यदि यह तनाव लम्बे समय तक चलता है तो उच्च रक्तचाप, ह्रदयघात, मांसपेशियों की समस्या या डायबटीज़ जैसी परेशानियाँ बड़ जाती है।

 

शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। हार्मोनल असंतुलन के कारण अनेक प्रकार की समस्याएँ हो सकती है।

 

एक उद्यमी ने हाल ही में अपने व्हाट्सऐप से अपने सभी ग्रुप्स में “आल आफ गुडनाइट अण्ड स्वीट ड्रीम्स” का सन्देश भेज कर आत्महत्या कर ली तो दूसरे उद्यमी ने दस पेजों का सुसाइड नोट लिखा जिसमें उन्होंने फ़ैक्ट्री लगाने से सुसाइड की स्थिति तक पहुँचने की दास्तान लिखी कि किसने सहायता की, किसने धोखा दिया, किसने भुगतान नहीं किया, कौन परेशान कर रहा था, शासन के किसी विभाग से कोई मदद नहीं मिली।

 

हालाँकि मीडिया या सोशल मीडिया पर इस तरह की घटनाओं की ज़्यादा चर्चा नहीं होती है। इन स्थितियों से उद्यमी को अकेले ही लड़ना पड़ता है।

 

एक अध्ययन के अनुसार हमारे देश में उन्नचास प्रतिशत उद्यमी तनाव से ग्रस्त पाए गए हैं।

 

लचीलापन बड़ता है- लचीलापन असफलताओं से उबरने में मदद करता है। लचीलापन उद्यमी का बहुत बड़ा गुण है।

 

भावनाओं पर नियंत्रण- उद्यमी को भावनाओं के अतिरेक से हमेशा बचना चाहिए। उद्यमी को सुख दुख को समतुल्य समझकर उनमें  रागद्वेष न करके तथा लाभहानि को और जय पराजय को समान समझकर काम करना चाहिए।

 

तीसरी बाधा है क़ानूनी बाधा - कोई नया उद्यम शुरू करना आसान काम नहीं होता। हमारे देश में उद्यम को शुरू करने के लिए इतने अधिक विभागों से लाइसेंस व अनुमतियाँ लेनी होती है जो किसी नये उद्यमी के लिए बहुत मुश्किल होता है। विश्व बैंक समूह द्वारा जारी ईज आफ डूंईग बिज़नेस सुगमता रैंकिग प्रणाली के तहत हमारे देश का स्थान बहुत नीचे है। इस रैंकिग में न्यूज़ीलैंड पहले, सिंगापुर दूसरे तथा डेनमार्क तीसरे स्थान पर रहे।

 

हालाँकि भारत ने इस मामले में अनेक कदम उठाए हैं तथा इस सूचकांक में रैंकिंग सुधारने की सरकार ने प्रतिबद्धता दुहराई है। फिर भी उद्यम शुरू करने के पूर्व बिज़नेस लाइसेंस विभिन्न प्रकार के रजिस्ट्रेशन, सुरक्षा परमिट, जीएसटी रजिस्ट्रेशन, एमएसएमई रजिस्ट्रेशन व स्टार्टअप इण्डिया रजिस्ट्रेशन आवश्यक है।

 

हांलाकि कोई भी नया उद्यम कानून के दायरें में ही शुरू हो सकता है, लेकिन विग़त वर्षों में विश्व भर में ऐसे स्टार्टअप शुरु किये गये जो किसी क़ानून के दायरे में नहीं आते थे जेसै उबर के पास एक भी टैक्सी नहीं है, एयर बीएनबी के पास एक भी कमरा नहीं है, फूड की डिलेविरी करने वाले ऐप्स के पास एक भी रेस्टोरेन्ट नहीं है।

 

नये उद्यमी मानते है कि शासन से परमीशन मांगने के बजाय क्षमा मांगना ज्यादा आसान होता है। इसी रणनीति पर बहुत से उद्यम प्रारंभ हो सके हैं। मगर जो लोग परम्परागत उद्यम करना चाहते है उनके सामने कानूनी बाधाएँ हमेशा रहेगी जिनको पार करना कठिन, श्रमसाध्य, खर्चीला व अत्याधिक समय लेने वाला है। विभिन्न राज्यों की सरकारों ने सिंगल विंडो सिस्टम लगाकर इन बाधाओं को दूर करने की कोशिश की है। 

 

राज्य सरकारों के बीच में निवेश को आकर्षित करने, रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने, राज्य की आय बढ़ाने लिए निजी उद्यमियों को कई तरह की सुविधाएं देने की होड़ लगी है।

 

भारत में हमेशा से व्यवसायी को बहुत अच्छी नजर से नही देखा गया। मगर पहली बार भारत के प्रधामांत्री ने स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इण्डिया जैसे कार्यक्रम शुरू का उद्यमियों के प्रति समाज व परिवार में एक सकारात्मक छवि बनाने का प्रयास किया। इस कारण विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम भारत में खड़ा हुआ है।

 

चौथी बाधा है व्यवसायिक बाधा- नये उद्यमी को अपना कारोबार शुरु करने के लिए पूर्व से स्थापित औद्योगिक घरानों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व व्यापारिक संस्थानों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।

 

बाजार में स्थापित कंपनी तरह-तरह की बाधाएँ व समस्या उत्पन्न करती है। इससे नई कम्पनियां या तो प्रतिष्पर्धा से बाहर चली जाये या बड़ी कम्पनियों में विलय कर लें या बंद हो जायें। भारत में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग का नेटवर्क बहुत प्रभावी न होने के कारण अधिकांश सेक्टरों में बड़ी कम्पनियों का एकाधिकार है।

 

किसी कारोबार को शुरु करना उतना मुश्किल नहीं है, जितना मुश्किल उसे आसानी से आग़े बढ़ाते रहना हैं। व्यापार में प्रतिस्पर्धा हमेशा अच्छी होती है तथा उपभोक्ताओं के हित में होती है, लेकिन जब असमान संगठनों वाली कंपनियों के बीच स्पर्धा हो तो मुश्किल होता है।

 

यदि कोई उद्यमी सोचता है कि उसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं है और वह दौड़ में अकेला है, तो यह उसकी सबके बड़ी भूल है। व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा जीतने के लिए आवश्यक है खुद पर भरोसा, प्रतियोगी से बेहतर आईडिया, प्रोडक्ट की समझ, ग्राहक को भगवान माने, फाईनेंस पर नज़र रखे, टीम की कद्र करें, फीड बैक लें, मार्केटिंग की नवीनतम तकनीकी को अपनाएं तथा हमेशा बदलाव के लिए तैयार रहें।

 

भास्कर सर ने बताया कि दूसरा पड़ाव है बिजनेस मॉडल का विकास। यदि शुरुआत कर रहे है तो आप को बहुत कम संसाधनों के साथ कार्य शुरू करना है। इसलिए कभी भी अपने प्रतियोगी का बिजनेस मॉडल अपना कर प्रतियोगिता नहीं जीत सकते। 

प्रतियोगी से अलग बिजनेस मॉडल तैयार करना होगा तथा उन कामों को चिहित करना होगा, जो बाजार की मांग व उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएँ देने के लिए आवश्यक है। उन कार्यों को बिजनेस मॉडल में शामिल करना होगा।

बाज़ार में जो बड़ी कंपनी है उनकी मुश्किल यह है कि वह आसानी से बदलाव को लागू नहीं कर पाती है, जबकि नई व छोटी कंपनियों में इतना अधिक लचीलापन होता कि वह कभी भी बदलाव के लिए तैयार रहती है और यह ताक़त उन्हें जीतने में मदद करती है।

 

यह बात रवि एवं अमन को बहुत रोचक लगी क्योंकि आधुनिक समय की समस्याओं का समाधान प्राचीन ग्रंथों में भी उपलब्ध होगा। इसकी कल्पना इन दोनों ने नहीं की थी तो ये लोग नियमित रूप से भास्कर जी के लेक्चर अटेन्ड करने लगे। इस डिस्कशन से रवि एवं अमन बहुत अधिक रिलेट कर पा रहे थे, क्योंकि वह दोनों इन मनोस्थितियों से गुजरे थे। दोनों को यह डिस्कशन बहुत प्रैक्टिकल लगा।


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                         आइडिया

पिछले दो सप्ताह से रवि एवं अमन को कई ऑर्डर मिल गया थे तो वह दोनों सप्लाई में व्यस्त हो गये। इस रविवार वह भास्कर सर का सेशन मिस नहीं करना कहते थे तो वह कॉलेज समय पर पहुंच गये। बहस में भाग लेते हुए अमन ने अपना सवाल पूछा — “उद्यम की सफलता का आधार क्या हैं?”

 

भास्कर सर ने बहुत खुश होकर बताना शुरू किया कि डॉ युवाल नोआ हरारी ने अपनी किताब 'सेपियन्स' में बताया है कि लगभग एक लाख साल पहले धरती पर मानव की कम से कम छह प्रजातियां बसती थीं, लेकिन आज सिर्फ होमो सेपियन्स ही बचे है।

 

प्रभुत्व की इस जंग में आखिर हमारी प्रजाति ने कैसे जीत हासिल की? 

हमारे भोजन खोजी पूर्वज शहरों और साम्राज्यों की स्थापना के लिए क्यों एक जुट हुए? 

कैसे हम ईश्वर, राष्ट्र और मानव अधिकारों में विश्वास करने लगे? कैसे हम दौलत, किताबों और क़ानून में भरोसा करने लगे? 

कैसे हमने नौकरशाही, समय-सारणी और उपभोक्तावादी संस्कृति को अपना लिया? 

इन सब सवालों का जवाब है साझा विश्वास।

 

भास्कर सर ने कहा — कोई भी उद्यम तभी सफल एवं बड़ा बन सकता है जब उस संस्थान की टीम एवं उसके उपभोक्ता उस उद्यम के कांसेप्ट पर भरोसा करें। किस्से गढ़े जाते हैं, लेकिन किस्से गढ़ना आसान नहीं होता।

 

फिर उन किस्सों पर लोगों का विश्वास क़ायम करना अधिक कठिन होता है। इसे कल्पित वास्तविकता कहते है। कम्पनियों का उद्यम इसी तरह स्थापित होता है। साझा विश्वास, कम्पनियों की सफलता की वास्तविक ताकत बनती है।

 

फिर छोटी कम्पनी बड़ी कम्पनियों को समाप्त कर देती है। यह सफल कंपनी सामूहिक विश्वास को अधिक से अधिक लोगों में फैलाते हैं और काल्पनिक वास्तविकता का निर्माण करते हैं। लोग एक गहरी भ्रांति में जीते है जिसे आशा की भ्रांति कहते हैं। आदमी आत्म वंचनाओं के बिना जी नहीं सकता।

 

नीत्से ने कहा है कि आदमी सत्य के साथ नहीं जी सकता, उसे चाहिए सपने, भ्रान्तियाँ और कई तरह के झूठ। मानव मन को गहराई से समझकर ही कम्पनियों को सफल बनाया जा सकता है।

न्यूरो मार्केटिंग, विपणन और तंत्रिका विज्ञान के मिश्रण से जुड़ा विज्ञान है। इसका मक़सद, उपभोगताओं के व्यवहार, भावनाओं और निर्णय लेने की प्रक्रिया को समझना होता है। इस जानकारी का इस्तेमाल, विपणन रणनीति बनाने और बेहतर उत्पाद विकसित करने में किया जा रहा है।

 

इस प्रकिया में आई ट्रैकिंग और आई गेजिंग, प्रभावी पैकेजिंग, रंग मनोविज्ञान, विज्ञापन दक्षता, निर्णय थकान, संतुष्टि का मूल्यांकन, हानि से बचना, एंकरिंग, गति और दक्षता तथा छपी हुई प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया जा रहा है।

 

नीर ईयाल ने अपनी किताब हूक्ड में कम्पनियों जैसे फ़ेसबुक, पिंटरेस्ट, ट्वीटर, येलप, ब्लागिंग जैसी तकनीकी कम्पनियों के उद्धरण देकर बताया है कि हेविट, टिगर, एक्शन व रिवार्ड के सिस्टम को बनाकर कैसे कम्पनियों को सफल बनाया है। टिकटॉक जैसी कम्पनियों छोटे वीडियो बनाकर करोड़ों लोगों को रोज़ छोटे वीडियो बनाकर डालने की आदत का गुलाम बना दिया है।

 

करोड़ों लोग अपने जीवन के अधिकांश घन्टे रील देखने या सोशल मीडिया पर बिताते है। मोबाइल गेम निर्माता कम्पनियों गेम खेलने वाले लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर देती है।

 

हावर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. हेराल्ड जाटमैन कहते है कि मनुष्य का अवचेतन मन ही पंचानवे प्रतिशत खरीदारी के निर्णय करता है।

 

वहीं, स्वतंत्र इच्छा की अवधारणा पर डॉ युवाल नोआ हरारी कहते है कि किसी व्यक्ति को विकल्प चुनने की स्वतंत्रता एक मिथ्या अवधारणा है, क्योंकि उपभोक्ता के व्यवहार पर तरह-तरह के प्रयोग एवं अध्ययन किए जा रहे है और अब कम्पनियाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के टूल्स का इस्तेमाल कर रही हैं। 

यह कोशिश है कि उपभोक्ता के ख़रीदारी के निर्णय को कैसे प्रभावित किया जाये। खरीदार को पता भी न चले कि कोई और उनके व्यवहार को प्रभावित कर उसकी इच्छा की स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहा है। बाज़ार में ग्राहकों को मनाने के लिए ग्राहकों की बातें सुनना, सकारात्मक भाषा का उपयोग करना, ग्राहकों को विकल्प देना, उपहार देना, पीछे छूट जाने का डर दिखाना जैसी कई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।

 

सभी सोशल मीडिया और इन्टरनेट आधारित कम्पनियों के पास हमारी इतनी अधिक जानकारी है। ये हमारे व्यवहार के सम्बन्ध में बिल्कुल सही गणना कर अनुमान लगाने में माहिर हो गई है कि अब न केवल ख़रीदने के निर्णय प्रभावित किए जा रहे है, बल्कि देशों के चुनावों को भी सफलतापूर्वक प्रभावित किया गया है।

 

दरअसल, हाल ही में फेसबुक के फाउंडर और मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने 'जो रोगन पॉडकास्ट' में शिरकत की थी। इस दौरान उन्होंने चुनावों पर एक विवादास्पद टिप्पणी की थी। मेटा के सीईओ ने कहा था कि कोविड-19 महामारी के बाद भारत समेत दुनिया के कई देशों में चुनाव हुए और कई सरकार हारी हैं, जिसमें भारत भी शामिल है।

 

जुकरबर्ग ने कहा था कि यह हार दिखाती हैं कि महामारी के बाद लोगों का भरोसा कम हुआ है। इस टिप्पणी पर भारी विवाद चल रहा है। इन्टरनेट डेटा बेचकर कम्पनियाँ खरबों रूपये कमा रहीं है।

 

बिना तकनीक का इस्तेमाल किये किसी भी बिज़नेस को सफल नहीं बनाया जा सकता है। किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अपनी कोई पोस्ट या फ़ोटो अपलोड कर तत्काल युज़र्स को इससे संबंधित विज्ञापन दिखाने लगते है, ईमेल व मैसेज आने लगते है।

 

और तो और जब कोई व्यक्ति मोबाइल फ़ोन पर कुछ संदेश लिखता है तब मोबाइल मन पढ़कर अगले शब्द का सजेशन दे देता है। यदि में कोई शब्द टाइप करने में गलती होती है तो मोबाइल उस शब्द को लाल लाइन से दिखा देता है।

 

यह सब इतनी तीव्रता से होता है कि लगता ही नहीं की विचार मोबाइल कम्पनियाँ पढ़कर स्टोर कर रहीं है। व्यक्ति को तकनीकी का जितना अधिक ज्ञान होगा और अपने बिज़नेस में जितना उपयोग करेगा तो सफलता की सम्भावना उतनी ज़्यादा है, क्योंकि अब प्रतिस्पर्धा भौतिक जगत में न होकर वर्चुअल दुनिया से है।

 

भास्कर सर ने एक आर्टिकल में प्रकाशित बातें बताई। इसमें कहा गया था कि दूसरे लोग अपनी सेवाओं की कीमत ठीक से नहीं लगा सकते। एक और आम ग़लतफ़हमी लोगों को अपनी गलतियों से सीखने की ज़रूरत है।

 

आप गलतियों से वास्तव में क्या सीखते हैं?

 

आप सीख सकते हैं कि आपको फिर से क्या नहीं करना चाहिए, लेकिन यह कितना मूल्यवान है?

आप अभी भी नहीं जानते कि आपको आगे क्या करना चाहिए। अपनी सफलताओं से सीखने के साथ इसकी तुलना करें।

 

सफलता आपको असली गोला-बारूद देती है। जब कोई चीज़ सफल होती है, तो आपको पता होता है कि क्या काम आया और आप इसे फिर से कर सकते हैं। अगली बार शायद इसे और भी बेहतर तरीके से करेंगे। असफलता एवं सफलता के लिए कोई शर्त नहीं है।

 

हावर्ड बिजनेस स्कूल के एक अध्ययन में पाया गया कि पहले से ही सफल उद्यमियों के फिर से सफल होने की संभावना कहीं अधिक है। इनकी भविष्य की कंपनियों की सफलता दर चौतीस प्रतिशत है।

 

वहीं, जिन उद्यमियों की कंपनियाँ पहली बार विफल हुईं। उनकी सफलता दर लगभग उतनी ही थी जितनी पहली बार कंपनी शुरू करने वाले लोगों की सिर्फ़ तेईस प्रतिशत। जो लोग पहले विफल हुए, उन्हें उतनी ही सफलता मिली जितनी उन लोगों को जिन्होंने कभी प्रयास ही नहीं किया।

 

सफलता वह अनुभव है जो वास्तव में मायने रखता है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। 

 

यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे प्रकृति काम करती है। विकास पिछली असफलताओं पर नहीं रुकता,  जो हमेशा उसी पर आधारित होता है जो सफल रहा। उद्यमी को भी ऐसा करना चाहिए।

 

क्या आपको वाकई दस लोगों की ज़रूरत है या अभी के लिए दो या तीन लोग ही काफी होंगे?

क्या आपको वाकई पांच लाख रुपये की ज़रूरत है या अभी के लिए पचास हजार रुपये काफ़ी हैं? 

क्या आपको वाकई छह महीने की ज़रूरत है या आप दो महीने में कुछ बना सकते हैं?

क्या आपको वाकई एक बड़े ऑफ़िस की ज़रूरत है या आप कुछ समय के लिए ऑफ़िस स्पेस शेयर कर सकते हैं या घर से काम कर सकते हैं?

 

क्या आपको वाकई एक गोदाम की ज़रूरत है या आप एक छोटा स्टोरेज स्पेस किराए पर ले सकते हैं या अपने गैरेज या बेसमेंट का इस्तेमाल कर सकते हैं या इसे पूरी तरह से आउटसोर्स कर सकते हैं?

 

क्या आपको वाकई विज्ञापन खरीदने और एक पीआर फ़र्म को काम पर रखने की ज़रूरत है या फिर ध्यान आकर्षित करने के लिए कोई और तरीका है? 

क्या आपको वाकई एक फ़ैक्टरी बनाने की ज़रूरत है या फिर आप अपने उत्पादों के निर्माण के लिए किसी और को काम पर रख सकते हैं?

 

क्या आपको वाकई एक एकाउंटेंट की ज़रूरत है या फिर आप टेली सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके खुद ही यह काम कर सकते हैं? 

क्या आपको वाकई एक आईटी विभाग की ज़रूरत है या फिर आप इसे आउटसोर्स कर सकते हैं?

 

क्या आपको वाकई एक पूर्णकालिक सहायता व्यक्ति की ज़रूरत है या फिर आप खुद ही पूछताछ संभाल सकते हैं? 

क्या आपको वाकई खुदरा स्टोर खोलने की ज़रूरत है या आप अपना उत्पाद ऑनलाइन बेच सकते हैं?

 

क्या आपको वाकई फैंसी बिज़नेस कार्ड, लेटरहेड और ब्रोशर की ज़रूरत है या आप इन चीज़ों को छोड़ सकते हैं? 

शायद आप समझ गए होंगे। बड़ा, ज़्यादा महंगा रास्ता अपनाना पड़े, लेकिन अभी नहीं। किफ़ायती होने में कोई बुराई नहीं है। जब हमने अपना पहला उत्पाद लॉन्च किया, तब हमने इसे सस्ते में किया।

 

हमें अपना खुद का कार्यालय नहीं मिला तो हमने दूसरी कंपनी के साथ जगह साझा की। हमें सर्वरों का बैंकअप नहीं मिला, हमारे पास सिर्फ़ एक था।

 

हमने विज्ञापन नहीं किया, हमने अपने अनुभव ऑनलाइन साझा करके प्रचार किया। हमने ग्राहकों के ईमेल का जवाब देने के लिए किसी को काम पर नहीं रखा। कंपनी के संस्थापक ने खुद ही उनका जवाब दिया। और सब कुछ ठीक रहा।

 

महान कंपनियाँ हमेशा गैरेज में शुरू होती हैं। आपकी भी हो सकती है।

 

आह, स्टार्टअप। यह एक खास किस्म की कंपनी है, जिस पर बहुत ध्यान दिया जाता है। खासकर तकनीक की दुनिया में। स्टार्टअप एक जादुई जगह है। यह एक ऐसी जगह है, जहाँ खर्च किसी और की समस्या है।

 

यह एक ऐसी जगह है, जहाँ राजस्व नामक वह कष्टप्रद चीज़ कभी कोई मुद्दा नहीं बनती। यह एक ऐसी जगह है, जहाँ आप दूसरों के पैसे तब तक खर्च कर सकते हैं, जब तक आप अपना खुद का पैसा बनाने का कोई तरीका नहीं निकाल लेते।

 

यह एक ऐसी जगह है, जहाँ व्यवसाय भौतिकी के नियम लागू नहीं होते। इस जादुई जगह की समस्या यह है कि यह एक परी कथा है। मगर सच्चाई यह है कि हर व्यवसाय, नया या पुराना, एक जैसी बाजार की ताकतों और आर्थिक नियमों के द्वारा संचालित होता है। राजस्व आता है, खर्च जाता है। लाभ कमाएँ या खत्म हो जाएँ।

 

स्टार्टअप इस वास्तविकता को अनदेखा करने की कोशिश करते हैं। वे ऐसे लोगों द्वारा चलाए जाते हैं, जो अपरिहार्य को टालने की कोशिश करते हैं यानी वह क्षण जब उनके व्यवसाय को बड़ा होना है, लाभ कमाना है और एक वास्तविक, टिकाऊ व्यवसाय बनना है।

 

किसी भी व्यवसाय के प्रति "हम भविष्य में लाभ कमाने का तरीका खोज लेंगे" वाला रवैया अपनाता है, वह हास्यास्पद है।

 

यह रॉकेट बनाने जैसा है, लेकिन यह कहकर शुरू करना कि "चलो मान लेते हैं कि गुरुत्वाकर्षण मौजूद नहीं है।" लाभ के मार्ग के बिना व्यवसाय व्यवसाय नहीं है, यह एक शौक है।

 

इसलिए स्टार्टअप के विचार को बैसाकी के रूप में इस्तेमाल न करें। इसके बजाय, एक वास्तविक व्यवसाय शुरू करें। वास्तविक व्यवसायों को बिल और पेरोल जैसी वास्तविक चीजों से निपटना पड़ता है। वास्तविक व्यवसाय पहले दिन से ही लाभ के बारे में चिंता करते हैं।

 

वास्तविक व्यवसाय यह कहकर गहरी समस्याओं को नहीं छिपाते हैं, "कोई बात नहीं, हम एक स्टार्टअप हैं।" एक वास्तविक व्यवसाय की तरह काम करें और आपको सफल होने का बेहतर मौका मिले।

 

अमन एवं रवि को सवालों के जबाब मिल गए थे। दोनों को यह भी समझ आ रहा था कि वे लोग क्या गलतियां कर रहे हैं।

 

मूल यक्ष प्रश्न एक उम्रदराज व्यक्ति ने पूछा, “कौन सा उद्यम कैसे किया जाए?”

 

यह बचपन से पिता के बिजनेस से जुड़े मिस्टर सुदेश भाटिया है।

 

भास्कर सर ने बिना लाग लपेट के कहना शुरू किया कि बहुत सारे युवा स्टार्टअप शुरू करना चाहते है, लेकिन अधिकांश लोगों को पता नहीं होता कि उन्हें करना क्या है? कई लोगों के मन में बहुत अस्पष्ट विचार होता है। किसी भी स्टार्टअप का जन्म विचार से ही होता है।

 

हमें स्टार्टअप को भी अपना मानस पुत्र ही मानना चाहिए।

 

महात्मा बुद्ध ने कहा है कि मन सभी वृत्तियों का पुरोगामी है। इसलिए हमें मन की वृत्तियों की समझ होनी चाहिए। आधुनिक मनोविज्ञान यह सब समझने का प्रयास कर रहा है। महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में मन के चार आयामों को माना है- मन, बुद्धि, चित व अहंकार।

 

किसी भी विचार की अनुभूति सबसे पहले चित में होती है, जिसे महर्षि पतंजलि ने चित वृत्ति कहा है। चित की पाँच वृत्तियों का उल्लेख है- प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा व स्मृति। स्टार्टअप के संस्थापक को यह समझना चाहिए कि स्टार्टअप का विचार किस भाव दशा में कौन सी वृत्ति से आया है।

 

उद्यमी को यह समझना चाहिए कि उद्यम का विचार उनके मन में आया है वह किस वृति व कौन सी भाव दशा में आया है। हर उद्यम की शुरुआत एक आइडिया या विचार से होती है।

 

जो स्टार्टअप शुरु करना चाहते है उन्हें सभी लोग उनके आइडिया के बारे में पूछते हैं। सामान्यतः, जो दूसरे की समस्या होती है वह उद्यमी के लिए बिजनेस करने का अवसर या आइडिया होता है।

यह समस्या स्वयं एवं परिवार की या समाज की हो सकती है, जो व्यक्ति जितना संवेदनशील, चेतनावान होता है वह अपने आस-पास की समस्याओं को आसानी से महसूस कर पाता है।

 

आम तौर पर लोग समस्या को देख कर अनदेखा करते है और सोचते है कि इस समस्या का समाधान खोजना उनका काम नहीं है। इस समस्या का समाधान या तो सरकार को खोजना चाहिए या किसी अन्य व्यक्ति को।

 

ऐसे दृष्टिकोण वाले व्यक्ति उद्यमी होने की श्रेणी में नहीं आते है। उद्यमी होने के लिए पहली शर्त है कि जब भी कोई छोटी से छोटी समस्या को देखे तब उसका समाधान खोज कर क्रियान्वित करने की सोचें। वहीं सच्चा उद्यमी रजोगुण प्रधान होता है।

 

बड़े व्यवसाय खड़े हुए है। वह इसी तरह के लोगों द्वारा खड़े किए गए हैं। क़रीब एक दशक पहले सेन फ्रांसिस्कों में किराए के घर में रहने वाले ब्रायन चेस्की, जो गेब्बिया व नाथन ब्लेचारज़िक घर का किराया नहीं दे पा रहे थे एवं खुद खर्च के लिए पैसा नहीं होता था। तीनों को अपने एयर मैड्रेस किराये पर देकर खर्च निकालने का आइडिया आया और इसने तीस बिलियन डालर की कंपनी बना दी, जिसका नाम एयर बीएनबी है। इस छोटे से विचार से उत्पन्न कम्पनी आज दो सौ बीस देशों में काम करती है।

 

कोरोना काल में जब लोगों के कारोबार डूब रहे थे और धंघे चौपट हो रहे थे, तब कैवल्य वोहरा एवं आदित पलीचा को खाना, किराना व अन्य जरूरी सामान लोगो के घरों में दस मिनट में पहुँचने का विचार आया। इसी विचार से जेप्टो कम्पनी की शुरुआत हुई जो आज करोड़ों डॉलर के वेल्यूएशन वाली कंपनी बन गई है।

 

इस विचार के कारण ही भारत में क्विक कॉमर्स कम्पनियों का जन्म हुआ। इसी तरह नौकरी डॉट काम की शुरुआत संजीव बिखचंदानी ने की जिसके बाद हमारे देश में स्टार्टअप कल्ट की शुरुआत हुई। फणींद्र शर्मा एवं उनके दोस्तों ने बस के टिकिट ऑनलाइन बेचने के विचार पर रेडबस डाँट कॉम की शुरुआत की।

 

इसी तरह आर्देशिर गोदरेज को मुम्बई में चोरियां बढ़ने की खबर अखबार में पढ़कर ताला बनाने का विचार आया तब उन्होंने एक छोटी सी जगह में ताला बनाने की गोदरेज कम्पनी की शुरुआत की, जो आज अनेक देशों में व्यापार कर रही है। ऐसी कहानियां हर कम्पनी के बारे में उपलब्ध है जिन्हें जानकार लगेगा कि केवल एक व्यक्ति की समस्या से भी बहुत बड़ा उद्यम खड़ा हो सकता है।

 

प्रश्न यह है व्यक्ति कैसे जाने कि कौन सा विचार आप के लिए सही है, जिस पर काम कर आप अपना कारोबार प्रारंभ कर सकते है। इसका सीधा सरल जवाब है कि विचार से जिस समस्या का समाधान करना चाहते है तो उसके लिए क्या लोग भुग़तान करने को तैयार है?

 

यदि हाँ तो आप सही रास्ते पर है और आप का विचार “बहुत अच्छा” है। इसके लिए आप अपनी पढ़ाई व नौकरी छोड़कर अपनी बचत का निवेश कर सकते है, लेकिन इस विचार को उद्यम में बदलने के लिए निम्न क़दम उठाना आवश्यक हैं:-


पहला कदम है कि वास्तविक समस्या की पहचान जब आप अपनी स्वयं के “भोगा हुआ यथार्थ” के समाधान के लिए कोई विचार विकसित करते है तब वह समस्या वास्तविक समस्या ही होती है। स्टार्टअप शुरू करने वाला दिन में स्वप्न नहीं देख रहा होता है।

 

ऐसे कई उदाहरण है जैसे मेलिना पर्किन्स ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी में पार्ट टाइम पढ़ाने का काम करती थी उन्हें बच्चों को “डिज़ाइन सॉफ्टवेयर सिखाना” था। उस समय उपलब्ध सॉफ्टवेयर बहुत महँगे तथा जटिल थे। उनके मन में एक विचार आया कि क्या एक ऐसा साफ्टवेयर तैयार किया जाना चाहिए जो किसी भी बिना डिज़ाइन सीखे व्यक्ति को डिज़ाइन बनाना सिखा सके। 

इसी विचार से कैनवा का जन्म हुआ, जिसका इस दौर में सभी लोग आसानी से उपयोग करते है, लेकिन ऐसे बहुत उद्यम है जो पर्यात फण्डिंग होने के बावजूद भी असफल हो गये। इनमें बायजू, फूड पान्डा, फ्रीचार्ज, दूधवाला एवं डील शेयर शामिल है। आईबीएम के एक अध्ययन के अनुसार भारत में शुरू होने वाले स्टार्टअप में से नब्बे प्रतिशत विफल हो जाते है।

 

अमेरिका के एक इन्वेस्टर विल ग्रोस ने अपने टेड टॉक में बताया कि स्टार्टअप की सफलता सही समय पर 42%, टीम व कियान्वयन पर 32% आइडिया पर 28% बिज़नस मॉडल्स पर 24% तथा फडिंग पर 14% निर्भर होती है।

 

दूसरा कदम- अपने लक्षित ग्राहकों को परिभाषित करना। यदि आपके पास एक “बहुत अच्छा” विचार है तो दूसरा चरण यह है कि आप अपने लक्षित ग्राहकों की पहचान करें।

जब उद्यमी किसी विचार से प्यार करने लगता है तब लगता कि हर कोई उत्पाद या सेवा खरीदना चाहेगा, लेकिन यह सच नहीं होता है। जैसे भारत में कोई उद्यम जब शुरु करता है या कोई बहुराष्ट्रीय कम्पनी अपने उत्पाद बेचना चाहते है तो आम तौर पर भारत की एक सौ बयालीस करोड़ जनसंख्या को उपभोक्ता बताते है।

 

यह किसी भी तरह से सच नहीं होता है। कोई आपका उत्पाद या सेवा तभी ख़रीदेगा जब वह उसकी किसी ज़रूरत या समस्या की पूर्ति करती है।

दूसरा उसकी क्रय शक्ति मूल्य चुकाने की हो। तीसरा वह उसकी पहुँच में उपलब्ध हो, इस पर अन्य कारकों के प्रभाव का आंकलन कर “कुल बाज़ार” के आकार की गणना की जाना चाहिए।

 

तीसरा कदम- प्रतिस्पर्धा का विश्लेषण करना। यदि कोई व्यक्ति यह मानता है कि उसका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है तो यह ग़लत मान्यता है। यदि कोई समस्या है तो कोई किसी न किसी तरह का समाधान उपलब्ध करवा रहा होगा।

 

कोई भी प्रतिस्पर्धी की नक़ल कर सफल नहीं हों सकते। समस्या के मौजूदा सभी समाधान उपलब्ध करवाने वाली कम्पनियों के बिज़नेस मॉडलों को समझना होगा और गैप को पहचान कर बेहतर समाधान उपलब्ध कराने की कोशिश करना चाहिए।

 

स्टार्टअप किसी दूसरे देश या किसी अन्य सेक्टर के आईडिया की नक़ल कर सफल नहीं हो सकते। जैसे कृषि क्षेत्र में कृषि सप्लाई चैन को समझें बिना जिन्होंने एग्रोटेक फ़िलिप कार्ट या अमेजन कम्पनियों की नक़ल का स्टार्टअप शुरू किए था। वे बन्द हो गए या बहुत अधिक घाटा उठाकर चल रहें है। 

अधिकांश प्रदेशों में कारोबार बंद कर दिया हैं तथा अनेक वर्टिकल्स बंदकर कर्मचारियों की छंटनी कर दी है, क्योंकि इन लोगों को लगा कि वह फ़ीडिंग की दम पर कम क़ीमत पर माल बेचकर पूर्व की सप्लाई चैन को तोड़ देंगे, लेकिन करोड़ों करोड़ रुपए बर्बाद करने के बाद भी सफल नहीं हो सके, क्योंकि जितना मार्जिन इलेक्ट्रॉनिक, फ़ैशन एवं सौंदर्य प्रसाधन के सामान में है उतना मार्जिन कृषि आदान के उत्पादों में नहीं है।

 

कृषि उत्पादक बेचने के मण्डियों के विकल्प के तौर पर विकसित ई-कॉमर्स ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म सफल नहीं हो पा रहे है, क्योंकि हमारे देश के अधिकांश किसान लघु एवं सीमांत श्रेणी के है। यह बहुत कम मात्रा में कृषि आदान क्रय करते है एवं उनका उत्पाद भी बहुत कम मात्रा में होता है तथा इसकी गुणवत्ता भी अलग-अलग होती है। इन कारणों के कारण कोई भी एग्रीटेक स्टार्टअप सही विकल्प प्रस्तुत करने में सफल नहीं हो सका है।

 

चौथा कदम- बाज़ार में अवसरों की तलाश। जब अपने लक्षित ग्राहकों के आधार पर बाज़ार के आकार का आंकलन कर लेते हैं तब आपको यह समझना होगा कि इस लक्षित बाज़ार के कितने प्रतिशत लोगों को आकर्षित कर सकते हैं और अपने व सेवाओं को बेच सकते है।

 

इसके लिए उपभोक्ताओं के व्यवहार को समझना चाहिए। अर्ली एडेप्टर उपभोक्ताओं की पहचान कर शुरू में उन्हें टार्गेट किया जाना चाहिए, फिर फ़ॉलोअर को। अपने बिज़नेस मॉडल में बदलाव के लिए शुरू से ही आँकड़ों का विश्लेषण कर स्टार्टअप की स्थिरता बड़ा कर लाभ को बढ़ा सकते हैं।

 

पाँचवा कदम- प्रोडक्ट मार्केट फ़िट की तलाश। प्रारंभ से ही बहुत बड़ी लागत लगाकर काम शुरू करने के स्थान पर आईडिया को छोटे स्तर पर टेस्ट कर प्रोडक्ट मार्केट फ़िट की तलाश करनी चाहिए। ग्राहकों की संख्या विस्तार करना एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। ग्राहकों के दर्द के बिन्दुओं को समझने के लिए प्रारंभिक ग्राहकों का फ़ीडबैक लेना चाहिए।

 

कोविड के समय एडटेक स्टार्टअप एवं ई-कॉमर्स स्टार्टअप ने बहुत निवेश उठाकर बहुत व्यापक स्तर पर काम शुरू किया। उम्मीद थी कि वे ग्राहकों की आदतों को बदल में सफल होंगे, लेकिन लॉक डाउन ख़त्म होने पर ग्राहक अपनी पुरानी आदत के अनुसार आफलाइन चले गये। प्रोडक्ट मार्केट फ़िट को सस्ते में बेच कर नहीं परखा जा सकता है।

 

छटवॉ क़दम- परिवर्तन, परिवर्धन व पुनरावृत्ति। डिजिटल युग में मार्केट इंटेलीजेंस एवं ग्राहकों की प्रतिक्रिया के आँकड़ों को एकत्र करना, विश्लेषण करना एवं आगे के अनुमान लगाने के लिए बहुत सारे टूल्स उपलब्ध है।

 

इसलिए स्टार्टअप को शुरू से ही अपनी ताक़त और अवसरों को पहचानें, कमज़ोरियों व जोखिमों को कम करने के लिए आंकड़ों पर नज़र रखने के साथ प्रतिद्वंद्वि की रणनीति एवं नई टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए स्टार्टअप को बहुत लचीलापन अपनाने की कोशिश करना चाहिए। बाज़ार में क्या चलेगा और क्या नहीं, परीक्षण एवं तुष्टियों को खोजने की प्रवृत्ति आप की सफलता की सम्भावना को बढ़ा देती है।

 

स्टार्टअप हमेशा से अनिश्चितता से भरा होता है, जिसमें निरंतर ऊपर-नीचे जाने का खेल चलता रहता है। प्रतिदिन नई चुनौतियों का सामना करना, टीम को उत्साहित रखना, समस्याओं का समाधान निकलना व्यक्ति को लीडर बनाता है।

 

असफलताओं एवं नकार को सीखने एवं अनुभव लेने की प्रक्रिया समझना एवं पैसे का धोखा खाने को सीखने की क़ीमत जानना हमेशा सकारात्मक रखता है।

 

यदि कोई विचार सम्पूर्ण प्रयास करने के बाद भी बाज़ार में सफल नहीं हो पा रहा है तो उस आइडिया को होल्ड पर डाल दें या छोड़कर कुछ और करें। हमारे देश में भगवान विष्णु का एक चित्र हर घर में होता है जिसमें वह क्षीर सागर में शेषनाग के उपर शांति से लेटे है तथा सर्प के हज़ार सिर उनके सिर के ऊपर है तथा लक्ष्मी पाँव दबा रही हैं। इसका अर्थ है कि स्टार्टअप का संस्थापक बाज़ार की उथल-पुथल में हज़ार समस्याओं में शांति से अपने काम को करना जारी रखेगा तो सफलता उसके कदम चूमेगी। एक स्टार्टअप संस्थापक को हरफ़नमौला बनाना पड़ता है।


                             

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इंटरप्रेन्योर

महिने का अंतिम सप्ताह आ गया था। अमन और रवि महीने के बिल चुकाने के लिये बहुत परेशान थे। दो महीने पहले एक इन्वेस्टर को पिच डेक बनाकर भेजा था। आगामी सप्ताह इन्वेस्टर की टीम इन दोनों से पहला डिस्कशन करने आने वाले थे। 

इसलिए अमन ने भास्कर सर से सवाल किया- “इंटरप्रेन्योर को मन शांत रखने के साधन क्या है?”

 

भास्कर सर ने बताया कि उद्यमी को मनोविज्ञान की समझ होनी आवश्यक है, क्योंकि स्टार्टअप इंटरप्रेन्योर के जीवन में इतने ज़्यादा उतार-चढ़ाव होते है तथा स्टार्टअप और जीवन में अंतर न रख पाने के कारण मन को प्रभावित होने से बचा नहीं पाता है। कभी-कभी किसी इंटरप्रेन्योर का मन पर नियंत्रण समाप्त हो जाने पर भयानक परिणाम होते है। 

इसी विषय पर चौबीसों घन्टा सोचता रहता है। विषयों का चिन्तन करने वाले मनुष्यों की उन विषयों में आसक्ति पैदा हो जाती है। आसक्ति से कामना पैदा होती है। कामना से क्रोध पैदा होता है। क्रोध होने पर सम्मोह मूढ़भाव हो जाता है। सम्मोह से स्मृति भ्रष्ट हो जाती है। स्मृति भ्रष्ट होने पर बुद्धि का नाश हो जाता है। बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य का पतन हो जाता है।

 

बायजू स्टार्टअप की कहानी इस प्रक्रिया का जीता जागता उदाहरण है। आदमी का केवल उसका चेतन मन ही नहीं है बल्कि उसके पास नौ गुना अवचेतन मन भी है। इसलिए हमारी अनुभूतियाँ, विचार एवं निर्णय अवचेतन मन से प्रभावित होते है। मन को शांत रखने के लिए महर्षि पतंजलि ने ‘अभ्यासवैराग्याअभ्यांतन्निरोधः’ अभ्यास एवं वैराग्य के सतत अभ्यास से मन शांत रखा जा सकता है।

 

इसलिए स्टार्टअप के संस्थापक को स्वयं एवं स्टार्टअप को अलग समझने के लिए अभ्यास करना चाहिए, जिससे उनकी आसक्ति कम हो जाती है। वैराग्य भाव बढ़ने से कम्पनी अधिक कुशलता से चला सकते है। वैराग्य का आशय आलसीपन नहीं है बल्कि इसका मतलब है अनासक्ति।

 

स्टार्टअप से अनासक्ति का भाव अवचेतन तक ले जाने के लिए सतत अभ्यास की आवश्यकता है। इस बात की बुद्धिगत समझ काम नहीं आती है। हर स्टार्टअप शुरू करने वाला यह अच्छे से समझता है कि स्टार्टअप उससे है वह स्टार्टअप से नहीं है, लेकिन जब कम्पनी में गड़बड़ होती है तब यह समझ ग़ायब हो जाती है। इंटरप्रेन्योर का दिमाग़ हमेशा सोचता रहता, नींद नहीं आती, खाना नहीं पचता, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता एवं हार्मोन की गड़बड़ी होने से धीरे-धीरे अवसाद में चला जाता है।

 

भास्कर सर ने बताया कि अनासक्ति चेतन मन के तल पर तो समझ रहा है, लेकिन अवचेतन मन के तल पर यह समझ नहीं होतीं है। कोई विचार अवचेतन का हिस्सा तभी बनता है, जबकि वह निरंतर दुहराया गया हो। यदि आप किसी भीड़ वाली जगह में कितनी गहरी नींद में सो रहे हो और कोई आप का नाम पुकारे तो आप जाग जाते है, जबकि दूसरे गहरी नींद में सो रहे होते है।

 

इसलिए सैनिक एवं खिलाड़ी निरंतर अभ्यास करते है। जब हम तैरना, साइकिल चलाना या गाड़ी चलाना सीख लेते है तब फिर मसल मेमोरी से ही कर पाते है। कम्पनियाँ लगातार विज्ञापन दिखातीं है, क्योंकि विज्ञापन से वह प्रोडक्ट आपके अवचेतन का हिस्सा बन जाता है। जब उपभोक्ता ख़रीदारी करने जाता है तब वहीं प्रोडक्ट उठाकर लाता है, क्योंकि जब कोई याददाश्त बन जाती है तो उसे नष्ट नहीं किया जा सकता है।

 

इसलिए योग परंपरा में अभ्यास पर इतना ज़ोर दिया गया है। मन को शांत रखने के लिए स्टार्टअप संस्थापक को स्वस्थ व सफल होने के लिए यह अभ्यास आवश्यक है।

 

रवि को भास्कर जी की बातें सुन कर भर्तृहरि की कहानी याद हो आई कि किस तरह प्रांरभ में गुरु के सानिध्य में योग अभ्यास किया था।

 

मनोज गोयल इंदौर के सफल व्यापारी ने भास्कर जी से पूछा, “व्यापार में क्या सफलता की कोई समय सीमा है?”

 

भास्कर सर ने गोयल की तरफ देखा कर हंसते हुए पूछा, “क्या आप भी निश्चित नहीं है।”

 

गोयल ने सर हिला कर हामी भरी तो भास्कर सर ने कहना शुरू किया कि जीवन में कौन सफल नहीं होना चाहता? 

हर व्यक्ति अपनी श्रद्धा अनुसार काम करता है और वह जो काम करता है उसमें सफल होना चाहता है। मैने अति प्रभावशाली लोगों के जीवन का अध्ययन कर आदतें चिन्हित की है जो सफलता के लिए आवश्यक है- किसी भी परिस्थिति के नियंत्रण में रहने की बजाय हमें परिस्थितियों को नियंत्रित करना चाहिए। स्वयं निर्धारण, चुनाव और निर्णय लेने की क्षमता ही परिस्थितियों और हालात परिस्थिति और हालात को सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर सकती है।

 

अंत को ध्यान में रख कर शुरुआत करें, कठोपनिषद में यम और नचिकेता के संवाद में यम नें  जीवन जीने के लिए  श्रेय व प्रेय मार्ग का उल्लेख किया है। श्रेय मार्ग में शुरू में कष्ट होता है, लेकिन अंत सुखद होता है। प्रेय मार्ग में शुरुआत सुखद होती है, लेकिन अंत कष्टप्रद होता है।

अंत को ध्यान में रखकर निर्णय लेने की इस आदत को लीडरशिप की आदत कहते हैं जिसमें हमारा ख़ुद पर स्वयं का नियंत्रण होना चाहिए। हमेशा लक्ष्य पर ध्यान होने से सफलता हासिल कर पाते है।

सबके पास समय सीमित है। स्वयं को प्रभावशाली बनाने के लिए कठोरता से अनुशासित करना आवश्यक है ताकि दिन प्रतिदिन की प्राथमिकताएं पूर्ण हो सके। फायदे का सौदा विन-विन वाली सोच हमेशा जीत के बारे में ही सोचे व प्रतिबद्ध रहे, जो दोनों तरफ़ से सन्तोषजनक एवं लाभकारी हो।

किसी को सलाह, सुझाव और समाधान देने से पहले दूसरे इंसान के साथ प्रभावी तरीके से बातचीत करें, जिससे हम उनका परिप्रेक्ष्य  को ध्यान से सुने और समझे। संचार विशेषज्ञ बताते है कि बातचीत में हम 10% संवाद शब्दों से, 30% आवाज़ के उतार-चढ़ाव से तथा 60% बॉडी लैंग्वेज से करते है। इसलिए बौद्ध व जैन धर्म में सम्यक श्रवण पर ज़ोर दिया है।

दूसरों के मूल्यों को समझने के लिए हमें तालमेल रखना होता है, जो व्यक्ति को नई संभावनाएं, खुलापन और रचनात्मकता का अवसर देती है। तालमेल नए विकल्प और नई संभावनाओं का सृजन करती है। यह हमें अनुमति देते हैं कि पुराने तरीकों को भूलकर नए विचारों पर काम करें।

 

प्रभावी बनने के लिए हमें खुद को शारीरिक, आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक रूप से बदलना होता है तथा जब हम खुद को निरंतर बदलने की अनुमति देते है तब जाकर हम सारी आदतों को अच्छे तालमेल के साथ अभ्यास कर पाते हैं। विघ्नों में रहकर नाम करना। सफलता का कोई शार्टकट नहीं होता है।

 

महर्षि पतंजलि कहते है, “सफलता उनके निकटतम होती है, जिनके प्रयास तीव्र, प्रगाढ़ व सच्चे होते है।“

 

योग सूत्र में सफलता के चार स्तम्भ बताएँ हैं- श्रद्धा-विश्वास, वीर्य-जोश, ऊर्जा स्मृति-याददाश्त व प्रज्ञा-जागरूकता। सफल होने के लिए लम्बी अवधि तक उत्साह व विश्वास के साथ काम करते रहना होगा।

 

प्रयास की तीव्रता जितनी ज़्यादा होगी सफलता उतनी जल्दी मिलेगी। यह समय की लम्बाई का प्रश्न न होकर प्रयास की गहराई का है। मन की मत सुनो, मन प्रारम्भ में विरोध करेगा। इसलिए श्रद्धा भरी निष्ठा के साथ काम करना चाहिए। बिना निष्ठा के कोई परिणाम नहीं आयेगा।

 

प्रयास तीन तरह के होते है- मृदु, मध्य व तीव्र, जो प्रयास जिस गति का होगा फल आने में उतना समय लगेगा।

  

यदि सफल होना चाहते है तो व्यक्ति को मनसा, वाचा व कर्मणा एक लाइन में फ़ोकस रखकर कार्य करने की कोशिश करना चाहिए, क्योंकि हमारी चेतना सीमित है। पूर्ण फ़ोकस चाहिए, जिन लोगों के पास प्लान बी होता है उनकी सफलता शीघ्र नहीं आतीं। मल्टीटास्किंग की आदत से साथ काम करना उत्पादक नहीं हो सकता, जो व्यक्ति जिज्ञासा या कौतुहल बस काम शुरू करते है उनके प्रयास मृदु होते है, जो व्यक्ति मुमुक्षु है वे प्रथम श्रेणी के व्यक्तियों से अच्छे होते है, लेकिन उनके प्रयास मध्यम श्रेणी के ही होते है। पूर्ण समर्पित शिष्य श्रेणी के व्यक्ति होते है, जो तीव्र प्रयास करते है। श्रम की पराकाष्ठा तक मेहनत करते है।

 

ये बहुत फ़ोकस होते है लोग ऐसे व्यक्तियों को पागल समझते है। ऐसे कई स्टार्टअप के संस्थापक है, जिन लोगों ने अच्छी टीम बनाई है वेनचर केप्टलिस्ट से इन्वेस्टमेंट उठाया हैं और पूर्ण समर्पण से काम कर रहे है।

 

रवि न पूछा कि "क्या बिजनेस प्लान बनाना आवशयक है?"

 

भास्कर सर ने बताया जब तक आप भविष्यवक्ता नहीं हैं, तब तक आपका बिजिनेस प्लान एक कल्पना है। ऐसे बहुत से कारक हैं जो आपके हाथ से बाहर हैं जैसे  बाजार की स्थिति, प्रतिस्पर्धी, ग्राहक, अर्थव्यवस्था।

 

बिजनेस प्लान लिखने से लगता है कि चीज़ों पर नियंत्रण कर सकते हैं, जिन्हें वास्तव में नियंत्रित नहीं कर सकते। न हम बिजनेस प्लान को वही कहें जो वे वास्तव में हैं: अनुमान।

बिजनेस प्लान एक व्यावसायिक अनुमान है। बिजनेस प्लान, वित्तीय अनुमान और रणनीतिक का अनुमान कहना शुरू करें। इस बारे में ज़्यादा चिंता करना बंद कर सकते हैं। बिजनेस प्लान तनाव के लायक नहीं हैं।

 

जब अनुमानों को योजनाओं में बदल देते हैं, तब खतरे के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। योजनाएँ अतीत को भविष्य का मार्ग दिखा देती हैं और अंधा बना देती हैं।

 

"हम वहीं जा रहे हैं, जहां जाने का हमने प्लान किया था।" और यही समस्या है। दुनिया निरंतर बदल रही है। फिर बिजनेस प्लान बिना बदलाव के नहीं रह सकता। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। बिजनेस प्लान सुधार के बिना असंगत हैं और इंटरप्रेन्योर को सुधार करने में सक्षम होना चाहिए।

 

अवसरों को पहचानने में सक्षम होना चाहिए। कभी यह कहने की ज़रूरत होती है, "हम एक नई दिशा में जा रहे हैं क्योंकि आज यही सही है।"

 

लंबे समय के बिजनेस प्लान का समय भी गड़बड़ है। जब कुछ कर रहे होते हैं तब सबसे ज़्यादा जानकारी होती है, न कि इसे करने से पहले।

 

अमन ने पूछा कि “बिजनेस प्लान कब लिखते हैं?”

 

भास्कर सर ने बताया — “आमतौर पर यह तब होता है जब आप शुरू भी नहीं करते। यह कोई बड़ा फैसला लेने का सबसे खराब समय होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहिए या यह नहीं सोचना चाहिए कि आने वाली बाधाओं से कैसे निपट सकते हैं।

 

यह एक सार्थक अभ्यास है। बस यह न सोचें कि इसे लिखने की ज़रूरत है या इसके बारे में जुनूनी होना चाहिए। अगर कोई बड़ा बिजनेस प्लान लिखते हैं तो शायद ही इसे कभी देखेंगे। कुछ पन्नों से ज़्यादा लंबा बिजनेस प्लान फ़ाइल कैबिनेट में जीवाश्म बनकर रह जाता हैं।

 

अनुमान लगाना छोड़ दें। तय करें कि इस साल नहीं बल्कि इस हफ़्ते क्या करने जा रहे हैं।

अगली सबसे महत्वपूर्ण चीज़ का पता लगाएँ और उसे करें। कुछ करने से ठीक पहले निर्णय लें।

बिना सोचे समझे निर्णय लेना ठीक है। इसे इस तरह समझे कि उठे विमान में चढ़ें और चले जाएँ। पहुँचने के बाद एक अच्छी शर्ट, शेविंग क्रीम और टूथब्रश खरीद सकते हैं।

 

बिना बिजनेस प्लान के काम करना डरावना लग सकता है, लेकिन बिना किसी बिजनेस प्लान के आँख मूंदकर पालन करना जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।” 

एक और बात जो आप इन्वेस्टर से अक्सर सुनते हैं:— "आपका एक्सिट प्लान या बाहर निकलने की रणनीति क्या है?"

 

इसे तब सुनते हैं जब अभी शुरुआत ही कर रहे हों। ऐसे लोगों के साथ क्या होता है जो बिना यह जाने कि वे इसे कैसे छोड़ेंगे, कुछ बनाना भी शुरू नहीं कर सकते? जल्दी क्या है?

यदि इसमें उतरने से पहले ही बाहर निकलने के बारे में सोच रहे हैं तो प्राथमिकताएँ गड़बड़ा गई हैं।

 

क्या आप ब्रेकअप की योजना बनाते हुए किसी रिश्ते में प्रवेश करेंगे?

 

क्या आप पहली डेट पर एग्रीमेंट लिखेंगे?

 

क्या आप अपनी शादी की सुबह तलाक के वकील से मिलेंगे?

 

यह हास्यास्पद होगा, है न?

 

प्रतिबद्धता की रणनीति की जरूरत है, बाहर निकलने की रणनीति की नहीं।

 

इस बारे में सोचना चाहिए कि स्टार्टअप को कैसे आगे बढ़ाएँ और सफल बनाएँ, न कि आप कैसे जहाज से कूदने जा रहे हैं।

 

पूरी रणनीति छोड़ने पर आधारित है। संभावना है कि पहले स्थान से बहुत आगे नहीं बढ़ पाएँगे।

बहुत से महत्वाकांक्षी व्यवसायियों को अपनी उम्मीदें बेचने पर टिके होते है। मगर अधिग्रहण की संभावना बहुत कम है। इस बात की बहुत कम उम्मीद है कि कोई बड़ा दावेदार आए और यह सब सार्थक बना दे।

 

साथ ही, जब अधिग्रहित होने के इरादे से कोई कंपनी बनाते हैं, तब गलत चीजों पर जोर देते हैं। ग्राहकों को इंटरप्रेन्योर से प्यार करवाने पर ध्यान देने के बजाय इस बात की चिंता करते हैं कि प्रोडक्ट कौन खरीदेगा।

 

इस पर ध्यान देना गलत है। और मान लीजिए कि इस सलाह को अनदेखा करते हैं और एक फ्लिप करते हैं। अपना व्यवसाय बनाते हैं, इसे बेचते हैं और एक अच्छा वेतन प्राप्त करते हैं। 

फिर क्या? 

एक द्वीप पर चले जाते हैं और पूरे दिन कोला पीते हैं?

 

क्या यह वास्तव में आपको संतुष्ट करेगा?

 

क्या केवल पैसा ही आपको वास्तव में खुश कर देगा?

 

क्या स्वयं पर यकीन है कि उस व्यवसाय को चलाने से ज़्यादा इसे पसंद करेंगे जिसका वास्तव में आनंद लेते हैं और जिस पर विश्वास करते हैं?

 

यही कारण है कि अक्सर ऐसे स्टार्टअप मालिकों के बारे में सुनते हैं, जो बेच देते हैं। फिर छह महीने के लिए रिटायर हो जाते हैं और वापस खेल में आ जाते हैं। ऐसे इंटर्नप्रन्योर उस चीज़ को याद करते हैं जो उन्होंने दी थी।

 

आमतौर पर ऐसे लोग जिस व्यवसाय के साथ वापस आते हैं, जो उनके पहले व्यवसाय जितना अच्छा नहीं होता। कोई अच्छी चीज़ शुरू करने में कामयाब हो जाते हैं, तो उसे जारी रखो। अच्छी चीज़ें अक्सर नहीं मिलतीं। अपने व्यवसाय को ऐसा मत बनने दो जो हाथ से निकल जाए।

 

अमन तथा रवि को दिशा मिल रही थी। दोनों ने भास्कर सर के अनुभव पर काम करना भी शुरू कर दिया था।

 

इन्वेस्टर की टीम के सामने इन दोनों का प्रदर्शन बहुत अच्छा था। टीम के लोग इनके काम तथा जज्बे को देखकर बहुत आकर्षित हुए। अगली मीटिंग इन्वेस्टर के आफिस में करने के लिए दिन तथा समय फ़ोन पर बताने का कहा। बहुत दिन बाद किसी इन्वेस्टर की टीम से इतनी सकारात्मक मीटिंग हुई थी।

 

अभी तक इनवेस्टर के ऑफिस में होने वाली मीटिंग का दिन तथा समय निश्चित नहीं हुआ था, लेकिन दोनों के मन में शंका होने लगी। इसलिए रवि ने भास्कर सर से पूछा — “सफलता में बाधाएँ क्या है?”

 

भास्कर सर ने कहा कि यह बहुत रिलेवेंट सवाल है। उन्होंने बताया कि जब कोई इंटरप्रेन्योर स्टार्टअप शुरू करता है तब प्रारंभ में स्टार्टअप पूर्ण रूप से संस्थापक पर ही निर्भर करता है। लक्ष्य अभी बहुत दूर है और रास्ता लम्बा है। शुरू में संसाधन बहुत सीमित होते है और समस्याओं का अम्बार होता है। टीम नहीं होने से संस्थापक हमेशा अकेलापन महसूस करता है। इसलिए संस्थापक की स्थिति का प्रभाव संस्था पर बहुत अधिक होता है। 

महर्षि पतंजलि ने सफलता की बाधाओं को चिन्हित किया है -

 

व्याधि- इंटरप्रेन्योर कई वार “वर्क लाईफ़ बैलेंस” न कर पाने से उनकी शरीर की ऊर्जा की प्राकृतिक लय बिगड़ जाती है तब वह बीमार हो जाता है। अपने मनोभावों एवं भावनाओं पर नियंत्रण न रख पाने के कारण इसका प्रभाव काम पर पड़ता है। “वर्क लाईफ़ बैलेंस” पर इन्फ़ोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने हाल ही में प्रति सप्ताह सत्तर घन्टे काम करने की बहस पर बोलते हुए कहा कि “वर्क लाईफ़ बैलेंस” में विश्वास नहीं करते है और इस देश में हमें कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है। हार्ड वर्क का कोई विकल्प नहीं है। 

सोशल मीडिया पर यह बहस बहुत मज़ेदार हो गई है, जो लोग संस्थापक है वे तो मूर्ति का समर्थन कर रहे है और जो कर्मचारी है वे पाँच दिन के सप्ताह की वकालत कर रहे है।

 

गौतम अड़ानी एवं आनंद महेंद्रा जैसे कुछ लोगों का कहना है कि “वर्क लाईफ़ बैलेंस” बहुत व्यक्तिपरक विषय है जिसे किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए। यदि किसी को उनके किसी काम में आनंद आता है तो “वर्क लाईफ़ बैलेंस” है। संतुलन व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर है। प्रश्न समय का नहीं है बल्कि व्यक्ति की उत्पादकता का है।

 

स्त्यान - धैय की कमी संकेत है कि इंटरप्रेन्योर की ऊर्जा बहुत निम्न तल पर है। महर्षि पतंजलि के समय “प्राण ऊर्जा” के सिद्धांत का जन्म हुआ। प्राण ऊर्जा या देह ऊर्जा मानव शरीर में निरंतर घूमती रहती है। शरीर की ऊर्जा में गड़बड़ी होने पर धैर्य की कमी हो जाती है। 

इंटरप्रेन्योर बैचेन रहता है। इसलिए इंटरप्रेन्योर की ऊर्जा हमेशा उच्च रहनीं चाहिए तभी वह संतुलित सोच विचार कर निर्णय ले सकता है। टीम को प्रोत्साहित कर सकता है तथा दैनिक समस्याओं का हल निकाल सकता है।

 

निम्न ऊर्जा के कारण इंटरप्रेन्योर हमेशा केवल बड़ी बातें भर करता है और कुछ करके नहीं दिखा पाता। निर्धारित लक्ष्यों से पिछड़ जाने के कारण नकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित करता है। ऐसे व्यक्ति ध्यान कर अपनी ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल सकते है।

 

संशय - अनिर्णय की स्थिति में इंटरप्रेन्योर संदिग्ध दृष्टि से स्टार्टअप को देखने लगता है। भरोसे व आस्था पर शंका होने पर सफलता पर प्रभाव पड़ता है। संशयात्मा के लिए न तो इस लोक में, न ही परलोक में कोई सुख है। ऐसे इंटरप्रेन्योर निश्चिय युक्त नहीं होते है।

 

यह करना है या नहीं करने के निर्णय का कारण विश्लेषण पक्षाघात “एनालिसिस पेरालिसिस” का शिकार हो जाते है। समय पर निर्णय न होने के कारण यह लक्ष्य से चूक जाते है। इंटरप्रेन्योर को स्टार्टअप शुरू कर लेने के बाद संशय में नहीं होना चाहिए।

 

जब इंटरप्रेन्योर संशय में होता है तब अपनी चेतना की ऊर्जा देने लगता है और अनिश्चितता बहुत बिगड़ती जाती है। यदि वह निर्णय नहीं ले पा रहा है तो वह काम कैसे कर सकता है।

 

इस अवस्था से बाहर आने के लिए बड़े लक्ष्यों को छोटे लक्ष्यों में विभाजित करना, कामों की प्राथमिकता सूची बनाना, टीम के सदस्यों की राय लेना चाहिए। अपनी सहज प्रतिक्रिया गट फ़ीलिंग को अति महत्व न देना तथा यह मान कर चलना कि कोई सर्वोत्तम निर्णय नहीं होता, केवल सीखने के अवसर होते है। संशय कुत्ते की भाँति पीछे आता ही है यदि हम ध्यान न दें तो समाप्त हो जाता है।

 

प्रमाद - असावधानी की अवस्था नींद में चलने जैसी होती है। इंटरप्रेन्योर अनेक वार अपने विचार से सम्मोहन ग्रस्त हो जाने पर सचेत नहीं रह पाता है। जैसे आज कल स्टार्टअप का टीवी, रेडियो, अख़बार, फ़िल्म व सोशल मीडिया पर इतना रोमांटिक तरीक़े से प्रचारित किया जा रहा है कि हर कोई स्टार्टअप शुरू कर इंटरप्रेन्योर बनना चाहता है।

 

इसलिए आजकल हर दस में से नौ स्टार्टअप तीन साल के अंदर बंद हो जाते है। यदि सम्मोहनवश स्टार्टअप शुरू कर दिया तो कुछ दिन बाद दिन प्रतिदिन की चुनौतियों के कारण काम करने में मन नहीं लगता है।

 

यदि तुम लगे भी रहते हो तो कुछ प्राप्ति नहीं होती है। हृदय में आलस्य बैठ जाता है। आलस्य का अर्थ है कि तुमने जीवन के प्रति उत्साह खो दिया है। इंटरप्रेन्योर की उत्सुकता, ऊर्जा व उत्साह बच्चों जैसी होना चाहिए। लेकिन इंटरप्रेन्योर के मन में बहुत सारे नकार, असफलताओं और हताशाओं की परते जम जाने से प्रमाद बढ़ जाता है, जो असफलता को लाता है।

 

अविरति - विषयासक्ति इंटरप्रेन्योर में एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में सामने आती है। इंटरप्रेन्योर कई बार अजीब तरीके से फ़र्ज़ी अकाउंट बनाते है। फ़र्ज़ी ग्रोथ दिखाते हैं। अपनी जीवनशैली बहुत लक्ज़री व आलीशान बनाने के लिए अनाप-शनाप खर्च करते है। फण्ड की हेराफेरी करते है।

 

सहकर्मियों से ग़ैरक़ानूनी सम्बन्ध बनाते है और न जाने कितनी तरह की व्यभिचार की कहानियाँ आये दिन मीडिया में रहतीं है। 

गूगल को-फाउंडर की पत्नी निकोल शनाहन की कहानी, जिसके मस्क से अफेयर की ख़बरें, गंभीर व्यक्तिगत दुर्व्यवहार के आरोपों में घिरने के बाद सीईओ के पद से इस्तीफा देने वाले फ्लिपकार्ट के सीईओ बिन्नी बंसल का विवाद, भारत पे के अशनीर ग्रोवर का को-फाउंडर के बीच का विवाद, हाउसिंग डॉट कॉम के सह-संस्थापक और सीईओ राहुल यादव को बोर्ड आफ डायरेक्टर द्वारा निकाले जाने का मामला चर्चित रहा है।

 

वी वर्क का चाहे जो भी हस्र हुआ हो पर कंपनी पूर्व सीईओ और सह-संस्थापक एडम न्यूमैन की सम्पत्ति बढ़ती रही। उबर में यौन उत्पीड़न समेत अन्य विवादों के जोर पकड़ने के बाद सह संस्थापक कलानिक को कंपनी के मुख्य कार्यकारी का पद छोड़ना पड़ा था। एडटेक प्लेटफॉर्म बायजू की वर्थ जीरो होने की बात कंपनी के फाउंडर बायजू रवींद्रन के मानने की कहानी के बाद स्टार्टअप जगत में कारपोरेट गवर्ननेन्स से सरकारें व इन्वेस्टर भी परेशान हैं।

 

अविरति के कारण स्टार्टअप संस्थापक अपना, कम्पनी के कर्मचारियों व कम्पनी का भविष्य संकट में डाल देते है।

 

भ्रांतिदर्शन -मिथ्या ज्ञान के कारण कंपनी के फाउंडर अपने बिज़नेस आइडिया, रणनीति व बाज़ार के बारे में भ्रम पाल लेते है। भ्रम का अर्थ है खुलीं आँख का सपना।

 

कंपनी के फाउंडर के इन भ्रमों के कारण अनेकों स्टार्टअप को अपूरणीय क्षति हुई है। कंपनी के फाउंडर को भ्रांतिदर्शन से बचने की कोशिश करना चाहिए। 




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        आइडिया

 

औसतन, टेक कंपनियों को व्यवसाय में लगभग सत्रह महीने बाद अपनी संभावित विफलता का सामना करना पड़ा। संभावित व्यावसायिक विफलताओं का सामना करने वाले पचहत्तर प्रतिशत संस्थापकों ने स्वीकार किया कि उनकी कंपनी व्यवसाय में बने रहने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं थी।

लक्ष्य से भटक जाना स्टार्टअप के संस्थापक के स्वभाव में जाता है। प्रतिदिन उसे नये नये आइडिया आते रहते हैं तथा बाज़ार में काम करने की सम्भावनाओं के कारण वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है।

 

टीम भी लीडर का अनुसरण करती है लक्ष्य से लीडर की तरह टीम भी भटक जाती हैं। इसलिए स्टार्टअप में हमेशा प्रोडक्ट मार्केट फ़िट की अवधारणा पर ज़ोर देते है।

 

जब स्टार्टअप संस्थापक अपनी इंटरप्रेन्योर की भावना को बचाए रखने में सक्षम नहीं रह जाता है, तब काम करने की प्रवृति को बनाए रखने में अक्षम हो जाते है

 

इंटरप्रेन्योर की भावना नई सोच, नई समस्या का नया समाधान ढूँढने की होती है। जो दूसरे के लिए समस्या होती है वह इंटरप्रेन्योर के लिए बिज़नेस ऑपर्चुनिटी होतीं है। जब वह मन की दुर्बलता की अवस्था में जाता है तब वह यह मनोदशा बनाएँ रखने में विफल होने पर अपने स्टार्टअप की सफलता से दूर हो जाता है।

 

चेतना में भटकाव उत्पन्न करने में रोग, उदासीनता, अनिर्णय, उपेक्षा, आलस्य, अपने स्वार्थ पर नियंत्रण रख पाना, भ्रम में देखना प्राप्त उपलब्धियों को सहेज पाने की अक्षमता प्राप्त प्रगति को बनाए रखने की विफलता के कारण चित में विक्षोभ बढ़ जाता है, जो सफलता को पाने की मुख्य रूकावटें हो जाती है।

 

इसलिए स्टार्टअप के संस्थापक को इनकी स्थिति को समझ कर निरंतर नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

 


 

इन दोनों ने भास्कर सर से भी यह डिस्कस किया कि स्टार्टअप की विफलता के कारण क्या होते है? भास्कर जी ने बहुत सारे उदाहरण देते हुए समझाया कि हर स्टार्टअप इंटरप्रेन्योर का सपना होता हैयूनिकॉर्न स्टार्टअपकम्पनी बनाना, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में दस में से नौ स्टार्टअप तीन साल के अंदर विफल हो जाते है।

 

विफलता की हर इंटरप्रेन्योर की एक कहानी होती है, जिनसे पता चलता है कि विफलता किसी एक कारण से नहीं होती वरना यह रिपल इफ़ेक्ट होता है। जब कोई गड़बड़ी किसी कम्पनी की किसी एक प्रणाली में शुरू होती है और फिर बाहर की ओर फैलती है, जिससे कम्पनी के बड़े हिस्से पर असर पड़ता है और कई बार परिस्थितियाँ कॅन्ट्रोल के बाहर चली जाती है जिससे कम्पनी में अस्तित्व का संकट जाता है।

 

इससे यह स्पष्ट है कि स्टार्टअप की विफलता कई कारणों का संयोजन होता है। जैसे बिज़नेस माडल टिकाऊ या लाभदायक नहीं है तो आप जल्दी ही नक़दी खो देंगे। इसके बिना आगे नहीं बढ़ सकते। विकास के संकेत नहीं दिखने पर फ़ंडिंग प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है और इस तरह स्टार्टअप में रिपल इफ़ेक्ट का दुश्चक्र प्रारंभ होता है।

 

इसलिए स्टार्टअप के संस्थापक को इनकी स्थिति को समझ कर निरंतर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। इस डिस्कशन को सुनकर रवि को ऐसा लगा कि वह पुनः भर्तृहरि की कहानी सुन रहा है। वह इन बातों से बहुत प्रभावित हुआ।

 

रवि हमेशा से खुद को दूसरों के साथ बातचीत करने में असहज महसूस करता रहा है। उसका उसके पिता से व्यवहार उतना अच्छा नहीं था, फिर स्मिता और अब अमन से कई अवसरों पर मन मुटाव हो जाता है। यह सवाल कई बार पूछने की हिम्मत की लेकिन नहीं पूछ पाया।

 

रवि ने भास्कर सर से पूछा, “आपसी संव्यवहार के आधार क्या होने चाहिए?”

 

भास्कर सर ने हमेशा की तरह बिना प्रतिप्रश्न किया जबाब देना शुरू किया कि सोशल मीडिया, मोबाइल फ़ोन इन्सटेंट मेसेज प्लेटफ़ॉर्म की वजह से आपसी संवाद बहुत तीव्र गति से करना सम्भव हो गया है। मगर टेक्नोलॉजी के जहां फ़ायदे हैं वहीं नुक़सान भी है। इस समय लोगों में धैर्य की कमी हो गई है।

 

लोग जजमेन्टल हो गये है। बिना सोचे समझे सोशल मीडिया पर मेसेज फ़ॉरवर्ड करते है और लाईक डिसलाईक करते है। स्टार्टअप की दुनिया में प्रतिस्पर्धाओं का दौर चलता रहता है। मार्केट पर क़ब्ज़ा करने के लिए बहुत अफ़वाहों को फैलाया जा रहा है। इंटरप्रेन्योर को निरंतर अपनी टीम बनाने की ज़रूरत होती है। जैसे जैसे टीम बढ़ती है वैसे वैसे आपसी विवाद भी बढ़ते है।

 

अधिकांश स्टार्टअप को फ़ाउन्डर के साथ शुरू होते है। ऐसे में जैसे कम्पनी में फ़ंडिंग आतीं है, वैसे ही को फ़ाउन्डर के मध्य पद, नाम, शेयर होल्डिंग्स, पावर पर्कस को लेकर विवाद होने लगते है और जब कम्पनी में पैसे का नुक़सान होता है तब एक दूसरे पर दोषारोपण करने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

 

यह स्वस्थ संवाद के लिए बहुत घातक हो सकता है। बिज़नेस के लिए को फ़ाउन्डर के अलावा पार्टनरशिप भी अलग-अलग लोगों के साथ की जाती है।

 

ऐसे में पार्टनर के साथ बातचीत बहुत महत्वपूर्ण होती है। स्टार्टअप की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि हम स्पष्ट बातचीत करें, रोल्स रिस्पांसबिलिटीस का स्पष्ट विभाजन हों तथा पार्टनरशिप डीड्स बहुत डीटेल विधि अनुसार बनाना चाहिए। इस सब पूर्व सावधानियों के बावजूद हम हमेशा इतने सौभाग्यशाली नहीं होते है कि सब कुछ निर्वाध गति से चले। स्टार्टअप की सफलता में सह संस्थापकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

 

स्टार्टअप को डुबो सकने वाले नुकसानों का पूर्वानुमान लगाना और उनसे बचना।अक्सर एक नया व्यवसाय शुरू करने के उत्साह में उद्यमियों के सामने आने वाले सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक को कम महत्व दिया जाता है। क्या उन्हें अकेले आगे बढ़ना चाहिए या व्यवसाय को आगे बढ़ाने में मदद करने के लिए सह-संस्थापकों, कर्मचारियों और निवेशकों को लाना चाहिए? सिर्फ़ वित्तीय पुरस्कारों से ज़्यादा कुछ दांव पर लगा होता। दोस्ती और रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। एक आशाजनक उद्यम की शुरुआत में गलत निर्णय इसके अंतिम विनाश की नींव रखते हैं।

  वह इस बात पर विचार करते हैं कि दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ मिलकर सह-संस्थापक बनना एक अच्छा विचार है या नहीं, संस्थापक टीम के भीतर इक्विटी को कैसे और कब विभाजित किया जाए और कैसे पहचाना जाए कि एक सफल संस्थापक-सीईओ को कब बाहर निकल जाना चाहिए या निकाल दिया जाना चाहिए।

 

कैसे विनाशकारी गलतियों का पूर्वानुमान लगाया जाए, उनसे बचा जाए या उबरा जाए जो संस्थापक टीम को विभाजित कर सकती हैं। संस्थापकों से नियंत्रण छीन सकती हैं और संस्थापकों को उनकी कड़ी मेहनत एवं अभिनव विचारों के लिए वित्तीय भुगतान के बिना छोड़ सकती हैं।

 

वह स्टार्टअप को नियंत्रित करने और इसे विकसित करने के लिए सर्वोत्तम संसाधन को आकर्षित करने के बीच प्रत्येक चरण में सावधानीपूर्वक संतुलन बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं। और प्रदर्शित करते हैं कि क्यों आसान अल्पकालिक विकल्प अक्सर दीर्घकालिक में सबसे खतरनाक होते हैं।

 

आपसी व्यवहार बिज़नेस को सफल एवं असफल बनाने की ताक़त रखता है। ऐसा नहीं है कि यह समस्या आज की है। यह समस्या मानव समाज में शुरू से विद्यमान रहीं है। मेरी समझ से महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में इस बात का समाधान प्रस्तुत किया कि हमें किस अवस्था के व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य का मनुष्य से व्यवहार मैकेनिकल होकर  बायोलॉजीकल होता है जो देश, काल परिस्थिति में निरंतर बदलता रहता है।

 

महर्षि पतंजलि ने लोगों को चार वर्गों में विभाजित किया है तथा उनके साथ कैसा व्यवहार करना है। आनंदित व्यक्ति के प्रति मैत्री, दुखी व्यक्ति के प्रति करूणा, पुण्यवान के प्रति मुदिता तथा पापी के प्रति उपेक्षा का भाव रखना चाहिए।

 

ओशो रजनीश योग सूत्र की व्याख्या में इस श्लोक की व्याख्या करते हुए कहते है कि पहले हमें अपनी स्वाभाविक मनोवृत्ति के समझना होगा। जब तुम किसी को प्रसन्न देखते हो तब तुम ईर्ष्या अनुभव करते हो और दुख का अनुभव करते हो। यह स्वाभाविक है और महर्षि पतंजलि कहते है कि प्रसन्न के प्रति मैत्री भाव रखो। यह सरल नहीं है। हो सकता है कि यदि कोई हमारे क्षेत्र का स्टार्टअप सफलता से मुदित आनंदित हो और हम प्रसन्नता दिखाएं तो यह एक ऊपरी बात होगी। यह एक दिखावा या मुखौटा ही होता है।

 

हम अपने अन्दर तो ईर्ष्या ही अनुभव करते है क्योंकि वह हमारा प्रतिद्वंद्वी है। हम बाज़ार में उससे प्रतिस्पर्धा कर रहे है। यह भी हो सकता है कि उसके पास हम से ज़्यादा संसाधन हो, ज़्यादा बाज़ार का हिस्सा हो, वह ज़्यादा सस्ता सप्लाई कर रहे हो और वह हमारे बिज़नेस को भविष्य में संकट में डाल सकता हो तो ऐसी स्थिति में हमसे उस के प्रति ईर्ष्या का व्यवहार ही होगा। मगर  यहाँ हमें समझना होगा कि प्रसन्नता धरती पर असीमित मात्रा में है तो यह हमारा चुनाव हैं।

 

ओशो कहते है कि यदि तुम दूसरे की प्रसन्नता में प्रसन्नता अनुभव करो तो तुम स्वयं की प्रसन्नता के लिए एक द्वार खोलते हो।

 

दूसरी तरफ महर्षि पतंजलि कहते है कि दुखी के प्रति करूणा का भाव रखना। यहाँ समझने की बात है सहानुभूति करूणा नहीं है। जब कोई स्टार्टअप असफल हो रहा है तब आमतौर पर व्यक्ति सहानुभूति प्रकट करते है। लेकिन अगर हम गहरे में देखे तो सहानुभूति प्रकट करते समय हम अंदर प्रसन्नता का अनुभव करते है। जब हम करूणावश उसकी सहायता करते है तब इस अवस्था में हम प्रसन्नता या दुख का अनुभव नहीं करते है तो करुणावान होना बिल्कुल अलग बात है तब सामने बाला भी हर्ट् फ़ील नहीं करता है।

 

तीसरी बात है पुण्यवान के प्रति मुदिता का व्यवहार करना। जब कोई स्टार्टअप सफल होता है तब हम तुरंत उसकी आलोचना करने लगते है। बुराइयों को खोजने लगते है और किसी किसी तरह नीचे लाना चाहते है, क्योंकि हम किसी अन्य को पुण्यात्मा नहीं मान सकते। इससे हमारे अहंकार को चोट लगती है।

 

यदि हम यह मानने को तैयार नहीं है कि कोई भला है, नेक है, हमसे अच्छी तरह बिज़नेस कर रहा है तो हम प्रसन्नतापूर्वक कैसे व्यवहार कर सकते है। यदि किसी स्टार्टअप की सोशल मीडिया पर निंदा चल रही है तो हम सबूत नहीं माँगते हैं और यह मानकर ही चलते हैं कि वे बुरे है। सकारात्मक के लिए सबूत की ज़रूरत होती है, लेकिन नकारात्मक के लिए किसी सबूत की ज़रूरत नहीं होती। यह व्यवहार हम सोशल मीडिया पर रोज़ देखते हैं, क्योंकि इससे हमारा अहंकार पोषित होता है।

 

महर्षि पतंजलि कहते है कि पुण्यवान के प्रति मुदिता के भाव से व्यवहार करना अभी हमारे लिए स्वभाविक नहीं है, लेकिन यदि अभ्यास करें तो अपना ही भला करेंगे। सफल लोगों से हमारी नेटवर्किंग अच्छी हो सकती है जिससे हमें हमारे बिज़नेस की सफलता में मदद मिलेगी।

 

चौथी बात महर्षि पतंजलि कहते है कि बुरे के प्रति उपेक्षा का भाव रखना। निंदा नहीं करना, बुराई नहीं फैलाना। यदि हम बुरे की निंदा करते है तो धीरे-धीरे हम उसी तल पर पहुँच जाते है। हम ग़लत के साथ आसानी से अशक्त हो जाते है।

 

महर्षि पतंजलि आंतरिक मन के तंत्र को जान कर ही कहते है कि पापी के प्रति उपेक्षा का भाव रखना। बाहर से तुम क्या हो इसका ज़्यादा मूल्य नहीं है सवाल है कि हमारे आंतरिक सम्मोहन कैसे है। वहीं हमारे जीवन के क्रम को निर्धारित करता है। बुराई के प्रति तटस्थ रहना, उपेक्षा का अर्थ भावशून्यता नहीं है, इसका ही अर्थ है कि तुम मूल्यांकन करो।

 

ओशो कहते है कि जीवन इतना संश्लिष्ट है कि बुराई अच्छाई बन जाती है, यह परिवर्तनशील है। यदि सोशल मीडिया पर किसी स्टार्टअप की गड़बड़ी की कोई बहस चल रही है तो हमें अनावश्यक रूप से उसमें भाग नहीं लेना चाहिए। महर्षि पतंजलि की व्यवहार की यह सलाह मानने से बिज़नेस की सफलता के साथ साथ हमारे निजी सम्बन्ध भी मज़बूत होकर सफलता में योगदान देंगे।

 

रवि को अहसास हुआ की वह अपनी सम्बन्धों में क्या गलतियां कर रहा था, जिन्हें उसे सुधारने की जरुरत है। रवि अमन को अब यह निर्णय करना था कि अपने स्टार्टअप की रणनीति में क्या बदलाव लाये ताकि काम सही दिशा में चल सके।

 

इन्वेस्टर के ऑफिस में बहुत सकारात्मक बैठक हुई बहुत दिन बाद दोनों बहुत खुश थे। मगर रवि ने फिर पैसों की बात उठा दी और दोनों फिर से बहुत दुखी हो गये। वे बाते करते करते भास्कर सर से मिलने ही जा रहे थे।

 

भास्कर सर से बातों में अमन ने पूछा — “दुख के कारण क्या है ?”

 

भास्कर सर बहुत फिलोस्पर के मूड में थे उन्होंने जबाब दिया कि स्टार्टअप की यात्रा रहस्यमय यात्रा होती है। इस यात्रा में सफलता अनायास नहीं मिलती बल्कि अर्जित करनी होती है। इंटरप्रेन्योर को मेहनत करनी पड़ती है तथा बहुत सारे लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसमें प्रतिदिन तरह-तरह के विवाद होते रहते हैं।

 

यदि सह संस्थापकों में क्लेश हैं तो सब दुखी रहते हैं। दुख एक नकारात्मक भाव की अवस्था है। दुख अंधकार की तरह है यह कोई अस्तित्वगत बात नहीं है और यदि सह संस्थापकों के मध्य मतभेद से दुख निर्मित कर लेते है। यहाँ बात है हमारे चयन की, हम नकारात्मक प्रतिक्रिया चुनते हैं या सकारात्मक।

 

जो इंटरप्रेन्योर नकारात्मक प्रतिक्रिया चुनते हैं वे आपस में लड़ने लगते है। एक दूसरे पर दोषारोपण करने लगते है। वहीं सकारात्मक इंटरप्रेन्योर दुख के कारणों की खोजकर उनको दूर करने की कोशिश करता है।

 

स्टार्टअप शुरू करना इंटरप्रेन्योर के लिए बड़े साहस का काम होता है। अधिकांश लोग स्टार्टअप शुरू करने के मार्ग पर आते ही नहीं है। केवल कुछ लोग शुरू करने की सोचते हैं और सोचते ही रहते है अवसर खो देते है। विरले लोग शुरू कर पाते है और उन विरले लोगों में केवल चंद लोग सफल हो पाते हैं।

 

अधिकांश लोगों को जीवन जो अवसर देता है वे उससे चूक जाते है। इंटरप्रेन्योर का जीवन सर्वाधिक असुरक्षित जीवन है। इसमें सुरक्षा का कोई बीमा नहीं होता। ऐसे में अधिकांश लोग जीवन में सुरक्षा चुनने के कारण अपना कारोबार शुरू नहीं कर पाते। वे जो भी काम चुनते हैं वहाँ भी दुखी ही रहते हैं और हमेशा अपनी परिस्थितियों के लिए दूसरों को दोष देते रहते हैं।

 

जीवन का एक सिद्धांत है कि जो जितना जोखिम उठायेंगे उनके सफल होने के अवसर उतने अधिक होते है। उनकी अपनी कहानियाँ होतीं है वे अपने लिए एक संतुष्टि का जीवन जीने के साथ अन्य लोगों के लिए अवसर आधार तैयार करते है।

 

हर महिला पुरुष के गहरे तलों पर ख़तरों के बीच जीने की अंतःप्रेरणा होती है। इसलिए प्रेरणा के वशीभूत होकर लोग दूसरे के व्यवसाय में शेयर ख़रीदते हैं और जोखिम उठाते है। भारत में ग्यारह करोड़ से ज़्यादा लोग शेयर बाज़ार में निवेश करते है। इनमें से अधिकांश लोग बार-बार नुक़सान उठाने के बावजूद निवेश करते हैं।

 

इसलिए महर्षि पतंजलि कहते है, “विवेक पूर्ण व्यक्ति जानता है कि हर चीज दुख की तरफ ले जाती है।बुद्ध द्वारा प्रतिपादित चार आर्य सत्यों में पहला सत्य है कि जीवन दुख है।

 

इसलिए स्टार्टअप के संस्थापक के जीवन का एक मात्र आधार है आशा। इंटरप्रेन्योर सफल होने की आशा के सहारे सारे दुख सह जाता है।

 

चीन के इंटरप्रेन्योर जैक मॉ कहते है, “कभी हार मत मानो, आज कठिन है, कल और भी कठिन होगा लेकिन परसों सुन्दर होगा।यथार्थ हमेशा कठोर होता है लेकिन भविष्य हमेशा सुन्दर होता है। दुख का कारण जानने के लिए उसका सामना करना होता है। यदि हम उससे बचकर निकल भागते हो तो हम कभी भी उन कारणों को नहीं जान सकते और कभी-कभी दुख की कल्पना उसका सामना करने से भयंकर होती है।

 

आशा का तंत्र एक नशे की तरह काम करता है। इंटरप्रेन्योर की यात्रा में दुख एक राजमार्ग जैसा है, इंटरप्रेन्योर कहीं से भी यात्रा शुरू करें दुख ही जाते हैं। इंटरप्रेन्योर इससे बच नहीं सकता। यदि इंटरप्रेन्योर दुख का साक्षात्कार करता है तो वह पाता है कि वास्तव में वह इतना बड़ा भी नहीं है जितने की कल्पना की गई थी।

 

समाज में दो तरह के लोग है एक वे जो समय ख़रीदते हैं और दूसरे वे जो समय बेचते हैं। इंटरप्रेन्योर समय ख़रीदने वाला है और नौकरी करने वाला समय बेचने वाला। क्या समय बेचने वाला दुखी नहीं है, बल्कि वह ज़्यादा दुखी है।

 

इंटरप्रेन्योर को बदलना होता है। इस बात की परीक्षा तब होती है जब कठिन समय होता है, क्योंकि अच्छे समय में सभी बहादुर होते है। कठिन समय में ही सह संस्थापकों के बीच रिश्ते, भूमिकाएँ और पैसे से जुड़े संघर्ष, निवेशकों का रणनीति में हस्तक्षेप आदि की परीक्षा होती है। इन संघर्षों पर की बिज़नेस की सफलता या असफलता निर्भर करती है।

 

यह बिज़नेस के जीवन चक्र को प्रभावित करता है। रिश्ते नष्ट हो जाते है, आर्थिक हानि होती है। हालाँकि मीडिया में स्टार्टअप के इस स्याह पक्ष को कम करके दिखाया जाता है। केवल उजले पक्ष का उत्सव मनाया जाता है।

 

इंटरप्रेन्योर का बिज़नेस रोमांटिक लव स्टोरी जैसा होकर शादीशुदा पति पत्नी के जीवन से भी जटिल होता है क्योंकि इंटरप्रेन्योर अपने जीवन साथी से ज़्यादा अपना समय स्टार्टअप में बिताते हैं। सबसे अच्छी टीम तब बनतीं है जब लोग एक दूसरे के कौशल कमियों के पूरक होते है। इनमें मतभेद हो सकते है लेकिन मनभेद नहीं होते हैं।

 

यह बातें बहुत समय तक चलती लेकिन भास्कर सर को एक और मीटिंग में जाना था। यह बातचीत यहीं समाप्त हो गई।

 

भारत में बंद होने वाले स्टार्टअप्स, जिनमें एग्रीटेक स्टार्टअप ग्रीनिक्क बढ़ते घाटे के आगे झुक गया। केले की खेती पर केंद्रित एग्रीटेक स्टार्टअप ग्रीनिक्क सितंबर में उत्पाद-बाजार में अपनी जगह बनाने में असमर्थता और बढ़ते घाटे के कारण बंद हो गया।

 

एक ऐप विकसित करने और खुद को एक पारिस्थितिकी तंत्र सुविधाकर्ता के रूप में स्थापित करने के बावजूद स्टार्टअप को अंततः कार्यशील पूंजी की पेशकश करने वाले एक और विक्रेता के रूप में देखा गया। उस समय ग्रीनिक्क के सह-संस्थापक और सीईओ फारिक नौशाद ने बताया कि उधारकर्ताओं द्वारा ऋण वसूली होना संचालन को बंद करने के निर्णय के पीछे प्रमुख कारणों में से एक था।

 

गोल्डपे द्वारा स्थापना के एक साल बाद ही अपनी दुकान बंद करने का फैसला किया। दोषपूर्ण बिज़नेस मॉडल और नकदी संकट से प्रभावित पार्थ शाह और याग्नि रावलजी द्वारा स्थापित अहमदाबाद स्थित फिनटेक स्टार्टअप गोल्डपे ने स्थायी राजस्व प्रवाह की अनुपस्थिति, दोषपूर्ण व्यवसाय मॉडल और नकदी प्रवाह के मुद्दों के कारण स्टार्टअप के परिचालन को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पूंजी जुटाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। शुरुआती फंडिंग खत्म होने के साथ दोनों ने गोल्डपे को चालू रखने के लिए नए निवेश की सक्रिय रूप से तलाश की। लेकिन असफल रहे।

 

अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिदावतका द्वारा स्थापित कू एक भारतीय माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म था और ट्यूटर का प्रतियोगी था। ऑनलाइन मीडिया फ़र्म डेलीहंट के साथ लंबे समय तक अधिग्रहण की चर्चा विफल होने के बाद इसने अपने बंद होने की घोषणा की। हालाँकि, कू के पतन का सबसे बड़ा कारण यह था कि यह पिछले दो वर्षों में भयंकर फंडिंग विंटर के बीच निवेशकों द्वारा अपने पर्स को कसने के कारण फंड जुटाने में विफल रहा।

 

ऐसा नहीं है कि केवल बिना फंड के स्टार्टअप बंद हो जाते है बल्कि सच तो यह है कि फ़ंडिंग के बावजूद स्टार्टअप बंद हो जाते है, क्योंकि जितनी अधिक फ़ंडिंग होती है समस्याएँ भी उतनी अधिक होती है। हैरानी की बात यह है कि फ़ंडिंड स्टार्टअप की विफलता पैसे से जुड़े मुद्दों के कारण हो जाती है।

 

हमारे देश की सफलता कम्पनी सत्यम के रामलिंग राजू ने चेयरमैन के पद से इस्तीफा देते समय कहा था, ‘यह बाघ की सवारी करने जैसा था, यह नहीं जानते हुए कि बिना खाए कैसे उतरना है।यह उनकी दुखद कहानी को समेटने के लिए एक बेहतरीन उद्धरण है।

 

चीनी उद्यमी जैक माँ कहते है, ‘जब आप के पास पैसा होता है तो आप ग़लतियाँ करते है।जैक माँ ने ही कहा था, ‘जब आपके पास एक मिलियन डॉलर है तब एक भाग्यशाली व्यक्ति है, लेकिन जब आप के पास दस मिलियन डॉलर है तब आप संकट में है, बहुत बड़ा सर दर्द।


 

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फंडिंग

समाज में तीन तरह के लोग है पहले वे जो दूसरों की ग़लतियों से सीख लेते है। दूसरे तरह के निरंतर स्वयं ग़लतियाँ करके सीखते हैं और ग़लतियाँ दुहराते नहीं है। तीसरे तरह के लोग न दूसरों की ग़लतियों से सीख लेते है और न स्वयं की ग़लतियों से। और निरंतर एक जैसी ग़लतियाँ करते है।

 

आंकलन करें कि आप किस तरह के इंटरप्रेन्योर है, क्योंकि जब आप कोई निर्णय लेते है तो या तो आप पैसे कमाते या गंवाते है, बीच का कोई रास्ता नहीं होता है। इसलिए एक सफल इंटरप्रेन्योर को बिज़नेस में छोटी से छोटी बात को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

 

इंटरप्रेन्योर निरंतर दूसरों की ग़लतियों से सीखकर आगे बढ़े अन्यथा स्वयं ग़लतियाँ कर सीखने के लिए एक जीवन कम पड़ता है। इसलिए सफल इंटरप्रेन्योर निरंतर किताबें पढ़ते हैं। सोशल मीडिया पर खुद को अपडेट करते है और नेटवर्किंग करते रहते हैं।

 

माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स कहते है, "प्रत्येक पुस्तक ज्ञान के नए रास्ते खोलती है।" गेट्स अमेरिकी व्यवसायी, निवेशक, सॉफ्टवेयर डेवलपर और परोपकारी व्यक्ति को अपने खाली समय में किताबें पढ़ना पसंद है। गेट्स हर साल लगभग पचास किताबें पढ़ते हैं, जो लगभग एक सप्ताह में एक किताब है।

 

बिल गेट्स आमतौर पर व्यवसाय, विज्ञान, सार्वजनिक स्वास्थ्य, विश्व मामलों और इंजीनियरिंग के बारे में गैर-काल्पनिक किताबें पढ़ना पसंद करते हैं।

 

वॉरेन बफेट बर्कशायर हैथवे के चेयरमैन और सीईओ को दुनिया के पांचवें सबसे धनी व्यक्ति का दर्जा दिया गया है। वॉरेन बफेट दुनिया के सबसे सफल निवेशकों में से एक हैं। बफेट ने जब एक निवेशक के रूप में अपना कॅरियर शुरू किया था।

 

अमेरिकी अरबपति उद्यमी और टेलीविजन व्यक्तित्व मार्क क्यूबान अमेरिकी बास्केटबॉल टीम डलास मावेरिक्स के मालिक हैं। वह खुद की सफलता में पढ़ने को एक प्रमुख कारक मानते हैं क्योंकि इससे उन्हें उस उद्योग के बारे में अधिक जानने में मदद मिली। क्यूबान हर रोज़ तीन घंटे पढ़ते हैं और कोई भी किताब या पत्रिका उठाकर पढ़ते हैं।

 

अमेरिकी अरबपति व्यवसायी डेविड रूबेनस्टीन वाशिंगटन स्थित निजी इक्विटी फर्म द कार्लाइल ग्रुप के सह-संस्थापक हैं, जो दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे सफल निजी निवेश फर्मों में से एक है।

 

रूबेनस्टीन हर हफ्ते कम से कम छह किताबें और रोजाना आठ अखबार पढ़ते हैं। वह अपने दिमाग को केंद्रित करने के लिए हर दिन पढ़ने के माध्यम से नई चीजें सीखने के लिए जुनूनी है।

टोनी रॉबिंस शराबी माँ और कई पिताओं के साथ बड़े हुए। वह किताबों को अपनी ज़िंदगी बचाने और वर्तमान दौर के नेता के रूप में आकार देने का श्रेय देते हैं। पढ़ने ने उनके अंदर एक जुनून जगाया। "मैंने एक स्पीड-रीडिंग कोर्स किया और सात सालों में सात सौ किताबें पढ़ीं। सभी मनोविज्ञान, शरीर विज्ञान, ऐसी किसी भी चीज़ पर जो जीवन में बदलाव ला सकती है।"

 

एक अध्ययन के मुताबिक जब मैं सुपर सफल लोगों की पढ़ने की आदतों पर शोध कर रहा था, तब मुझे कुछ दिलचस्प आँकड़े मिले। अमीर लोग हर दिन पढ़ते हैं। औसत सीईओ एक साल में साठ से ज़्यादा किताबें पढ़ता है।

 

निष्कर्ष यह है कि किताबें, आडियो, वीडियो, पोडकास्ट, सोशल मीडिया पर अपने ज्ञान को बढ़ाने में उपयोग कर सकते है। अब एआई एप व टूल्स के कारण किसी भी तरह का ज्ञान आपके फ़िंगर टिप पर उपलब्ध है।

 

पेरप्लेक्सिटी, ओपन एआई, चैट जीपीटी, टिकटॉक, चीनी जनरेटिव एआई प्लेटफॉर्म डीपसीक एक निशुल्क एआई-संचालित उत्तर इंजन है, जो किसी भी प्रश्न का सटीक, विश्वसनीय और वास्तविक समय पर उत्तर देने की ओर निरंतर कुशलता हासिल कर रहे है।

 

भास्कर सर से बातचीत करना हमेशा लाभकारी रहा है। अचानक एक दिन रवि के पास स्मिता का फ़ोन आया। हालांकि दोनों में ब्रेकअप हो गया था और बहुत महीनों से दोनों की बात नहीं हुई थी। रवि ने कई बार स्मिता का फ़ोन नम्बर अपनी फ़ोन बुक से डिलीट करने के बारे में सोचा। मगर ना जाने क्यों वह ऐसा नहीं कर पाया।

 

स्मिता ने बताया- “वह नई दिल्ली कंसल्टेन्सी के काम से आई है और उससे मिलना चाहती है।”

रवि ने यकायक कहा- “क्यों नहीं”, जबकि वह कहना चाहता था “क्यों?” 

पता नहीं कई बार हमारे साथ ऐसा होता है कि हम सोचते कुछ और है, कहना कुछ और चाहते हैं और हमारे मुँह से कुछ और ही निकल जाता है। रवि बात को सुधारना चाहता था, लेकिन कहते है कि धनुष से चला तीर व मुँह से निकले शब्द को लौटाया नहीं जा सकता। इसलिए रवि ने चुप रहने में ही भलाई समझी।

 

स्मिता ने बताया- “शाम की फ्लाइट से इंदौर आ रही हूँ। स्मिता ने साधिकार कहा, तुम अपने घर का एड्रेस व लोकेशन मुझे व्हाट्सअप कर दो मैं पहुँच जाऊंगी।”

रवि ने औपचरिकता बस कहा- “अरे नहीं तुम अपनी फ्लाइट के डिटेल भेज दो मैं एअरपोर्ट पर लेने आता हूँ। स्मिता ने डिटेल भेज दी।”

 

रवि के साथ समस्या यह थी कि वह बहुत फ़ास्ट निर्णय नहीं ले पाता था। रवि को अब समझ आया की वह तो अमन के साथ रहता है तो स्मिता को उस कमरे में कहाँ रखेगा। हालाँकि मकान में उन दोनों के कमरे अलग है। लेकिन न जाने क्यों उसे लगा की स्मिता को ठहराने की व्यवस्था उसने पास के होटल में करनी चाहिए ।

 

रवि शाम को एयरपोर्ट स्मिता को लेने गया तो रास्ते से उसने स्मिता के पसंद के पिंक गुलाबों का बुके ख़रीद लिया। स्मिता की फ्लाइट टाइम से आई। रवि ने उसे एयरपोर्ट पर बुके दिया तो उसने मुस्करा के ले लिया। फूलों को प्यार से देखा और टैक्सी में बैठ गई। रवि ने मोबाईल से टैक्सी बुक की और दोनों होटल आये। स्मिता होटल में नहीं रुकना चाह रही थी।

 

वह रवि के घर पर ही रुकना चाह रही थी। रवि समझ नहीं पा रहा था कि इन दिनों में वह इतनी कैसे बदल गई है? 

स्मिता कमरे के वाशरूम में फ्रेश होने चली गई और रवि ने दोनों के लिए इस बीच कॉफ़ी तैयार कर ली। दोनों आमने सामने कुर्सियों पर बैठ कर कॉफी पीने लगे। रवि का मन स्मिता को गले लगाने का हो रहा था, लेकिन न जाने क्यों रवि को स्मिता से आने वाली ऊर्जा से लगा की वह भी गले मिलना चाह रही है। मगर सबसे बड़ा सवाल यह था की पहल कौन करे।

 

दोनों नीचे अपने कॉफ़ी के मग को देख रहे थे। एकाएक रवि उठा और उसने स्मिता को गले लगाने के लिए उसे कुर्सी से उठाया। स्मिता तपाक से उठी और दोनों प्यार से गले मिले। दोनों ने एक दूसरे को कस कर पकड़ लिया। बहुत अरसे बाद मिलने से उन्हें लगा जैसे कोई खोई चीज फिर मिल गई हो। दोनों के शरीर उत्तेजना से कांप रहे थे। दो अधूरे शरीर मिल रहे थे। दोनों के मन से अपराधबोध एकदम से समाप्त हो गया था। धीरे से स्मिता ने अपने को रवि के आलिंगन से अलग किया और कुर्सी पर बै कर फिर से कॉफी पीने लगी। रवि अभी भी खड़ा स्मिता की ओर देख कर स्मिता में आये इस परिवर्तन को समझने की कोशिश कर रहा था।   

 

रवि के दिल से ना जाने कितना बड़ा बोझ उतर गया जो वह इतने दिनों से ढ़ो रहा था। दोनों ने तय किया कि खाना कमरे में ही बुला लेंगे।

 

इसके बाद दोनों इधर उधर की बातें करने लगे। ना जाने स्मिता रवि के स्टार्टअप में इतनी रूचि क्यों ले रही थी। रवि ने शुरू से अभी तक की कहानी सुना दी। फंडिंग की बात भी बता दी।

 

स्मिता ने पूछा कि यह कितने दिनों बाद होगा तो रवि ने बताया कि स्टार्टअप को उनकी वैल्यूएशन के अनुसार फंडिंग मिलती है। उन्होंने कई वेंचर कैपिटल संस्थानों में प्रपोजल भेजा हुआ है। 

स्टार्टअप को सफलता के विभिन्न स्तर पर रखा जाता है तथा अलग-अलग नाम दिए जाते है जैसे मिनीकॉर्न, सूनीकॉर्न, यूनिकॉर्न, डेकाकॉर्न, तथा हेक्टोकॉर्न ।

 

दोनों ने बातों के बीच में ही खाने का आर्डर किया और फूड स्टार्टअप से खाना मंगाकर दोनों ने खाना खाया। बहुत रात हो गई थी तो रवि ने कहा की तुम्हारा दिन बहुत लम्बा रहा। अब तुम आराम करो मैं कल सुबह आता हूँ। वह झटके से उठा और दरवाजा खोलने वाला ही था कि पीछे से स्मिता ने उसे पकड़ लिया।

 

सुबह दोनों की नींद बहुत देर के खुली। रवि की नीद अभी भी पूरी नहीं हुई थी वह कितनी रातों के बाद ऐसा सोया था उसे खुद भी याद नहीं।

 

स्मिता उठकर बाथरूम में चली गई। कमरे में शावर चलने की आवाज आ रही थी। रवि उठा और कॉफी बनाने लगा। दोनों ने कॉफी पीना शुरू किया ही था कि रवि ने पूछा- “आज का क्या प्लान है?”

स्मिता ने बताया- “अमन से मिलना हैं और क्या?”

 

कुछ देर रुक कर कहा- “तुम दोनों के स्टार्टअप का ऑफिस देखना चाहती हूँ।”

रवि को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वह ज्यादा पूछ नहीं रहा था। उसे डर था कि मुँह से कोई ऐसी बात न निकल जाये, जो स्मिता को बुरी लगे। रवि ने अमन को फ़ोन किया। 

अमन ने बताया- “वह ऑफिस पहुँच गया है तो दोनों को उसने वहीं बुला लिया।”

 

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक दूसरे से जुड़ा होना कई बार बहुत लाभदायक रहता है। रवि एवं स्मिता ने एक दूसरे को लिंकडिन, फेसबुक आदि पर ब्लॉक नहीं किया था तो उन्हें लगभग सभी अच्छी बातें एक दूसरे के बारे में पता थी।

 

लोगों की आदत है कि वह उनके जीवन के हर खुशगवार मूवमेंट सोशल मीडिया पर शेयर करते है। केवल दुख के क्षण कभी शेयर नहीं करते है। इसलिए रवि व स्मिता को एक दूसरे के बारे में और कुछ पूछने की जरुरत नहीं हुई और वह इस समय दुखभरी बातें जानकर समय खराब नहीं करना चाहते थे।

 

स्मिता और रवि जब कम्पनी के ऑफिस पहुंचे तो वहां आलू की ग्रेडिंग हो रही थी। हरी सब्जियां धोने के बाद तोलकर प्लास्टिक के पैकिट्स में भरी जा रही थी। स्मिता को काम चलता देखकर अच्छा लगा। अमन कई सालों के बाद स्मिता से आमने सामने मिल रहा था। स्मिता को ऑफिस में देखकर अमन को अच्छा लगा। जब वे उसके केबिन में सेटिल हो गए तो स्मिता अमन के स्टार्टअप की कहानी पूछने लगी। हालांकि रवि की स्टोरी वह जानती थी। हर स्टार्टअप के फाउंडर के पास सुनाने को बहुत कुछ होता है और उनकी कहानी भी यूनिक होती है।

 

वे हर किसी को सुनाने के लिए हमेशा लालायित रहते है। अमन स्मिता को कहानी सुनाने लगा तो रवि काम देखने अंदर चला गया। मध्य प्रदेश के जबलपुर में पले-बढ़े अमन का जीवन बचपन से ही कहानियों से सराबोर था। वह कहानियां जो उन्होंने पढ़ीं और वे जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में देखीं।

 

मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मा अमन हमेशा बदलाव लाने के लिये कहानियों की शक्ति में  विश्वास करता था। और इसी विश्वास ने उसे सोशल वेंचर की शुरुआत करने की प्रेरणा दी। अमन व रवि की कहानी कई भारतीय स्टार्टअप्स के लिए एक प्रेरणा है, जो तकनीक और नवाचार के माध्यम से कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए काम कर रहे हैं।

 

जब कोई अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़कर बिजनेस शुरू करने की सोचता है तब सबसे पहले उसे परिवार का विरोध झेलना पड़ता है। हालांकि, अमन ने कहा कि इस मामले में वह लकी हैं। पापा इस दुनिया में नहीं हैं और मम्मी ने मेरा बहुत सपोर्ट किया, बल्कि मम्मी मेरे लिए किसी सील से कम नहीं हैं। इनके अलावा तमाम रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी उसके इस स्टार्टअप को सफल बनाने के लिए हर तरह से मदद की है।

 

नौकरी छोड़ने के बाद अमन ने एक साल का ब्रेक लिया और असली भारत को समझने का फैसला किया। इसके लिए वह एक स्टार्टअप से जुड़ा, जो मध्य प्रदेश में किसानों के साथ काम करता है। वहीं से अमन ने एग्रीकल्चर के बारे में सब कुछ सीखा।

 

अमन को पता चला कि किसानों का दिल इतना बड़ा होता है कि खुद का नुकसान होने के बावजूद वह अपने मेहमानों की खातिर करने में कोई कमी नहीं करते। वह कभी भी किसी भी किसान के घर चला जाता था, जहां चाहे वहां खाना खा लेता था और किसान भी उसे पूरे उत्साह के साथ अपना खेत दिखाया करते थे।

 

अमन के मन में वहीं से किसानों के लिए प्यार पैदा हुआ। इसके बाद अमन ने एग्रीकल्चर सेक्टर को अच्छे से समझना शुरू किया। अमन ने देखा कि इस सेक्टर में किसानों से लेकर कंपनियों तक सामान पहुंचने के बीच में बहुत सारी दिक्कतें हैं।

 

यहां उसे एक मौका दिखा, जिसके जरिए वह किसानों से जुड़ा भी रह सकता था। और एक बिजनेस भी भी बना सकता था। उसका एग्रीकल्चर सेक्टर में घुसने का प्लान तो नहीं था, लेकिन किसानों से मिले अपनेपन के बाद उसने एग्रीटेक स्टार्टअप शुरू करने का मन बना लिया। उस स्टार्टअप के जरिए किसानों से बहुत कुछ सीखा।

 

सभी जॉब की तरह इस बिजनेस में भी कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती अमन व रवि को यही झेलनी पड़ी कि उन्हें पुराने सिस्टम को तोड़कर उसमें घुसना पड़ा। भले ही पुराना सिस्टम कम कारगर हो, लेकिन किसान एक सिस्टम के तहत अपनी फसल बेचा करते थे। अमन एवं रवि ने एक बेहतर सिस्टम तैयार किया, लेकिन पुराने सिस्टम को तोड़ना उनके लिए सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण रहा।

 

इसके अलावा खेती में एक बड़ी चुनौती होती है मौसम, जिस पर किसी का काबू नहीं। वहीं अमन व रवि के बिजनेस में खेती ही सब कुछ है। ऐसे में उन्हें इस चुनौती का भी सामना करना पड़ा। खैर उन्होंने इससे निपटने के लिए कुछ अगेती, कुछ पछेती और कुछ सूखे की फसलें उगाने की रणनीति बनाई है, ताकि नुकसान ना हो।

 

दोनों शुरुआत से ही किसानों से जुड़ जाते। उन्हें बताते कि क्या उगाना चाहिए, कैसे उगाना चाहिए। साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करते कि किसानों से सारा सामान उचित दाम पर खरीदकर उपभोक्ताओं तक पहुंचाया जा सके। हालांकि फंड की कमी के कारण वह लोग अपने पूरे बिजनेस मॉडल को अभी तक लागू नहीं कर पाए हैं।

 

उम्मीद है अब जल्द फंडिंग मिल जाएगा तो वह व्यवस्थित काम कर सकते हैं। वे अब टीम बढ़ाने की सोच रहे है। इसी बीच कमरे में रवि आया। दोनों को साथ देखकर हिम्मत की और स्मिता ने पहली बार बताया- “वह भी इंडिया आकर उनके साथ काम करना चाहती है।”

 

रवि ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था तब अमन एकदम से उसे चुप करा कर बोला- "यह तो बहुत अच्छी बात है। हम लोग साथ मिलकर काम कर सकते है।"

 

स्टार्टअप के फाउंडर हमेशा अपनी टीम बढ़ाने के लिए उसी तरह लालयत रहते है। जैसे क्वांरी लड़की के बाप को हर कुंवारा लड़के में अपना दामाद दिखता है। उसी तरह हर पढ़े लिखे में स्टार्टअप फाउंडर को टीम मेम्बर नजर आता है। रवि को अब स्मिता के बदले व्यवहार की वजह पता चली, लेकिन वह चुप रहा। 

अमन बताता है- “उनकी बूटस्ट्रैप्ड कंपनी है यानी इसे अभी तक कहीं से कोई फंडिंग नहीं मिली है या यूं कहें कि इस कंपनी ने अभी कहीं से फंडिंग ली नहीं है।”

 

हालांकि, अमन ने मजाकिया अंदाज में कहा- “इस बिजनेस के लिए सारी फंडिंग दोनों ने मिलकर की है।”

स्मिता के लिए यह हैरानी की बात थी कि वह दोनों कितनी मेहनत से काम कर रहे है। स्मिता रवि को कभी इतना जिम्मेदार नहीं मानती थी, लेकिन यहाँ उसकी मेहनत देखकर उसकी धारणा बदल रही थी कि वह रवि को लेकर कितना गलत सोचती थी।

 

रवि को उसने बहुत प्यार भरी नजरों से देखा। रवि को अपने रिश्ते में एक उम्मीद की किरण नजर आ रही थी। अमन को स्मिता ने गर्व के साथ देखा।

 

अमन अपनी धुन में कह रहा था- “भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमेशा से कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है और देश में कृषि प्रथाओं का समृद्ध इतिहास है।

 

हालांकि बढ़ती आबादी के साथ, कृषि क्षेत्र में उत्पादकता एवं क्षमता बढ़ाने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी को अपनाना बहुत ज़रूरी हो गया है। हाल के वर्षों में एग्रीटेक स्टार्टअप्स द्वारा पेश किए गए आधुनिक समाधानों के चलते भारतीय कृषि में बड़े बदलाव आए हैं, जो पारम्परिक तरीकों के दायरे से बढ़कर कृषि को अधिक प्रभावी बना रहे हैं।”

 

वर्तमान में भारत में कई एग्रीटेक स्टार्टअप्स हैं, जो आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग कर कृषि को अधिक प्रभावी एवं स्थायी बनाने के लिए काम कर रहे हैं। ये स्टार्टअप किसानों को उनकी फसलों के बेहतर प्रबन्धन, उत्पादकता बढ़ाने, खर्च कम करने में मदद करते हैं। 

“वह लोग भी मध्य प्रदेश के सबसे बड़े स्टार्टअप बनना चाहते है, क्योंकि रवि का मानना है कि बड़े तालाब की छोटी मछली बनने से अच्छा है कि छोटे तालाब की बड़ी मछली बने।”

 

स्मिता की रूचि स्टार्टअप में देखकर रवि ने बोलना शुरू किया- ”हमारे देश में अधिक किसान छोटे और सीमांत हैं, जिनके पास एक हेक्टेयर या उससे कम भूमि है। उनकी इनपुट आवश्यकताएँ कम हैं, इसलिए वे आमतौर पर अपने गाँवों के छोटे दुकानदारों से खरीदते हैं।

 

हालांकि, इन दुकानदारों को आपूर्ति पाने में संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि बहुराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कंपनियों सहित बड़े निर्माता छोटे खुदरा विक्रेताओं को डीलर या वितरक के रूप में नियुक्त नहीं करते हैं। ये कंपनियाँ रिकॉर्ड, खाते और आपूर्ति श्रृंखला बनाए रखने के लिए बड़े व्यापारियों के साथ काम करना पसंद करती हैं।

 

इस समस्या को हल करने के लिए एक फ्रैंचाइज़ी मॉडल विकसित करना चाहते हैं। स्टार्टअप के माध्यम से छोटे दुकानदार फ्रैंचाइज़ी ले सकते हैं और अब उन्हें निर्माताओं से सीधे डीलरशिप या डिस्ट्रीब्यूटरशिप लेने की आवश्यकता नहीं है।”

 

उर्वरकों,कीटनाशकों और बीजों के लिए निर्माताओं से आपूर्ति की व्यवस्था करते हैं। लागत कम हो जाती है, हैंडलिंग कम हो जाती है और निर्माताओं या गोदामों से सीधे दुकानदारों तक सामग्री को कुशलतापूर्वक पहुँचाया जा सकता है, जिससे समय की बचत होती है। इस तरह, छोटे दुकानदारों को सामग्री सीधी दुकान पर मिलती है। इससे आपूर्ति श्रृंखला से कम से कम दो बिचौलिए समाप्त हो जाते हैं। इस तरह से फ्रैंचाइज़ी मॉडल की संरचना बनाना चाह रहे है।”

 

कृषि बाजार में सबसे बड़ी चुनौती कृषि उपज को बेचना है। भारत में दो प्रमुख कारक इसे प्रभावित करते हैं। पहला है उत्तराधिकार का कानून- जब कोई ज़मीन मालिक मर जाता है तब उसकी ज़मीन कानूनी उत्तराधिकारियों में विभाजित हो जाती है।

 

समय के साथ ज़मीन की जोत कम होती जा रही है और भारत सरकार के नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, औसत ज़मीन की जोत अब सिर्फ़ 0.5 हेक्टेयर रह गई है। इतनी छोटी ज़मीन होने के कारण, किसानों को कम इनपुट की ज़रूरत होती है, लेकिन चूँकि आपूर्ति श्रृंखला में चार बिचौलिए होते हैं।

इसलिए उन्हें कृषि आदानों के लिए ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ती है।

 

दूसरी ओर, जब वे अपनी उपज बेचते हैं, तो उन्हें मंडी बाज़ार जाना पड़ता है, जहाँ कमोडिटी बाज़ार को तीन प्रकार के खरीदारों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। राष्ट्रीय स्तर के स्टॉकिस्ट, प्रोसेसर और निर्यातक। इन खरीदारों की तीन बुनियादी ज़रूरतें होती हैं:— बड़ी मात्रा, लगातार एक जैसी गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण। छोटे और सीमांत किसान इन ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकते, इसलिए उनकी उपज अंतिम उपयोगकर्ता तक पहुँचने से पहले आपूर्ति श्रृंखला में कई व्यापारियों लगभग छह से सात बिचौलियों से होकर गुज़रती है।

 

प्रत्येक चरण में उत्पाद को वर्गीकृत किया जाता है और फिर से बेचा जाता है, जिससे लागत बढ़ जाती है और किसानों को कम कीमत मिलती है। किसान बिना ग्रेड वाली उपज बेचते हैं, इसलिए व्यापारी इसे कम कीमत पर खरीदते हैं। खुद ग्रेड करते हैं और बाद में गुणवत्ता के आधार पर बेचते हैं, जिससे उन्हें ज़्यादा मुनाफ़ा होता है।

 

ग्रेडिंग में पारदर्शिता की कमी के कारण किसानों की आय कम होती है, जिससे उनकी गुणवत्ता वाले बीजों, उर्वरकों और कीटनाशकों में निवेश करने की क्षमता प्रभावित होती है।’

 

लगातार स्टार्टअप का बिजनेस मॉडल सुनकर स्मिता का उत्साह और बढ़ गया।

 

इसके बाद उसने रवि की ओर देख कर पूछा ".....तो हमारा स्टार्टअप किसानों को इन चुनौतियों से निपटने में कैसे मदद करता है और आगे का क्या प्लान है?”

 

रवि ने बताया, "हम व्यापार केंद्र स्थापित करने पर काम कर रहे हैं, जो एक पूर्ण विकसित केंद्र होगा और किसानों की सहायता करेगा। पिछले वर्षों में भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में मैक्रो स्तर पर फसल-वार क्लस्टर बन गये हैं।

 

इन क्लस्टरों में मक्का, धान, सोयाबीन, गेहूं, चना, अरहर, प्याज, आलू, लहसुन और धनिया जैसी फसलें शामिल हैं, जिनमें प्रत्येक राज्य का अपना क्लस्टर है।

 

इन समूहों में सभी किसान एक ही फसल उगाते हैं, लेकिन वे अलग-अलग किस्म के बीज और अलग-अलग तरीकों से खेती करते हैं, जिससे उनके लिए थोक विक्रेताओं या प्रोसेसर को सीधे बेचना मुश्किल हो जाता है।

 

इस समस्या को हल करने के लिए हर एक केंद्र में लगभग चार सौ किसान सदस्य होंगे जो एक विशिष्ट फसल और किस्म उगाने का फैसला करेंगे। फिर हमारा स्टार्टअप उन्हें एक सेम पैकेज ऑफ़ प्रैक्टिस प्रदान करेगा, यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी चार सौ किसान सेम पैकेज ऑफ़ प्रैक्टिस से खेती करें।

 

हालाँकि वे अपनी ज़मीन पर व्यक्तिगत रूप से काम करेंगे, लेकिन उनकी उपज में एक समान गुणवत्ता होगी और बड़ी मात्रा में उपलब्ध होगी, जिससे प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेचना आसान हो जाएगा। यह हमारे स्टार्टअप का पूर्ण मॉडल है, जिसे हम वर्तमान में आंशिक रूप से लागू कर रहे हैं। जैसे-जैसे हम अधिक संसाधन जुटाते जायगें, हम इन केंद्रों का विस्तार करेंगे और विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित करेंगे।"

 

यह डिस्कशन इतना गम्भीर हो जाएगा किसी ने उम्मीद नहीं की थी। उन्होंने रात का खाना साथ खाने का निश्चय किया। तीनों होटल के डाईनिंग हाल में आ गये।

 

यहाँ सफलता का कोई नक़्शा नहीं होता, कोई फ़ार्मूला नहीं होता यह हर व्यक्ति की अलग-अलग यात्रा होती है क्योंकि हर व्यक्ति के लिए देश, काल व परिस्थितियाँ अलग-अलग होती है।

हर व्यक्ति के लक्ष्य, सफलता की परिभाषा अलग-अलग होती है तो उन्हें उन का रास्ता व रणनीति का ख़ुद चुनाव करना चाहिए। दूसरों के अनुभव, ग़लतियाँ व सलाह सुनकर सीख सकते है पर निर्णय स्वयं ले।

 

श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन को पूरी गीता सुनाकर कहा “ यथेच्छसि तथा कुरू” जैसी तेरी इच्छा हो वैसा तुम करो। यही वाक्य हर उद्यमी के लिए है कि कोई भी जोखिम न उठाना ही सबसे बड़ा जोखिम होता है।

 

अनुभूतियाँ या आईडिया ब्रह्माण्ड में हमेशा रहते है, वे नाशवान नहीं होते। वे इलेक्ट्रोमेग्नेटिक तरंगों के रूप में ब्रम्हांड में धूम रहे है। हमारा मस्तिष्क इलेक्ट्रोमेग्नेटिक तरंगो को ग्रहण करता है तथा उन्हें प्रक्षेपित भी करता है। जो लोग उस समय उस जगह उस ग्रहणशीलता की मनः स्थिति में होते है वे सब लोग एक साथ एक जैसी अनुभूतियाँ को ग्रहण कर सकते है। 

जिस अनुभूति पर हमारी चेतना चली जाती है वह अनुभूति हमारा विचार बन जाती है। जिस विचार पर हमारी शारीरिक ऊर्जा लग जाती है वह हमारा कर्म बन जाता है तथा जो कर्म बार-बार करते है, वह हमारी आदत बन जाती है। यही आदत हमारे मन में संस्कार के रूप में विद्यमान रहती है।

 

विचार को कर्म बनाने के लिए प्रेरणा की आवश्यकता होती है। लेकिन प्रेरणा नाशवान होती है। यह ताजे फूल की तरह होती है जिसकी समाप्ति की एक तिथि होती है। यदि आप कुछ करना चाहते है तो अभी करना होगा। यदि आप स्टार्टअप के विचार पर तत्काल काम शुरू नहीं करते है और कल के लिए टाल देते है तो आपकी प्रेरणा कुछ दिनों के बाद नष्ट हो जाती है।

 

इसलिए हमें तभी किसी विचार पर काम शुरू करना होता है जब वह आया है। तब आपकी ऊर्जा अपने चर्मोत्कर्ष पर होती है। प्ररेणा जादू की तहर है, और उत्पादिता कई गुणा प्रेरक के प्रभाव को बड़ा देती है। लेकिन यह आपका इंतजार नहीं करती है। यह अभी की बात है यदि इसे अभी पकड़ कर आप काम शुरू कर देते है तभी यह आप के काम की है। हम लोग बहुत आसानी से हर बात से प्रेरणा लेने लगते है। ऐसे में हमें अपनी प्राथमिकताएं निश्चित कर सफलता के लिए लगातार निरंतर काम करना होगा।

 

स्टार्टअप को फंडिंग मिलने का ईमेल तभी रवि और अमन के मेल बॉक्स में आया और दोनों के मोबाइल के स्क्रीन पर नोटिफिकेशन चमक उठा। तीनों ने इस मौके को सेलीव्रेट करने का सोच कर फिर से सुले वाईन का आर्डर किया। रवि को लगा कि अब अच्छे दिन लौट आए है।

आखिरकार इन्वेस्टर से इन्वेस्टमेंट की टर्मशीट मिल गई थी। इस पर वह दोनों लीगल एड़वाइजर के साथ दो दिन से बैठक कर रहे थे। स्टार्टअप फंडिंग के लिए निवेश टर्म शीट एक गैर-बाध्यकारी समझौता है, जो निवेश की मुख्य शर्तों को रेखांकित करता है। अंतिम कानूनी समझौते से पहले निवेश के लिए आधार तैयार करता है। टर्म शीट एक ऐसा दस्तावेज है, जो निवेश की शर्तों को बताता है, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता है।

 

निवेश की शर्तें में निवेश की राशि, कंपनी का मूल्यांकन, शेयर होल्डिंग, वोटिंग राइट्स और अन्य महत्वपूर्ण शर्तें शामिल होती हैं। फंडिंग का आधार पर यह स्टार्टअप और निवेशकों के बीच निवेश के लिए एक शुरुआती बिंदु के रूप में काम करता है।

 

अंतिम समझौते का आधार पर यदि निवेश आगे बढ़ता है, तो टर्म शीट अंतिम कानूनी दस्तावेजों के लिए आधार के रूप में कार्य करती है। टर्म शीट में शामिल होता है निवेश की राशि, निवेशक द्वारा कंपनी में कितना निवेश किया जाएगा। कंपनी का मूल्यांकन और निवेश से पहले कंपनी का मूल्य कितना है।

 

शेयर होल्डिंग, निवेशक को कंपनी में कितना हिस्सा मिलेगा। वोटिंग राइट्स, निवेशक को कंपनी के निर्णयों में कितना वोटिंग अधिकार मिलेगा। प्राइसिंग यानी शेयर की कीमत क्या होगी। निवेश की शर्तें, निवेशक को निवेश से पहले क्या शर्तें पूरी करनी होंगी।

 

निवेश की अवधि यानी निवेश कितने समय के लिए होगा। निवेश की वापसी यानी निवेशक को अपना निवेश कैसे और कब वापस मिलेगा।

 

टर्म शीट का महत्व टर्म शीट निवेश की शर्तों को स्पष्ट करती है, जिससे स्टार्टअप और निवेशक के बीच गलतफहमी से बचा जा सकता है। समय की बचत यह अंतिम कानूनी समझौते से पहले बातचीत को आसान बनाता है, जिससे समय और पैसे की बचत होती है।

 

इस कारण दोनों हर बात स्पष्ट रूप से समझ कर अंतिम रूप देना चाहते थे। इनको पैसों की बहुत जरुरत थी, इसलिए ये लोग इन्वेस्टर के साथ बहुत निगोशिएट नहीं कर सकते थे। साथ ही वह ऐसी कोई गलती भी नहीं करना चाहते है जो आगे परेशानी का कारण बने।

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स्टार्टअप्स महाकुंभ 

नई दिल्ली में आयोजित स्टार्टअप महाकुंभ में भाग लेने के लिये अमन के स्टार्टअप को भी बुलाया गया। मिस्टर बीन्स कैफे में अमन, स्मिता तथा रवि इस सिलसिले में बात करने के लिए बैठे और काफी देर विचार विमर्श के बाद तीनों ने इसे स्टार्टअप की सफलता को दिखने के लिये एक अवसर के तौर पर देखा। 

बातों ही बातों में स्मिता ने कहा देशभर के स्टार्टअप के फाउंडर्स और इन्वेस्टर्स से मिलाने का एक बेहतरीन अवसर होगा। इसी बीच तीनों की कॉफ़ी आ गई थी और आसपास की टेबिलों पर लोग आपसी चर्चा में व्यस्त थे। 

अमन ने कॉफ़ी पीते हुए कहा कि तुम दोनों इस प्रोग्राम में शामिल होने जाओगे, सो इस सिलसिले में जो तैयारी करनी हो वह कर लो। इंदौर में ऑफिस का काम मैं संभाल लूंगा।तुम दोनों यहां के काम की चिंता मत करो। 

दो दिन बाद रवि तथा स्मिता प्रोग्राम में भाग लेने दिल्ली चले गये। रवि और स्मिता  एयरपोर्ट से होटल पहुंचे और तैयार हो कर  स्टार्टअप महाकुंभ में पहुंच गये। इस की थीम ‘स्टार्टअप इंडिया @ 2047 थी, जिसका उद्देश्य भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के भविष्य को आकार देना था।  

 

इस कार्यक्रम का नेतृत्व भारत के अग्रणी स्टार्टअप इकोसिस्टम लीडर्स द्वारा किया जा रहा था। इसका नेतृत्व फिक्की, एसोचैम, आईवीसीए, नैसकॉम, बूटस्ट्रैप फाउंडेशन जैसे संगठनों के सहयोग से किया गया था। जिसमें राष्ट्रीय स्टार्टअप सलाहकार परिषद एनएसएसी, डीपीआईआईटी और स्टार्टअप इंडिया का समर्थन भी शामिल था। 

इस कार्यक्रम में एआई, डीपटेक, साइबर सिक्यूरिटी, हेल्थटेक, बायोटेक, एग्रीटेक, एनर्जी, प्रिसिजन मैन्युफैक्चरिंग, डिफेंस, स्पेस टेक, मोबिलिटी, फिनटेक, गेमिंग, स्पोर्ट्स और क्लाइमेट टेक जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे स्टार्टअप्स ने भाग लिया। 

इस दौरान रवि और स्मिता को पहले ही दिन देश के बेहतरीन  इनक्यूबेटर और एक्सेलेरेटर से मिलने का मौका मिला। दोनों ने डी2सी एवं बी2बी को अपने स्टार्टअप के संदर्भ में समझने का प्रयास किया। 

दोनों ने सेक्टर वाइज प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन सत्र, मास्टर क्लास, पिचिंग, गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। 

इसमें भारत के वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल ने स्टार्टअप्स के फाउंडर्स को रिअलिटी चेक कर धरातल की वास्तविकता का विश्लेषण करते हुए कहा, "भारत के स्टार्टअप्स आज के दौर में क्या कर रहे हैं? 

हमारा ध्यान फूड डिलीवरी एप्स की तरफ ज़्यादा है। हम बेरोजगार नौजवानों को सस्ते लेबर में बदल रहे हैं ताकि अमीर लोगों को बिना घर से बाहर निकले खाना मिल सके। 

अगर देखें तो चीन के स्टार्टअप क्या कर रहे हैं? 

वे इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और बैट्री टेक्नोलॉजी को विकसित करने पर काम रहे हैं। जिसके चलते आज चीन रोबोटिक्स, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, बैट्री टेक्नोलॉजी, मशीन लर्निंग, ऑटोमेशन, 3D मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में बहुत आगे है।

वहीं, क्या हमें सबसे बेहतर बनने की आकांक्षा रखनी चाहिए या फिर हम डिलीवरी बॉय और गर्ल बनकर खुश रहने वाले हैं?

स्टार्टअप फैंसी आइसक्रीम और कूकीज़ बेच रहे हैं। हेल्दी आइसक्रीम, ज़ीरो ग्लूटन फ्री और यह विगन है। ये सब शब्द लगाकर अच्छी पैकेजिंग करके अपने आपको स्टार्टअप बोलते हैं। यह स्टार्टअप नहीं है। यह व्यवसाय है, दुकानदारी है। भारत को क्या करना है आइसक्रीम बनानी है या चिप्स बनानी है? इसके लिए हमें हिम्मत दिखानी होगी।

मंत्री के भाषण के बाद स्टार्टअप्स फॉउंडर्स, इन्वेस्टर्स, तथा बिजनेस जगत में चर्चा शुरू हो गई। और स्वाभाविक तौर पर पक्ष और विपक्ष सामने आ गए। 


यह तो सदियों से चला आ रहा है कि जब भी कोई व्यक्ति सच का आईना लोगों के सामने रखता है तब सम्बन्धित क्षेत्र से जुड़े लोगों को  कड़ी चोट लगती है। समाज के विभिन्न तबकों में एक बहस शुरू हो जाती है, लेकिन सच का कोई मुकाबला नहीं हो सकता। कोई इसे स्वीकार करे या ना करे, लेकिन आखिरकार उस सच को स्वीकारना ही पड़ता है।

एग्रीटेक स्टार्टअप्स की लिये अलग से पैवेलियन बनाया गया था  और दोनों ने इस सेक्टर में जाकर एग्रीकल्चर के विविध ब्रांचों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का प्रयास किया। यह उन तीनों के स्टार्टअप को भविष्य में बूस्ट करने में मददगार होने वाला था।

    

दोनों ने बहुत बढ़िया सेशन “एग्रीटेक स्टार्टअप सफल क्यों नहीं हो रहे हैं?”  विषय पर अटेंड किया।

इसमें प्रेजेंटर ने बताया, “भारत में एग्रीटेक स्टार्टअप्स को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनकी सफलता में बाधा डालती हैं। इसमें सीमित बाजार, उच्च लागत और किसानों में डिजिटल साक्षरता की कमी शामिल है। इस के अलावा  क़ानूनी प्रावधानों  की जटिलता और स्थापित खिलाड़ियों से प्रतिस्पर्धा के साथ मिलकर स्टार्टअप को लाभ हासिल करना मुश्किल बना देता हैं।”

 

एक फाउंडर ने प्रेजेंटेशन में एग्रीटेक स्टार्टअप्स के बारे में बताया कि शुरुआत से लेकर अभी तक काफी डाउन फॉल देखा है। इस संबंध में उन्होंने ढेर सारे आंकड़े भी दिखाए। भारत में एग्रीटेक स्टार्टअप्स बड़ी संख्या में बंद हुए है और जो चल भी रहे है उन्हें काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अधिकांश किसान बेहद छोटे किसान है जिनके पास बहुत कम जमीन है। इसका सीधा असर देश के खाद्यान्न उत्पादन, सब्सिडी तथा उपभोक्ता पर पड़ रहा है, जबकि भारत में किसानों की संख्या काफी अधिक है और उनकी आमदनी बहुत कम है। दूसरी ओर अमेरिका जैसे देशों में किसानों की संख्या कम है तथा उनकी आय अधिक है। इससे स्पष्ट है कि भारतीय कृषि बहुत अकुशल तरीके से की जा रही है। 

एग्रीटेक स्टार्टअप्स ने किसानों की आय में वृद्धि, खेतों पर उन्नत उपकरण, तकनीक का उपयोग, सुव्यवस्थित आपूर्ति श्रृंखला और बिचौलियों जैसी अक्षमताओं को खत्म करने के लिए मोबाइल ऐप, डेटा एनालिटिक्स, खुदरा विक्रेताओं, होटलों और उपभोक्ताओं को जोड़कर किसानों की आय में वृद्धि का वादा किया था। इस कारण इस सेक्टर में बड़े पैमाने पर निवेश आ रहा था।


दुर्भाग्य है कि वर्तमान में किसानों और उपभोक्ताओं के बीच बिचौलियों  की भूमिका को समझने में स्टार्टअप्स विफल रहे हैं। बिचौलियों के प्रभाव ने किसानों के बीच ऋण तथा बाजार की सेवाओं को देकर विश्वास पैदा किया है। इंवेस्टर के दबाव के चलते अधिकांश स्टार्टअप्स ने बिचौलियों के साथ काम करना शुरू कर दिया। 

स्टार्टअप्स द्वारा विकसित अधिकांश मोबाइल डिवाइस और डेटा का किसानों द्वारा अभी उतना उपयोग नहीं किया जा रहा है। इंवेस्टर ने कम समय में अपने मुनाफे को अधिकतम करने की पॉलिसी पर काम किया है। वहीं, एग्रीटेक स्टार्टअप्स की ग्रोथ बहुत धीमी होती है तथा अन्य सेक्टरों की तुलना में मार्जिन कम होता है।

भारत सरकार ने प्रगतिशील तीन नए कानून कृषि सेक्टर में लागू  किये थे। मगर सरकार को  किसान आंदोलन के कारण तीनों कानून वापस लेने पड़े । सरकार ने डर कर नीतिगत बदलाव के लिये निर्णय लेना तब से बंद ही कर दिया। यदि हमारी सरकार चाहती है की एग्रीटेक के माध्यम से खेती में बदलाव लाया जाए तो शीघ्र कदम उठाना होंगे। वरना खतरा मंडरा रहा है वर्षों की मेहनत बेकार चली जाएगी। यह प्रेज़ेन्टेशन देखते हुए रवि अपने ख्यालों में खो गया। उसे अनायास याद हो आया कि उसने खुद स्टार्टअप कैसे शुरू किया था।

शाम को रवि और स्मिता होटल आ गये। दिन भर की भागमभाग के कारण दोनों बहुत थक गए थे। उन्होंने कमरे में ही खाना बुलाकर खाया। थकान के कारण दोनों जल्दी सो गए। रवि के स्टार्टअप के बैंक अकाउंट में तीन साल के रनवे लायक ड्राई पॉवडर जमा था। 

बड़े शहरों में सिर्फ दिन ही नहीं बल्कि रात कैसे बीतने लगाती है पता ही नहीं चलता। रात में रवि को सपना आया जिसमें  रवि को उज्जैन में राजा भर्तृहरि से रामघाट पर हुई पहली मुलाकात सहित ढेर सारी स्मृतियां याद आ रही थी। रवि को सपने में नाथ आश्रम के महंत योगी से हुई बातचीत याद हो आई। 





जीवन का कोई भी काल खण्ड हो हमेशा उतार चढ़ाव वाले रास्ते से होकर ही व्यक्ति मंजिल तक पहुंच पाता है। इसके लिए व्यक्ति को एक ऐसी टीम की जरुरत होती है, जो मुश्किल वक्त में विश्वास के साथ खड़ी हो। वही सफलता के वक्त अति उत्साहित न हो और उसके पैर जमीन पर ही रहे। जीवन में असफलता के बाद ही सफलता मिलती है और सफलता के बाद असफलता का आना निश्चित होता है। 

राजा भर्तृहरि रवि के बगल में सोई स्मिता को देख कर मुस्कुराये और उनके मुँह से निकला “सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।” 






 



 






 

 

 






 



 



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