दा न्यू बर्ल्ड ऑर्डर
नया भारत
दा न्यू बर्ल्ड ऑर्डर
डॉ.रवीन्द्र पस्तोर
पहलगाम आतंकी हमला
पहलगाम आतंकी हमले का नया एक्सक्लूसिव वीडियो सामने आया है। वीडियो में आतंकी बैसरन इलाके के खुले मैदान में पर्यटकों पर फायरिंग करते दिख रहे हैं। जिससे लोगों में भगदड़ मच गई। यह अंधाधुंध नहीं बल्कि टारगेटेड फायरिंग थी; सरकार का दावा है कि टूर ऑपरेटर ने पुलिस को इस इलाके में पर्यटकों के जाने की सूचना नहीं दी थी।
पहलगाम में छह दिन पहले हुए आतंकी हमले का एक दिल दहलाने वाला वीडियो सामने आया, जिसमें एक सैलानी के जिपलाइन पर लगे कैमरे में पूरी वारदात कैद हो गई। चश्मदीद ने बताया कि कैसे नीचे गोलियां चल रही थीं और उन्हें बीस सेकंड बाद हमले का पता चला।
उनके अनुसार, करीब पांच आतंकी सेना की वर्दी में थे। चेहरे ढके हुए थे और वे लोगों का धर्म पूछकर गोली मार रहे थे।
“किसी के सामने दुनियां ऐसे ख़तम नहीं होना चाहिए। हमें नहीं पता था कि कश्मीर हमारे लिए इतना ख़राब हो जाएगा? हम ने तो गवर्नमेंट के प्रचार पर भरोसा किया, कश्मीर लोगो के लिए सैफ है, तीन सौ सत्तर हट चुकी है। अब लोग कश्मीर जा रहे है। लोग घूमेगे, तो हम लोग भी इसी हिसाब से गए थे।”
यह एक सैलानी की पत्नी की आपबीती कहानी है जो वह वीडियो पर एक इंटरव्यू में सुना रही थी।
“जब पत्नियों ने उनसे उन्हें भी मार देने का अनुरोध किया तो उनने कहा कि हमने तुम्हारे पतियों के साथ जो किया है तुम जा कर गवर्नमेंट को बताओं। हमारी सरकार तथा आर्मी ने हमें वहां अनाथ छोड़ दिया था। मेने अपने प्यार को, अपने पति को खोया है। अपनी दुनिया को ख़तम होते देखा है।”
यह बातें पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए एक पति की पत्नी ने मिडिया से कहीं। उसकी आँखें लाल थी और रोते - रोते आशू गालों पर सूख गए थे, कपडे तथा बाल गन्दे व अस्तव्यस्त थे।
जब यह हमला हुआ तान्या अपने पति के साथ वही मौजूद थी। तान्या ने बताया कि “मेरे पिता की हम दो बेटियां है। एक मेरी छोटी बहन है। मेरे माता पिता का हमेशा से स्वप्न था कि मेरा जो भी दामाद होगा वही उनका बेटा होगा।
मेरा पति सुरेश उनका बेटा ही था, उसमें दमाद जैसा भाव नहीं था। वह दामाद बना ही नहीं। वह दोनों परिवारों का बेटा था।”
“पहले हम चार लोग रहते थे अब पांच रहते थे। हम लोग छह माह पहले ही मिले थे। वह बहुत घूमता था, कई देश घूम चुका था।
हमें वह घुमाने, पार्टी करने ले जाता था।
मुझे जितने मजे वह करावा सकता था, करवाता था। उसने मुझे बच्चे जैसा बना दिया था। मेरी बहने, मेरे सभी दोस्तों, रिश्तेदारों को इस बात की ख़ुशी थी, कि उसने मेरा बचपन बापिस ला दिया था।” लगभग रोते हुए उसने कहा
“उसे मैगी बहुत पसंद थी, वह रात को दो बजे पूछता मैगी खायगी। मै कहती में बना देती हूँ तो बोलता नहीं गाड़ी से चलते है। फिर हम बाहर जा कर मैगी खा कर लौटते थे। पिछले छह माह में हम लोग इतने लाउड जिये कि लगता है कि हम दोनों एक दूसरे को कई साल से जानते थे।” उसका गाला रुध गया उसने भराई आबाज में कहा
“शादी को दो ही महीनें हुए थे। हमें एक फैमली ट्रिप प्लान करना थी। जब मेरी शादी हुई तभी से मै उसको कर रही थी, कि साल में दो फैमली ट्रिप करेंगे, बाकि हम लोगोँ की ट्रिप तो होती रहेंगी। जिस में एक घूमने बाली और एक धार्मिक यात्रा जैसी।”
“तो वह सब से राय लेता कहाँ चलना? कहाँ चलना? कहाँ चलना? सभी ने कहा कश्मीर, कश्मीर, कश्मीर। सभी एक मत थे। हमें नहीं पता था कि कश्मीर हमारे लिए इतना खराब हो जाएगा?
हाथ जोड़ कर तान्या ने सभी से अनुरोध किया कि कश्मीर मत जाओं वह शेफ नहीं है। गवर्नमेंट झूठ बोलती है।”
यह सब बोलते हुए उसकी आँखों में एक सूनापन दिख रहा था।
उसके सामने उसके पति को ब्लैंक पॉइन्ट से सिर में गोली मर दी थी।
“उस आतंकी ने हमारी तरफ आना शुरू किया था। एक फायर हवा में किया।”
उसने हम से पूछा कि "हिन्दू हो या मुस्लमान?"
हम समझ नहीं पाये। कि वह बोलना क्या चाहता है?
मेने दुबारा पूछा "क्या हुआ भैया?"
तो उसने चिल्ला कर कहा "हिन्दू हो कि मुस्लमान? मुस्लमान हो तो कलमा पड़।"
तो हम लोगों ने मुस्करा कर कहना चाहा। हमें अभी तक समझ नहीं आया था कि यह आतंकी हमला है। हम समझ रहे थे कि कोई प्रेंक कर रहा है। मजे के लिये पूंछ रहा है। हमें नहीं लगा कि हम कहेगे कि हम हिन्दू है और वह गोली मर देगा। हमें लग रहा था कि मस्ती चल रही है। क्योंकि उस जगह बहुत टूरिस्ट थे जो मस्ती कर रहे थे। बच्चें खेल रहे थे। दौड़ रहे थे। लोग नाच रहे थे। कुछ लोग दुकानों पर कुछ खा रहे थे।
जैसे ही मेरे पति ने गर्व से कहा कि "हिंदू है," वाक्य भी पूरा मुँह से नहीं निकल पाया था कि उसके सिर पर बिलकुल पास से, सामने से गोली मर दी।
वह नीचे गिर गया मै वहां बैठ गई। वह मेरी गोद में तत्काल तड़प कर मर गया था। उसकी आँखें तब भी प्यार से मुझे देख रहीं थीं। उसका सिर गोद में ले कर, हाथ जोड़ कर उस व्यक्ति से मुझे भी मारने का अनुरोध, किया
"भैया मुझे भी मारा दो !"
उसने बिना कोई इमोशन के पथराई आबाज में कहा
"नहीं, तुम जा कर अपनी सरकार को बताना कि मेने तुम्हारे पति के साथ क्या किया।"
उसने मेरे सिर पर गन रख कर धक्का मारा और चला गया।
मेरा पति उनका पहला विक्टिम था। हम गेट के पास ही थे। हम बाहर भाग सकते थे। लेकिन हम नहीं भागे इससे कई लोगों की जान बच गई। कई घर उजड़ने से बच गये।
“मैं सामने देख रही थी लोग भाग रहे थे हम भी भाग सकते थे। वहां कोई लोकल सपोर्ट नहीं था। वह दुर्गम पहाड़ी है वहां से नीचे आना बहुत कठिन था। उनका जो गुस्सा है वह सरकार के प्रति है, पर इनोसेंट लोग मर रहे है।”
“यह सरकार की असफलता है। सरकार की गलती की बजह से लोग मरे है। उसे सरकार को शहीद का दर्जा देना चाहिये। मेरे मन में आतंकबाद को ले कर बहुत गुस्सा है। मुझे इस को ख़तम करने के लिये काम करना है।”
“ये हर जगह है। ये जल्लाद है। ये देस ख़तम कर देंगे। ये घर में घुस जायगे। ये हिन्दू मुसलिम नहीं है। एक दो के प्रति कार्यबाही करने से कुछ नहीं होगा। इनकी नश्ले है। सालों से हम हिन्दू ही क्यों मर रहे है? मुझ में जैसे ही ताकत आयगी मै इस काम को करुगी।” तान्या ने बेबसी तथा लाचारी से देखा।
आत्मसमर्पण
तान्या ने अपनी कहानी शुरू से सुनाना शुरू किया
“जब मैं छोटी थी तब मुझे पुराणों की वह कहानियां अच्छी लगती थी जिनमें दैत्य तथा देवता गणों के बीच धर्म और अधर्म, अच्छाई और बुराई की लड़ाई होती। हम प्रीति दिन बुराइयों से सक्रिय रूप से जंग लड़ते है। हमारी जिन्दगी में शैतानी ताकतों का असर होता है, और आप को इन ताकतों से हमेशा सावधान रहना जरुरी है।”
ये सब कहानियां बचपन में दुनिया को बहुत डरावनी जगह बना देती है। और दूसरी ओर दुनिया बहुत रोमांचक है।
“मैने बचपन में देखा था कि मेरे दादाजी बहुत बीमार रहते थे। वह समय - समय पर गीता का पाठ किसी पण्डित जी को बुला कर सुनते थे। पण्डित जी उनके मोक्ष के लिये अनुष्ठान भी करते थे। ताकि मृत्यु के समय भी वह भगवान का स्मरण बनाये रख सके।
कभी - कभी कुछ लोग उनके अच्छे होने के लिए प्रार्थना करते थे ताकि बीमारी हार जाय और वह कुछ ज्यादा जी सके। मोक्ष तथा जीवन चक्र से मुक्ति का सवाल मेरे मन में अटकसा गया। इस की खोज मुझे उन पुस्तकों तक ले गई जिन में मैरी दिलचस्पी बढ़ती गई।” तान्या मेरी आखो में सीधे देखा।
“जब में बीस साल की थी मैं धर्म के ऊपर अपनी डायरी लिखने लगी। तभी हमारी मुलाकात एक सहेली से हुई, जिसका नाम था संगीता। जो बहुत धनी परिवार से थी। बहुत जिन्दा दिल इंसान थी। पढ़ाने में तेज थी तथा पेंटिंग बनती थी। मैं हमेशा उनके साथ रहती मुझे उन्हें पेन्टिंग करते देखना अच्छा लगता।”
उसने सूनी आँखों से दूर देखते, बोलना जारी रखा
“दिन भर उनके पीछे - पीछे चलती रहती। हम लोग पेन्टिंग के लिये अलग अलग जानवर, घोड़े तथा लोग ढूढ़ते रहते थे। उनकी शादी होने बाली थी फिर उनने एक दिन यह सब छोड़ दिया। वह बहुत दूर चली गई। उनके परिवार का मानना था कि उसने कोई संस्था ज्वाइन कर ली थी।”
उस के परिवार ने कहां की वह मेरी सबसे अच्छी सहेली थी तो मुझे उससे मिलाना चाहिए और पता करना चाहिए की क्या चल रहा है। कई साल बाद जब मेरे पति की पहलगाम में हत्या हो गई थी तब उस का परिवार मुझ से मिलने आया था, तब बातों - बातों में उस का जिक्र आने पर यह सुझाव दिया था। क्योंकि व्यक्तिगत कारणों से वह परिवार के लोगों से नहीं मिलती थी।
जिन हत्यारों ने मेरे पति को गोली मारी थी वह अभी भी पकड़े नहीं गये थे। मैं उनके धर्म, उनके आदर्श तथा विचारधारा को समझना चाहती थी। जिसके कारण वे लोग इतने निर्दयी हत्यारे बन गये थे। जिन्होंने अनजान निहथे लोगों की जान केवल इसलिये ले ली कि हम हिन्दू थे।
हमारी उन से कोई दुश्मनी नहीं थी। हम उनके राज्य में बसने नहीं गये थे। हम तो शादी के बाद केवल घूमने गये थे। उन्होंने अकारण मेरा प्यार, पति सब कुछ वैवाहिक जीवन शुरू होने के पहले छीन लिया और मुझे विधवा बना दिया।
मैं उससे मिलने उस के आश्रम गई। उसने मुझे बताया कि उनका संगठन सनातन धर्म जो खत्म हो रहा है, जो सभी की भलाई के लिये बना था, उसे वापिस स्थापित कर 'हिन्दू राष्ट्र' बनाने के लिये काम कर रहा है।
जिससे समाज में बुराईयों को समाप्त कर अच्छाइयों को स्थापित कर सके। ताकि ये जो धर्म युद्ध के नाम पर लोग मारे जा रहे है, उन हत्याओं को रोका जा सके।
वह बिलकुल बदली हुई लग रही थी। उसने मुझे उन लोगों के बारे में बताया जो मेरे पति के कातिलों तक मुझे ले जा सकते है। हम राम तथा कृष्ण को मानते है और लोगों की सेवा करते है। हम कट्टरपंथी नहीं है। संस्था के कोई नियम नहीं है। कोई पाबंदियां नहीं है। कोई नेता नहीं है। हम सब स्वयं सेवक है। अपने काम खुद करते है।
यह एक समूह है, कुछ लोग है जो साथ रहते है। अच्छा लगता है। उसने जो बताया वह बहुत आकर्षक लगा। उसने मुझे खुद आ कर देखने के लिये आमंत्रण दिया।
मैं उस के आमंत्रण को मान कर नियमित वहां जाने लगी। जब मैं वहां जाने लगी तो, उन्होंने मेरे परिवार, जीवन तथा भविष्य के सम्बन्ध में पूछताछ की और मैने सारी जानकारी सही - सही बता दी।
मेरे मन में संस्था के लोगो के प्रति अनेक विचार आते लेकिन मैं सोचती कि जब आंधी आती है। तो घर के बाहर बहुत कूड़ा कचरा जमा हो जाता है। लेकिन उसे हम घर के अन्दर नहीं आने देते, किबाड़ बंद कर लेते है। और यदि आ भी जाय तो झाड़ू लगा कर फेंक देते है।
इसी तरह हमारा मन होना चाहिये। या तो नकारात्मक विचार अन्दर आने नहीं देने चाहिए। यदि आ जाय तो विवेक की झाड़ू से झाड़ कर बाहर फेंक देना चाहिए। मैने यही किया। मन में उठाने वाली शंकाओं को मन से बाहर कर दिया।
मैने संगीता दीदी को उनके पूछने पर अपनी कहानी बताई। हाँ, उन्हें में इसी तरह बुलाती हूँ। “जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में अप्रैल के बाद की बात है जब आतंकियों ने पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा कर अठाइस लोगों की नृशंस हत्या कर दी थी। सेना की वर्दी में आए दहशतगर्दों ने पहलगाम की बायसरन घाटी में पर्यटकों से पहले उनका धर्म पूछा, परिचय पत्र देखे और फिर हिंदू हो कहकर गोली मार दी। जिन में एक मेरे पति भी थे।”
संगीता दीदी ने बताया “पहलगाम घटना के बाद हम साफ दख सकते है कि यह अच्छाई और बुराई के बीच की जंग है। धर्म निर्पैक्षता क्यों ख़त्म हो रही है? इस विषय पर मैं एक सर्वे करना चाहती हूँ । दीदी पूरी तरह बदली लग रही थी।
उन्होंने कहा कि “क्या मैं उन्हें इस सर्वे में मदद कर सकती हूँ?”
तो मैने “हॉ” कर दी।
मैं अब लगभग रोज उनके पास जाने लगी। मैने पाया कि उनके संगठन में बहुत सारे लोग जुड़े हुए है। कुछ असली तो कुछ नकली। कुछ धार्मिक तो कुछ धर्म न मानने वाले। कुछ शक्की तो कुछ सवाल करने वाले। देश के अनेक अलग अलग राज्यों से लोग आये थे। कुछ विदेशी भी थे।
वहां की सबसे अच्छी बात यह थी कि ज्यादातर लोग बहुत पड़े लिखे थे। यहाँ जो लोग थे वह सब अपनी जिंदगी को कुछ मायनें दे सके, इसलिए एक बड़े सगंठन का हिस्सा बन कर अच्छा तथा सुरक्षित महसूस करते थे।
बीच - बीच में वहां कुछ बहुत सीनियर लोग आ कर हम लोगों से संवाद करते थे। एक दिन सगंठन प्रभुख आये। बहुत लोग एक हाल में एकत्र थे। उन्होंने पूछा कि महाभारत युद्ध का हीरो कौन था। किसी ने कहा अर्जुन, कोई बोले कि कर्ण तो किसी ने भीष्म पितामह का नाम लिया। तब उन्होंने एक कहानी सुनाई
महाभारत में बर्बरीक की कहानी है कि “वह भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र था, जो एक शक्तिशाली योद्धा था और उसे शिव का अवतार माना जाता है।
जब महाभारत का युद्ध प्रारम्भ हुआ, तो अपने पिता की भाँति बर्बरीक ने भी अपनी माता के सामने युद्ध में भाग लेने की इच्छा प्रकट की और इन्हें युद्ध में भाग लेने की आज्ञा मिल भी गयी। लेकिन साथ में उनकी माता ने यह वचन भी लिया कि तुम युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ निभाओगे।
बर्बरीक ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि वह हमेशा हारने वाले पक्ष का समर्थन करेगा। बर्बरीक को शिव का वरदान था। जिससे उसे तीन अमोघ बाण मिले थे। जो किसी भी सेना को नष्ट कर सकते थे।
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को युद्ध में भाग लेने से रोका। क्योंकि वे जानते थे कि बर्बरीक की शक्ति युद्ध का परिणाम बदल सकती है। श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के भेष में बर्बरीक से भिक्षा में उसका सिर माँगा, और बर्बरीक ने बिना किसी हिचकिचाट के अपना सिर दान कर दिया।
लेकिन उन्होंने एक इच्छा जताई कि वो महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहते हैं। इसलिए, भगवान् श्रीकृष्ण ने उनके कटे शीश में अमृत डालकर उसे एक पहाड़ की चोटी पर रख दिया, ताकि वहाँ से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सके।
युद्ध के अंत में पांडवों में आपस में विवाद होने लगा कि पूरे युद्ध की विजय का श्रेय किसे जाता है?
तब कृष्ण ने कहा कि बर्बरीक इस बात का निर्णय कर सकते हैं। क्योंकि उसने शुरू से युद्ध को देखा है। तब बर्बरीक के कटे सिर ने श्रीकृष्ण को युद्ध की विजय का श्रेय दिया। और कहा कि कृष्ण की बुद्धि चातुर्य और साहस, निर्णय. युद्धनीति की वजह से ही ये युद्ध निर्णायक रहा। पूरे युद्घ भूमि में मैंने सुदर्शन चक्र को घूमते देखा। श्री कृष्ण ही युद्घ कर रहे थे और श्री कृष्ण ही सेना का संहार कर रहे थे। जैसे हम अपने लीडर चुनते है, इसी तरह भगवान अपने लीडर चुनते है। देश में हो रहे धर्म युद्ध के लिये तुम्ह चुने गये हो।”
संगठन की बैठकों में समय - समय पर पब्लिक लाइफ से जुड़े लोग आते थे। जिनमें बड़े बकील जैसे अटॉर्नी जर्नल, मंत्री, बिजनिस मेन, बिल्डर, विदेशी राजनयिक, विदेशी सरकारों के पदाधिकारी, लेखक, कलाकार, पत्रकार तथा सीनियर ब्यूरोक्रेट आदि।
यहाँ आने बाले महत्वपूर्ण लोगों की देखभाल करने का दायित्व हम स्वंय सेवकों को दिया जाता था। यहां ये लोग अपने दिल की बात कर सकते थे। कैमरों की नज़रों से दूर। इस विश्वास के साथ कि यह सामाजिक संगठन है, ना कि राजनैतिक। और यही इस संगठन की खास बात है कि वे ईश्वर का काम कर रहे है।
संगठन प्रमुख बहुत साधारण तरीके, विनम्रता और सहजता से ऐसे बातें करते कि वह एक आम इन्सान है। जो विश्व कल्याण के लिये काम कर रहे है। वह हमेशा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ शान्ति भाईचारे तथा विश्व को सही दिशा दिखने के लिये, देश को ‘विश्व गुरु’ बनाने की बातें करते।
एक सभा में देश के एक प्रभावशाली नेता ने उनसे कहा कि "उसे चिंता है की मुसलमान बहुत बच्चे पैदा कर रहें है और हम अपने बच्चों को माँ के गर्भ में ही या तो आने नहीं देते या मार देते है तो इस समस्या का क्या समाधान है ? "
संगठन प्रमुख ने कहा "ज्यादा बच्चे पैदा करना। मुसलमानों से भविष्य में प्रोब्लेम हो सकती है। यह हमारे धर्म के बीच में भी आते है। दोस्त बनाना अच्छी बात है अगर हमारे ऐसे दोस्त हो जो बात मानते हो, तो कुछ भी बदलाव ला सकते है। यदि हम साथ में प्रार्थना करे तो ईश्वर भी हमारा साथ देता है। विश्व में बदलाव लाया जा सकता है। जरुरत है आपसी सहमति की ऐसी सहमति किस ने की थी?"
"कृष्ण" एक सज्जन ने जबाव दिया।
एकाएक संगठन प्रमुख बोले "हिटलर, हिटलर ने ऐसी सहमति की थी। और उस के संगठन की मजबूती देखिये, बहुत ताकतवर था, उस का संगठन। उस के लिए यह राष्ट्र सम्मान था। हमारे लिए ईश्वर है। हिटलर, स्टालिन, माओ, ओसामा बिन लादेन, हमारे संगठन के पास वो ताकत है जो इन नेताओं के पास नहीं थी। 'सनातन धर्म' का पालन कर ईश्वर से सहमती, वही से मिलती है। ईश्वर और कुछ नहीं।"
‘ईश्वर और कुछ नहीं।’ बात बहुत छोटी थी पर बात पते की थी। संगठन प्रमुख ने वहां बैठे सभी प्रभावशाली लोगों को ऐसा अहसास कराया जैसे कोई बड़ा राज खुल गया हो।
इससे लोगों को दिशा मिल गए थी कि धर्म से निकलकर ईश्वर के काम को करो। यही सन्देश था। संगठन प्रमुख बहुत अच्छे इन्सान है वह हमेशा दूसरों को आगे रखते है। उन्हें खुद के लिए कोई इनाम नहीं चाहिए थे।
वह हमेशा जोर देते कि सफलता का श्रेय मुझे मत दो। सफता मेरी बजह से नहीं आई, यह सब ईश्वर के लिये है। इसकी बजह भी वही है। मैं इस के लिये कारण नहीं हूँ। मैं बस ईश्वर का काम उनके आदेश पर कर रहा हूँ। यह सब मुझसे कुछ बड़ी बात के लिए है। उनकी यह बातें दिल को छू जाती।
ऐसे शहर में जहां नाम, प्रभाव के दम पर सब चलता है वहां हम काम तो करेंगे, शांति से ईश्वर के नाम पर। ऐसे ही वह है।
इस दिन दूसरे प्रभावशाली समूह से बात करते हुए उन्होंने कहा कि "ईश्वर जब कोई महत्व पूर्ण संगठन बनाता है तो उसे अदृश्य कर देता है। जैसे आप का शरीर देखे इस में मन, बुद्धि और चेतना जो शरीर के संगठन को संचलित करने की ताकतें है वे सब अदृश्य है। जब कोई माफिया संगठन बनता है तो वह भी अदृश्य होता है।
जो भी दिखता है वह अस्थाई है और जी नहीं दिखता वही स्थाई
परमानेन्ट है। जितना ज्यादा आप अपनी संस्था को अदृश्य बनाते है संस्था उतनी प्रभावशाली हो जाती है।"
संगठन के बहुत से चुने गये स्वमं सेवकों को अलग अलग संघटनों में काम करने की लिये तैयार किया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण लोगों को राजनीति में भेजा जाता है।
आप को उन लोगो को छोड़ना होता है जिनकों चुना नहीं गया है और उस में है आप के परिवार के लोग। और आप के दोस्त। जिन को छोड़ना पड़ता है। ईश्वर से आप की करीबी और दूरी तैं की जाती है और हर रिश्ते के बीच में ईश्वर होते है। पहले हम एक दूसरे के लिये जबाबदर है। फिर आता है आपका परिवार। आप के रिश्ते। आपके दोस्त। हिटलर स्टालिन माओ, की तरह की लॉयल्टी पैदा करना ही उनका मकसद था।
मैने चीन के रेड गार्ड के नौजवानों की फोटो देखी है जहां एक टेबिल पर कसाई का सामान रखा होता। एक - एक कर उन नौजवानों के माता पिता का सिर काट काट एक टोकरी में ले जाते। मुसोलिनी के ब्लैक शर्ट में एक बात समान है कि सब एक शपथ लेते। एकजुट रहने की।
आज भी मजबूत संगठन ऐसा ही करते है। एक कॉमन प्रतिज्ञा सभी सदस्यों को लेना अनिवार्य है। संगठन में कई दिन बिताने के बाद में खुद को उस संस्था का हिस्सा समझने लगी थी।
धीरे - धीरे मुझे पता चला कि यह संगठन दुनियां में ऐसे नेताओं को तैयार करना चाहतीं है। जो परंपरागत वंशानुगत परिवारवाद के कारण पदों पर न हो। वल्कि ऐसे लोग जो चुने गए हो।जिनमें नेतृत्व क्षमता हो और जो अपनी भलाई के लिये काम ना कर देश के लिये काम करें। ऐसे लोगों का विश्वव्यापी नेटवर्क तैयार करना है।
हमें ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ क्रिएट करने की जरुरत है। दुनियां के देश विश्व की सबसे बड़ी जनसख्यां के देश को ऐसे ही नजरन्दज नहीं कर सकते। यह हमारा हक़ है कि विश्व स्तर के सभी संस्थानों में हमें उचित स्थान मिलना चाहिए।
यहां काम करते - करते अपनेपन का भाव आ आ गया था। मैने शुरू में नहीं सोचा था कि मै कब तक वहां काम करुँगी। लेकिन अब मुझे अपना मकसद पूरा करने के लिये यहां रहना ही था।
परिवार
तान्या ने बताया कि मुझे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिये ‘परिवार’ के संगठन को ज्वाइन करना पड़ा। जिस कारण ‘परिवार’ तथा ‘परिवार’ के उद्देश्यों को अपने माता, पिता, भाई, बहन तथा अपने जीवन से पहले रखना था। यह सभी सदस्यों के बीच कॉमन प्रतिज्ञा थी, एक वचन था। ‘परिवार का’ असली काम अदृश्य है और यह अदृश्य रूप से फैला है। क्योकि 'परिवार' के संथापक का मानना था कि जितना आप अपनी संस्था को अदृश्य बनायेंगे उतना ही अधिक प्रभाव पड़ेगा। मुझे यह समझने तथा महसूस करने में काफी समय लगा कि परिवार कौन है? और उनका क्या प्रभाव हमारे देश के नेतृत्व में रहा है?
इस संगठन की पहुँच पूरी दुनियाभर में थी। ये लोग भगवान राम और कृष्ण के सन्देश 'राम राज्य' को फैलाने के लिए राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राजा, महाराजा, महारानियाँ सामाजिक संगठन, व्यापारिक संगठन, विदेशी राजनयिक तथा धार्मिक संगठनों के साथ बैठकें आयोजित करते थे। संगठन का देश के प्रधान मंत्री, मंत्री, अधिकारियों तथा कर्मचारियों के अलावा, अंदर बाहर के सभी लोगों से सम्बन्ध है।
यह नई दिल्ली के शक्तिशाली इंसान है जिनको आपने कभी किसी सरकारी कार्यक्रमों में नहीं देख होगा। काश ! मै इनके बारे में अधिक कह पाती। लेकिन परिवार का संगठन ठीक से काम कर रहा है। हमें सभी राज्यों के नेताओं तक पहुंचने की जरुरत है और फिर यदि आप पहुंच जाते है, तो पूरे देश में ‘विचारधारा’ का प्रभाव पड़ेगा।
हम लोगों को साथ रखने के लिये शहर से संभ्रात इलाके में बिल्डिंग ली थी। लेकिन मैरा घर पास में ही था तो मुझे छूट दी गई थी।
हम लोगों को कई दफ़े बुरे लोगों से भी मिलना पड़ता था। जिनमें कुछ बहुत खतरनाक लोग भी होते। दिन में हम साथ रहते काम करते प्रार्थना करते। यह संगठन बहुत सारे सामाजिक प्रकल्प चलता है। 'परिवार' सीधे तौर पर राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने को हमेशा नकारता था।
हम देशभक्त, स्वयंसेवकों का निर्माण करने वाली संस्था के रूप में प्रचारित करते। लेकिन हमारे चुने व्यक्ति हमारे द्वारा समर्थित राजनैतिक दल के पदाधिकारी नियुक्त किये जाते थे। जिनका काम सरकार तथा परिवार के मध्य समन्वय बनाना था संगठन को मजबूत करना होता।
गुप्त रूप से संस्था चलने पर लोगों को लगता है कि कुछ गलत है। कोई षड्यंत्र ज़रूर होगा। लेकिन सच से इसका कोई लेना देना नहीं है। यह हिन्दू तथा राष्ट्र को बांधने बाली कड़ी है। 'परिवार' के पदाधिकारी बहुत विनम्र तथा सादा जीवन जीते है। मीडिया से दूर रहते है।
प्रचार प्रसार का हिस्सा तभी बनते है जब उन्हें इस तरह की जबाबदारी सौंपी जाय। उनके कोई सोशल मीडिया एकाउंट नहीं होते न ही व्यक्तिगत जानकारियां सार्वजनिक की जाती। 'परिवार' के पूर्णकालिक स्वयं सेवक उनके परिवारों से सरोकार नहीं रखते। उनकी कोई निजी संपत्ति नहीं होती। संगठन ही उनका उत्तरदायित्व उठाता है।
यह संगठन विश्व के अन्य संगठनों के लिए एक शानदार उदाहरण है। लेकिन विरोधी लोगों को लगता की वे प्रजातंत्र पर डाका डाल रहे है। लेकिन यह संगठन ऐसा है जिसकी जरूरत पूरी दुनिया को है।
लोगों में निराशा, तनाव, डर, अकेलापन बढ़ता जा रहा है। परिवार टूट रहे है। बच्चे शादी नहीं कर रहे है। समाजिक समस्याऐं बढ़ रही है। हमें लगता है कि सनातन धर्म पर चल कर विश्व की इन समस्याओं को कम करने में हमारा देश ‘पथ प्रदर्शक’ बन सकता है। हमने विश्वव्यापी आध्यात्मिक प्रचार का एक कार्यक्रम शुरू किया है। हमारा नारा "वसुधैव कुटुम्बकम" जो महाउपनिषद का महा वाक्य है। इसका अर्थ है 'सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार' है । यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। हमें पता है कि हम सब भगवान के बच्चे है। जो शुरू किया है उसे हम ही पूरा करेगे।
न्यू वर्ल्ड ऑर्डर
संगठन के लोगों में विश्व में हो रही घटनाओं की अपडेटेड जानकारी देने के लिये हम लोगों के नियमित सत्र आयोजित किये जाते। जिन में विषय विशेषज्ञ चर्चा करते तथा हम लोगों की शंकाओं का समाधान करते।
'न्यू वर्ल्ड आर्डर' पर आयोजित सत्र को सम्बोधित करने हमारे विदेश मंत्री जी आये। वह एक कुशल राजनयिक है तथा अनेक देशों में राजदूत रहे और अब लम्बे समय से विदेश मन्त्री का पदभार संभाल रहे है।
उन्होंने बताया कि “प्रधानमंत्री पिछले कुछ समय से अकसर कई मंचों से 'न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' का जिक्र करते नजर आए हैं। प्रधानमंत्री प्रमुखता से इसकी मांग करते दिखते हैं। जानें क्या है 'न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' और भारत इसमें क्यों है शामिल? क्यों है इसकी जरूरत? क्या हम मौके के लिए तैयार है ?
तान्या ने बताया कि “मैंने अमेरिका की प्रितिष्ठित यूनिवर्सिटी से मॉस कम्युनिकेशन में डग्री हालिस की थी तथा देश एवं विदेश के प्रसिद्ध मिडिया हॉउस में विदेश निति के डेस्क पर काम करने का अनुभव रहा है, इसलिये इस सत्र में मैरी विशेष रूचि थी।”
इस सत्र में संगठन की और से वक्ता के साथ उनकी देखभाल का जिम्मा मुझे सौपा गया था। इसलिये मुझे पूरे समय विदेश मंत्री तथा उनकी पत्नी के साथ रहने का अवसर मिला। उन दोनों का व्यहार बहुत सरल तथा सहज था। जब उन्होंने मेरी पढ़ाई एवं काम के संबन्ध में जाना तो उनका स्नेह मेरे प्रति अधिक हो गया।
उन्होंने अपने उदबोधन में कहा “बहुत से लोग न्यू वर्ल्ड ऑर्डर को षड्यंत्रकारियों का सिद्धांत मानते है, इसके अनुयायी मानते हैं कि शक्तिशाली अभिजात वर्ग का एक गुट गुप्त रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय शासन संरचना को लागू कर रहा है, जो उन्हें वैश्विक आबादी पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान करेगा।
इस शासन संरचना के तहत, असंतुष्टों को गिरफ्तार किया जाएगा, और जनता को गुलाम बनाया जाएगा। षड्यंत्र सिद्धांत के समर्थकों का दावा है कि अधिकांश वैश्विक नेता इस "न्यू वर्ल्ड ऑर्डर" की स्थापना में शामिल हैं, जो वैश्विक घटनाओं जैसे कोरोनावायरस महामारी, सोशल मीडिया, क्रिप्टो करेंसी, सामूहिक गोलीबारी, और आतंकवाद के निर्माण के माध्यम से न्यू वर्ल्ड ऑर्डर की सहायता करते हैं और नागरिक अशांति फैलाने के लिए उनसे जुड़े नैरेटिव्ज़ को नियंत्रित करते हैं।
कई आधुनिक समय के षड्यंत्र सिद्धांत यहूदी विरोधी हैं। इन कथाओं के भीतर, यहूदी लोगों को अक्सर वैश्विक घटनाओं के संचालक के रूप में पेश किया जाता है और उन पर नापाक उद्देश्यों के लिए एक ‘सुपर नैशनल गवर्निंग संरचना’ बनाने का आरोप लगाया जाता है।
बीसवीं शताब्दी के दौरान, वुडरो विल्सन, विंस्टन चर्चिल तथा अमरीकी प्रेसिडेंट जैसी राजनीतिक हस्तियों ने "न्यू वर्ल्ड ऑर्डर" शब्द का इस्तेमाल किया।
युद्ध के बीच और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की अवधि को सामूहिक प्रयासों द्वारा वैश्विक शासन के लिए आदर्शवादी प्रस्तावों को लागू करने के अवसरों के रूप में देखा गया ताकि दुनिया भर की समस्याओं का समाधान किया जा सके, जो व्यक्तिगत राष्ट्र-राज्यों की क्षमता से परे हैं, तथा राष्ट्रों की स्वतंत्रता तथा आत्म निर्णय के अधिकार का सम्मान फिर भी किया जाता रहे।
इस तरह की सामूहिक पहल से निर्मित लीग ऑफ नेशंस, संयुक्त राष्ट्र, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन नाटो और विश्व व्यापार संगठन जैसे संगठनों का गठन विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय शासन संरचना को मान्यता देने के प्रयास के रूप में किया गया।
धर्मनिरपेक्ष और ईसाई दक्षिणपंथी अमेरिकी आंदोलनकारियों ने, फ्रीमेसन, इलुमिनाती और यहूदियों के संदिग्ध भय को तेजी से फैलाया। क्योंकि वे "अंतर्राष्ट्रीय साम्यवादी षड्यंत्र" के पीछे कथित प्रेरक शक्तियाँ थी। नास्तिक, नौकरशाही सामूहिक विश्व सरकार के रूप में "ईश्वर विहीन साम्यवाद" का खतरा, जिसे "लाल खतरे" के रूप में दर्शाया गया, सर्वनाशकारी सहस्राब्दी षड्यंत्रवाद का केंद्र बन गया।
संयुक्त राज्य अमेरिका में राजनीतिक अधिकार के मूल विचारों में से एक को आकार दिया, जो यह है कि उदारवादी और प्रगतिवादी, अपनी कल्याणकारी राज्य नीतियों और विदेशी सहायता जैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रमों के साथ, वैश्विक सामूहिकता की एक क्रमिक प्रक्रिया में योगदान देते हैं जो अनिवार्य रूप से राष्ट्रों को साम्यवादी सामूहिक एक-विश्व सरकार द्वारा प्रतिस्थापित करने की ओर ले जाएगा।
उनका मानना है कि "हमारे पास ‘विश्व सरकार’ होगी, चाहे हम इसे पसंद करें या नहीं। सवाल केवल यह है कि क्या ‘विश्व सरकार’ सहमति से या विजय से प्राप्त होगी?”
अनेक लोगों का मानना है कि विश्व-दृष्टिकोण वाले दक्षिणपंथी लोक लुभावन वकालात समूहों ने कई षड्यंत्र सिद्धांतों का प्रसार किया, जिसमें दावा किया गया कि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ दोनों की सरकारों को कॉर्पोरेट अंतर्राष्ट्रीयवादियों, "लालची" बैंकरों और भ्रष्ट राजनेताओं के एक गिरोह द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो "एक विश्व सरकार" बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र को वाहन के रूप में उपयोग करने पर आमादा है।
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण पर अमेरिका की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर राष्ट्रपति ने कहा, "अब समय आ गया है जब चीजें बदल रही हैं।"
"वहां एक नई विश्व व्यवस्था बनने जा रही है, और हमें इसका नेतृत्व करना है।"
उन्होंने "उदार विश्व व्यवस्था" का भी उल्लेख किया और कहा कि इसने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक संघर्षों को रोकने में मदद मिलेगी।
जब हमारे प्रधानमंत्री व्हाइट हाउस गए, तो मुस्कुराते हुए ट्रंप उनके सीने से चिपके हुए थे। उन्होंने 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में हाथ मिलाया। जबकि ट्रंप ने जोर देकर कहा कि साझेदारी बराबर की होनी चाहिए, उन्होंने यह भी कहा "लेकिन वास्तव में, हम एक लेविल प्लेयिंग फील्ड चाहते हैं, जिसके बारे में हमें लगता है कि हम वास्तव में उसके हकदार हैं।"
हमारे प्रधानमंत्री ने एक सूक्ष्म चेतावनी के साथ जवाब दिया,
"एक चीज जो मैं राष्ट्रपति ट्रंप की गहराई से सराहना करता हूं और उनसे सीखा है, वह यह है कि वे राष्ट्रीय हित को सर्वोच्चता पर रखते हैं। और उनकी तरह, मैं भी भारत के राष्ट्रीय हित को हर चीज से ऊपर रखता हूं।"
“भारत कुछ रियायतें दे सकता है, लेकिन व्यापक परिदृश्य में जहां भारतीय हित खतरे में हैं, प्रधानमंत्री को धमकाया नहीं जा सकेगा।”
ट्रंप के खिलाफ दुनिया भर में लड़ाई बढ़ रही है। यूरोप और ब्रिटेन अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बना रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ट्रंप उन्हें अकेला छोड़ सकते हैं।
कनाडा और चीन टैरिफ लगाकर जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं, जिससे अमेरिकी उपभोक्ता को नुकसान होगा। इस समय चीन भारत के लिए नंबर एक राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य खतरा है। पिछले तीन वर्षों में भारत को चीन के साथ बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार घाटा हुआ है।
चीन भारतीय उद्योग को नष्ट करने में सफल रहा है। चीनियों ने जो किया है, वह यह है कि वे भारत के उद्योगपतियों को मैन्युफैक्चरर से ट्रेडर बनाने में सफल रहे हैं।
अमेरिकी अदालतें मस्क की संविधान विरोधी शक्तियों के खिलाफ युद्ध की राह पर हैं, जबकि ट्रंप तीसरी बार सत्ता में आने के लिए संविधान को बदलने की योजना बना रहे हैं।
शर्लक होम्स ने किसी भी मुश्किल मामले को ‘थ्री पाइप प्रॉब्लम’ कहा था। दुनिया की थ्री पाइप प्रॉब्लम के ट्रंप-पुतिन-शी प्रतिमान है। विश्व इन धुएँ के संकेतों को भय से देख रहा है।
तो लोगों का मानना है कि यह अंडर ग्राउंड आर्गेनाईजेशन 'न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' को कैसे लागू कर रहे है? अंडर ग्राउंड आर्गेनाईजेशन संयुक्त राष्ट्र यूएन को माध्यम बना कर काम कर रहा है। इसीलिये संस्था के गठन में सेकेण्ड वर्ल्ड वार के बाद से कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते है।
कुछ समर्थकों का दावा है कि दिमाग पर नियंत्रण के लिए यह अंडर ग्राउंड आर्गेनाईजेशन के लोग नागरिकों को गुलाम बनाने के लिए इंटरनेट, सोशल मिडिया, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, माइक्रोचिप्स और अन्य निगरानी तकनीक का उपयोग कर रहे है।
ब्लैक रॉक तथा रोथ्सचाइल्ड्स लंदन, यूएस फेडरल रिजर्व और पारंपरिक मीडिया के अधिकांश हिस्से को नियंत्रित करते हैं। बिल गेट्स और जॉर्ज सोरोस पर भी डीप स्टेट तैयार करने का आरोप लगाया गया है।
"गुप्त समाज" बिल्डरबर्ग समूह, दबोस सम्मेलन, उत्तरी अमेरिकी और यूरोपीय राजनेता जो साल में एक बार एक साथ आते हैं, भी षड्यंत्र के हिस्सा हैं। उनकी बैठकों की गुप्त प्रकृति, जिसके बारे में कोई भी जानकारी कभी भी सार्वजनिक नहीं की जाती हैं।
विदेश संबंध परिषद और त्रिपक्षीय आयोग को भी षड्यंत्रकारियों द्वारा इसी तरह का संगठन माना जाता है। जिसमें उन पर 'न्यू वर्ल्ड ऑर्डर' को लागू करने का आरोप लगाया जा रहा है।
दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और महाशक्ति बनने की आकांक्षाओं के साथ, भारत दुनिया की उभरती शक्तियों में सबसे महत्वपूर्ण हो सकता है।”
विदेश मंत्री के उदबोधन के बाद प्रश्नोत्तर का सेशन चला। लोगों की रुच देख कर मंत्री महोदय ने खूब सरल भाषा में विस्तार से जबाव दिये। कर्यक्रम समाप्त होने पर विदाई के समय उन्हें संसथान की और से शाल श्री फल भेंट किया गया।
जाते समय उन्होंने मेरा फोन नम्बर ली लिया तथा उनके कार्यालय में मिलने के लिए बुलाया।
हमारे संगठन के गुप्त प्रयासों के कारण वाशिंगटन से भारत के संबंध पहले से काफी मजबूत हो गये है। व्हाइट हाउस ने दक्षिण एशियाई दिग्गज भारत के रूस के साथ चले आ रहे लंबे समय से मैत्रीपूर्ण संबंधों को स्वीकार कर लिया है। संभवतः इसलिए क्योंकि भारत ने चीन के मामले में खुद को संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अधिक से अधिक निकटता से जोड़ लिया है।
जी सेवन शिखर सम्मेलन में, भारत के प्रधान मंत्री ने यूक्रेन के राष्ट्रपति को आश्वासन दिया कि भारत यूक्रेन में शांति लाने में मदद करने के लिए “हर संभव प्रयास” करेगा।
एक साल पहले शंघाई सहयोग संगठन एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर, भारत के प्रधान मंत्री ने रूसी राष्ट्रपति को धीरे से डांटा, “मुझे पता है कि आज का युग युद्ध का युग नहीं है।”
दिल्ली की तटस्थता ने इसे रूस, यूक्रेन और पश्चिम के बीच मध्यस्थता के लिए एक व्यवहार्य विकल्प बना दिया है। उदाहरण के लिए, ब्राजील और मैक्सिको के नेताओं ने भारत के प्रधान मंत्री को अपनी शांति योजनाओं में संभावित मध्यस्थ के रूप में नामित किया है।
इस मामले में भारत की “गहरी दिलचस्पी” रूस को पश्चिम द्वारा अलग-थलग करने की कोशिश को खारिज करना है, जिससे नई दिल्ली को डर है कि इससे मॉस्को चीन के और भी करीब आ जाएगा।
इसके अलावा, लंबी अवधि में, भारत रूस की एक महान शक्ति के रूप में स्थिति को बनाए रखना चाहता है, आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि इससे वैश्विक बहुध्रुवीय व्यवस्था सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी, जिसे भारत अपने प्रभाव के विकास के लिए आवश्यक मानता है।
चीन के मामले में भारत का झुकाव अमेरिका की ओर बढ़ रहा है, लेकिन वह पूरी तरह से वाशिंगटन के खेमे में नहीं है। वह गर्व से कहता है कि वह अपने ही खेमे में है।
जी टवेंटी समिट की सफलता पूर्वक मेजबानी से विश्व स्टार पर हमारे देश की साख बड़ी है। अफ़्रीकी देशों को सदस्य बनाया गया जो एक बड़ी उपलब्धी है। हमारे प्रस्ताव पर विश्व योग दिवस तथा मिलेट वर्ष घोषित होना देश की स्वीकारता का उदाहरण है।
नई पारी की शुरुआत
मुझे आज विदेश मंत्रालय में मंत्री जी से मिलने के लिये बुलावा आया। तान्या का मानना है कि यदि वह मंत्रालय में अपनी पहुंच बना सके तो वह अपने लक्ष्य के करीब पहुंच सकती है। इन दिनों कभी भी में अपने पति की शहादत को भूल नहीं पाई। एक तो मुझें उन्हें शहीद का दर्जा दिलवाना है और दूसरे उन लोगों के बारे में जानना है जिन के कारण मेरे पति की अकारण हत्या हुई और मैं विधवा का जीवन बिताने पर मजबूर हूँ।
मैं समय से पूर्व साउथ ब्लॉक, नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के गेट पर पहुंची। रिसेप्शन पर मेरे लिये सिक्योरिटी अफसर के पास अन्दर जाने का गेटपास तैयार था। मेरी सिक्योरिटी चैकिंग के बाद उन्होने मंत्री जी के स्टाफ को फोन लगा कर मेरे आने की सूचना दी तथा अंदर भेजने की परमीशन ली। यह क्षेत्र हाई सिक्योरिटी जोन में आने से बहुत संवेदनशील माना जाता है। केंद्रीय सशत्र बल के जवान इस भवन की सुरक्षा में तैनात है।
मैं मंत्री महोदय के आगंतुक कक्ष्य में बैठ कर अपनी पारी आने का इंतजार कर रही थी। वहां सेंट्रल टेबिल पर एक कॉफ़ी टेबिल बुक राखी थी। मैं उसके पन्ने पलट रही थी। एक पन्ने पर मैने पढ़ा कि मंत्रालय शुरू में विदेश मंत्रालय और राष्ट्रमंडल से संबंधित मंत्रालय था, जो ब्रिटिश राज से बचा हुआ था। बाद में इसका नाम बदलकर विदेश मंत्रालय कर दिया गया। प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी मृत्यु तक अतिरिक्त प्रभार के रूप में पोर्टफोलियो संभाला और उसके बाद ही कैबिनेट रैंक के साथ एक अलग मंत्री नियुक्त किया गया।
इंडिया पर्सपेक्टिव्स विदेश मंत्रालय का प्रमुख प्रकाशन है। यह एक द्विमासिक पत्रिका है, जो अंग्रेजी और हिंदी तथा चौदह अन्य अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में डिजिटल रूप से प्रकाशित होती है, तथा इसके पाठक एक सौ सत्तर देशों में फैले हुए हैं।
इसे मंत्रालय की कूटनीतिक पहलों का समर्थन करने तथा शेष विश्व के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को उजागर करने के लिए तैयार किया गया है।
यह पत्रिका समकालीन भारत के तत्वों के साथ-साथ भारत की संस्कृति और परंपरा के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
बुद्धिमान, विश्लेषणात्मक और सत्यापित संपादकीय सामग्री के साथ, यह प्रकाशन भारत की ‘सॉफ्ट डिप्लोमेसी’ पहलों के साथ-साथ इसकी समृद्ध सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक विरासत के बारे में जानकारी के सबसे प्रामाणिक स्रोतों में से एक है।
यात्रा, कला, संगीत, सिनेमा और अन्य विषयों पर मूल कहानियों के माध्यम से देश के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करके, यह पत्रिका भारत को दुनिया के सामने ले जाती है।
भारतीय विदेश सेवा आईएफएस, आईएफएस जनरल कैडर, आईएफएस ग्रुप बी, स्टेनोग्राफर कैडर, दुभाषिया कैडर, कानूनी और संधि कैडर, आदि में कर्मचारी नियुक्त किए गए हैं। भारतीय विदेश सेवा अधिकारियों की कैडर में एक हज़ार से ज्यादा पद स्वीकृत है।अन्दर से मंत्री जी का बुलावा आ जाने से मैं ही इतना पढ़ सकी। किताब यथा स्थान रख कर वापिस मंत्री जी के कक्ष में प्रवेश किया। विदेश मंत्री जी एक भारतीय राजनीतिज्ञ, लेखक और भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत्त राजनयिक हैं।
वे विदेश सचिव, संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और चेक गणराज्य में राजदूत रहे। वे सिंगापुर में उच्चायुक्त थे। उन्होंने मॉस्को, कोलंबो, बुडापेस्ट और टोक्यो में दूतावासों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय और राष्ट्रपति सचिवालय में अन्य राजनयिक पदों पर भी काम किया है।
वे टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड में वैश्विक कॉर्पोरेट मामलों के अध्यक्ष भी थे।
वे दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एम.फिल और पीएचडी की है।
उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने व्यापक रूप से प्रशंसित बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं।
मंत्री जी का कक्ष अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया था। कार्यालय का सौंदर्यशास्त्र, कार्यक्षमता और मंत्री जी की व्यक्तिगत शैली के संतुलन को दिखता हैं।
यह कक्ष ऐसा स्थान बनाया गया था जो नेतृत्व को प्रेरित करता प्रतीत हुआ मुख्य तत्वों में प्राकृतिक प्रकाश व्यवस्था, आरामदायक और एर्गोनोमिक सीटिंग, परिष्कृत रंग पैलेट हैं, वहां हैं व्यक्तिगत उपलब्धियों को दर्शाते पुरस्कार, प्रमाण पत्र तथा स्मृति चिन्ह रणनीतिक से सजा कर रखे गए हैं।
फर्नीचर का एर्गोनॉमिक्स बहुत सरल था। एर्गोनॉमिक डेस्क और कुर्सी जिसमें एडजस्टेबल डेस्क, हाथ को सहारा देने वाली कुर्सी के साथ आराम और अच्छी मुद्रा को प्राथमिकता दी गई थी। एग्जीक्यूटिव डेस्क बहुत ही खूबसूरत लग रहा था और उस पर केवल जरुरत का ही सामान करीने से सजाया गया था। अव्यवस्था मुक्त वातावरण बनाए रखने के लिए बिल्ट-इन बुकशेल्फ़, छिपे हुए डिब्बे या अन्य भंडारण समाधान बनाये गए थे। कार्यालय को प्रभावी संचार और सहयोग के लिए आवश्यक तकनीक से लैस किया गया है।
मैने शृद्धापूर्वक झुक कर अभिवादन किया। उन्होंने सामने राखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। उन्होंने बात शुरू करते हुए बताया की "मंत्रालय एक डेलिगेशन अमरीका भेज रहा है जिसमें बहुत चुने हुए लोग है जो अमरीका की नवनिर्वाचित सरकार के साथ गुप्त सूचनाओं के आदान प्रदान की संस्थागत व्यवस्था को मजबूत करने के लिये राष्ट्रीय खुफिया निदेशक से मीटिंग करेगा।
यह पद अमेरिका की अठारह खुफिया एजेंसियों की देखरेख करता है। इस दाल मैं एक योग्य रिपोर्टर को भेजा जाना है, क्या तुम यह काम करना चाहोगी ?"
मैने ऐसे किसी प्रस्ताव की कल्पना तक नहीं की थी। मैं प्रस्ताव सुनकर बहुत उत्तेजित हो गई। मैने एकदम से हां कर दी। मैने मीडिया एजेन्सी में काम के दौरान ऐसी संस्थाओं के बारे में जानने समझने का बाहर से मौका मिला था। लेकिन देश के डेलीगेशन के साथ जाना मेरे लिये बहुत गर्व की बात थी।
नागवंश
हम लोगोँ को एक दिन यूट्यूब पर उपलब्ध 'भारतीय परिवार ' चैनल के वीडियो बड़ी स्क्रीन पर दिखाये गये जिन में ब्रिटेन की भूतपूर्व महारानी तथा उनके पोते के बीच संबाद के माध्यम से प्राचीन कल से चली आ रही आपसी दुश्मनी तथा लड़ाई, आपसी रंजिश के कारणों को बताया गया है।
"रानी की जय हो" प्रिंस ने दवाजे से महारानी के कक्ष में प्रवेश किया।
"बैठिए राज कुमार" महारानी ने कुर्सी की ओर इसारा करते हुए कहा।
"ऐ देखिए! भारत में किसी ने एक आरटीआई लगाईं है।" राजकुमार ने कहा।
"कैसी आरटीआई?" महारानी बोली।
"आरटीआई में लिखा हुआ है कि भारत कब और किससे आज़ाद हुआ?" राजकुमार ने कहा।
"सोलह अगस्त व उन्नीस अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस को भारत का शासक कौन था?
पच्चीस जनवरी व सत्ताईस जनवरी उन्नीस सौ पचास को भारत का शासक कौन था?
ब्रिटिश शासन किस तारीख़ को भारत से ख़त्म हुआ?
क्या ब्रिटिश और उनकी आनेवाली पीढ़ी का किसी तरह का अधिकार है?
लेकिन भारत सरकार ने इस आरटीआई का कोई जवाब नहीं दिया? और आरटीआई लगाने वालों का दावा है कि आज भी भारत पर आप की हुकूमत चलती है।
क्या ऐ सच है दादीमाँ?" राजकुमार ने जल्दी जल्दी कहा।
"हमारे पूर्वजों का सपना था कि दुनिया पर उनके ही वंशजों का हुक़ूमत बरकरार रहे। मैं तो बूढ़ी हो चली हूँ और आने वाले समय में इस महान सिंहासन को तुम्हें ही सम्भालना है। इसीलिये ये राज़ की बात बताना ज़रूरी हो गया है। बेटा सच तो यह है कि आज भी भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ़्रीका दुनिया के आधे से ज़्यादा देश हमारे गुलाम है।" महारानी ने गम्भीर आवाज में कहा।
"ऐसा कैसे हो सकता है दादी?" राजकुमार ने आश्चर्य से पूछा।
"भारत और पाकिस्तान को तो हमने उन्नीस सौ सैतालीस में ही आज़ाद कर दिया था।" राजकुमार ने कहा।
रानी ज़ोर से हंसी और बोली "बेटा! इसी भ्रम में रख कर ही हमने भारत के लोगों को गुलाम बना रखा है। उनको आज़ादी देने का नाटक करना उस समय हमारी मजबूरी बन गई थी।
जब सुभाष चन्द्र बोस ने आज़ाद हिन्द सरकार बना ली थी। इसी कारण से उन्नीस सौ छियालीस में भारत में हमारी रॉयल नेवी में भी विद्रोह हो गया था। और जनता में अठारह सौ सत्तावन की तरह विद्रोह होने वाला था तब हमने गुप्त रूप से शासन करना ही ठीक समझा।" रानी ने गोपनीयता से कहा।
"गुप्त रूप से शासन का मतलब?" राजकुमार ने हैरानी जताते हुए कहा।
"भारत को हमने अपने ही वफ़ादारों को निन्यानवे साल की लीज़ पर सत्ता सम्भालने के लिए दिया था ताकि भारत के लोगों को लगे की देश आज़ाद हो गया। लेकिन सही मायने में अधिकारिक रूप से भारत पर हमारा ही क़ब्ज़ा है और हमारे ही बनाए हुए क़ानून चल रहे हैं। जिससे हम आज भी भारत को खुलेआम लूट कर ग़रीब और लाचार बना रहे हैं" महारानी ने खुलासा किया।
राजकुमार बोले कि "अभी यह सुनकर ख़ुशी तो बहुत हो रही है पर यक़ीन नहीं हो पा रहा।"
तब महारानी ने पूछा "ठीक हैं ये बताओ कि मुझे भारत जाने के लिए वीज़ा की ज़रूरत पड़ी। जबकि भारत के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को इंग्लैंड में आने के लिए वीज़ा लेना पड़ता है। क्या तुम्हें पता है जब मैं उन्नीस सौ वावन में रानी बनीं तो ब्रिटेन के साथ साथ भारत और पाकिस्तान की रानी भी घोषित हुईं थीं।
क्या तुम ने नेहरू तथा सी राजगोपालाचारी के द्वारा ली गई शपथ पड़ी है ? पड़ीं होतीं तो यक़ीन आ ही जाता।" थोड़ा रुक कर महारानी ने कहा।
"कौन सी शपथ?" राजकुमार ने कन्धे उचकाते हुए पूछा?
राजागोपालाचारी ने इक्कीस जून उन्नीस सौ अड़तालीस को भारत का गवर्नर जनरल बनने पर शपथ ली थी जिस में उन्होंने कहा था "मैं चक्रवर्ती राज गोपालाचारी गम्भीरता के साथ इस बात को पक्का करता हूँ कि मैं हिज मेजेस्टी तथा उनके उत्तराधिकारियों के प्रति वफादार रहूँगा और उनके प्रति पूर्ण भक्ति रखूँगा और चक्रवर्ती राज गोपालाचारी गम्भीरता के साथ इस बात को पक्का करता हूँ कि मैं गवर्नर जनरल के रूप में हिज मेजेस्टी तथा उनके उत्तराधिकारियों की सेवा करूँगा।"
"देखा ! अगर भारत पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैतालीस को आज़ाद हो गया था तो राजागोपालाचारी ने इक्कीस जून उन्नीस सौ अड़तालीस को मेरे पिताजी के नाम पर शपथ क्यों ली।"
महारानी ने आँखें नाचते हुए राजकुमार से पूछा।
"चलो दादी मान लिया कि पन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस को दी गई आज़ादी झूठी थी, लेकिन छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास में तो भारत के लोगों ने ख़ुद का संविधान बना कर अपने देश को गणतंत्र घोषित कर लिया था। उसके बाद तो उन को आज़ाद मानना ही पड़ेगा।" राजकुमार ने ज़ोर देते हुए कहा।
"बेटा तुम बहुत भोले हो! रानी ने कहा कि गणतंत्र शब्द का मतलब भी नहीं समझते?"
"गणतंत्र का मतलब मालिक बनना नहीं होता। संविधान हमारा बनाया एक क़ानून ही तो है जिस का पालन वहाँ के हर आदमी को करना ही पड़ेगा।
इस को समझने के लिए ऐ देखो। इण्डियन इंडिपेंडेंस एक्ट उन्नीस सौ सैंतालीस इसमें सेक्शन छह क्लॉज़ तीन को पढ़ो इसमें साफ़ साफ़ लिखा है कि भारत में कोई भी क़ानून बनाने का, रोकने का और हटाने का अधिकार वहाँ का गवर्नर जनरल ब्रिटेन के राजा की अनुमति से ही उपयोग कर सकता है।
वहाँ का संविधान भी एक क़ानून ही तो है। जिस को हमारी अनुमति से गवर्नर जनरल राजागोपालाचारी ने मान्यता दी थी। इस समझौते के तहत हम जब चाहे निन्नानवे साल की लीज़ और संविधान दोनों को रद्द करके भारत में दुबारा से सीधे - सीधे शासन कर सकते हैं। इसी बात को भारत सरकार ने भी एक दस्तावेज में स्वीकार किया है।" महारानी ने एक्ट की प्रति राजकुमार की ओर बड़ा दी।
"कौन सा दस्तावेज?" राजकुमार ने एक्ट की प्रति लेते हुए प्रश्न किया।
रानी ने बताया कि "रामनारायण के द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में भारत सरकार ने दस नमम्बर उन्नीस सौ त्रिरेपन में लिख कर भेजा कि "ब्रिटिश नेशनलटी एक्ट के अन्तर्गत भारत का हर व्यक्ति ब्रिटिश क़ानूनों के अधीन है और यह स्थिति भारत के गणतंत्र होने के बाद भी नहीं बदली है। यानी भारत के लोगों को हम आज भी ब्रिटिश क़ानूनों के तहत सज़ा सुना सकते हैं। चाहे वह भारत का प्रधानमंत्री ही क्यों न हो।" महारानी ने गवरीली आवाज में उत्तर दिया।
"तो वहाँ का प्रधानमंत्री वहाँ के लोगों का नहीं आप का सेवक है?" राजकुमार ने पूछा।
रानी ने प्रति प्रश्न किया "क्यों तुम्हें नहीं लगता?"
"दिल्ली के बुराडी इलाक़े में मेरे दादा जार्ज पंचम का राज तिलक हुआ था उसी जगह मेरे कहने पर कांग्रेस की सरकार ने कोरोनेशन पार्क बनवाना शुरू किया। जिसमें हमारे दादा, परदादा की मूर्तियों के साथ हमारा एक विजय स्तम्भ भी लगा है, और अब इस सरकार ने हज़ारों करोड़ों रूपये खर्च करके उस पार्क का निर्माण जल्द से जल्द पूरा करवा लिया है।
इसी तरह भारत के राष्ट्रपति भवन के सामने लगे खम्बे पर मेरे सितारे का निशान देख सकते हो। जो कि मेरे मुकुट और छड़ी पर भी है। जिसे मेरेी इजाज़त के बिना भारत में कोई भी हटा नहीं सकता, और यदि भारत के किसी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति में ताक़त हो तो इन्हें हटा कर दिखाएं। और यदि कोई आरटीआई के जवाब में भारत के राजपत्र पर यह लिख कर दे कि भारत के लोग वहाँ के सर्वोच्च शासक हैं और ब्रिटेन की महारानी का भारत पर कोई अधिकार नहीं तो उसके लिए मैं अपना सिंहासन ख़ाली कर दूँगी।" महारानी ने गहरी सांस ली।
"दादी वहाँ कोई उस पार्क तथा नक़ली आज़ादी का विरोध नहीं करते?" राजकुमार ने पूछा।
रानी ने कहा कि "विरोध की बात तो दूर की हैं। भारत के गुलाम लोग रोज़ाना जन गण मन गा कर हमारा ही गुणगान करते हैं।"
"दादी बाक़ी तो समझ गया पर उनका राष्ट्रगान हमारा गुणगान कैसे?" राजकुमार ने पूछा।
रानी ने कहा कि जन गण मन के बारे में मैं तुम्हें बाद में बताऊँगी। राजकुमार ने कहा "लांग लिव ब्रिटिश लांग लिव क्वीन।”
"बताओ ना दादी।" राजकुमार ने आग्रह किया।
महारानी ने कहा "बेटा उन्नीस सौ ग्यारह के पहले कलकत्ता हमारी राजधानी हुआ करती थी। उन्नीस सौ पांच में हमने हिन्दू तथा मुस्लिम को तोड़ने के इरादे से बंगाल को दो हिस्सों में बाँट दिया था। जिसके विरोध में बंग भंग आंदोलन की शुरुआत हुई।
बंगाल के क्रांतिकारियों से डर कर तब हमने दिल्ली को राजधानी बनाने ठीक समझा। जहां आज कोरोनेशन पार्क बना है वही पर बारह दिसम्बर उन्नीस सौ ग्यारह को मेरे दादा जॉर्ज पंचम का राज तिलक हुआ था। कांग्रेस के नेताओं ने रविंद्र नाथ टैगोर पर दवाब बनाया था कि मेरे दादा के स्वागत में तथा उनकी खुशामद में एक सुन्दर गीत लिखे।
उन्होंने बंगला भाषा में ‘जन गण मन’ के रूप में एक स्वागत गीत लिखा। इस में जॉर्ज पंचम को भारत का भाग्य विधाता बताया गया था। जिस का बाद में हिंदी अनुवाद किया गया। इससे खुश हो कर महाराज ने उनको नॉवेल पुरुष्कार दिलवाया।"
यह गीत सबसे पहले सत्ताईस दिसम्बर उन्नीस सौ ग्यारह को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया जिस में कांग्रेस के नेताओं ने महाराजा के प्रीति अपनी वफ़ादारी साबित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। इस के सम्बन्ध में उस समय के सभी अखबारों में समाचार प्रकाशित किया था।
"दादी राष्ट गान के रूप में यदि गा लेंगे तो क्या फरक पड़ता है ?" राजकुमार ने पूछा
"बेटा ! इस गान में अभी भी ‘अधिनायक’ शब्द का प्रयोग हमारे लिए किया जाता है। क्योंकि अभी भी हम वहां के राजा है। अभी भी कभी कभी अधिनायक शब्द को हटाने की मांग की जाती है।" महारानी ने स्पष्ट किया।
"दादी ! तो अब क्या स्थिति है ?"
"तुम्हें इस के लिए 'डोमेनियन' शब्द का अर्थ समझाना होगा। ब्रिटिश पार्लियामेन्ट की उस समय की बहस में यह स्पष्ट किया गया था कि दो देश अपने सभी निर्णय लेने में स्वतंत्र होंगे लेकिन उनका सर्वोच्च शासक एक ही होगा, जो हम है।
आजादी तथा गणतंत्र का मतलब यह नहीं है कि राजा बदल गया। सरकार अब वे ही चलाएगे। भारत के कोर्ट भी यही मानते है।" रानी ने विस्तार से बताया।
तब राजकुमार ने पूछा "लेकिन हम क्यों भारत को गुलाम बनाए रखना चाहते है?"
रानी ने कहा "बेटा केवल बदला और बदला। हमारी यह लड़ाई रामायण और महाभारत से भी पुरानी है।" रानी ने लम्बी सांस ली।
"दादी क्या आप को पता है कि वेटिकन सिटी में पोप ने एक हाल बनवाया है जो अंदर से सांप के आकर का है तथा दो बड़ी खिड़कियां सांप की आखों जैसी दिखती है और पोप के बैठने की जगह सांप के मुँह जैसी नजर आती है।
और ईसा मसीह का मुँह नाग के फन जैसा बनाया गया है। बाहर से देखने पर भी यह सांप की पीठ की तरह नजर आता है। इस के पीछे क्या बजह सो सकती है ?" राजकुमार ने बताया।
"बेटा ! पिछली बार तुमने जो सवाल किया था कि भारतीयों से हमारी लड़ाई रामायण तथा महाभारत काल के पहले से कैसे है? इस हाल का सम्बन्ध उसी से जुड़ा है।
दरअसल ब्रिटेन पर तो हमारा शासन किंग क्नूट की बजह से एक हजार सोलह ईसवी से शुरू हुआ है लेकिन हमारे परिवार के वंश का इतिहास तो भारत से ही शरू हुआ था।" रानी ने रहस्य को खोला।
"भारत से?" राजकुमार की आँखें चौड़ी हो गई। मनुष्य जाति का इतिहास ऋषि मनु से शुरू हुआ है। जिसे हम नूह या नोहा भी कहते है। पुराणों के अनुसार उनकी एक बेटी प्रसूति थी। जिस की शादी राजा दक्ष के साथ हुई।
दक्ष प्रजापति की बाषट बेटियां हुई। उनमें से तेरह की शादी ऋषि कश्यप से हुई। ऋषि कशयप की दो पत्निया विनीता और कद्रू उनकी बहुत सेवा कराती थी। इस से खुश हो कर उन्होंने दोनों से वरदान मांगने को कहा। विनता ने दो पुत्रों का वरदान मांगा, जबकि कद्रू ने एक हजार सर्प पुत्रों के लिए वरदान माँगा।
कद्रू के गर्भ से तक्षक नाग, शेष नाग, कर्कोटक नाग, वासुकि नाग, नागेश्वरा, नहुस, इरावन और कालिया समेत हजार पुत्र पैदा हुए। पर विनीता ने केवल दो ही पुत्र पैदा किये। जो कद्रू के हजार पुत्रों से ज्यादा बलशाली थे। वे गरुड़ और अर्क थे। इनमें गरुण एक हजार नागों से ज्यादा ताकतवर था।"
बेटा हम लोग उन्हीं नागों के वंशज है और दक्षिण पूर्व एशिया के लोग गरुण वंशी है। इसीलिए वे अभी भी गरुण की पूजा करते है। और भारतवर्ष तथा पाकिस्तान के सभी लोग अदिति की संतान है। इसी वंश में राम, कृष्ण, बुद्ध तथा नानक आदि पैदा हुए। जबकि हमारे वंश में इब्राहीम, मूसा, ईशा तथा मुहम्मद पैदा हुऐ। इसी लिए यह हाल नाग की तरह बनाया गया है।" महारानी ने बताया।
"दादी ! औरत के पेट से सांप और गरुण कैसे जन्म ले सकते है?" राजकुमार ने पूछा।
"बेटा ! नाग वंशी तथा गरुण वंशी होने का मतलब यह नहीं कि वे नाग और हम गरुण पक्षी है। है तो हम सब मनुष्य ही पर सांप और गरुण उनके देवता है। और वंश की पहचान माने गए है।" महारानी बोलती जा रही थी।
"तो दादी हमारी भारत बासियों से लड़ाई क्यों हुई और किस बात पर हुई ?" राजकुमार ने पूछा।
"बेटा ! इसको समझने से पहले तुम्हें हमारी तथा गरुण वंशियों की लड़ाई को समझना होगा।"
“हमारी माँ कद्रू तथा विनीता के स्वाभाव में जमीन आसमान का फर्क था। हमारी माँ छल कपट में माहिर तथा उनकी माँ भोली व सब का भला चाहने बलि थी।
कद्रू का मानना था कि सिर्फ हमारा वंश महान है और यह पूरी धरती उसके वंशजों के भोग के लिये ही बनी है और उसके एक हजार बेटे और उनकी आने वाली पीडियां भी इस दुनिया पर शासन करने के लिए बने है।
विनीता से ईर्ष्या की बजह से माँ कद्रू ने उसे छल व कपट से गुलाम बनाने के लिये एक षड्यंत्र रचा। एक दिन वनिता और कद्रू ने दूर खड़ा एक घोडा देखा जो सिर से पूछ तक पूरा सफ़ेद था। सच्चाई जानते हुए भी कद्रू ने विनीता से कहा कि घोड़े की पूछ काली है। पर विनीता ने मानने से मना कर दिया। तो इस बात पर कद्रू ने विनीता से शर्त लगाई कि हारने बाला जीतने बाले का गुलाम बनेगा।
शर्त जीतने के लिये नागों ने घोड़े की पूछ काली कर दी। इस तरह हमारे किये गए छल तथा कपट से विनीता शर्त हार गई, और हमारी गुलाम बनाने को मजबूर हो गई।” महारानी ने पौराणिक कहानी राजकुमार को सुनाई।
"उसके बाद क्या हुआ दादी?" राजकुमार ने जिज्ञासा व्यक्त की। “जब उसका बेटा गरुड़ बड़ा हुआ तो उसकी माँ को आजाद करने हमारे पास आया। पर हमने शर्त राखी कि अगर तुम अमृत ला कर हमें दे दो तो हम तुम्हारी माँ को मुक्त कर देंगे। उसके बाद अमृत पाने के लिये गरुण ने अकेले ही इन्द्र से युद्ध किया। अमृत हासिल कर लिया और हमें ला कर दे दिया।" महारानी ने कहा।
"दादी तो क्या सभी नाग अमृत पी कर अमर हो गऐ थे ?" राजकुमार ने कहा।
"नहीं बेटा !" महारानी ने कहा।
“युद्ध में हारने के बाद इन्द्र ने गरुड़ से कहा कि जिन नागों के लिये तुम यह अमृत ले कर जा रहे हो। अगर यह उनके हाथ लग गया तो वे पूरी प्रकृति का विनाश कर देंगे। क्योंकि वह भोगवादी विचारधारा में विश्वास रखते है।
यह सुन कर गरुड़ ने इंद्र से कहा कि एक बार में यह अमृत दे कर अपनी माँ को आजाद करवालू फिर आप वहां से यह अमृत उठा लेना। योजना अनुसार गरुड़ ने नागों को अमृत देते हुए यह कह दिया कि तुम पवित्र हो कर यह अमृत पी सकते हो।
इस के बाद वह सब नहाने चले गए जिससे इन्द्र को अमृत चुराने का मौका मिल गया। इस बजह से हम गरुड़ के कारण अमर होते होते रह गये और तब से नाग और गरुड़ एक दूसरे के दुश्मन बन गये।" महारानी ने दुश्मनी का कारण बताया।
“हमें अमृत तो नहीं मिल पाया पर हमारी माँ कद्रू ने हर तरह का छल कपट सिखा कर इस दुनियां पर शासन करने के काबिल बनाया। इस लिये हमारे पूरे शासन का प्रतीक कद्रू की आँख ही मानी जाती है। जिसे आल सीइंग आई कहते है।" महारानी ने बताया।
"दादी माँ ! हमारी माँ कद्रू की एक ही आँख थी ?" राजकुमार ने पूछा।
" नहीं बेटा, शुरू में तो उसकी दो हो आँखें थी, पर एक बार ऋषि कश्यप ने कुछ लोगों को खाने पर बुलाया। तो कद्रू ने उन्हें नीचा दिखाने के लिये एक ब्राह्मण को आँख से इशारा किया। इससे गुस्सा हो कर ब्राह्मण ने कद्रू की एक आँख फोड़ दी। जो तुम अमेरिका के डॉलर बिल पर देख सकते हो। बिग बॉस तथा बिग ब्रदर जैसे टीवी सीरियल्स में तुम उस एक आँख को गुप्त रूप से शासन करते हुए सभी निर्णय करते देख सकते हो और लोगों को वह सभी निर्णय मानने पड़ते है।
इसी तरह दुनिया पर गुप्त रूप से शासन करने के लिए हमने इलुमिनाटी नाम से गुप्त संस्था बनाई है। जिस का प्रतीक हमने कद्रू की एक आँख को रखा है। इतना ही नहीं कद्रू की इस आँख का जिक्र इस्लाम में भी किया गया है। जिसमें बताया गया है कि एक समय ऐसा भी आयेगा जिस में दुनिया पर सज्जाल नाम का शैतान शासन करेगा। जिस की एक आँख होगी।"
"दादी पुराणों की इन मिथकों पर कैसे यकीन किया जा सकता है ?" राजकुमार ने शंका जाहिर की।
"बेटा ! पुराण की कहानियां कोई मिथक बातें नहीं बल्कि सच्चा इतिहास है। जिसे गलत तरीकों से समझा गया है। गरुड़ और नागों की यह कहानी तुम्हें सुमेर जिसे आज ईराक कहते है उसके पौराणिक इतिहास में भी मिलेगी।
हमारे इस छल कपट के कारण भारत बसियों के साथ साथ अफगनिस्तान, ईरान, इराक आदि हमारे दुश्मन बन गये। पुराने समय से ही गरुड़ वंशी और भारतीय एक दूसरे के मित्र रहे है और बेटा जैसे हमने गरुड़ वंशियों की माँ को गुलाम बनाया था आज उसी छल कपट से भारत माता को गुलाम बना लिया है। बेटा जो शासन करते है वही महान होते है। इसीलिए हम नागवंशी दुनिया के सबसे महान लोग है। " महारानी ने बात को पूरा किया।
"दादी हम साफ साफ सीधे शासन क्यों नहीं करते? छुप कर शासन करने की जरूरत ही क्या है ?" राजकुमार ने पूछा।
"जितनी ताकत छल और कपट में है वह सीधे - सीधे लड़ने में नहीं है। लेकिन गलती से भी सच सामने नहीं आना चाहिए नहीं तो ऐ उसी तरह हमारा विनाश कर देंगे जैसे राम और कृष्ण ने हमारा विनाश किया था।
जब त्रेता युग में राम और रावण का युद्ध हुआ था तो उस युद्ध में हमने रावण का साथ दिया था। हमने राम की सेना को घेर कर नाग पास बना दिया था। पर राम ने गरुड़ से सहायता मांगी और राम ने रावण को मार कर युद्ध जीत लिया था। हमने उसका अंतिम संस्कार नहीं होने दिया और उसके शरीर की ममी बना कर रख दिया।
मथुरा में यमुना के पास हमारे वंश का कालिया नाग का परिवार रहा करता था। कालिया ने यमुना नदी पर एकाधिकार कर लिया था। जिससे आस पास के लोग परेशान हो गये थे। लेकिन कृष्ण ने उन से युद्ध कर उन्हें हरा कर बहां से भगा दिया।
महाभारत के आदि पर्व में हमारा ही इतिहास है। आज जहां दिल्ली है वहां कभी खाण्डव वन हुआ करता था। जहां हमारे वंश का तक्षक, वन का राज था, कभी किसी को वन में लकड़ी, फल तथा फूल लेने नहीं दिया जाता था। लेकिन कृष्ण हमारी मंशा समझते थे कि हम पूरी दुनिया पर राज करने का सपना देख रहे है, इसलिए अर्जुन से कह कर उन्होंने खाण्डव वन को नष्ट करवा दिया।
तब तक्षक तथा उसकी पत्नी मारी गई। इसके बाद वहां पाण्डवों ने इंद्रप्रस्थ की स्थापना की। जिसे बाद में दिल्ली शहर के नाम से जाना गया।" महारानी ने बताया।
"दादी जब हम इतने ताकतवर थे तो कृष्ण को हरा क्यों नहीं पाये?" राजकुमार ने पूछा।
"बेटा ! भारतीयों का लगाव धर्म में अधिक रहता है। वे राजनीति में अधिक रूचि नहीं लेते। बैसे तो राजनीति खेलने में दुनियां में हमारा कोई मुकाबला नहीं कर सकता लेकिन पता नहीं भारतीयों में कृष्ण कहा से पैदा हो गया। छल कपट की विद्या में कृष्ण हमसे भी बड़ा महारथी था।
वह जनता था कि हमारे अन्दर क्या चल रहा है और हम बाहर क्या नाटक करते है। हम पूरी दुनिया को तो मूर्ख बना सकते थे पर कृष्ण को कभी मूर्ख नहीं बना सके। कृष्ण दुनिया में धर्म की स्थापना करना चाहता था जिससे सभी लोग सुखी रहे। उसके इस काम में हम नाग सबसे बड़े बाधक थे।
वह हमारी भोगवादी दुनिया पर शासन करने की मंशा को जनता था। हम कभी चाह कर भी कृष्ण का मुकाबला नहीं कर पाये। वह हमेशा षड्यंत्र करता रहता था।”
"कौन सा षड्यंत्र दादी?"
हम लोगों में फूट डालने के लिए कृष्ण ने अर्जुन को वासुकी राजा के राज्य में भेजा। उस समय वासुकी नागालैंड तथा उसके आस पास के क्षेत्र में राज करता था। वासुकी राजा की एक ही बेटी थी जिसका नाम उलूपी था जब अर्जुन वहां पंहुचा तो उलूपी को अर्जुन से प्यार हो गया। यह सब कृष्ण जनता था कि अर्जुन तेजस्वी तथा प्रतिभाशाली है।
यदि मैत्री सबंध के लिए अर्जुन वहां जायगा तो उलूपी अर्जुन से प्रेम कर बैठेगी और वही हुआ भी। बाद में उलूपी की जिद के कारण उसकी शादी अर्जुन से करवा दी। इस तरह वासुकि को भारतवंशियों में सम्मिलित होना पड़ा। इससे हमारा एक और वंश कम हो गया। कृष्ण यही चाहता था।"
"दादी तो क्या हमने इस षड़यंत्र का बदला नहीं लिया ?"
"बेटा जब तक कृष्ण था हम उससे हारते रहे। परन्तु कृष्ण के मर जाने के बाद हमने अर्जुन के वंशजों से बदला लेने की प्रतिज्ञा ली। तक्षक के वंशजों ने अर्जुन के पोते परीक्षित से युद्ध किया।
जिस में परीक्षित की हार हुई। बेटा उनकी इस हार का मुख्य कारण कलि था। जिसे भारतियों ने कलयुग का राजा और हमने ‘लॉर्ड ऑफ डार्कनेस’ मतलब ‘लूसीफर’ तथा इस्लाम में ‘शैतान’ कहा गया। अंधकार के देवता ‘लूसीफर’ का साथ मिलने से हमारी दिन प्रीति दिन ताकत बढ़ती गई और भारतियों की ताकत कम होती चली गई।
"तक्षक के वंशजों से परीक्षित कैसे हर गया दादी, अगर हर नाग भारत में भारतीयों के दुश्मन है तो भारत में नागपंचमी के दिन नागों की पूजा क्यों की जाती है ?”
"इस बात को जानने की लिए जन्मेजय द्वारा किये गए शार्प यज्ञ को समझना होगा। जब कलि धरती पर आया तो उसका सामना राजा परीक्षित से हुआ। जो अर्जुन के बेटे अभिमन्यु का बेटा था।
कलि ने राजा से कहा कि वह विधि के विधान से धरती पर आया है। अब लोगों के ज्ञान का स्तर गिरने लगा है। तब राजा ने कहा चाहे जो हो तुम मेरे रहते अधर्म की व्यवस्था को नहीं बड़ा सकते और इससे पहले ही में तुम्हें मार दूंगा।
तब उसने परीक्षित से रहने के लिए जगह मांगी। राजा ने कलयुग को रहने की लिए पांच जगह दे दी। पहला जहां पराई स्त्री के साथ सम्बन्ध रखा जाता हो, दूसरे जहां हिंसा होती हो, तीसरा जहां नशा किया जाता हो, चौथा जहां जुआ खेला जाता हो और पांचवीं सोना अर्थार्त धन में रहने की जगह दे दी।
इसलिए आज दुनियां में जो भी गलत हो रहा है तो उसके पीछे इन पांच कारणों में से कोई करण होता है। इस कारण लोगों से कलियुग ऐसी जगह धन खर्च करवाता है जिससे कलियुग की ताकत बड़े।
फिर कलयुग राजा के सिर पर स्वर्ण मुकुट में बैठ गया। जिससे तक्षक नाग ने राजा को मार डाला। जब राजा की मृत्यु की जानकारी उसके पुत्र जन्मेजय को लगी तो उस ने सर्पों को समाप्त करने की लिये सर्प यज्ञ करवाया। तब आस्तिक ऋषि ने यज्ञ समाप्त करने का अनुरोध किया। आस्तिक ऋषि की माँ नाग वंशी थी। राजा ने नाग यज्ञ समाप्त कर दिया।
जिस दिन नाग यज्ञ समाप्त हुआ उस दिन श्रवण महीने की पंचमी थी। इस लिये भारतवंशियों ने नागों को दूध पिला कर संधि कर ली। इस के बाद नाग पंचमी की शुरुआत हुई।
हमने भारत वंशियों से यह संधि तोड़ दी और उनको गुलाम बना लिया। सभी कश्यप ऋषि की सन्तान होने से भाई - भाई को कद्रू, विनीता, अदिति तथा दिति के वंशजों के आपसी वैमनष्य का फायदा उठा कर उन्हें गरुड़ वंशी हिन्दू तथा नाग वंशी मुस्लमानों को जातियों, उपजातियों, उच्च नीच, छुआ छूत पूजा पद्धतियों, भगवान तथा किताब के आधार पर उनके आपसी भाई चारे को तोड़ने के लिए अनेक तरीकों से विभाजित कर आपस में लड़वाना शुरू किया।
फिर शरीरिक, आर्थिक तथा मानसिक गुलाम बना कर आज तक राज कर रहे है। तब से हमने ‘लूसिफर’ की पूजा शुरू कर दी, जिससे हम पूरी दुनियां के शासक बन गए है। यह संधर्ष कभी ख़तम नहीं होगा यह मानवता पर श्राप है। ये धर्म युद्ध है जो सनातन काल तक चलेगा कोई रोक नहीं सकता। इसी लिये सभ्यताएं हमेशा युद्ध के लिये नई - नई टेक्नोलॉजी विकसित करता रहा है। परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। मृत्यु ही जीवन का सत्य है।
हर धर्म ने ऐसी कहानियां उपलब्ध है जिनमें भविष्य के किसी सतयुग या राम राज्य की कल्पना है जब संसार से सारी बुराइयां समाप्त हो जाएगी।”
दादी "फिर हम आपस में ही क्यों लड़ते रहते है ?"
महारानी "बेटा तुमने अर्धनारीश्वर शंकर की प्रतिमा देखी है। हमारे डी एन ऐ में ही देवता तथा दैत्यों के गुण मौजूद है। प्रकृति हमेशा संतुलन बनाये रखने की कोशिश करती है। इसलिये वह हमें लड़ने को प्रेरित कर कुछ को मार कर जनसंख्या नियंत्रण का काम करती है। नष्ट करना हमारी प्रकृति का हिस्सा है।"
अब धर्म के आधार पर बटबारा बहुत पुराना फार्मूला हो गया है। लोग समझ चुके है कि धर्म के नाम पर हम अपने ही लोगों का खून बहा रहे है। राम मन्दिर वन गया, धारा तीन सौ सत्तर हैट गई, तीन तलाक का कानून बना दिया, कॉमन सिविल कोड का प्रयोग चल रहा है, वक्फ बिल पास हो गया।
तो लोग खून खराबा को रोकना चाहते है। भारतीय उधोगपतियों पर हमारे हमले काम नहीं किये। हिंडनवर्ग भी बेदम हो गया हैं। भारत के नेता भी ‘सब का साथ, सब का विकास, सब का विश्वास’ का नारा दे रहे है। पिछले चुनाव में ‘एक है तो सेफ है, बाटेंगे तो कटेंगे’ नारा आम जनों में बहुत पॉपुलर हुआ है।
हर कम्यूनिटी के लोग अलग-अलग मतलब निकर कर एक जुट हो रहे है।
देश की जीडीपी लगातार बढ़ रही है, अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है। गरीबी कम हो रही है। मिडिल क्लॉस बढ़ रहा है।
दुनियां की ताकतें देश के साथ है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो हमारा क्या होगा? तो ‘लूसिफर’ ने हमें ज्ञान दिया कि
“अब हमें डीप स्टेट के माध्यम से जातिगत जनगरणा की मांग उठानी होगी।”
यदि हमें समाज को गहराई से बांटना है, नफरत बढ़ाना है तो जाति का जिन्न अलादीन के चिराग से बाहर निकालना ही होगा, अब इस का समय आ गया है।
जातिगत जनगणना
नेता भीड़ बनती है तो नेता को आगे दिखने के लिये भीड़ के पीछे चलना पड़ता है। यह जीवन का कितना बड़ा पैराडॉक्स है ? भीड़ ने मांग की तो कैबिनेट ने एक बड़ा फैसला लिया सरकार ने आगामी जनगणना में जातिगत गणना को शामिल करने का निर्णय लिया गया।
जातीय जनगणना को लेकर लंबे वक्त से विपक्षी दल मांग कर रहे थे। यह कदम सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देगा, साथ ही नीति निर्माण में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा।
जातिगत जनगणना के समर्थकों का मानना है कि यह सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। उनका कहना है कि जातिगत आंकड़े सरकार को विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगे।
कितना पवित्र विचार दिख रहा है। तो अभी तक देश में जातिगत जनगणना चौहत्तर साल में क्यों बंद किये रहे? जो दिखता है वह होता नहीं, जो होता है वह दिखता नहीं। सब माया का खेल है।
भारत में जातिगत जनगणना का इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा है। पहली जनगणना अठारह सौ बहत्तर में हुई थी, और अठारह सौ इक्यासी से नियमित रूप से हर दस साल में यह प्रक्रिया शुरू हुई। उस समय जातिगत डेटा इकट्ठा करना सामान्य था। हालांकि, आजादी के बाद उन्नीस सौ इक्यावन में यह फैसला लिया गया कि जातिगत डेटा इकट्ठा करना सामाजिक एकता के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके बाद केवल एससी और एसटी का ही डेटा इकट्ठा किया गया।
जातिगत जनगणना के संभावित नुकसान और जोखिम भी कम नहीं हैं। आलोचकों का मानना है कि यह सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कई चुनौतियां पैदा कर सकता है। आलोचकों का तर्क है कि जातिगत जनगणना समाज में पहले से मौजूद जातिगत विभाजन को और गहरा कर सकती है। वहीं जातिगत आंकड़ों का उपयोग राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा सकता है। क्षेत्रीय दल और जातिगत आधार पर संगठित पार्टियां इसका लाभ उठाकर सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकती हैं। इससे सामाजिक तनाव और हिंसा की संभावना बढ़ सकती है।
ऑपरेशन सिन्दूर
किसी भी सैन्य कार्रवाई से पहले एक रणनीति बनाई जाती है कि ऑपरेशन कहां होगा, कैसे होगा, किसको निशाना बनाया जाएगा और उसी हिसाब से सरकार मिशन के महत्व को देखते हुए उस मिशन का नामकरण करती है। नामकरण करने के पीछे गोपनीयता, प्रेरणा या कभी कभी साइकोलॉजिकल माइंडसेट छिपा होता है। सबसे पहले इसमें कोड आधारित नाम तय किए जाते हैं जिसमें किसी ऑपरेशन को एक कोड नाम दिया जाता है। दुनिया में कई ऐसे ऑपरेशन हो चुके हैं जिसमें मिशन को कोड नेम दिया जाता है। इसके बाद आता है सिम्बोलिक नामकरण, इसमें ऐसे नाम दिए जाते हैं जो सेना और लोगों के अंदर एक नया जोश भर दे।
भारतीय सशस्त्र सेनाओं द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में किए गए एक सैन्य हवाई अभियान का कोडनेम है। भारत ने कहा कि इसका उद्देश्य पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ढाँचे को निशाना बनाना था। भारतीय सेना ने बुधवार को तड़के पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में कई मिसाइल हमले किए, जिन्हें ऑपरेशन सिंदूर नाम दिया गया। पाकिस्तानी सेना का दावा है कि उसने जवाबी कार्रवाई करते हुए कई भारतीय सैन्य विमानों को मार गिराया।
हिमांशी नरवाल पहले त्रासदी का प्रतीक थीं, फिर नफरत का निशाना बनीं।
पिछले महीने, सुश्री नरवाल को अपने मारे गए पति के बगल में बैठी एक तस्वीर में कैद किया गया था। जो कश्मीर के भारतीय हिस्से में हुए आतंकवादी हमले में मारे गए छब्बीस लोगों में से एक थे। बुधवार को जब भारत ने जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान पर हमला किया, तो सुश्री नरवाल इस बात का संक्षिप्त उदाहरण बन गईं कि भारत ने अपनी सैन्य कार्रवाई के लिए “ऑपरेशन सिंदूर” नाम क्यों चुना।
सिंदूर, या सिंदूर का पाउडर, हिंदू महिलाओं की वैवाहिक स्थिति का एक पारंपरिक चिह्न है। विवाहित महिलाएं इसे अपने बालों के बीच में या माथे पर लगाती हैं, और विधवा होने पर इसे मिटा देती हैं। बाईस अप्रैल के आतंकवादी हमले के दौरान, कई महिलाओं ने अपने पति खो दिए। जिन्हें हिंदू होने के कारण निशाना बनाया गया। लेकिन बहुत कम महिलाओं को मीडिया का उतना ध्यान मिला जितना सुश्री नरवाल को मिला है, जब उनके पति के साथ उनकी तस्वीर वायरल हुई।
भारत सरकार द्वारा ऑपरेशन सिंदूर नाम का चयन विधवा महिलाओं का बदला लेने के इरादे को दर्शाता है। सोशल मीडिया पर भारतीय सेना ने एक स्पष्ट तस्वीर के साथ हमले की घोषणा की जिसमें सिंदूर का एक जार शामिल था, जो छींटे हुए खून जैसा दिख रहा था।
“ऑपरेशन सिंदूर” दक्षिणपंथी हिंदू समूहों को भी संकेत देता है जिनमें से कई पारंपरिक रूप से परिभाषित लिंग भूमिकाओं के पक्षधर हैं कि भारत की हिंदू राष्ट्रवादी सरकार बदला लेने की उनकी मांगों को सुन रही है।हिंदू राष्ट्रवाद मुख्य रूप से दुनिया के बारे में पुरुषवादी दृष्टिकोण से प्रेरित है। "महिलाएं इसमें संरक्षित की जाने वाली वस्तु या अपने पुरुषों को उनकी वीरता साबित करने के लिए प्रेरित करने वाली मां के रूप में दिखाई देती हैं।" सभी मुस्लिम बहुल कश्मीर के पहलगाम शहर के पास एक सुंदर घास के मैदान में घूमने आए पर्यटक थे। पाकिस्तान ने इसमें शामिल होने से इनकार किया है। महिलाओं और बच्चों को बख्शा गया, और कुछ बचे लोगों ने बताया कि हमलावरों ने उनसे कहा था कि उन्होंने उनकी जान बख्श दी ताकि वे अपनी सरकार को बता सकें कि क्या हुआ था। उस दोपहर की अराजकता में, सुश्री नरवाल की अपने मृत पति के पास बैठी हुई तस्वीर वायरल हो गई, उनकी कलाइयों में अभी भी कई हिंदू दुल्हनों द्वारा पहनी जाने वाली चूड़ियाँ सजी हुई थीं। कई लोगों के लिए, वह उस क्रूर हमले के साथ होने वाले सदमे और दुख का प्रतीक थीं, जिसमें बंदूकधारियों ने गोलीबारी की, जबकि नागरिक चाय पी रहे थे, ज़िप लाइन से यात्रा कर रहे थे या टट्टुओं पर सवार थे।
नौ दिन बाद, जब सुश्री नरवाल अभी भी अपने पति विनय नरवाल, नौसेना अधिकारी, जिनसे उनकी शादी को एक सप्ताह से भी कम समय हुआ था, की मृत्यु का शोक मना रही थीं, उन्होंने कहा कि वह "शांति और केवल शांति" चाहती हैं। अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए, उन्होंने अपने पति के जन्मदिन पर रक्तदान शिविर में संवाददाताओं से कहा।
लेकिन उन्होंने कहा कि वह "लोगों को मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जाते हुए" नहीं देखना चाहतीं। दक्षिणपंथी हिंदू ट्रोल्स ने उनकी टिप्पणी पर हमला किया, उन्हें ऑनलाइन बदनाम किया और आतंकवादी हमले के लिए मुसलमानों से बदला लेने का आह्वान किया।
एक महिला, "एक बार जब वह बोलती है, तो लोग नाराज़ हो जाते हैं, क्योंकि वह प्रतीक नहीं रह जाती है,"
"वह एक ऐसी व्यक्ति बन जाती है जो वैसा नहीं सोचती जैसा आप उसे सोचना चाहते हैं।"
कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के बारे में जानकारी साझा करते हुए बताया कि इस मिशन के दौरान आतंकियों के 9 ठिकानों को सफलतापूर्वक नष्ट किया गया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पूरे अभियान के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि किसी निर्दोष नागरिक को कोई नुकसान न पहुंचे, जिसके लिए एजेंसियों से प्राप्त इनपुट्स को बेहद गंभीरता से लिया गया। सवाईनाला कैंप, जो लश्कर-ए-तैयबा का प्रमुख ठिकाना माना जाता था, पहला लक्ष्य था। कर्नल कुरैशी ने यह भी स्पष्ट किया कि ऑपरेशन में पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाया गया।
वर्तमान वर्ल्ड ऑर्डर
क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया को कौन नियंत्रित करता है?
तो आप कहेंगे कि अमेरिका की सरकार, प्रेसीडेंट।
तो फिर अमेरिका के प्रेसीडेंट को कौन नियंत्रित करता है?
तो आप कहेंगे वहां का संविधान, जिसे सिनिट नियंत्रित करती है।
नहीं आप यहीं गलत हो जाते है।
इन सब को नियंत्रित करता है, पैसा। बहुत सारा पैसा। जो होता है बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास जैसे गूगल, एप्पल, माक्रोसॉफ़्ट, फेसबुक, एक्स, अमेजॉन आदि जैसी व्यापार करने वाली कंपनियों के पास ।
तो फिर इन कंपनियों को कौन नियंत्रित करता है?
इन्वेस्टर। हां ! इन्वेस्टर।
तो सबसे बड़ी इन्वेस्टमेंट कंपनी कौन सी है।
नहीं पता। होगा भी कैसे। वे मिडिया, सोशल मिडिया से दूर रहते है।
क्यों क्या मीडिया उन्हें पसंद नहीं करता।
अरे भाई ! ऐसा कैसे हो सकता।
मीडिया हॉउस भी तो कम्पनी ही नियंत्रित करती है।
तो फिर क्या?
वही तो फिर इन मीडिया हॉउस में इन्वेस्टर ही पैसा लगाते है।
तो बड़ी इन्वेस्टमेंट कंपनियां नहीं चाहती की लोग उनके बारे में जाने।
वे कही नहीं होते। ना सोशल मिडिया प्लेटफार्म पे, ना अखबारों की खबरों में।
तो हम क्यों है इन जगहों पर?
रात दिन रील बना कर डालते है। फोटो डालते है। सेल्फी अपलोड करते है। दिन भर अपडेट करते है।
क्योकि तुम ठलुआ हो। वे यहीं चाहते है। तुम उनके मानसिक गुलाम हो। रात दिन उनके लिये ही फ्री में काम कर रहे हो। क्योंकि वह कहते है कि उनका प्लेटफॉर्म फ्री है। जितना कॉन्टेंट डोलो कोई चार्ज नहीं लगेगा। बस यह 'फ्री' शब्द हमें लालच से भर देता है। फिर हमें कुछ नहीं सोचना। यदि जितना कंटेंट हम फ्री में अपना मोबाइल डेटा, समय, मेहनत, पैसा लगा कर अपलोड, डाउनलोड करते है। ये कम्पनियां अपने कर्मचारी लगा कर करे तो कितना खर्च होगा। इनका, जरा सोच कर देखों। मानसिक गुलाम, फ्री के लालची। तुम बेचने वाले ना बन कर खरीददार बनो। अच्छे कंज्यूमर खरीददार।
वे तुम्हारे व्यवहार का अध्ययन करते है। डेटा इक्कठा कर विश्लेषण कर निष्कर्ष निकलते है। कि तुम्हारा अगला मूव क्या होगा? उसके हिसाब से प्रॉडक्ट, डिस्काउंट, बेचने वाली कंपनियों की जानकारी, घर पर फ्री डिलीवरी की सुविधा, ऑनलाइन पेमेन्ट, क्रेडिट, परचेज नाउ पे लेटर,आफ्टर डिलीवरी पेमेंट सुविधा, पसंद न आये तो रिटर्न की सुविधा देते है।
कभी सोचा है कि वे इतना सब क्यों कर रहे है ?
अरे इसमें क्या सोचना। वे सब बड़े दयालू है। हमारा भला चाहते है।
यहीं तो वह चाहते है। यहीं प्रचार, विज्ञापन, रील, मैसेज से वह तुम्हें कंट्रोल करते है। वे तुम से बेहतर तुम्हें जानते है। तुम बहुत प्रेडिक्टिवल हो। वे जानते है की भविष्य में तुम्हारा अगला कदम क्या होगा। शायद तुम उतना ध्यान न दो अपने व्यवहार पर। वे तुम्हारा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते है। कहते है ऊपर वाला सब देखता है। यही कंपनियां ऊपर से तुम्हें देख रहीं है। तुम्हारे व्यवहार को नियंत्रित कर रही है।
हमें कैसे कंट्रोल कर सकते है। सामान खरीदने ना खरीदनें का निर्णय तो हमारा है। ‘फ्री विल’ भी तो कोई चीज है जनाब।
तो फिर तुम्हारे घरों में इतना फालतू का सामान क्यों भरा है? जो हेल्दी नहीं है वह क्यों खा रहे हो? जहां नहीं जाना वहां क्यों घूमने जा रहे हो ? दोस्त ! यह मानसिक गुलामी है। क्योंकि तुम मेहनत कर काम करोगे तो कंपनियों का प्रोडक्शन बढ़ेगा। फिर तुम खर्च कर खरीदोगे तो प्रॉफिट बढ़ेगा। प्रॉफिट बढ़ेगा तो कम्पनी की शेयर वैल्यू बढ़ेगी। तो उनका रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा। तो वैल्थ बढ़ेगी।
तो कौन है दुनिया की सबसे बड़ी इन्वेस्टमेंट कंपनी ?
अंदाज लगाओं ?
नहीं पता। कहीं नहीं सुना। कभी न्यूज़ नहीं पड़ी।
तो सुनो उस का नाम है ब्लैकरॉक।
क्या काला पत्थर?
नहीं बच्चे ! यह है, इन्वेस्टमेंट कम्पनी। दुनिया की सबसे बड़ी असेट मेनेजमेंट कम्पनी।
तो इस को कौन चलता है ?
भैया उस भाई का नाम है लैरी फ्रैंक।
आज पहली वार सुन रहा हूँ।
इन कम्पनी के पास इतना पैसा है कि दुनियां में तेजी हो या मंदी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। युद्ध हो या शांति। हथियार बिके या किराना। कम्प्यूटर या सॉफ्टवेयर। कुछ भी जब भी आप कहीं भी पैसा खर्च करोगे तो अंत में वह जाएगा इनके बैंक खाते में ही। वो कमाते ही रहते है। यदि बचत कर फिक्स डिपोजिट कर बैंक में रखों तो भी इनका ही फायदा है। क्योंकि बैंकों में भी इनके ही शेयर है। तो कितनी है?
नहीं पता।
अंदाज लगाओं।
नहीं जानता।
तो सुनों दस ट्रियलन। अमरीका तथा चीन को छोड़ कर दुनियां के हर देशों की जीडीपी से इनकी नेट वर्थ बड़ी है।
क्या ?
हां ! हमारे भारत देश की जीडीपी की तीन गुना और अमेरिका की जीडीपी की लगभग आधी। चाहे कोविड का समय हो या वित्तीय संकट, यह कम्पनी हमेशा लाभ कमाती रही है।
अब तुम देखों की ट्रियलन में कितने शून्य होते है? तथा डॉलर के मुकाबले आज रूपये का क्या मूल्य है?
तो जिन के पास सबसे ज्यादा पैसा उनका दुनिया पर नियन्त्रण। बात साफ है। इन्होंने दुनियां के सभी देशों की हर तरह की कंपनियों में निवेश किया हुआ है। इन के तीस देशों में सत्तर ऑफिस है तथा सौ से अधिक देशों में निवेश किया है। यह कम्पनी सभी महाद्वीपों में मौजूद है। इस कम्पनी का सूरज कभी नहीं डूबता। देशों के सेंट्रल बैंक जैसे रिजर्व बैक ऑफ़ इंडिया का सरप्लस पैसा इन्वेस्टमेंट के लिए यही कम्पनी रखती है।
देशों के पेंशन फण्ड तथा इन्सुरेंस फण्ड यही कम्पनी मैनेज करती है। यदि किसी देश को पैसे की जरुरत होती है तो उसे उधार ब्याज पर पैसा भी देती है। इनके पास दुनियां की सभी बड़ी कंपनियों के शेयर का बहुत बड़ा हिस्सा है। जी कुछ आप अपनी जिन्दगी में उपयोग में लाते है उसमें इस कंपनी का स्टेक है। मिडिया कंपनियों के नब्बे प्रतिशत शेयर इस कम्पनी के पास है। यह विश्व की फॉर्चून फाइव हन्ड्रेड कंपनियों को नियंत्रित करती है।
तो तुम्हें समझ आ गया होगा की आज दुनियां को कौन नियंत्रित कर रहे है।
फ़ोर्ब्स मैग्जीन की घनी लोगों की लिस्ट
फ़्रैंकफ़र्ट जर्मनी के एक छोटे से शहर की जुड़ें गैस नाम की गन्दी सी गली में रहने वाले एक ऐसे परिवार की जिसे से ना तो बाहर निकलने की इजाजत थी और ना व्यापार करने की छूट। इस समय यह माना जाता था कि दुनिया की समस्याओं की जड़ में यहूदी परिवार है। इसलिये इस गली में बहुत से यहूदी परिवार इस गली में रहते थे।
बारह साल की उम्र में पिता की मौत के कारण इन्हें काम की तलाश में भटकना पड़ा। लेकिन कुछ ही समय में यह परिवार इतना धनी हो जाता है कि ब्रिटेन जैसी सुपर पावर को फण्ड करने लगता है। एक वक्त में इस परिवार ने कई देशों को डूबने से बचाया था
आज इस परिवार के पास अठारह सौ से अधिक मेंशन्स है। इग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों में इनका एकाधिकार है। कमाल की बात यह है कि इस परिवार के बारे में बहुत ही काम लोगों को जानकारी है। यहां तक कि इस परिवार के किसी व्यक्ति का नाम फ़ोर्ब्स की सबसे घनी लोगों की लिस्ट में कभी नहीं आता।
यह परिवार है रॉथचइल्ड परिवार।
पिछले दो सौ सालों से यह परिवार दुनिया की टॉप कम्पनियों को नियंत्रित कर रहा है। आज इस परिवार की नेट वर्थ बीस ट्रिलियन से भी ज्यादा है। अब सवाल यह है कि कैसे इस परिवार ने ग़रीबी से निकल कर इतना बड़ा साम्राज्य बनाया। और ऐसी क्या वजह है कि यह परिवार मीडिया से छिपा रहता है?
मेयर एमसेल रॉथचइल्ड इस गली में तीन हजार से ज्यादा परिवारों के साथ रहा करते थे। इन के परिवार में तीस लोग थे। और घर था मात्र ग्यारह फ़ीट चौड़ा। इन के पिता एमसेल मजस रॉथचइल्ड गुडस ट्रेडिंग तथा करेंसी एक्सचेंज का व्यापार किया करते थे। साथ ही वह यूरोप डायनेस्टी के प्रिंस ऑफ हेस को कॉइन के पर्सनल सप्लायर के रूप में काम करते थे।
उस समय यहूदियों के पास काम करने की बहुत अवसर नहीं होते थे। क्योंकि किसी अन्य इंडस्ट्री में इन्हें काम नहीं करने दिया जाता था। पैसे से सम्बन्धित कारोबार को ईसाई बहुत बड़ा अपराध मानते थे। इस लिए यहूदियों को इस क्षेत्र में काम करने दिया जाता था। इससे यहूदी इस कारोबार में निपुण होते चले गये। एमसेल का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा था। इससे उनके परिवार की जिन्दगी कुछ अच्छी हो गई था। लेकिन तभी चेचक की बजह से एमसेल की मौत हो गई।
उस समय उनकी उम्र मात्र चवालीस साल थी। पिता की अचानक मौत से मेयर एमसेल रॉथचइल्ड पर बहुत गहरा असर पड़ा। लेकिन यह उनके दुखो का अंत नहीं था। क्योंकि पिता की मौत के एक साल बाद उनकी माँ ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। तब मेयर एमसेल रॉथचइल्ड चौदह साल के थे। और वे यहूदी स्कूल में पढ़ते थे। माता पिता की मौत के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई। वे अब अपने रिश्तेदारों के पास रहने लगे। कुछ समय बाद इनके एक रिश्तेदार ने इन्हें जर्मनी के दूसरे शहर हनोवर भेज दिया था। ताकि वे वहां एक यहूदी बैंक में काम कर अपना खर्च उठा सके। बारह साल के बच्चे के लिये यह बहुत काठी समय था। लेकिन यही काम इनकी जिंदगी बढ़ाने वाला था। यहां काम करते हुए इन्होने विदेश व्यापार तथा फाइनेंस के काम को सीखा तथा दुर्लभ रोमन सिक्कों के बारे में जाना।
लगभग छह साल काम करने के बाद अपने भाइयों के पास फ़्रैंकफ़र्ट वापिस लौटे। यहां आ कर उन्होंने दुर्लभ सिक्कों का कारोबार शुरू किया। इस काम में बहुत लाभ था। वह धीरे-धीरे अपने क्षेत्र के अमीर लोगों में गिने जाने लगे। कुछ समय में ही यह यूरोप के शाही परिवारों के साथ काम करने लगे। मेयर इन परिवारों की वेल्थ को मैनेज करने लगे। उन्होंने सोना खरीद कर अपनी वेल्थ को खूब बड़ा लिया था। होता या था कि जब शाही परिवार सोना खरीदना चाहते थे तब मेयर उनके पहले सस्ते में खुब सारा सोना खरीद कर भाव बड़ा देते और फिर खूब प्रॉफिट में अपना सोना बेच देते।
अब उनके पास बहुत पैसा जमा हो गया तो उन्होंने सोचा कि पैसा ब्याज पर उधर दे कर लाभ कमाया जाए। इस के बाद उन्होंने लोगों को उधर देना शुरू कर दिया था। वे अपना पैसा सरकारों, राजा महाराजा तथा सरकारी अधिकारीयों को उधार देते थे। और इससे शुरूआत हुई नए बैंकिंग सिस्टम की। कुछ समय बाद उन्होंने एक मनी एक्सचेंजर की बेटी स्पैनर से शादी कर ली। कुछ साल में ही उनके पांच बेटे तथा पांच बेटियां पैदा हो जाती है। अब उन्होंने उस तंग गली से निकल कर पांच मंजिला ग्रीन फील्ड नाम की बिल्डिंग खरीद कर उन में रहने लगते है। मेयर अपने बच्चों को शुरू से ही मनी क्रिएशन तथा मैन्युपुलेशन के बारे में सिखाया करते थे।
अब उनका व्यापार जर्मनी में बहुत बाद गया था। तब उन्होंने इसे दूसरे देशों में फैलाने का सोचा। उन्होंने अपने बड़े बेटे को फ्रैंकफर्ट में, दूसरे बच्चे को विएना, चौथे को नेपल्स तथा पांचवें बच्चे को पेरिस भेज दिया। तीसरे बच्चा नैथन बहुत ज्यादा चालाक था। वह लंदन जाता है। वहां जाकर अपने पिता से भी बड़ा बैंक खोल लेता है। इसने केवल सत्रह सालों में पिता से मिली वेल्थ को पच्चीस सौ गुना बड़ा दिया था। मेयर चाहते थे कि ये यूरोप में चल रहे बॉन्ड की फंडिंग की जाए। नैपोलियन तथा ब्रिटेन की सरकारों को लोन दिया जाए। युद्ध के लिए और कोई फण्ड नहीं करता था। रिस्क बहुत था। लेकिन इन्होंने बहुत अधिक ब्याज पर हथियार तथा अन्य युद्ध का सामान खरीदनें को फण्ड दिया।
इन की टीम को युद्ध की जानकारी ब्रिटेन से पहले मिल जाती थी। उन्हें पाहिले पता चला कि नैपोलियन वाटरलू में युद्ध हर रहा है। तब रॉथचइल्ड उलटी खबर फैलते है कि ब्रिटेन युद्ध हार रहा है। इससे ब्रिटेन का शेयर मार्केट गिरने लगा। लोग इनकी बातों पर भरोसा करें इसलिये इन्होंने अपने कुछ शेयर भी बेचन शुरू किया। जब लोग अपने शेयर बिछने लगे तो नेथन ने सारे शेयर सस्ते दामों पर खरीद लिए। जब ब्रिटेन की जीत की खबर लोगों को मिलती है तो शेयर मार्केट फिर बढ़ने लगता है। तब यह अपने शेयर बेच कर बहुत फायदा कमा लेते है।
धीरे-धीरे इन्होंने पूरे यूरोप में अपने बैंकिंग सिस्टम को फैला लिया था। जब यूरोप में औद्योगिक क्रांति हुई तब इन्होंने हर सेक्टर में निवेश किया। पूरी दुनिया में रेल, रोड, तेल, पुल, पोर्ट आदि बनाने में पैसा लगाया। अठारह सौ तेहरानवें में जब अमेरिका में गोल्ड क्राइसिस हुआ तो अमेरिका की सरकार ने एक लाख किलों सोने की मांग की। तब जे पी मॉर्गन ने रॉथचइल्ड से यह सोना उधार ले कर अमेरिका की सरकार को दिया। जैसे आज इण्टर नेशनल मॉनीटरी फण्ड देशों को वित्तीय संकट से बचाने के लिए लोन देता है तब रॉथचइल्ड परिवार दिया करता था। कई दफे रॉथचइल्ड ही फाइनेंसियल क्राइसिस पैदा करते और फिर उस क्राइसिस से निकलने के फण्डिंग भी करते थे।
यह परिवार दो सौ सालों से ऐसे ही गुप्त रह कर काम करते है। यह परदे के पीछे से दुनिया को कंट्रोल करते है।इन परिवारों को पता है कि पैसे से सत्ता तक पहुंच बनाई जा सकती है। प्रभाव से पैसा कमाया जा सकता है।बहुत से लोग दावा कर सकते हैं कि यह किस्मत और “सही जगह और सही समय” का मामला है।
हालाँकि यह थोड़ा भाग्य की स्थिति हो सकती है, लेकिन कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि किसी साम्राज्य को उसी स्तर पर बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत और प्रतिभा की आवश्यकता होती है जिस पर वह चरम पर है।
परिवार के लोगों की पीढ़ियों ने अपने परिवार के साम्राज्य को बढ़ाने के लिए अपना पसीना और आँसू बहाए हैं ताकि वे वर्तमान में अपनी संपत्ति बढ़ाते रह सकें। वाल्टन, वॉलमार्ट, रिटेल, संयुक्त राज्य अमेरिका, अल नाहयान, अबू धाबी शाही परिवार तेल, निवेश, संयुक्त अरब अमीरात, अल थानी, कतर शाही परिवार, प्राकृतिक गैस, निवेश, हर्मेस डुमास, हर्मेस, लक्जरी फैशन, फ्रांस, कोच, कोच इंडस्ट्रीज, संयुक्त राज्य अमेरिका, अल सऊद, सऊदी शाही परिवार, तेल सऊदी अरामको, निवेश, सऊदी अरब, मार्स, मार्स इंक., कन्फेक्शनरी, पालतू जानवरों की देखभाल, संयुक्त राज्य अमेरिका, अंबानी, रिलायंस इंडस्ट्रीज, ऊर्जा, दूरसंचार, खुदरा, भारत, वर्थाइमर , चैनल, लक्जरी फैशन, फ्रांस, थॉमसन आदि ऐसे ही परिवार है।
मुद्रा का इतिहास
प्राचीनतम सभ्यताओं से ले कर आज कल पैसे ने मानवता के विकास तथा विनाश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह मानवता की सबसे बड़ी कहानी है जो केवल सामूहिक भरोसे तथा आपसी सहयोग के कारण चल रही है। क्या आप एक ऐसी दुनिया की कल्पना कर सकते है जब पैसे का आविष्कार नहीं हुआ था।
प्राचीन काल के भारत में पैसे की कोई अवधारणा नहीं थी। उस समय की अन्य सभ्यताओं में सोना सूरज का पसीना था। चांदी चन्द्रमा के आंसू थे। श्रम मूल्य की इकाई था।
फिर कलयुग का आगमन हुआ और धन सब कुछ हो गया। लोग धन के लिये आपस में लड़ने लगे। धोखा देने लगे। बेईमानी करने लगे। चुराने लगे। यहाँ तक धन के लिये हत्याऐं होने लगी। भाई-भाई का दुश्मन हो गया। लोग धरती का सीना चीर कर सोना तथा चांदी निकलने लगे। बस्तुओं तथा सेवाओं का अदन प्रदान पैसे से होने लगा।
भारतीय सभ्यता में वित्तीय धन का इतिहास काफी लंबा और विविध है। जो सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आधुनिक भारत तक फैला है। भारत का आर्थिक विकास सिंधु घाटी सभ्यता से आरम्भ माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित प्रतीत होती है। जो यातायात में प्रगति के आधार पर समझी जा सकती है। प्राचीन काल में, भारत में व्यापार और मुद्रा के रूप में विभिन्न वस्तुओं का उपयोग होता था। जैसे कि अनाज, धातु, और मूल्यवान पत्थर। यदि लोग भरोसा करे तो मिट्टी के पटिका भी मुद्रा का बेहतर ढंग से काम करती है।
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से, भारत में विभिन्न प्रकार के सिक्कों का उपयोग शुरू हुआ, जिनमें तांबे, चांदी, और सोने के सिक्के शामिल थे। लगभग छह सौ ई॰पू॰ महाजनपदों में विशेष रूप से चिह्नित सिक्कों को ढ़ालना आरम्भ कर दिया था। प्राचीन भारत एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, जहाँ रेशम मार्ग, मसाला मार्ग, और अन्य व्यापारिक मार्गों के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं का व्यापार होता था।
पहले यूरोप के लोगों को रोमन अंकों में गणना करना बहुत कठिन था। लेकिन भारत, चीन और मुस्लिम देशों में अलग तरह के अंक प्रयोग में आने से गणना करना बहुत सरल था। तब इटली के शहर पीसा के गणितज्ञ लियोनार्डो ऑफ़ पीसा या फिबनाची ने अरेबिक अंकों से गणना करना शुरू किया।
तब वेनिस शहर पैसा उधर देने का मुख्य केंद्र था। यहूदी लोग उधार देने का काम करते थे। वह लोग जिस टेबिल पर बैठ कर पैसे का आदान प्रदान करते थे उसे इतालबी में 'बेंकी' कहा जता था। जिससे बैंक शब्द बना। ईसाई धर्म में ब्याज लेना पाप था। इसलिये केवल यहूदी लोग इस काम को करते थे। इसी कारण उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया।
धीरे-धीरे पंद्रहवीं शताब्दी तक बैंक का काम इज्जत का काम हो गया। इटली के फ्लोरेंस शहर के मिडेची परिवार के लोग पोप बने। आधुनिक बैंकिंग की नींव इसी परिवार ने रखी। इस परिवार ने यूरोप के पुनर्जागरण काल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह परिवार फॉरेन करेन्सी एक्सचेंज का काम करता था। इस परिवार के लोगों को आर्थिक अपराध में फांसी की सजा भी दी गई। लेकिन जियोवानी दे बिसि ने मिडेची बैंक का रिकॉर्ड रखने के सिस्टम बनाये।तथा पारदर्शिता के साथ बैंक के काम को साफ सुथरा बना दिया। उन्होंने ब्याज के बदले कमीशन लेना शुरू किया। जो लीगल था। चर्च ने कमीशन पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया था। इस व्यवस्था से आधुनिक बैंकिंग प्रणाली का विकास हुआ।
सोलहवीं शताब्दी में, शेर शाह सूरी ने 'रुपया' नामक चांदी का सिक्का पेश किया। जो मुगल साम्राज्य द्वारा भी जारी रखा गया। लाल किले में दीवाने खास सबसे अधिक सुन्दर और अलंकृत है। यहाँ एक खुदे लेख में इसकी सुन्दरता का वर्णन इन शब्दों में किया गया है
गर फिरदौस बर रूये जमीं अस्त।
हमीं अस्तों हमीं अस्तों, हमीं अस्त॥
यानी, यदि पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह यही है, यही है और यही है।
उन्नीसवीं सदी में, अंग्रेजों ने भारत में कागजी मुद्रा की शुरुआत की, और अठारह से इकषठ के पेपर करेंसी एक्ट के माध्यम से सरकार को नोट जारी करने का एकाधिकार मिला।
एक कागज के नोट का कोई आंतरिक मूल्य नहीं है। जैसे एक रूपये के नोट पर लिखा होता था की धारक को एक रूपये के भुगतान का वादा करता हूँ। यह भरोसा करने के लिए पर्याप्त आश्वासन था। बिट क्वाइन तो इलेक्ट्रॉनिक चिन्ह मात्र है। जो केवल कंप्यूटर की स्क्रीन पर दिखता भर है। इस आभाषी मुद्रा में इंसान के भरोसे को देख कर नमन करने का मन होता है। आज हम इस आभाषी मुद्रा से बहुत खुश है। क्योंकि इसे एक जगह से दूसरी जगह भेजना। मोबाइल से भुगतान करना कितना आसान है। यह केवल आपसी विश्वास पर चल रहा है।
लोगों को भरोसा है कि यदि में किसी को पैसा उधार देता हूँ तो भविष्य में निश्चित तिथि को वह मेरा पैसा लौटा देगा।आज का अमेरिका उधार के पैसे से बना है। यहां दिवालिया होना कोई कलंक नहीं है। इससे लोग बैंक लोन ले कर काम शुरू करते है। असफल होते है और फिर लोन ले कर प्रयास करते है और सफल होते है ऐसे लोगों में हेनरी फोर्ड भी शामिल थे।
बॉन्ड का आविष्कार बैंकिंग सिस्टम का नया आविष्कार है। बॉन्ड बैंकिंग और राजनीति के गठजोड़ की मजबूत कड़ी है। सरकार जितना पैसा टैक्स से कमाती है उससे अभिक खर्च कराती है। इस घाटे को पूरा करने की लिये सरकार बॉन्ड जारी करती है और बॉन्ड खरीदने वालों को ब्याज देती है। आज सरकार तथा स्टॉक एक्सचेंज में रजिस्टर कंपनियां अपने तात्कालिक खर्च की रकम जुटाने के लिये बॉन्ड जारी करती है।
जिन्हें बैंकों के माध्यम से स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से बेचा तथा खरीदा जाता है। अकेले अमेरिका में पच्चासी ट्रिलयन डॉलर से अधिक के बॉन्ड जारी किये जा चुके है। हम सब की किस्मत बॉन्ड मार्केट से बंधी हुई है। यदि बांड बाजार निचे जाता है तो बैंक में हमारी जमापूँजी, पेंशन, इंश्योरेंस आदि की सब राशि डूब सकती है। पूरी दुनिया आपस में जुड़ी हुई है। आज की दुनिया पर बांड का राज है। रॉथचइल्ड ने सिखाया था कि युद्ध जैसे समय में बॉन्ड के कैसे पैसा कमाया जा सकता है। पैसे से शक्ति मिलती है। शक्ति सरकार को नियंत्रण के काम आती है। जिससे और पैसा कमाया जा सकता है। जब मुद्रास्फीर्ति होती है तो बॉन्ड की कीमत गिर जाती है। यदि सस्ता लोन न मिले तो अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है। दुनिया के शेयर तथा बॉन्ड बाजार की कीमत दो सौ बीस ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति है।चीन और अमेरिका की अर्थ व्यवस्था आपस में एक दूसरे पर बहुत अधिक एक दूसरे पर आश्रित है। आज विश्व अर्थ व्यवस्था पहली वार बहुत अधिक गुथी हुई है।
वर्ल्ड बैंक तथा आई एम एफ से ज्यादा लोन अकेले चीन बाँट रहा है। अनेक देश वर्ल्ड बैंक तथा आईएमएफ के लोन की किश्तें समय पर नहीं चूका पा रहे है। दूसरी ओर चीन लोन डिप्लोमेसी के जरिये कर्ज लेने वाले देशों के सामरिक महत्त्व के बन्दरगाह, एयर पोर्ट अपने कब्जें में ले रहा है। आधुनिक बैंकों ने हेज फण्ड बना कर तथा लोन एक दूसरे को बेच कर सब प्राइम लोन पोर्टफोलियों दूसरे देशों को बच दिये है।
डॉलर की स्थिति कमजोर हो रही है। देश आपस में उनकी करेन्सी में व्यवसाय करने के लिये फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर रहे है। भारत ने यू पी आई पैमेंट सिस्टम विकसित किया है। जिससे अमेरिका के स्वीफ्ट पेमेंट सिस्टम पर निर्भरता घट रही है। ग्लोवॉलाइजेशन के कारण अमेरिका का ट्रेड डिफिसिट बढ़ गया है। दूसरे देशों की सुरक्षा देने के कारण सरकार का घाटा बाद गया है।
वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन की कोई सुन नहीं रहा है। अमेरिका के वर्तमान प्रेसीडेंट द्वारा रेसिपोरोकल जैसे को तैसा की नीति अपनाते हुए टैरिफ लगा दिये गए है। विश्व व्यापार पूरा गड़बड़ा गया है। वर्ल्ड पॉवर का बैलेंस सेन्टर बदल रहा है।अमेरिका अपनी लीडरशिप बचाने के लिये संघर्ष कर रहे है।
बदलते व्यापारिक मार्ग
मानवता के प्रारम्भ से ही बेचने तथा खरीदना का काम होता रहा है। जब यह व्यापार दो देशों के बीच होता है तो सामग्री को लेन ले जाने के लिये जिस रास्ते का उपयोग होता है उसे ट्रेड रूट कहा जाता है। सबसे पहले भारत के पश्चिमी तट से मसालें, काली मिर्च तथा दालचीनी का निर्यात दक्षिणी अरेबियन पेननशुला के शहरों को किया जाता था।
वहां उगने बाले खुशबूदार पेड़ की धूप भारत लाए जाती थी। दक्षिणी अरेबियन पेननशुला में भारत से लाई सामग्री ऊटों द्वारा उत्तर में स्थित पेट्रा शहर लाए जाती थी। फिर मिस्र तथा मेसिपोटीमिया ले जाइ जाती थी। सिकन्दर द्वारा विजय प्राप्त कर लेने के पश्चात मिस्र में अलेक्जेंड्रिया शहर की स्थापना की।
तब भूमध्य सागर के सभी किनारों के शहरों तक यह सामग्री जाने लगी। अलेक्जेंड्रिया शहर भारत के व्यापार का प्रमुख केन्द्र बन गया।
तुर्किस्तान में मिलने बाले जेड पत्थर की मांग चीन में बहुत होने से मध्य एशिया में चाय के बदले जेड पत्थर का व्यापार शुरू हुआ। बाद में मध्य एशिया से घोड़ों का व्यापार चीन की सिल्क के बदले में होने लगा। इससे सिल्क रोड़ का जन्म हुआ।
किल्योपेट्रा की मृत्यु का बाद रोम साम्राज्य का विस्तार मिस्र तथा भूमध्य सागर के देशों में हो जाने से यह व्यापार मार्ग रोम तक बढ़ गया। भारत तथा चीन से मसालें, कपड़े, सिल्क तथा हीरों का व्यापार मिस्र के गेहूँ तथा सोने के बदले में शुरू हुआ।
अरेबिया में राजनैतिक अस्थिरता होने से रोमन द्वारा नील नदी से नया समुद्री मार्ग भारत के लिए खोजा। जिससे केशर, इत्र तथा हीरों का व्यापार होने लगा। इससे अरेबियन शहर पिछड़ गये।
रोम जब पार्थियन के सम्पर्क में आये तो चीन से सिल्क लेने लगे। जिससे सिल्क रोड़ पर अनेक शहरों का विकास हुआ।
जब रोमन ने अपनी राजधानी कॉन्टिनोपोल को बनाया तब चीन से समरकन्द से गुजरने बाले सिल्क रोड के व्यापार का यह केंद्र हो गया।
मुसलमानों द्वारा बेजेन्टाइन तथा ससेरियन सम्राज्य को जीत लेने के कारण अरब लोगों ने भारत तथा चीन को जोड़ने बाले सिल्क रोड़ को बंद कर दिया।
मुसलमानों से तालास की लड़ाई हार जाने पर चीन ने अपने पूर्वी तट पर स्थित बंदरगाहों के माध्यम से समुद्र के रास्ते से व्यापार करना शुरू किया।
यूरोप के देशों ने व्यापार की बड़ी संभावनाओं के कारण समुद्र के रास्ते विकसित करना शुरू किया। अब अफ्रीका के देशों से हाथीदांत, कीमती धातुएँ तथा दासों का व्यापार शुरू हो गया। यूरोपीय देशों से शहद, लकड़ी तथा अन्य सामान आने लगा।
इस समय यूरोप के शहरों का विकास हो रहा था। मध्य एशिया में अरब खलीफाओं के मंगोल जान जातियों से युद्ध शुरू हो गए थे। स्मपुर्ण क्षेत्र पर मंगोलों का कब्ज़ा हो गया था। तब इजराइल में यात्रा करने वाले ईसाईयों पर हमले होने से भूमध्य सागर से यूरोप से क्रूसेडर आने लगे। यह लोग समुद्र में नेविगेशन की तकनीक जानते थे। इससे बेजेन्टीन साम्राज्य टूट गया।
यूरोप के उत्तर में वाल्टिक सागर के किनारे के शहरों में समुद्र के रास्ते व्यापार शुरू हुआ। बास्कोडिगामा पुर्तगाली तथा स्पेन के नाविकों ने अफ्रीका का चक्कर लगा कर भारत से व्यापार के लिये नया समुद्री रास्ता खोज लिया। कोलम्बस ने केरेबियन दीप तथा अमेरिका के लिये समुद्री रास्ता खोजा।
इससे बहुत बड़ा वाणिज्यिक नेटबर्क तैयार हो सका। इस समय पुर्तगाल का समुद्र पर राज हो गया। पुर्तगाल बहुत जल्दी बहुत समृद्ध हो गया। पुर्तगालियों तथा स्पेनिश ने आपस में नए खोजे क्षेत्र बाँट लिये पूर्व में पुर्तगाल तथा पश्चिम में स्पेन राज्य करने लगे। तब आलू, टमाटर, के साथ कोका का व्यापार शुरू हुआ। कॉफी तथा चॉकलेट यूरोप के बाजारों में बहुत पसन्द की जाने लगी।
शक्कर, तम्बाखू, कीमती धातुएँ, तथा दास यूरोप एवं अमेरिका बहुत बड़ी संख्यां में लाये गये। अफ्रीका से लाखों लोगों को गुलाम बना कर भेजा गया। भाप के इंजिन का अबिष्कार हो जाने से रेल मार्ग बने।
औद्योगिक क्रान्ति के कारण मशीनीकरण शुरू हुआ। पहले कोयला फिर पेट्रोलियम तेल ऊर्जा के स्रोत बने। स्वेज तथा पनामा केनाल बनी। समुद्री रास्ते छोटे हो गये। शुरू में अमेरिका तथा बाद में मध्य एशिया के देशों में पेट्रोलियम तेल की खोज की गई। अब यातायात के लिए सड़क, समुद्र के साथ वायु मार्ग खुल गये। ब्रिटेन ने बहुत बड़े साम्राज्य का निर्माण किया। कपास, लोहा,
कोयला,पेट्रोलियम तेल आदि ब्रिटेन भेजा जाने लगा। यातायात के साधन बदलने से वर्ल्ड आर्डर बदल गया। अमेरिका विश्व का मुखिया बन गया।
प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ग्लोबलिज़ेशन की शुरआत हुई। चीन, जापान, जर्मनी प्रमुख उत्पादक देश बन गये। इन्होने अमेरिका की तकनीक पर आधारित इलेक्ट्रॉनिक सामग्री का निर्माण शुरू किया। दो हजार एक में चीन वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाईजेशन का सदस्य बना। चीन सागर और बेल्ट व्यापार मार्ग, जिन्हें अक्सर इक्कीस वीं सदी का समुद्री रेशम मार्ग कहा जाता है, चीन की बेल्ट और रोड पहल एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इस पहल में समुद्री व्यापार मार्गों का विकास करना शामिल है, जो चीन को दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर, लाल सागर और उससे आगे तक जोड़ता है।
चीन का उद्देश्य विश्व के एक सौ चालीस भाग लेने वाले देशों और क्षेत्रों में आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विकास के अवसरों को बढ़ावा देना है। इस व्यापार मार्ग में कई समुद्र और महासागर शामिल है; जिनमें दक्षिण चीन सागर, मलक्का जलडमरूमध्य, हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, फारस की खाड़ी और लाल सागर शामिल है।
यह प्रोजेक्ट दो हजार उनन्चास तक पूरा किया जायगा। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी ध्रुव से बरफ पिघल रही है। जिससे उत्तरी ध्रुव सागर में समुद्र के माध्यम से कनाडा तथा रूस के रास्ते बदल जायगे। चीन इस मार्ग को बनाना चाहता है।
विश्व गुरु का सपना
विश्व इतिहास में एक समय ऐसा था जब भारतीय रोमन सम्राज्य के साथ व्यापार करते थे। तब भारतीय सभ्यता का प्रभाव पश्चिम एशिया, मध्य एशिया, मिस्र, रोम तथा यूरोप तक फैला था। भारत तब विश्व व्यापार का केंद्र था। जहाज मानसून की हवाओं के साथ आते जाते थे।
बुद्ध धर्म भारत से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कंधार, बाचा, मध्य एशिया उज्बेकिस्तान, चीन से मंगोलिया, कोरिया, जापान, वियतनाम, लाओस, थाईलैंड, कम्बोडिया, तथा फिलीपींस तक फैला था।
इसी समय को भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है। जब भारत का सॉफ्ट पॉवर का प्रभाव बिना किसी का खून बहाए, धर्म परिवर्तन किया तथा बिना साम्राज्य विस्तार के हुआ था। यह एक धार्मिक, दर्शन तथा सांस्कृतिक प्रभाव का समय था। इस समय भारतीय भाषाएँ संस्कृत, पाली, द्रिविड़ भाषाई फैली। गणित, खगोल विज्ञानं, आयुर्वेद, भौतिकी तथा अन्य विषयों का अध्ययन करने पूरे विश्व से स्कॉलर आते थे।
नालन्दा तथा तक्षशिला जैसे विश्व विद्यालय थे। गुरु कुल की शिक्षा प्रणाली के कारण साक्षरता का स्तर पूरे विश्व में सबसे उच्चा था। तब विश्व की जीडीपी में भारत का योगदान तैतीस प्रतिशत था। विश्व की बत्तीस प्रतिशत जनसंख्या यहां निवास कराती थी।
भारत का प्रभाव अनेक देशों में आज भी देखा जाता है। अंकोरबाट के मन्दिर कम्बोडिया, इंडोनेशिया, श्री लंका में आज भी यह प्रभाव देखने को मिलता है। बुद्धिज्म को फ़ैलाने में अशोक का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने मिशनरियों को चारों तरफ भेजा। जिस के कारण पश्चिम में मिस्र से पूर्व में चीन तथा जापान तक यह धर्म फ़ैल गया। बुद्ध धर्म का प्रभाव चीन, जापान, तिब्बत तथा भूटान के साथ सम्पूर्ण दक्षिण पूर्वी क्षेत्र के देशों में दिखाई देता है। चीन से कोई धर्म भारत नहीं आया जबकि यहां से बौद्ध धर्म वहां फ़ैल गया। चीन की एक रानी ऐसी थी जो पहली चीन की सम्राट बनी।
वह बुद्ध धर्म को मानती थी। उसने बुद्ध धर्म को चीन का राजधर्म बना दिया था। इन क्षेत्रों के ग्रन्थ, सिक्के, शिलालेख, इमारतें, मूर्तियां तथा साहित्य में यह प्रमाण मिलते है।
जो यात्री उस काल खण्ड में भारत आये उनके यात्रा विवरण उस समय के समाज, शहर, व्यापार प्रशासन व्यवस्था के आधिकारिक दस्तावेज है। नालन्दा विश्व विद्यालय की खुदाई में निकली भवन संरचना का प्रभाव मदरसों तथा आधुनिक विश्व विद्यालयों के लेआउट में देखने को मिलता है। विश्व विद्यालय का खुला प्रांगण, शिक्षकों के कमरे तथा क्लास रूम लगभग उसी तरह के है। नालंदा में नौ मंजिल का पुस्तकालय था।
जिसमें दर्शन, तर्क, गणित, चिकित्सा, तत्व मीमांसा, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, विज्ञानं, साहित्य, रत्न शास्त्र, खनिज तथा जादू पर किताबें थी। यह विश्व के लिये भारतीय विचार है। इस लेआउट पर चीन, नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, सुमात्रा तथा कोरिया में विश्व विद्यालयों का निर्माण हुआ।
जब रोमन साम्राज्य का पतन हो गया तब भारत के दक्षिण के व्यापारियों ने गिल्ड बना कर दक्षिण पूर्वी एशिया क्षेत्र में सम्राज्य तथा व्यापार को फैलाया। ये लोग सोने के नये स्रोत खोज रहे थे। रोम से वर्षो तक टनों सोना पांच सो साल तक आता रहा। क्योंकि रोमन का पतन हो जाने से यहां से सोना आना बंद हो गया था। अब यह सोना दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों से आने लगा। यह सब हिन्दू राज्य थे। बुद्ध धर्म के प्रभाव में मंदिर बहुत बड़े होते गये। इन सब की राज भाषा संस्कृत थी। भारतीय विचारों की जीत थी।
यह जीत तलवार की धार से नहीं आई थी। रामायण, महाभारत की कहानियां आज भी सुनाई जाती है। दक्षिण पूर्वी एशिया को भारत ने हमेशा के लिये बदल दिया था। भारत जब विश्व गुरू बनाने की बात करता है तब वह साम्राज्य विस्तार की अवधारणा नहीं हो कर विचार, दर्शन तथा मूल्यों की बात करता है।
यह सॉफ्ट पॉवर है। आज हर देश में भारत द्वार दिये गए गणित के नम्बर, दशमलव तथा गणना करने के लिए भारतीय सिस्टम का उपयोग किया जाता है। भारतीय समय गणना, सप्ताह, माह, वर्ष के नम्बर भारत की देन है। देवनागरी नम्बर को अरब जगत ने अपनाया फिर इटली होते हुए पूरे यूरोप में फ़ैल गए। जो आज पूरे विश्व में उपयोग में आते है।
तिगुणाची के कारण मिडीची बैंक बना। जिसमें भारतीय गणतीय विधि से हिसाब लिखा गया। इसे यदि उलटे क्रम में समझे तो तिगुणाची से लुका पाटोली जिसने फ़्रांस को गणना सिखाया। पिएरो फ्रांसेस्को मिलान ले कर गया। जिसने अपने फ़्लैट मेट लियोनार्डो डी विंची को सिखाया।
सो यह क्रम बनता है लियोनार्डो डी विंची को पिएरो फ्रांसेस्को को फिबोनाची को अल करिसिमि बगदाद को ब्रम्ह गुप्ता माउन्ट आबू राजिस्थान ने सिखाया। यह भारतीय विचार इस तरह से फैले।
हर चिप आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस हर जगह भारतीय प्रभाव रोज के जीवन में मिलता है।
यह हम सब को जानना चाहिए की भारत का सॉफ्ट पॉवर क्या है? और भारतीय विचारों ने दुनिया को कैसे हमेशा के लिये बदल दिया। चीन के सिल्क रोड के पहले भारत ने गोल्डन रोड का विकास किया था। जिसे दुनिया को बताने का समय आ गया है। इसी कारण भारत सरकार पुनः भारत को विश्व गुरु बनाने की बात कर रहे है। हमें अपनी राष्ट्रीयता पर गर्व होना चाहिए। हमें अपने पूर्वजों पर गर्व होना चाहिए कि उन्होंने दुनिया को क्या दिया?
वैश्विक व्यवस्था एक ध्रुवीय व्यवस्था से बदल रही है, शीत युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका एक मात्र केंद्र था। अब एक बहु ध्रुवीय व्यवस्था में दुनिया बदल रही है। जहाँ कई राष्ट्र प्रभाव डालने वाले उभर रहें है। दुनिया बदलाव का गवाह बन रही है। हाल के दिनों में ‘नाटो’ कमजोर हुआ है। तो दूसरी तरफ नये मुक्त व्यापार समझौते के गठबन्धन हो रहे है। इन बदलावों ने भारत को कई तरह से प्रभावित किया है।
सभ्यता के आरंभ से ही भारत पूरी दुनिया के लिए गुरु रहा है। जब पूरी दुनिया अंधकार में भटक रही थी, तब भारत मनुष्य को परमात्मा के साथ एकता के बारे में सिखा रहा था। दुनिया भर से लोग भारत में आकर इसके अमूल्य ज्ञान से लाभ उठाते थे।
वास्तव में, जिस देश ने सुश्रुत, कणाद, वराहमिहिर, ब्रम्ह गुप्त और आर्यभट्ट के माध्यम से पूरी दुनिया को अपनी शैक्षणिक प्रतिभा दिखाई, वह फिर से “विश्व गुरु भारत” होने का वही पद पाने का हकदार है। हम 'वसुधैव कुटुम्बकम' में विश्वास करते हैं, दुनिया एक परिवार है।
और अब समय आ गया है कि पूरी दुनिया भी इस भावना को आत्मसात करे। यह उपनिवेशवाद नहीं है।
चीन, भारत, रूस और यूरोपीय संघ जैसे देश अधिक भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव का दावा कर रहे हैं। हाल ही में, हम चीन द्वारा सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भी देख रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि जबकि अमेरिका एक प्रमुख शक्ति बना हुआ है, आर्थिक बदलावों, सैन्य चुनौतियों और कूटनीतिक पुनर्गठन के कारण इसका एकतरफा प्रभाव धीरे-धीरे कमजोर हो गया है, खासकर डोनाल्ड ट्रम्प के कारण उभरती नई व्यवस्था।
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