Final इल्तुतमिश का ऋणानुबंध से मोक्ष
इल्तुतमिश
का
ऋणानुबंध से मोक्ष
प्रस्तावना
मनुष्य का अपने अस्तित्व को लेकर प्रश्न सदियों से रहा है: "हमारा जन्म क्यों हुआ? जीवन का उद्देश्य क्या है? यह ब्रह्मांड कैसे बना और किन नियमों से संचालित होता है? क्या ईश्वर है? मृत्यु क्यों आती है और उसके बाद क्या होता है? क्या आत्मा है? जीवन में इतने दुख क्यों हैं और उनसे मुक्ति का क्या उपाय है?" ऐसे अनगिनत प्रश्न मानव मन को हमेशा आंदोलित करते रहे हैं।
इन्हीं सवालों के जवाब खोजने के लिए दर्शनशास्त्र का विकास हुआ, धर्मों का जन्म हुआ और ध्यान व योग अभ्यास की विभिन्न विधियों की खोज की गई। भारतवर्ष विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है और इसलिए यहाँ उपलब्ध सनातन धार्मिक ग्रंथ सबसे पुराने माने जाते हैं।
विश्व के वर्तमान धर्मों में से हिंदू सनातन, बौद्ध, जैन और सिख धर्म का उद्गम भारत में हुआ, जबकि यहूदी, ईसाई और मुस्लिम धर्म का जन्म पश्चिम में हुआ।
भारत अपनी प्राचीन सभ्यता के कारण स्वयं को "विश्व गुरु" कहता आया है। आज के आधुनिक युग में भी भारत का लक्ष्य केवल व्यापारिक, औद्योगिक या सामरिक लीडर बनना नहीं है। हमारा प्राचीन काल से एकमात्र लक्ष्य विश्व गुरु बनना ही रहा है। यही हमारी सॉफ्ट पावर है।
हम मानवता के धर्म को मानते हैं। प्रकृति हमारे लिए पूजनीय है। हमारा मानना है कि हर कण-कण एक ही ऊर्जा से बना है, जिसे हम आत्मा कहते हैं। यह आत्मा अमर है, इसका न तो जन्म होता है और न ही मृत्यु। यह परमात्मा, भगवान या ईश्वर का अंश है, वही ऊर्जा जिसने प्रकृति को जन्म दिया, जिसे हम शब्द ब्रह्म कहते हैं और जिसका नाम प्रणव ॐ है।
जो इस सिद्धांत को मानते हैं कि आत्मा अनादि है, वे सनातन धर्म के अनुयायी हैं। धर्म और रिलीजन (मजहब) एक नहीं हैं। धर्म प्रकृति को केंद्र मानकर जीवन जीने पर जोर देता है। यह पुनर्जन्म, कर्मफल और मोक्ष की विधियों का मार्गदर्शन करता है।
इसके विपरीत, रिलीजन मनुष्य को केंद्र मानकर प्रकृति पर विजय पाने और उसका दोहन करने पर आधारित है। यह सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के सिद्धांत हैं, जिसमें केवल एक ही जन्म की अवधारणा होती है।
सनातन धर्म मानता है कि ईश्वरीय (दैवीय) और आसुरी (दैत्य) प्रवृत्तियाँ ईश्वर ने हमारे भीतर एक साथ उत्पन्न की हैं। प्रकृति की रचना सत्व, रजस और तमस तत्वों से हुई है।
माया अहंकार को जन्म देती है, जिससे मनुष्य अपने मूल केंद्र से स्वयं को एक पृथक सत्ता मानने लगता है। यही विचार जीवन में दुख पैदा करने का मुख्य कारण है। यदि हम अपने मूल केंद्र से स्वयं को पृथक न मानें तो मोक्ष प्राप्त होता है और जीवन में आनंद का आविर्भाव होता है।
इन्हीं विचारों को प्रतिपादित करने के लिए हमारे यहाँ षट् दर्शनों का जन्म हुआ, जिनमें वेदों की अलग-अलग ढंग से व्याख्या की गई। उपनिषद इन्हीं व्याख्याओं की निष्पत्तियाँ हैं। पुराणों में इन्हें कथाओं, आख्यानों तथा अवतारों के आचरण के माध्यम से समझाया गया। सांख्य तथा भक्ति मार्गों के माध्यम से उस मूल केंद्र से पुनः मिलन के लिए सांख्य योग, भक्ति योग तथा कर्म योग की विधियाँ विकसित हुईं। दक्षिण मार्गी तथा वाम मार्गी साधनाओं के माध्यम से शरीर, प्राण, मन, बुद्धि तथा अहंकार को परिवर्तित व परिवर्धित करने के साधन विकसित किए गए। धर्म में विज्ञान, गणित, सौर विज्ञान तथा ललित कलाओं का विकास भी हुआ।
पृथ्वी पर समय की अवधारणा के विकास के साथ ही हमारे ऋषि, मुनि, आचार्यों ने खगोलशास्त्र, आयुर्वेद, गणित और ज्यामिति के सिद्धांत विकसित किए। ग्रहों, नक्षत्रों की दूरी, उनकी परिधि, उनके परिभ्रमण की गति आदि के सिद्धांत प्रतिपादित किए गए। ब्रह्मांड, अंतरिक्ष, भूगोल, ज्योतिष, पंचांग आदि का निर्माण किया गया।
काल गणना के लिए जीरो डिग्री देशांतर तथा साढ़े तेईस डिग्री कर्क रेखा को आधार मानकर गणना के लिए उज्जैन के महाकाल वन को केंद्र माना गया।
इसी कारण काल यानी समय के अधिष्ठाता के मंदिर का निर्माण उस स्थान पर किया गया और इसे महाकाल का नाम दिया गया। यह उस समय की बात है जब अंग्रेजों ने ग्रीनविच रेखा का निर्धारण नहीं किया था।
इस प्रकार, उज्जैन अपनी भू-स्थिति के कारण काल गणना के लिए एक केंद्र बिंदु बना। सनातन धर्म में समय को चार युगों – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग – में बांटा गया है। हर युग में चौरासी कल्प होते हैं, उसी आधार पर उज्जैन में चौरासी महादेव के मंदिर बनाए गए। चूंकि उज्जैन वाम मार्ग के कापालिक संप्रदाय का केंद्र था, इसलिए महाकाल मंदिर के गर्भगृह का द्वार दक्षिण मुखी बनाया गया।
उज्जैन शिव का घर होने के कारण, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी, भैरव, गणिकाएं, मातृकाएं आदि शिव परिवार के मंदिर नक्षत्रों की गति एवं स्थिति के अनुसार बनाए गए। पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने के लिए सप्त सागर बनाए गए। शहर का लेआउट इसी वास्तुशास्त्र के आधार पर निर्मित किया गया।
उज्जैन केंद्र बिंदु पर स्थित होने के कारण यह माना गया कि यह शहर अनादि है, जो किसी भी काल या समय में नष्ट नहीं होता। इसीलिए उज्जैन का एक नाम अनादि भी रखा गया।
हमें अपने केंद्र से पुनः जुड़ने के लिए ध्यान साधना करने की आवश्यकता होती है। हमारी चेतना हमारे मन-मस्तिष्क के द्वारा ब्रह्मांड की ऊर्जा से मिलती है। हमारा मस्तिष्क एक इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक वेव्स का रिसीवर तथा ट्रांसमीटर है।
तो, जब हम पद्मासन में रीढ़ को सीधा कर बैठते हैं, तो हमारी ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होती है और हम विश्व चेतना से जुड़ जाते हैं।
यदि हम यह साधना केंद्र पर करते हैं, तो स्थिरता के कारण जल्दी परिणाम आते हैं। इसी जुड़ाव से हमें मोक्ष प्राप्त होता है। इसी कारण कहा गया है कि जब हम गंगा में स्नान करते हैं तो पाप मुक्त होते हैं, लेकिन जब हम उज्जैन में साधना करते हैं तो मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
आज भी यदि आप थोड़ी संवेदना के साथ उज्जैन में प्रवेश करते हैं, तो आपके मन में एक अपूर्व शांति का अनुभव होता है। यह अवधारणा मेरी स्वयं की अनुभूति पर आधारित है। मुझे शासकीय पदस्थापना के दौरान वर्ष 2016 के सिंहस्थ मेले का आयोजन करवाने के लिए संभागीय आयुक्त के पद पर पदस्थ किया गया था। मैंने इस ऊर्जा का अनुभव किया और इसी का परिणाम अब तक के सफलतम सिंहस्थ आयोजन को जनमानस ने अनुभव किया।
इस किताब को लिखने का मन तभी से था। लेकिन मैंने एक दिन यूट्यूब पर मुंबई की एक डॉक्टर का इंटरव्यू देखा, जिसमें उन्हें पास्ट लाइफ थेरेपी के दौरान एक युवक ने अपने आप को पिछले जन्म में इल्तुतमिश होना बताया, जो इस जन्म में शिव भक्त है। तो उसे आधार बनाकर यह कहानी कहने का प्रयास है।
इसमें ऐतिहासिक तथ्य, वर्तमान संदर्भ में प्रस्तुत किए गए हैं। इसमें पुराणों के आख्यानों, विभिन्न लोगों के अनुभवों, लोक कथाओं, जनमानस की मान्यताओं तथा इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री को सम्मिलित कर एक कथा कही गई है। प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं सवालों को ढूंढने की कोशिश है।
अपनी रिसर्च तथा इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी, अखबारों में छपी सामग्री को आधार बनाकर, इस कहानी की मांग के अनुरूप सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध जानकारियों का यथास्थान उपयोग कर पुस्तक का ताना-बाना बुना गया है।
यदि आप अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर इस पुस्तक को पढ़कर पुनः उज्जैन जाएँगे तो आप सत्यता का स्वयं अनुभव कर सकेंगे। यह तर्क या ऐतिहासिक तथ्यों की बात नहीं है, यह तो अनुभूति का विषय है, जो केवल आपके मन में घटित हो सकता है। प्रमाण आप स्वयं होंगे। तो आइए, इस आंतरिक यात्रा की शुरुआत अपने जीवन में करें तथा अपनी मानसिक व्याधियों से मोक्ष प्राप्त करें।
डॉ. रवीन्द्र पस्तोर
पहला प्यार
मेरा नाम अस्मिता है और में दिल्ली से हूँ। मैं अपनी कहानी तुम्हें बताने बाली हूँ। पता नहीं क्यों। पर बताना तो है किसी को। तो तुम्हीं सही। बताती हूँ शुरू से। मैंने समीर को डेटिंग करना जब शुरू किया तब हम लोग आठवीं क्लास में थे। समीर और मैं एक साथ स्कूल जाते, क्लास में साथ बैठते, साथ लंच करते तथा साथ घर लौटते। यह दिल्ली दिल वालों की है।
अतीत को पीछे छोड़ कर वर्तमान में जीने वालों की। हमारी क्लास में जितने ज्यादा लोग थे, हम दोनों के दोस्त उतने कम थे। हम लोगों के बचपन का साथ कब प्यार में बदल गया, बताना कठिन है। जब पहली बार आपके दिल को कोई अच्छा लगा होगा, वो पहली बार का एहसास निश्चित रूप से एक असामान्य अनुभव रहा होगा।
यदि पहले बार के प्यार के साथ दिल का दर्द भी जुड़ा हुआ हो, तो वो जीवन भर के लिए हमारे साथ रह जाता है। एक नए स्कूल में जाने की भावना और उन दिनों में किया जाने वाल संघर्ष, याद है? अपने डेस्कमेट के साथ एक इमोशनल कनेक्शन होना। आपकी किशोरावस्था में आपका कोई सबसे अच्छा दोस्त या कोई खास हो सकता है जिसने आपके जीवन को अजीबोगरीब तरीके से छुआ हो।
हमारे जीवन में किशोरावस्था का पहला प्यार एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। इससे हमारे अंदर तीव्र भावनाओं और हमारे व्यक्तित्वत का विकास हुआ।
हालांकि यह एक चुनौतीपूर्ण अनुभव था। लेकिन यह हम किशोरों और हमारे माता-पिता के लिए एक मूल्यवान सीखने का अवसर भी था। यह अवधि भावनात्मक उतार-चढ़ाव, पहचान निर्माण और रोमांटिक रिश्तों की जटिलताओं से निपटने की योग्यता के विकास के लिए आवशयक कदम था।
हर प्रेम कहानी की शुरुआत अक्सर एक अनपेक्षित पल से होती है। जहाँ दो व्यक्ति पहली बार मिलते हैं और उनके बीच एक अनूठी ऊर्जा का संचार होता है। हमारे साथ यह सहज हुआ था। शायद इसकी शुरुआत एक दिन क्लास रूम में हुई थी।
जब मैं एक दिन अपनी कक्षा में दाखिल हुई, वहाँ एक लड़का समीर था जो हर किसी के साथ दोस्ताना व्यवहार करता था। जिसने मुझे बात करने के लिए भी मजबूर किया, मैं यह बहुत उत्साह के साथ कह रही हूँ, क्योंकि मैं एक अंतर्मुखी लड़की थी, ठीक है अब, मुझे धीरे-धीरे लगने लगा था कि, उसे मुझ पर क्रश है।
क्योंकि समीर मुझे घूरता था। वह मेरे सामने दिखावा करता था..आदि.. वैसे, मैंने कक्षा के बाहर कभी उससे दोस्ती नहीं की, साथ ही मैंने ऐसा व्यवहार किया जैसे मैं उसे जानती ही नहीं!! और वह मेरी कक्षा में था, ठीक है अब, समय बीतता गया, मैं उसके प्यार में पड़ने लगी, मुझे उसे देखकर एक अलग एहसास होने लगा। मुझे धीरे-धीरे पता चला कि मैं उसके पास खुश हूँ। और मैं उसे पसंद करने लगी हूँ।
उन भावनाओं से निपटना वाकई अजीब था। मुझे पता था कि मैं इसे किसी और के सामने स्वीकार नहीं कर सकती। गंभीरता से मैं किसी से प्यार करना अमानवीय मानती थी। यही मेरे परिवार ने मुझे सिखाया था।
अस्मिता को उम्मीद थी कि वह अगले ही साल समीर आएगा। लेकिन मुझे पता चला कि समीर ने अपना स्कूल बदल लिया था। लेकिन जो बात मुझे सबसे ज़्यादा परेशान करती, वह यह कि छुट्टियों के दौरान मेरे अंदर क्रश की भावना बढ़ती जा रही थी, और फटने ही वाली थी... मैं उसे या किसी और को यह बताने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। समीर हमेशा कहता था कि वह स्कूल नहीं बदलेगा। लेकिन वह बदल गया!! और मैं उसके साथ अपने दर्द और डर को कबूल करने की योजना बना रही थी।
लेकिन असल में जो हुआ वह यह था कि उसका दोस्त मेरी एक सहपाठी से प्यार करने लगा। और उसने यह बात कबूल कर ली, और उन्होंने अपना रिश्ता शुरू कर दिया।
जब उसका दोस्त अपने प्यार से मिलने आता तो वह मेरा क्रश समीर उसके साथ आता। और आप समझ सकते हैं कि अपने क्रश को बार-बार देखने से आपको उसे भूलने का मौका नहीं मिलेगा!!
अब, इस घटना के लगभग सात महीने बाद मुझे गलती से समीर से बात करने का मौका मिला। और अस्मिता समझ गई, वह किसी ओर से प्रतिबद्ध है और उससे मिलने जा रहा है। हाँ, मुझे ऐसा लगा जैसे मैं नरक की ओर जा रही हूँ। यह सुनने के बाद मैंने बस उसे एक मुस्कान दी। मैं समीर से अपने प्यार का इज़हार करने जा रही थी। इससे वहाँ भूचाल आ जाता!!
अब, मैने पढ़ाई की। दसवीं बोर्ड में अच्छे अंकों के साथ पास हुई और दूसरे स्कूल में चली गई। मुझे लगा कि यही एकमात्र तरीका है जिससे मैं उसे भूल सकती हूँ। मुझे लगता है, मैं उससे इतना प्यार करती थी कि, मैं अपने दिन के हर मिनट समीर के बारे में सोचती थी।
वास्तव में मैं समीर की यादों से पागल हो गई थी... मैंने अपने नए दोस्तों को अपने असफल क्रश के बारे में बताया। जब मैं बारहवीं में थी। तो मेरे दोस्त ने एक नया इंस्टा अकाउंट बनाया था। तो मेरे उस दोस्त ने उसे खोजा, और समीर के वहां ब्लॉग थे...!!
वास्तव में जिस दिन उसने मुझे उसके ब्लॉग के बारे में बताया, वह मेरे लिए एक यादगार दिन था। क्योंकि, उसका ब्लॉग समीर के ब्रेकअप के बारे में था।
समीर ने अपने ब्लॉग में लिखा था:
"ठीक है, गहरी साँस लें। आप सभी के साथ जीवन का एक छोटा सा अपडेट साझा करना चाहता था। 😮💨"
"न्यू चेपटर ... मूविंग ऑन । 🚶♀️💔"
"पर्दे के पीछे चल रही किसी निजी बात के बारे में बात करने का समय आ गया है। 🥺"
"चेंज रैखिक नहीं है, और कभी-कभी इसका मतलब है जाने देना। 🌱"
अस्मिता "क्या हुआ" 💔
"रमोला और मैंने अलग-अलग रास्ते पर जाने का फैसला किया है।"
"एक जोड़े के रूप में हमारी यात्रा समाप्त हो गई है।"
"बहुत विचार-विमर्श के बाद, रमोला और मैं अब साथ नहीं हैं।"
"हमने एक जोड़े के रूप में अपने जीवन के इस अध्याय को बंद करने का फैसला किया है।"
"यह कोई आसान निर्णय नहीं था, और मेरा दिल निश्चित रूप से इस समय भारी है। 😔"
"यह कठिन है, झूठ नहीं बोलूँगा। बहुत सारी भावनाएँ आ रही हैं। 🌧️"
"ठीक होना एक प्रक्रिया है। 🙏"
"निश्चित रूप से दुख है, लेकिन आगे क्या होने वाला है, इसके बारे में शांति की भावना भी है। ✨"
"भले ही यह दर्द देता है, लेकिन मैं वह ताकत पा रहा हूँ जिसके बारे में मुझे पता नहीं था। 💪"
"मैं अभी आत्म-प्रेम और विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूँ।"
"इस नई शुरुआत के लिए उत्साहित और थोड़ा नर्वस!। ✨"
"इस समय का उपयोग खुद को और अपने जुनून को फिर से खोजने के लिए कर रहा हूँ। 🧘♀️🎨"
"सीखे गए सबक और बनाई गई यादों के लिए आभारी हूँ। कोई पछतावा नहीं, बस। 💖"
"आगे और ऊपर! 🚀"
"इस समय के दौरान आपकी समझदारी और निजता की सराहना करता हूँ। अटकलों की कोई ज़रूरत नहीं है, बस अच्छे वाइब्स दें। 😊"
"मुश्किल समय से गुज़र रहे सभी लोगों को प्यार भेज रहा हूँ। आप अकेले नहीं हैं।"
"बस इसे खुलकर साझा करना चाहता था। आपका समर्थन दुनिया के लिए मायने रखता है। 🌍❤️"
"अगर आप भी संघर्ष कर रहे हैं तो डी एम खुला है, लेकिन टिप्पणियों में इसे सकारात्मक रखें। 💌"
"आपके पूछने के लिए धन्यवाद, लेकिन मैं अभी विवरण निजी रख रहा हूँ 🙏"
मुझे पता है कि इस स्थिति से गुजरना कठिन होगा, और किसी के दुख में खुशी ढूंढना बुरा है। लेकिन, मुझे लगा कि मैं सबसे ज्यादा खुश हूँ। मुझे अपने दोस्त समीर को गले लगाने और चूमने का मन हुआ।
अब आगे बढ़ते हैं। एक दिन मैंने इंस्टा के ज़रिए समीर को मैसेज करने के बारे में सोचा। मेरा पहला मैसेज बहुत लंबा था। मुझे समझ में आ गया। मुझे वास्तव में नहीं पता कि बातचीत कैसे शुरू या खत्म करनी है। गंभीरता से यह एक बहुत बड़ा संदेश था। ठीक है, लेकिन उस संदेश में मेरी समीर के प्रति भावनाएँ कभी नहीं थीं। यह उसके ब्लॉग के बारे में था। अब, उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं गलत व्यक्ति को मैसेज कर रही हूँ?
मैं ऐसी थी, ओह भगवान!! क्या यह है??
लेकिन मैंने उससे पूछा, उसने किस स्कूल में पढ़ाई की है?
उसने मुझे मेरे पुराने स्कूल का नाम बताया।
मैंने उससे कहा, तुम ही हो जिससे मैं बात करना चाहती थी, और मैं सही व्यक्ति के साथ हूँ!!
वह मेरा नाम भी भूल गया, लेकिन मेरी हालत ऐसी थी, मुझे उसके साथ का हर पल याद था।
वह रात मेरी नींद हराम करने वाली रातों में से एक थी!!
उसके बाद, मैंने उसे याद दिलाया। मुझे समझ में आया कि अगर मैं अब उससे अपने प्यार का इज़हार करूँगी, तो वह मुझे दूर धकेल देगा।
तो फिर मैंने इंतज़ार किया।
मुझे उससे बात करना वाकई बहुत पसंद था।
और हम हर रात बात करते थे।
वह इतनी जल्दी जवाब नहीं देता था। लेकिन मैं उसके जवाब का इंतज़ार करती थी। शायद आधे घंटे से ज़्यादा।
वह मेरे संदेशों से तंग आने लगा। वह मुझसे सवाल पूछने लगा कि मैं उसके ब्लॉग कहाँ से पढ़ती हूँ। क्योंकि मेरे पास इंस्टा नहीं है और उसने कभी भी अपने ब्लॉग इतने सार्वजनिक रूप से पोस्ट नहीं किए कि मैं उन तक पहुँच सकूँ।
अब, मेरे पास सवालों का ढेर लग गया। मुझे उसे यह बताने के लिए मजबूर होना पड़ा, कि मैं उससे कभी प्यार करती थी। लेकिन मैंने यह नहीं कहा, कि मेरे मन में उसके लिए अब भी वही भावनाएँ हैं।
हम अक्सर झगड़ते, और फिर कुछ दिनों की चुप्पी के बाद समस्या हल हो जाती और एक दिन यह हुआ:
समीर - “मुझे सच बताओ!! तुम अब भी मुझसे प्यार करती हो..”
मैं- “मैं तुमसे यह क्यों कहूँ?”
दरअसल मैंने सच कहा होगा, लेकिन मैं अपने माता-पिता के बारे में सोच रही थी। अगर मैं कोई प्रतिबद्धता शुरू करती हूँ जो हमारे रिश्ते को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी। तो उन्होंने मुझे चेतावनी दी है कि मैं कोई प्रतिबद्धता या अन्य चीजें शुरू न करूँ। उन्हें यह भी पसंद नहीं है कि मैं अपने चचेरे भाई-बहनों के लड़कों से बात करूँ।
मैं- “मैं अपनी किशोरावस्था से बाहर निकलने का इंतज़ार कर रही हूँ!”
समीर- “तो।”
मैं- “लेकिन अभी भी कई साल बाकी हैं।”
समीर- “अपनी किशोरावस्था से बाहर निकलो।”
समीर- “जो चाहो करो।”
मैं- “ओहो!!”
समीर- “लोगों से प्यार करो।”
मैं- “मुझे कोई समस्या नहीं है।”
समीर - “मैं इसमें एक बार असफल हो गया, क्या हमें फिर शुरू करना चाहिए?”
मैं- “मुझे नहीं पता।”
हमारी बातचीत जारी रही…
अगले दिन।
मैं- मैंने कुछ बात की।
कुछ समय बाद।
समीर- “जाओ, चले जाओ!!”
मैं- “क्या??”
कुछ समय बाद,
मैं- “यार!!”
समीर- “क्या? जाओ, पढ़ाई करो!!”
मैं- “क्या हुआ??”
कुछ समय बाद।
मैं- “क्या हम प्रतिबद्धता में हो सकते हैं।”
समीर- “प्रतिबद्धता???क्या?”
मैं- “तुमने मुझसे पूछा था कि क्या मैं कल रिश्ता शुरू करना चाहती हूँ??”
वह- “कब? कल??”
समीर- “तुमने मुझसे पूछा था।”
समीर- “मुझे याद नहीं।”
मैं- “क्या??”
वह दिन मेरे जीवन का सबसे बुरा दिन था, इतने सालों की उम्मीद और प्यार जैसी चीज़ों के बाद, मुझे समझ में आया। उसे मेरे प्यार की कोई कीमत नहीं है। उसने वास्तव में इसे हल्के में लिया।
समीर कहता था, वह प्यार जैसी चीज़ों के लायक नहीं है।
वह कहता था कि जब मैं कहती हूँ कि मैं उससे प्यार करती हूँ, तो उसे ज़ोर से हँसने का मन करता है..!!
मुझे उसका चेहरा भी याद नहीं है। मुझे सिर्फ़ उसका चरित्र याद है। जो तब हुआ करता था। मैं उससे सिर्फ़ उसके चरित्र के लिए प्यार करती थी। सिर्फ़ उसके चरित्र के लिए तीन साल तक…
लेकिन उसने कहा, सब कुछ मेरी धारणाएँ थीं। और मैं बहुत सी चीज़ों का अनुमान लगा लेती हूँ।
समीर कहता, मुझ पर उसका क्रश, जिसका मैंने पहले भी ज़िक्र किया था, वह मेरी धारणा थी l!!
उसके बाद, मेरे माता-पिता ने हमारी चैट देखी। वे मुझ पर चिल्लाए, उनका भरोसा खत्म हो गया। मेरी नरक जैसी जिंदगी शुरू हो गई। और अब... मैं दुख में डूबी हुई हूँ... मेरे पास सपने नहीं हैं, उदास हूँ... मैं मरना चाहती हूँ। मैं क्यों जीऊँ, मुझे लगता है कि मेरे माता-पिता भी मेरी वर्तमान मानसिक स्थिति के बारे में नहीं जानना चाहते, आदि..
लेकिन मैं एक बात कहना चाहती हूँ। समीर के लिए मेरा प्यार यहीं खत्म नहीं होता। यह एक नदी की तरह बहता है जो कभी नहीं सूखेगी...
आपको लग सकता है कि मैं समीर से प्यार करने के लिए पागल हूँ। उसके अस्वीकार के बाद भी, आदि...
लेकिन मुझे नहीं पता। यह मेरे खून में है कि, अगर मैं किसी से प्यार करना शुरू भी कर दूँ, चाहे वह दोस्त हो या क्रश, मैं उससे बहुत प्यार करूँगी!! और ज़्यादातर समय मैं इसे व्यक्त नहीं करूँगी!!
अब, उसे लगता है कि मैं उससे प्यार नहीं करती, इसे ऐसे ही रहने दो...
समीर ने फिर से मेरे स्कूल में एडमिशन ले लिया था।
‘‘आसमानी ड्रैस में बड़ी सुंदर लग रही हो, अस्मिता, बस एक काम करो जुल्फों को थोड़ा ढीला कर लो।’’ अस्मिता क्लास की अंतिम बैंच पर खाली बैठी नोट बुक में कुछ लिख रही थी कि समीर ने यह कह कर उस की तंद्रा तोड़ी।
यह कह कर वह जल्दी ही अपनी बैंच पर जा कर बैठ गया और पीछे मुड़ कर मुसकराने लगा। किशोर हृदय में प्रेम का पुष्प पल्लवित होने लगा और दिल की बगिया में कलियां महकने लगीं। भीतर से प्रणयसोता बहता चला गया। उस ने आंखों में वह सब कुछ कह दिया था जो अब तक पढ़ी किताबें नही कह पाईं थी।
एक युवा लड़की, जो गणित में बहुत अच्छी है। एक नए लड़के से मिलती है जो उसकी कक्षा में शामिल है। वह उसकी आँखों से प्यार कर बैठता है। हमारी कहानी ऐसी ही थी। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती में दिल के क़रीब एहसासों ने जगह बना ली।
हम दोनों एक ही कॉलोनी में पड़ोसी थे। हमारे परिवारों में आपस में दोस्ती थी। तो किसी को समीर के साथ होने से परेशानी नहीं थी। हालांकि समीर पढ़ने में औसत दर्जे का था।
जब कि मैं हमेशा अपनी क्लास में अब्बल आने वाली थी। मैं समीर को उसकी पढ़ाई में मदद भी करती। तो इस बहाने मुझे समीर के साथ वक्त बिताने का मौका मिल जाता। और हम दोनों का होमवर्क भी हो जाता था।
अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई मेन परीक्षा की तैयारी के लिए, सबसे पहले हमें पाठ्यक्रम और परीक्षा पैटर्न को समझना था। फिर, एक अध्ययन योजना बनाना थी। और नियमित रूप से अभ्यास करने का निर्णय हम दोनों ने लिया। हमें विशेष रूप से पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों और मॉक टेस्ट को हल करना था।
समय प्रबंधन और स्वस्थ जीवनशैली पर भी ध्यान देंना। और यदि आवश्यक हो तो शिक्षकों और सलाहकारों से मार्गदर्शन लेंने की सलाह मेरे पिता जी ने दी। हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे और एक-दूसरे के साथ बहुत अच्छे दोस्त थे।
हम दोनों का इंजीनिरिंग का इंट्रेंस एक्जाम बहुत अच्छा गया। रिजल्ट आया दो दोनों के स्कोर भी अच्छे थे। हम दोनों को आई आई टी दिल्ली में एक ही ब्रांच में एडमिशन मिल गया। हम दोनों को एक ही क्लास अलॉट हुई।
अस्मिता- समय के साथ मैंने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जब हम दोनों ने आई आई टी दिल्ली में एडमिशन लिया और मैं समीर के साथ उसकी कार से जाने लगी। तब पहली बार समीर के साथ दिल्ली में पहली वयस्क रोमांटिक मुलाकात के लिए होटल गई। होटल के कमरे में प्रवेश करना एक ऐसा पल था जिसमें प्रत्याशा, अंतरंगता और शायद सांस्कृतिक बारीकियों का एक अनूठा मिश्रण दिमाग में उमड़ रहा था।
अस्मिता- मेरी होटल की यात्रा होटल की लॉबी में कदम रखने से बहुत पहले शुरू हो गई थी। दिल्ली में पहली रोमांटिक मुलाकात के लिए, उत्साह, घबराहट और सावधानीपूर्वक योजना बनाने के लिए मैने दिमाग के कई तलों पर योजना बनाई।
मेरे सामने एक ऐसी जगह चुनने की चुनौती थी जो गोपनीयता, आराम और शायद विलासिता के स्पर्श को संतुलित करती हो। दिल्ली में होटलों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है। पहले रोमांटिक अनुभव के लिए, मुझे ऐसी ही जगह चुनना थी।
जो अविवाहित जोड़ों की गोपनीयता और परेशानी मुक्त चेक-इन की ज़रूरतों को समझते हैं। इससे चिंता में काफ़ी कमी आ सकती है। ये किसी भी संभावित असुविधा या "नैतिक पुलिसिंग" को कम करते हैं। दिल्ली में कई प्लेटफ़ॉर्म और होटल अब खुद को "कपल-फ्रेंडली" के रूप में स्पष्ट रूप से पेश करते हैं।
अस्मिता- मैने पहली बार अनुभव किया कि होटल तक की यात्रा भी मानसिक तैयारी का हिस्सा थी। शांत बातचीत, साझा नज़रें, धीरे-धीरे हाथ मिलना, या अनकही अपेक्षाओं से भरा एक आरामदायक मौन।
बाहर दिल्ली का चहल-पहल भरा ट्रैफ़िक उस शांत, निजी दुनिया से बिल्कुल अलग जिसमें हम प्रवेश करने वाले थे। चेक-इन का समय थोड़ी घबराहट का क्षण था। एक जोड़े के रूप में पहली बार होटल में ठहरने के लिए।
अस्मिता- एक प्रतिष्ठित होटल ने इसे आसानी और सावधानी से संभाला। पहचान पत्र प्रस्तुत करना, फ्रंट डेस्क के साथ एक संक्षिप्त आदान-प्रदान, और फिर कुंजी कार्ड सौंपे जाने पर राहत, आखिरकार वास्तव में अकेले होने की अनुमति का संकेत था।
लिफ्ट ऊपर चढ़ती है, एक नई दुनिया में ले जाने की लिए। एक साझा मुस्कान, और फिर दरवाज़ा खुलते ही लॉक की क्लिक, मेरे निजी अभयारण्य को प्रकट करती है।
अस्मिता- कमरे में जो पहली चीज़ ध्यान में आई वह थी कमरे की गंध। साफ लिनेन की एक सूक्ष्म, सुखद सुगंध, शायद एक सौम्य रूम फ्रेशनर का संकेत, या एक अच्छी तरह से बनाए रखा स्थान की बेहोश, साफ गंध।
दूसरी अनुभूति थी मंद, गर्म प्रकाश। जो तुरंत रोमांटिक मूड सेट करने की लिए काफी था। एक नरम चमक उत्सर्जित करने वाले लैंप, एक बेडसाइड लैंप या छत की रोशनी, एक अंतरंग माहौल बनाते।
अगला हमारा केंद्र बिंदु था बिस्तर। एक बड़ा, आलीशान बिस्तर, जिस पर कुरकुरी, सफ़ेद चादरें और एक आकर्षक डुवेट था। तकिए मोटे और भरपूर, जो आराम का वादा करते। मुझे यह एक स्वर्ग की तरह दिखा। मैने महसूस किया जैसे एक नरम बादल हमें ढँकने के लिए इंतज़ार कर रहा था।
रोमांस के लिए यह स्थान अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया था। होटल का कमरा विशाल और अंतरंग लग रहा था। इसमें एक छोटा सा बैठने का क्षेत्र, एक डेस्क, लेकिन ध्यान बिस्तर और गोपनीयता की भावना पर ही रहा।
कमरे की बालकनी से दिल्ली के क्षितिज, शहर की जगमगाती रोशनी तथा यहाँ की एक शांत सड़क का दृश्य दिखाई रहा था। यह माहौल को रहस्य मय बना रहा था।
कमरे में एयर कंडीशनिंग की सूक्ष्म गुनगुनाहट भरी ध्वनि आ रही थी। शहर की दूर की दबी हुई आवाज़ें थी। लेकिन कमरे के भीतर, शांति और एकांत की गहरी भावना थी। यह हमारे फुसफुसाए शब्दों, नरम हँसी और खुद की सांसों की आवाज़ को भी सुन सकने लायक बना रही थी।
चादरों की ठंडी चिकनाई का स्पर्श, एक कंबल की नरम बनावट, कमरे का पता लगाते समय समीर के हाथों का स्पर्श। रोमांस के लिए अंतरंगता और जुड़ाव खुल रहा था।
अस्मिता- यही वह जगह थी जहाँ जादू होना था। और यह भव्य इशारों के बारे में कम और सूक्ष्म संबंधों के बारे में अधिक था। हम कमरे में घूम कर यह देखने की कोशिश कर रहे थे कि कही गुप्त कैमरे तो नहीं लगे है। बस में इसे महसूस करना चाह रही थी। "यह अभी के लिए हमारा था" का एक साझा क्षण।
हम लोग कम से कम सामान ले कर आये थे। कपड़ों का एक सेट, एक छोटा बैग। इस नए, निजी स्थान में एक साथ सांसारिक चीजें करने का कार्य आश्चर्यजनक रूप से अंतरंग था। हम दोनों में पहली बार की एक साझा अजीब शर्म थी। जो जल्दी से नहीं आराम से पिघल रही थी।
हमने टीवी पर हल्के संगीत का चैनल चला दिया था। जो किसी भी खामोशी को भर सकता था और मूड को बढ़ा सकता था। हम हल्की बातचीत, अपने दिन के बारे में याद दिलाना, अपने उत्साह के बारे में बात करना शुरू कर चुके थे।
अस्मिता- समीर के हाथ का पहला कोमल स्पर्श मैं अपने हाथ पर हाथ, पीठ पर रेखा खींचती हुई उँगली, और एक कोमल चुंबन में महसूस कर रही थी। हम एक-दूसरे के बगल में सोफे पर बैठे थे। बस एक-दूसरे के पास।
फिर समीर बिस्तर की ओर बढ़ना धीरे से शुरू करता है। जरूरी नहीं कि यह तत्काल अंतरंगता के लिए था, बल्कि निकटता के लिए। उसने धीरे-धीरे कपड़े उतारना शुरू किये। हम एक दूसरे की मदद कर रहे थे। यह बहुत ही व्यक्तिगत क्षण थे हमारे जीवन के और हमारे लिए यह बिलकुल अलग-अलग अहसास था। यह आपसी इच्छा, सहमति और भावनात्मक जुड़ाव के कारण अलग-अलग था।
अस्मिता- यह एक-दूसरे को जानने की आज़ादी थी। बिना किसी रुकावट के, घर या सार्वजनिक स्थानों की बाधाओं के बिना। त्वचा से त्वचा का स्पर्श, गर्माहट, साझा साँसें, आनंद की आवाज़ें जो आखिरकार बेकाबू हो रही थी। जुनून का चरमोत्कर्ष, उसके बाद नरम आभा।
अंतरंगता के बाद का आराम, साथ में लेटना, शरीर आराम से, शायद चादरों में उलझे हुए। मीठी-मीठी बातें करना, संतोष, खुशी या यहाँ तक कि विस्मय की भावनाओं को साझा करना।
देर रात का नाश्ता, बिस्तर पर नाश्ता रूम सर्विस को ऑर्डर दिया। हम लाड़-प्यार और अपनी निजी दुनिया में पूरी तरह डूबे हुए थे। अच्छी तरह से साफ़ बाथरूम में एक साथ नहाना, होटल के मुलायम तौलिये का उपयोग करना।
शारीरिक से परे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव का ऐसा अनुभव अदभुत था। होटल के कमरे में "पहली बार" अक्सर सिर्फ़ एक शारीरिक क्रिया से कहीं ज़्यादा था।
अस्मिता- स्वतंत्रता और गोपनीयता के कारण हम दोनों के लिए, होटल का कमरा सामाजिक जांच, पारिवारिक घरों या साझा रहने की जगहों से दूर एक दुर्लभ और अमूल्य शरण प्रदान कर रहा था। पूर्ण गोपनीयता की यह भावना भावनात्मक और शारीरिक स्वतंत्रता के गहरे स्तर की अनुमति दे रहा था।
यह एक ऐसा स्थान था जहाँ हम बिना किसी अन्य के निर्णय के वास्तव में खुद निर्णय कर सकते थे। यह विश्वास, भेद्यता और एक साझा स्मृति को ऐसे बढ़ावा दे रहा था जो हमारे रिश्ते की आधारशिला बन गई थी।
नया वातावरण, दिनचर्या से अस्थायी पलायन, उत्साह और रोमांच का तत्व जोड़ रहा था। इस अनुभव ने इस दिन को विशेष और यादगार बना दिया था ।
यह विशिष्ट होटल का कमरा, दिल्ली में यह विशेष रात, संभवतः एक पोषित स्मृति, उनकी रोमांटिक यात्रा में एक मील का पत्थर बन गई।
अस्मिता- कभी-कभी हम लोग आउटिंग के लिये भी जाने लगे। मैंने धीरे-धीरे यह जाना कि समीर को रात में अकेले सोने में दिक्कत होती। शुरू में मैंने नोटिश किया कि कभी-कभी समीर के पापा उसे कहीं एक दो दिन के लिये ले जाते। समीर की मम्मी से पूछने पर वह कोई सीधा उत्तर नहीं देती। मैं भी संकोच के मारे ज्यादा नहीं पूछ पाती थी।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से वयस्क प्रेम, एक परिपक्व, प्रतिबद्ध और आपसी सम्मान, विश्वास और साझा अनुभवों पर आधारित पूर्ण होता है। इसमें व्यक्तिगत मतभेदों को पहचानना और उनका मूल्यांकन करना, असहमति को विकास के अवसर के रूप में समझना और जिम्मेदार तरीके से कार्यों के लिए जवाबदेह होना शामिल है।
बचकाने प्यार के विपरीत, जिसे अधिकार जताने और दूसरों से "मेरे जैसा" बनने की इच्छा से चिह्नित किया जा सकता है, वयस्क प्रेम व्यक्तित्व और मतभेदों को गले लगाता है।
अस्मिता- वयस्क प्रेम, जिसे परिपक्व प्रेम के रूप में भी जाना जाता है, एक गहरे और स्थिर भावनात्मक संबंध को दर्शाता है, जिसमें सम्मान, विश्वास, प्रतिबद्धता और भावनात्मक शक्ति शामिल होती है। यह प्रेम का एक ऐसा रूप है जो चुनौतियों का सामना कर सकता है और समझ और स्वीकृति पर आधारित होता है।
समीर बोला "जानू जो तुम मेरे साथ फ्लर्ट करते रहते हो वह केवल फ्लर्ट ही है और कुछ नहीं।"
"नहीं समीर। तुम आज बहुत खूबसूरत लग रहे हो। तुम्हें इतनी रात को इतना खूबसूरत लगाने का कोई हक़ नहीं है।" मैने समीर के पास खिसकते हुए कहा।
"नहीं यार" समीर ने मुँह बनाते हुए आवाज को खींचते हुए कहा।
अंधेरी रात के काम सुबह तक अपराध बोध में बदल जाते है। समीर कुर्सी पर बैठते हुए बोला। हम लोग यमुना किनारे के एक होटल में अभी आये ही थे।
समाधान की खोज
अस्मिता- तो आप तक तो आप समझ गए होंगे कि हमारी कहानी क्या है? पर, आपका अन्दाज बिलकुल गलत है। वास्तव में यह मेरी कहानी है ही नहीं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे आप जान ही जायगे।
अस्मिता ने कहना शुरू किया- मेरे लिए एक सोलमेट को ढूँढना एक व्यक्तिगत यात्रा है। जिसमें मजबूत, स्वस्थ रिश्ते बनाना और नए कनेक्शन के लिए खुला होना शामिल है। जबकि कुछ लोग पहले से तय "सोलमेट" में विश्वास करते हैं। अन्य लोग किसी के साथ गहरे, स्थायी संबंध बनाने के लिए आवश्यक प्रयास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
आखिरकार, किसी ऐसे व्यक्ति को ढूँढना जिसके साथ आप गहरे, प्रामाणिक स्तर पर जुड़ते हैं और उसके साथ अपना जीवन साझा करते हैं, यही सोलमेट को परिभाषित करता है।
रात अस्मिता ने नोटिश किया की समीर ने सोने के पहले कमरे के सभी दरवाजे तथा खिड़कियाँ बंद कर दी। रात को नींद खुलने पर अस्मिता ने बाहर को खिड़की खोल दी। बाहर पूर्णमासी का चाँद चमक रहा था। ठण्डी हवा का झोंका आ कर मुँह से टकराया।
अस्मिता पलंग पर आकर सो गई। समीर गहरी नींद में था। कुछ समय बाद अस्मिता ने देखा समीर कुछ बड़बड़ा रहा है, तेजी से करबट बदल रहा है। अस्मिता डर गई, अस्मिता ने समीर को झकझोर कर उठाया। तो देखा वह पसीने से तरबतर हो गया।
अस्मिता ने उससे पूछा- "क्या हुआ?"
समीर ने बताया- "कोई मुझे पहाड़ से कूदने के लिये कहे तो मैं पहाड़ से कूद सकता हूँ। लेकिन यदि किसी कमरे का दरवाजा या कोई खिड़की खुली हो तो उस कमरे में सोने के लिए कोई मुझे मिलियन डालर दे तो भी सो नहीं सकता।
मुझे बचपन से अपने स्वप्न में भगवान शिव डमरू बजाते दीखते है। वह ताण्डव नृत्य करते है। मुझे रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्रोत सुनाई देता है:
“जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥”
एक साथ अनेकों डमरू बजाते है। शिव जी की डमरू इतनी तेज बजती है कि कानों के पर्दे फटने लगते है। तेज सर दर्द होने लगता है। इसी कारण में अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दे पता हूँ।"
मैंने पहले यह मन्त्र नहीं सुना था। समीर की हालत देख तथा मन्त्र सुन कर मुझे लगा की समीर झूठ नहीं बोल रहा। हम दोनों विज्ञान के छात्र है।
अस्मिता को याद आया जैसे उज्जैन में महाकाल श्रावण सोमवार सवारी यात्रा निकलती है। उज्जैन में भगवान महाकाल को राजाधिराज महाराज माना जाता है। श्रावण (सावन) और भाद्रपद (भादो) मास में, प्रत्येक सोमवार को भगवान महाकाल अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं। जिसे "महाकाल श्रावण सोमवार सवारी यात्रा" कहा जाता है।
यह यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि उज्जैन की संस्कृति, आस्था और गौरव का प्रतीक है। श्रावण मास की शुरुआत के साथ ही प्रति सोमवार को महाकाल की सवारी निकलती है।
श्रावण के चार और भादो के दो सोमवार को ये सवारियां निकलती हैं। अंतिम सवारी को "शाही सवारी" कहा जाता है, जो सबसे भव्य और विशाल होती है।
भगवान महाकाल हर सवारी में अलग-अलग रूपों में पालकी (झाँकी) में विराजमान होकर नगर भ्रमण करते हैं। पालकी में चंद्रमौलेश्वर, गरूड़ रथ पर मनमहेश, हाथी पर शिव तांडव, उमामहेश, सप्तधान्य, घटाटोप, आदि अनेक रूपों में बाबा दर्शन देते हैं। अंतिम शाही सवारी में बाबा महाकाल अपने सभी दस स्वरूपों में एक साथ निकलकर भक्तों को दर्शन देते हैं।
सवारी महाकाल मंदिर से शुरू होती है। यह रामानुज कोट, मोढ की धर्मशाला, कार्तिक चौक, खाती समाज का मंदिर, ढाबा रोड, टंकी चौराहा, छत्री चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार, गुदरी चौराहा होते हुए शिप्रा नदी के तट पर स्थित रामघाट पर पहुंचती है। रामघाट पर भगवान का जलाभिषेक और पूजन होता है, जिसके बाद सवारी वापस मंदिर लौटती है। पूरे मार्ग को पवित्र किया जाता है और भक्तों के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है।
सवारी के दौरान जनसैलाब में हजारों-लाखों की संख्या में भक्त बाबा के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़ते हैं।
डमरू दल, बैंड-बाजे, भजन मंडलियां, और विभिन्न सांस्कृतिक झांकियां सवारी के आगे चलती हैं, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय और भव्य हो जाता है। स्थानीय भजन मंडली के सदस्यों द्वारा एक साथ हजारों डमरू बजाए जाते हैं, जिससे महाकाल लोक गूंज उठता है। राज्य पुलिस का अश्वारोही बैंड बाबा की अगवानी करता है। सवारी के दिन उज्जैन में एक उत्सव का माहौल होता है।
स्कंदपुराण के अवंति खंड में उज्जैन नगरी और भगवान महाकालेश्वर के महत्व का विस्तार से वर्णन है। यह माना जाता है कि भगवान महाकालेश्वर उज्जैन के राजा हैं और श्रावण मास में वे अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण करते हैं। इस यात्रा में हजारों लोग भाग लेते है तथा एक साथ हजारों डमरू बजते है।
अस्मिता को ऐसी बातों पर यकींन नहीं था लेकिन समीर उसके सामने था। अस्मिता को धीरे-धीरे डर लगने लगा। बार-बार आने वाले सपने वे सपने होते हैं जो बार-बार दोहराए जाते हैं। अक्सर समान थीम, परिदृश्य या भावनाओं के साथ। वे सांसारिक या गैर-खतरनाक से लेकर बेहद परेशान करने वाले बुरे सपने तक हो सकते हैं जो किसी व्यक्ति को परेशान करते हैं।
बार-बार आने वाले सपने। विशेष रूप से बुरे सपने। अक्सर भावनात्मक रूप से आवेशित होते हैं। जिससे जागने पर चिंता, भय, निराशा, उदासी या असहायता की भावनाएँ पैदा होती हैं। वे लगातार क्यों आ रहे हैं और समीर को क्यों सता रहे हैं? समीर ने उठ कर खिड़की बंद कर दी।
अस्मिता ने इस विषय पर नेट से जानकारी देखना शुरू की। मनोवैज्ञानिकों और सपनों के शोधकर्ताओं के बीच आम सहमति यह है कि आवर्ती सपने, विशेष रूप से वे जो नकारात्मक या परेशान करने वाले हैं, अवचेतन मन का एक तरीका है जो सपने देखने वाले के सचेत ध्यान में एक अनसुलझे मुद्दे, संघर्ष या भावना को लाने की कोशिश करते है।
वे किसी व्यक्ति को परेशान करते हैं क्योंकि अंतर्निहित समस्या अनसुलझी रहती है। और मन नींद के दौरान भी उस पर काम करना जारी रखता है।
सबसे आम कारण यह प्रमुख सिद्धांत है। आपका दिमाग सपनों का उपयोग दैनिक अनुभवों, भावनाओं और समस्याओं को प्रोसैसेड करने के तरीके के रूप में करता है। यदि आपके जागने वाले जीवन में कोई महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे आपने पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है। उसका सामना नहीं किया है या हल नहीं किया है। तो आपका अवचेतन मन बार-बार आवर्ती सपनों के माध्यम से इसे प्रतीकात्मक या शाब्दिक रूप में आपके सामने प्रस्तुत करेगा।
अस्मिता- शोध से पता चलता है कि अधूरी बुनियादी मनोवैज्ञानिक ज़रूरतों और नकारात्मक विषयों वाले बार-बार आने वाले सपनों के बीच एक मजबूत संबंध है। इन ज़रूरतों में शामिल हैं स्वायत्तता, अपने जीवन और विकल्पों पर नियंत्रण महसूस करने की ज़रूरत। क्षमता, अपने कार्यों में प्रभावी और सक्षम महसूस करने की ज़रूरत। संबंध, दूसरों से जुड़ाव महसूस करने और उनकी देखभाल करने और उनकी देखभाल करवाने की ज़रूरत।
अगर ये बुनियादी ज़रूरतें जागने वाले जीवन में पूरी नहीं होती हैं, तो कुंठा या संकट बार-बार आने वाले सपनों जैसे, फँस जाना, असफल होना, अकेला होना के रूप में प्रकट हो सकता है। मस्तिष्क लगातार दर्दनाक स्मृति को प्रोसैसेड करने और एकीकृत करने का प्रयास कर रहा है, जिसके कारण सपनों में इसका बार-बार प्रकट होना हो सकता है।
उच्च स्तर की चिंता या अवसाद का अनुभव करने वाले लोगों को बार-बार सपने आने की अधिक संभावना होती है, जो अक्सर उनकी भावनात्मक स्थिति को दर्शाते हैं। चिंता के सपनों में पीछा किए जाने, देर से आने या भारी बाधाओं का सामना करने जैसे विषय शामिल हो सकते हैं।
अवसाद के सपनों में नुकसान, परित्याग, निराशा या फंस जाने जैसे विषय शामिल हो सकते हैं। सपने कभी-कभी दुख या संकट की भावनाओं को तीव्र कर सकते हैं।
अस्मिता- कभी-कभी, एक आवर्ती सपना किसी मौजूदा प्रत्यक्ष समस्या के बारे में नहीं होता है, बल्कि एक पुराने, अनसुलझे भावनात्मक घाव या स्मृति के बारे में होता है। यह बचपन, किसी पिछले रिश्ते या किसी महत्वपूर्ण घटना से हो सकता है जिसे कभी पूरी तरह से संसाधित नहीं किया गया। अवचेतन मन द्वारा उपचार के लिए इसे प्रकाश में लाने के प्रयास के रूप में सपना सामने आता है।
बुरे सपने बार-बार जागने का कारण बन सकते हैं। जिससे नींद की गुणवत्ता खराब हो सकती है। दिन में थकान हो सकती है और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो सकती है। एक ही तरह के परेशान करने वाले सपने देखने की आशंका सोने के बारे में चिंता पैदा कर सकती है। जिससे नींद से बचने और नींद खराब होने का दुष्चक्र बन जाता है।
अस्मिता- दोहरावदार प्रकृति व्यक्ति को अटका हुआ महसूस करा सकती है या समस्या से बच पाने में असमर्थ बना सकती है। यहाँ तक कि नींद में भी। अनसुलझे मुद्दे को संसाधित करने के लिए मस्तिष्क का निरंतर प्रयास इसका मतलब है कि जब तक अंतर्निहित समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक सपना "जीने नहीं देगा"।
इसके बारे में बात करें अपने सपनों और उनके प्रभाव को किसी विश्वसनीय मित्र, परिवार के सदस्य या चिकित्सक के साथ साझा करना परिप्रेक्ष्य और भावनात्मक मुक्ति प्रदान कर सकता है।
अस्मिता ने समीर से पूछा "क्या कभी शिव की कोई साधना की है ?"
समीर ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए बताया- "उनका परिवार वैष्णव देवी को मानता है। वे लोग शिव उपासक नहीं है। न तो मेरे पिता जी न ही मेरी मम्मी के घरों में शिव की उपासना होती है।"
अस्मिता ने समीर से पूछा- “उसको कब से यह स्वप्न आता है ?"
उसने बताया कि “बचपन से ही शिव के प्रीति मेरे मन में आकर्षण है। जब से मुझे अपने बचपन की याद है तब से, जब भी खुले कमरे में सोता हूँ यह स्वप्न आता है।
समीर भगवान शिव के प्रति एक अकथनीय, गहन और आजीवन भक्ति की रिपोर्ट करता है। वह शिव मंदिरों, विशेष रूप से प्राचीन मंदिरों के प्रति लगभग जुनूनी आकर्षण महसूस करता है। और शिव पूजा के दौरान अपार शांति और जुड़ाव पाता है। वह इस गहन आध्यात्मिक आत्मीयता के मूल कारण को समझना चाहता है। उसे लगता है कि यह केवल एक सामान्य धार्मिक झुकाव से कहीं अधिक है।
अभी तक वह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से सोमनाथ गुजरात, मल्लिकार्जुन आंध्र प्रदेश, ओंकारेश्वर मध्य प्रदेश, केदारनाथ उत्तराखंड, भीमाशंकर महाराष्ट्र, त्रयम्बकेश्वर महाराष्ट्र, घुश्मेश्वर महाराष्ट्र, काशी विश्वनाथ उत्तर प्रदेश, वैद्यनाथ झारखंड, नागेश्वर गुजरात, तथा रामेश्वर तमिलनाडु के मंदिरों में दर्शन पूजा कर चुका है। केवल महाकालेश्वर मध्य प्रदेश जाना बचा है। इन सब जगह जाने से कोई फायदा नहीं हुआ।”
समीर की बातें सुनते-सुनते अस्मिता उसके गले से लिपट गई। हम लोग कब सो गये पता नहीं चला। जब बाहर होटल के वेटर ने दरवाजा खटखटाया तब हमारी नींद टूटी।
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सोल एग्रीमेन्ट
अस्मिता ने बताया कि रिश्ते में सोल एग्रीमेन्ट "आत्मा अनुबंध" का मतलब दो आत्माओं के बीच आध्यात्मिक समझौता या पूर्व-निर्धारित संबंध होता है। जिसमें अक्सर एक साथ सीखे जाने वाले विशिष्ट कर्मिक सबक या अनुभव शामिल होते हैं।
ये अनुबंध विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकते हैं, जिनमें रोमांटिक, प्लेटोनिक या पारिवारिक रिश्ते शामिल हैं। माना जाता है कि ये आत्माओं के बढ़ने और विकसित होने का यह एक तरीका है। समीर और मेरा ऐसा ही रिश्ता बन रहा था।
मैंने दरवाजा खोल कर चाय ले ली। तब भी समीर गहरी नींद में सो रहा था। शायद वह कई रातों से नहीं सोया था। समीर ने बताया था की जैसे-जैसे दिन ढलता है उसे इस स्वप्न का डर सताने लगता है।
मैंने कथाओं जितना शिव के बारे में पड़ा है तथा अपनी दादी से सुना है शिव को बहुत भोला, दयालु तथा जल्दी खुश हो कर वरदान देने वाले देवता के रूप में जाना है। मेरा तंत्र-मन्त्र, टोना-टोटका, जादू-टोना काला जादू, तथा अघोर साधना के लोगों पर ज्यादा भरोसा नहीं है।
उस दिन के बाद से मैंने इंटरनेट पर इस तरह की समस्याओं के बारे में जानने के लिए अनेक बेवसाइट देखना शुरू किया। मैने नेट से जानकारी जुटा कर समीर तथा उसके परिवार के साथ साझा की। मैने उन्हें बताया कि पिछले जीवन प्रतिगमन की थेरेपी पीएलआर एक आकर्षक और अक्सर विवादास्पद दृष्टिकोण है।
अस्मिता- जो उन तकनीकों का उपयोग करता है, मुख्य रूप से सम्मोहन, व्यक्तियों को पिछले जीवन की यादों को याद करने में मदद करने के लिए। इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिसमें वर्तमान जीवन के मुद्दों को हल करना, आवर्ती पैटर्न को समझना या केवल आध्यात्मिक अन्वेषण शामिल है।
डॉक्टरों का कहना है कि इन पिछले जीवन पैटर्न को समझने से वर्तमान कर्म ऋणों ऋणानुबन्धन को हल करने और "किसी के जीवन की पटकथा को फिर से लिखने" में मदद मिलती है। यह अंतर्दृष्टि दैनिक जीवन में एकीकृत करने के तरीके पर मार्गदर्शन प्रदान करेगी।
यह दोहराना महत्वपूर्ण है कि वैज्ञानिक समुदाय पिछले जीवन की यादों को शाब्दिक यादों के रूप में मान्य नहीं करता है। पीएलआर के ग्राहकों द्वारा बताए गए चिकित्सीय लाभों को अक्सर सम्मोहन के शक्तिशाली प्रभावों, भावनात्मक मुक्ति के रेचन, और अवचेतन मन की प्रतीकात्मक कथाएँ बनाने की क्षमता के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
जो वर्तमान मनोवैज्ञानिक मुद्दों को संसाधित करने में मदद करते हैं। डॉक्टर पीएलआर चिकित्सकों की तरह, एक आध्यात्मिक ढांचे में काम करते हैं जो पुनर्जन्म को एक वास्तविकता के रूप में स्वीकार करते है।
अस्मिता- मैने सोचा कि समीर द्वारा डॉक्टर के साथ पीएलआर से गुजरने का कोई भी विवरण पूरी तरह से काल्पनिक भी तो हो सकता है। पिछले जीवन प्रतिगमन चिकित्सा की पद्धति, इस विश्वास में निहित है कि पिछले जीवन के अनुभव और अनसुलझे मुद्दे किसी व्यक्ति की वर्तमान शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
अस्मिता- फिर मैने सोचा शायद डॉक्टर एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक के रूप में, एक समग्र दृष्टिकोण का उपयोग करेंगा। वह वर्तमान मनोवैज्ञानिक कारकों का भी आकलन करेंगा। उसका दृष्टिकोण एकीकृत हो सकता है। समीर की वर्तमान मानसिक स्थिति, भावनात्मक पैटर्न, मुकाबला करने के तंत्र और किसी भी प्रासंगिक मनोवैज्ञानिक निदान को समझना के लिये यह उपचार अजमानें में कोई हानि भी तो नहीं है। ।
डॉक्टर समीर के जीवन में आवर्ती पैटर्न या "विषयों" की तलाश करेंगा जो पिछले अस्तित्वों से कर्म संबंधों पर सुझाव दे सकते हैं। डॉक्टर इस बात पर जोर देते है कि "कर्म कुछ और नहीं बल्कि एक संकलन है जिसे आत्मा इकट्ठा करती है और फिर उससे सीखने का फैसला करती है।"
अस्मिता- एक आध्यात्मिक अंकशास्त्री के रूप में, वह संभावित जीवन स्क्रिप्ट या भाग्य पैटर्न की पहचान करने के लिए समीर की जन्म तिथि और नाम भी देख सकते है। यदि समस्याएँ पारिवारिक पैटर्न से उत्पन्न होती हैं, तो वह पैतृक प्रभावों का पता लगा सकते है। प्रतिगमन के बाद, डॉक्टर समीर को पिछले जीवन की कहानी और उनके वर्तमान जीवन की चुनौतियों के बीच समानताएं खींचने में मदद करेंगे।
डॉक्टर का मानना है कि एक बार जब ये पिछले जीवन की यादें "डिकोड हो जाती हैं, तो उनकी जहरीली ऊर्जा निकल जाती है।" रीफ़्रेमिंग और हीलिंग की प्रकिया शुरू की जा सकती है। सीखे गए सबक को समझने और अनुभव को फिर से तैयार करने पर ज़ोर दिया जाएगा।
उदाहरण के लिए, पिछले जीवन को पूरी तरह से दर्दनाक के रूप में देखने के बजाय, इसे ताकत, लचीलापन और नेतृत्व गुणों के स्रोत के रूप में देखा जा सकता है।
मुख्य प्रक्रिया में शामिल हैं प्रारंभिक परामर्श और लक्ष्य निर्धारण सत्र। आमतौर पर चिकित्सक और ग्राहक के बीच गहन चर्चा के साथ शुरू होता है। ग्राहक अपनी वर्तमान जीवन चुनौतियों, भय, आवर्ती पैटर्न, रिश्ते के मुद्दों, अस्पष्टीकृत शारीरिक बीमारियों या बस अपनी आध्यात्मिक यात्रा के बारे में अपनी जिज्ञासा साझा करता है।
चिकित्सक ग्राहक को सत्र के लिए अपने इरादों और लक्ष्यों को परिभाषित करने में मदद करता है। यह प्रासंगिक "पिछले जीवन" के अनुभवों के लिए प्रतिगमन का मार्गदर्शन करने में मदद करता है।
सम्मोहन अवस्था पिछले जीवन प्रतिगमन की आधारशिला है। चिकित्सक क्लाइंट को विश्राम की गहरी अवस्था में ले जाने के लिए विभिन्न विश्राम तकनीकों का उपयोग करता है।
अस्मिता- जिसे अक्सर सम्मोहन या ट्रान्स अवस्था कहा जाता है। क्लाइंट को उनके शरीर के प्रत्येक भाग को व्यवस्थित रूप से आराम करने के लिए मार्गदर्शन करना। क्लाइंट को शांत दृश्यों या यात्राओं की कल्पना करने के लिए कहना उदाहरण के लिए, सीढ़ियों से नीचे उतरना, शांतिपूर्ण बगीचे में प्रवेश करना।
विश्राम को प्रेरित करने के लिए नियंत्रित श्वास पैटर्न का उपयोग करना। लक्ष्य सचेत, विश्लेषणात्मक मन को बायपास करना और अवचेतन तक पहुँचना है। जहाँ माना जाता है कि यादें और अनुभव संग्रहीत हैं। नाटकीय सम्मोहन के विपरीत, क्लाइंट पूरी प्रक्रिया के दौरान जागरूक और नियंत्रण में रहता है।
एक बार आराम की स्थिति में, चिकित्सक क्लाइंट को "समय में पीछे" ले जाता है। ऐसा अक्सर उन्हें किसी विशेष मुद्दे के मूल कारण या किसी भावना या पैटर्न से जुड़ी सबसे पुरानी यादों तक जाने के लिए कहकर किया जाता है।
यदि सबसे पुरानी याद वर्तमान जीवन से नहीं है, तो चिकित्सक क्लाइंट को "पिछले जीवन" परिदृश्य का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है। चिकित्सक कथित पिछले जीवन के बारे में विवरण प्राप्त करने के लिए खुले प्रश्न पूछता है:
"आप क्या देखते/महसूस करते/सुनते हैं?"
"आपका नाम क्या है?"
"आपने क्या पहना है?"
"आपका वातावरण कैसा है?"
"आपके आस-पास कौन लोग हैं?"
"आप क्या कर रहे हैं?"
"क्या महत्वपूर्ण घटनाएँ हो रही हैं?"
क्लाइंट इन "यादों" को विभिन्न इंद्रियों के माध्यम से अनुभव कर सकता है।
ज्वलंत दृश्य छवियां, मजबूत भावनाएं, शारीरिक संवेदनाएं जैसे, दर्द, गर्मी, ध्वनियाँ, या यहाँ तक कि केवल ज्ञान या अंतर्ज्ञान। चिकित्सक अक्सर क्लाइंट को उस "जीवन" की महत्वपूर्ण घटनाओं के माध्यम से मार्गदर्शन करता है।
जिसमें जन्म, प्रमुख संबंध, चुनौतियाँ, सीखे गए सबक और अक्सर, मृत्यु का अनुभव शामिल है। भावनात्मक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, "मृत्यु" अनुभव को अक्सर आत्मा के संक्रमण और भौतिक शरीर को छोड़ने पर जोर देते हुए सावधानीपूर्वक संभाला जाता है।
पिछले जीवन की खोज करने के बाद, चिकित्सक क्लाइंट को पिछले जीवन के अनुभव और उनके वर्तमान जीवन की चुनौतियों के बीच संबंध को समझने के लिए मार्गदर्शन करता है।
आवर्ती पैटर्न, भय, प्रतिभा, संबंध या शारीरिक लक्षणों के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त की जाती है। चिकित्सक पिछले आघात या अनसुलझे मुद्दों से संबंधित भावनात्मक मुक्ति की सुविधा प्रदान कर सकता है।
"री-स्क्रिप्टिंग" या "रीफ़्रेमिंग" जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है, जहाँ क्लाइंट को सीखे गए पाठों को समझने और सकारात्मक टेकअवे को एकीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
जिससे कोई भी नकारात्मक भावनात्मक बोझ पीछे छूट जाता है। कुछ चिकित्सक क्लाइंट को "जीवन-बीच-जीवन" अवस्था में भी मार्गदर्शन करते हैं। जहाँ वे आध्यात्मिक मार्गदर्शकों से मिल सकते हैं या अपने जीवन के उद्देश्य की समीक्षा कर सकते हैं।
वर्तमान में वापसी और डीब्रीफिंग, क्लाइंट को धीरे-धीरे उनकी वर्तमान सचेत अवस्था में वापस लाया जाता है। सत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डीब्रीफिंग है। जहां क्लाइंट थेरेपिस्ट के साथ अपने अनुभवों, भावनाओं और अंतर्दृष्टि पर चर्चा करता है।
अस्मिता- थेरेपिस्ट क्लाइंट को जानकारी को प्रोसेस्ड करने, उनकी भावनाओं को मान्य करने और यह पता लगाने में मदद करता है कि इन अंतर्दृष्टि को उनके वर्तमान जीवन में उपचार और व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने के लिए कैसे लागू किया जा सकता है।
गहरा विश्राम और तनाव में कमी, सम्मोहन अवस्था अपने आप में बहुत ही आरामदेह होती है और तनाव और चिंता को कम कर सकती है। रेचन और भावनात्मक मुक्ति, क्लाइंट अक्सर प्रतिगमन के दौरान तीव्र भावनात्मक मुक्ति का अनुभव करते हैं, जो रेचनकारी हो सकता है और राहत की भावना पैदा कर सकता है।
समीर ने बताया- “उसके पिता जी उसे ऐसी अनेक जगहों पर ले कर जा चुके है। लेकिन बहुत श्रम, समय तथा पैसा बर्वाद करने के बाबजूद कोई फायदा नहीं हुआ, उलटे मानसिक असंतुलन का ख़तरा बढ़ता जा रहा है।”
अस्मिता- हम लोग एक ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जहां यह सब समस्या ना हो। हमारी यह खोज हमें वर्सोवा मुम्बई की एक क्लीनिक तक ले गई। हमने उनकी वेबसाईट देखी। जिस पर उन्होंने बहुत डिटेल में उनकी विभिन्न थेरिपीज़ की विधियों के सम्बन्ध में लिखा था।
मैने समीर को बताया कि डॉक्टर ने अपने बचपन के बारे में लिखा है
कि "उनके पिता उनके जीवन में आदर्श पुरुष रहे है। उन्होंने बचपन से मेरी रूचि भौतिक जगत से परे के जगत में जागृत करने के लिए मुझे ऐसे लोगों से मिलवाया जिन्होंने मेरे जीवन की दिशा बदल दी। उन्होंने मेरे विचारों को सूक्ष्म और दुर्लभ तरीके से प्रभावित किया, जिसका एहसास मुझे बहुत बाद में हुआ। मेरे पिता मेरे जीवन में सबसे अधिक प्रभाव डालने वाले व्यक्ति रहे।”
समीर ने पूछा- “फिर उनका रोल मॉडल कौन रहा है?”
अस्मिता- मैने समीर से कहा कि डॉक्टर का मानना है कि “बड़े होते समय बच्चों के पास एक ऐसा रोल मॉडल होना बहुत ज़रूरी है जो उनके सपनों पर उतना ही विश्वास करता हो जितना वे स्वयं करते हैं। उनके पिता ही उनके रोल मॉडल रहे है।”
मैने समीर को डॉक्टर की वेबसाइट से पढ़ कर सुनाया “स्कूल में मेरी माँ का मानना था कि काम ही पूजा है और मैंने हमेशा इसका पालन किया है। मैंने पिछले जीवन प्रतिगमन चिकित्सा, आध्यात्मिक अंकशास्त्र और आपसी सम्बन्धों के विश्लेषण पर अपनी रहस्यमय यात्रा प्रारम्भ की जो कार्यशालाओं के माध्यम से लोगों के जीवन में जादू पैदा कर रही हैं।"
डॉक्टर ने लिखा की "मैं मेडिकल कॉलेज, मुंबई से मनोवैज्ञानिक और व्यावसायिक क्लीनिकल में प्रशिक्षित पिछले जीवन प्रतिगमन चिकित्सा तथा पुनर्जन्म विशेषज्ञ की प्रमाणित डॉक्टर हूँ।”
अस्मिता- पिछले जीवन प्रतिगमन प्रक्रिया सम्मोहन चिकित्सा का एक सौम्य रूप है। जो किसी व्यक्ति को समय के माध्यम से उसके पिछले जीवन या अवतारों में वापस ले जाता है, और उसके अवचेतन मन में छिपी यादों और अनुभवों के माध्यम से वहां तक पहुँचता जहां से समस्या की शुरुआत हुई है।
अस्मिता- हमने आपस में डॉक्टर के बारे में चर्चा की और यह निश्चय किया की हम उनसे मिलाने जायगे। मैंने ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लिया। हम लोग दिल्ली से फ़्लाइट ले कर मुम्बई मिलने गये।
अस्मिता- जब समीर डॉक्टर के साथ बैठा तो बहुत उद्विग्न लग रहा था। किसी भी चिकित्सा की तरह, चिकित्सक के साथ एक सहायक और भरोसेमंद संबंध उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डॉक्टर ने समीर से उसकी परेशानी विस्तार से बताने को कहा।
समीर ने बताया- “उसका जन्म दिल्ली में चांदनी चौक की गली में हुआ। पिता का बड़ा कारोबार है पर मेरी रूचि ना तो पढ़ने में रही और ना कारोबार चलने में। मुझे जब से याद है मैरे मन में हमेशा शिव भगवान के प्रति लगाव रहा है।
शुरू में मेरी माँ मुझे अपने साथ मन्दिर ले जाती थी। बड़ा होने पर स्कूल से भाग कर शिव मन्दिर चला जाता और घंटों वहां बैठा रहता। पिताजी से इस बात को ले कर अकसर झगड़े होते रहते।
मैंने अनेक कोशिशें की लेकिन यह जुनून कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। मुझे शिव डमरू बजाते तथा ताण्डव नृत्य करते दिखते है। अनेकों डमरू एक साथ बजते है। मै परेशान हो जाता हूँ। रात को सो नहीं पता हूँ।”
डॉक्टर ने विस्तार से प्राथमिक बातें चिकित्सा पद्धति के बारे में बताना शुरू किया। डॉक्टर ने कहा "अवचेतन मन की गहराई में हमारी बार-बार होने वाली समस्याओं का स्रोत छिपा होता है।”
"तो हम उनको कैसे जान सकते है ?" समीर ने पूछा।
डॉक्टर ने समीर की आखों में आँखें डाल कर देखा फिर बोली- “जब हम ट्रान्स की बदली हुई अवस्था में प्रवेश करते हैं और अपने पिछले जन्मों को फिर से जीकर अपने वर्तमान जीवन की कठिनाइयों को समझ पाते है कि उनका स्रोत कहा है।”
"क्यों" की पहचान करना, वह उसके गहन आध्यात्मिक संबंध को स्वीकार कर और उसकी भक्ति की आध्यात्मिक वंशावली को उजागर करने के लिए एक अन्वेषण के रूप में तैयार करेंगी।
इरादा निर्धारित करना, सत्र के लिए स्पष्ट इरादा होगा "भगवान शिव के प्रति मेरी गहरी भक्ति के स्रोत और मेरे वर्तमान जीवन पथ के लिए इसके महत्व को समझना।"
“इससे उन बातों से मुक्ति पाते हैं, पिछले जीवन की चिकित्सा शारीरिक, भावनात्मक, रिश्ते और आध्यात्मिक अवरोधों को दूर करने में मदद करती है। जो आपके जीवन को दुखी बना रहे है। एक बार डिकोड होने के बाद उनकी जहरीली ऊर्जा निकल जाती है।
डॉक्टर ने बताया समीर को एक गहन विश्राम, सम्मोहन अवस्था में ले जाएँगी। प्रत्येक सांस के साथ समाधि को गहरा कर सकती है।
लक्ष्य सचेत, विश्लेषणात्मक मन को शांत करना और अवचेतन को "यादों" और छापों के लिए खोलना है।
भक्ति के "स्रोत" के लिए निर्देशित प्रतिगमन, "उस शुरुआती बिंदु पर जाएं जहां आप भगवान शिव के साथ इस गहन संबंध को महसूस करते हैं।" यह निर्देश दिया जाएगा।
समीर को सबसे पहले अस्पष्ट संवेदनाओं या रंगों का सामना करना पड़ सकता है। डॉक्टर धीरे से संकेत देंगी
"आप क्या देखते हैं?
आप क्या महसूस करते हैं?
क्या कोई जगह है?"
"इस जीवन में आपका नाम क्या है?"
वह नाम सुन या समझ सकता है।
"आपकी भूमिका क्या है?"
वह देख सकता है। अवधि और सेटिंग के लिए वास्तुकला, कपड़े, राजनीतिक माहौल या दूसरे लोगों की उपस्थिति के बारे में विवरण सामने आ सकते हैं।
अस्मिता- शिव से जुड़ाव जानने के लिये डॉक्टर उसे उस युग में अपने आध्यात्मिक जीवन का पता लगाने के लिए धीरे-धीरे मार्गदर्शन देगी। तुम अपने सार्वजनिक जीवन के पारंपरिक ढांचे से परे एक देवता के साथ गहरा जुड़ाव महसूस करने का वर्णन कर सकते हो।
तुम अपने शुरुआती जीवन के गहरे दर्द को संक्षेप में बता सकते हो या याद कर सकते हो। यह वर्तमान जीवन के विश्वास के मुद्दों या नियंत्रण की इच्छा को समझा सकता है।
डॉक्टर उसे इस शुरुआती घाव को एक आकार देने वाली शक्ति के रूप में स्वीकार करने के लिए मार्गदर्शन करुगी। प्रतिगमन के बाद, मैं तुम्हें सचेत रूप से बिंदुओं को जोड़ने में मदद दूगीं।"
"तुम्हारे द्वारा महसूस किए जाने वाले अंतर्निहित विश्वास के मुद्दे या बोझ उस पिछले जीवन के विश्वासघात और जिम्मेदारियों से उत्पन्न हो सकते हैं।
"अब आप जो ताकत, लचीलापन और न्याय की भावना महसूस करते हैं, वह एक शक्तिशाली शासक के रूप में आपके अनुभवों से प्राप्त हो सकती है।"
“भावनात्मक मुक्ति और समाधान के रूप में तुम पिछले जीवन से संबंधित भावनाओं के एक कैथार्टिक रिलीज का अनुभव कर सकते हो। तुम्हें अपने आध्यात्मिक पथ के बारे में पूर्णता या समझ की भावना महसूस हो सकती है।
यह थेरेपी तुम्हारी शिव भक्ति को तुम्हें आत्मा की यात्रा के एक प्रामाणिक हिस्से के रूप में पुष्टि करेगी। जो आध्यात्मिक झुकाव को मान्य करेगी। तुम इसे न केवल एक धार्मिक अभ्यास के रूप में, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक पहचान के रूप में समझ सकते हो।"
तुम्हें भगवान शिव के प्रति अपनी गहरी भक्ति के लिए एक विशाल समझ और मान्यता प्राप्त होगी। इसे जीवन भर अपनी आत्मा की आध्यात्मिक यात्रा की निरंतरता के रूप में देखते हुए विश्वास को गहरा करता है और उद्देश्य की भावना लाता है।
समीर के वर्तमान जीवन में कोई भी सूक्ष्म लक्षण या चुनौतियाँ जैसे, विश्वास के मुद्दे, शक्ति/न्याय के लिए एक मजबूत इच्छा, बोझ की भावना अब समझ में आ सकती हैं। जिससे भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक राहत मिल सकती है।
तुम अपने आंतरिक स्व से एक बढ़ा हुआ जुड़ाव और वर्तमान जीवन में अपने आध्यात्मिक पथ की स्पष्ट समझ महसूस कर सकते हो।
"पिछले जीवन" से प्राप्त अंतर्दृष्टि तुम्हें अपनी शक्तियों जैसे लचीलापन को अपनाने और सचेत रूप से किसी भी नकारात्मक पैटर्न जैसे पिछले विश्वासघात के माध्यम से काम करने के लिए सशक्त बना सकती है।
शांति और स्पष्टता, अक्सर, ऐसे सत्र किसी व्यक्ति के उद्देश्य और पहचान के बारे में शांति और स्पष्टता की गहन भावना लाते हैं। समीर ने बातें बहुत ध्यान से सुनी।
समीर ने बताया- “मैंने यूटूब पर आप के विडियो देखे है। आप से बहुत दिनों से मिलना चाहता था, लेकिन संयोग नहीं बन सका।”
डॉक्टर ने कहा- “आप सही मंजिल पर पहुंच गए हैं। जीवन कुछ सबसे अद्भुत सुंदर अनुभवों से भरा हुआ है। लेकिन अधिकांश समय इसे चूक जाते हैं। कई बार उत्तर सामने होता है। लेकिन अपने संदेह और अविश्वासी स्वभाव के कारण खुद को गुमराह करते हैं। उत्तर के लिए बाहर की ओर देखते रहते हैं या दूसरों के अनुभव के तार्किक निष्कर्षों पर भरोसा करते हैं।”
अस्मिता- “तो क्या हम उन यादों से मुक्ति पा सकते है?” मैने डॉक्टर से प्रश्न किया।
डॉक्टर मेरी ओर मुड़ी फिर बोली- “निश्चित रूप से अधिकांश समस्याएं हल हो सकती हैं। आप के पास पद, धन और उपाधि, एक प्रतिष्ठित क्लब की सदस्यता और एक अच्छा जीवनसाथी, सर्वश्रेष्ठ स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हो सकते हैं।
लेकिन फिर भी जब आप अपने बिस्तर पर सोते हैं तो आपको यह एहसास होता है कि कुछ भी सही नहीं हो रहा है। यह आपके निजी अंतरंग स्थानों के भीतर देखने से संभव है, जो केवल आप ही रह सकते हैं।”
“मैं कहती हूँ कि अगर आपको तैरना सीखना है तो आपको पानी में गोता लगाना होगा। यह अपने आप को खोजने के लिए भी सच है। आपको अपने पवित्र स्थान में गोता लगाना होगा। यह इस ग्रह या अन्य आयामों पर आपके द्वारा जीए गए कई जन्मों के कर्मों को समझने के माध्यम से किया जाता है।
पिछले जीवन की चिकित्सा आपको अपने कई जीवन के माध्यम से एक आकर्षक यात्रा दे सकती है। आपके द्वारा अनुभव किए गए विभिन्न व्यक्तित्वों को अपनाने की अनुमति देती है।
आत्मा की अभिव्यक्तियाँ एक पैटर्न का पालन करती हैं। एक बार जब आप पैटर्न को समझ लेते हैं तो बहुत कुछ प्रकट होता है और हल मिल जाता है।
जीवन के बीच जीवन में प्रवेश करना एक रहस्यमय आयाम को दर्शाता है। पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी एक सत्र करने वाले कई लोग अपनी अनिश्चितता और गलतफहमी को पीछे छोड़ देते हैं।और अपने सत- शाश्वत सत्य को अपना लेते हैं।”
अस्मिता- इतनी बातचीत हो जाने पर हम पास्ट लाइफ रिग्रेशन थेरेपी सत्र करने के लिये राजी हो गये।
जीवन प्रतिगमन
रात को समीर की बांहों में लिपट कर सोते समय अस्मिता सोच रही थी कि हमेशा लगता है कि शुरुआत से ही दो आत्माओं को इस तरह बनाया तथा मिलाया जाता है। क्योकि उन आत्माओं ने आत्म अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं।
जब जीवन में, आमतौर पर हम अधिक परिपक्व हो जाते है, तब किसी समय उस आत्मा से मिलते हैं। उनके प्रति सबसे अविश्वसनीय आकर्षण होता है। जिसे वर्णन नहीं कर सकते।
बस लगातार उनकी आँखों में देखना चाहते हैं। इसमें सालों लग सकते हैं। यह सब भगवान के हाथ में है। यह आपको भगवान के करीब लाने के लिए डिज़ाइन की गई आध्यात्मिक जागृति को ट्रिगर करने की प्रक्रिया है। यह कोई साधारण प्यार नहीं है।
यह पुरानी आत्माओं के बीच एक पुराना प्यार है जो आपको एकता में लाने के लिए नियत है। हम सभी के पास स्वतंत्र इच्छा है और हम इस अनुबंध का सम्मान नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं लेकिन जब तक आप अपने अनुबंध का सम्मान नहीं करते तब तक भगवान
आपको बार-बार घुमाते रहेंगे।
अस्मिता- यह एक बहुत ही कठिन यात्रा है। इसके बारे में कोई कथित बात नहीं है। वे वास्तविक हैं। मैं लगभग पांच वर्षों से इस यात्रा पर हूँ । हम अपने आत्मा मिशन पर हैं।
हम यहाँ सामूहिक, मानवता की सेवा करने के लिए हैं। मुझे ईश्वर से संदेश मिलते हैं, जो मेरे दिव्य प्रतिरूपों को बिल्कुल प्रतिबिम्बित करते हैं। हर समय अलौकिक अनुभव भी मिलते हैं। यह कनेक्शन की पुष्टि करने के लिए है।
अस्मिता- अगले दिन हम लोग समय से पहले डॉक्टर के किलिनिक पहुँच गये। डॉक्टर ने फिर बातें करते हुए थैरेपी सेशन की तैयारी शुरू की।
डॉक्टर ने समीर से पूछा- "तुम्हें यह आवाजें केवल रात में सुनाई देती है या कभी भी?"
"जब भी मैं सोने की कोशिश करता हूँ। " समीर ने जबाव दिया।
"क्या आप पिछले जन्म में विश्वास रखते है?" डॉक्टर ने समीर की ओर तीखी नजर से देखते हुए पूछा।
समीर ने शांत स्वर में कहा- "मुझे पता नहीं। मैं खुले दिमाग से आया हूँ। मुझे नहीं पता इस प्रक्रिया में क्या होगा?"
डॉक्टर ने कहना शुरू किया- "मुझे लगता है यह बहुत रोचक समस्या है।"
अस्मिता- कमरे में हम तीनों थे। यह बतावरण मेरे लिए रहयमय था। इस बीच डॉक्टर के स्टाफ़ ने एक डिक्लेरेशन फ़ॉर्म पर समीर की सहमति के सिग्नेचर लिये। एक बड़े से पलंग पर सफ़ेद चादर बिछाया गया। समीर उस पर लेट गया।
मुझे बैठने के लिए साइड में आराम कुर्सी राखी गई। समीर के सिराने डॉक्टर उनकी कुर्सी पर नोट पेड व पेन ले कर बैठ गई। कमरे में मध्यम नीली रोशनी का बल्ब जल रहा था। कमरा लगभग खाली तथा शांत था। डॉक्टर का स्टाफ तैयारी कर बाहर चला गया।
समीर ने डॉक्टर की बातों में दिलचस्पी लेना शुरू किया और पूछने लगा "इस तकनीक के अलावा और कौन सी तकनीक आप उपयोग में लाती है?"
डॉक्टर ने उसे बताया- "आई मूवमेंट डिसेन्सिटाइजेशन एंड रीप्रोसेसिंग ईएमडीआर तकनीक है जिसका उपयोग करती हूं।
इसके अच्छे परिणाम मिले हैं। यह एक अपेक्षाकृत नवीनतम मनोचिकित्सा पद्धति है। इसने लोगों में भय और जुनून, समायोजन समस्याओं, चिंता, ओसीडी, अवसाद और पोस्ट-ट्रॉमेटिक सिंड्रोम के इलाज में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।
इस तकनीक में मन में संग्रहीत दबी हुई संवेदनाओं और छवियों को मुक्त करने के लिए आंखों की हरकतों या टैपिंग का उपयोग करती हूँ। यह मन को समय में पीछे जाने या पीछे जाने और समस्या पैदा करने वाली यादों को हल करने और एकीकृत करने की अनुमति देती है।"
अस्मिता- मुझे लगा की डॉक्टर इतना डिटेल में इसलिए समीर को बता रही है की वह उन पर पूरा भरोसा करे। कि वह योग्य हाथों में है। डॉक्टर सेशन शुरू करने के पूर्व समीर के तनाव को काम कर उसे रिलैक्स करने की कोशिश कर रही थी।
वे वातावरण को बिलकुल सहज, शान्त तथा सुविधाजनक बनाना चाहती है। ताकि समीर भरोसे के साथ उन पर विश्वास कर अपने आप को उनको समर्पित कर सके।
डॉक्टर ने लगभग फुसफुसाती आवाज में कहा "जब किसी की मृत्यु अत्याचार या दर्दनाक तरीके से हो तो उसे अगले जन्म के समय पिछले जन्म की याद रहती है।"
“अब हम विशवास व श्रृद्धा के साथ पूर्व जनम की यात्रा पर चलेंगे। क्या तुम मेरे साथ हो?” डॉक्टर ने सीधे समीर की आखों में देख कर बोला।
समीर- 'हां जी!' "मै आप के साथ हूँ।"
डॉक्टर आदेशात्मक स्वर में बोली- "आँखें बंद करो।"
"नीचे देखों" "अपना ध्यान मेरी आवाज की तरफ केन्द्रित रखों।" डॉक्टर ने समीर को सुझाव दिया।
"जैसे-जैसे तुम अपना ध्यान मेरी आवाज की तरफ केन्द्रित रखोगे वैसे-वैसे तुम गहरी अवस्था में चले जाओगे। इस जीवन से जुड़े विचार दिमाग में कम हो जायगे और शरीर और मन शांत हो जायेगा। दिव्य पवित्र सफ़ेद रोशनी सर से माथे में प्रवेश कर रही है। शरीर के अंदर जो भी हलन-चलन होगी वह भी कम हो जायगी।"
डॉक्टर समीर को आदेशात्मक स्वर में कह रही थी।
अस्मिता- समीर ने आँखें बंद कर ली थी। उसके चेहरे पर एक अभूतपूर्व शान्ति परिलक्छित होने लगी थी। शरीर सीधा चित अचल लेटा था। डॉक्टर की मधुर आवाज गूजने लगी
"तुम्हारी मुश्किल, तुम्हारी परेशानी काफी सालों से है। शिव के प्रति अत्यधिक आकर्षण तुम्हें परेशान करता है। शिव स्रोत सुनाई देता है। शिव डमरू बजाते है। ताण्डव नृत्य होता है। आवाजें सहन नहीं होती है। शिव का डर तुम्हारे जहन में, चेतना में डूबा हुआ है और उस ओर अभी इस प्रकिया के दौरान तुम्हारी चेतना शरीर से उस घटना की ओर जायगी।
"तुम्हारा माथा भारी होता जा रहा है और चेतना मन की गहराई में घुसती चली जा रही है। तुम्हारा शूक्ष्म शरीर इस शरीर से डिटैच होता जा रहा है। तुम्हारा शूक्ष्म शरीर तुम्हारी चेतना के साथ दूर जा रहा है। पृथ्वी दिखाई दे रही है।
तुम्हारा चेतना खिची चली जा रही है। उस जगह के पास उस गॉव, शहर, कस्बा, जिला, फर्श, गली में जहां एक शरीर पड़ा हुआ है।
धरती पर कहीं किसी कोने में। जैसे तुम्हारी चेतना उस शरीर के अन्दर प्रवेश कर रही है। बैसे वह शरीर जीवित होता जा रहा है।"
पांच, चार, तीन, दो डॉक्टर ने गिनती गिनना शुरू की।
फिर जोर से कहा "वो शरीर जीवित हो चुका है व उस शरीर की सभी चीजें जीवित हो चुकी है। आस पास की सभी चीजें जीवित हो चुकी है। और ‘एक’
मै पूछूँगी कि आप के पैरो के नीचे की जमीन कैसी है? वो पहला शब्द, पहला विचार, पहली कल्पना, पहला चित्र जो आ रहा है उसी के साथ आगे बढ़ना है।
पांच, चार, तीन, दो, एक नीचे देखना है और महसूस करना है कि पैरो के नीचे की जमीन कैसी है?"
हलके-हलके धीमे-धीमे उस शरीर के अन्दर तुमने प्रवेश कर लिया है।"
अस्मिता- समीर का शरीर शव जैसे पड़ा है।
डॉक्टर ने झटके से आदेश दिया
“सब कुछ साफ है, आसमान साफ है, तुमने कैसे कपड़े पहने है ?
नीचे की जमीन कैसी है?
आस पास कौन है?
किस तरह का माहौल है?
क्या घटना घट रही है?
"तुम अपने बचपन में जाओं। तुम्हारे बचपन में देखो और बताओ शुरू से।”
"नीचे देखों" डॉक्टर ने झटके से तेज आदेश दिया। "और बताओ तुम्हारे पैरों के नीचे की जमीन कैसी दिख रही है?”
समीर के शरीर में थोड़ी हलचल हुई। उसने बहुत धीमी आवाज में कहा "धूल"
"कैसी धूल?" डॉक्टर ने आवाज ऊंची कर जोर से पूछा।
"रेगिस्तान की धूल" "रेत" रेत ही रेत" समीर ने धीमे से कहा।
"आस पास कौन है?"
"तुम कौन हो?"
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। वहां एक बच्चा खड़ा है। जिसकी उम्र शायद बारह तेरह साल होगी।" समीर ने कठिनाई से कहा।
"ठीक है तुम उस बच्चे की आखों में देखो। तुम पहचान लोगे। क्योकि शरीर के मरने या योनी बदल जाने पर भी आँखें नहीं बदलती। तुम मुँह से कितने भी झूठ बोल सकते हो पर आँखें झूठ नहीं बोलती।" डॉक्टर के सुझाव दिया।
"उनका सबसे छोटा बेटा "
"वो करते क्या थे?"
"वो मध्य एशिया की इल्बारी तुर्किक जनजाति वंश के कबीले के मुखिया थे?"
"मेरे पिता और भाई" समीर ने कहा।
"तुम्हारे पिता कौन थे?"
"इलम खान"
"उन्हें ठीक से देखो, उनने क्या पहना है ?"
"उनने पाँव से थोड़ा ऊंचा उठा सलवार, भूरे रंग का कुर्ता पहना है। काली जैकिट पहनी है। उनके सर पर ऊन की गोल टोपी है।"
"तुम्हारे साथ उनका व्यवहार कैसा था?"
"मुझे बहुत प्यार करते थे। मुझे बुद्धिमान बालक मानते थे। इज्जत करते थे। मुझे अपने भाइयों के साथ बाहर नहीं जाने देते। कबीले के कामों में मैं उनका हाथ बटाता हर बात मानते। सलाह लेते। एक युवा लड़के के रूप में असाधारण रूप से सुंदर और बुद्धिमान, जिसमें आशाजनक गुण दिखाई देते।"
तुम्हारे भाइयों के साथ तुम्हारे सम्बन्ध कैसे थे?"
"मेरे भाई मुझसे ईर्ष्या करते। जलते थे।"
"कहाँ है तुम्हारा घर?"
"ठीक-ठीक जगह का नाम याद नहीं आ रहा। यह जगह मध्य पूर्व में है। हमारा परिवार एक तुर्की कबीला है। एक समृद्ध परिवार। चारो ओर बहुत सारे लोग।औरते, बच्चे। भेड़, बकरियां, ऊंट धूम-धूम कर चर रहे है। जानवरों के चमड़े व ऊन के तम्बू लगे है। हमारे घर का तम्बू सफ़ेद गोल है, जो बस्ती के बीच में लगा है।"
"चारो ओर रेत के पहाड़ है। कहीं-कहीं बीच-बीच में हरियाली है। कुछ लोग खेती करते है, बाकि जानवर पालते है।"
"अभी क्या समय है?"
"सुबह का समय है। "
"लोग क्या कर रहे है?"
" नमाज पड़ रहे है।"
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"इल्तुतमिश"
दुर्भाग्य से, उसके उल्लेखनीय गुणों ने उसके सौतेले भाइयों के बीच ईर्ष्या पैदा कर दी। इस ईर्ष्या से प्रेरित होकर, उन्होंने उसे एक घोड़े के शो में धोखे से एक गुलाम व्यापारी को बेच दिया, जब वह सिर्फ एक बच्चा था। इतिहास में एक ऐसे गुलाम के जीवन का उल्लेख है जो गुलाम से सुल्तान बना और वो भी हिन्दुस्तान में।
गजनी से हिन्दुस्तान तक का सफर बहुत खतरनाक था। और वह डरा हुआ था। एक अज्ञात शक्ति जिसे वह नहीं समझता है उसे आगे खींचती है। वह शक्ति है विश्वास की। इस लड़के का अतीत गुमनामी का है।
मैं गुलाम का जीवन जीने के लिए पैदा नहीं हुआ था। मेरी नियति कुछ और थी। लड़के के इसी विश्वास ने उसे जीवन भर दौड़ाया। वह हमेशा सोचता वह अन्य गुलामों में से एक नहीं था वह अलग था। और एक दिन उसका मुक्ति का दिन भी आ गया। मुक्ति का दिन।
यकाएक समीर के चहरे पर दर्द के भाव उभरने लगे। वह बहुत बेचैन हो गया। करबटें बदलने लगा। वह बहुत थक गया था।
अस्मिता- तो डॉक्टर ने सेशन समाप्त करने का निर्णय किया और कहा “अब आप को वह शरीर छोड़ कर इस शरीर में अगले दस सेकंड में बापस आना है। आप धीरे -धीरे आखें खोलेंगे और अपने आप को उन यादों से मुक्त पायेगें।”
अस्मिता- धीरे-धीरे डॉक्टर समीर को ट्रेंच से बहार ले कर आ गई।
समीर सो गया। उसे अंदर कमरे में सोता छोड़ कर हम बाहर डॉक्टर के केविन में आ गये।
आज के सेशन से डॉक्टर खुश थी उन्हें उम्मीद है की जल्दी वह उस समय में समीर को ले जा सकेगी जहां से उसकी परेशानी शुरू हुई थी। सेशन के बाद जब हम होटल पहुँचे तब रात में समीर ने अपने आज के अनुभव सुनाने शुरू किए।
उसने बताया कि “आज तक वह जितने लोगों से इलाज के सिलसिले में मिला है यह डॉक्टर बिलकुल अलग है। कोई बड़बोलापन नहीं। कोई आडम्बर नहीं सीधा सरल काम। मरीज की सहायता करना न कि उसे डरा कर उसका पैसा लूटना। आज कल ऐसे लोग किस्मत से ही मिलते है। हम लोग किस्मत वाले है कि सही समय पर इन के पास आ गए।”
वह आज बहुत हलका महसूस कर रहा था। उसका डॉक्टर पर बहुत भरोसा आ गया था। क्योकि डॉक्टर का काम करने का तरीका बहुत अलग था। खाना कमरे में ही आर्डर कर दिया। हम लोग खाना खा कर जल्दी सोने चले गये।
गुलाम इल्तुतमिश
अस्मिता- हम लोग समय से पूर्व डॉक्टर के पास पहुँच गये। हम आपस में बातें कर रहे थे कि पिछले जीवन प्रतिगमन चिकित्सा के आसपास के विवाद बहुआयामी हैं। जिनमें वैज्ञानिक, नैतिक और मनोवैज्ञानिक चिंताएँ शामिल हैं।
वैज्ञानिक साक्ष्य और अनुभवजन्य समर्थन की कमी मुख्य मुद्दा है। पुनर्जन्म के लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। झूठी यादें, सम्मोहन व्यक्ति को सुझाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बना सकता है।
एक चिकित्सक के प्रमुख प्रश्न, ग्राहक की अपनी कल्पना, या यहाँ तक कि पुस्तकों, फिल्मों या सांस्कृतिक आख्यानों से प्राप्त जानकारी अनजाने में ज्वलंत, वास्तविक प्रतीत होने वाली "यादों" में बुनी जा सकती है।
अस्मिता- मनगढ़ंत कहानियां, मस्तिष्क की प्रशंसनीय, लेकिन अक्सर मनगढ़ंत, विवरणों के साथ स्मृति में अंतराल को भरने की प्रवृत्ति। कल्पना और प्रतीकवाद, "यादें" अतीत की घटनाओं की शाब्दिक यादों के बजाय वर्तमान मनोवैज्ञानिक संघर्षों, चिंताओं या इच्छाओं का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व हो सकती हैं।
ऐतिहासिक अशुद्धियाँ, "पिछले जीवन की यादों" की जाँच अक्सर ऐतिहासिक अशुद्धियों को प्रकट करती है जो वास्तविक ऐतिहासिक तथ्यों के बजाय लोकप्रिय संस्कृति चित्रण के साथ संरेखित होती हैं। विवरण अक्सर अस्पष्ट होते हैं और स्वतंत्र रूप से सत्यापित करना मुश्किल होता है।
अस्मिता- झूठी यादों का आरोपण, झूठी यादें बनाना बहुत ही परेशान करने वाला और हानिकारक हो सकता है। व्यक्ति वास्तव में इन मनगढ़ंत अनुभवों पर विश्वास कर सकते हैं, जिससे भ्रम, चिंता या यहाँ तक कि भ्रमपूर्ण सोच पैदा हो सकती है।
गलत निदान और अनुचित उपचार, वर्तमान मनोवैज्ञानिक समस्याओं के लिए अप्रमाणित पिछले जीवन स्पष्टीकरणों पर भरोसा करना व्यक्तियों को उनकी वास्तविक मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों जैसे, चिंता विकार, अवसाद के लिए साक्ष्य-आधारित और प्रभावी उपचार प्राप्त करने में देरी या रोक सकता है।
अस्मिता- कमजोर व्यक्तियों का शोषण, चिकित्सा चाहने वाले लोग अक्सर कमजोर स्थिति में होते हैं। समाधान के रूप में गैर-साक्ष्य-आधारित चिकित्सा को बढ़ावा देना उनकी आशाओं और वित्तीय संसाधनों का शोषण कर सकता है।
सूचित सहमति का अभाव, यदि क्लाइंट को पीएलआरटी के लिए वैज्ञानिक साक्ष्य की कमी और संभावित जोखिमों जैसे झूठी स्मृति आरोपण के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, तो उपचार के लिए उनकी सहमति वास्तव में "सूचित" नहीं है, जो स्वायत्तता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
अस्मिता- अयोग्य चिकित्सक, चूंकि पीएलआरटी मुख्यधारा के मनोविज्ञान में एक मान्यता प्राप्त, विनियमित चिकित्सीय पद्धति नहीं है, इसलिए कई चिकित्सकों के पास मनोविज्ञान, मानसिक स्वास्थ्य नैतिकता और उचित चिकित्सीय तकनीकों में औपचारिक प्रशिक्षण की कमी हो सकती है। इससे नुकसान का जोखिम बढ़ जाता है।
इस सभी शंकाओं के समाधान के लिए हम लोग डॉक्टर से सवाल पूछने लगे। डॉक्टर धीरे-धीरे उनके काम तथा अनुभव के बारे में बता रही थी- "स्वाभाविक रूप से स्पष्टवादी और मानसिक रूप से सक्षम होने के कारण मैने विदेशों में लीड्स, ब्रैडफोर्ड, लंदन, काठमांडू, हांगकांग, सिंगापुर और दुबई में अपनी कार्यशालाएँ आयोजित की।
दिल्ली, मुंबई, नोएडा, लखनऊ, जूनागढ़, कोलकाता,त्रिची,बैंगलोर, जयपुर, लुधियाना, चंडीगढ़, रायपुर, गांधीधाम, अहमदाबाद और राजकोट में कार्यशालाएँ आयोजित करते हुए पूरे भारत की यात्रा की।” डॉक्टर ने सेशन की तैयारी पूरी होने पर सेशन शुरू किया।”
“अब हम विशवास व श्रृद्धा के साथ पूर्वजनम की यात्रा पर चलेंगे। क्या तुम मेरे साथ हो?” डॉक्टर ने सीधे समीर की आखों में देख कर बोला।
समीर 'हां जी!' "मैंने आप के साथ हूँ।"
डॉक्टर आदेशात्मक स्वर में बोली "आँखें बंद करो।" "नीचे देखों"
"अपना ध्यान मेरी आवाज की तरफ केन्द्रित रखों।" डॉक्टर ने समीर को सुझाव दिया।
"जैसे-जैसे तुम अपना ध्यान मेरी आवाज की तरफ केन्द्रित रखोगे बैसे-बैसे तुम गहरी अवस्था में चले जाओगे और इस जीवन से जुड़े विचार दिमाग में कम हो जायगे, शरीर और मन शांत हो जायेगा। दिव्य पवित्र सफ़ेद रोशनी सर से माथे में प्रवेश कर रही है। शरीर के अंदर जो भी हलन- चलन होगी वह भी कम हो जायगी।"
डॉक्टर समीर को आदेशात्मक स्वर में कह रही है।
समीर ने आँखें बंद कर ली थी। उसके चेहरे पर एक अभूतपूर्व शान्ति परिलक्छित होने लगी थी। शरीर सीधा चित अचल लेटा था।
"नीचे देखो" डॉक्टर ने धीरे से कहा।
"अब वह बच्चा कहां है?" डॉक्टर ने पूछा।
"एक बड़े तम्बू में।" इल्तुतमिश का चेहरा मानस पटल पर उभरा देख समीर ने शांत भाव से कहा।
"तुम यहां क्यों आये?" डॉक्टर ने पूछा।
“मेरे भाई धोखे से मुझे एक घोड़े के शो में ले गए, जहाँ उन्होंने एक गुलाम व्यापारी को बेच दिया। अपने ही रिश्तेदारों द्वारा विश्वासघात के इस कृत्य ने उसे गुलाम बाजारों की क्रूर दुनिया में धकेल दिया"
“मुझे मेला दिखाने का लालच दे कर यहां लाये। मुझे इस तम्बू में बिठाकर गायब हो गये।"
“भाग्य का एक क्रूर मोड़ पर मैं विश्वासघात और गुलामी के कठिन दौर से गुजरा। मेरे सौतेले भाइयों की ईर्ष्या और छल, मेरे भाई, मेरी बुद्धिमत्ता, अच्छे दिखने और उसके प्रति अपने पिता के स्नेह से ईर्ष्या करते, तथा मेरे खिलाफ़ साजिश रचते हैं।”
"तो तुम अकेले घर क्यों नहीं जाते।"
"नहीं जा सकता। यह आदमी गुलामों का खरीददार है, कहता है कि मेरे भाई इसे मुझे बेच गए है।"
"वहां और कौन है?"
"बहुत सारे मेरी उम्र के बच्चे है। कुछ बड़े महिला पुरुष है। छोटी - छोटी तथा कुछ जवान लड़कियां। ठेकेदार के सैनिक है जो सब पर नजर रख रहे है।" समीर के चेहरे पर दुःख के भाव आ गये।
"तुमने कुछ खाया पिया है ?"
"नहीं दोपहर से कुछ नहीं। अब रात हो रही है। "
"तो अब क्या हो रहा है?"
"ठेकेदार हम सब को ऊटों के काफले के साथ रात को बुखारा ले कर जाने की तैयारी कर रहा है।"
डॉक्टर ने दो पल कुछ नहीं पूछा। फिर बोली "अब कहां हो?"
"एक युवा लड़के के रूप में, बुखारा ले जाया गया, जो एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र था। मैं अपने मालिक के घर बुखारा में काम करता हूँ। मैने कुछ साल इस मालिक के यहां काम किया। मैं बहुत मेहनत से काम करता। लेकिन धीरे-धीरे उसके जुल्मों की संख्या बढ़ाने लगी। मैने अनेक बार उसके ख़िलाफ़ बगावत करना चाही। लेकिन बच्चा होने के कारण हर बार पकड़ा जाता।
लेकिन गुप्त रूप से मैने पढ़ना लिखना सीखा। दिन को मालिक काम के लिये बाहर जाता तब जो उस्ताज मालिक के लडके को पढ़ाने आते मैं उनकी सेवा करता। इसके बदले में वह मुझे पढ़ाने लगे। मुझे अपनी पहचान तथा नियति खुद बनाना थी।मेरे अन्दर की वह घुटन तब जाहिर हुई जब में कुछ बड़ा हो गया था।
मैने एक मालिक को अपने गुलाम को बुरी तरह मारते-पीटते देखा। मेरे अन्दर एक हिस्सा ऐसा था जो उस गुलाम के दर्द और तकलीफ को महसूस कर रहा था। इस घटना ने मेरी आत्मा झकझोर दी।
तब एक दिन जब एक दूसरा मालिक अपने गुलाम को पीट रहा था तब मैने उसे पीछे से एक पत्थर उठा कर उसके सिर पर दे मारा। इससे वह बहुत घायल हो गया।
मेरा मालिक डर गया और उसने मुझे दूसरे गुलामों के साथ गजनी के व्यापारी को बेच दिया है। गज़नी घुरिद साम्राज्य में व्यापार और सैन्य भर्ती के लिए एक प्रमुख केंद्र था।
इल्तुतमिश की आकर्षक विशेषताओं और बुद्धिमत्ता वाले एक गुलाम का आगमन किसी की नज़र से नहीं छूटा। मैं अब गबरू जवान हो गया हूँ। इसे मेरे अच्छे दाम मिले है।" वहाँ, मुझे स्थानीय सदर-ए-जहाँ धार्मिक मामलों और बंदोबस्ती के प्रभारी अधिकारी को फिर से बेच दिया गया।
इस परिवार ने मेरे साथ अच्छा व्यवहार किया। बाद में मुझे बुखारा हाजी नामक एक व्यापारी को बेच दिया गया, जिसने फिर जमालुद्दीन मुहम्मद चुस्त कबा को बेच दिया। जमालुद्दीन मुझे गजनी ले आया।
मेरे बचपन के किस्से भी धार्मिक रहस्यवाद में उनकी प्रारंभिक रुचि की ओर इशारा करते हैं। एक कहानी बताती है कि कैसे इल्तुतमिश, सदर-ए-जहाँ के एक परिवार के सदस्य द्वारा अंगूर खरीदने के लिए दिए गए पैसे खो जाने के बाद रो रहा था, जब एक दरवेश सूफी धार्मिक नेता ने उसे देखा।
दरवेश ने इल्तुतमिश के इस वादे के बदले में उसे अंगूर खरीदे कि जब वह शक्तिशाली हो जाएगा तो वह धार्मिक भक्तों और तपस्वियों के साथ अच्छा व्यवहार करेगा।
समीर ने धीरे-धीरे जवाब दिया।
"अब कहां हो? ऊपर देखो वहां कुछ लिखा है क्या?"
"हां ! यहां एक बोर्ड पर फ़ारसी में लिखा है गुलाम बाजार गजनी।"
“तुम पढ़ लेते हो?"
इल्तुतमिश बोला "मेरा दूसरा मालिक नेकदिल इन्सान है। उसने मुझे तुर्की, फ़ारसी तथा पश्तो पढ़ने की व्यवस्था की थी, मैंने हथियार चलना तथा शिकार करना सीख लिया था। मैंने बगदाद में भी समय बिताया, जहाँ मैंने शहाब अल-दीन अबू हफ़्स उमर सुहरावर्दी और औहादुद्दीन करमानी जैसे उल्लेखनीय सूफी रहस्यवादियों से मुलाकात की थी।"
"तुम कहां खड़े हो?"
"एक ऊंचे चबूतरे पर। इल्तुतमिश की बोली लग रही है। ठेकेदार मेरे बहुत ज्यादा दाम मांग रहा है। क्योकि मैं लम्बा, ऊंचा भरा पूरा मर्द हूँ। मुझे पढ़ना लिखना तथा हथियार चलना आता है। "
"तभी बाजार में हलचल एकाएक बढ़ गई। लोग दूर हट गए। मेरे मालिक ने सुल्तान को सलाम किया।मुझ बुद्धिमान और सुंदर दास की ख्याति ग़ुरीद राजा मुइज़्ज़ुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी तक पहुँची, वह बाजार में आया। वह मुझे देख कर रुक गया। उसे अपनी फौज के लिए गुलाम चाहिये। उसने मेरे और एक अन्य दास के लिए एक महत्वपूर्ण राशि एक हजार सोने के सिक्के की पेशकश की।
जो मेरा दाम लगाया है उस पर मेरा मालिक जमालुद्दीन बैचने को तैयार नहीं। काफी बहस हुई। जब जमालुद्दीन ने इनकार कर दिया, बात नहीं बनी। गुस्से में सुल्तान ने गजनी के बाजार में मुझे बेचने पर पाबन्दी लगा दी। सुल्तान के सैनिकों ने मेरे मालिक को बाजार से बाहर कर दिया।"
मुहम्मद ग़ोरी, ग़ौर क्षेत्र में स्थित ग़ुरीद वंश का एक शासक था। जो आज के मध्य अफ़गानिस्तान में है। ग़ुरीद साम्राज्य के दक्षिणी क्षेत्र के गवर्नर के रूप में अपने शुरुआती करियर के दौरान, मुहम्मद ने कई आक्रमणों के बाद ओगुज़ तुर्कों को अपने अधीन कर लिया और ग़ज़नी पर कब्ज़ा कर लिया।
ग़ज़नी में अपने बेस से सिंधु डेल्टा के पूर्व में घुरिद प्रभुत्व का विस्तार करते हुए, मुहम्मद ने सिंधु नदी को पार किया, गोमल दर्रे से होते हुए उस तक पहुँचा और एक साल के भीतर कारमथियन से मुल्तान और उच पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद, मुहम्मद अपनी सेना को निचले सिंध के रास्ते ले गया, और थार रेगिस्तान के माध्यम से वर्तमान गुजरात में घुसने का प्रयास किया।
हालाँकि, वह घायल हो गया और उसकी सेना को चालुक्य राजा मूलराज के नेतृत्व में राजपूत सरदारों के गठबंधन द्वारा कासहराडा में माउंट आबू के पास हराया गया। इस झटके ने उन्हें भारतीय मैदानों में भविष्य के आक्रमण के लिए अपना मार्ग बदलने के लिए मजबूर किया।
इसलिए, मुहम्मद ने अपनी सेना को गजनवी के खिलाफ भेजा और उन्हें उखाड़ फेंका, पंजाब के अधिकांश हिस्से के साथ ऊपरी सिंधु मैदान पर विजय प्राप्त की। गजनवी को उनके अंतिम गढ़ से खदेड़ने के बाद, मुहम्मद ने खैबर दर्रे को सुरक्षित किया, जो उत्तरी भारत में आक्रमणकारी सेनाओं के प्रवेश का पारंपरिक मार्ग था।
गौरी को गंगा के मैदान में पूर्व की ओर आगे बढ़ाते हुए, हार का सामना करना पड़ा। तराइन में चाहमान शासक पृथ्वीराज चौहान के नेतृत्व में राजपूत संघ के साथ मुठभेड़ में मुहम्मद घायल हो गए। मुहम्मद खुरासान लौट आए। एक साल बाद उन्होंने घुड़सवार तीरंदाजों की एक विशाल सेना के साथ गंगा के मैदान में प्रवेश किया और उसी युद्ध के मैदान पर वापसी की लड़ाई में निर्णायक जीत हासिल की।
उन्होंने कुछ ही समय बाद पृथ्वीराज को मार डाला। इसके बाद उन्होंने भारत में अपनी उपस्थिति सीमित कर ली, और इस क्षेत्र में राजनीतिक और सैन्य अभियानों को मुट्ठी भर कुलीन गुलाम कमांडरों को सौंप दिया, जिन्होंने स्थानीय भारतीय राज्यों पर हमला किया और गौरी के प्रभाव को बंगाल में गंगा डेल्टा तक और बिहार के उत्तर में क्षेत्रों तक फैलाया। गौरी की मृत्यु के बाद, उनका गुलाम कमांडर कुतुबुद्दीन ऐबक के अधीन दिल्ली सल्तनत में विकसित हुई।
अस्मिता- समीर थक गया था। उसका शरीर निढ़ाल हो गया था। यहाँ सब कहते कहते काफी समय बीत गया था। तो डॉक्टर ने सेशन समाप्त करने का निर्णय किया और कहा
“अब आप को वह शरीर छोड़ कर इस शरीर में अगले दस सेकंड में बापस आना है। आप धीरे -धीरे आखें खोलेंगे और अपने आप को उन यादों से मुक्त पायगे।”
धीरे-धीरे डॉक्टर समीर को ट्रेंच से बहार ले कर आ गई।
अस्मिता- हम लोग शाम को हाजी अली की दरगाह गए। यहां हम ने चादर चढ़ाई तथा मन्नत मांगी। टैक्सी से इंडिया गेट गए तथा कुछ देर समुद्र की लहरों को देखा।
अस्मिता- रात में मुम्बई स्वप्न लोक में बदल जाती है। लेकिन गाड़ियों के हार्न तथा लोगों की भीड़ आपको मुम्बई में होने का अहसास दिलाती रहते है। मेरे मन में भी समीर की थैरेपी को ले कर चिंता की लहरें उठ रही थी।
अस्मिता- मैं हर सम्भव कोशिश समीर को शांत रखने की कर रही थी। जब उसे बीच-बीच में सेशन की बातों की याद आती वह उदास हो जाता था। इसलिए माहौल बदलने की लिए में उसे होटल से बाहर लाई थी। हम लोगों ने रात का खाना बाहर ही खाया, देर रात अपने होटल पहुंचे।
इल्तुतमिश सुल्तान
अस्मिता- अगले दिन हम लोग फिर डॉक्टर से मिलने नियत समय पर उनके क्लिनिक आ गये। डॉक्टर ने वही प्रकिया फिर दुहराई।
“अब हम विशवास व श्रृद्धा के साथ पूर्वजनम की यात्रा पर चलेंगे। क्या तुम मेरे साथ हो?” डॉक्टर ने सीधे समीर की आखों में देख कर बोला।
समीर 'हां जी!' "मैं आप के साथ हूँ।"
डॉक्टर आदेशात्मक स्वर में बोली "आँखें बंद करो।"
"नीचे देखों" "अपना ध्यान मेरी आवाज की तरफ केन्द्रित रखों।"
डॉक्टर ने समीर को सुझाव दिया। "जैसे-जैसे तुम अपना ध्यान मेरी आवाज की तरफ केन्द्रित रखोगे बैसे बैसे तुम गहरी अवस्था में चले जाओगे और इस जीवन से जुड़े विचार दिमाग में कम हो जायगे और शरीर और मन शांत हो जायेगा।
यकायक डॉक्टर ने पूछा। "अब कहाँ हो, देखों चारो ओर और बताओ अभी क्या हो रहा है?"
समीर लगातार बोले जा रहा था। जैसे वह अपने मन में फिल्म देख रहा हो। जो बहुत तेजी से फ़ास्टफॉरवर्ड हो रही हो। इल्तुतमिश का चेहरा मानस पटल पर उभर आता।
डॉक्टर अपने नोटपेड पर कुछ लिख रही थी।
"एक गजनी का खरीददार क़ुतुब-अल-दीन मुझे तथा तमगज को खरीदना चाहता था। उसने मेरे मालिक जमालुद्दीन से अनुमति मांगी। जो नहीं मिली। क्योकि हम लोगों को गजनी के बाजार में बेचने पर प्रतिबन्ध लगा था। सुल्तान ने हम लोगों को हिन्दोस्तान ले जा कर बेचने का निर्देश दिया।"
हालांकि इल्तुतमिश की गजनी से दिल्ली तक की "पैदल" यात्रा की। जिस समय मुझे दिल्ली लाया जाना था मेरा मालिक स्थानीय व्यापारियों के एक दल से मिला जो उस समय दिल्ली जा रहे थे। व्यापारियों के मुखिया ने मेरे मालिक को बताया कि मध्य एशिया गज़नी को उत्तरी भारत से जोड़ने वाले प्राथमिक स्थलीय व्यापार मार्ग व्यापक रेशम मार्ग नेटवर्क का हिस्सा है इस रस्ते पर सबसे महत्वपूर्ण दर्रे थे।
खैबर दर्रा, यह सबसे प्रमुख और अक्सर इस्तेमाल किया जाने वाला मार्ग था, जो काबुल गज़नी के पास से पेशावर और पंजाब क्षेत्र में और फिर दिल्ली तक जाता था। यह माल, लोगों और सेनाओं की आवाजाही के लिए महत्वपूर्ण था।
गोमल दर्रा, डाकुओं के कारण भारी माल के लिए कम इस्तेमाल होने के बावजूद, यह दर्रा एक सौम्य ढलान प्रदान करता था और डेरा इस्माइल खान क्षेत्र से जुड़ा हुआ था, जो भारत में एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता था।
बोलन दर्रा, दक्षिण में स्थित, यह दर्रा कंधार से जुड़ा हुआ था और इसका उपयोग भी किया जाता था।
यह लंबी और कठिन यात्रा थी। ग़ज़नी और दिल्ली के बीच की दूरी काफी है। यह समूह के लिए "पैदल" यात्रा, यहाँ तक कि कुछ के लिए घोड़ों के साथ भी, अविश्वसनीय रूप से धीमी और थकाऊ होगी। इसमें हफ़्ते या महीने लग जाते है।
सुरक्षा के लिए यात्रा लगभग हमेशा कारवां में की जाती है। इनमें व्यापारी, उनका सामान अक्सर घोड़े, कपड़े और अन्य उच्च मूल्य की वस्तुएँ, सुरक्षा के लिए सैनिक और विभिन्न यात्री शामिल होते है। इल्तुतमिश, एक मूल्यवान दास के रूप में, ऐसे व्यापारिक कारवां का हिस्सा होगा।
मार्ग, विशेष रूप से पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्रों के माध्यम से, बेहद असुरक्षित है। डाकुओं का लगातार खतरा है, और खानाबदोश जनजातियाँ महत्वपूर्ण खतरे पैदा कर सकती है। इसके लिए सशस्त्र अनुरक्षकों और सतर्क दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
गजनी से यात्रा के शुरुआती हिस्से में दर्रे के माध्यम से बीहड़ हिंदू कुश पर्वत श्रृंखलाओं को पार करना शामिल है। इसका मतलब था कठिन चढ़ाई और उतराई, चट्टानी इलाका, और चरम मौसम सर्दियों में बर्फ, गर्मियों में तीव्र गर्मी के संपर्क में आना। दर्रे के बाद, मार्ग पंजाब के विशाल, अक्सर शुष्क या अर्ध-शुष्क मैदानों में खुलता है। इसमें नीरस यात्रा, धूल और गर्मी के लंबे खंड शामिल होंगे।
सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी और सतलुज सहित कई नदियों को पार करना होगा। ये पारियाँ घाट यदि जल स्तर अनुमति देता है या नौकाओं द्वारा होंगी, जो समय लेने वाली और खतरनाक हो सकती हैं।
मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिए पर्याप्त पानी और भोजन सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है, खासकर कम आबादी वाले क्षेत्रों में। कारवां प्राकृतिक स्रोतों, कुओं और गांवों या छोटे शहरों में पहले से तय किए गए पड़ावों पर निर्भर होते है।
जबकि कुछ अल्पविकसित सराय या कारवां सराय आराम करने के लिए जगह प्रमुख बिंदुओं पर मौजूद हैं, यात्रा का अधिकांश हिस्सा खुले में डेरा डालने में शामिल होगा। पशु: घोड़े, खच्चर और ऊँट भोजन सामग्री ले जाने और सवारी के लिए आवश्यक होंगे।
गजनी और दिल्ली के बीच के क्षेत्र अक्सर विवादित या अस्थिर होते हैं, जहाँ विभिन्न स्थानीय शासक, आदिवासी समूह और बदलती निष्ठाएँ थीं। इससे यात्रा की असुरक्षा बढ़ गई। खतरों के बावजूद, ये मार्ग सांस्कृतिक आदान-प्रदान की धमनियाँ भी थे। रास्ते में, यात्रियों को विभिन्न समुदायों, भाषाओं और रीति-रिवाजों का सामना करना पड़ता था।
दास व्यापार उस समय की एक क्रूर वास्तविकता थी, और मेरी यात्रा इसका प्रत्यक्ष परिणाम थी। दासों के लिए परिस्थितियाँ कठोर होती थीं, उन्हें जबरन मार्च करने और सीमित प्रावधान दिए जाते थे। मेरी दिल्ली की यात्रा एक नियोजित स्थानांतरण थी न कि एक यादृच्छिक यात्रा। मुझे एक मूल्यवान वस्तु के रूप में ले जाया जा रहा था, इसलिये मेरा मालिक एक अच्छी तरह से संरक्षित काफिले का हिस्सा बनाना चाह रहा था।
ग़ज़नी से दिल्ली तक का "पैदल मार्ग" एक अच्छी तरह से पक्का, आसानी से चलने योग्य मार्ग नहीं था। यह एक चुनौतीपूर्ण, अक्सर खतरनाक नेटवर्क था पगडंडियों और पगडंडियों का एक समूह, जो साहसी व्यक्तियों और कारवां द्वारा पार किया जाता था, प्रकृति की सनक, डाकुओं के खतरे और मध्ययुगीन दुनिया की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के अधीन था।मेरे लिए, यह वह मार्ग था जो मुझे जबरन दासता के जीवन से उभरती हुई दिल्ली सल्तनत के दिल तक ले जाएगा।
गजनी से दिल्ली तक के मार्ग में रेगिस्तान, पहाड़, सिंधु के मैदान, पंजाब क्षेत्र और गंगा के मैदान के कुछ हिस्सों सहित विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों को पार करना था। परिवहन का प्राथमिक तरीका घोड़े या ऊँट थे।
हम लोग पैदल चल रहे थे। हमारी रशद खाने पीने का सामान तथा व्यापार तिजारत का सामान गाड़ियों तथा ऊँटों पर लदा था। रात की नीरवता में रेगिस्तान में आत्माऐं गाती है और यात्रियों को भटका देती है। जिससे वह रास्ता भटक जाते है और मर जाते है।
पीने के पानी की बहुत समस्या थी। यात्रा में कई चुनौतियाँ शामिल थीं, जिनमें खराब मौसम की स्थिति, डाकू और अपरिचित इलाकों को पार करने के खतरे शामिल थे।
लेकिन रास्ते में डाकुओं ने हमला कर दिया और सारा सामान लूट लिया। हमारा मालिक सामान लूटे जाने से थोड़ा दुखी भी था, लेकिन उसको इस बात की खुशी थी कि वह डाकुओं से अपनी तथा हम लोगों की जान बचाने में कामयाब रहा।
प्यास तथा भूख कारण मेरा बुरा हाल था। मुझमें इतनी शक्ति भी नहीं बची थी कि मैं अपने पैरों पर खड़ा तक हो सकूं। बस किसी तरह अपने शरीर को घसीटता हुआ आगे बढ़ रहा था।
अफ़गानिस्तान के हिंदू कुश पर्वत के ऊंचे पहाड़ों और सिंधु नदी के रास्ते भारत पहुंचे।हमने बहुत लंबा सफर तय किया। रास्ता बहुत कठिनायों से भरा था। मीलों पैदल चलने ने पर कहीं-कहीं पीने का पानी मिलता था। स्थानीय कबीलाई जातियों से खाने का सामान खरीदते थे।
कपड़े लगभग फट गये थे। गरम हवाओं की लू के साथ जब रेत उड़ कर पूरे शरीर में घुस जाती थी। पैरो में कपड़े बांध कर चलने के कारण जगह-जगह से खून बहता। जख्म भर नहीं पाते। बहुत कष्टप्रद यात्रा थी। हमेशा लाठी टेक कर चल पाते।
हमेशा सिर तथा मुँह पर कपड़ा बांधना पड़ता। ताकि रेत से सर, आंखें, मुँह तथा नाक बची रहे। दिन बहुत गरम तथा रातें बहुत ठण्डी होती। कई बार हम लोग रात भर चलते तथा दिन में कहीं छाया मिलने पर आराम करते। जब कोई कुआं या पानी का स्रोत मिलता तब नहाते तथा जम कर पानी पीते।
पूरे चेहरे पर धूल जम गई। पसीने से लतफत चल रहा था। अनेकवार रोना फूट पड़ता। पीठ पर नाकावले वर्दाश्त बोझ लदा था। कई दिनों से भरपेट खाना ना कहने के कारण सारे वदन पर झुर्रियां पड़ गई थी। लगातार चलते रहने के कारण हड्डियां चटकने लगी थी।
इतना दर्द था की सहा नहीं जा रहा था। पांव में मिट्टी के मेल की तहै जम गई थी। सारे शरीर से पसीने तथा मेल की अजीब सी बदबू आने लगी थी। मैं जानवर की तरह घबराता हुआ चलता चला जा रहा था। हफता, गिरता, लरजता, ठोखरें खाता हुआ चला जा रहा था। लगातार फाकें हो रहे थे।
मैं सोचता की मेरा मालिक चार पैसों की खातिर इतना कष्ट क्यों उठा रहा है। पर शायद उसे अपने कुनवे का पेट भरने का ख्याल था। अपने गुनाहों की सजा भुगतने को यह सब कर रहा था। मुझे आदमी होने पर घिन आने लगी थी। रास्ते के राहगीर बहुत ही बुरी नजरों से हम गुलामों को देखते थे।
अब न तो अरसे से होठों पर हंसी आई थी। हमेशा उदासी घेरे रहती थी। ऐसे ही सुबह होती और शाम आ जाती। दिन पर दिन गुजरते रहे पर अभी मंजिल दूर थी। हम लोग बेवस थे। हमें हिन्दोस्तान पहुंचना ही था।
अंत में दो पहाड़ों के पास पहुंचे। उन पहाड़ों को एक पतली–सी घाटी ने बांटा हुआ था।खैबर दर्रा पर कर सिंध पहुँचने पर, सिंधु के तट पर रहने वाले भारतीय गैंडों को देखा।
सतलुज नदी को पार करने के बाद, बाबा की दरगाह पर श्रद्धांजलि अर्पित की। सरस्वती के राजपूत साम्राज्य से, हम दिल्ली पहुंचे। यह अभी तक देखे शहरों में सबसे खूबसूरत शहर था। समीर ने बताया कि यह यात्रा बहुत कष्ट दायक थीं। उसने डॉक्टर से पीने के लिए बार-बार पानी मांगा।
वह आधे घन्टे में अठारह गिलास पानी पी गया। वह लगातार अपने आप को रेगिस्तान में पैदल चलता पाता। तपती रेत, गर्म आँधियाँ, भूख प्यास कई दिनों की यात्रा थी।
दुनिया के कुल उत्पादन का एक चौथाई माल भारत में तैयार होता था। इसी वजह से इस मुल्क को सोने की चिड़िया कहा जाता था।
उसी दौरान घुमंतू अफगानी व्यापारियों को हिंद महासागर, मेसोपोटामिया, फ़ारस की खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया की व्यापारिक यात्राएँ करते हुए भारत की समृद्धि के बारे में पता चला। यह लोग उस समय सोने के बदले सामान लिया करते थे।
“इस समय भारत में मोहम्मद गोरी का गुलाम क़ुतबुद्दीन ऐबक लाहौर से शासन कर रहा था। वो दुनिया के सबसे दौलतमंद बादशाहों में से एक थे। दूसरी तरफ़ उसी दौर में अफगनिस्तान आपसी युद्ध से उबर रहा था। उसकी अर्थव्यवस्था खेतीबाड़ी पर निर्भर थी और दुनिया के कुल उत्पादन का बहुत काम माल वहां तैयार होता था।
वह दिल्ली दौरे पर आया था तो उसने एक लाख चांदी की मुद्रा दे कर मुझे खरीद कर लाहौर ले गया।” मैं "एक गुलाम का गुलाम" बन गया।
गुलामों का बाज़ार दिल्ली सल्तनत के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण, यद्यपि अंधकारमय, पहलू था। हालाँकि यह सब्जी बाज़ार की तरह निरंतर, हलचल भरे बाज़ार के अर्थ में "दैनिक" बाज़ार नहीं था।
दास बजार विभिन्न स्रोतों से दासों को बेचने के लिये लाया जाता था। युद्ध बंदीदासों का एक प्राथमिक स्रोत था। सैन्य अभियानों और विजयों के परिणामस्वरूप अक्सर बड़ी आबादी को गुलाम बनाया जाता था। जिसमें विजित क्षेत्रों के नागरिक भी शामिल थे। इन बंदियों को "लूट" माना जाता था और सुल्तान, रईसों और सैनिकों के बीच वितरित किया जाता था।
दासों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होता था। दासों में मध्य एशिया जैसे तुर्क, जिन्हें उनके सैन्य कौशल के लिए अत्यधिक महत्व दिया जाता था, जैसा कि इल्तुतमिश स्वयं था। फारस, अफ्रीका, मलय प्रायद्वीप और यहां तक कि चीन से आयात किया जाता था। बगदाद और गजनी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय दास व्यापार केंद्र थे, जहां से दासों को भारत लाया जाता था।
ऋण बंधन का कारण गरीबी और ऋण चुकाने में असमर्थता व्यक्तियों को खुद को या अपने परिवार के सदस्यों को गुलामी में बेचने के लिए मजबूर किया जाता था। श्रद्धांजलि और उपहार के रूप में दसों को लिया दिया जाता था। जागीरदार राजा और स्थानीय अधिकारी अक्सर सुल्तान और रईसों को श्रद्धांजलि या उपहार के रूप में दास, विशेष रूप से युवा और सुंदर महिलाओं को भेजते थे।
कभी-कभी, जो लोग करों का भुगतान करने में विफल रहते थे या कुछ अपराध करते थे, उन्हें सजा के तौर पर गुलाम बनाया जाता था। निराशाजनक परिस्थितियों में, व्यक्ति जीवित रहने के लिए स्वेच्छा से खुद को गुलामी में बेचते थे। दिल्ली और गजनी अपने बड़े पैमाने पर दास बाजारों के लिए प्रसिद्ध थे।
विशेष रूप से युद्ध से बड़ी संख्या में पकड़े गए दास, सामान्य बाजारों में बेचे जा सकते थे, जिससे कभी-कभी अधिकता हो जाती थी और कीमतों में गिरावट आती थी। अधिक मूल्यवान या विशिष्ट दासों जैसे कि सैन्य सेवा या हरम के लिए नियत, अमीर रईसों और अधिकारियों के बीच निजी निरीक्षण और बोली लगाना आम बात थी।
सुल्तान और उच्च पदस्थ रईस अक्सर अपने पसंदीदा गुलामों में से किसी एक को सीधे पेश करते थे। इस तरह इल्तुतमिश को आखिरकार गुरीद राजा की अनुमति से ऐबक ने खरीद लिया था। दिल्ली सल्तनत में गुलामी कई तरह की थी, जिसमें कुलीन सैन्य गुलामों से लेकर नीच काम करने वाले गुलाम शामिल थे।
उनका मूल्य कई कारकों पर निर्भर करता था। युवा, स्वस्थ शरीर वाले पुरुषों को सैन्य सेवा के लिए बहुत महत्व दिया जाता था। युवा और सुंदर महिलाओं को घरेलू सेवा, रखैल या मनोरंजन के लिए मांगा जाता था। बच्चों को भी बेचा जाता था। ताकत, स्वास्थ्य, अच्छा दिखना और समग्र शारीरिक फिटनेस कीमत के महत्वपूर्ण निर्धारक थे।
कुशल गुलाम, जैसे कारीगर, संगीतकार या प्रशासनिक प्रतिभा वाले, उच्च कीमत पर मिलते थे। तुर्क दास, विशेष रूप से मामलूक सैन्य दास, अपनी युद्धक क्षमताओं, वफ़ादारी विशेष रूप से अपने तत्काल स्वामी के प्रति और अनुशासन के लिए अत्यधिक बेशकीमती थे।
दास के इच्छित उपयोग ने उनकी कीमत को बहुत प्रभावित किया। भारी श्रम के लिए एक दास की कीमत एक उच्च प्रशिक्षित सैनिक या हरम के साथी की तुलना में अलग होगी।
खरीदार किसी भी अन्य वस्तु की तरह दासों का गहन निरीक्षण करेंगे। इसमें शारीरिक स्थिति की जाँच करना, कौशल का आकलन करना और कभी-कभी उनकी पृष्ठभूमि के बारे में पूछताछ करना भी शामिल होता था।
कीमतें मांग और दास की विशिष्ट विशेषताओं के आधार पर निर्धारित की जाती थीं। एक बार कीमत पर सहमति हो जाने के बाद, स्वामित्व का औपचारिक हस्तांतरण होता था।
गुलामी पूरे इस्लामी दुनिया में व्यापक थी और दिल्ली सल्तनत में एक गहरी जड़ जमाई हुई सामाजिक संस्था। जबकि दिल्ली सल्तनत को आम तौर पर "दास समाज" के बजाय "दासों वाला समाज" माना जाता है।
दासों का व्यापार एक लाभदायक व्यवसाय था, जो अर्थव्यवस्था में योगदान देता था। युद्धों से दासों की आमद भी अधिक आपूर्ति के कारण उनकी कीमतों में गिरावट का कारण बन सकती थी। कुलीन दास, विशेष रूप से मध्य एशिया के मामलुक, सल्तनत के प्रशासन और सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे, अक्सर अपार शक्ति के पदों पर पहुँचते थे, जैसा कि "दास वंश" मामलुक वंश में ही स्पष्ट है। जिसकी स्थापना ऐबक जैसे पूर्व दासों द्वारा की गई थी और इल्तुतमिश द्वारा समेकित की गई थी।
घाट-घाट का पानी
समीर लगातार बोलता जा रहा था। जैसे उसे अपनी कहानी खुद जानने की बहुत जल्दी हो।
"फिर क्या हुआ?" डॉक्टर की उत्सुकता भी बढ़ गई थी।
अस्मिता- मै सोच रही थी कि हम अपने बारे में कितना कम जानते है। हम अपनी जिन्दगी अजनबी के साथ सो कर बिता देते है।
समीर ने बताया "मैंने इतनी कम उम्र में इतना कुछ भोग लिया था।
मैंने घाट-घाट का पानी पिया। अपने मालिकों के लिए अच्छे बुरे सब तरह के काम किये। तमाम शहर धूम चुका था। जब मैं पिता के पास था, तो वो कहा करते थे कि गरीबी की जगह मौत सबसे बेहतर है। लेकिन मैंने उनकी बात कभी नहीं सुनी। अब में वयस्क हो गया था।
गुलाम के रूप में मेरे प्रारंभिक जीवन के कारण लचीलेपन, बुद्धिमत्ता और सैन्य कौशल के अंतर्निहित गुणों का प्रमाण था। अपने ही परिवार द्वारा गुलामी में बेचे जाने के आघात के बावजूद, उसने मध्ययुगीन दास बाजारों की जटिल और अक्सर क्रूर दुनिया को संभाला।
इल्बारी के मैदानों से बुखारा, गजनी और अंत में दिल्ली तक की उसकी यात्रा, कई स्वामियों के अधीन, एक ऐसे युवक को दर्शाती है जिसने अपने आस-पास के लोगों को लगातार प्रभावित किया।
अब मैंने अपनी किस्मत बदलने की ठानी। मुझे हमेशा मेरे अब्बा याद आते। उनकी बातें, उनका मुझ में भरोसा याद आता। मैंने तय किया कि मैं गुलाम बनने के लिये पैदा नहीं हुआ। मेरे अब्बू अपने कबीले के सरदार थे। मेरी रगों में उनका खून था। जिसको में लजा नहीं सकता था।
मैने जितना अपनी सफलताओं से नहीं सीखा उससे ज्यादा अपनी असफलताओं से सीखा। मुझे अभी तक कोई किरदार ऐसा नहीं मिला जिसमें कोई कमी ना हो। हर बेईमान आदमी को ईमानदार साथी ही चाहिये होता है।
मैंने हर मौके का फायदा उठाने की ठान ली। मैं अपने मालिक का बहुत बफादार रहा। बहुत मेहनत की। मुझे जल्दी ही ‘सर-ऐ-जोरदार’ का पद मिल गया।
यह मेरे सहस, योग्यता और नेतृत्व के गुणों का परिणाम था। इस पद का मतलब होता है अंगरक्षकों का प्रधान।"
“इस कामयाबी से मेरा उत्साह बढ़ गया और जल्दी ही मुझे ‘अमीर-ए-शिकार’ का पद दिया गया। जिसमें मैं दरबार में सुल्तान के लिए शिकार की व्यवस्था करने का प्रमुख था।”
समीर का चेहरा पहली बार ख़ुशी से भर गया।
डॉक्टर ने पूछा "फिर तुम कैसे अपने मालिक के और करीब आये?"
समीर की आवाज में खनक आ गई थी।
इल्तुतमिश बोला "अब में कुतबुद्दीन ऐबक के साथ हमेशा रहने लगा। उसने मेरी वीरता देख, मुझे ग्वालियर का किला जीतने की जवाबदारी दी। हिन्दोस्तान एक पवित्र धरती है। यहां जीवन बहुत आसान है। लोग भी बहुत भोले भाले है। अपने काम से काम रखते है। मिल जुल कर रहते है। यहीं यहाँ के शासक बहुत डरपोक, स्वार्थी तथा दम्भी है।
वे यदि चाहे तो आपस में सहयोग कर हम लोगों को आसानी से भगा सकते है। लेकिन उनमें फूट डाल कर उनकी सेनाओं को आपस में आसानी से लड़बा कर यहां वर्षों राज किया जा सकता है। और हम लोगों ने यही किया।
हमारी सेना में अधिकांश सैनिक स्थानीय थे। हथियार, धोड़े, हाथी, लड़ाई का असलाह यहीं का था। हमारी सेनाओं को रसद स्थानीय व्यापारी ही देते थे। लूटपाट करना। हत्या कर डरा देना। बेटियों तथा महिलाओं को लूट लेना बहुत आसान था। बदला लेना तो जैसे यह कौम जानती ही नहीं है।
तो मैंने जान की बाजी लगा कर वह किला जीत लिया। तब मुझे ग्वालियर का किलेदार नियुक्त किया गया। अब मेरा आत्मविश्वास लोट आया था। पहली बार मुझे अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा है।"
"इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। बुलंदशहर की जीत के बाद मुझे बुलंदशहर का ‘इक़्तेदार’ बना दिया गया। यह क्षेत्र पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के पास है। इसे पहले बरन के नाम से जाना जाता था और राजा अहिबरन ने यहाँ एक किला और मीनार बनवाया था। बाद में, इसे बुलंदशहर के नाम से जाना जाने लगा। जिसका अर्थ है "ऊंचा शहर।'
बुलंदशहर जिला गंगा और यमुना नदियों के बीच मेरठ के पास का क्षेत्र है। गंगा नदी पूर्व में इस को मुरादाबाद और बढ़ायू से अलग करती है और पश्चिम नदी यमुना में जिले को हरियाणा राज्य और दिल्ली से अलग करती है । जिले के उत्तर में गाजियाबाद और दक्षिण पूर्व में अलीगढ़ की सीमाएं हैं।
बदायूँ, दिल्ली सल्तनत का एक ऐतिहासिक शहर है, जिसका नाम पहले "वोदामयूता" था। यह पांचाल देश की राजधानी हुआ करता था। फिर सबसे महत्वपूर्ण सूबा बंदायू का सूबेदार बना दिया गया।
ऐबक ने तभी अपनी सबसे प्यारी बेटी से मेरा निकाह करवा दिया। इस्लामी शादी को निकाह कहा जाता है, जो एक कानूनी अनुबंध है जो वर और वधू के बीच शरिया के अनुसार बनाया जाता है।
यह एक धार्मिक समारोह नहीं है, बल्कि एक समझौते है जिसमें दोनों की सहमति, मेहर शादी के समय दुल्हन को दिया जाने वाला धन या संपत्ति, गवाह और एक वकालत करने वाला व्यक्ति शामिल कर निकाह होता है।
मेरे निकाह में बहुत सारी खूबसूरत और मजेदार और रस्में हुई। ये रस्मे तीन तरह की थी। निकाह से पहले की रस्में, निकाह की रस्में और निकाह के बाद की रस्में। मेरी शादी वास्तव में दुनिया की सबसे रोमांचक और शानदार शादियों में से एक थी समारोह को
दूल्हा-दुल्हन, उनके परिवारों और मेहमानों के लिए यादगार बनाने में ऐबक ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इन रस्मों में मुख्य रूप से सलात अल-इस्तिखारा, इमाम जामिन, मंगनी, मांझा समारोह, मेहंदी की रस्म, बारात, निकाह, मेहर, रुखसत तथा वालिमा की रस्में कई दिनों तक चलती रही थी। अब में उनका दामाद इल्तुतमिश हो गया था।"
"जल्दी ही मेरे ससुर अल्हा को प्यारे हो गये। कुतबुद्दीन ऐबक के शासन के अंतिम दौर में शासकों द्वारा जनता का ख़ून निचोड़कर जो धन संपदा एकत्र की जाती थी वह शाही परिवार की विलासिता में ख़र्च हो जाती थी। कुतबुद्दीन ऐबक के शहज़ादे, अपने आलस्य, निष्क्रियता, कायरता और विलासिता के लिए विख्यात थे। तब उनके बेटे आरामशाह को गद्दी पर बिठाया गया। लेकिन उनमें सल्तनत की उस दौर की चुनौतियों का सामना करने का साहस नहीं था।
तब ऐबक के सिपहसालार अमीर अली इस्माइल ने तुर्की सरदारों की सहमति से मुझे सुल्तान घोषित कर दिया। मैंने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।”
दिल्ली के वारे में मुझे एक कहानी बताई गई थी। दिल्ली के एक राजा हुए। उनसे मिलाने एक ऋषि आये। उन्होंने बताया की तुम्हारे राज्य की धरती पर एक कील इतनी गहराई तक गड़ी हुई है की बासुकी नाग के सर से टकराती है। राजा को कौतुहल हुआ। कील निकलवाई गई। कील की नोक पर खून लगा था।
राजा को ऋषि की पूरी बात याद आई कि कील जब तक धरती में गढ़ी है। तभी तक तुम्हारे वंश का शासन रहेगा। कील दुबारा धरती में गढ़वाई गई, लेकिन उसकी केबल नोंक ही धरती में गई। कील ढीली रह गई और इस तरह से पड़ा इस शहर का नाम, किल्ली से दिल्ली।
माना जाता है की महरौली में स्थित आयरन पिलर ही वह कील थी। महाभारत का इंद्रप्रस्थ आज का दिल्ली शहर ही है। जब मैं शासक बना तो अलीमर्दान खां ने बंगाल एवं बिहार को स्वतन्त्र घोषित कर दिया।
मोहम्मद दिल्ली सल्तनत पर अधिकार जाता सकता था। गोरी के गुलाम कुवाचा ने मुल्तान को स्वतन्त्र बना लिया। राजपूत राजाऔ ने कालिंजर, ग्वालियर, अजमेर और बयाना को स्वतन्त्र राज्य घोषित कर दिया।
मैने राजपूत शासकों का ततकाल विरोध इसलिये नहीं किया क्योंकि मैं उत्तर पश्चिम को बचने की लिये बहुत व्यस्त था। स्वारिस्म शाह गजनी में पुनः आ रहा था। इसे मुहम्मद गोरी ने हराया था। लेकिन मंगोलों द्वारा इस साम्राज्य को नष्ट कर दिया गया। मैने दिल्ली पर चंगेज खां के हमले को सफलता पूर्वक रोक दिया था।
क्योंकि जब चंगेज खां ने स्वारिस्म शाह को हराने के बाद उसके उत्तराधिकारी जलाउद्दीन मगबरानी का पीछा किया तो वह दिल्ली सल्तनत में शरण लेना चाहता था जो मैने नहीं दी।
यदि में मगबरानी को शरण देता तो ना तो मेरे पास इतनी सेना थी और इस समय मेरी साम्राज्य पर पकड़ भी नहीं थी। मैने दिल्ली को चंगेज खां के कहर से बचा लिया था। यदि चंगेज़ खां दिल्ली पर आक्रमण करता थो आप कल्पना कर सकते है कि कितना खून खराबा होता। मैने मुल्तान पर हमला कर कुबाचा को हरा दिया और उत्तर पश्चिम के खतरे को काम कर दिया।
मोहम्मद गोरी जो काम अधूरा छोड़ के गये थे वह सब काम मैने पूरे कर दिल्ली का सम्राज खड़ा कर दिया। उत्तरी भारत में भूतपूर्व ग़ुरीद क्षेत्रों पर शासन करने वाले मामलुक राजाओं में मैं तीसरा था तथा दिल्ली से शासन करने वाला पहला मुस्लिम शासक था। इस कारण मुझे दिल्ली सल्तनत का संस्थापक माना जाता है।
बगदाद के अब्बासिद खलीफा अल-मुस्तानसिर द्वारा मुझे 'सुल्तान-ए-आजम' मतलब महान शासक की उपाधि प्रदान की तथा सुल्तान की मान्यता दी। तथा प्रमाण पात्र दिया गया।
प्रत्येक शासक का एक व्यक्तिगत जीवन तथा दूसरा सार्वजनिक जीवन महत्वपूर्ण होता है।
"इल्तुतमिश" नाम का शाब्दिक अर्थ तुर्कि में "राज्य का रखवाला"
सुल्तान के रूप में मैं जानता था कि अकेले अपना काम नहीं कर सकता। इसलिए, मैने अपने इर्द-गिर्द वफादार और भरोसेमंद गुलामों का एक समूह बनाया। जिसे तुर्कान-ए-चिहालगानी चालीस तुर्की गुलाम अधिकारी कहा जाता था। ‘तुर्कान-ए-चिहालगानी’ जिसका मतलब है चालीस गुलाम सरदारों का गुट।
उन्हें अलग अलग सूबों का जागीरदार बना दिया। यह उन चालीस महत्वपूर्ण सरदारों का समूह था जिन्हें मैने वजीर जितने अधिकार दिये। उनका इस्तेमाल न केवल नए इलाकों को जीतने में किया जाता था, बल्कि उन्हें प्रशासनिक कार्य भी सौंपे जाते थे। यह सुल्तान के निजी आदेश पर एक तरह की छोटी लेकिन शक्तिशाली मशीनरी थी।
इस दल की सदस्यता कावलियात के आधार पर मिलती थी ना की उत्तराधिकार से। दिल्ली की गद्दी मेरे लिए ‘गुलाबों की सेज’ नहीं थी। ऐबक की मौत ने दिल्ली सल्तनत को असमंजस में डाल दिया था।
ये तुर्की अमीर रईस थे, जो सुल्तान को सल्तनत के प्रशासन में सलाह देते थे और मदद करते थे। यह कुलीन वर्ग खुद पर बहुत गर्व करता था। यह तुर्क और ताजिक दोनों ही तरह के स्वतंत्र अमीरों को अपने बराबर नहीं समझता था। रईसों के दूसरे समूह "चालीस" के सदस्यों की स्थिति और विशेषाधिकारों से ईर्ष्या करते थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बाद वाले अपने आंतरिक कलह से मुक्त थे।
अधिक से अधिक वे एक सिद्धांत पर एकजुट थे। जहाँ तक संभव हो सके, गैर-तुर्की व्यक्तियों के प्रवेश को रोकना। "चालीस" ने सुल्तान पर अपना राजनीतिक प्रभाव बनाए रखने की कोशिश की। जो इस समूह को अलग-थलग नहीं करना चाहता था। लेकिन साथ ही दूसरे समूहों के लोगों को अधिकारी के रूप में नियुक्त करने के अपने शाही विशेषाधिकार को नहीं छोड़ना चाहता था। इस प्रकार, मेरे द्वारा एक नाजुक संतुलन हासिल किया गया था।
आराम शाह के कमज़ोर और संक्षिप्त शासन ने तुर्की रईसों में विघटनकारी और विद्रोही प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया था। इसने भारत में नव-स्थापित तुर्की राज्य के विघटन को खतरे में डाल दिया था।
कुछ तुर्की रईस मेरे अधिकार को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। वे दिल्ली से बाहर चले गए और विद्रोह की तैयारी की। तब मैने दिल्ली से मार्च किया और विद्रोहियों को हराया।
ताजुद्दीन यलदोज कुतुबुद्दीन ऐबक के ससुर, जो अब गजनी के सुल्तान थे, ने मेरे सिंहासन पर बैठने के समय शाही छत्र और एक दरबाश डंडा भेजकर अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास किया।
एक चतुर कूटनीतिज्ञ के रूप में, मैने उन्हें स्वीकार कर लिया और इस प्रकार, अपनी अधीनता को मान्यता देने का दिखावा किया, लेकिन मैने कभी भी यलदोज को अपनी भारतीय संपत्ति पर अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं दी।
जागीरदार बिद्रोह न करे तथा सल्तनत को टैक्स मिलता रहे उसके लिए मैने अपने सम्राज्य को छोटे छोटे हिस्सों में बांट कर प्रशासन करने की लिये “इक्ता” प्रणाली शुरू की गई।
अपने बफादार तुर्क अमीरों को हर जागीरदार के साथ नियुक्त किया। यह जागीरदार के साथ मिलकर बिद्रोह न करे इसलिये इनके ट्रांसफर एक जगह से दूसरी जगह किये जाने की व्यवस्था की।
मेरे पहले राजपूतों के द्वारा चलाये सिक्कों से व्यापार होता था। मैने व्यापार बढाने तथा अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिये अपने
सिक्के टंका तथा जीतल के नाम से चलवाये। इससे व्यापार बहुत बढ़ गया। इस समय सिल्क रूट पर मंगोलों के आक्रमण के खतरों को कम करने के लिये मैंने जलाउद्दीन मंगबानी को शरण नहीं दी। पालोज तथा दुबाचा को पराजित कर सीमाऐं सुरक्षित की।
जिन राजपूत राजाओं ने तुर्की सल्तनत से स्वतन्त्र राज्य बना लिए थे जिन में चन्देलों का कलिंजर व अजयगढ़, प्रीतिहारो के ग्वालियर, नरवर तथा झाँसी, पृथ्वीराज के बेटे गोबिंद राज का रणथम्भौर तथा बदायूं, कन्नौज, बनारस, फर्रुखाबाद, तथा बरेली को फिर से तुर्को के अधीन किया। दिल्ली की प्रसिद्ध कुतुब मीनार मेरी ही देन है।"
रजिया सुल्तान
अपनी तबियत का मुयाना तथा सारी परिस्थितियों के बाद मैने शाह तुर्कान की दाबेदारी ठुकते हुए अपनी बेटी रजिया को सुल्तान बनाने का फैसला लिया।
मैंने उसे ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उसके नाम के सिक्कें जारी करवा दिये।
मुस्लिम परिवरिस में एक औरत को गद्दी का उत्तराधिकारी बनाना जोखिम भरा था। तुर्कान-ए-चहलगानी मेरे फैसले से इत्तफाक नहीं रखते थे।
उनके लिए किसी महिला के आगे सिर झुकना मौत के बरारबर था। रजिया की सौतेली माँ बेगम शाह तुर्कान को भी यह बात गवारा नहीं थी कि रजिया को बागडोर दी जाए।
“बहुत जल्दी मेरे बेटो तथा बेटी में सत्ता की जंग शुरू हो गई। अमीरों ने रजिया के स्त्री होने के नाते उसका विरोध किया।
तब मैंने उन्हें समझाया "मेरी मृत्यु के पश्चात् यह पता लग जायेगा कि मेरी पुत्री के अतिरिक्त मेरे पुत्रों में कोई भी शासक बनने के योग्य नहीं है।"
समय-समय पर उस मरते व्यास पण्डित के शब्द मेरे कानों में गुजते तथा उसकी आँखें मुझे घूरती। एक साल तक मैं बीमारी से जूझता रहा, लेकिन मेरी बीमारी ठीक नहीं हुई।
"जब मेरी मृत्यु का समय बिलकुल नजदीक आ गया तो मुझे मेरे बचपन से ले कर अभी तक की एक-एक घटना दिख गई। अंत में मैने अपने आप को महाकाल के मंदिर के प्रांगण में खड़ा पाया। जहां में एक निर्दोष, अबोध ब्राह्मण का अपने अहंकार के कारण वध कर रहा हूँ।
ब्राह्मण कह रहा है "यह कालों के काल महाकाल है यह तुम्हें, तुम्हारे परिवार तथा साम्राज्य को नष्ट कर देंगे।" उस समय मंदिर में शिव ताण्डव स्रोत का पाठ चल रहा था। डमरू, शंख्य घड़ियाल और नगाड़ें बज रहे थे। यह शब्द मेरे जीवन के अंतिम शब्द थे। जब मेरे प्राण पखेरू उड़ रहे थे।”
“मेरी मृत्यु दिल्ली में हुई थी, मेरी मौत के बाद दिल्ली के राजमहल में छल और षड्यन्त्रों का एक नया मौसम आ गया था।
जिस की शुरुआत की बेगम शाह तुर्कान ने। मुँह मांगीं कीमत दे कर तुर्कियों को खरीद कर। दोनों ने मिल कर अपनी शक्ति और अधिकारो का गलत इस्तेमाल करके।
रजिया को तख्त से दूर ले जा कर। रजिया को इस बात का पूरा अन्देशा हो चुका था। कि सत्ता के इस संधर्ष में उसके आस-पास के लोग किसी भी हद तक जा सकते है। ऐसे हालात में वह खुद पर काबू रखते हुए एक सही मौके के इंतजार में लग जाती है।
मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरी बेगम शाह तुर्कान ने प्रान्तीय इक्तेदारों और तुर्कान-ए-चहलगानी की मदद से मेरे दूसरे पुत्र रुकनुद्दीन फिरोज शाह को मेरी मृत्यु के अगले दिन सुल्तान घोषित कर दिया। रुकनुद्दीन फिरोज को उत्तराधिकारी बना गद्दी पर बैठा दिया।
बेगम शाह तुर्कान ने सोचा कि अपने बेटे के जरिए वे सल्तनत को नियंत्रण में ले सकती है।
अमीरों को नियंत्रित कर सकती है। दूसरी बेगमों को नीचा दिखा सकती है जिन्होंने पहले उनके साथ गलत व्यवहार किया था। बदला ले सकती है। सुल्तान बनते ही वह भोग विलास में फंस गया और उसकी माँ शाह तुर्कान अत्याचार करने लगी।
रुकनुद्दीन फिरोज एक नाकामयाब शासक सिध्द हुआ। आवाम तो उससे नाखुश थी ही तुर्कान-ए-चहलगानी माँ बेटे के तौर तरीकों से परेशान हो चुके थे। यह सब छह माह चला।
इसी बीच शाह तुर्कान ने रजिया के कत्ल का बीज बोया। जिस तरह शाह तुर्कान जुल्म कर रही थी और जैसे एक के बाद एक राजकुमार मारे जा रहे थे।
रजिया के सगे भाई कुतबुद्दीन को पहले अन्धा कर दिया गया। उसके बाद उसको मरवा दिया गया। तो इस हालत में रजिया सुल्तान को लगा कि अब यह जीने और मरने की लड़ाई है।
तो उन्होंने शाह तुर्कान के हर षड़यंत्र को विफल बनाया। और धीर-धीरे महल के अंदर जो हरम की राजनीति थी उसमें अपना वर्चस्य स्थापित करके शाह तुर्कान को कमजोर करना शुरू किया। रजिया ने इस समय अपनी राजनैतिक दक्षता से काम लिया।
पहले उसने भलीभांति यह समझा कि कौन-कौन उसके दुश्मन है तथा वे क्या चाले चल रहे है?
फिर उसने इन सभी दुशमनों को एक -एक कर निपटाया। और सत्ता तक जाने का रास्ता साफ किया। एक दिन जुमें की नमाज के समय जब दिल्ली के लोग इकठ्ठा हुए तो रजिया मस्जिद की छत से जनता से रूबरू होती है।
उसने लाल कपडे पहने थे। उसने अपने मुँह से नकाब हटा कर लोगों को अपने पिता इल्तुमिश का फैसला याद दिलाया और गुजारिश की
"क्यों न कुछ वक्त के लिए उसे गद्दी पर बैठा कर उसकी काबिलियत का इंतहान लिया जाय। अगर वह मर्दों से बेहतर हुकूमत करें तो ठीक है नहीं तो तो उसका सर काट लिया जाए। आवाम जिसे बेहतर समझे सल्तनत उसके हवाले कर दी जाय।"
मस्जिद में जा कर जनता से अपील करना। इस हालात में जब आप के सिर पर तलवार लटक रही हों। आप के भाई को अंधा करा दिया गया हों। आप के दूसरे भाई बहिनों और माताओं को मारा जा रहा हो।
किस तरह की हिम्मत चाहिए होगी? और आत्मविश्वास कि जनता आप की सुनेगी। और आप इस पूरे मरहलें से कामयाब हो कर निकलेगें।
अपने आप में एक भर बड़ी चुनौती थी। जिसमें वह कामयाब हो कर निकली। रजिया का यह भाषण इतना प्रभावशाली था कि लोग क्रान्ति करने की लिये राजी हो गये। तब अमीरों तथा सरदारों ने मिलकर रजिया को सुल्तान घोषित किया।
जनता ने रजिया को सत्ता सौप दी। एक लम्बें संधर्ष के बाद जिस दिन रजिया गद्दी पर बैठी, मेरा ख्वाब पूरा हुआ। रज़िया ने दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर आधिकारिक रूप से कब्जा किया।
दिल्ली सल्तनत के इतिहास में रजिया सुल्तान एक उल्लेखनीय हस्ती थीं, न केवल एकमात्र महिला शासक होने के कारण बल्कि अपने मजबूत व्यक्तित्व और नेतृत्व के प्रति अपरंपरागत दृष्टिकोण के कारण भी। जबकि वह "सुंदरता" के साथ-साथ दुर्जेय चरित्र और शारीरिक कौशल में माहिर महिला थी।
उसने अपने नये नाम रजिया उद्दीन के सिक्के जारी करवाए। रजिया मेरी बच्ची मध्यकाल में अकेली नारी थी जिसने बहुत बड़ा निर्णय लिया कि वह हरम की राजनीति से निकल कर सेना और युद्ध भूमि की राजनीति करेगी।
उसने सुंदरता को उजागर कर आम जनता को मोहित कर लिया था। रजिया ने पारंपरिक पर्दा घूंघट और महिला पोशाक त्यागने का एक सचेत और साहसिक निर्णय लिया। वह सार्वजनिक रूप से काबा अंगरखा और कुलाह टोपी/सिर पर पहना जाने वाला कपड़ा पहनकर दिखाई देती थी। जो पुरुष शासकों द्वारा पहना जाने वाला कपड़ा होता था। वह पतलून भी पहनती थी और तलवार रखती थी।
यह उसके समय में एक क्रांतिकारी कार्य था। जो उसके अधिकार के दावे और रानी की तरह नहीं बल्कि राजा की तरह शासन करने के उसके दृढ़ संकल्प को दर्शाता था। पोशाक का यह विकल्प, पारंपरिक अर्थों में "सुंदरता" की बात नहीं करता है, लेकिन निश्चित रूप से शक्ति, आत्मविश्वास और शायद एक आकर्षक, अपरंपरागत उपस्थिति की छवि पेश करता है।
रजिया में सुल्तान की सभी खूबियां थी। वह न्याय प्रिय थी। जनता से इंसाफ करती थी। बहुत बहादुर थी। हर तरह के सैन्य अभियान हो या राजनीतिक परिस्थितियां सब जगह प्रभावी ढंग से काम करती थी। बहुत होशियार थी।
वह प्रसिद्ध रूप से एक हाथी पर सवार होकर युद्ध में जाती थी, अपनी सेना के साथ, अपना चेहरा खुला रखती थी। साहस और सैन्य नेतृत्व का यह प्रदर्शन एक शक्तिशाली और प्रभावशाली दृश्य के रूप में देखा जाता था, जिसने उसके सैनिकों और प्रजा से सम्मान और प्रशंसा प्राप्त करती थी।
केवल एक ही समस्या थी कि वह औरत थी। तुर्कान-ए-चहलगानी ने जनता के दबाब में रजिया का समर्थन कर तो दिया था पर वह इस बात से अभी भी परेशान थे कि एक औरत उन पर हुकुम कर रही है।
वह दिल्ली की सल्तनत अपनी तरह से चलना चाहते थे मग़र रजिया की सोच से अनजान थे।
उसका करिश्मा और उपस्थिति उनकी बुद्धिमत्ता, न्याय, उदारता और "युद्ध जैसी प्रतिभा" में झलकती थी। पिता ने स्पष्ट रूप से प्रभावशाली उपस्थिति और बौद्धिक असाधारण क्षमताओं को बहुत पहले ही पहचान लिया था। अपने समय की कई राजकुमारियों के विपरीत, जो हरम तक ही सीमित थीं और केवल घरेलू कलाओं में प्रशिक्षित थीं। रजिया को अपने भाइयों के बराबर शिक्षा और प्रशिक्षण मिला।
उसे घुड़सवारी, तीरंदाजी, मार्शल आर्ट, कूटनीति और राज्य प्रशासन सिखाया गया था। इस परवरिश ने उसके व्यक्तित्व को गहराई से आकार दिया, जिससे वह निडर, हठी और शासन में निपुण बन गई। हरम की महिलाओं के साथ उसका संपर्क सीमित था, जिसका मतलब था कि वह मुस्लिम समाज में महिलाओं से अपेक्षित पारंपरिक विनम्र व्यवहार के लिए तैयार नहीं थी।
सुल्तान बनने से पहले भी, रजिया अपने पिता के शासनकाल के दौरान राज्य के मामलों में गहराई से शामिल थीं। जब उसके पिता अभियानों के लिए दिल्ली से बाहर जाते थे, तो वह अक्सर रजिया को प्रभार सौप देता था, और वह प्रशासन को लगन से संभालती थी। जिससे उसके पिता बहुत प्रभावित होते थे।
"सुल्ताना" की उपाधि से इनकार कर "सुल्तान" के रूप में संबोधित किए जाने पर जोर दिया। न कि "सुल्ताना" जिसका अर्थ था सुल्तान की पत्नी या पत्नी। जिससे एक स्वतंत्र और वैध सम्राट के रूप में उनकी आत्म-धारणा पर और अधिक जोर दिया गया। उन्होंने अपने नाम से सिक्के भी जारी किए, जिसमें उन्होंने खुद को "महिलाओं का स्तंभ, समय की रानी, शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की बेटी सुल्तान रजिया" घोषित किया।
रज़िया ने मेरे शासनकाल में विद्या प्राप्त की और शास्त्रों, सैन्य और शासन की शिक्षा ली। वे एक साहसी और न्यायप्रिय सुल्तान रहीं। रज़िया को उनकी साहसपूर्णता और न्यायप्रियता के लिए याद किया जाता है। और बहुत जल्दी रजिया को एक बात समझ में आ गई कि यदि उन्हें एक शख्त शासक की तरह काम करना है तो उन्हें तुर्कान-ए-चहलगानी की ताकत को तोड़ना पड़ेगा।
उनका निजी जीवन शासन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से जुड़ा हुआ था। वह एक कुशल और न्यायप्रिय शासक साबित हुईं। उन्होंने कानून और व्यवस्था स्थापित की, व्यापार में सुधार किया।
सड़कें बनवाईं। कुएं खोदे और स्कूलों। अकादमियों और सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना करके शिक्षा को बढ़ावा दिया। जिसने विभिन्न विज्ञानों, दर्शन और साहित्य इस्लामी और हिंदू दोनों कार्यों सहित के अध्ययन को प्रोत्साहित किया। उन्होंने धार्मिक सद्भाव और समावेशिता की वकालत करते हुए जजिया कर गैर-मुसलमानों पर कर को भी समाप्त कर दिया।
और उन्होंने सल्तनत के उच्चे पदों पर गैर तुर्कियों को नियुक्त करना शुरू किया। और इसके सबसे बड़ा उदाहरण थे जलाउद्दीन याकूत। तुर्कान-ए-चहलगानी का गुस्सा सब हदों को पार कर चुका था।
वो पहले ही एक औरत के सुल्तान बनने से नाखुश थे और अब गैर तुर्कियों के शासन में शामिल किये जाने पर उनके सब्र का बांध टूटता नजर आया।
वह यह अच्छी तरह समझ गये थे कि रजिया उनके इशारों पर नाचने वाली कठपुतली नहीं थी। रजिया को बढ़ती लोकप्रियता को काम करने की लिये तुर्कान-ए-चहलगानी के पुरषों ने वही किया जो वह हमेशा महिला से हारने पर करते है। उन्होंने जलाउद्दीन याकूत से सम्बन्धों पर सवाल खड़े करना शुरू कर दिये थे।
जमाल उद-दीन याकूत के साथ उनके सबंधों के कारण उनके निजी जीवन का यह पहलू सबसे विवादास्पद और अक्सर सनसनीखेज रहा। याकूत एक एबिसिनियन इथियोपियाई सिद्दी गुलाम था जिसे रजिया ने अमीर-ए-अखुर शाही अस्तबल का अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया था। जो एक अत्यधिक प्रतिष्ठित पद था। जो आमतौर पर तुर्किक रईसों के लिए आरक्षित होता था।
इस नियुक्ति के साथ-साथ उनके बीच एक रोमांटिक रिश्ते की अफवाहों ने शक्तिशाली तुर्किक कुलीन वर्ग को बहुत नाराज कर दिया। जिन्होंने इसे अपमान और अपने अधिकार के लिए चुनौती के रूप में देखा। जबकि ऐ यह एक प्रेम संबंध था, अन्य विश्वास और सौहार्द का एक मजबूत बंधन। इसने निश्चित रूप से उसके खिलाफ साजिश को बढ़ावा दिया।
हलाकि याकूब को बहुत जल्दी-जल्दी अनेक पदोन्नति दी गई। जो रजिया से उनकी निकटता का उदाहरण था। रजिया के चरित्र पर आक्षेप लगाना तो तुर्कान-ए-चहलगानी की पहली कड़ी थी।
असली उद्देश्य तो रजिया से हमेशा के लिये छुटकारा पाना था। और उसकी योजना बनानी उन्होंने शुरू करदी थी। अब देखना यह था की तख्त की इस लड़ाई में किस्मत को क्या मंजूर था?
रजिया को तख्त से हटाने का फैसला हो चुका था। और इस फैसले को अमल में लेन की लिये तुर्कान-ए-चहलगानी का पहला कदम था कि रजिया को दिल्ली से दूर किया जाय।
तो इन लोगों ने एक क्रम से विद्रोह करना शुरू किया। उन की योजना थी कि रजिया एक विद्रोह को दबाएगी तो दूसरा करेगा, फिर तीसरा और चौथा। पहला विद्रोह भटिण्डा के इक्तेदार अल्तुनियां ने किया।
रजिया इसी विदोह को कुचलने की लिए दिल्ली से भटिण्डा की ओर कूच करती है। इस लड़ाई में याकूब मारा जाता है। और बहुत ही नाटकीय दंग से रजिया सुल्तान को बंदी बना लिया जाता है।
दिल्ली में तुर्कान-ए-चहलगानी अपनी गतिविधियां और सक्रिय कर रहे थे।
दुर्भाग्य से उस समय जो सत्ता संतुलन था वह तुर्कान-ए-चहलगानी के पक्ष में चला गया था। और वह भारी पड़ रहे थे। उन्होंने रजिया के ही एक भाई बहराम शाह को सुल्तान नियुक्त था।
आखिरकार तुर्कियों की चाल रजिया समझ जाती है और उसी वक्त फैसला करती है कि उसे किसी भी हाल में दिल्ली पहुंचना है।
उसने अपनी राजनैतिक परिपक्वता से यह समझ लिया था कि यदि वे भटिण्डा के इक्तेदार अल्तुनियां को अपने पक्ष में कर ले तो वह दिल्ली में पनपते हालात से अच्छी तरह निपट सकती है। रजिया अल्तुनियां को विवाह का प्रस्ताव देती है। जो वह मंजूर कर लेता है।
भटिंडा के गवर्नर मलिक इख्तियार-उद-दीन अल्तुनिया द्वारा पकड़े जाने के बाद रजिया ने रणनीतिक रूप से उससे शादी कर ली। यह विवाह संभवत एक प्रेम विवाह के बजाय उसके सिंहासन को पुनः प्राप्त करने के उद्देश्य से एक राजनीतिक गठबंधन था।
फिर वह अल्तुनियां को लेकर दिल्ली की तरफ कूच करती है। अंततः जब दोनों सेनाओं का आमना-सामना हुआ तो रजिया की सेना का एक बड़ा भाग उनसे छल कर दुश्मन की सेना से जा मिला। उनके पास बहुत कम सैनिक बची तब रजिया तथा अल्तुनियां अपनी जान बचने के लिये वहां से पलायन करते है। जंग से भागने में रजिया कामयाब तो रही पर उसके दिमाग में दिल्ली वापिस जाने का जूनून सवार था।
और यही बजह उसे दिल्ली का रुख करने पर मजबूर करती है। लेकिन दिल्ली का यह सफर रजिया की जिंदगी का आखिरी सफर था। वे अंततः एक साथ दिल्ली पर चढ़े, लेकिन पराजित हो गए।
कैथल में रजिया को कैद कर लिया जाता है। और उसके हत्यारे बहुत बेरहमी से उन्हें मौत के घाट उतार देते है और वे दुखद रूप से मारे गए। रजिया भारतीय इतिहास में महिला सुल्तान के रूप में महत्वपूर्ण स्थान पर हैं।
इस पूरे खेल में मेरी गलती यह थी कि मेने जिस तुर्कान-ए-चहलगानी को बनाया था उन्होंने ही सत्ता की लालच में मेरे बच्चों को मार डाला। तुर्कान-ए-चहलगानी केवल रजिया की मौत से ही सन्तुष्ट नहीं होते है।
वे बहराम शाह को भी मार देते है। जिन तुर्कान-ए-चहलगानी ने मेरे परिवार को कदम-कदम पर धोखा दिया उनके पापों का घड़ा भर चूका था।
तुर्कान-ए-चहलगानी ने फिर बलबन को सुल्तान बनाया। जब बलबन सुल्तान बनते है तो वह खुद तुर्कान-ए-चहलगानी थे वो उनकी चालों को जनता है।
जैसे लोहा लोहे को काटता है उसी तरह तख्त पर बैठते ही तुर्कान-ए-चहलगानी पर नकेल कसी। और एक-एक कर उन्हें खत्म कर दिया।
एक ऐसा सुल्तान जिसने रिवाजों की परवाह ना करते हुए अपनी बेटी को उत्तरधिकारी बनाया। और उसे राज्य चलाने का हुनर सिखाया। उलेमाओं की बात नहीं मानी।
जहां इस काल में सारी दुनियां पर केवल पुरुष राज करते थे मैने अपनी पुत्री को अपना वारिस बनाया। दिल्ली सल्तनत के तख़्त पर बैठने के लिए रजिया ने तब पहली बार तलवार उठाई। और सारे राजनीतिक समीकरण पटल के रख दिये।
मर्दों को खुलेआम चुनौती दे कर। उसने अपनी काबिलियत से सुल्तान की पदवी ग्रहण की। और बन गई रजिया सुल्तान। रजिया की पैदाइस ऐसे समय में हुई जब महिलाओं को राजनीतिक दखलंदाजी करने की इजाजत नहीं थी। तख़्त पर बैठना तो बहुत दूर की बात थी।
पर में अलग तरह का पिता था। जब यह नन्हा सा चिराग मेरे घर में पैदा हुआ। तब मैने अपने बाकि पुत्रों तथा रजिया में भेदभाव से नहीं पाला। रजिया को भी सभी तालीम व शिक्षा दी गई जो एक शहजादे को दी जनि चाहिए। मैं बेटा तथा बेटी में भेदभाव नहीं करता था।
मेरी यह कहानी है तख़्त से ताबूत की।
बदलाव के साथ-साथ बदले की। मेरे जीवन में तख़्त के संघर्ष की एक ऐसी शृंखला देखने को मिली जिसमें करो या मरो की नीति नहीं बल्कि मारो या मरो की नीति थी।
मैंने अपने मकबरे का निर्माण करवाया था। जिस पर कुरान सरीफ की आयतों को खुदवाया था। कुरान सरीफ की पवित्र आयतें भी मेरी कब्र की छत को ब्राम्हण के श्राप से नहीं बचा सकी। आज भी मेरा मकबरा बिना छत का है।
ऐसा नहीं है कि छत बनाई नहीं गई थी। छत बनाई गई थी, लेकिन वह टिक नहीं पाई। कुछ सालों बाद फिर से इस मकबरे की छत बनाई गई, लेकिन वह फिर गिर गई।
तब मुझे बिना छत के मकबरे, कुतुब कॉम्प्लेक्स, मेहरौली, दिल्ली में दफनाया गया,” लेकिन महाकाल के प्रागण में दिए श्राप ने मेरे परिवार तथा सम्राज्य को नष्ट कर ही दिया। व्यास पण्डित द्वारा महाकाल के नाम पर दिया श्राप फल गया।
यह बहुत लम्बा सेशन था इस लिए अब डॉक्टर ने सेशन समाप्त करने का निर्णय किया और कहा
“अब आप को वह शरीर छोड़ कर इस शरीर में अगले दस सेकंड में वापस आना है। आप धीरे-धीरे आखें खोलेंगे और अपने आप को उन यादों से मुक्त पायगे।”
धीरे-धीरे डॉक्टर समीर को ट्रेंच से बाहर ले कर आ गई। इतना कह कर समीर निढाल हो कर जग गया। समीर की आखों से अश्रु धारा लगातार बहुत देर तक बहती रही।
अस्मिता- मैं उसके अश्रु पोछने उठी तो डॉक्टर ने मना कर दिया। समीर ने अपने गले में पहने भगवान शिव के लॉकिट को शृद्धा से चूम लिया।
अस्मिता- डॉक्टर ने समीर को एक सुरक्षा कवच दिया। उसने अपने हाथ में पहनी रूद्राक्ष की माला जोर से पकड़ ली। हम लोग शाम को भगवान शिव के मंदिर गये। पूजा की प्रसाद लिया और फिर सुरक्षा कवच पहनने के लिये हम ने एक सोने की चेन खरीदी।
अस्मिता- मैंने वह सुरक्षा कवच समीर के गले में पहना दिया। समीर के मन से बहुत बड़ा बोझ उतर गया। वह बहुत हल्का महसूस कर रहा है। हम लोग रात का खाना खाने होटल की लॉबी में गये। बहुत साल बाद समीर खुश था।
मोक्ष
अस्मिता- आज हम लोगों को डॉक्टर ने अंतिम वार मिलने के लिये बुलाया। हम लोग सुबह से ही डॉक्टर से मिलने के लिये उत्सुक थे। समीर ने डॉक्टर से पूछा कि "मैं अपने इस पूर्व जन्म के अपराध बोध से कैसे मुक्त हो सकता हूँ?"
समीर की उत्सुकता बढ़ती देख कर डॉक्टर ने उसे यात्रा उपचार प्रक्रिया के सम्बन्ध में बताना शुरू किया "मैंने इस उपचार प्रक्रिया को गहराई से समझा है। शरीर में उपचार की जन्मजात शक्ति होती है। अगर सही दृष्टिकोण और इरादे के साथ इसका उपयोग किया जाए तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। तकनीक सरल है और इसके लिए बहुत विस्तृत प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं है। विधि खुली और प्रत्यक्ष है।"
"तो अब मुझे क्या करना होगा ?" समीर ने पूछा।
कुछ क्षण चुप रहने के बाद डॉक्टर ने कहना शुरू किया
"अब इस पहचाने गए अपराध बोध को प्रकट करने के लिए तुम्हें उज्जैन जाना होगा।”
"इससे क्या होगा ?" मैंने डॉक्टर की और उत्सुकता से देखा।
“इससे समीर के कई जन्मों तक फैले हानिकारक प्रभावों को हल करने के लिए अतीत के विषय तथा उनके प्रतिनिधियों का सामना करने और अतीत की वास्तविक वास्तविकता को स्वीकार करने से "मूल पाप" का अंत होगा।” डॉक्टर ने पूरे आत्मविश्वास से कहा।
“इससे तुम्हें बहुत राहत मिल सकती हैं। तुम जो पूर्व जन्मों के इल्तुतमिश के पापों का क्रॉस ढो रहे हो, उस दोष से तुम्हारी आत्मा मुक्त हो सकती हैं।" डॉक्टर ने समीर की ओर देख आकर कहा।
समीर ने शंकालु हो कर पूछा- "आप का मोक्ष से क्या मतलब है?”
डॉक्टर ने बताया- “हिंदू धर्म में जिसे मोक्ष, विमोक्ष, विमुक्ति और मुक्ति कहा जाता है। उसके लिए जैन, बौद्ध, और सिख धर्म में मुक्ति, निर्वाण या रिहाई शब्द है। यह संसार, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति को स्पष्ट करता है।
ज्ञानमीमांसा और मनोवैज्ञानिक अर्थों में, मोक्ष अज्ञानता से मुक्ति है आत्म-साक्षात्कार और आत्म-ज्ञान।” हिंदू परंपराओं में, अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष को पुरुषार्थ कहा जाता है । यह एक केंद्रीय अवधारणा है और मानव जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।
वेदांत में मोक्ष, जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति है। जो पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा प्राप्त होती है। मोक्ष, सुख-दुख और मोह से मुक्ति है, यह एक ऐसी अवस्था है जो शब्दों से परे है। धर्म की अवधारणा की तुलना में मोक्ष की अवधारणा प्राचीन भारतीय साहित्य में बहुत बाद में दिखाई देती है।
प्राचीन संस्कृत श्लोकों और प्रारंभिक उपनिषदों में सबसे पहले दिखाई देने वाली आद्य अवधारणा ‘मुच्यते’ है, जिसका अर्थ है "मुक्त" या "मोक्ष"।
श्वेताश्वतर और मैत्री जैसे मध्य और बाद के उपनिषदों में, मोक्ष शब्द दिखाई देता है और एक महत्वपूर्ण अवधारणा बनना शुरू होती है।
कठ उपनिषद, संसार और मोक्ष के बारे में सबसे शुरुआती व्याख्याओं में से एक है। कथा में, बालक नचिकेता पूछता है “दुःख का कारण क्या है?”
यम बताते हैं कि- “दुख और संसार उस जीवन से उत्पन्न होते हैं। जो बिना सोचे-समझे, अशुद्धता के साथ, बिना बुद्धि के उपयोग के और न ही आत्म-परीक्षण के साथ जिया जाता है। जहाँ न तो मन और न ही इंद्रियाँ किसी की आत्मा, स्वयं द्वारा निर्देशित होती हैं।”
नचिकेता मृत्यु के देवता यम से पूछता है- “मुक्ति की ओर क्या ले जाता है।”
यम बताते हैं- “मुक्ति आंतरिक शुद्धता, सतर्क मन, बुद्धि, कारण, बुद्धि, सर्वोच्च आत्मा पुरुष की प्राप्ति के साथ जीए गए जीवन से आती है ।”
कठ उपनिषद का दावा है कि ज्ञान मुक्ति देता है। ज्ञान ही स्वतंत्रता है। कठ उपनिषद व्यक्तिगत मुक्ति, मोक्ष में योग की भूमिका की भी व्याख्या करता है। यह वार्तालाप हम लोगों के बीच बहुत लम्बा चला। डॉक्टर ने हम लगो की लगभग सभी शंकाओं का समाधान करने की कोशिश की।
“अब तुमने अपने पिछले जन्म को देख लिया है। तुम यह भी जान गये हो कि तुम्हारे दुःख का कारण महाकाल मन्दिर को नष्ट करने तथा ब्रम्ह हत्या करने का जो अपराधबोध अवचेतन मन में दबा था वह प्रगट हो गया है। अब तुम्हें वह स्वप्न परेशान नहीं करेगा। लेकिन तुम्हारी शिव भक्ति बनी रहेगी।” डॉक्टर ने बताया।
डॉक्टर ने समीर से पूछा- “कभी उज्जैन गये हो?”
समीर ने बताया- “वह अपने पिता के साथ ग्यारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर चुका है लेकिन उज्जैन नहीं गया।”
अस्मिता- तब डॉक्टर ने उसे उज्जैन जाने का निर्देश दिया। हम लोग दिल्ली वापिस आ गये। घर में हम दोनों के परिवार एकत्र हुये। समीर ने अपनी पूरी कहानी सब को सुनाई। हम सब लोगों ने उज्जैन जाने का प्रोग्राम बनाया।
तब समीर के कहा- “इस बार केवल हम दोनों ही जायेगे।”
तो सभी लोग मान गये। हम लोग अगले रविवार सुबह की फ्लाइट से इंदौर गये। फिर वहां से टैक्सी ले कर उज्जैन पहुंच गये।
हम ने क्षिप्रा होटल में कमरा बुक किया था। हम लोगों ने चेक इन किया फिर कमरे में आ गये।
अस्मिता- उज्जैन शहर में प्रवेश करते ही समीर टैक्सी से बाहर देख रहा था। वह पूरे रास्ते बहुत चुपचाप बाहर देख रहा था। जैसे वह आसपास की जगहों को पहचानने की कोशिश कर रहा हो। मैंने उससे जब इस बारे में पूछा तो वह चुप ही रहा। पर मुझे उसकी आखों में दर्द व बेवसी की झलक दिखाई दी। तो मैं भी चुप रही।
अस्मिता- उज्जैन आते ही मैंने समीर का जो चेहरा देखा वैसा कभी नहीं देखा था। समीर ने उज्जैन आते समय ही मुझे आगाह कर दिया था कि मै उज्जैन में चुप रहूँगी और किसी को कोई बात नहीं बताऊगी। मैंने उसे वचन दिया कि मै ऐसा ही करुगी।
समीर के पिताजी के एक दोस्त ने उज्जैन के व्यास परिवार से सम्पर्क कर समीर को उज्जैन में सभी तरह के अनुष्ठान करने के लिये तैयार किया था।
हम लोगों ने शाम को ही उन्हें अपने उज्जैन आ जाने की सूचना दे दी थी। उन्होंने हम दोनों को सुबह छः बजे रामघाट पर मिलने के लिये बुलाया।
अस्मिता- सुबह हम लोग रामघाट नियत समय पर पहुंच गये। समीर व्यास जी को देखते ही जैसे पहचान गया। लेकिन वह तत्काल उन्हें प्रणाम करने नीचे झुका तो सीधे उनके चरणों में लेट कर चरण बन्दना करने लगा।
हम दोनों समीर के यकायक इस व्यहार से चौक गये। मैं चुप रही। व्यास जी ने उसे उठाते हुए ‘सदैव खुश रहो’ का आशीर्वाद दिया।
हम लोग एक छोटे मंदिर के सामने बिछे आसनों पर बैठ गये। व्यास जी के साथ आये उनके सहायक ने आसन बिछाये थे।
अस्मिता- कुछ देर हम लोगों के बीच सन्नाटा पसरा रहा। सुबह के सूरज की लालिमा की छाया नदी के पानी पर सुनहरी पेन्टिंग जैसी लग रही थी। शीतल हवा चल रही थी। मोक्षदायिनी और उत्तरवाहिनी शिप्रा के तट पर श्राद्ध पक्ष ही नहीं बल्कि आम दिनों में भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु तर्पण और कर्मकांड के लिए आते हैं।
चारों और श्राद्ध पूजन शुरू होने के कारण विभिन्न तरह की सुगन्ध वातावरण में फैल रही थी। पूजन के लिए शंख, घंटियां बज रहीं थी।
पुजारियों द्वारा मंत्रोचार की ध्वनियाँ घाट की पवित्रता को बढ़ा रही थी। बीच -बीच में आस पास के मंदिरों से भजन पूजन की आवाजें आ रही थी।
अस्मिता- मैंने अपनी जिंदगी में इतना पवित्र, सुरम्य तथा मनोहारी दृश्य कभी नहीं देखा था। मुझे यहाँ आ कर अहसास हुआ कि उज्जैन को मोक्षदायनी क्यों कहा जाता है।
समीर आँखें नीचे किये बैठा था। ख़ामोशी का अहसास होते ही उसने व्यास जी से पूछा कि "क्षिप्रा इतनी पवित्र नदी क्यों मानी जाती है, इस जगह का नाम राम घाट क्यों है? तथा यहां इतने लोग पिंडदान क्यों कर रहे है ?"
एक साथ इतने प्रश्न सुन कर व्यास जी ने पहली बार समीर की ओर भर नजर देखा। जब उन दोनों की आंखें मिली तो एक बिजली सी दोनों की आँखों में कोद गई। समीर ने तत्काल सिर झुका लिया।
व्यास जी ने गला साफ करते हुए कहा- “शिप्रा नदी को भगवान महाकाल की गंगा के रूप में जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव की तर्जनी से प्रकट हुई है। रामघाट शिप्रा नदी के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध घाट है। किवदंती है कि भगवान राम ने अपने माता-पिता के लिए रामघाट पर पिंडदान किया था। इसी वजह से इस जगह का नाम रामघाट पड़ा।”
व्यास जी पूजा की तैयारी के लिये उनके सहायक को निर्देश देने लगे। समीर ने पहली बार मेरी ओर देखा तथा आँखों से कुछ कहना चाहा। लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आया। तो वह दूसरी ओर देखने लगा।
समीर ने व्यास जी से पूछा- "पिंड दान क्यों किया जाता है ?"
व्यास जी ने पूजा की तैयारी करते करते कहा- "जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति हर आत्मा का लक्ष्य है। हिंदू का धार्मिक दायित्व है कि वे अपने प्रियजनों की आत्माओं को मुक्ति प्राप्त करने में मदद करने के लिए पिंड दान किया जाता है।
भेंट के रूप में उपयोग किए जाने वाले सात पिंडों में से एक को विशेष रूप से प्रिय दिवंगत प्रियजन की आत्मा को अर्पित किया जाता है।
बाकी को अन्य पूर्वजों की आत्माओं को अर्पित किया जाता है। पिंड चावल, जई और गेहूं के आटे से बना एक गोला होता है। जिसमें दूध और शहद मिलाया जाता है। हिंदू अनुयायियों के लिए पिंड दान एक धार्मिक दायित्व है।
प्राणी के मोक्ष के लिए उज्जैन के राम घाट पर पिंड दान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं आत्मा-परमात्मा में विलीन होती है। बैकुंठ में वास होता है। जन्म जन्मांतर के फेर से मुक्ति प्राप्त होती है। अपने ऐतिहासिक विकास में, मोक्ष की अवधारणा तीन रूपों में प्रकट होती है: वैदिक, योगिक और भक्ति।"
"क्या इस जीवन में मोक्ष मिलना सम्भव है ?" समीर ने प्रश्न किया।
व्यास जी बोले- "हिंदू धर्म के सांख्य, योग और वेदांत स्कूलों में, किसी व्यक्ति के जीवन में प्राप्त मुक्ति और स्वतंत्रता को जीवनमुक्ति कहा जाता है। जिस व्यक्ति ने इस अवस्था का अनुभव किया है उसे जीवनमुक्त आत्म-साक्षात्कार प्राप्त व्यक्ति कहा जाता है।”
"क्या इस अवधारणा का उल्लेख सनातन धार्मिक ग्रंथों मै
मिलता है ?" अस्मिता ने जिझासा की।
व्यास जी बोले- “दर्जनों उपनिषदों में मुक्ति, जीवन मुक्ति की अवस्था का वर्णन किया गया है। कुछ लोग जीवन मुक्ति की तुलना विदेह मुक्ति, मृत्यु के बाद संसार से करते हैं।”
"जीवन मुक्त व्यक्ति के क्या लक्षण है ? मैंने फिर पूछा।
व्यास जी पूजन की सामग्री जमाते-जमाते बोले “हिंदू दर्शन के इन प्राचीन ग्रंथों का दावा है कि जीवन मुक्ति एक ऐसी अवस्था है जो किसी व्यक्ति के स्वभाव, गुणों और व्यवहार को बदल देती है। उसे अनादर से कोई परेशानी नहीं होती और वह क्रूर शब्दों को सहन करता है। दूसरों के साथ सम्मान से पेश आता है।
जब कोई क्रोधित व्यक्ति उसका सामना करता है तो वह क्रोध का जवाब नहीं देता। बल्कि नरम और दयालु शब्दों से जवाब देता है।
यहां तक कि अगर उसे प्रताड़ित भी किया जाए, तो भी वह सत्य बोलता है और उस पर भरोसा करता है।
वह दूसरों से आशीर्वाद या प्रशंसा की इच्छा नहीं रखता। वह कभी किसी प्राणी को चोट नहीं पहुंचाता। अहिंसा। वह सभी प्राणियों के कल्याण में तत्पर रहता है।
वह अकेले रहने में भी उतना ही सहज है जितना दूसरे के साथ। उसके लिए, ज्ञान ही शिखा है। ज्ञान ही पवित्र धागा है। केवल ज्ञान ही सर्वोच्च है। बाहरी दिखावे और अनुष्ठान उसके लिए मायने नहीं रखते। केवल ज्ञान ही मायने रखता है।
उसके लिए न तो देवताओं का आह्वान है, न ही उनका त्याग, न ही कोई मंत्र है, न ही अमंत्र, न ही देवी-देवताओं या पूर्वजों की पूजा, केवल आत्मज्ञान के अलावा कुछ भी नहीं। वह विनम्र, उच्च मनोबल वाला, स्पष्ट और स्थिर मन वाला, सीधा, दयालु, धैर्यवान, उदासीन, साहसी, दृढ़ता से और मीठे शब्दों में बोलने वाला होता है।”
"जब जीवन मुक्त मरता है तो क्या होता है ?" समीर बोला
“जब जीवन्मुक्त मरता है तो वह परामुक्ति प्राप्त करता है और परामुक्त हो जाता है। जीवन्मुक्त को जीवित रहते हुए भी मुक्ति का अनुभव होता है और मृत्यु के बाद भी।"
समीर को लग रहा था की इन व्यास जी को वह पूर्व जन्म से जानता है। इनका रूप भले अलग हो लेकिन आँखें वही है। ये वही व्यास जी है जिसकी उसने महाकाल मन्दिर के प्रांगण में हत्या कर दी थी। मुम्बई की डॉक्टर ने इसीलिए मुझे उज्जैन भेजा ताकि मै उन लोगों से पुनः इस जन्म में मिलकर उन घटनाओं को पुनः महसूस कर जी सकू ताकि मेरी आत्मा मुक्त हो सके।
इस के बाद व्यास जी ने पिण्ड दान का पूजन प्रारम्भ किया। यह पिण्ड दान में अपनी मुक्ती के लिए ही तो कर रहा हूँ। पूजन समाप्त होते होते दोपहर हो आई।
अस्मिता- व्यास जी को यथायोग्य दान दक्षिणा दे कर हम लोगों ने व्यास जी से पूछा की कल कितने समय महाकाल भगवान के दर्शन पूजन के लिये आना होगा।
अस्मिता- व्यास जी ने बताया की उन्होंने भस्म आरती के लिये हम लोगों की बुकिंग की है। भस्म आरती के लिए अर्ध रात्रि को मन्दिर पहुंचना होगा। तब हम लोग होटल आ गए। समीर काफी थक गया था। खाना खा कर वह सोने चला गया। दिन में मुझे नींद नहीं आती है, सो मैंने शहर में जाने का मन बनाया।
फ्रीगंज
अस्मिता- मैं होटल से जब निकली तो मुझे खुद पता नहीं था कि कहां जाना है? होटल में जब मैंने आस-पास बाजार के बारे में पूछा तो मैनेजर ने फ़्रीगंज कहा। अभी दोपहर की धूप बहुत तेज नहीं थी। मैंने फ्रीगंज की ओर चलना शुरू किया। नाम अजीब था।
अस्मिता- मैंने मैनेजर से इसका मतलब पूछा तो उसने बताया “सिंधियां शासन काल में उधोग धंधों को आकर्षित करने के लिए सरकार ने फ्री में जमीनें दी तथा व्यापीरियो से टैक्स नहीं लिया गया इसी कारण इस जगह का नाम फ्री गंज हो गया। संभवतः यह हमारे देश का पहला एस ई जेड था।”
फ्रीगंज मार्केट उज्जैन के सबसे प्रमुख और चहल-पहल वाले व्यावसायिक केंद्रों में से एक है। जो पारंपरिक आकर्षण और आधुनिक खुदरा व्यापार का एक गतिशील मिश्रण पेश करता है। इसे अक्सर उज्जैन के शॉपिंग परिदृश्य का दिल कहा जाता है। जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों को उत्पादों और सेवाओं की एक विविध रेंज प्रदान करता है।
फ्रीगंज स्थान और पहुँच की दृष्टि से उज्जैन में केंद्र में स्थित है। जिससे शहर के विभिन्न हिस्सों से यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है। उज्जैन जंक्शन रेलवे स्टेशन और शहीद पार्क और घंटाघर घड़ी टॉवर जैसे प्रमुख स्थलों से इसकी निकटता इसके निरंतर पैदल चलने वालों में योगदान करती है। यह अच्छी तरह से जुड़ा हुआ क्षेत्र है। जिसमें अच्छी सड़क की गुणवत्ता और पर्याप्त पार्किंग स्थान है।
हालाँकि इसकी लोकप्रियता के कारण पीक ऑवर्स के दौरान एक जगह ढूँढना अभी भी एक चुनौती हो सकती है। माहौल और वाइब बाजार में एक जीवंत और ऊर्जावान माहौल है। यह एक ऐसी जगह है जहाँ पुराना नया से मिलता है। पारंपरिक दुकानें आधुनिक शोरूम के साथ खड़ी हैं। संकरी गलियाँ अक्सर खरीदारों, विक्रेताओं और वाणिज्य की आवाज़ों से भरी होती हैं।
आप स्थानीय खाद्य स्टालों से आने वाली जगहों, ध्वनियों और कभी-कभी सुगंधों का अनुभव करेंगे। दैनिक आवश्यकताओं, कपड़ों और विभिन्न अन्य वस्तुओं की तलाश करने वाले खरीदारों से भरा हुआ। शाम का समय में बाजार और भी अधिक ऊर्जा के साथ जीवंत हो उठता है।
स्ट्रीट वेंडर अपनी दुकानें लगाते हैं और स्थानीय लोग शाम की सैर, खरीदारी और स्नैक्स का आनंद लेते हैं। फ्रीगंज मार्केट अपने उत्पादों की विस्तृत विविधता के लिए जाना जाता है। कपड़े और वस्त्रों में पारंपरिक भारतीय परिधान साड़ियों चंदेरी और माहेश्वरी बुनाई सहित अपने मूल में अधिक विशिष्ट हैं। उज्जैन के बाजारों में ये मिल जाएँगे कुर्ते, लहंगे और पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के लिए अन्य पारंपरिक परिधानों का विस्तृत चयन मिलेगा।
आधुनिक फैशन, पारंपरिक परिधानों के साथ-साथ, समकालीन पश्चिमी परिधान, कैजुअल परिधान और ट्रेंडी आउटफिट पेश करने वाले कई बुटीक और शोरूम हैं। आपको लोकप्रिय ब्रांडों के स्टोर के साथ-साथ स्थानीय फैशन आउटलेट भी मिल सकते हैं।
बाटिक प्रिंट फैब्रिक, उज्जैन अपनी बाटिक कला के लिए जाना जाता है, जो मोम-प्रतिरोधी रंगाई तकनीक है। आपको यहाँ खूबसूरती से तैयार की गई बाटिक साड़ियाँ, स्कार्फ़ और ड्रेस मटीरियल मिल सकते हैं, जो अद्वितीय स्मृति चिन्ह बनाते हैं।
अस्मिता- फ्रीगंज में खुदरा दुकानों और कुछ थोक कपड़ा डीलरों का मिश्रण है, खासकर रेडीमेड कपड़ों के लिए। पारंपरिक और प्राचीन आभूषण: कई दुकानें पारंपरिक राजस्थानी और मालवा शैली के आभूषण डिजाइन में माहिर हैं, जिनमें अक्सर जटिल चांदी के टुकड़े, कुंदन का काम और पत्थर जड़े हुए आभूषण होते हैं। समकालीन सोना, चांदी और कृत्रिम आभूषण भी आसानी से उपलब्ध हैं।
हस्तशिल्प और स्मृति चिन्ह, लकड़ी की नक्काशी: जटिल नक्काशीदार लकड़ी की मूर्तियाँ, सजावटी सामान और घर की सजावट के सामान देखें, जिन्हें अक्सर स्थानीय कारीगरों द्वारा तैयार किया जाता है। पीतल और पत्थर की कलाकृतियाँ, देवताओं की मूर्तियाँ विशेष रूप से भगवान शिव, सजावटी सामान और पीतल और तांबे से बने बर्तन लोकप्रिय खरीदारी हैं।
अस्मिता- धार्मिक स्मृति चिन्ह, महाकालेश्वर मंदिर के आसपास ज़्यादा केंद्रित होने के बावजूद, फ़्रीगंज में छोटी मूर्तियाँ, देवताओं की पेंटिंग, रुद्राक्ष की माला, पूजा सामग्री अगरबत्ती, दीपक, प्रार्थना पुस्तकें आदि बेचने वाली दुकानें भी होंगी। हस्तनिर्मित कागज़ की वस्तुएँ, हस्तनिर्मित कागज़ से बनी अनूठी नोटबुक, डायरियाँ और स्टेशनरी मिल सकती हैं।
अस्मिता- जूते, पारंपरिक चप्पल सैंडल और अन्य चमड़े के सामान, साथ ही आधुनिक जूते की एक अच्छी रेंज मिल सकती है। मिठाई और स्नैक्स, उज्जैन अपने नमकीन स्वादिष्ट स्नैक्स के लिए प्रसिद्ध है। आपको झिलमिल स्वीट्स जैसी लोकप्रिय मिठाई की दुकानें और अन्य स्थानीय विक्रेता विभिन्न प्रकार की पारंपरिक उज्जैनी मिठाइयाँ और नमकीन बेचते हुए मिलेंगे। स्ट्रीट फूड स्टॉल पर पानी पुरी, जलेबी, कुल्फी और आलू टिक्की छोले जैसे स्थानीय व्यंजन भी मिलते हैं।
अस्मिता- फ्रीगंज को शैक्षणिक केंद्र के रूप में भी जाना जाता है, यहाँ आईआईटी-जेईई और मेडिकल प्रवेश जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कई कोचिंग संस्थान हैं, साथ ही स्कूल कोचिंग सेंटर भी हैं। इससे इस क्षेत्र में युवा, छात्र भीड़ उमड़ती है।
फ्रीगंज के भीतर/निकट मुख्य विशेषताएँ और स्थलचिह्न घंटाघर घड़ी टॉवर, इस क्षेत्र का एक प्रमुख स्थलचिह्न, जिसे अक्सर मीटिंग पॉइंट के रूप में उपयोग किया जाता है।
अस्मिता- शहीद पार्क, फ्रीगंज में एक केंद्रीय पार्क, जो व्यावसायिक हलचल के बीच एक हरा-भरा स्थान प्रदान करता है। कई कोचिंग सेंटरों की उपस्थिति इस क्षेत्र की गतिशीलता को बढ़ाती है। बैंक और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान: अपनी समृद्ध स्थिति को देखते हुए, फ्रीगंज में कई बैंक, वित्तीय सेवाएँ और विभिन्न वाणिज्यिक कार्यालय भी हैं।
सुबह देर से दोपहर तक का समय थोड़ा कम भीड़-भाड़ वाला अनुभव हो सकता है। शामें आम तौर पर सबसे व्यस्त और सबसे जीवंत होती हैं।
अस्मिता- फ्रीगंज का महत्व फ्रीगंज बाजार सिर्फ खरीदारी करने की जगह नहीं है; यह उज्जैन के दैनिक जीवन और परंपरा और आधुनिकता के मिश्रण का प्रतिबिंब है। यह वह जगह है जहाँ स्थानीय लोग अपना दैनिक व्यवसाय करते हैं, जहाँ छात्र इकट्ठा होते हैं, और जहाँ आगंतुक घर ले जाने के लिए उज्जैन का एक टुकड़ा पा सकते हैं। इसकी चहल-पहल भरी गलियाँ और विविध पेशकशें इसे इस प्राचीन शहर की व्यावसायिक नब्ज का अनुभव करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति के लिए एक ज़रूरी पड़ाव बनाती हैं। मैं एक खाली सड़क पर चल रही थी। थोड़ी दूर चलने पर महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ का साइन बोर्ड दिखा।
जिस पर उदयन मार्ग लिखा था। नाम बहुत मनोहारी लगा। उस मार्ग पर चलते हुए कितना समय हुआ मुझे अहसास नहीं रहा। मेरे मन में उदयन नाम चल रहा था। नाम का अपना एक आकर्षण होता है मुझे आज पता चला। नाम इतना म्यूजिकल था की पीछे मुड़ने की सुध ना रही।
आगे सामने एक भवन पर महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ का बोर्ड देख कर उस भवन में चली गई। भवन लगभग खाली था। केवल कुछ लोग अपने डेस्क पर काम कर रहे थे। किसी ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। जैसा अमूमन भारत के सरकारी दफ्तरों में होता है।
सामने निदेशक की नाम पट्टिका देख में कमरे में चली गई। वहां एक बुजुर्ग से दिखने बाले आकर्षक पुरुष बैठे थे। मैंने उन्हें सम्मान पूर्वक अभिवादन किया। उन्होंने मुझे सामने के सोफा पर बैठने का इशारा किया।
अस्मिता- मैंने उन्हें अपना परिचय दिया। उन्होंने अपना परिचय देते हुए बताया कि मै मध्यप्रदेश शासन में संस्कृति विभाग में संचालक संस्कृति, व सलाहकार के रूप में कार्यरत हूँ।
मै उज्जैन पर विगत अनेक वर्षों से शोध कार्य कर रहा हूँ और संप्रति विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक के पद पर कार्यरत हूँ। आप पूछे कि आप उज्जैन के संदर्भ में क्या जानना चाहती है ?"
मैं समीर के पूर्व जन्म में उसने उज्जैन मैं क्या किया था, जानना चाहती थी कि मुम्बई में डॉक्टर ने समीर से जो जानकारी निकाली थी वह कितनी सही है ?
अस्मिता- क्या उस घटना के कोई ऐतिहासिक प्रमाण भी है ?
या समीर की इल्तुमिश की कहानी केवल उस के मन की कल्पना मात्रा है जो शायद सम्मोहन वश उसने सुनाई थी।
लेकिन में सीधे किसी से यह नहीं पूछ सकती थी। मुझे भाग्यवश यह जगह मिल गई जो शायद मेरी शंका का समाधान कर सके।
अस्मिता- मैंने डरते डरते शंकोच के साथ उनसे अनुरोध किया कि
"क्या आप के समय हो तो आप मुझे उज्जैन के पौराणिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक सम्बन्ध में जानकारी दे सकते है?"
उन्होंने पहली बार सीधे मुझे देखा। अभी तक उनने मुझसे नजर नहीं मिलाई थी। मैं थोड़ी असहज हो गई। अनजाने में मैंने अपने दुपट्टे को ठीक किया।
उन्होंने हाँ में सिर हिलाया। मैने विनम्रता से पूछा
"यह शहर कितना पुराना है ?"
अस्मिता- उन्होंने मुझे बताया कि उज्जैन प्राचीन नगर है।
"गरुण पुराण में एक श्लोक भारत के सात पवित्र नगरों के सम्बन्ध में है:
“अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैताः मोक्षदायिकाः ॥"
"यह नगर कब बसाया गया? वो कौन लोग थे?"
मेरा अगला सवाल तैयार था।अस्मिता ।
अस्मिता- उन्होंने सहजता से कहा "स्कंद पुराण का पाँचवा खण्ड अवन्ती खण्ड है । यह खण्ड अवंति क्षेत्र वर्तमान उज्जैन क्षेत्र के इतिहास, भूगोल, धार्मिक स्थलों और पौराणिक कथाओं का वर्णन करता है।
यह खण्ड विशेष रूप से भगवान शिव और उनके भक्तों के साथ उनके संबंध पर केंद्रित है, जिसमें उज्जैन में महाकाल वन में भगवान महाकाल के मंदिर की महिमा और अन्य धार्मिक स्थलों की चर्चा है।"
अस्मिता- उन्होंने अपनी अलमारी से गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित स्कंदपुराण की पुस्तक निकाल कर मुझे देते हुए कहा कि तुम खुद देखो।
मैंने किताब हाथ में ले कर अवंतिका खंड देखा। मैंने उनसे कागज तथा पेन मांगा ताकि मैं कुछ नोटस लिख सकूँ। उन्होंने एक नोट पेड तथा पेन दिया।
अस्मिता- मैंने उसमें से कुछ नाम लिखे ताकि उन जगहों पर समीर के साथ जा सकूँ। महाकालवन, ककलेश्वर, अप्सराकुण्ड, पुण्यदायक रुद्रसरोवर, कुटुम्बेश विध्याधरेश्वर तथा मर्कटेश्वर, हरिसिद्धि हनुमदीश्वर कवचेश्वर, वल्मीकेश्वर, शुक्रेश्वर और नक्षत्रेश्वर तीर्थ, कुशस्थली, अक्रूर तीर्थ एकपादतीर्थ चन्द्रार्कवैभवतीर्थ, करभेषतीर्थ, लडुकेशतीर्थ, मार्कण्डेश्वरतीर्थ, यज्ञवापीतीर्थ, सोमेशवरतीर्थ, नरकान्तकतीर्थ, केदारेश्वर रामेश्वर सौभागेश्वर, तथा नरादित्य तीर्थ, केशवादित्य तीर्थ, शक्तिभेदतीर्थ स्वर्णसारमुख तीर्थ, ऊँकारेश्वरतीर्थ, कालवन में शिव लिंगों की संख्या तथा स्वर्णश्रंगेश्वर तीर्थसुन्दरकुण्डतीर्थ नीलगंगा पुष्करतीर्थ पुरुषोत्तमतीर्थ अघनाशनतीर्थ गोमतीतीर्थ वामनकुण्डतीर्थ वीरेश्वरतीर्थ कालभैरवतीर्थ, कर्कराजतीर्थ, विघ्नेशादितीर्थ, सुरोहनतीर्थ।
स्कन्द पुराण में उज्जैन के कुशस्थली अवन्ती एवं उज्ज्यनीपुरी के पद्मावती कुमुद्वती अमरावती विशाला तथा प्रतिकल्पा नामों का उल्लेख है।
यह करते करते शाम हो गई थी तो मैंने उनसे जाने की आज्ञा मांगी तथा टैक्सी ले कर वापिस होटल आ गई। मैंने देखा समीर अभी भी सो रहा है।
अस्मिता- मैंने उसे धीरे से उठाया तथा तैयार होने को कहा। समीर ने उठ कर बताया कि “उसने स्वप्न में उज्जैन को देखा जिसे इल्तुतमिश ने लूटा था। सारी मारकाट, बृद्ध, पुरुष, महिला, बच्चों की लाशों से गलियों में बहता खून, बच्चों की चीखें, महिलाओं का बलात्कार करते सैनिक। इल्तुमिश का गर्वीला चेहरा, जीत की ख़ुशी, अट्टहास करते सैनिक, मौत का ताण्डव। महाकाल का डमरू बजाना। उनका नाचना।”
सब उसने पुनः देखा। उसका शरीर कांप रहा था। आँखों से आँसुओं की धार बाह रही थी। हम एक दूसरे से लिपट कर रो रहे थे। यह आत्मा का रेचन था। समीर को इल्तुतमिश के कृत्यों का सामना करना ही था। समीर खुद से ही सवाल कर रहा था।
धर्म के नाम पर इतना अधर्म?
सत्ता की भूख, दौलत का लालच क्या था वह?
कितना धिनौना जीवन था इल्तुतमिश का?
खोखला अहंकार, इतिहास को नए सिरे से लिखने की चाह।
आज किसे याद है उसके अच्छे काम?
याद है तो केवल पाप कर्म।
क्या इस्लाम यही चाहता है?
क्या पैगम्बर का यही पैगाम था ?
वो सब रोजे, ज़कात, हज और पांच वक्त की नमाज़ सब क्या था?”
मैने इस्लाम के सम्बन्ध में पढ़ा था कि कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर का नाम अल्गोरिदम शब्द अल-खारिज्मि शब्द से आया है। कोलम्बस जिन नक्शों को ले कर पश्चिम से भारत को खोजने निकला था उन्हें बनाने वाला था अल-इदरीस।
जब भारत से सूर्य सिद्धान्त गया और अरबी में सिंध -हिन्द के रूप में अनुवादित किया गया। भारत की सुश्रुत संहिता गई तो
खलीफा-अल-मंसूर ने अल-सुश्रुत के नाम से नया इलाज शुरू हुआ।
भारत से गणित ने नम्बर गए वे हिंदसा कहलाये ‘अल-काजर’ उसका नाम था जो यह नम्बर ले कर गये।
उन्होंने गणना करने की लिये एक किताब बनाई जिसका नाम था ‘अल-जब्र’ रखा, जिससे अग्रेजी का अलजेब्रा शब्द आया। एक वह दौर था इस्लाम का एक यह हमारा दौर है।
समीर पुनः बोला मारकाट की इजाजत क्या अल्ला की दी हुई थी?
या इल्तुतमिश का अहंकार?
जो गुलाम से सुल्तान बनने पर भी सन्तुष्ट ना हुआ। क्या मिला जीवन से?
कितना अकेला था मरते समय?
कहां थे वे बच्चे?
कहां थी वे पत्नियां ?
आपस में लड़ रहे थे सत्ता के लिये।
मारकाट उनके बीच में वैसी ही थी।
क्या हुआ गुलाम वंश का?
नष्ट कर लिया था अपना जीवन।
नष्ट कर दिया था इस स्वर्ग जैसे देश को।
कहां थी वह जन्नत?
कहां थी वह बहत्तर हूरें?
कहां था वह बहिस्त में रहने का सुख?
सब छलाबा था। नष्ट कर दिया था अल्ला की हर नेमत को जो उसने मुझे बक्सी थी।”
अस्मिता- समीर बोलता ही जा रहा था। मैं उससे लिपट कर रोये जा रही थी। हम लोग ऐसे कितनी देर बैठे रहे पता नहीं। यह समीर के लिये पीछे के समय में यात्रा थी, जो इस जनम की मुक्ति के लिये जरुरी थी। यही सही मायने में पिण्ड दान था।
अस्मिता- यही प्रायश्चित था उन कर्मों का। ये ही ऋणानुबन्धन था उस आत्मा का जो उसे अपनी भावनाओं की आहुति दे कर चुकाना ही था। यही मुक्ति थी उस जन्म के संचित कर्मो के प्रारब्ध को पूरा करने की।
अस्मिता- धीरे-धीरे हम दोनों सामान्य होने लगे। मन हल्का हो आया था। मोक्ष को भ्रम से अंतिम मुक्ति के रूप में देखा जाता है। ज्ञान के माध्यम से व्यक्ति की अपनी मूल प्रकृति का अनुभव होता है। जो सच्चिदानंद है। जिसे कैवल्य अपवर्ग, निःश्रेयस, परमपद, ब्रह्मभाव, ब्रह्मज्ञान और ब्राह्मी स्थिति कहा जाता है।
अस्मिता- हम लोग रात में बाजार गये तथा कुछ जरुरी सामान के साथ किताबों की दुकान से एक स्कन्द पुराण की किताब खरीद कर लाये। मैंने स्कन्द पुराण से लिखे स्थानों की सूची समीर को दिखाई। उसको बहुत सारे स्थानों की याद हो आई।
लेकिन बहुत सारे नाम वह याद नहीं कर पाया। व्यास जी की मदद से हमने महाकाल की भस्म आरती देखने की लिये पास की व्यवस्था की। हम लोग आराम करने के लिये लेट गये।
महाकालेश्वर
अस्मिता- हम लोग भस्म आरती में भाग लेने के बहुत उत्सुक थे। इसलिए नींद नहीं आ रही थी। तो हम लोग अर्द्ध रात्रि को ही मन्दिर के पास पहुंच गये। हम लोग आस पास धूमते-धूमते एक प्रांगण में आ गए।
"क्या आपने कभी ऐसे मंदिर के बारे में सुना है जो भारत माता को समर्पित है?
खैर, मध्य प्रदेश के पवित्र शहर उज्जैन में, अनोखा भारत माता मंदिर है। यह मंदिर किसी भी अन्य मंदिर से अलग है। इसके अलावा, यह मंदिर न केवल उज्जैन के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर किसी देवता का प्रचार नहीं करता है। बल्कि भारत माता का प्रचार करता है।
एक गहरा संबंध और देशभक्ति की गहरी भावना को बढ़ावा देता है। इस मंदिर की सबसे आकर्षक विशेषता भारत माता की मूर्ति है। जिसे अक्सर भगवा साड़ी में दर्शाया जाता है। जो हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथ चार वेदों को पकड़े हुए है।"
मन्दिर परिसर में बैठे एक आकर्षक युवक ने हमें पूछने पर यह जानकारी दी।
अस्मिता- हमारी उत्सुकता देख कर उस युवक ने हमें उस के सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठने का अनुरोध किया। परिचय की औपचरिकता में उसने बताया की वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वंसेवक तथा मालवा प्रान्त का प्रचारक है।
समीर ने उनसे महाकाल के मंदिर की प्राचीनता के बारे में पूछा।
तो उन्होंने कहना शुरू किया- “ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबंधित भारतीय पुराणों में अलग-अलग कथाओं का वर्णन मिलता है। एक कथा के अनुसार अवंतिका नाम के राज्य में वृषभसेन नाम के राजा राज्य करते थे। वे अपना अधिकतर समय शिव पूजा में लगाते रहते थे।
एक बार पड़ोसी राजा ने वृषभसेन के राज्य पर हमला बोल दिया। वृषभसेन ने पूरे साहस के साथ इस युद्ध का सामना किया। और जीत हासिल की।
अपनी हार का बदला लेने के लिए पड़ोसी राजा ने कोई ओर उपाय सोचा। इसके लिए उसने एक असुर की सहायता ली। उस दैत्य को अदृश्य होने का वर प्रदान था।
पड़ोसी राजा ने उस दैत्य की मदद से अवंतिका राज्य पर हमला बोल दिया। राजा वृषभसेन ने इन हमलों से बचने के लिए भगवान शिव की शरण ली।
भक्त की पुकार सुन कर भगवान साक्षात अवंतिका राज्य में प्रकट हुए। उन्होंने असुरों और पड़ोसी राजाओं से प्रजा की रक्षा की। इस पर राजा वृषभसेन और प्रजा ने भगवान शिव से अवंतिका राज्य में ही रहने का आग्रह किया। जिससे भविष्य में अन्य आक्रमण से बचा जा सके। भक्तों के आग्रह के कारण भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रुप में वहां पर प्रकट हुए। महाकाल से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है।
पुराणों की दूसरी कहानी के अनुसार, एक समय उज्जयिनी में महाराजा चंद्रसेन का राज हुआ करता था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे। भगवान शिव के गणों में मुख्य मणिभद्र राजा चंद्रसेन के मित्र हुआ करते थे। एक बार मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक चिंतामणि प्रदान की। इसमें अतुलनीय तेज था।
राजा चंद्रसेन ने मणि को अपने गले में धारण कर लिया। मणि को धारण करते ही पूरा प्रभामंडल जगमगा उठा। मणि की दिव्यता से राजा चंद्रसेन की यश और कीर्ति दूसरे देशों में भी फैलने लगी। राज्य में धन-धान्य बढ़ने लगा।
राजा चंद्रसेन की यश और कीर्ति को बढ़ता देखकर अन्य राजाओं ने मणि को प्राप्त करने का प्रयास किया। लेकिन वे इसमें सफल नहीं हो पाए। कुछ समय बाद अन्य राजाओं ने मिलकर राजा चंद्रसेन पर आक्रमण कर दिया। इसकी जानकारी मिलते ही राजा चंद्रसेन भगवान महाकाल की शरण में जाकर ध्यानमग्न हो गए।
उसी दौरान एक विधवा अपने पाँच साल के छोटे बालक को साथ लेकर वहाँ दर्शन के लिए आई। राजा चंद्रसेन को ध्यानमग्न देखकर बालक प्रेरित हुआ। घर जाकर बालक ने एक पत्थर लिया और उसे अपने घर के एकांत स्थान में रखकर उसके ध्यान में मग्न हो गया। वह इतना लीन हो गया कि उसकी माता उसे बार-बार बुलाती रही, लेकिन बालक को इसका पता नहीं चला।
बालक के व्यवहार से क्रुद्ध होकर महिला ने उसे पीटना शुरू कर दिया और पूजा का समान उठाकर फेंक दिया। बालक को जब चेतना आई तो वहाँ का दृश्य देखकर वह बहुत दुखी हुआ।
अचानक वहाँ चमत्कार हुआ और वहाँ एक सुंदर मंदिर बन गया। मंदिर में एक दिव्य शिवलिंग विराजमान था। यह देखकर महिला आश्चर्यचकित रह गई।
भगवान महाकाल तब ही से उज्जयिनी में विराजमान हैं। महाकाल को उज्जैन का राजाधिराज माना जाता है। कहा जाता है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकाल से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकाल को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है।”
अस्मिता- मैंने स्कंद पुराण में पड़ी अपनी जानकारी बताई कि “उज्जैन एक प्राचीन पवित्र नगरी उज्जयिनी, जिसे प्रतिकल्पा, पद्मावती, अवंतिका, भोगवती, अमरावती, कुमुदवती, विशाला, कुशस्थती जैसे अनेक नामों से जाना जाता है, नगरी उज्जयिनी खूब रोई। उज्जयिनी अपने साथ कई सदियों का इतिहास समेटे हुए है, तथा आज भी भारत के गौरवशाली इतिहास की झलक दिखाती है।”
उन्होंने मुझ से कहा कि “लेकिन वर्ष बारह सौ चौतीस की यादें उज्जयिनी की आँखों में आँसू ही लाती हैं। तुर्कों के आगमन के समय घोड़ों की हिनहिनाहट से मध्य भारत दहल उठा था। वातावरण में उदासी छा गई थी। यह समाचार प्रसारित हो रहा था कि दिल्ली का मामलुक सुल्तान इल्तुतमिश उज्जयिनी पर आक्रमण करेगा। और ऐसा ही हुआ।
अनेक धर्मों के सह-अस्तित्व और राजकीय धर्मनिरपेक्षता की मिसाल उज्जयिनी भारत के महान बौद्ध सम्राट अशोक की तपोभूमि थी।
जहां उनकी पत्नी देवी ने उनके बच्चों महेंद्र और संघमित्रा को जन्म दिया। जिन्होंने वर्तमान श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। जिसे उस समय सिहलद्वीप के नाम से जाना जाता था। महान हिंदू सम्राट विक्रमादित्य और हिंदू धर्म के कई ऋषियों की नगरी रही है।
जैन मान्यताओं के अनुसार आचार्य आर्यसुहस्तिसूरि की सलाह पर जैन मंदिरों का निर्माण कराने वाले, जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां बनवाने वाले राजा संप्रति का जन्म इसी नगरी में हुआ था। उन्होंने इस नगरी को गौरवान्वित किया था।
इस महान उज्जयिनी नगरी को तुर्की आक्रमणकारी इल्तुतमिश ने नष्ट कर दिया था। बाबा महाकाल का सदियों पुराना मंदिर भी दिल्ली से आए इस मामलुक तुर्क के हमले में नष्ट हो गया था।”
अस्मिता- मैंने समीर की ओर देखा उसकी आँखों में पश्चताप की झलक अभी भी थी। उस युवक ने हम लोगों के लिए पानी तथा चाय लाने के लिए पास से गुजरते अपने साथी से अनुरोध किया और उज्जैन के बारे में बताने लगे।
“भारत के लंबे इतिहास के परिप्रेक्ष्य में, साम्राज्य की लड़ाई और वर्चस्व के लिए निरंतर संघर्ष में उज्जैन का बहुत महत्व था। उत्तर, दक्षिण और पश्चिम के बीच व्यापार की मुख्य धमनी पर स्थित होने के कारण उज्जैन का राजनीतिक महत्व आर्थिक कारण से बढ़ गया था। इसने बदले में उज्जैन को अपना एक सांस्कृतिक वैभव प्राप्त करने में योगदान दिया, जिसकी बराबरी भारत के बहुत कम अन्य शहरों द्वारा की जा सकती है।
भारत में जब मुस्लिम आक्रमणकारियों का राज कायम हुआ तब उनमें से एक दिल्ली के शासक शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश ने मंदिर पर आक्रमण कर दिया था। इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर पर हमला कर यहां कत्लेआम किया। इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण के दौरान महाकाल मंदिर को ध्वस्त कर दिया था।
शहर के प्राचीन मंदिरों सहित इस इलाके के सभी पुराने महल-मंदिर सबसे पहले इल्तुतमिश के हाथों ही बरबाद किए गए। महाकाल मंदिर पर झपट्टा मारने के फौरन बाद ही इल्तुतमिश भी मर गया। कब्र में उसके सोते ही दिल्ली में मची चार सालों की उथलपुथल के दौरान उसका पूरा कुनबा बेमौत मरा।
उस समय के इतिहासकारो ने हमलों, लूट और कत्ल के ब्यौरे अपने सुलतान की शान में दर्ज किए हैं। इन हमलों में इस्लामी सेना के हाथों ‘काफिर हिंदुओं को नरक भेजने‘ की कहानियाँ इतनी हैं कि थक-हारकर वह इतिहाकार एक जगह लिखता है
“किलों पर कब्जा जमाने, जंगलों को काटकर रास्ता बनाने, काफिरों को कत्ल करने, हिंदू राय-राणाओं को कैद करने का समस्त ब्यौरा लिख पाना मुमकिन नहीं है।“
“इस भगदड़ में बड़ी तादाद में लोगों का धर्मांतरण हुआ। नया मजहब मौत की सजा से बचने के लिए जिंदा रहने की सजा थी।”
हम लोग ध्यान से उनकी बात सुन रहे थे। पानी तथा चाय आ गई थी। हम लोगों ने चाय पीना शुरू ही किया था कि अंदर से एक बुजुर्ग आ कर हमारे साथ बैठ गए। युवक ने हमारा परिचय उन्हें दिया तथा आने का उदेश्य बताया।
उन्होंने सलाह दी की यदि हम दिन में आस पास के क्षेत्र में घूमेगे तो “गाँव-गाँव आज भी खंडहर में उस बड़े हमले की गवाही देते हैं। अपने समय में उज्जैन के ये मंदिर भारत की हजारों साल की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के पूजनीय प्रतीक थे।
हम आज के बेतरतीब और बदहाल उज्जैन की गलियों में घूमते हुए कल्पना भी नहीं कर सकते कि ये इल्तुतमिश की इस्लामी फौज के हाथों पहली बार बरबाद होने के पहले किस शक्ल में सदियों से मौजूद रहे होंगे।
यहाँ मौर्य, गुप्त और अन्य राजवंशों ने इस्लाम के झंडाबरदारों के घातक हमलों के सालों पहले से बेहिसाब भव्य निर्माण कराए थे। वे सब अब खंडहरों या उजाड़ और गुमनाम टीलों में मौजूद हैं।
जहाँ भी खुदाई होती है, वहाँ टीलों से मूर्तियाँ या मन्दिर झाँकते हैं। नदियाँ सूखती हैं तो घाटों के किनारे तोड़े गए मंदिरों की खंडित मूर्तियाँ आज भी अक्सर इस इलाके से निकलती हैं।
उज्जैन की असली आपबीती धूल और राख की कई परतों के नीचे दबी हुई है। हमारी आज की पीढ़ी को तो ऊपरी परत का भी ठीक से अंदाजा नहीं है। जबकि कई अंदरुनी परतें सदियों से अपने आगोश में आंसुओं से भरी कहानियां समेटे हुए हैं।”
मुझे अब समीर की मुम्बई में सुनाई गई कहानी के ओर छोर को पकड़ने में मदद मिल रही थी।
समीर ने उनसे पूछा- "जब मन्दिर पर आक्रमण हुआ तो शिव लिँग कहा गायब हो गया था ?"
“महाकाल ज्योतिर्लिंग को आक्रांताओं से सुरक्षित रखने लिए उस वक्त पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को कुंड में छिपा दिया था।
रानोजी सिंधिया का जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था,जो वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य के सतारा जिले के एक गाँव कन्हेरखेड के वंशानुगत पाटिल थे।
जब वे मालवा और मध्य भारत में स्वतंत्र शासक बने तो उन्होंने अपना उपनाम ‘शिंदे’ से बदलकर ‘सिंधिया’ रख लिया और इस तरह सिंधिया राजवंश की स्थापना की।
वे सिंधिया राजवंश के संस्थापक, एक प्रतिभाशाली सैन्य कमांडर थे, जिनके नेतृत्व में मालवा पर विजय प्राप्त की गई थी। मराठा शूरवीर श्रीमंत राणोजी राव सिंधिया ने मुगलों को पराजित कर अपना शासन उज्जैन में स्थापित किया था।
राणोजी सिंधिया ने जब बंगाल विजय के दौरान उज्जैन में पड़ाव डाला। तब वे महाकाल मंदिर की दुर्दशा देखकर व्यथित हो उठे।
उन्होंने अधिकारियों और उज्जैन के कारोबारियों को आदेश दिया कि बंगाल विजय से लौटने तक भव्य महाकाल मंदिर बनवा दिया जाय। तो वहाँ औरंगजेब द्वारा निर्मित मस्जिद को ढहा महाकाल मंदिर बना दिया और श्री बाबा महाकाल ज्योतिर्लिंग को कोटि तीर्थ कुंड से निकाल महाकाल मंदिर में दोबारा स्थापित किया।
जब वे बंगाल विजय से वापस उज्जैन पहुँचे तब उन्होंने नवनिर्मित मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा कराकर महाकाल की पूजा-अर्चना की।”
इस बीच, मंदिर के अवशेषों में ही महाकाल को पूजा जाता था। उन्होंने विस्तार से समीर को बताया।
युवक ने मन्दिर के बारे में बताया कि “बारह ज्योतिर्लिंगों में तीसरे नंबर पर आने वाले महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तीन खंडों विभक्त है। मंदिर के निचले खंड में महाकालेश्वर, बीच में ओंकारेश्वर तथा सबसे ऊपर वाले खंड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग प्रतिष्ठ हैं।
महाकालेश्वर मंदिर के शिखर के तीसरे तल पर भगवान शंकर और माता पार्वती नाग के आसन बैठी हुई हैं। यहाँ एक शिवलिंग भी है। इस सुन्दर और दुर्लभ प्रतिमा का दर्शन सिर्फ नागपंचमी के दिन होते हैं।”
अस्मिता- मैंने पूछा कि "यह दक्षिण मुखी तांत्रिक मन्दिर क्यों माना जाता है?"
बुजुर्ग महाशय ने कुर्सी पर अपने पाँव ऊपर करते हुए कहा “कोटि तीर्थ कुण्ड के पूर्व में एक विशाल बरामदा है। यहीं से महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश का रास्ता है। इस बरामदे के उत्तरी छोर पर भगवान राम और देवी अवन्तिका की आकर्षक प्रतिमाएँ हैं।
गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के प्रतिमा स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। दीवारों पर चारों ओर शिव की मनोहारी स्तुति अंकित है।
महाकालेश्वर मंदिर में प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में वास्तु के अनुसार सही स्थान पर स्थित है। मंदिर में गर्भगृह का द्वार दक्षिण दिशा में है, जो कि वास्तुशास्त्र के अनुसार वैभवशाली माना जाता है। महाकाल की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल बारह ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल में पाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में आकर सच्चे मन से भगवान शिव की प्रार्थना करता है उसे मृत्यु के बाद मिलने वाली यातनाओं से मुक्ति मिलती है। यह भी कहा जाता है कि यहां आकर भगवान शिव के दर्शन करने से अकाल मृत्यु टल जाती है और व्यक्ति को सीधा मोक्ष प्राप्त होता है।”
समीर ने पूछा कि “क्या यह सही है की ग्रीनविच से पहले काल गढ़ना के लिए जीरो डिग्री देशांतर उज्जैन से गुजरता मन जाता था ?"
अस्मिता- युवक ने हमें बताया कि“प्राचीन काल से उज्जैन भारतीय समय की गणना के लिए केंद्र बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। समय के देवता, शिव अपने सभी वैभव में उज्जैन में शाश्वत शासन करते हैं।
उज्जैन ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है, सूर्य सिद्धांत और पंच सिद्धांत जैसे खगोल विज्ञान महान ग्रन्थ उज्जैन में लिखे गए।
भारतीय खगोलविदों के अनुसार, कर्क रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है, यह हिंदू भूगोलवेत्ताओं की देशांतर की पहली मध्याह्न रेखा भी है। लगभग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से उज्जैन को भारत का ग्रीनविच होने की ख्याति प्राप्त थी।
इस शहर का गौरवशाली इतिहास है, धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह नगरी कभी पूरी तरह नष्ट नहीं हुई क्योंकि यहां विनाश के देवता महाकाल स्वयं विराजमान हैं।”
अस्मिता- बुजुर्ग महोदय ने कहा कि “महाकाल मंदिर का शिखर आसमान में चढ़ता है। आकाश के खिलाफ एक भव्य अग्रभाग, अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को उजागर करता है। महाकाल शहर और उसके लोगों के जीवन पर हावी है। यहां तक कि यह आधुनिक व्यस्तताओं की व्यस्त दिनचर्या के बीच और पिछली परंपराओं के साथ एक अटूट लिंक प्रदान करता है।
महाकाल मंदिर के वास्तुशास्त्र के अनुसार पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्त्रोत धार्मिकता बढ़ाता है। इसी कारण उज्जैन शहर प्रदेश की धार्मिक नगरी के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध है और इस शहर की प्रसिद्धि को और अधिक गौरवान्वित करता है महाकाल।
उज्जैन शहर की समृद्धि एवं प्रसिद्धि में इस मंदिर का भी विशेष योगदान है। मंदिर के प्रति लोगों की इतनी श्रद्धा और आस्था का कारण है इस स्थान की भौगोलिक स्थिति एवं मंदिर भवन का भारतीय वास्तुशास्त्र और चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई दोनों के सिद्धांतों के अनुरूप बना होना।
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रौत होना अच्छा नहीं माना जाता है परंतु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध है, चाहे वह किसी भी धर्म से सबंधित हो, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं देखने को मिलती हैं।
ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है। जैसे वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसोर इत्यादि।
वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्त्रोत जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुआं, बोरवेल, इत्यादि होता है। उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरो की तुलना में ज्यादा होती है।
टीले पर स्थित इस मन्दिर परिसर के पश्चिम भाग में जलकुण्ड है। मन्दिर परिसर के बाहर पश्चिम दिशा में ही रूद्रसागर है। पश्चिम दिशा में ही थोड़ा सा आगे जाकर क्षिप्रा नदी भी है इसलिए यह स्थान धार्मिक रूप से प्रसिद्ध है।
इस मंदिर भवन के चारों दिशाओं में सड़क है। उत्तर दिशा में हरसिद्धि मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पूर्व से पश्चिम की तरफ काफी ढलान लिए हुए है। पश्चिम दिशा में दक्षिण से उत्तर की ओर ढलान लिए हुए सड़क है।
मंदिर भवन के अंदर उत्तर दिशा वाला भाग भी दक्षिण दिशा वाले भाग जहां वृद्धेश्वर महाकाल एवं बाल हनुमान मंदिर है कि तुलना में काफी नीचा है। मंदिर भवन का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में वास्तुनुकुल स्थान पर स्थित है। गर्भगृह वह स्थान जहां भगवान महाकाल विराजमान है का द्वार दक्षिण दिशा में वास्तु सम्मत स्थान पर ही स्थित है।”
महाकाल की नगरी उज्जैन को साढ़े तीन काल का निवास स्थल माना जाता है। सबसे पहले महाकाल, फिर काल भैरव और फिर गढ़कालिका। कहा जाता है महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद यहाँ भी जाना जरूरी होता है। यह जानकारी तथा सलाह भी उन्होंने दी।
"उज्जैन तंत्र साधकों में क्यों प्रसिद्ध है ?" समीर के मन में यह बात बहुत समय से थी।
युवक ने बताया- “उज्जैन की नगर योजना, विशेष रूप से इसका खगोलीय और ज्योतिषीय महत्व, ज्ञान और शिक्षा के केंद्र के रूप में इसके ऐतिहासिक महत्व में गहराई से निहित है। शहर का लेआउट और डिज़ाइन ज्योतिषीय अध्ययन और भारत में समय-निर्धारण प्रणालियों के विकास के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में इसकी भूमिका को दर्शाता है।
उज्जैन शहर को तंत्र साधना के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है, विशेष रूप से कई मंदिरों के कारण। उज्जैन में कई मंदिरों में, हरसिद्धि मंदिर और गढ़कालिका मंदिर तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध हैं। ये मंदिर तंत्र-मंत्र और सिद्धियों के लिए तांत्रिकों और साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान हैं।”
भस्म आरती का समय होने के कारण हमें यह बातचीत यही खत्म करना पड़ी और हम लोग मन्दिर के अन्दर प्रवेश करने के लिये लाइन में खड़े हो गये।
जब हम महाकाल के मन्दिर के सामने पहुंचे तो समीर एकाएक कांपने लगा। उसे उस दिन की याद हो आई जिस दिन इल्तुतमिश ने इस मन्दिर को लूट खसोट कर सैकड़ों मासूमों को बेमतलब मौत के घाट उतार दिया था।
उनमें से किसी के हाथ में कोई शस्त्र नहीं था। वे सब निहथे भक्त थे। जिन्हें अपने महाकाल पर भरोसा था कि कोई संकट आने पर महाकाल, भैरव, पार्वती, गणेश, कार्तिक, नंदी, गणिकाएँ, मातृकाएँ तथा तमाम अनगिनत दैवीय शक्तियां उनकी रक्षा करेगी।
लेकिन उन्हें किसी ने नहीं बताया था कि वह सब मान्यताऐं, विधियां, पूजा, तंत्र, मन्त्र, यंत्र आदि परा जगत की तककतें है। भौतिक जगत में तो जीने के लिए शारीरिक ताकत ही काम आयगी। उन भोले भाले श्रद्धा से भरे लोगों ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि हजारों मील का कठिन सफर कर कोई लुटेरा आ कर उनका ऐसा हाल करेगा।
12 (2222)
भस्म आरती
मार्गशीष माह शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर गुरुवार को बाबा महाकाल सुबह चार बजे जागे। भगवान वीरभद्र और मानभद्र की आज्ञा लेकर मंदिर के पट खोले गए। सबसे पहले भगवान को गर्म जल से स्नान, पंचामृत अभिषेक करवाने के साथ ही केसर युक्त जल अर्पित किया गया।
इसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े के द्वारा बाबा महाकाल को भस्म अर्पित की गई। चारों और डमरू बजने लगे। नगाड़े बज उठे। शंख घण्टा घड़ियाल का श्वर गुंज्जायमान हो उठा। सम्पूर्ण गर्भगृह भस्म से भर गया। पुजारी एक सफ़ेद कपड़े में भस्म भर कर शिवजी पर उड़ा रहे थे।
हर हर महादेव, जय महाकाल के जयकारे से नंदी हाल गुज उठा। सभी खड़े हो गए थे। पुजारी आरती गाने लगे। तुमुल नाद हुआ, शंख गुज उठे। शरीर का रोम-रोम रोमांचित हो उठा। पवित्रता का ऐसा वातावरण बना कि हम सुध-बुध को बैठे।
"श्री राजाधिराज महाराज अखिलकोटि ब्रह्माण्ड के नायक
देवों के देव महादेव कैलाशपति कालों के काल महाकाल"
समीर ने बताया की यही ध्वनि वह सुनाता रहा था।
अस्मिता- उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती हिंदू धर्म में सबसे अनोखी और पूजनीय रस्मों में से एक है। प्रतिदिन सुबह के समय लगभग चार बजे की जाने वाली इस आरती में शिव लिंग पर पवित्र भस्म भस्म चढ़ाई जाती है। यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह सबसे पवित्र निवासों में से एक है, जहाँ यह अनुष्ठान इतने विशिष्ट तरीके से किया जाता है।
अस्मिता- यह रस्म भोर से पहले शुरू होती है। सबसे पहले शिव लिंग को जल, दूध, शहद, घी और अन्य पवित्र पदार्थों पंचामृत अभिषेक से पवित्र स्नान कराया जाता है। इसके बाद, सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा शुरू होता है 'भस्म' का प्रयोग।
परंपरागत रूप से, माना जाता है कि इस्तेमाल की जाने वाली भस्म श्मशान घाट से ताज़ा जलाए गए शव की राख से बनाई जाती है। हालांकि, व्यावहारिक और स्वास्थ्यकर कारणों से समय के साथ इस प्रथा में काफी बदलाव आया है।
आजकल, भस्म आमतौर पर गाय के गोबर के उपले, विशिष्ट लकड़ियों जैसे पीपल, शमी, पलाश और अन्य शुभ सामग्रियों को पवित्र अग्नि धूनी में जलाकर तैयार की जाती है, जिसे मंदिर परिसर में लगातार जलाया जाता है।
भस्म लगाने के दौरान, पुजारी पारंपरिक रूप से केवल धोती पहने हुए पुरुष पुजारी गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। वे वैदिक मंत्रों का जाप करते हुए पूरे शिव लिंग को भस्म से ढंकते हैं, जिससे एक गहन और आवेशपूर्ण वातावरण बनता है। त्याग और मृत्यु के इसके गहन प्रतीक के कारण महिला भक्तों को आमतौर पर भस्म लगाने के दौरान अपनी आँखें ढकने के लिए कहा जाता है।
अस्मिता- भस्म लगाने के बाद अंतिम आरती दीप जलाना की जाती है। आध्यात्मिक महत्व, अनित्यता और शाश्वतता का प्रतीक, भस्म या राख वह है जो आग में सब कुछ भस्म हो जाने के बाद बच जाती है। यह भौतिक संसार और मानव शरीर की क्षणभंगुर प्रकृति के अंतिम सत्य का प्रतिनिधित्व करता है।
भगवान शिव, जो महाकाल समय और मृत्यु के देवता हैं, को भस्म से सुशोभित करके, यह अनुष्ठान एक शक्तिशाली अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि सब कुछ अंततः धूल में मिल जाता है।
यह दर्शाता है कि केवल दिव्य चेतना शिव शाश्वत है और ब्रह्मांड के विनाश के बाद भी बनी रहती है। भस्म लगाने का कार्य सांसारिक इच्छाओं, अहंकार और भ्रम माया से वैराग्य का प्रतीक है। यह भक्तों को वैराग्य गैर-लगाव विकसित करने और भौतिक क्षेत्र से परे आध्यात्मिक यात्रा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
हिंदू धर्म में राख को शुद्ध करने वाला एजेंट माना जाता है। माना जाता है कि भस्म लगाने से लिंगम और, विस्तार से, भक्तों को नकारात्मक ऊर्जा, पापों और अशुद्धियों से शुद्ध किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भस्म आरती मृत्यु और समय पर शिव की शक्ति का आह्वान करती है, अकाल मृत्यु से सुरक्षा प्रदान करती है और जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मोक्ष प्रदान करती है।
अस्मिता- भगवान शिव की ब्रह्मांडीय भूमिका से संबंध, शिव हिंदू त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश में संहारक हैं। उनका विनाश केवल एक अंत नहीं है, बल्कि नए सृजन और परिवर्तन की प्रस्तावना है। राख विघटन और पुनर्जनन के इस चक्र का प्रतीक है, जो भक्तों को शिव के ब्रह्मांडीय नृत्य तांडव की याद दिलाती है जो सृजन और विनाश दोनों को लाती है।
अस्मिता- भस्म आरती का साक्षी होना एक गहन रूपांतरकारी और आत्मा को झकझोर देने वाला अनुभव माना जाता है। लयबद्ध मंत्रोच्चार, घंटियों और घडि़यों की ध्वनि और राख से लिपटे लिंगम का दृश्य एक गहन भक्तिमय वातावरण बनाता है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह आध्यात्मिक चेतना को जागृत करता है।
भगवान शिव और भस्म के उपयोग से कई किंवदंतियाँ जुड़ी हुई हैं: सती का बलिदान और शिव का दुःख: एक प्रमुख मिथक दक्ष के यज्ञ अग्नि बलिदान में सती शिव की पहली पत्नी के आत्मदाह से संबंधित है। दुःख से व्याकुल होकर, शिव ने विनाश का ब्रह्मांडीय नृत्य तांडव किया और सती के शरीर की राख को अपने ऊपर मल लिया।
यह कृत्य उनके गहन दुःख, अत्यधिक दुःख में भी सांसारिक सुखों से उनकी विरक्ति और परम तपस्वी के रूप में उनकी भूमिका का प्रतीक है। अंधकासुर की हार, एक अन्य किंवदंती राक्षस अंधकासुर के बारे में बताती है, जिसे वरदान था कि उसके खून की हर बूंद धरती पर गिरने से एक और राक्षस पैदा होगा।
भगवान शिव ने उसका खून पीने के लिए अपनी तीसरी आँख से देवी योगेश्वरी को बनाया और जब राक्षस अंततः पराजित हो गया और जलकर राख हो गया, तो शिव ने बुराई पर जीत के प्रतीक के रूप में उस राख को उसके शरीर पर मल दिया।
अस्मिता- महाकालेश्वर मंदिर के बारे में एक किंवदंती है कि दूषण नामक एक राक्षस ने उज्जैन तब अवंती के लोगों को परेशान किया था। जब ब्राह्मणों और भक्तों ने भगवान शिव से प्रार्थना की, तो वे अपने क्रूर महाकाल रूप में प्रकट हुए, राक्षस का नाश किया और फिर दूषण की राख से खुद को सजाया, जो बुराई के उन्मूलन और अपने भक्तों की सुरक्षा का प्रतीक था। शिव "श्मशान भूमि के भगवान" के रूप में: भगवान शिव को अक्सर "श्मशान भूमि के भगवान" के रूप में संदर्भित किया जाता है।
लाल रंग से "श्मशान के साधक" श्मशान भूमि के साधक के रूप में जाना जाता है। उन्हें श्मशान भूमि में रहते हुए, मृत्यु और क्षय के बीच ध्यान करते हुए दर्शाया गया है। यह जीवन और मृत्यु पर उनके उत्थान को पुष्ट करता है, और राख उनका प्राकृतिक श्रृंगार है, जो अंतिम वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करता है कि सभी प्राणी अंततः अपने अंत को प्राप्त करते हैं।
जबकि आधुनिक अर्थों में प्रत्यक्ष "वैज्ञानिक प्रमाण" प्राचीन धार्मिक अनुष्ठानों पर लागू नहीं होता है, कोई व्यक्ति अवलोकन, ऊर्जावान सिद्धांतों और उपयोग की जाने वाली सामग्रियों के गुणों के आधार पर व्याख्याएँ प्रस्तुत कर सकता है:
समर्थकों का सुझाव है कि राख, विशेष रूप से अगर गाय के गोबर जिसमें अद्वितीय गुण होते हैं जैसी विशिष्ट कार्बनिक सामग्रियों से बनाई जाती है, तो इसमें कुछ ऊर्जा-अवशोषित या विकिरण करने वाले गुण हो सकते हैं।
इसे लिंगम, एक शक्तिशाली ऊर्जा वाहिका पर लागू करना, देवता और आसपास के वातावरण के ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ाने या संतुलित करने के रूप में देखा जा सकता है। स्वच्छता और औषधीय गुण, प्राचीन समय में, जब राख वास्तव में चिता या विशिष्ट कार्बनिक जलने से होती थी, तो उनके एंटीसेप्टिक या सफाई गुणों की समझ हो सकती थी।
राख एक प्राकृतिक कीटाणुनाशक और सुखाने वाला एजेंट हो सकता है। नम वातावरण में पत्थर के लिंगम के लिए, यह संरक्षण या स्वच्छता के संदर्भ में कुछ व्यावहारिक लाभ प्रदान कर सकता है। मनोवैज्ञानिक प्रभाव: सुबह का समय, मंत्रों का जाप, सामूहिक भक्ति और आरती का दृश्य एक शक्तिशाली मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करता है।
मंत्रों का दोहराव कंपन उत्पन्न करता है जो माना जाता है कि मन पर शांत और ध्यान केंद्रित करने वाला प्रभाव डालता है। किसी प्राचीन और पवित्र चीज़ में भाग लेने की भावना जागरूकता और
अस्मिता- आध्यात्मिक भावना की उच्च स्थिति को जन्म दे सकती है। राख एक इन्सुलेटर है। शिव लिंगम जो विभिन्न प्रकार के पत्थर हो सकते हैं को लेप करने से तापमान विनियमन या सतह को तेज़ तापमान परिवर्तनों से बचाने में एक सूक्ष्म भूमिका हो सकती है, हालाँकि यह अधिक अटकलें हैं।
गाय के गोबर और विशिष्ट लकड़ियों से प्राप्त राख में विभिन्न खनिज होते हैं। हालांकि इसे सीधे तौर पर नहीं खाया जाता है, लेकिन प्रतीकात्मक अनुप्रयोग और समग्र अनुष्ठानिक वातावरण सूक्ष्म रूप से आसपास की ऊर्जा के साथ बातचीत कर सकता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि "वैज्ञानिक" व्याख्याएँ अक्सर बाद की व्याख्याएँ होती हैं और अनुष्ठान के अस्तित्व का प्राथमिक कारण नहीं होती हैं। भस्म आरती मूल रूप से हिंदू पौराणिक कथाओं और दर्शन में गहराई से निहित एक गहन आध्यात्मिक और भक्तिपूर्ण अभ्यास है। इसकी शक्ति इसके प्रतीकवाद और लाखों भक्तों की अटूट आस्था में निहित है जो इसे देखते हैं और इसमें भाग लेते हैं।
अस्मिता- श्रद्धालुओं ने नंदी हॉल और गणेश मंडपम से बाबा महाकाल की दिव्य भस्म आरती के दर्शन किए और भस्म आरती की व्यवस्था से लाभान्वित हुए। श्रद्धालुओं ने इस दौरान बाबा महाकाल के निराकार से साकार होने के स्वरूप का दर्शन कर "जय श्री महाकाल" का उद्घोष भी किया।
जैसा कि नाम से स्पष्ट है, भस्म आरती के दौरान भस्म यानी राख से भगवान महाकाल के ज्योतिर्लिंग की आरती की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव को "श्मशान के साधक" के रूप में भी देखा जाता है, और भस्म को उनका "श्रृंगार" कहा गया है।
अस्मिता- किंवदंतियों के मुताबिक, वर्षों पहले महाकालेश्वर की आरती के लिए जिस भस्म का इस्तेमाल किया जाता था, वह श्मशान से लाई जाती थी। हालांकि, मंदिर के मौजूदा पुजारी इस बात को खारिज करते हैं।
भस्म आरती की प्रक्रिया करीब दो घंटे चलती है। इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के बीच महाकालेश्वर का पूजन और श्रृंगार किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने दूषण के भस्म से अपना श्रृंगार किया था। इसलिए वर्तमान में भी महादेव का भस्म से श्रृंगार किया जाता है।
अस्मिता- यही वह पल है, जब आरती दर्शन करने वाली महिलाएं घूंघट निकाल लेती हैं। क्योकि इस समय शिव दिगम्बर स्वरूप में होते है। भगवान के दिगंबर रूप के दर्शन महिलाओं के लिए वर्जति हैं। पुजारी मन के भाव व हाथों की कुशलता से भगवान महाकाल को निराकार से साकार रूप प्रदान करते हैं।
अस्मिता- श्रृंगार में केसर, चंदन, भांग, सूखे मेवे, वस्त्र,आभूषण आदि का उपयोग होता है। शिवनवरात्रि में चांदी के मुखोटे व ऋतु अनुसार फल, फूल श्रृंगार सामग्री का हिस्सा होते हैं। महाशिवरात्रि के बाद दूज पर भगवान का एक साथ पांच रूप में श्रृंगार किया जाता है। भगवान को भस्म अर्पित करने के बाद भांग व चंदन से श्रृंगार कर उन्हें नवीन वस्त्र, आभूषण धारण कराकर आरती की जाती है। पर्व,
त्योहार तथा वार के अनुसार भगवान का श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा शिवनवरात्रि के नौ दिनों में भगवान का चांदी के
मुखारविंदों से दूल्हा रूप में श्रृंगार किया जाता है। भगवान महाकाल के श्रृंगार में शिव सहस्त्रनामावली में उल्लेखित रूपों का समावेश भी किया जाता है। इसके लिए चांदी के मुखारबिंदों का उपयोग होता है।
महाशिवरात्रि के तीन दिन बाद चंद्र दर्शन की दूज पर साल में एक बार भगवान पंच मुखारविंद रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं।शिव नवरात्रि के नौ दिन भगवान का शेषनाग, घटाटोप, छबीना, होल्कर, मनमहेश, उमा-महेश, शिव तांडव तथा महाशिवरात्रि की रात सप्तधान रूप में श्रृंगार किया जाता है।
अस्मिता- सुबह भोग, शाम संध्या तथा रात को शयन आरती के दौरान श्रृंगार होता है। श्रृंगार नित्य संध्या को भगवान महाकाल के भांग श्रृंगार में तीन किलो भांग का उपयोग होता है। भगवान महाकाल की दिन में छः बार आरती की जाती है।
शिवलिंग पर किस मंत्र के माध्यम से, किस ओर भस्म रमाई जाएगी इसका पूरा विधान गोपनीय है। इस गोपनीय प्रक्रिया को महाकाल मंदिर समिति महानिर्वाणी अखाड़े के महंत अपने प्रतिनिधि को सिखाते हैं। इसके अतिरिक्त यह शिक्षा कहीं ओर नहीं दी जाती है।
अखाड़े की परंपरा अनुसार गादीपति महंत भगवान महाकाल को भस्म रमाते हैं, या फिर उनके प्रतिनिधि भगवान को भस्म अर्पित करते हैं। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भस्मारती की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है।
सत्यम, शिवम सुंदरम की अवधारणा को प्रतिपादित करती इस परंपरा का मुख्य आधार ब्रह्म परम सत्य है और जगत मिथ्या है। तात्पर्य यह कि जगत का अंतिम सत्य भस्म है। नश्वर संसार में सब कुछ नष्ट हो जाता है। शिव इसी सत्य को स्वीकार कर भस्म रमाते हैं।
अस्मिता- यह सभी जानकारी हमें महानिर्वाणी अखाड़े के महंत श्री प्रकाश पुरी महाराज जी द्वारा दी गई। हम लोग आरती के बाद मन्दिर प्रांगण में उनके कक्ष में प्रणाम कर आशीर्वाद लेने गए थे। समीर ने मंदिर में जाने के धोती पहनी थी ।
समीर से जब उनका सामना हुआ तो उस को उनकी आखें जानी पहचानी लगी। उसने महंत जी की आखों में झाँका तो वह जान गया कि इन्हीं महंत से इल्तुतमिश ने महाकाल के लिँग के बारे में पूछा था। संतोष जनक जबाब न मिलने के कारण उसके साथ के सैनिक ने उन्हें तलवार से काट दिया था।
तब उनकी यहीं आँखें खुली इल्तुमिश को घूर रहीं थी। समीर सिहर उठा। उन्होंने हमें प्रसादी, रूद्राक्ष की मालायें तथा उत्तरीय प्रदान किया। समीर तथा मैंने श्रृद्धा पूर्वक नमन कर सब सामग्री ग्रहण की तथा यथोचित दक्षिणा समर्पित की ।
समीर और मेरे लिए बड़ा रोमांचक अनुभव था। हमारी चेतना दिव्य लोक में प्रवेश कर गई थी। दर्शन यात्रा कब समाप्त हुई पता ही नहीं चला। लगा जैसे समय थम गया हो। समीर इतना अभिभूत हो गया कि वह इल्तुमिश के कृत्य को उन पलों में भूल गया। हम टैक्सी से होटल वापिस आ गये।
आदेश
अस्मिता- व्यास परिवार के बारे में मेरे पिता जी के दोस्त ने विस्तार से बताया था कि उज्जैन के व्यास परिवार का इतिहास काफी लंबा और समृद्ध है। यह परिवार मुख्य रूप से उज्जैन शहर से जुड़ा है, जो प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा है।
व्यास परिवार, विशेषकर ब्राह्मण समुदाय का एक प्रतिष्ठित हिस्सा है।व्यास परिवार के लोग उज्जैन में ज्योतिषी और भविष्यवक्ता थे। प्रख्यात ज्योतिषी होने के कारण देश-विदेश के अधिकांश बड़े नेता तथा धनपति उनसे परामर्श करते रहते थे उज्जैन में व्यास परिवार के लोग अन्य समुदायों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखते हैं और शहर की संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
व्यास परिवार ने शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। व्यास परिवार के कई सदस्य विद्वान, शिक्षक, और साहित्यकार रहे हैं।
व्यास परिवार धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। व्यास परिवार के कई सदस्य धार्मिक कार्यों और पूजा-पाठ में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। उज्जैन में व्यास परिवार का इतिहास शहर के गौरवशाली इतिहास का एक अभिन्न अंग है।
अस्मिता- भारत का पहला पंचांग व्यास परिवार ने बनाया था। इस परिवार को पाकिस्तान और भारतीय स्वतंत्रता की तारीखें निर्धारित करने वाले के रूप में जाना जाता है।
उज्जैन महाकवि कालिदास की नगरी है; पर वहां उनकी स्मृति में कोई स्मारक या संस्था नहीं थी। अतः उन्होंने ‘अखिल भारतीय कालिदास परिषद’ तथा ‘कालिदास अकादमी’ जैसी संस्थाएं गठित की।
इनके माध्यम से प्रतिवर्ष ‘अखिल भारतीय कालिदास महोत्सव’ का आयोजन होता है। उज्जैन भारत के पराक्रमी सम्राट विक्रमादित्य की भी राजधानी थी। व्यास जी ‘विक्रम द्विसहस्राब्दी महोत्सव अभियान’ के अन्तर्गत ‘विक्रम’ नामक पत्र निकाला तथा विक्रम विश्वविद्यालय, विक्रम कीर्ति मंदिर आदि कई संस्थाओं की स्थापना की।
ज्योतिष का अभ्यास इस परिवार की परम्परा रही है। इसलिए समीर का मानना है कि उसे मोक्ष का मार्ग व्यास जी ही बता सकते है। हम ने फिर से व्यास जी से सम्पर्क किया।
अस्मिता- व्यास जी ने हम लोगों को बड़े गणेश भगवान ने मंदिर में बुलाया। हम लोग सुबह-सुबह जब मन्दिर पहुंचे जब व्यास जी भगवान की पूजा कर रहे थे। भगवान को नमन कर हम लोग चुपचाप फर्स पर बैठ गये। जब व्यास जी पूजा कर निर्वृत हुए तो हम लोगों को चरणामृत तथा प्रसाद दिया।
अस्मिता- मैंने मन्दिर के सम्बन्ध में पूछा।
व्यास जी बोले- “गणेश जी की इस भव्य मूर्ति को लेकर कहा जाता है कि यह मूर्ति लगभग एक सौ चौदह वर्षों पूर्व इस मंदिर में स्थापित की गई थी। जानकारी के अनुसार, मंदिर में स्थापित गणेश प्रतिमा की स्थापना महर्षि गुरु व्यास ने करवाई थी।
इस मूर्ति को बनाने का ढंग भी अन्य मूर्तियों से अलग है। गणेश जी की इस मूर्ति को बनाने में सीमेंट का नहीं बल्कि इसमें गुड़ और मेथी दानों का प्रयोग किया गया है।
साथ ही इस मूर्ति के निर्माण में ईंट, चूने, बालू और रेत का प्रयोग भी किया गया है। इसके अलावा मूर्ति को बनाने में सभी पवित्र तीर्थ स्थलों का जल मिलाया गया। इसके अलावा सात मोक्षपुरियों मथुरा, द्वारिका, अयोध्या, कांची, उज्जैन, काशी और हरिद्वार से लाई हुई मिट्टी भी मिलाई गई है। यही कारण है कि यह मूर्ति अन्य मूर्तियों से विशेष महत्व रखती है।
इस मूर्ति को बनाने में ढाई वर्ष का समय लगा था। इस प्रतिमा को देते समय तांत्रिक ने कहा था कि इस प्रतिमा को ऐसे स्थान पर विराजित करना जहां पर इस प्रतिमा को श्रद्धालुओं द्वारा छुआ ना जा सके। इसलिए इस मूर्ति के चारों तरफ जालियां लगाई गई थी।”
इसके साथ ही मंदिर में कुछ ऐसी प्रतिमा भी विराजमान है जो किसी और मंदिर मे कम ही देखने को मिलती हैं।
इस मंदिर में पंचमुखी हनुमान की सिंदूर वाली प्रतिमा, कालिया मर्दन करते भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा और माता यशोदा की गोद में श्रीकृष्ण की प्रतिमा भी विराजमान है। धीऱे-धीरे मन्दिर में लोग कम हो गये तब व्यास जी आसन पर आ कर बैठे।
समीर ने उनसे कहां- "आप से कुछ छिपा नहीं है। मैं ब्रम्ह हत्या का श्राप अभी तक भोग रहा हूँ। मुझे मुक्ति का मार्ग दिखाये।"
व्यास जी ने आँखें बंद कर ध्यान मुद्रा में बैठ गये। कुछ क्षण के लिये मौन छा गया।
फिर धीरे से उन्होंने आँखें खोली और बोले- "अपनी जन्म तिथि तथा जन्म स्थान बताओ।"
अस्मिता- मैने समीर की जन्म तिथि बताई। व्यास जी ने कागज पेन उठा कर मेरी कुण्डली बना कर बड़ी देर तक गणना की। फिर पंचांग खोला। कागज पर लिखना जारी रखा। व्यास जी ने कुण्डली देख कर बताया कि मेरी कुंडली में ऋणानुबंध का बहुत बड़ा योग बन रहा है। ऋणानुबंध के मुक्ति का उपाय करना होगा।
फिर मेरी तरफ देख कर बोले "तुम्हारे मोक्ष का समय आ गया है। तुम्हें कपाल व्रत की साधना करना होगी। इस वृत से ब्रम्ह हत्या से मुक्ति अन्य मार्गों की तुलना में तेजी से होती है।"
मैंने उत्सुकतावश पूछा "यह कपाल व्रत क्या होता है ?"
व्यास जी हाथ के कागज नीचे रख कर पीठ सीधी कर दीवाल से टिक कर बैठ गये। फिर बोले "कपाल सप्रदाय के सम्बन्ध श्वेताश्वतार उपनिषद में कापालिक के रहस्य को बताया गया है। कापालिकों के ईष्ट देव कालभैरव है। कापालिक दर्शन शैव्य दर्शन के पाशुपत सम्प्रदाय के अंतरगत आने वाला दर्शन है।
दक्ष ब्रम्हा के पुत्र थे। इन्हें प्रजापति के पद पर नियुक्त किया गया। वे नारायण के भक्त थे और शुरुआत में शिव के बहुत बड़े भक्त थे। शिव और शक्ति को मिलाने के लिये तथा शिव के ससुर बनाने के लिए ही प्रजापति दक्ष ने आदि शक्ति की साधना की थी और उन्हें पुत्री के रूप में मांगा था।
प्रजापति दक्ष वैदिक धर्म तथा दर्शन के अनुसार सृष्टि को चला रहे थे। तब त्रिदेव नहीं चला रहे थे। प्रजापति दक्ष के पास त्रिदेव के सामान अधिकार शक्तियां थी।
प्रजापति दक्ष की पुत्रियों के साथ ही सभी ऋषियों का विवाह हुआ जैसे अत्रि, कश्यप भृगु आदि तो देवता, असुर, दैत्य, राक्षस,नाग, गंधर्व, किन्नर आदी। जितनी प्रजातियां थी यह प्रजापति दक्ष का परिवार ही था। इसलिए कभी किसी में विरोधाभास नहीं हुआ।
जब तक प्रजापति दक्ष का शासन था। जब तक माता सती पैदा नहीं हुई थी। तब तक सुख था। शांति थी। कोई विकार नहीं था समाज में। यज्ञ परम्परा थी। खेती थी व्यापार था। एकदम सुखी चल रहा था सब। किसी के अंदर लालच नहीं था माया नहीं थी। संसार एकदम बढ़िया चल रहा था। इधर जब दक्ष ने आदिशक्ति को पुत्री के रूप में मांगा तो उधर शिव अखण्ड समाधी में चले गए थे। श्री हरि नारायण विष्णु योग निद्रा में चले गए थे। ब्रम्ह देव सृष्टि का सृजन कर विस्तार कर रहे थे।
जब ब्रम्ह देव ने देखा कि आदि शक्ति का जन्म हो गया है। शिव और सती को मिलाने का समय आया है। तो ब्रम्ह देव ने शिव को जगाने का प्रयास किया। भगवान शिव नहीं जागे। क्योंकि धरती पर धर्म और सत्य की सत्ता थी। अधर्म कोई नहीं था।
क्योकि प्रजापति दक्ष के ही देवता तथा असुर दोनों संतानें थी। देवता, ऋषि मुनी सब दक्ष के साथ ही रहते थे। जब शक्ति बड़ी होने लगी और शिव नहीं जगे तब ब्रम्हा को एक उपाय सुझा। उस समय ब्रम्हा के पांच सिर हुआ करते थे। भगवान शिव पांच महाभूतों के स्वामी थे। ब्रम्हा ने चार मुखों से चार वेदों की रचना कर दी थी। धर्म स्थापित हो गया था।
लेकिन धर्म करने की लिए लोगों में कर्म करने के लिये थोड़ा अधर्म होना आवशयक था। तो फिर ब्रम्ह देव ने पांचवें मुख से पांचवें वेद का निर्माण किया।
जिस वेद का नाम काम वेद रखा गया। इसके अन्दर विकारों से भरा ज्ञान था। वेदों का ज्ञान जीवन दर्शन था। जीवन को सही दिशा में ले जाने वाला था। लेकिन काम वेद पूरा वाम मार्गी था। पूरा वेदों से उलट था। पंच मकार का जन्म इसी से हुआ।
ब्रम्हा जी शिव को जगाने की लिए अहंकार में आ गये। क्योंकि वह अपने पांचवें मुख से काम वेद की रचना कर चुके थे। हम जानते है कि चाहे ज्ञान हो या शक्ति उस का प्रभाव पड़ेगा ही। ऊर्जा का जन्म हो जाने पर उस ऊर्जा को नष्ट नहीं किया जा सकता। इस ऊर्जा को सम्हाला जा सकता है। बदला जा सकता है। ट्रांसफर किया जा सकता है। इसका स्वरुप बदला जा सकता है। लेकिन नष्ट नहीं किया जा सकता।
अहंकार के वशीभूत हो कर के ब्रम्ह देव ने घोषणा की वेद निरर्थक है। उन्हें नष्ट कर देना चाहिये और काम वेद को जीवन दर्शन बनाना चाहिए। यही बात समाधी में शिव के कानों तक पहुंच गई। कि वाम मार्ग? भगवान शिव समाधी से उठे क्रोध से लाल हो गये।
ब्रम्हा ने काम, लोभ, मोह, मद, मैथुन, मत्सर की रचना की और इधर शिव को क्रोध आ गया इस तरह समस्त विकार इकट्ठा हो गये। शिव ने क्रोध भैरव को उत्पन्न किया। क्रोध भैरव ने ब्रम्हा का पंचमा सिर उखाड़ लिया। वही से निर्माण हुआ दोषों का। जो ज्योतिषी व तान्त्रिक दोष बताते है। यही से पहले दोष ब्रम्ह दोष का निर्माण हुआ संसार में।
शिव तथा विष्णु वहां पहुंचे। ब्रम्हा दर्द से पीड़ित थे क्योंकि उन्होंने काम वेद से पाप को जन्म दिया था। तब यह पांच दोषों का पंचामृत विष्णु ने धारण कर लिया। जिससे हमारे अन्दर शीतलता, विवेक तथा धर्म पैदा कर दिया। अब क्रोध भैरव के दो रूप हो गये। एक हुआ काल भैरव और दूसरा हुआ कपाल भैरव। जिसने ब्रम्हा के कपाल को पकड़ा था वे हुए कपाल भैरव तथा दूसरे रूप ने अपने अन्दर पाप को धारण किया वह बना काल भैरव।
काल भैरव को आदेश मिला कि तुम काशी में काशी विश्वनाथ के कोतवाल बनोंगे तथा काशी विश्वनाथ की आराधना कर तुम्हें अपने पापों से मुक्ति मिलेगी। कपाल भैरव के हाथ में ब्रम्हा जी का वह शीश था जिसके अन्दर विकार भरा था उसे पी कर उज्जैन में महाकाल के कोतवाल बने। उन्होंने पापों को समय के साथ पिया।
इस तरह जो समय के बाहर है वह काल भैरव है और जो समय के अन्दर है वह कपाल भैरव है। उन्हें महाकालेश्वर की साधना कर पाप से मुक्त हो मोक्ष पाने का आदेश दिया गया। यहीं से हमारे धर्म में विकारों की शुरुआत हुई। काम वेद तथा शिव के क्रोध विकार के प्रभाव के कारण प्रजापति दक्ष क्रोधित हो गये। हमारे पिता ब्रम्हा का शीश उखाड़ लिया।
जबकि मैं आदि शक्ति और शिव को मिलाने के लिये कोशिश कर रहा हूँ। अब यहाँ से विरोधाभास पैदा हो गया। जो दक्ष शिव का भक्त था। वह शिव का सबसे बड़ा विरोधी हो गया। दक्ष ने शिव को ‘कपाली’ कह कर पुकारना शुरू कर दिया।
क्योकि शिव का स्वरुप उनके पिता के कपाल को पकड़ा हुआ था। इसीलिये दक्ष बार-बार सती से कहने लगे कि उस ‘कापालिक’ से तुम्हारा विवाह नहीं होने दूँगा। क्योकि उन्हें डर था कि काम वेद के विकारों का प्रभाव शिव पर होगा। जिससे मेरी बेटी पवित्र नहीं रह जाएगी। यही से शिव तथा दक्ष की शत्रुता की शुरुआत हुई। इसीलिए शिव ने वीरभद्र से दक्ष का वध करवाया। लेकिन उन्हें पुनः जीवित किया। क्योंकि वह जानते थे की दक्ष मेरा विरोध नहीं कर रहा है। वल्कि उस पाप का विरोध कर रहा है जो ब्रम्हा सिर से पीने के कारण मुझ में प्रवेश कर गये।
प्रजापति दक्ष यज्ञ परम्परा तथा खेती के जनक थे। जीवन दर्शन के जनक थे। यहीं से पांच मकार उत्पन्न हो गये। इसी लिये उन्होंने वैदक सभ्यता तथा जीवन दर्शन को बढ़ाया ताकि नकारात्मक चीजें प्रभाव न डाल सकें।
दक्ष ने बाद दूसरा प्रभाव पड़ा शुक्राचार्य पर। शुक्राचार्य दक्ष का नाती था। पहले शुक्राचार्य देवता ऋषि पुत्र थे। लेकिन इन्हीं विकारों के कारण वह असुरों के गुरु बने। यहीं से नरबलि, अपहरण, बलात्कार जैसे पापाचार शुरू हुए।
क्योंकि सृष्टि के सृजन कर्ता ब्रम्हा ही है अतः पाप तथा पुण्य ब्रम्हा ने ही रचे। यहीं से सभी वाममार्गी साधनाऐं शुरू हुई। यहीं से कापालिक साधना शुरू हुई।
महाकाल वन समस्त पातकों को क्षीण करने वाला क्षेत्र है। यह मातृकाओं का निवास स्थान है। इस कारण इसे ‘पीठ’ कहते है।
यहां मरे हुए लोग जन्म नहीं लेते इस लिए इसे ‘ऊसर भूमि’ कहा जाता है।
इसके शमशान चक्र तीर्थ को ‘विमुक्त क्षेत्र’ भी कहते है। इस पृथ्वी पर नैमिषारण्य क्षेत्र और पुष्कर तीर्थ उत्तम कहे गए है। कुरुक्षेत्र तीनों लोकों में उत्तम कहा जाता है। कुरुक्षेत्र से दसगुनी पुण्यमयी काशीपुरी मानी गई है, और कशी से दस गुना महाकाल वन है।
शिव जब कपाल ले कर पृथ्वी पर भ्रमण करते यहां पहुंचे तब इस वन के वृक्षों ने बड़ी शृद्धा भक्ति के साथ उनके चरणों में पुष्प वर्षा की।
भगवान शिव ने प्रशन्न हो कर अपना कपाल महाकाल वन उज्जैयनी में फेंक दिया तथा सदा रहना स्वीकार किया। शिव बोले यहां जो कपाल व्रतचर्या करेगा वह मेरे वाम पार्श्व में बैठेगा।
शिव ने कपाल व्रतचर्या के बारे में बताया कि जो कपाल में भोजन करे। कपाल व्रत को हो आभूषण की भांति धारण करे। हाथ में कपाल लिए रहे। और नियम पूर्वक भिक्षान्न का अहार करे। श्मशान में निवास करे। समस्त प्राणियों की प्रति प्रसन्न रहे।
प्रिय और अप्रिय की प्राप्ति में सम भाव रखें। सब अंगों को भस्म से विभूषित करे। विशेषतः ज्ञानवान और जितेन्द्रिय हो। सब प्रकार की अशक्तियों को त्याग दे। मिट्टी, भस्म व जल मात्र का संग्रह करे। श्रेष्ठ आसनों को जीते। महाकाल वन में आश्रय बना कर रहे। धीरे-धीरे मुझ में चित्र को एकाग्र करे। यही लोकातीत उत्तम ज्ञान एवं महापाशुपत व्रत है।"
व्यास जी ने धैर्य के साथ व्रत की व्याख्या की। फिर बोले- "कपाल व्रत गोपनीय पवित्र एवं पाप नाशक है। शिव कहते है कि जो कपाल व्रत धारण करते है वे मेरे सामान हो कर पृथ्वी पर विचरते है। यह महाव्रत संसार बंधनों से छुटकारा दिलाने वाला पवित्र व्रत है। यही मोक्ष का कारण है।"
अस्मिता- इतना कठोर व्रत सुनकर समीर के शरीर में कंपन होने लगा। गला सूखने लगा। फिर समीर ने हिम्मत कर पूछा-
"मुझे ऐसे कापालिक गुरु कहां मिलेंगे ?"
व्यास जी ने समीर की कुण्डली देखी। उंगलियों पर कुछ गणना की, बोले
"मार्गशीष माह शुक्ल पक्ष की "त्रयोदशी" तिथि को चक्रतीर्थ रात को जाना वहीँ तुम्हें तुम्हारे कापालिक गुरु मिलेंगे।" डर से मन विचलित हो रहा था। लेकिन अब पीछे लौटने के सारे रास्ते बंद हो गये थे।
व्यास जी बोले- “भोलेनाथ पर भरोसा रखों सब कल्याण होगा।” उन्होंने फिर "जय महाकाल" का घोष किया। हम दोनों ने "जय महाकाल" बोला और उठ बैठे।
अस्मिता- व्यास जी को प्रणाम किया दक्षिणा उनके चरणों में अर्पित कर होटल वापिस आ गये। "त्रयोदशी" तिथि को चक्रतीर्थ जाने का आज का दिन ही था। हम लोग दोपहर में चक्रतीर्थ देखने गये।
उज्जैन में चक्रतीर्थ एक प्रमुख और प्राचीन श्मशान घाट है जो शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। यह स्थान तंत्र-मंत्र साधना के लिए भी जाना जाता है और माना जाता है कि देश के सबसे जागृत श्मशानों में से एक है।
पुराणों में चक्रतीर्थ की महिमा का वर्णन मिलता है। चक्रतीर्थ श्मशान घाट पर सिद्धियों की प्राप्ति के लिए तांत्रिकों द्वारा अनेक अनुष्ठान किए जाते हैं।
तांत्रिक श्मशान घाट पर सिद्धियों को प्राप्त तो करते हैं, लेकिन इन सिद्धियों की पूर्णता भगवान गणेश के दर्शनों के बाद ही होती है। तांत्रिक मंदिर में पूजन-अर्चन व दर्शन के बाद ही अपनी सिद्धियों की पूर्णता मानते हैं।
उज्जैन में जलती चिताओं पर की तंत्र क्रियाएं; मुर्दों को लगाया नींबू, मिर्च और मदिरा का भोग। उज्जैन के चक्रतीर्थ श्मशान घाट पर रात होते ही विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
इसमें नींबू, शराब और पुतलियों के माध्यम से तांत्रिक भगवान भैरवनाथ की मूर्ति के सामने तंत्र साधना कर शाबर मंत्र पढ़ते नजर आते हैं। ऐसे विवरण हम लोगों को वहां मिले लोगों से सुनने को मिले।
ऋणानुबंध
अस्मिता- मैने व्यास जी से पूछा- "यह ऋणानुबंध क्या होता है ?"
व्यास जी ने बताया "ज्योतिष शास्त्र वैदिक ज्योतिष में, ऋणानुबंध पिछले जन्मों से चले आ रहे कर्म संबंधों के ऋणों की अवधारणा को संदर्भित करता है। जो हमारे वर्तमान रिश्तों और जीवन स्थितियों को प्रभावित करते हैं। यह विचार है कि हम कई जन्मों में संचित सकारात्मक या नकारात्मक कर्म संबंधों के एक जटिल नेटवर्क के माध्यम से दूसरों से जुड़े हुए हैं।
अनिवार्य रूप से, यह अनसुलझे मुद्दों, चुकाए नहीं गए ऋणों या पिछले जन्मों के अधूरे वादों के बारे में है जो हमारे वर्तमान जीवन में हमारे द्वारा सामना किए जाने वाले लोगों और उनके साथ हमारे अनुभवों के माध्यम से प्रकट होते हैं। ये संबंध परिवार के सदस्यों, दोस्तों, जीवनसाथी, सहकर्मियों या यहाँ तक कि प्रतीत होने वाली यादृच्छिक मुलाकातों के साथ भी हो सकते हैं।”
"हमारे जीवन में जो लोग आते है क्या वे सब इसी कारण आते है ?" समीर ने उत्सुकतावश पूछा।
व्यास जी बोले देखो- "ऋणानुबंध के मुख्य पहलू या परस्पर जुड़ाव हमेशा यह इस बात पर जोर देता है कि कोई भी व्यक्ति बिना किसी कारण के हमारे जीवन में नहीं आता है। हर रिश्ता, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, किसी पिछले कर्म संबंध का परिणाम होता है।"
"तो इन ऋणों से कैसे उरिन हो सकते है ?" मैने जिज्ञासा रखी।
व्यास जी ने कहा- "खातों को संतुलित करना जरुरी है। इन संबंधों का प्राथमिक उद्देश्य कर्म खातों को संतुलित करना है। यदि आपने पिछले जन्म में किसी का कर्ज लिया है, तो वे इस जीवन में उस खाते को चुकाने के लिए "ऋणी" या "लेनदार" के रूप में प्रकट हो सकते हैं। इसी तरह, यदि आपने किसी की मदद की है, तो वे उस एहसान को चुका सकते हैं।"
"इन ऋणों की इस जीवन में अभिव्यक्ति कैसे होती है ?" समीर ने जानना चाहा।
व्यास जी ने बताया- "ऋणानु बंधन विभिन्न तरीकों से प्रकट हो सकता है, जैसे रिश्तों में दोहराए गए पैटर्न, खुद को बार-बार समान संबंध गतिशीलता में पाना।अस्पष्टीकृत कठिनाइयाँ, ईमानदार प्रयासों के बावजूद जीवन के कुछ क्षेत्रों जैसे, वित्त, स्वास्थ्य, रिश्ते में लगातार समस्याएँ। तीव्र आकर्षण या प्रतिकर्षण, कुछ व्यक्तियों के प्रति एक अकथनीय आकर्षण या विकर्षण महसूस करना।
कुंडली में विशिष्ट "दोष" पीड़ा कुछ ज्योतिषीय संयोजनों को पूर्वजों, माता-पिता, भाई-बहनों या आध्यात्मिक व्यक्तियों से संबंधित पिछले जीवन के अभिशाप या ऋण का संकेत माना जाता है।"
आत्मा की यात्रा, इन कर्मों की यादों को सूक्ष्म शरीर आत्मा में संग्रहीत माना जाता है, और वे मुक्ति मोक्ष प्राप्त होने तक आत्मा की यात्रा को प्रभावित करते हैं।
"ज्योतिष में पिछले जन्म के ऋणु बंधन से छुटकारा पाने के उपाय क्या है?" समीर अधीर हो उठा।
व्यास जी ने कहा- "ज्योतिष शास्त्र ऋणु बंधन के प्रभावों को कम करने और पिछले जन्म के कर्म ऋणों को हल करने की दिशा में काम करने के लिए विभिन्न उपाय प्रदान करता है। ये उपाय अक्सर आत्म-सुधार, आध्यात्मिक अभ्यास और वर्तमान जीवन में सचेत कार्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यहाँ कुछ सामान्य दृष्टिकोण दिए गए हैं।
अपने कर्म को स्वीकार करना और समझना, पहला कदम यह पहचानना है कि आपके जीवन में कुछ पैटर्न या कठिनाइयाँ पिछले कर्म ऋणों से उत्पन्न हो सकती हैं। एक ज्योतिषी संभावित कर्म संकेतकों की पहचान करने के लिए आपकी जन्म कुंडली का विश्लेषण करने में मदद कर सकता है।
सक्रिय रूप से सुधार करना या प्रतिक्रिया, क्षमा मांगना, यदि आपको लगता है कि आपने अतीत में किसी को नुकसान पहुँचाया है, तो सक्रिय रूप से क्षमा मांगना आंतरिक रूप से या प्रार्थना के माध्यम से भी और अपने वर्तमान जीवन में सुधार करना महत्वपूर्ण है। इसमें उन लोगों तक पहुँचना शामिल हो सकता है जिनके साथ आपने गलत किया हो या दूसरों को सहायता प्रदान करना।
दयालुता और दान के कार्य सेवा और दान निस्वार्थ सेवा, दयालुता, करुणा और उदारता के कार्य करने से नकारात्मक कर्म को संतुलित करने में मदद मिल सकती है। जरूरतमंदों को दान देना, कम भाग्यशाली लोगों की मदद करना और बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना अच्छे कर्म करना अत्यधिक अनुशंसित है।
क्षमा, उन लोगों को क्षमा करना जिन्होंने आपको और खुद को पिछली गलतियों के लिए गलत किया है, कर्म बंधनों को मुक्त करने का एक शक्तिशाली तरीका है।
आध्यात्मिक अभ्यास साधना ध्यान और योग ये अभ्यास आपको अपने व्यवहार, उनके परिणामों के बारे में गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त करने और सहानुभूति और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं, जो कर्म ऋण को हल करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। कर्म शुद्धि के लिए विशिष्ट ध्यान का अभ्यास किया जा सकता है।
मंत्र और जप, विशिष्ट मंत्रों का जाप, जैसे "ओम मणि पद्मे हुम" करुणा से जुड़ा हुआ, या विशिष्ट देवताओं से संबंधित अन्य वैदिक मंत्र, माना जाता है कि मन और कर्मों को शुद्ध करते हैं। प्रार्थना और पूजा, अपने चुने हुए देवता के प्रति निरंतर प्रार्थना और भक्ति कर्म संबंधी अशुद्धियों को साफ करने और दिव्य कृपा को आमंत्रित करने में मदद कर सकती है।
उपवास, विशिष्ट दिनों पर या विशिष्ट देवताओं के लिए उपवास करना भी खुद को शुद्ध करने और कर्म संबंधी बोझ को कम करने का एक तरीका माना जाता है।"
क्या उपचारात्मक ज्योतिषीय उपाय नहीं है ? अस्मिता ने पूछा।
व्यास जी ने पुनः कहा- "ग्रहों की शांति, यदि आपकी जन्म कुंडली पिछले जीवन के ऋणों से संबंधित विशिष्ट ग्रह पीड़ाओं को इंगित करती है उदाहरण के लिए, अशुभ सूर्य/चंद्रमा के कारण पूर्वजों के श्राप, मंगल/बृहस्पति के कारण भाई-बहनों के साथ समस्याएँ, तो ज्योतिषी उन ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए विशिष्ट पूजा, होम अनुष्ठान या कुछ रत्न पहनने की सलाह दे सकते हैं।
विशिष्ट दोष निवारण पूजा, "पितृ दोष" पैतृक ऋण, "काल सर्प दोष" या पिछले जीवन के मुद्दों को इंगित करने वाले अन्य ग्रहों के संयोजन जैसे विशिष्ट दोषों के लिए, विशेष अनुष्ठान निर्धारित किए जाते हैं।
पारद उपाय, कुछ परंपराएं नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाने और आभा को साफ करने के लिए लिंगम, माला या कंगन के रूप में शुद्ध पारद ठोस पारा का उपयोग करने का सुझाव देती हैं, जिसे "बंधन दोष" कर्म बंधन का एक प्रकार से निपटने में मदद करने वाला माना जाता है। पारद लिंगम को पकड़े हुए जंजीरों को टूटते हुए देखना एक ऐसा ही उपाय है।"
"क्या नए अनुभवों से सीख कर नकारात्मक पैटर्न को तोड़ा जा सकता है ?" समीर ने पूछा।
"अवश्य ऐसा किया जा सकता है। " व्यास जी ने कहा "सचेत निर्णय लेना, पिछली गलतियों को दोहराने के बजाय, अपने वर्तमान जीवन में सचेत रूप से नैतिक और सकारात्मक विकल्प बनाना आपकी कर्म पटकथा को फिर से लिखने में मदद करता है।
चुनौतियों का सामना करना, कठिन परिस्थितियों से बचने के बजाय, सीखने के दृष्टिकोण के साथ अपने कर्म संबंधी चुनौतियों का सामना करना महत्वपूर्ण व्यक्तिगत विकास और समाधान की ओर ले जा सकता है।
सद्गुणों का विकास करना, धैर्य, ईमानदारी, क्षमा, विनम्रता और आत्म-नियंत्रण जैसे सद्गुणों को विकसित करना सकारात्मक कर्म उत्पन्न करने और पिछले नकारात्मक कार्यों का प्रतिकार करने में मदद करता है।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ज्योतिष इस बात पर जोर देता है कि जबकि भाग्य पिछले कर्मों से प्रभावित होता है, वर्तमान क्षण में स्वतंत्र इच्छा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सचेत रूप से अच्छे कार्यों, विचारों और इरादों को चुनकर और आध्यात्मिक अभ्यासों में संलग्न होकर, व्यक्ति ऋणानुबंधन के प्रभावों को काफी हद तक कम कर सकता है और अधिक सामंजस्यपूर्ण और पूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकता है, अंततः आध्यात्मिक मुक्ति का लक्ष्य बना सकता है।"
जन्म कुंडली में ऋणानुबंधन की पहचान करना वैदिक ज्योतिष का एक जटिल पहलू है जिसके लिए विभिन्न कारकों का विश्लेषण करने के लिए एक कुशल ज्योतिषी की आवश्यकता होती है। यह आमतौर पर एक विशिष्ट ग्रह स्थिति के बारे में नहीं है, बल्कि संकेतों का एक संयोजन है जो पिछले जन्मों से अनसुलझे कर्म संबंधों की ओर इशारा करता है।
"क्या ज्योतिषी ऋणानु बंधन और ग्रहों की स्थिति संयोजनों को कैसे देख सकता है?" समीर ने पूछा।
व्यास जी ने बताया- "कर्म ऋण ऋणानुबंधन की पहचान करने के लिए मुख्य सिद्धांत है। शनि मुख्य कर्म संकेतक है। शनि को सार्वभौमिक रूप से कर्म के ग्रह के रूप में जाना जाता है। जन्म कुंडली में इसकी स्थिति, पहलू और स्थिति इस बात के प्राथमिक संकेतक हैं कि आपको कहाँ सीखने के लिए कर्म संबंधी सबक हैं, कर्तव्यों को पूरा करना है या ऋण चुकाना है।
कुण्डली में विशेष घरों में स्थान से यह जाना जाता है। छठा घर, ऋण, शत्रु, सेवा और दैनिक संघर्षों का प्रतिनिधित्व करता है। यहां पीड़ित शनि पिछले जन्म के ऋण या संघर्षों का संकेत दे सकता है, जिनका समाधान आवश्यक है।
आठवां घर, अचानक परिवर्तन, छिपे हुए मामले, दीर्घायु, विरासत और अनर्जित धन/ऋण का प्रतिनिधित्व करता है। यहां शनि गहरे बैठे कर्म संबंधी मुद्दों की ओर इशारा कर सकता है, विशेष रूप से संयुक्त वित्त, विरासत या पुरानी समस्याओं से संबंधित।
बारहवां घर, हानि, अलगाव, मुक्ति और छिपे हुए शत्रुओं का घर। यहां एक मजबूत या पीड़ित शनि पिछले जन्म के त्याग, कारावास या अनसुलझे आध्यात्मिक ऋणों का संकेत दे सकता है। यह कर्म संबंधी बोझ को आगे ले जाने का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
दूसरा घर, परिवार, धन, भाषण और संचित संसाधन। यहां शनि परिवार की वंशावली, वित्तीय संघर्ष या भाषण से संबंधित पिछले जन्म की प्रतिज्ञाओं से संबंधित मुद्दों का संकेत दे सकता है।
पांचवां घर, बच्चे, रचनात्मकता, पिछले जीवन के गुण पुण्य। यहां शनि बच्चों के साथ देरी या कठिनाइयों का कारण बन सकता है, जो संतान से संबंधित कर्म संबंधी मुद्दों का संकेत देता है।
सातवां घर, विवाह, साझेदारी और सार्वजनिक संबंध। यहाँ शनि रिश्तों के माध्यम से देरी, चुनौतियों या कर्म संबंधी सबक का संकेत दे सकता है।
शनि के पहलू, संवेदनशील घरों या ग्रहों पर शनि के कठोर पहलू तीन, सात और दस कर्म प्रतिबंध या सबक के क्षेत्रों को उजागर कर सकते हैं।
दुर्बल या वक्री शनि, एक दुर्बल शनि जैसे, मेष राशि में या वक्री शनि इस जीवन में किसी के कर्तव्यों को पूरा करने में कर्म संबंधी सबक या कठिनाइयों का एक महत्वपूर्ण बैकलॉग बताता है।
राहु और केतु चंद्र नोड्स, कर्म अक्ष: राहु उत्तर नोड और केतुदक्षिण नोड कर्म ज्योतिष में महत्वपूर्ण हैं। वे वर्तमान अवतार राहु के लिए आत्मा की इच्छाओं और सबक और पिछले जन्मों केतु से संचित प्रवृत्तियों और अनसुलझे मामलों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
राहु-केतु की धुरी, जिन घरों में राहु और केतु स्थित हैं, वे इस जीवन के प्राथमिक कर्म विषयों को इंगित करते हैं। केतु का घर दर्शाता है कि आपने अतीत में क्या महारत हासिल की है या क्या अधिक किया है, और राहु का घर दर्शाता है कि आपको इस जीवन में उस कर्म को संतुलित करने के लिए क्या सीखने और अनुभव करने की आवश्यकता है।
केतु की स्थिति, केतु जिस स्थान पर बैठता है, वह अक्सर अलगाव, हानि या जाने देने की आवश्यकता की भावना को इंगित करता है। यह वह स्थान है जहाँ आपके पास कर्म संबंधी "सामान" है जिसे आपको छोड़ने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, चौथे घर में केतु घर या माँ के साथ पिछले जीवन के मुद्दों का संकेत दे सकता है, जिससे बेचैनी या घर बसाने में कठिनाई की भावना हो सकती है।
राहु की स्थिति, राहु जिस स्थान पर बैठता है, वह तीव्र इच्छा, महत्वाकांक्षा और जुनून के क्षेत्र को इंगित करता है। यह वह स्थान है जहाँ आत्मा विकसित होना और नए सबक सीखना चाहती है, जो अक्सर कर्म संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपरंपरागत या चुनौतीपूर्ण अनुभवों की ओर ले जाता है।
राहु/केतु के साथ संयोजन, राहु या केतु के साथ संयुक्त कोई भी ग्रह अत्यधिक कर्म संबंधी हो जाता है। उस ग्रह की प्रकृति जैसे, भावनाओं के लिए चंद्रमा, रिश्तों के लिए शुक्र कर्म संबंधी भागीदारी के विशिष्ट क्षेत्र को प्रकट करेगी। उदाहरण के लिए, केतु के साथ शुक्र पिछले जन्म के रिश्तों से जुड़ी समस्याओं या भौतिक सुखों से विरक्ति का संकेत दे सकता है।
बारहवां भाव, अंत, मुक्ति, अवचेतन मन, छिपे हुए शत्रुओं और पिछले जन्मों के भाव के रूप में, बारहवां भाव ऋणानु बंधन का एक मजबूत संकेतक है।
बारहवें भाव में ग्रह, यहाँ स्थित ग्रह, विशेष रूप से शनि, मंगल या राहु जैसे पाप ग्रह, पिछले जन्मों से अनसुलझे मुद्दों की ओर इशारा कर सकते हैं जो छिपी हुई परेशानियों, नुकसान या आत्म-विनाश के रूप में प्रकट होते हैं।
बारहवें भाव का स्वामी, बारहवें भाव के स्वामी की स्थिति और स्थान महत्वपूर्ण हैं। यदि यह दुर्बल, पीड़ित या पाप ग्रहों से युक्त है, तो यह अतीत के कर्म ऋणों का संकेत दे सकता है जिन्हें हल करने की आवश्यकता है।
बारहवें भाव का छटवें या आठवें भाव से संबंध, इन भावों के बीच मजबूत संबंध ऋण, बीमारी, मुकदमेबाजी छटवां, या अचानक परिवर्तन और छिपे हुए मामलों आठवां से संबंधित गहन कर्म मुद्दों का संकेत दे सकते हैं।
वक्री ग्रह, जब जन्म कुंडली में ग्रह वक्री होते हैं, तो यह अक्सर उस ग्रह और जिस भाव में वह स्थित होता है, उसके अर्थ से संबंधित पिछले जन्मों से अधूरे काम या अनसुलझे सबक को दर्शाता है।वक्री बुध, अनसुलझे संचार मुद्दे, सीखने में रुकावटें या पिछले धोखे।
वक्री शुक्र, रिश्तों, प्यार, इच्छाओं या भौतिक आसक्तियों में कर्म संबंधी सबक। वक्री मंगल, अनसुलझे क्रोध, आक्रामकता, सीआयु संबंधी मुद्दे, या पिछले संघर्ष। वक्री बृहस्पति, ज्ञान, धर्म, शिक्षकों, या ज्ञान के पिछले दुरुपयोग से संबंधित मुद्दे। वक्री शनि, जैसा कि बताया गया है, कर्म संबंधी बकाया और पाठों का एक मजबूत संकेतक।
विशिष्ट "दोष" पीड़ा पितृ दोष, यह पैतृक कर्म ऋण को संदर्भित करता है। यह अक्सर जन्म कुंडली में सूर्य पिता या चंद्रमा माता के पीड़ित होने से संकेतित होता है, खासकर अगर वे राहु/केतु, शनि के साथ संयुक्त हों, या मुश्किल घरों बारहवें भाव का छटवें या आठवें भाव में स्थित हों, या अगर नौवां घर पिता, पूर्वज, धर्म और उसका स्वामी पीड़ित हो।
मंगल दोष, मुख्य रूप से विवाह में देरी/समस्याओं के लिए जाना जाता है, लेकिन यह पिछले जीवन की आक्रामकता, क्रोध, या अनसुलझे संघर्षों से संबंधित एक कर्म संबंधी संकेत भी रखता है, जो अक्सर रिश्तों में प्रकट होता है। यह लग्न, चंद्रमा या शुक्र से एक, चार, सात, आठ या बारहवें भाव में मंगल द्वारा बनता है।
ग्रह गंडांत, जब ग्रह जल राशियों कर्क, वृश्चिक, मीन के बिल्कुल अंत में या अग्नि राशियों मेष, सिंह, धनु के आरंभ में स्थित होते हैं, तो यह पिछले जीवन से चुनौतीपूर्ण कर्म संक्रमण का संकेत दे सकता है।
काल सर्प दोष, जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच घिरे होते हैं, तो इसे अक्सर एक महत्वपूर्ण कर्म पैटर्न के रूप में व्याख्यायित किया जाता है, जो एक विशिष्ट कर्म चक्र पर काबू पाने पर केंद्रित जीवन को दर्शाता है।
लग्न स्वामी लग्नेश और छटवें भाव के स्वामी, लग्नेश और छटवें भाव के स्वामी की युति, यदि प्रथम भाव स्वयं, व्यक्तित्व का स्वामी छटवें भाव ऋण, शत्रु, रोग के स्वामी के साथ युति करता है, विशेष रूप से शनि या राहु के साथ, तो यह पिछले कर्मों से उत्पन्न कर्म संघर्ष या स्वास्थ्य समस्याओं से भरा जीवन पथ इंगित कर सकता है।
लग्न/लग्नेश पर पीड़ा, एक कमजोर, दुर्बल या गंभीर रूप से पीड़ित लग्न स्वामी व्यक्ति के समग्र जीवन और कल्याण पर भारी कर्म बोझ का संकेत दे सकता है।
नौवां भाव धर्म भाव, अक्सर इसे भाग्य और आध्यात्मिकता का भाव माना जाता है, लेकिन नौवें भाव या उसके स्वामी पर पीड़ा पिछले जन्म में धर्म से विचलन का संकेत दे सकती है, जिससे इस जन्म में कर्म संबंधी परिणाम हो सकते हैं। यह गुरुओं, धार्मिक संस्थानों या बड़ों का अनादर करने से संबंधित हो सकता है।
"ज्योतिषी इसकी व्याख्या कैसे करते हैं?" मैने पूछा।
व्यास जी ने कहा- "एक अनुभवी ज्योतिषी सिर्फ़ एक या दो संकेतकों को नहीं देखता। वे एक समग्र विश्लेषण करते हैं, जिसमें शामिल हैं, ग्रहों की शक्तियाँ और गरिमा, क्या कोई ग्रह उच्च, नीच, अपनी राशि में या शत्रु राशि में है?
पहलू, ग्रह अपने पहलुओं के माध्यम से एक दूसरे को कैसे प्रभावित कर रहे हैं। संयोजन, एक साथ बैठे ग्रह।घर का शासक, कौन सा ग्रह किस घर पर शासन करता है और कहाँ स्थित है। दशाएँ ग्रह काल, जब कुछ ग्रह काल चलते हैं, तो वे जन्म कुंडली में दर्शाए गए विशिष्ट कर्म पैटर्न को सक्रिय कर सकते हैं। गोचर, जन्म कुंडली के साथ बातचीत करने वाली वर्तमान ग्रहों की चाल।
राहु और केतु पूर्व जन्म को जोड़ने बाले ग्रह है। जन्म कुंडली में जब भी मंगल राहु और केतु से सम्बन्ध बनाऐगा तो उस कुण्डली में ऋणानुबन्धन होगा। कहां से ऋणानुबन्धन है यह कुण्डली में राहु और केतु की स्थिति से पता चलता है।
जैसे मान लो कुण्डली के दूसरे भाव में राहु और केतु बैठे है और मंगल की दृष्टि उन पर है मतलब ऋणानुबन्धन परिवार के किसी सदस्य से धन सम्बन्धी कोई ऋणानुबन्धन है।
यदि राहु और केतु ग्यारहवें भाव में हो तो निकट मित्र के साथ ऋणानुबन्धन है। सातवें भाव में राहु केतु हो तो स्वमं के शरीर या पत्नी से ऋणानुबन्धन है।
हमारे ऋणानुबन्धन शुभ भी होते है तथा अशुभ भी होते है। इसे देखने की लिये पाचंमेश तथा पंचम भाव का स्वामी कुण्डली में कहां बैठा है। वो तिकोण में, केंद्र में या पाप सम्बन्ध रख रहा है, किस गृह के साथ बैठा है या किस से प्रभावित हो रहा है। यह निर्धारित करता है कि यह ऋणानुबन्धन शुभ है या अशुभ है।
वो तिकोण में, केंद्र में हो तो सकरात्मक ऋणानुबन्धन है। यदि दूसरे भाव का स्वामी लगन लग्नेश से सम्बन्ध बना रहा है तो सन्तान से यदि चतुर्थ भाव के स्वामी से सम्बन्ध बना रहा है तो पति या पत्नी से ऋणानुबन्धन है। कुंडली का छटा भाव ऋण तथा रोग का है तो छटा भाव से शुभ या अशुभ सम्बन्ध है। तो ऋण शुभ या अशुभ है।
तुम्हारी कुंडली देख कर मैं कह सकता हूँ कि पूर्व जन्मों का पाप कर्मों के बहुत जटिल बन्धन तुम्हारे इस जीवन में है। जिनसे तुम्हें मुक्त होना ही होगा। तभी तुम एक उद्देश्यपूर्ण शांत जीवन जी सकोगे।
भगवत गीता के श्लोक जो कर्म के नियमों और ऋणानुबंधन सिद्धांत के साथ संबंध को और अधिक पुष्ट करते हैं:
"शरीरं यद् अवप्नोति यच चाप्य उत्क्रमतिश्वरः गृहीतवैतानि संयति वायुर गन्धन वासयात्"
"श्रीकृष्ण ने कहा: हे अर्जुन, जैसे वायु गंध को उनके स्थान से दूर ले जाती है, वैसे ही शरीर का स्वामी जीवात्मा आत्मा इन मन और इन्द्रियों को शरीर से छीन लेता है, जिसे वह त्याग देता है, और शरीर में चला जाता है, जिसे वह प्राप्त करता है।
"यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयाम् याति देह-भृत्
तदोत्तम-विदं लोकां अमलं प्रतिपद्यते"
"श्रीकृष्ण कहा: हे अर्जुन, जब कोई व्यक्ति सत्वगुण में मरता है, तो वह महान ऋषियों के शुद्ध उच्च लोकों को प्राप्त करता है।" "राजसी प्रलयं गत्वा कर्म-संगिसु जयते
तथा प्रलीनास तामसी मूढ़-योनिसु जयते"
"श्री कृष्ण ने कहा: हे अर्जुन, जब कोई व्यक्ति रजोगुण में मरता है, तो वह फल उत्पादक गतिविधियों में लगे लोगों के बीच जन्म लेता है अर्थात पृथ्वी पर एक पुरुष या महिला के रूप में; और जब कोई व्यक्ति अज्ञानता में मरता है, तो वह पक्षी और पशु साम्राज्य में जन्म लेता है।"
इससे पता चलता है कि यह कर्म ऋण है जो हमारे किसी भी जीवन चक्र में लिए जाने वाले कई जन्मों का बीज बन जाता है।
पद्म पुराण से परिभाषा "ऋणानुभंड रूपेण पशु पत्नी सुता आलय ऋणक्षये क्षयंति तत्र परिवेदना।" पद्म पुराण
अर्थ, सभी रिश्ते पूर्वजन्म के बंधन का परिणाम हैं। एक बार कर्ज खत्म हो जाने पर कोई रिश्ता नहीं रह जाता और इस संसार में दुखों का अंत हो जाता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि जीवन में हर चुनौती या कठिनाई "ऋणानु बंधन" का संकेत नहीं देती है। कभी-कभी, समस्याएँ वर्तमान कार्यों से उत्पन्न होती हैं या जीवन की यात्रा का हिस्सा होती हैं। हालाँकि, आवर्ती पैटर्न, अकथनीय आकर्षण/विकर्षण, या सभी प्रयासों के बावजूद लगातार समस्याएँ दृढ़ता से कर्म की जड़ का संकेत दे सकती हैं।
साधना
अस्मिता- हिंदू धर्म में जब किसी की मृत्यु होती है। तब उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। मृत शरीर रीति रिवाजों के साथ आग के हवाले कर दिया जाता है।
जहां यह पूरी प्रक्रिया की जाती है उसे शमशान घाट कहा जाता है। हम दोनों बहुत डरे हुए थे। लेकिन हिम्मत कर रात दस बजे के आसपास वहां पहुंच गये। घाट पर बहुत काम लोग थे। हम दोनों एक खाली बेंच पर जा कर बैठ गये।
चक्रतीर्थ क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध श्मशान घाट है। इसे 'महाश्मशान' भी कहा जाता है। यहां अंतिम संस्कार करने से मोक्ष प्राप्त होने का विश्वास है और माना जाता है कि यह जन्म-मरण के चक्र को तोड़ देता है।
आज भी अहर्निश यहाँ दाह संस्कार होते हैं। नजदीक में महाकाल मन्दिर में विराजमान है। घाट पर अभी भी एक दो चिताएं जल रही थी। कुछ की गरम रख से धुआँ उठ रहा था। स्ट्रीट लाइट की रोशनी को यह धुआँ रहस्यमय बना रहा था।
दूर रामघाट दिख रहा था। आसपास इमली, आम तथा छिंद के पेड़ों पर कोई खास हलचल नहीं थी। बीच-बीच में दूर कुत्तों के भोंकने की आवाजें आ रहीं थी।
एक मान्यता के अनुसार महाकाल स्वयं यहाँ आने वाले मृत शरीर के कानों में तारक मंत्र का उपदेश देते हैं, एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।
इस घाट की सबसे प्रमुख विशेषता है कि यहां पर किए जाने वाले
दाह संस्कार से मोक्ष की प्राप्ति होती है।'
"भगवान महाकाल" की प्रमुख नगरी उज्जैन में, मृत्यु होने से स्वर्ग मिलना निश्चित है, इसी कारण यह हिंदू धर्म का एक धार्मिक एवं बहुत ही मान्यता प्राप्त दाह संस्कार स्थल है, इसके चलन में एक कथा है कहा जाता है कि
“बहुत पुराने समय से आज तक यहां की चिता की ज्वाला अभी तक बुझी नहीं चाहे कितनी भी परेशानियां हो, फिर भी यहां पर एक के बाद एक चिता जलती रहती है" यही सत्य है जीवन का और यही आधार है जीवन का।
इस घाट की विशेषता ये हैं, कि यहां लगातार हिन्दू अन्त्येष्टि होती रहती हैं। घाट पर चिता की अग्नि लगातार जलती ही रहती है।
कभी भी बुझने नहीं पाती। इसी कारण इसको महाश्मशान नाम से भी जाना जाता है।
एक चिता की अग्नि समाप्त होने तक दूसरी चिता में आग लगा ही दी जाती है। चौबीसों घंटे ऐसा ही चलता है। समीर को याद आया कि जब इल्तुमिश की सेना ने हजारों लोगों को मारा कटा होगा तो यह श्मशान कितने दिन जलाता रहा होगा।
वैसे तो लोग श्मसान घाटों में जाना नही चाहते। पर यहाँ देश विदेश से लोग इस घाट का दर्शन भी करने आते है। इस घाट पर ये एहसास होता है कि जीवन का अंतिम सत्य यही है। कापालिक, भगवान शिव को समर्पित शैव तपस्वियों का एक संप्रदाय है।
उज्जैन के शैव धर्म, तंत्र और विशेष रूप से अघोरी और कपालिक परंपराओं से गहरा संबंध है। कपालिक परंपरा मध्यकालीन भारत में उभरी।
वे एक उग्र तपस्वी और गैर-पौराणिक शैव धर्म के रूप थे। उनके केंद्रीय देवता भैरव थे। जो शिव का एक क्रोधी और पारलौकिक रूप थे। कपालिकों ने भैरव की विशेषताओं का अनुकरण किया। जिसमें भिक्षापात्र के रूप में खोपड़ी कपाल और खोपड़ी के शीर्ष वाला डंडा लेना, अपने शरीर पर दाह संस्कार की राख लगाना और श्मशान में निवास करना शामिल है।
यह संप्रदाय पंचमकार मद्य, मानस, मत्स्य, मुद्रा, मैथुन का उपयोग साधना में करते। ये कार्य कामुक भोग के लिए नहीं थे, बल्कि द्वंद्वों से परे जाने, अहंकार के बंधनों को तोड़ने और पारंपरिक रूप से अशुद्ध चीज़ों को अपनाकर आध्यात्मिक मुक्ति को गति देने के अनुष्ठान के रूप में समझे जाते थे।
अपने प्राचीन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर और ऐतिहासिक श्मशान घाटों के साथ, उज्जैन हमेशा से विभिन्न शैव और तांत्रिक परंपराओं का केंद्र रहा है। जिसमें कापालिक और बाद में अघोरियों की परंपराएँ भी शामिल हैं।
मृत्यु, क्षय और उज्जैन में शक्तिशाली दिव्य ऊर्जा की उपस्थिति के माहौल ने इसे ऐसी परिवर्तनकारी साधनाओं के लिए उपयुक्त स्थान बना दिया। समय के साथ, कापालिक परंपरा अधिक एकांतप्रिय हो गई। नाथ और अघोरी परंपराओं जैसे अन्य शैव संप्रदायों में एकीकृत हो गई।
अधिक चरम प्रथाएँ अधिक से अधिक गूढ़ और गुप्त हो गईं, जो चुनिंदा गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से आगे बढ़ीं। गुरु-शिष्य परम्परा सर्वोपरि है। ये अभ्यास अत्यंत शक्तिशाली हैं और किसी अनुभवी और सिद्ध गुरु के मार्गदर्शन के बिना संभावित रूप से खतरनाक हैं जो सूक्ष्म ऊर्जाओं और मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को समझते हैं। श्मशान भूमि में अनुष्ठान करना केंद्रीय है।
मैथुन यौन संभोग शायद सबसे विवादास्पद है। अनुष्ठान के संदर्भ में, यह कामुक आनंद के लिए नहीं है, बल्कि शिव चेतना और शक्ति ऊर्जा के बीच मिलन का एक अत्यधिक प्रतीकात्मक कार्य है। इसका उद्देश्य भौतिक इच्छाओं को पार करना और व्यक्तिगत चेतना को सार्वभौमिक रचनात्मक शक्ति के साथ मिलाना है। जिससे अपार आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
देवताओं का आह्वान करने और ऊर्जा को केंद्रित करने के लिए विशिष्ट उग्र मंत्रों जैसे, भैरव मंत्र, काली मंत्र का जाप करना और जटिल ज्यामितीय आरेखों यंत्रों पर ध्यान लगाना। भूत शुद्धि तत्व शुद्धि, शरीर के भीतर पाँच तत्वों को शुद्ध करने की तकनीकें, जिससे आत्म-साक्षात्कार की गहन भावना पैदा होती है।
श्मशान भैरवी श्मशान भूमि देवी, इसमें अक्सर श्मशान भूमि में निवास करने वाली भयंकर देवियों का आह्वान किया जाता है, जिन्हें शक्ति और परिवर्तन के शक्तिशाली स्रोत के रूप में देखा जाता है। अभ्यासियों का मानना है कि यह मार्ग पारंपरिक, धीमी विधियों की तुलना में मुक्ति मोक्ष और आध्यात्मिक शक्तियों सिद्धियों के लिए अधिक तेज़, अधिक सीधा मार्ग प्रदान करता है।
बाम मार्गी कपालिका साधना का मनोविज्ञान गहरा, जटिल है और इसका उद्देश्य आमूलचूल परिवर्तन करना है। अहंकार का विघटन, निषेधों से टकराव, सामाजिक वर्जनाओं और नैतिक मानदंडों को जानबूझकर तोड़ना एक मनोवैज्ञानिक आघात चिकित्सा है। इसका उद्देश्य अहंकार को नष्ट करना है।
छाया को गले लगाना, वास्तविकता के उन पहलुओं से जुड़कर जिन्हें आम तौर पर त्याग दिया जाता है मृत्यु, क्षय, 'अशुद्ध' पदार्थ, 'निषिद्ध' कार्य। साधक अपने स्वयं के "छाया" स्व का सामना करता है और उसे एकीकृत करता है, जिससे वह अधिक पूर्ण और प्रामाणिक स्व बन जाता है।
सामाजिक पहचान से अलगाव, अभ्यासों की चरम प्रकृति अक्सर सामाजिक बहिष्कार की ओर ले जाती है, जो पारंपरिक सामाजिक पहचान से अलग होने और बाहरी मान्यता से परे मुक्ति पाने में और सहायता करती है। भय और पारलौकिकता का मनोविज्ञान, भय एक प्रवेश द्वार के रूप में, श्मशान घाट की सेटिंग और भयंकर देवताओं के साथ जुड़ाव आदिम भय को जगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया में इस भय का सामना करना शामिल है, इसे दबाना नहीं, और इसके माध्यम से निर्भयता की स्थिति में जाना। यह मन के लिए एक गहन जोखिम चिकित्सा है।
मृत्यु का महत्व, मृत्यु के निरंतर संपर्क से मृत्यु के बारे में तीव्र जागरूकता पैदा होती है, जो मनोवैज्ञानिक ध्यान को सांसारिक आसक्तियों से हटाकर अस्तित्व और गैर-अस्तित्व की अंतिम वास्तविकता पर ले जाती है। इससे आध्यात्मिक बोध की तीव्र भावना पैदा हो सकती है।
पदार्थों का अनुष्ठानिक उपयोग, विवादास्पद होते हुए भी, कुछ पदार्थों जैसे कुछ परंपराओं में भांग या शराब का अनुष्ठानिक उपयोग चेतना की परिवर्तित अवस्थाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है, जिसे फिर मंत्र और ध्यान के माध्यम से आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के लिए निर्देशित किया जाता है, न कि केवल नशा।
गहन ध्यान, लंबे समय तक और गहन ध्यान, अक्सर चुनौतीपूर्ण वातावरण में, मन की शक्तिशाली अवस्थाओं को प्रेरित कर सकता है जो सामान्य जागृत चेतना से परे होती हैं, जिससे रहस्यमय अनुभव और अंतर्दृष्टि प्राप्त होती हैं।
मुख्य मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया प्रतीत होने वाली विरोधाभासी शक्तियों का एकीकरण है। जीवन और मृत्यु, शुद्ध और अशुद्ध, सुख और दुख, प्रकाश और अंधकार। दोनों ध्रुवों को गले लगाने से, मन द्वैतवादी सोच से परे हो जाता है और एकता अद्वैत की स्थिति का अनुभव करता है।
इससे अस्तित्व के सभी पहलुओं की एक कट्टरपंथी स्वीकृति होती है, जिससे आंतरिक संघर्ष से शांति और मुक्ति की गहरी भावना को बढ़ावा मिलता है।
इन साधनाओं की मांग प्रकृति के लिए अपार इच्छाशक्ति, अनुशासन और अटूट फोकस की आवश्यकता होती है। इन अभ्यासों के माध्यम से निर्मित मनोवैज्ञानिक लचीलापन महत्वपूर्ण है।
जैसे -जैसे रात गहराती जा रही थी चक्र तीर्थ लगभग खाली हो गया था। यकायक समीर के पीछे से उसके कंधे पर एक हाथ आया। समीर बहुत डर गया।
अस्मिता- उसने पीछे मुड़ कर देखा तो वहां एक जवान साधु खड़ा था। उसके हाथ में त्रिशूल और भिक्षापात्र के रूप में खाली मानव खोपड़ी ‘कपाल’ थी। वह श्मशान घाट की राख को अपने शरीर पर लगाए थे। उनके बाल लंबे और उलझे थे। उन्होंने गले में हड्डियों की, रूद्राक्ष तथा विभिन्न्न चमकीले माणिक एवं मोतियों की अनेकों मालाएँ पहनी थी। उन्होंने काला चोगा पहन रखा था।
उनके कन्धे पर एक काला कम्बल रखा था। उनके लगभग हर अंगुली में अलग-अलग चमकीले नगों की अंगूठियां थी। दोनों हाथों तथा पैरो में लोहे के कड़े पहने हुए थे। उनकी आँखें चमकीली तेजोमयी थी। शरीर से एक विचित्र तरह की गन्ध आ रहीं थी। वे हमारे साथ बेन्च पर बैठ गये।
उन्होंने धीरे से ‘जय महाकाल’ कहा।
हम दोनों के मुँह से एकाएक ‘जय महाकाल’ निकल गया।
"तुम आ गए, हम कितने सालों से तुम्हारी प्रतिक्षा कर रहे थे?" कापालिक ने बहुत दोस्ताना अंदाज में समीर से कहा।
"जब महाकाल ने बुलाया हम तभी आ सके।" समीर ने कांपती आवाज में कहा।
"डरो नहीं तुम सुरक्षित हाथों में हो।" कापालिक बोले।
हमारी बातें शुरू होने पर कापालिक ने हमें बताया कि
“तंत्र शास्त्र तीन भागों में विभक्त है आगम, यामल और मुख्य तंत्र। जिसमें सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा, सब कार्यों के साधना, पुरश्चरण, षट्कर्म-साधन और चार प्रकार के ध्यानयोग का वर्णन हो, उसे आगम कहते हैं।
जिसमें सृष्टितत्व, ज्योतिष, नित्य कृत्य, क्रम, सूत्र, वर्णभेद और युगधर्म का वर्णन हो उसे यामल कहते हैं। और जिसमें सृष्टि, लट, मंत्रनिर्णय, देवताओं, के संस्थान, यंत्रनिर्णय, तीर्थ, आश्रम, धर्म, कल्प, ज्योतिष संस्थान, व्रत-कथा, शौच और अशौच, स्त्री-पुरूष-लक्षण, राजधर्म, दान-धर्म, युगधर्म, व्यवहार तथा आध्यात्मिक विषयों का वर्णन हो, वह मुख्य तंत्र कहलाता है ।
कलियुग में वैदिक मंत्रों, जपों और यज्ञों आदि का कोई फल नहीं होता ।
इस युग में सब प्रकार के कार्यों की सिद्धि के लिये तंत्र शास्त्र में वर्णित मंत्रों और उपायों आदि से ही सहायता मिलती है। इस शास्त्र के सिद्धान्त बहुत गुप्त रखे जाते हैं। इसकी शिक्षा लेने के लिये मनुष्य को पहले दीक्षित होना पड़ना है ।
आजकल प्रायः मारण, उच्चाटन, वशीकरण आदि के लिये तथा अनेक प्रकार की सिद्धियों आदि के साधन के लिये ही तंत्रोक्त मंत्रों और क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। यह शास्त्र प्रधानतः शाक्तों का ही है।
और इसके मंत्र प्रायः अर्थहीन और एकाक्षरी हुआ करते हैं। जैसे, ह्नीं, क्लीं, श्रीं, स्थीं, शूं, क्रू आदि। तांत्रिकों का पंचमकार मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन और आगम मठ की चक्रपूजा प्रसिद्ध है।”
उनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक लग रहा था। माध्यम रोशनी में भी उनकी ऑंखें चमक रही थी। मैंने देखा की उन में लालिमा तैर रही है।
कापालिक ने कहा "कपाल व्रत का पालन ध्यान, धारणा एवं बुद्धि के द्वारा भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरुप के स्मरण से शुरू होता है।"
समीर के साधना प्रक्रिया जानने के लिए पूछा तो उन्होंने कहा
"शिव तथा काली अर्ध रूप हैं काल की। ये दोनों एक साथ मिलकर काली-काल या शिव-शक्ती बनते हैं और अर्द्धनारीश्वर रूप प्रकट करते हैं।
अर्द्धनारीश्वर रूप संकल्पीत करता है प्रकृति और पुरुष को जो प्रतीक है ब्रह्माण्ड के संचालन का। शिव शक्ती के बिना अधुरे हैं यही हैं वो जो लोगों को अलग-अलग सिद्धियों का आशीर्वाद देती हैं।
बिना इनके आशीर्वाद के कोई भी किसी भी प्रकार की सिद्धी पाने में सफल नही हो सकता। माँ काली तंत्र विद्या की देवी हैं। ये अपने भक्तों को तंत्र विद्या के ज्ञान से नवाज़ती हैं। अत: तंत्र विद्या और सिद्धियों का ज्ञान पाने के लिये भक्तों को माँ काली की पूजा करना अनिवार्य है।
अघोरी कौन होते है? समीर ने पूछा।
“अघोरी वो लोग हैं जो अपना जीवन निर्वासन में बीताते हैं और ध्यान करते हैं और तंत्र और सिद्धियों की अभ्यास करते हैं। वे कोशिश करते हैं अलग अलग तंत्र और सिद्धियों को पानी की ताकि अपनी शक्तियों को बढ़ा सकें। वे ज़्यादातर भगवान शिव की पूजा करते हैं। लेकिन उन्हें माँ काली की भी पूजा करनी पड़ेगी क्योंकि बिना माँ काली के आशीर्वाद के उन्हें सिद्धियां प्राप्त नही हो सकती और अगर हो भी गयी तो ज़्यादा दिन तक नहीं रहेगी।" कापालिक अपनी धुन में बोल रहे थे। उनकी आवाज समीर को मंत्रमुग्ध कर रही थी।
उन्होंने समीर को साधना में लगने वाली सामग्री के वारे में बताया "गौ घृत, गौ दुग्ध, गौ दधि, चन्दन, कुंकुम, कुशोदक, गन्ध, माला, गुग्गल, धुप, सुगन्धित पदार्थ, स्वर्ण व रत्नों के आभूषण, बस्त्र, स्रोत, पताका, व्यंजन, नृत्य, वाद्य गीत तथा अक्षत से पूजा की जाती है। यह स्वात्विक यौगिक भक्ति है।"
उन्होंने थोड़ी देर रुक कर फिर कहा- "ध्यान हृदय कमल की कर्णिका के आसान पर शिव भगवान विराजमान है। उनके पांच मुख है। प्रत्येक मुख में तीन नेत्र है। चन्द्रमा की कला से उनकी जटा जगमगा रही है। और कटी भाग में सर्प की करधनी शोभा पाती है। उनका श्री अंग श्वेत है। वे दस भुजाओं से सुशोभित है। उनका स्वरुप सब के लिए मंगलमय है। उनके हाथो में वरद और अभय की मुद्रा है। ऐसे स्वरुप का ध्यान करने वाला कापालिक है।"
शिव के स्वरुप का ऐसा विवरण सुन कर मन में एक तस्वीर उभर आई। समीर के मुँह से निकला ‘अद्भुत’।
“जिस कार्य के लिए जैसी क्रिया करनी हो उसी के अनुरूप आसान पर बैठ कर जप शुरू करना चाहिए जैसे पुष्टि कार्य में सिद्धासन में बैठे, शांति कर्म में स्वास्तिक आसन, में बैठना चाहिए। मोक्ष के लिए कुश आसान श्रेष्ठ होता है। मोक्ष के लिए कुशासन पर पदमासन में बैठ कर मन्त्र जप करना चाहिए।
मंत्र तीन प्रकार के होते है स्त्री लिँग, पुलिंग और नपुंसक लिंग। स्वाहः मंत्र स्त्री लिंग है। फट वाले मन्त्र पुलिंग है। तथा नमः नपुंसक लिंग के मंत्र है। छन्द में 'फट' का जप करे। अग्नि कर्म तथा देव कर्म में स्वाहः या नमः का जाप करना चाहिए।
मन्त्र जपने के लिए तीन प्रकार होते है। जिस मंत्र को दूसरा सुन सके उसे वाचिक कहते है। जिसमें जिव्हा एवं ओठ हिले उसे उपांशु कहते है। जिसके उच्चारण में कुछ न हिले उसे मानसिक कहते है। मोक्ष की लिए मानसिक तरीके से मंत्रोच्चार करना चाहिए।
इसी तरह अलग-अलग सिद्धयों के लिए अलग-अलग तरह की मालाएं उपयोगी होती है। शांति तथा मोक्ष के लिए एक सौ आठ रूद्राक्ष की माला लेनी चाहिए।
होम करने के लिए भी अलग-अलग पदार्थ उपयोग में आते है। तुम्हें गौ धृत का उपयोग करना होगा। पारद के बने शिव लिँग की पूजा करना है।”
कापालिक ने पूजन सामग्री का विवरण दिया।
समीर ने पूछा- "साधना कब से शुरू करना है?" ‘
मै तुम्हें आगामी सिंहस्थ मेले के समय दीक्षा दूंगा। दीक्षा प्राप्त कर लेने के बाद तुम मन्त्र साधना करोगे। कापालिक ने विस्तार से समझाया।
"सिंहस्थ मेले के समय आप हमें कैसे व कहां मिलेगे?" समीर ने पूछा।
"यहीं मिलेंगे, जैसे आज मिले, मुझे पता होगा तुम कहां हो, चिंता मत करो श्रद्धा रखो।" कापालिक ने कहा और ‘जय महाकाल’ का उद्द्घोष करते अंधेरे में समां गये।
हमने एक साथ ‘जय महाकाल’ का जोर से उच्चारण किया और रामघाट की और पैदल चल पड़े। सुबह होने को थी वातावरण मनोरम था।
अस्मिता- हम लोग थक गये थे। शमशान यात्रा को लेकर मन में जो डर था वह निकल गया था। मन में संतोष का भाव लिए टैक्सी ले कर होटल आ गये।
वापिस लौटने के पूर्व हम लोग व्यास जी से मिलने गणेश मन्दिर गये। व्यास जी ने कापालिक से मिलने का विवरण पूछा।
समीर ने रोमांच के साथ पूरी बात व्यास जी को बताई। व्यास जी ने पंचांग निकला। कुछ गणना की। अपनी नोटबुक पर लिखा फिर कागज नीचे रख कर बोले:
‘माधवे धवले पक्षे सिंह जीवत्वेजे खौ।
तुलाराशि निशनाथे स्वातिभे पूर्णिमा तिथौ।
व्यतिपाते तु सम्प्राप्ते चन्द्रवासर-संचुते।
कुशस्थली-महाक्षेत्रे स्नाने मोक्षमवाच्युयात्।'
इसका अर्थ है कि जब वैशाख मास हो, शुक्ल पक्ष हो और बृहस्पति सिंह राशि पर, सूर्य मेष राशि पर और चन्द्रमा तुला राशि पर हो, साथ ही स्वाति नक्षत्र, पूर्णिमा तिथि व्यतीपात योग और सोमवार का दिन हो तो उज्जैन में शिप्रा स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
"तो यह कब होगा ?" मैंने उद्विग्नता से पूछा।
तब व्यास जी ने नोटबुक उठा कर बताया- “मेरी गढ़ना से सिंहस्थ काल बाइस अप्रैल दो हजार सोलह से इक्कीस मई दो हजार सोलह को को समाप्त होगा। तिथि चैत्र शुक्ल पन्द्रह, तारीख बाइस अप्रैल को शाही स्नान होगा।”
अस्मिता- हम लोग व्यास जी को नमन कर वापिस आ गये। अगले दिन इंदौर से शाम की फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली घर आ गये।
सिंहस्थ
अस्मिता- हम लोगों ने पूरे दो माह उज्जैन सिंहस्थ मेले के समय रहने की व्यवस्था क्षिप्रा होटल में अग्रिम बुकिंग कर कर ली। क्योंकि मेले के समय अपार भीड़ होने के कारण रहने की सुविधाजनक जगह मिलना सम्भव नहीं होता है।
अस्मिता- हम निरंतर व्यास जी के सम्पर्क में रहते है। उन्होंने जैसा मार्गदर्शन दिया हम लोग वैसा ही करते गये। इस मेले में सनातन धर्म को समझने का अच्छा मौका था। जिसे हम लोग किसी कीमत पर गवाना नहीं चाहते थे।
मेले के अन्दर धूमने के लिये मेला कार्यालय से पास की जरुरत होती है। हम लोग मेला शुरू होने के काफी दिन पूर्व उज्जैन पहुंच गये। व्यास जी की मदद से हम मेला कार्यालय, बृहस्पति भवन के पीछे, कोठी पैलेस उज्जैन गये।
जहां से हम दोनों को व्ही आई पी कार्ड मिल गये। इस कार्ड को दिखा कर हम लोग मेले के समय मेला क्षेत्र में आ जा सकते थे। मेले के समय चार पहिया वाहन से आना जाना सम्भव नहीं होता है।
इसलिए व्यास जी ने एक मोटर साइकिल किराये पर दिलवा दी थी।
जब हम लोग अपने अनुमति पास लेने मेला कार्यालय, बृहस्पति भवन के पीछे, कोठी पैलेस गए हमारी मुलाकात उप मेला अधिकारी मिश्रा जी से हुई।
मिश्रा जी की समीर से बड़ी जल्दी दोस्ती हो गई। मिश्रा जी बहुत अच्छे अधिकारी लगे। समीर ने उनसे मेले की व्यवस्था के संदर्भ में पूछा। उन्होंने उनके कमरे में लगे मेला क्षेत्र के नक़्शे को दिखा कर हमें समझाया कि- “मेला लगभग चार हजार हेक्टर में लगता है तथा उसमें लगभग डेढ़ लाख से ज्यादा टेन्ट रहने की लिये लगाए जाते है। मेला क्षेत्र छः जोन तथा बाईस सेक्टर में फैला है। यहां लगभग पचास लाख लोगों के लिये एक अस्थाई शहर बसाया जाता है तथा पूरे मेले से दौरान पांच करोड़ से अधिक लोग आते-जाते रहते है। यह पृथ्वी पर आयोजित होने वाला मेगा इवेंट होता है।”
जब हम लोग अपने अनुमति पत्र ले कर व्यास जी के पास गए तो समीर ने उन से मेले के पौराणिक महत्व को समझना चाहा।
तब व्यास जी ने बताया- “कुंभ मेले का पौराणिक महत्व, प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में निहित है। यह समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थल है। प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में अमृत की बूंदें गिरी थीं। जिससे वे पवित्र स्थल बन गए।
मत्स्य पुराण जैसे शास्त्र इसके आध्यात्मिक लाभों पर प्रकाश डालते हैं। इस त्यौहार को कर्म शुद्धि और मोक्ष से जोड़ते हैं। यह दिव्य परंपरा एकता और आध्यात्मिक नवीनीकरण को बढ़ावा देती है।
कुंभ मेला, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण त्यौहार है। जिसका नाम संस्कृत के शब्दों "कुंभ" दिव्य अमृत का पात्र और "मेला" एकत्रित होने से लिया गया है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में निहित यह त्यौहार अमरता, ज्ञान और सांप्रदायिक एकता की खोज का प्रतीक है। चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होने वाला यह त्यौहार प्राचीन ज्ञान, सामूहिक आस्था और मुक्ति की शाश्वत खोज का जश्न मनाता है। जो इसे भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की आधारशिला बनाता है।
शाही स्नान कुंभ मेले का सबसे पवित्र अनुष्ठान है। जहाँ लाखों लोग ज्योतिषीय रूप से चुनी गई तिथियों में क्षिप्रा नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं।
यह आध्यात्मिक शुद्धि, मुक्ति मोक्ष और एकता का प्रतीक है। अखाड़ों और नागा साधुओं द्वारा इसका नेतृत्व किया जाता है। जो सदियों पुरानी परंपराओं पर जोर देते हैं।”
समीर ने पुनः पूछा- “उज्जैन का मेला कैसे शुरू हुआ?”
“उज्जैन सिंहस्थ तब शुरू हुआ जब मराठा शासक रानोजी शिंदे ने उत्सव के लिए नासिक से अखाड़ों को उज्जैन आमंत्रित किया तब पुनः मेला शुरू हो सका।”
अस्मिता- मैंने कुम्भ मेले में आने वाले अखाड़ों के बारे में पूछा तो व्यास जी ने बहुत ही सरल अंदाज में हमें सनातन धर्म के विभिन्न संगठनों के बारे में बताया।
उन्होंने बताया कि “आदि शकराचार्य ने सनातन धर्म की पुनः स्थापना कर चार मठ स्थापित किये। जिन में
पहला मठ पूर्व में पूरी में गोवर्धन मठ जिसका वेद ऋग्वेद है तथा इस में दशनामी संप्रदाय साधुओं के तीरथ तथा आश्रम संप्रदाय के साधु आते है।
दूसरा मठ पश्चिम में द्वारका मठ जिसका वेद सामवेद है तथा इस में दशनामी साधुओं के वन तथा अरण्य संप्रदाय आते है।
तीसरा मठ उत्तर में ज्योतिर मठ जिसका वेद अथर्व है तथा इस में दशनामी साधुओं के गिरी, पर्वत तथा सागर संप्रदाय आते है।
चौथा मठ दक्षिण में श्रृंगेरी मठ जिसका वेद यजुर्वेद है तथा इस में दशनामी साधुओं के पूरी, भारती तथा सरस्वती संप्रदाय आते है।
इन मठों के अंतर्गत अखाड़ों की व्यवस्था की। जिसमें तेरह मान्यता प्राप्त अखाड़े है।
सात शैव अखाड़े श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, श्री पंच अटल अखाड़ा, श्री पंचायती महा निरंजनी अखाड़ा, तपोनिधि श्री आनंद पंचायती अखाड़ा, श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा तथा श्री पंच अग्नि अखाड़ा, तीन वैष्णव अखाड़े श्री पंच रामानन्दी निर्मोही अनि, श्री पंच दिगंबर अनि, श्रीपंच निर्वाणी अनि, तथा तीन उदासीन अखाड़े श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा तथा श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा है। दो अखाड़े किन्नर ट्रांसजेंडर अखाड़ा तथा परी केवल महिलाओं के अखाड़े को मान्यता प्राप्त नहीं है।”
अस्मिता- उज्जैन में हर मकान, गली, सड़क, दुकान तथा मन्दिर का अपना इतिहास तथा रौचक कहानियां है। इन में से कुछ कहानियां जो हमें अपनी उज्जैन यात्रा के दौरान सुनाने को मिली आप को सुनती हूँ। हम लोगों ने मेला क्षेत्र घूमने की शुरुआत दत्त अखाड़ा जोन से की।
दत्त अखाड़ा उज्जैन बड़नगर मार्ग पर छोटी रपट के बायीं तरफ क्षिप्रा नदी के बांये किनारे पर स्थित है। दत्तात्रेय अखाड़ा या दत्त अखाड़ा एक महत्वपूर्ण हिंदू मठ है, जिसकी स्थापना त्रेता युग में भगवान दत्तात्रेय द्वारा अपने शिष्यों को शिक्षा देने के लिए की गई थी।
जूना अखाड़े के श्री महंत हरि गिरि महाराज के अनुसार दत्त अखाड़ा में, जहां आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित दुर्लभ शिवलिंग है और उनकी चरण पादुका भी स्थापित है। आदि शंकराचार्य जब उज्जैन आए थे तब उन्होंने इस शिवलिंग की की स्थापना की थी। माना जाता है दोनों शिवलिंग वे साथ लाए थे।
आदिगुरु शंकराचार्य से लेकर गोविंदपादाचार्य, गौड़पादाचार्य, शुकदेव, ऋषि व्यास, ऋषि पराशर, शक्ति महर्षि, ऋषि वशिष्ठ और भगवान ब्रह्मा तक, अखाड़ा गुरु-शिष्य परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहीं एक विशाल त्रिशूल की स्थापना की गई है।
अस्मिता- फिर हम लोग रणजीत हनुमान मन्दिर, मुल्लापुरा, अंजड़ खेड़ा, तथा भूखी माता सेक्टर में गये। शिप्रा नदी के किनारे भूखी माता का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। दरअसल, इस मंदिर में दो देवियां विराजमान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यह दोनों बहने हैं।
इनमें से एक को भूखी माता और दूसरी को धूमावती के नाम से जाना जाता है। कहते हैं भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। एक बार दुखी मां राजा विक्रमादित्य के पास गई। उसके बेटे की बलि चढ़ाई जानी थी। तब विक्रमादित्य ने माता से नरबलि नहीं लेने का आग्रह किया। यह भी कहा कि यदि देवी ने उनकी बात नहीं मानी तो वे खुद उनका आहार बनेंगे।
बुढ़िया के जाने के बाद विक्रमादित्य ने कई तरह के पकवान बनवाने का आदेश दिया। इन पकवानों से पूरे शहर को सजा दिया गया। एक तख्त पर मिठाइयों के साथ मिठाइयों से बना एक मानव पुतला लिटा दिया।
विक्रमादित्य खुद उसके नीचे छिप गए। रात को सभी देवियों ने पकवानों का स्वाद लिया। जब जा रही थी, तब एक देवी ने जानना चाहा कि आखिर तख्त पर क्या रखा है। देवी ने वहां रखे पुतले को खा लिया।
देवी खुश हो गई। इतने में विक्रमादित्य आए और हाथ जोड़कर बताया कि उन्होंने ही इसे रखवाया है। देवी ने वरदान मांगने को कहा।
तब विक्रमादित्य ने कहा कि कृपा कर आप नदी के उस पार विराजमान रहें। देवी ने कहा कि तुम्हारे वचन का पालन होगा। उस देवी का नाम भूखी माता रख दिया गया।
इसके बाद विक्रमादित्य ने नदी के उस पार मंदिर बनवाया। इसके बाद देवी ने कभी नरबलि नहीं ली।
अस्मिता- दूसरे दिन महाकाल जोन में राम घाट, हरसिद्धि मन्दिर, महाकाल मन्दिर, नरसिंह घाट, लालपुर, गोपाल मन्दिर तथा चिंतामन गणेश मन्दिर सेक्टर में गये।
हरसिद्धि माता मंदिर, देवी के इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर उज्जैन के प्राचीन पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर का इतिहास राजा विक्रमादित्य से जुड़ा है। जिन्हें यहाँ माता का परम भक्त माना जाता है। मान्यता है कि जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को ब्रह्मांड में घुमा रहे थे। देवी सती की कोहनी यहां गिरी थी और इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है।
मंदिर परिसर में दो विशाल दीप स्तंभ हैं, जो रात्रि के दौरान जलाए जाते हैं। ये स्तंभ लगभग इक्यावन फीट ऊंचे हैं और एक हजार से अधिक दीपक हैं।
जिस क्षेत्र में मंदिर स्थित है, उसे विक्रमादित्य की तपोभूमि माना जाता है। मंदिर के ठीक पीछे एक कोने में कुछ सिर रखे हैं जिन पर सिंदूर लगा हुआ है। कहा जाता है कि ये राजा विक्रमादित्य के सिर हैं।
लोक कथाओं के मुताबिक विक्रमादित्य ने देवी को प्रसन्न करने के लिए हर बारह वें वर्ष में अपने सिर की बलि दी थी। उन्होंने ग्यारह बार ऐसा किया, लेकिन हर बार सिर वापस आ जाता था। जब बारहवीं बार उन्होंने सिर की बलि दी तो यह वापस नहीं आया। इसे उनके शासन का अंत माना गया।
गोपाल मंदिर, जिसे द्वारकाधीश मंदिर भी कहा जाता है।महारानी बैजाबाई सिंधिया द्वारा निर्मित किया गया था। यह मंदिर श्रीकृष्ण को समर्पित है और महाकालेश्वर मंदिर के बाद उज्जैन का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। यह मराठा वास्तुकला का एक सुंदर उदाहरण है और इसका गर्भगृह संगमरमर से जड़ा हुआ है। जबकि दरवाजे चांदी से मढ़े हुए हैं।
चिंतामन गणेश मंदिर, भगवान गणेश का एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान राम ने वनवास के दौरान की थी। यहां गणेश जी को चिंतामण, इच्छामण और सिद्धिविनायक रूप में पूजते हैं।
अस्मिता- तीसरे दिन काल भैरव जाने में सिद्ध वट घाट तथा गढ़कली मन्दिर सेक्टर गये। काल भैरव मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। जो स्कंद पुराण के अवंति खंड में भी वर्णित है। यह मंदिर राजा भद्रसेन द्वारा बनाया गया था।
यह भैरवगढ़ क्षेत्र में शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। काल भैरव को शिव के उग्र रूप के रूप में पूजने की परंपरा कपालिका और अघोरा संप्रदायों से जुड़ी है। उज्जैन जिनका एक केंद्र है।
मंदिर में शराब चढ़ाने की परंपरा भी है। आश्चर्य की बात यह है कि देखते ही देखते वह पात्र जिसमें मदिरा का भोग लगाया जाता है।
खाली हो जाता है। यह शराब कहां जाती है, ये रहस्य आज भी बना हुआ है। यहां रोज श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
इस संबंध में मान्यता है कि सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहीं गिर गई थी। तब महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को अर्पित कर दी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की। इसके बाद राजा ने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और लंबे समय तक कुशल शासन किया।
भगवान कालभैरव के आशीर्वाद से उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई युद्ध नहीं हारा। इसी प्रसंग के बाद से आज भी ग्वालियर के राजघराने से ही कालभैरव के लिए पगड़ी आती है।
गढ़कालिका मंदिर एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। जो महाकवि कालिदास की आराध्य देवी के रूप में जाना जाता है। उनकी प्रतिभा का विकास इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने से हुआ था।
यह मंदिर इक्यावन शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां भगवती सती का ऊर्ध ओष्ठ ऊपरी होंठ गिरा था। यह मन्दिर तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है। देवी को कपड़े के नरमुंड का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। दशहरे पर नींबू बांटने की परंपरा है।
अस्मिता- चौथे दिन हम लोग मंगल नाथ जोन गए जिसमें हमनें मंगलनाथ मन्दिर, खाक चौक तथ खिलचीपुर रोड के सेक्टरों को देखा।
मंगलनाथ मंदिर उज्जैन में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। जो भगवान मंगल को समर्पित है। मत्स्य पुराण के अनुसार, मंगल ग्रह का जन्म यहां हुआ था। मंदिर शहर की हलचल से दूर, शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर मुख्यतः मंगल दोष निवारण पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
संदीपनी आश्रम, उज्जैन, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। जहाँ भगवान श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह आश्रम पांच हजार साल पुराना माना जाता है।
यहाँ ऋषि संदीपनी ने उन्हें चौषट विद्याएं और सोलह कलाएं सिखाईं। आश्रम के पास के क्षेत्र को अंकपात के नाम से जाना जाता है। जहाँ श्री कृष्ण अपनी स्लेट पर लिखे अंक धोते थे।
वल्लभ संप्रदाय के अनुयायी इस स्थान को वल्लभाचार्य की चौरासी सीटों में से तिहत्तरवीं सीट मानते हैं।
अस्मिता- पाँचवा दिन चामुण्डा माता जोन तथा त्रिवेणी जोन में यंत्र महल तथा त्रिवेणी सेक्टर का क्षेत्र घूमे। क्षिप्रा नदी के घाटों को देखा तथा विभिन्न अखाड़ों की पेशवाई तथा शाही स्नान देखे।
फिर हम लोग पांच कोशी यात्रा पर गये। उज्जैन में पंचक्रोशी यात्रा एक धार्मिक परिक्रमा है।
जो हर साल वैशाख माह में आयोजित की जाती है। यह यात्रा उज्जैन शहर की परिक्रमा मानी जाती है। इसका धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। गर्मियों में तपती कोलतार की सड़क पर नंगे पैरों लगातार पांच दिन चलना, आप के धैर्य की कठिन परीक्षा होती है। इसलिए श्रद्धालु यह यात्रा महाकाल से बल ले कर शुरू करते है। प्राचीन अवंतिका नगरी चौकोर आकार में बसी हुई है और इसके विभिन्न कोणों पर स्थित शिव मंदिर इसके द्वारपाल माने जाते हैं।
पूर्व में पिंगलेश्वर, दक्षिण में कायावरोहणेश्वर, पश्चिम में बिल्वकेश्वर, उत्तर दिशा में दुर्देश्वर और नीलकंठेश्वर महादेव इन पांच प्रमुख मंदिरों की दूरी लगभग एक सौ अठारह किलोमीटर है।
पंचकोशी यात्रा के दौरान श्रद्धालु इन्हीं पांचों शिव मंदिरों की परिक्रमा करते हैं और पवित्र क्षिप्रा नदी में स्नान करते हैं।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस यात्रा को पूर्ण करने वाले भक्तों को तैतीस कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
अस्मिता- जब हम लोग इन स्थानों पर धूम रहे थे, अनेक जगहें समीर को पहचनाने में बहुत दिक्क्त हुई। इल्तुतमिश के रूप में जब उसने उज्जैन को देखा था वह नगरी बहुत विशाल, समृद्ध तथा साफ सुथरी थी। लेकिन व्यापार मार्ग बदल जाने से इस नगर का महत्त्व ना केवल कम हुआ वल्कि यह नगर राजधानी से केवल एक जिला भर रह गया है। सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन कार्य है।
शिक्षा, ज्ञान और संस्कार के साथ सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए संन्यासी को महामंडलेश्वर जैसे पद पर बिठाया जाता है। अखाड़ा प्रमुख के पद हासिल करने में संतों को वर्षों लग जाते हैं। शैव एवं वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है।
शैव मत के अखाड़ों में संन्यास और नागा परंपरा का प्रचलन है। नागा परंपरा में थानापति, कोतवाल, कोठारी, भंडारी, कारोबारी सहित अनेक पद हैं। नागाओं की योग्यता और उनके स्तर को देखते हुए उन्हें पद सौंपे जाते हैं।
सब कुछ सामान्य होने के बाद संन्यासी का विधिवत पट्टकाभिषेक कर महामंडलेश्वर पद पर अलंकृत किया जाता है। फिर महामंडलेश्वर के बीच आपसी सहमति से आचार्य के पद पर अलंकृत किया जाता है। इसके बाद अखाड़े की सारी गतिविधियां आचार्य महामंडलेश्वर के हाथ संपन्न कराई जाती हैं।
शाही जुलूस में नागा संत अखाड़े के देवता को सबसे आगे लेकर चलते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर के बाद वरिष्ठता के क्रम पर छत्र चंवर और सुरक्षा के साथ महामंडलेश्वर का रथ चलता है।
वैष्णव संप्रदाय में श्री महंत मुख्य पद माना जाता है। उदासीन अखाड़ों में अलग-अलग परंपरा है। इनमें जखीरा प्रबंधक, श्री महंत के साथ पीठाधीशवर के पद भी हैं।
नागा साधु हिंदू संन्यासी होते हैं। जो नग्न या एक कपड़े में रहते हैं। जो उनके वैराग्य और भौतिक सुखों से विरक्ति का प्रतीक है। वे युद्धकला, योग और ध्यान में निपुण होते हैं। अक्सर कुंभ मेले और अखाड़ों में देखे जाते हैं।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन तथा लम्बी होती है। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं।
इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं। जीवन भर यूँ ही रहते हैं। कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है। पहले उसे लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है। फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है।
इसके बाद यज्ञोपवीत होता है। इस प्रकिया को पूरी करने के बाद वह अपना और अपने परिवार का पिंडदान करते हैं। जिसे बिजवान कहा जाता है। इसके बाद उसे अंतिम परीक्षा से गुजरना होता है। जिसमें वह दिगंबर और फिर श्रीदिगंबर बनाया जाता है।
दिगंबर नागा एक लंगोट पहन सकता है। जबकि श्रीदिगंबर को पूरी तरह नग्न रहकर जीवन यापन करना होता है। इसके बाद इन्हें पांच गुरु भगवान शिव, भगवान विष्णु, शक्ति, सूर्य और श्री गणेश स्वीकारने होते हैं। इसके बाद नागा साधुओं के बाल मुंडवाए जाते हैं और कुंभ के दौरान उन्हें नदी में एक सौ आठ डुबकियां लगानी पड़ती हैं।
अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है। जिसमें दण्डी संस्कार जैसी कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद आखिरी लिंग तोड़ प्रक्रिया सबसे अहम प्रक्रिया होती है । जिसमें अपने काम को वश में करने के लिए लिंग तोड़ दिया जाता है।
जगह के हिसाब से इन नागा साधुओं को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं। प्रयागराज के कुंभ में नागा साधु बनने वाले को नागा, उज्जैन में बनने वाले को खूनी नागा, हरिद्वार में बनने वाले को बर्फानी नागा और नासिक में बनने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है। तेरह में से केवल सात अखाड़े जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा ही नागा साधु बनाते हैं।
नागा साधुओं को एक दिन में सिर्फ सात घरों से भिक्षा मांगने की इजाजत होती है। अगर उनको इन घरों में भिक्षा नहीं मिलती है।
तो उनको भूखा ही रहना पड़ता है। नागा संन्यासी दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं।
नागा साधु मानते हैं कि धरती उनका बिछौना और आकाश उनका ओढ़ना है। वह सोलह शृंगार करते हैं। जिनमें लंगोट, भभूत, चंदन, अंगूठी, लोहे या चांदी के कड़े, पंचकेश, कमर में माला, माथे पर रोली, कुंडल, चिमटा, डमरू, कमंडल, गुथी हुई जटाएं, तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, और बाहों में रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं।
अघोरी साधु तांत्रिक परंपरा का अनुसरण करते हैं। और शिव के भैरव रूप के उपासक होते हैं। अघोरियों का उद्देश्य शरीर और संसार के पार जाकर स्वयं को परम सत्य से जोड़ना है। यह सामाजिक मान्यताओं को पार कर अघोर साधना करते हैं।
अघोरी साधु श्मशान भूमि में रहते हैं। वहीं साधना करते हैं। वे शवों की राख अपने शरीर पर लगाते हैं। और मानव खोपड़ी कपाल का उपयोग कटोरी के रूप में करते हैं।
आमतौर पर अघोरी काले वस्त्र पहनते हैं या कई निर्वस्त्र भी रहते हैं। अघोरी जानवरों की खाल या किसी काले कपड़े से शरीर का निचला हिस्सा ढंकते हैं।
आद्य शंकराचार्य ने ओंकारेश्वर में दीक्षा ली। और महेश्वर आए जहां मंडन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के साथ उनका शास्त्रार्थ हुआ। जिसमें शंकराचार्य ने विजय हासिल की। इसके बाद वे उज्जैन आए थे। यहां महाकालेश्वर के दर्शन किए थे।
उस समय उज्जैन में कापालिकों का वर्चस्व था। कापालिकों के साथ उनका शास्त्रार्थ हुआ और उन्होंने कापालिकों को भी परास्त किया था। अघोरियों की साधना में ऐसी चीजें शामिल होती हैं जिन्हें आम लोग अशुभ मानते हैं। जैसे शवों के साथ साधना।
अघोरी साधु तंत्र-मंत्र, ध्यान, और श्मशान साधना का पालन करते हैं। अघोरी साधु ज्यादातर श्मशान घाट और ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां मृत्यु से जुड़ी साधना की जा सके। अघोरी तीन तरह की साधना करते हैं शव साधना, शिव साधना और श्मशान साधना। अघोरी बनने के लिए कोई गुरु की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि उनके गुरु स्वयं शिव भगवान होते हैं।
आईआईटी बाबा
अस्मिता- कुंभ मेला, अभूतपूर्व पैमाने का एक आध्यात्मिक समागम, हमेशा से एक घटना रही है। हालाँकि, आधुनिक युग में, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म इसकी पहुँच को बढ़ाने, प्रचार करने और सार्वजनिक धारणा को आकार देने में एक अपरिहार्य भूमिका निभाते हैं। वे एक स्थानीय धार्मिक आयोजन को वैश्विक आयोजन में बदल देते हैं। कुंभ मेले में मीडिया प्लेटफ़ॉर्म वैश्विक पहुँच और जागरूकता बढ़ाने का काम करते है।
अस्मिता- प्रिंट मीडिया, ऐतिहासिक रूप से, समाचार पत्र और पत्रिकाएँ सूचना का प्राथमिक स्रोत थीं। जो कुंभ मेले को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ध्यान में लाने वाली कहानियाँ, फ़ोटो और फ़ीचर लेकर आती थीं। उन्होंने पैमाने, साधुओं की अनूठी प्रथाओं और आध्यात्मिक उत्साह का दस्तावेजीकरण किया। जिससे एक स्थायी रिकॉर्ड बना। आज भी, प्रमुख दैनिक समाचार पत्र मेले को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं, गहन विश्लेषण और सांस्कृतिक संदर्भ प्रदान करते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टीवी और रेडियो, टेलीविजन ने कुंभ कवरेज में क्रांति ला दी। शाही स्नान का सीधा प्रसारण, अखाड़ों पर वृत्तचित्र, तीर्थयात्रियों के साक्षात्कार और निरंतर समाचार अपडेट दुनिया भर में लाखों लोगों को वास्तविक समय में इस आयोजन को देखने का मौका देते हैं। रेडियो, खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में, रसद, सुरक्षा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
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अस्मिता- मीडिया मेले के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है, न केवल तीर्थयात्रियों को बल्कि पर्यटकों, फोटोग्राफरों, शोधकर्ताओं और विदेशी आगंतुकों को भी आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। मेले की भव्यता और आध्यात्मिक गहराई का चित्रण यात्रा को आकर्षित करता है और आध्यात्मिक पर्यटन में योगदान देता है।
मीडिया एक इतिहासकार के रूप में कार्य करता है, प्राचीन अनुष्ठानों, विविध तपस्वी परंपराओं, दार्शनिक प्रवचनों और सांस्कृतिक प्रदर्शनों का दस्तावेज़ीकरण करता है, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए उनके संरक्षण और समझ को सुनिश्चित किया जा सके।
अस्मिता- वृत्तचित्र और विशेष सुविधाएँ कुंभ के इतिहास, पौराणिक कथाओं और महत्व पर प्रकाश डालती हैं, जिससे व्यापक दर्शकों को शिक्षित किया जाता है। मीडिया किस तरह सनसनी और प्रचार पैदा करता है, मीडिया विभिन्न रणनीतियों के माध्यम से कुंभ मेले के इर्द-गिर्द सनसनी और प्रचार पैदा करने में सक्रिय रूप से शामिल है।
नागा साधु, सबसे ज़्यादा आकर्षक पहलू। उनकी नग्नता, राख से सने शरीर, उलझे हुए बाल और उग्र व्यवहार को लगातार हाइलाइट किया जाता है। उनके शाही स्नान जुलूस के क्लोज-अप शॉट प्रतिष्ठित हैं। यह तुरंत "वाह" कारक बनाता है।
पैमाना और संख्या, "पृथ्वी पर सबसे बड़ी मानव सभा", "लाखों लोगों का पवित्र स्नान करना" और "तम्बुओं का शहर" पर लगातार जोर देने से विस्मय और किसी स्मारक में भाग लेने की भावना पैदा होती है। इस पैमाने को व्यक्त करने के लिए ड्रोन फुटेज और हवाई शॉट्स का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
अद्वितीय व्यक्तित्व, पत्रकार सनकी साधुओं, अत्यधिक तपस्या करने वाले जैसे उर्ध्ववाहुर या असामान्य बैकस्टोरी वाले लोगों की तलाश करते हैं, उन्हें मीडिया व्यक्तित्व में बदल देते हैं।
अस्मिता- हम दोनों अपनी मोटर सइकिल पर मेला क्षेत्र में घूमते-घूमते एक आश्रम के पास बैठ गये। तभी वहां एक टीवी का पत्रकार आया और हम दोनों को बैठा देख समीर से कैमरे पर उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा।
तो उसने बताया की उसने आई आई टी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है तो उसकी रूचि और जानने में हो गई। समीर की तब दाढ़ी बड़ी हुई थी। मोटर साइकिल चलाते-चलाते उसके बाल बिखर गए थे। वह हमेशा से लम्बे बाल रखता है तथा उसने सफ़ेद कुर्ता पजामा पहन रखा था।
अस्मिता- हम लोग एक मन्दिर में दर्शन कर लौट रहे थे। इस कारण समीर बाबा जैसा दिख रहा था। मुझे उसने बाबा की चेली समझा। उसने धर्म, कुम्भ तथा सनातन पर कई सवाल पूछे। जिसके समीर ने बहुत सटीक वैज्ञानिक तरीके से जबाब दिये।
जब उस इंटरव्यू को टीवी पर दिखाया गया तो उसे उस पत्रकार ने ‘आईआईटी बाबा’ नाम दे दिया। आईआईटी बाबा, महाकुंभ में चर्चा का विषय बन गया। पहले आईआईटी में पढ़ाई और नौकरी करने के बाद, अब धर्म की राह।
समीर इंटरनेट पर 'आईआईटी बाबा' के नाम से मशहूर हो गया। अभी तक हम लोग जहां तहाँ चले जाते थे। लेकिन अब रील बनाने बाले तथा इंटरव्यू लेने बाले हम लोगों को देखते ही घेर लेते। हम लोग इतने दिनों से विभिन्न अखाड़ों में गये।
हर मत से साधु, महा मंडलेश्वर, योगी, तांत्रिक, पुजारी तथा डॉक्टर से इतनी जानकारी एकत्र कर चुके थे कि लगभग हर तरह के सवालों के जबाब दे सकते थे। जब प्राचीन ज्ञान की व्याख्या आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों के साथ करते तो तार्किक से तार्किक व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नही रहता था। महाकुंभ में समीर के गहरे विचारों ने लोगों को इतना प्रभावित किया कि उसकी कई वीडियो वायरल हो गईं।
अस्मिता- लेकिन यह सफर आसान नहीं था, यह आत्म खोज और आंतरिक शांति की यात्रा थी, जो उसने आईआईटी के गलियारों से शुरू की थी।
एक चैनल ने एक दिन दिखाया कि आईआईटी बाबा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह किसी भी मुद्दे पर बात करने से हिचकते नहीं हैं। एक टीवी इंटरव्यू के दौरान जब उनसे उनकी गर्लफ्रेंड के बार में पूछा गया तो उन्हें बेझिझक इसके बारे में बताया।
जितने चैनल उतनी बाते। रील बनाने बाले अपनी रील वायरल करने के लिये खुद कहानियां बनाने लगे इंजीनियर बाबा ने बताया,
"इंजीनियरिंग करते हुए मैं फिलॉसफी से कनेक्ट होने लगा। कोर्स से इतर जाकर मैं दर्शनशास्त्र की किताबें पढ़ता था। कुंभ मेले के दौरान उनका जीवन और आध्यात्मिक अभ्यास आधुनिक शिक्षा और प्राचीन ज्ञान का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है।
जिंदगी का मतलब समझने के लिए मैं ने नवउत्तरावाद, सुकरात, प्लेटो के आर्टिकल और किताबें पढ़ ली थीं, फिर एक समय आध्यात्म का रास्ता चुन लिया।”
अस्मिता- कोई कह रहा था कि "पढ़ाई के दौरान जिंदगी को लेकर उनकी फिलॉसफी बदल गई। उन्होंने कुछ समय के लिए अपना एक कोचिंग सेंटर भी खोला। यहां फिजिक्स पढ़ाया करते थे। लेकिन, उनका मन नहीं लगता था। उनका मन आध्यात्म में लगने लगा था।"
तो दूसरी रील थी कि इंजीनियर बाबा ने अपनी पूरी जिंदगी भगवान शिव शंकर को समर्पित कर दी है। उन्होंने बताया, "अब आध्यात्म में मजा आ रहा है। मैं साइंस के जरिए आध्यात्म को समझ रहा हूं। इसकी गहराइयों में जा रहा हूं। सब कुछ शिव है। शिव ही सत्य है और शिव ही सुंदर है।"
अस्मिता- अपनी शैक्षणिक और व्यावसायिक सफलता के बावजूद, संतुष्टि की कमी महसूस की और अवसाद से जूझते रहे। कथित तौर पर वे अपने कठिन बचपन और तनावपूर्ण पारिवारिक रिश्तों से प्रभावित थे। इस आंतरिक खोज ने उन्हें संस्कृत, मनोविज्ञान और सुकरात, प्लेटो और जे. कृष्णमूर्ति जैसे विचारकों के दर्शन में तल्लीन कर दिया। उन्होंने इस्कॉन की शिक्षाओं का भी अध्ययन किया।
आईआईटी के पूर्व छात्र हैं, जहाँ उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उन्होंने कथित तौर पर अकादमिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, अपनी बोर्ड परीक्षाओं में उच्च अंक और अच्छी जेईई रैंक के साथ।
आध्यात्मिकता की ओर बदलाव, कुंभ मेले में, वे अपनी असामान्य पृष्ठभूमि के कारण "आईआईटी बाबा" या "इंजीनियर बाबा" के रूप में जाने गए। वे न केवल अपने पूर्व पेशे के लिए बल्कि जटिल आध्यात्मिक अवधारणाओं को स्पष्ट, अक्सर अंग्रेजी, आकर्षक चर्चाओं में व्यक्त करने की अपनी क्षमता के लिए भी जाने जाते हैं, जिसमें वैज्ञानिक समझ को आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के साथ मिलाया जाता है।
अस्मिता- वे अक्सर आध्यात्मिक सत्यों को समझाने के लिए वैज्ञानिक आरेखों और उपमाओं का उपयोग करते हैं, इस बात पर जोर देते हुए कि विज्ञान का गहन अध्ययन अंततः आध्यात्मिक समझ की ओर ले जा सकता है। कुंभ मेले के दौरान, आईआईटी बाबा की प्रथाएँ और जीवन शैली आम तौर पर तपस्वियों की व्यापक परंपराओं के साथ संरेखित होती हैं, लेकिन उनके अनूठे दृष्टिकोण के साथ।
वे साधारण भगवा वस्त्र पहने हुए दिखाई देते हैं, अक्सर ड्रेडलॉक के साथ, जो तपस्वी जीवन शैली को दर्शाता है। यह उनके पिछले कॉर्पोरेट जीवन के बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने कथित तौर पर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने पिछले भौतिक सुखों को त्याग दिया है, जिसमें एक उच्च वेतन वाली नौकरी और एक पारंपरिक जीवन शामिल है।
यह तप का एक मूल सिद्धांत है। कुंभ के दौरान, साधु और बाबा विशेष रूप से इस आयोजन के लिए स्थापित अस्थायी शिविरों अखाड़ों में रहते हैं। उनके जीवन की विशेषता न्यूनतम संपत्ति और आध्यात्मिक गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करना है।
ये उनके अभ्यास के लिए मौलिक हैं, जैसा कि उनकी सोशल मीडिया उपस्थिति और उनकी चर्चाओं से स्पष्ट है। वह मोक्ष मुक्ति और आंतरिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए योग और विभिन्न
आध्यात्मिक प्रथाओं की वकालत करते हैं। प्राचीन शास्त्रों का अध्ययन, उनकी यात्रा में संस्कृत, वैदिक सूत्र और गीता जैसे दार्शनिक ग्रंथों का गहन अध्ययन शामिल था। उनका उद्देश्य इन प्राचीन ज्ञान परंपराओं को समझना और उन्हें व्यक्त करना है। कुंभ में लाखों अन्य भक्तों और साधुओं की तरह, वह पवित्र डुबकी में भाग लेंगे। माना जाता है कि यह अनुष्ठान पापों को साफ करता है और मुक्ति में सहायता करता है।
अस्मिता- मेले के दौरान उनकी आध्यात्मिक साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आगंतुकों, पत्रकारों और अन्य आध्यात्मिक साधकों के साथ जुड़ना शामिल है। वह इन बातचीत का उपयोग अपनी अंतर्दृष्टि साझा करने, विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच की खाई को पाटने और दूसरों को उनके आध्यात्मिक पथ पर मार्गदर्शन करने के लिए करते हैं।
आंतरिक सत्य पर ध्यान दें, वह इस बात पर जोर देते हैं कि सच्ची खुशी और तृप्ति बाहरी उपलब्धियों या भौतिक संपत्तियों के बजाय भीतर से, स्वयं की खोज और सत्य की खोज से आती है। देश के एक प्रसिद्ध चैनल ने दिखाया कि जब इंजीनियर बाबा से पूछा गया कि आध्यात्म की जिंदगी कैसी लग रही है?
वे कहते हैं, "अब मैं आध्यात्मिकता का आनंद ले रहा हूँ। मैं विज्ञान के माध्यम से आध्यात्मिकता को समझता हूँ। मैं इसकी गहराई में जा रहा हूँ। सब कुछ शिव है। सत्य शिव है, और शिव सुंदर है।"
उनके दृष्टिकोण के परिणाम और उपलब्धियाँ वायरल घटना और उनकी कहानी वायरल हो गई है, जिसने लाखों लोगों की कल्पना को आकर्षित किया है, खासकर भारत में।
अस्मिता- एक आईआईटीयन के रूप में उनकी पृष्ठभूमि सफलता और आध्यात्मिकता की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देती है, जिससे वे अत्यधिक जिज्ञासा और चर्चा का विषय बन गए हैं।
विज्ञान और आध्यात्मिकता को जोड़ना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आध्यात्मिक अवधारणाओं को समझाने की उनकी अनूठी क्षमता उस पीढ़ी के साथ प्रतिध्वनित होती है जो अक्सर आध्यात्मिक घटनाओं के लिए तर्कसंगत स्पष्टीकरण चाहती है। वे वैज्ञानिक रूप से इच्छुक और आध्यात्मिक रूप से जिज्ञासु दोनों को आकर्षित करते हैं।
उनकी यात्रा कई लोगों के लिए प्रेरणा का काम करती है जो विशुद्ध रूप से भौतिक खोजों से अधूरा महसूस कर सकते हैं। वे लोगों को सामाजिक मानदंडों पर सवाल उठाने और जीवन में गहरे अर्थ खोजने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
शिक्षा और जीवन विकल्पों पर बहस, उनकी कहानी ने दबावों के बारे में सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छेड़ दी है। भारतीय शिक्षा प्रणाली की सफलता की परिभाषा, तथा पारम्परिक करियर पथों पर व्यक्तिगत पूर्णता का महत्व।
अपरम्परागत तपस्वी, वे एक नए प्रकार के आध्यात्मिक व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो स्पष्टवादी, डिजिटल रूप से कुशल सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति बनाए रखते हैं तथा दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों पर वैश्विक दर्शकों से जुड़ने में सक्षम हैं।
अस्मिता- संक्षेप में, कुंभ मेले में आईआईटी बाबा एक आधुनिक आध्यात्मिक खोज का प्रतीक हैं। वे न केवल एक त्यागी हैं, बल्कि एक विचारक हैं, जो अपनी इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि से प्राप्त विश्लेषणात्मक मस्तिष्क को गहन आध्यात्मिक जांच के साथ एकीकृत करते हैं, जिससे प्राचीन ज्ञान समकालीन दर्शकों के लिए सुलभ और प्रासंगिक बन जाता है।
कुंभ मेले में उनकी उपस्थिति पारंपरिक तपस्वियों से लेकर आंतरिक सत्य के लिए नए मार्ग तलाशने वालों तक, आध्यात्मिक साधकों की एक विविध श्रेणी को आकर्षित करने और प्रदर्शित करने की उत्सव की क्षमता को उजागर करती है।
अस्मिता- शुरू में हम लोगों ने मजाक-मजाक में इंटरव्यू देना शुरू किया था। लेकिन बात अब हद से बाहर चली गई थी। होटल में रहना मुश्किल हो गया था।
टूरिज़्म होटल वालों ने मेले में एक टेन्ट सिटी बनाई थी। हमें उन्होंने एक कॉटेज अलॉट कर दी। व्यास जी ने सलाह दी कि अब मोटर साइकिल से घूमना मतलब खतरा मोल लेना था।
अस्मिता- तो कॉटेज से निकलना बंद करना पड़ा। इस बीच हम लोग अनेक दफ़े चक्रतीर्थ दिन में, रात में गये लेकिन कापालिक से मुलाकात नहीं हो सकी। हम लोगों ने यह अनुभव किया कि साधु के वेश का इस देश में क्या महत्त्व है?
लोग धर्म के प्रति कितनी अंध शृद्धा रखते है। वे कथाकथित धार्मिक लोगों की पृष्टभूमि जानने की कोशिश नहीं करते है। लोग धर्म के प्रति दीवाने है। उन्हें लगता है कि कोई चमत्कार होगा और जीवन की सभी समस्याओं का हल हो जाएगा।
महाकुंभ जैसा भव्य धार्मिक आयोजन का उत्सव और इसमें शामिल होने वाले साधु-संत आम जनमानस में भी आस्था और विश्वास को बढ़ाते हैं। साथ ही समाज में यह संदेश देते हैं कि, व्यक्ति की असल पहचान आंतरिक शांति, संतुलन, संतोष और आत्मिक अनुभव की खोज है।
महाकुंभ में कई बाबा, साधु-संत और संन्यासी इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं। इस खासा एक युवा खास चर्चा में है। इनकी फोटो-वीडियो लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।
रुद्राक्ष की माला धारण किए शांत चेहरे वाले युवा के साधु जीवन ने हर किसी ने मन में सवाल पैदा कर दिया कि, उन्हें आखिर किस चीज की खोज थी, जिस कारण उन्होंने भक्ति और आध्यात्मक का मार्ग अपानाया। युवक के जीवन को देख यह कहना गलत नहीं होगा कि वे भौतिक सुखों से परे कुछ अर्थपूर्ण ढूंढ रहे हैं।
यह सब देख कर हमारे परिवार के लोग बहुत चिंतित हो गये। कि सही में या तो हम लोगों ने सन्यास ले लिया है या पागल हो गए है। हम लोगों को रोज वीडियो काल कर उन्हें समझाना पड़ता। रिस्तेदार, दोस्त तथा साथ में काम करने बाले लगातार पूछताछ कर रहे है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया की क्या ताकत है हम ने इतने काम समय में जान ली।
समीर को याद आया कि मानव की ईश्वर के प्रति अंध श्रद्धा इल्तुमिश के ज़माने में जो थी वैसी ही आज तक हैं। मानव की चेतना में इस सम्बन्ध में कोई खास विकास हुआ नहीं दिखता है। बल्कि उल्टा आज साधना कम और दिखावा ज्यादा हो गया है।
लेकिन अब हम लोग मीडिया से छुप गये। चिन्ता है तो केवल एक बात की कि कापालिक से मुलाकात कैसे होगी। लेकिन मन में उम्मीद थी कि उन्हें तो सब पता है। चिंता किस बात की। अब हमने श्रद्धा करना सीख लिया था। जीवन महाकाल के हवाले कर दिया था।
लाइव कवरेज और तात्कालिकता, शाही स्नान लाइव: इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शाही स्नान का निर्बाध लाइव कवरेज प्रदान करता है, जिससे इस घटना का हिस्सा होने का एहसास होता है। पानी में साधुओं का उमड़ना, मंत्रोच्चार और विशुद्ध ऊर्जा मनमोहक है।
सोशल मीडिया पर वास्तविक समय के अपडेट, हैशटैग ट्रेंड, जमीन से लाइव कहानियां कच्ची, अनफ़िल्टर्ड झलकियाँ देती हैं और वायरल वीडियो आध्यात्मिक तीव्रता या मानवीय रुचि के क्षणभंगुर क्षणों को कैप्चर करते हैं।
मानवीय रुचि की कहानियाँ, हज़ारों मील की यात्रा करने वाले व्यक्तिगत तीर्थयात्रियों की कहानियाँ, उनकी भक्ति, बलिदान और अनुभव दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ते हैं। परिवारों का फिर से मिलना, खोए हुए लोगों का मिलना और निस्वार्थ सेवा के कार्यों को अक्सर उजागर किया जाता है, जो मानवीय भावना को प्रदर्शित करता है।
तकनीकी एकीकरण, उन्नत मीडिया केंद्र: कुंभ मेला स्थलों पर समर्पित, अत्याधुनिक मीडिया केंद्र स्थापित किए जाते हैं, जो उच्च गुणवत्ता वाले कैमरों, लाइव-स्ट्रीमिंग सुविधाओं, इंटरनेट कनेक्टिविटी और हजारों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों के लिए सहायता से सुसज्जित होते हैं।
एआई और ड्रोन, हाल के कुंभ मेलों में भीड़ प्रबंधन और चेहरे की पहचान खोए और पाए गए लोगों के लिए के लिए एआई-सक्षम कैमरों और हवाई दृश्यों के लिए ड्रोन का उपयोग देखा गया है, जो खुद मीडिया कथा का हिस्सा बन गए हैं, जो मेले को प्राचीन होने के बावजूद तकनीकी रूप से उन्नत के रूप में चित्रित करते हैं।
मोबाइल ऐप और डिजिटल सेवाएँ,आधिकारिक ऐप सभी आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं, और डिजिटल खोया-पाया केंद्र जैसी सुविधाएँ जो सोशल मीडिया का लाभ उठाती हैं, मेला अनुभव में प्रौद्योगिकी को और एकीकृत करती हैं, जिसे मीडिया फिर बढ़ावा देता है।
ब्रांडिंग और मार्केटिंग, सरकारें कुंभ मेले को "वैश्विक सांस्कृतिक आयोजन" या "भारत की आध्यात्मिक विरासत" के रूप में ब्रांड करने में सक्रिय रूप से संलग्न हैं। आकर्षक टैगलाइन, आकर्षक प्रचार वीडियो और प्रभावशाली सहयोग का उपयोग किया जाता है।
बीबीसी, सीएनएन, द गार्जियन और द न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया घराने व्यापक कवरेज प्रदान करते हैं, अक्सर इसकी "भव्यता और पैमाने" के लिए इसकी प्रशंसा करते हैं, जिससे इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा और मजबूत होती है। भारत, उज्जैन और सिंहस्थ कुंभ मेला भारत के मध्य प्रदेश में स्थित उज्जैन, चार पवित्र स्थलों में से एक है जहाँ कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
अघोरी और कपालिका परंपराएं, उज्जैन ऐतिहासिक रूप से विभिन्न तपस्वी संप्रदायों का गढ़ रहा है, जिसमें अधिक गूढ़ और गहन अघोरी और कपालिका परंपराएं शामिल हैं, जो शैव धर्म की शाखाएं हैं। हालांकि शाही स्नान के दौरान नागा साधुओं की तरह प्रमुखता से प्रदर्शित नहीं किया गया, उनकी उपस्थिति उज्जैन के रहस्य में योगदान देती है और इन अद्वितीय आध्यात्मिक मार्गों में रुचि रखने वाले मीडिया का ध्यान आकर्षित करती है।
अस्मिता- हमेशा पॉजिटिव सोचते। और एक दिन चमत्कार हो गया। जब हम लोग अपने कॉटेज में थे तो रात को ऐसा लगा कि कोई बाहर आवाज दे रहा है। समीर बाहर निकला तो देखा कापालिक महाराज खड़े है। समीर ने चरण बन्दना की तथा उन्हें अन्दर ले आया। मै कुर्सी से उठी और चरण छूने को झुकी तो उन्होंने मना करते हुए कहा “लड़कियों से पाँव नहीं छूआता।”
हम सब बैठ गये।
महाराज ने हँसते हुए कहा- "कहो कैसी रही?"
समीर ने पूछा- "क्या महाराज?"
"आईआईटी बाबा बनाना" महाराज हँस पड़े।
"तो वह आप का चमत्कार था।" अस्मिता ने पूछा।
अरे नहीं सब महाकाल की मर्जी।" महाराज अभी भी मुस्करा रहे थे।
"तुम्हें भविष्य के लिये तैयार करना है।" महाराज ने समीर पर नज़ारे गड़ा दी।
मैं बोलने के लिये मुँह खोल रही थी तो महाराज ने चुप रहने का इसारा किया और बोले
"कल पूर्णिमा की रात चक्रतीर्थ पर अर्द्ध रात्रि समीर ! तुम्हारी दीक्षा होगी।"
अस्मिता- महाराज बाहर निकले। हम लोग भी निकले लेकिन अंधेरे से जैसे आये थे बैसे चले गये। मेरा दिल समीर के लिये धड़कने लगा।
वीर साधना
अस्मिता- पूर्णिमा की रात चाँद महाकाल मंदिर के ऊपर चमक रहा था। चक्रतीर्थ पर अभी भी कुछ चिताओं में आग जल रही थी। समीर और मै मुँह पर कपड़ा लपेट कर पहुंचे थे।
हम लोगों को वहां बैठे काफी देर हो चुकी थी। लेकिन कापालिक महाराज का कोई पता नहीं था। हम लोग अभी तक के अनुभवों पर चर्चा कर रहे थे। तभी महाराज पास आते दिखे।
अस्मिता- हम दोनों ने प्रणाम किया। वह हमारे साथ बेंच पर बैठ गये। उन्होंने बताया कि दीक्षा कई चरणों से गुजरेगी। दीक्षा की प्रक्रिया में पहले तुम्हारा बाल मुण्डन होगा, फिर क्षिप्रा में स्नान, तुम्हें लाल कपडा पहनना होगा।
अस्मिता- महाराज ने उनके थैले से लाल कपड़ा समीर की दिया। मै तुम्हें मन्त्र दूंगा। यह साधना सात चरणों में पूर्ण होती है। फिर वीर हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा। लेकिन मुझे मेरे गुरु से तुम्हें केवल पहले चरण की साधना करवाने का निर्देश है। तो मैं तुम्हें पहले चरण की साधना सम्पन्न करवाऊंगा। जिस से तुम उन सभी शरीरी तथा अशरीरी आत्माओं को देखा सकोगे। जिनका पूर्व जन्मों में तुम से सम्पर्क हुआ था।
मन्त्र साधना निर्बाध हो इसलिये हम लोगों को कालियादेह महल चलना होगा। पिछली भेंट में महाराज ने जो पूजन सामग्री बताई थी वह व्यास जी की मदद से हम लोगों ने खरीद कर रख ली थी जो हम साथ लाये थे।
अस्मिताने पूछा- "महाराज यह महल कहां है?"
महाराज ने धीरे से कहा- "कालिया देह महल शिप्रा नदी के तट पर स्थित एक महल है। कालिया देह पैलेस शहर के बाहरी इलाके में कालिया देह गांव में स्थित है। यहां एक ही तरह से बाबन कुंड बनाए गए हैं। यहां क्षिप्रा महल के दोनों ओर बहती है। यह उज्जैन के सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों में से एक है और इसके गौरवशाली अतीत का प्रमाण है।
इस महल का निर्माण महमूद खिलजी के समय मांडू के सुल्तान ने करवाया था। यह महल कभी सूर्य देवता का एक सुंदर मंदिर था।
जिसमें सूर्य कुंड और ब्रह्म कुंड नामक दो कुंड थे। महल अपनी शानदार और भव्य वास्तुकला, अपने समृद्ध इतिहास और किंवदंतियों तथा अपने सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।
महल में एक बड़ा केंद्रीय हॉल मंडप और एक गर्भगृह है। जहाँ सूर्य देवता की मूर्ति स्थापित की गई थी।
भूतड़ी अमावस्या के दिन, लोग बड़ी संख्या में यहां इकट्ठा होते हैं।
यह विश्वास करते हुए कि यहां स्नान करने से बुरी आत्माओं से छुटकारा मिल जाता है।
भूतड़ी अमावस्या पर भूतों का मेला लगता है। मान्यता है कि कुंड में स्नान करवाने से रुके हुए कार्य भी शुरू हो जाते हैं और बिना विघ्न के संपन्न होते हैं। तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। हम लोग अपना अनुष्ठान इसी जगह करेंगे।"
समीर ने जब साधना के बारे में पूछा तो महाराज ने हम लोगों को समझते हुए कहा कि "कपालिक साधना, एक तांत्रिक शैव साधना है। जो पाशुपत संप्रदाय के अंतर्गत आती है। यह साधना वाममार्ग पर आधारित है। इसमें भैरव और कौल तंत्र की साधना की जाती है। कापालिक साधुओं के लिए मानव खोपड़ी कपाल का उपयोग भिक्षापात्र के रूप में किया जाता है। वे तांत्रिक साधनाओं को करते हैं। साधना के लिए हमने ऐसे स्थान का चयन किया है जो शांत और एकांत है।
हम अपनी साधना में भैरवी, महाकाली, चांडाली, चामुंडा, शिव, का आवाहन कर साधना में शामिल करेंगे। मानव खोपड़ी कपाल, मंत्र, यंत्र, तंत्र, और साधना के लिए आवश्यक अन्य सामग्री जो तुम लाये हो उस का उपयोग करेंगे ।
हम अपनी साधना रात में करेंगे। क्योंकि रात में तांत्रिक ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है। यह साधना एक जटिल और खतरनाक साधना है। इसलिए इसे मेरे मार्गदर्शन में ही करना होगा।
साधना के दौरान मानसिक और शारीरिक रूप से तुम्हें मजबूत रहना चाहिए।
क्योंकि यह साधना कठिन हो सकती है। साधना के दौरान किसी भी प्रकार की गलत क्रिया करने से बचना चाहिए। क्योंकि इससे नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।"
समीर ने पूछा- "क्या इस साधना से में इल्तुतमिश के पाप से मुक्त हो जाऊंगा ?"
महाराज ने कहा- "हम बाबन वीर साधना करगे, जो तंत्र शास्त्र का एक महत्वपूर्ण और गोपनीय हिस्सा है।
जिसमें वीर या वीरता की शक्ति को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। ये सभी वीर काली माता के दिव्य दूत हैं। जब कोई काली माता का अनुष्ठान करता है। तो ये वीर, साधक के सामने प्रकट होकर उन्हें शक्ति, साहस और सिद्धियाँ प्रदान करते हैं। ये 'वीर' सकारात्मक शक्तियाँ हैं। और इनमें इन बाबन वीरों की शक्तियाँ अलग-अलग होती है।
बटुक वीर साधना भगवान बटुक भैरव को समर्पित एक शक्तिशाली आध्यात्मिक अभ्यास है। जो भगवान शिव के एक युवा और दयालु स्वरूप हैं। उन्हें संरक्षक देवता, नकारात्मक शक्तियों से बचाने वाला और साहस, ज्ञान और समृद्धि का दाता माना जाता है। जबकि भैरव रूप कभी-कभी तीव्र हो सकते हैं, बटुक भैरव को आम तौर पर आसानी से प्रसन्न होने वाले और दयालु माना जाता है।
जिससे उनकी साधना गृहस्थों के लिए सुलभ हो जाती है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि तांत्रिक साधनाएँ, विशेष रूप से भैरव जैसे शक्तिशाली देवताओं को शामिल करने वाली साधनाएँ अक्सर जटिल होती हैं और पारंपरिक रूप से एक योग्य गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। उचित दीक्षा और समझ के बिना ऐसी साधनाओं का प्रयास करने से अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।
बटुक वीर साधना विधि और अभ्यास के मूल में भक्ति, विशिष्ट अनुष्ठान और मंत्र जाप शामिल हैं। साधक को सख्त शुद्धता का पालन करना चाहिए। शारीरिक स्वच्छता स्नान, मानसिक स्पष्टता और शुद्ध इरादा।
साधना अवधि के दौरान मांसाहारी भोजन, शराब और नशीले पदार्थों से बचना आवश्यक है। साधना अक्सर रात में की जाती है, खासकर मंगलवार, शनिवार या अष्टमी तिथि आठवाँ चंद्र दिवस या अमावस्या की रात के दौरान। क्योंकि इन्हें भैरव पूजा के लिए शुभ माना जाता है। पूजा उपासना के लिए एक साफ और शांत कोना चुना जाता है।
इनमें आम तौर पर शामिल हैं बटुक भैरव यंत्र। देवता का प्रतिनिधित्व करने वाला एक पवित्र ज्यामितीय आरेख। इसे अक्सर काले तिल के ढेर पर रखा जाता है। घी का दीपक जलाया जाता है। सुगंधित धूप चढ़ाई जाती है।
अक्सर लाल फूल, विशेष रूप से लाल गुड़हल। सिंदूर कुमकुम देवता की छवि/यंत्र पर लगाया जाता है। मिठाई लड्डू, जलेबी, गुलाब जामुन या अन्य मीठी चीजें। नमकीन चीजें उड़द की दाल की चीजें जैसे वड़ा, कभी-कभी नींबू चावल जैसी तीखी चीजें। अन्य प्रसाद में नारियल, पानी, दूध, शहद, सरसों का तेल।
जप के लिए आमतौर पर लाल हकीक की माला का उपयोग किया जाता है। शुरू करने से पहले, अपने गुरु को याद करना और उनसे आशीर्वाद लेना महत्वपूर्ण है, या यदि किसी का कोई जीवित गुरु नहीं है, तो दत्त गुरु या किसी पूजनीय संत को सम्मान देना चाहिए। बाधाओं को दूर करने के लिए शुरुआत में भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है।
साधना के उद्देश्य को बताते हुए एक गंभीर प्रतिज्ञा, संकल्प या इरादा किया जाता है। बटुक भैरव के दिव्य रूप का ध्यान करें। उन्हें आमतौर पर एक युवा देवता के रूप में दर्शाया जाता है, जो अक्सर नीले या काले रंग, तीन आँखों और चार भुजाओं के साथ होते हैं, और त्रिशूल, ढोल, खोपड़ी और गदा पकड़े होते हैं। उनका वाहन कुत्ता है। यह मुख्य अभ्यास है।
गहरे बैठे भय, चिंता और भय को मिटाता है, साहस और निडरता का संचार करता है। नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा मिलती है। बुरी नज़र, काले जादू, मानसिक हमलों से सुरक्षा बाधाओं को दूर करना है। व्यक्तिगत, व्यावसायिक और आध्यात्मिक विकास में बाधाओं और रुकावटों को दूर करता है, प्रयासों में सफलता सुनिश्चित करता है।
जीवन और संपत्ति की सुरक्षा, खतरों, दुर्घटनाओं और वित्तीय नुकसान के खिलाफ एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है। भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति, वित्तीय स्थिरता और समृद्धि, व्यापार और करियर में प्रचुरता, धन और सफलता को आकर्षित करता है।
दुश्मनों पर विजय, विरोधियों, प्रतिस्पर्धियों पर काबू पाने और कानूनी विवादों को जीतने में मदद करता है। ऐसा माना जाता है कि यह राज्य के अधिकारियों को अनुकूल बनाता है।
रिश्तों में सामंजस्य, मानसिक शांति लाता है और परिवार और रिश्तों के भीतर संघर्ष और तनाव को हल करता है। स्वास्थ्य और कल्याण: शारीरिक और मानसिक कल्याण को बढ़ावा देता है, पुरानी
बीमारियों से उबरने में सहायता करता है और तनाव को कम करता है। एकाग्रता और बुद्धि में वृद्धि, छात्रों और पेशेवरों को ध्यान, बुद्धि और स्मृति में सुधार करके लाभ होता है, जिससे शैक्षणिक और करियर में सफलता मिलती है। कर्म शुद्धि: पिछले कर्म ऋणों को हल करने और नकारात्मक कर्मों को शुद्ध करने में मदद करता है।
आध्यात्मिक विकास, आध्यात्मिक प्रगति, आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर के साथ गहरा संबंध बढ़ाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह अहंकार, भौतिकवाद और अन्य नकारात्मक आंतरिक गुणों को दूर करने में मदद करता है।
अद्वितीय पहलू, तेज़ परिणाम, बटुक भैरव को अक्सर आसानी से प्रसन्न होने वाले और त्वरित परिणाम प्रदान करने में सक्षम के रूप में वर्णित किया जाता है। बाल-समान रूप: उनका मासूम लेकिन शक्तिशाली बाल-समान रूप उन्हें सुलभ बनाता है, और उन्हें विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के लिए बुलाया जाता है।
तामसिक प्रकृति, भैरव के कुछ रूप तामसिक काले, उग्र गुणों से जुड़े हैं। जबकि बटुक भैरव दयालु हैं, ऊर्जा तीव्र हो सकती है। यही कारण है कि उचित मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है।
नैतिक आचरण, लाभ काफी हद तक साधक के शुद्ध इरादों और नैतिक आचरण से जुड़े हैं। साधना दूसरों को नुकसान पहुँचाने का साधन नहीं है।
व्यक्तिगत अनुभव, परिणाम और अनुभव व्यक्ति से व्यक्ति में उनकी भक्ति, निरंतरता और कर्म संबंधी प्रवृत्ति के आधार पर बहुत भिन्न होते हैं।
बटुक वीर साधना हिंदू तांत्रिक परंपराओं में एक पूजनीय अभ्यास है। जो व्यापक सुरक्षा, समस्या-समाधान और समग्र कल्याण के लिए बटुक भैरव के आशीर्वाद को प्राप्त करने पर केंद्रित है। इसका सफल निष्पादन अनुष्ठानों के सावधानीपूर्वक पालन, अटूट विश्वास और, आदर्श रूप से, एक अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन पर निर्भर करता है।
हम लोग बटुक वीर की साधना करेंगे। वीर साधना के दौरान विशेष गुप्त मंत्रों, यंत्रों और विधियों का उपयोग किया जाता है। वीर साधना को तंत्र साधनाओं में काफी ऊंचा स्थान दिया गया है। जिस प्रकार भगवान् शिव के गण होते हैं।
ठीक वैसे ही इन वीरों को भैरवी काली का रूप के अनुयायी अथवा भैरव के गण के रूप में बताया गया है। इन्हें दिव्य शक्तियों के धारक और धर्म के रक्षक के रूप में भी जाना जाता है। इनकी शक्तियॉ तुम्हें इल्तुतमिश के पाप से मुक्त कर देगी।"
अस्मिता- जब हम रात में कालिया देह पैलेस पहुंचे तो समीर उस जगह को देख कर बोला इल्तुमिश का कैम्प यही लगाया गया था। तब यह मैदान था, लेकिन क्षिप्रा तब भी ऐसे ही बहती थी। क्षिप्रा की धार तब बहुत निर्मल तथा तीव्र थी। उसे याद है की हर दिन की मार काट के बाद वह तथा उसके सैनिक यही क्षिप्रा के जल में स्नान कर थकान मिटाया करते थे।
महल के बाहर एक खाली सुनसान जगह में पीछे की तरफ का कमरा महाराज ने पहले से चुन रखा था। एक तो यह सड़क की दूसरी तरफ था तथा दूसरे इस कमरे के अन्दर एक और कमरा था।
जिसमें कोई खिड़की नहीं होने से दीपक की रोशनी बाहर नहीं जाती थी। वहां कुछ चमगादड़ थी जो हम लोगों के आने से आबाज करते हुए बाहर उड़ गई।
मंत्र का जाप एक निश्चित संख्या में जैसे, माला के एक चक्र में 108 बार, एक निश्चित संख्या में चक्र जैसे, 11 चक्र और एक निश्चित अवधि जैसे, पन्द्रह दिन या उससे अधिक के लिए किया जाता है। निरंतरता महत्वपूर्ण है। श्वास अभ्यास को शामिल किया जा सकता है। जाप के दौरान, बटुक भैरव और वांछित परिणाम की कल्पना करें।
चावल के दानों का अनुष्ठान अपने दाहिने हाथ में चावल के दाने लें, अपनी समस्याओं को स्पष्ट रूप से बताएं, अपने सिर के चारों ओर चावल के दाने घुमाएँ और उन्हें सभी दिशाओं में फेंक दें। यह कठिनाइयों को दूर भगाने का प्रतीक है।
आरती, आरती दीपों की लहर के साथ दैनिक अभ्यास का समापन करें।
विसर्जन, साधना अवधि जैसे, पन्द्रह दिन पूरी होने के बाद, यंत्र और माला को पारंपरिक रूप से तालाब या नदी में विसर्जित किया जाता है। दिनचर्या, मन और आहार में अनुशासन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। साधना के प्रभावी होने के लिए अत्यधिक आस्था श्रद्धा और भक्ति सर्वोपरि हैं।
गुरु का मार्गदर्शन जरुरी है। गहरे बैठे भय, चिंता और भय को मिटाता है, साहस और निडरता का संचार करता है। नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा मिलती है। बुरी नज़र, काले जादू, मानसिक हमलों से सुरक्षा बाधाओं को दूर करना है। व्यक्तिगत, व्यावसायिक और आध्यात्मिक विकास में बाधाओं और रुकावटों को दूर करता है, प्रयासों में सफलता सुनिश्चित करता है।
जीवन और संपत्ति की सुरक्षा, खतरों, दुर्घटनाओं और वित्तीय नुकसान के खिलाफ एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है। भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति, वित्तीय स्थिरता और समृद्धि, व्यापार और करियर में प्रचुरता, धन और सफलता को आकर्षित करता है।
दुश्मनों पर विजय, विरोधियों, प्रतिस्पर्धियों पर काबू पाने और कानूनी विवादों को जीतने में मदद करता है। ऐसा माना जाता है कि यह राज्य के अधिकारियों को अनुकूल बनाता है। रिश्तों में
सामंजस्य, मानसिक शांति लाता है और परिवार और रिश्तों के भीतर संघर्ष और तनाव को हल करता है।
स्वास्थ्य और कल्याण, शारीरिक और मानसिक कल्याण को बढ़ावा देता है, पुरानी बीमारियों से उबरने में सहायता करता है और तनाव को कम करता है।
एकाग्रता और बुद्धि में वृद्धि: छात्रों और पेशेवरों को ध्यान, बुद्धि और स्मृति में सुधार करके लाभ होता है, जिससे शैक्षणिक और करियर में सफलता मिलती है। कर्म शुद्धि, पिछले कर्म ऋणों को हल करने और नकारात्मक कर्मों को शुद्ध करने में मदद करता है।
आध्यात्मिक विकास, आध्यात्मिक प्रगति, आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर के साथ गहरा संबंध बढ़ाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह अहंकार, भौतिकवाद और अन्य नकारात्मक आंतरिक गुणों को दूर करने में मदद करता है।
अद्वितीय पहलू, तेज़ परिणाम, बटुक भैरव को अक्सर आसानी से प्रसन्न होने वाले और त्वरित परिणाम प्रदान करने में सक्षम के रूप में वर्णित किया जाता है।
बाल-समान रूप, उनका मासूम लेकिन शक्तिशाली बाल-समान रूप उन्हें सुलभ बनाता है, और उन्हें विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के लिए बुलाया जाता है।
तामसिक प्रकृति, भैरव के कुछ रूप तामसिक काले, उग्र गुणों से जुड़े हैं। जबकि बटुक भैरव दयालु हैं, ऊर्जा तीव्र हो सकती है। यही कारण है कि उचित मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है। नैतिक आचरण, लाभ काफी हद तक साधक के शुद्ध इरादों और नैतिक आचरण से जुड़े हैं। साधना दूसरों को नुकसान पहुँचाने का साधन नहीं है।
व्यक्तिगत अनुभव, परिणाम और अनुभव व्यक्ति से व्यक्ति में उनकी भक्ति, निरंतरता और कर्म संबंधी प्रवृत्ति के आधार पर बहुत भिन्न होते हैं।
बटुक वीर साधना हिंदू तांत्रिक परंपराओं में एक पूजनीय अभ्यास है। जो व्यापक सुरक्षा, समस्या-समाधान और समग्र कल्याण के लिए बटुक भैरव के आशीर्वाद को प्राप्त करने पर केंद्रित है। इसका
सफल निष्पादन अनुष्ठानों के सावधानीपूर्वक पालन, अटूट विश्वास और, आदर्श रूप से, एक अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन पर निर्भर करता है। कि जोर दिया गया है, वास्तव में प्रभावी और सुरक्षित अभ्यास के लिए, दीक्षा दीक्षा, विशिष्ट मंत्र और विस्तृत चरणों के लिए गुरु का मार्गदर्शन अत्यधिक अनुशंसित है। कुछ ग्रंथों में कहा गया है कि गुरु के बिना, साधना अधूरी या हानिकारक भी हो सकती है।
अस्मिता- महाराज ने दिन में ही इस जगह को साफ करवा लिया था। सब सामान रखने के बाद महाराज ने समीर के संस्कार शुरू किए। चोरों तरफ चांदनी छिटकी थी। दूर शहर की लाईट दिखाई दे रही थी। आसपास के खेतों से बीच-बीच में सियार के रोने का स्वर आ रहा था।
इधर उधर कुछ कुत्ते हम लोगों की उपस्थिति पर परेशान होने के कारण लगातार भोंक-भोंक कर थक कर चुप हो गये थे। यह क्षेत्र भूत प्रेत के लिये बदनाम होने के कारण कोई भी आदमी यहाँ से गुजरने की हिम्मत नहीं करता है।
अस्मिता- पूजा के लिये गौ घृत, गौ दुग्ध, गौ दधि, चन्दन, कुंकुम, कुशोदक, गन्ध, माला, गुग्गल, धुप, सुगन्धित पदार्थ, स्वर्ण व रत्नों के आभूषण, बस्त्र, स्रोत, पताका, व्यंजन, तथा अक्षत आदि सामग्री ले कर कर आये थे। इसके आलावा बहुत सारी दूसरी चीजें महाराज ले कर आये थे।
महाराज ने बताया कि इस साधना का अभ्यास इस गोपनीय और एकांत जगह पर कमरे में बंद रहकर करेंगे।
इस साधना,के लिये ख़ास महूर्त आज रात्रि तीसरे पहर शुरू हो रहा है। महाराज ने चावल के आटे से चौक पूरा। क्षिप्रा से जल ला कर कलश स्थापना की। फिर वीर की प्रतिमा देवी और देवताओं के साथ चौक में स्थापित की ।
अस्मिता- महाराज ने समीर को बताया कि जो इन तंत्रों की साधना करते हैं। वो प्रेत बाधाओं और अन्य अदृश्य शक्तियों से ग्रसित लोगों की सहायता कर सकते हैं।
वीर साधना से साधक को ऐसी शक्तियां प्राप्त होती हैं, जिससे वो कई चीजें प्राप्त कर सकता है। ये वीर अत्यंत शक्तिशाली हैं और उनकी साधना से साधक को दुर्लभ और अद्भुत शक्तियां प्राप्त होती हैं।
ये सिद्धियाँ बहुत जल्दी प्राप्त हो जाती हैं और वीर, अदृश्य रूप में हमेशा साधक की रक्षा और उनका मार्गदर्शन करते हैं। इसलिये तुम्हें अपनी शक्तियो के प्रचार प्रसार से दूर रहना होगा। तुम पैसे की बदले इन का उपयोग नहीं करोगे।
अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये उपयोग नहीं करोगे। कोई राज पद स्वीकार नहीं करोगे। किसी के अहित के लिये इनका उपयोग नहीं करोगे। हमेशा आचरण की शुद्धता रखोगे।
जिसे सम्पन्न करने पर वीर वश में रहकर काम करने वाला बन जाए।
वीर विक्रमादित्य की कहानी सर्वविदित है कि उन्होंने एक वीर को वश में कर रखा था। वह हमेशा उनके नियन्त्रण में रहते हुए उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार रहता था।
विक्रम के गुरु थे स्वामी सतानन्द महाराज। सतानन्द जी उस समय में आर्यवर्त के अद्वतीय गुरु थे। और क्रोध की साकार मूर्ति थे। हमेशा क्षिप्रा नदी के किनारे बैठे रहते और आगे धूनी जलती रहती। पास में चिमटा रहता। केवल लगोट धारण करते। इन चीजों के अलावा कोई और कुछ रखते नहीं थे।
मगर उनके पास जाने में आदमी डरता था। इसलिए डरता था की गालियां बहुत देते थे। कभी-कभी चिमटे से जोर से मार देते थे। गालियां या चिमटे की मार उनका आशीर्वाद था। इससे लोगों का जीवन बदल जाता था।
विक्रम ग्यारह साल की अवस्था में गुरु के पास पहुंचा और सेवा करता रहा। सोचता था ऐसा जीवन किस काम का जिसमें गुरुत्व न हो। सफलता न हो। कोई सिद्धि नहीं हो। पूर्णता नहीं हो। वह बेकार का साधारण जीवन है।
तीन महीनें बाद गुरु के पूछा "यहां क्यों आया है? उठ यहां से और भाग।"
विक्रमं ने कहा "आना तो मेरे हाथ में था जाना नहीं है, महाराज।"
महाराज उठे और जोर से उसकी पीठ पर पहला चिमटा मार कर कहा "ले यह जिन्दा।"
दूसरा चिमटा मार कर कहा "ले यह राज्य।"
तीसरा चिमटा मार कर कहा "ले यह सिद्धि।"
चौथा चिमटा मार कर कहा "ले यह सफलता। "
और उनकी चमड़ी उधड़ गई थी। पीड़ा से वह कराह उठा। चमड़ी जल रही थी। गुरुदेव उठ कर चले गये। तब पड़ोस से एक महिला आई और पीठ पर हल्दी लगाई। हल्दी का गरम दूध पिलाया। पंद्रह दिन बाद गुरु ने दीक्षा दी। उन्होंने वीर साधना की विधि समझाई। मंत्र दिया। तब पास में कुटी बना कर विक्रम ने कठोर साधना की। वीर को सिद्ध किया।
जो भी आज्ञा विक्रमादित्य देते वह एक वीर पल में ही उस कार्य को पूरा कर देता। अब विक्रमादित्य ने उस वीर की सहायता से ही अपने सारे शत्रुओं को काबू में किया।
उस वीर की सहायता से ही, जब राज्य पर पड़ोस की फौजें चढ़ आयीं तो पूरी फौज का सफाया किया। वीर की सहायता से ही विक्रमादित्य ने अपने राज्य में अपार धन-सम्पति जोड़ ली और उसी की सहायता से वह सारे संसार में विख्यात हुए।
शंकराचार्य ने भी वीर साधना संपन्न कर रखी थी। जिसकी वजह से चौबीसों घण्टे उनकी सुरक्षा बनी रहती थी। सिद्धि संकल्प शक्ति, शृद्धा, विश्वास, आत्म नियंत्रण तथा सपर्पण से मिलती है।
वीर की सहायता से ही जब वह जंगल में एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते, वीर उनका सही मार्ग दर्शन करता, जंगल के हिंसक पशुओं से भी रक्षा वही करता।
वीर की सहायता से ही शंकराचार्य ने अकेले ही पूरे भारतवर्ष में बौद्ध धर्म को बढ़ने से रोका। हिन्दु धर्म को पुन: स्थापित करने में सफलता पाई। वह स्वयं इस बात को स्वीकार करते थे कि मैंने अपने जीवन में सैकड़ों साधनाएं सम्पन्न की हैं। परन्तु वीर साधना के द्वारा ही मैंने जीवन की पूर्णता, यश, सम्मान और अद्वितीय सफलता प्राप्त की है।
गुरु गोरखनाथ वीर साधना के तो आचार्य ही थे। उनके शिष्यों को इस बात का गर्व था कि गुरु गोरखनाथ ने वीर को सिद्ध किया है। जिसकी वजह से वह तंत्र के क्षेत्र में पूर्ण सफलता पा सके हैं।
यद्यपि कई लोगों ने मिलकर गुरु गोरखनाथ को मारने को चेष्टा की परन्तु अकेले गुरु गोरखनाथ सैकड़ों लोगों से मुकाबला कर सके और विजय प्राप्त कर पाए।
यदि मेरी बातें नहीं मानोगे तो तुम्हारे साथ कुछ अनहोनी भी घटित हो सकती है या तुम्हारा अहित होगा। इस शक्ति का दुरपयोग नहीं करना है। यह शाक्तियां वापिस चली जाएगी तथा तुम्हारा मोक्ष संभव नहीं होगा। सरल सात्विक शुद्ध व्यवहार होना चाहिये।
तुम्हें मुझे बचन देना होगा तभी में यह अनुष्ठान करुगा। समीर गम्भीर हो गया। बहुत देर सोचने के बाद उसने महाराज के सामने संकल्प लिया।
तब महाराज ने अनुष्ठान शुरू किया। साधना के लिए महाराज एक गोपनीय मंत्र का जाप करना करने को समीर को बताते तथा शुभ मुहूर्त से साधना प्रारम्भ करते है। पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर लाल आसन पर लाल धोती पहनकर बैठ जाओ।
आधा किलो गेहूं के आटे से मनुष्य की आकृति का पुतला बनाओ और उसे सिन्दूर से रंग दो, इसे ही वीर कहते हैं। अब पास में दीपक जलालो और वीर के पास ही “वीर प्रत्यक्ष सिद्धि गुटिका ” स्थापित कर दो, धुप, अगरबत्ती जालाना है। नित्य रात्रि को लाल हकीक की माला से पन्द्रह माला मंत्र जप करें।
इसमें एक घण्टे से ज्यादा समय नहीं लगाता। मंत्र जप “वीर प्रत्यक्ष सिद्धि गुटिका” के सामने करें। बटुक भैरव के लिए सबसे आम और शक्तिशाली सावर मंत्र है "ॐ हलीम हलीम वीराय प्रत्यक्ष भव हलीम हलीम फट" प्रतिदिन रात्रि दस बजे आसन पर बैठे और आसन जाप और शरीर कीलन मंत्र पढकर रक्षा घेरा बनाएँ।
उसके बाद गुरु पूजन और गणेश पूजन करे और उनसे मंत्र जप की आज्ञा ले। फिर अपने सामने उबले हुए चावलों में पांच चम्मच घी और पांच चम्मच शक्कर मिलाकर मिटटी के बर्तन में रखे, अब मंत्र का जप करे।
जप के दौरान किसी भी हालत में रक्षा घेरे से बाहर ना आयें। इस पूरी क्रिया के दौरान गाय के घी का दीपक जलता रहना चाहिए।
इसमें जब साधना संपन्न हो जाए, तो पंदहवें दिन वीर को जंगल में दक्षिण दिशा की ओर रख कर कहना हें, कि मैं जब भी तुझे आज्ञा दें, तू उपस्थित होगा और आज्ञा पालन करेगा।
इसके अलावा हर क्षण अदृश्य रूप से मेरे सामने उपस्थित रहना तथा मेरी रक्षा करना। उस गुटिका को लाल धागे से अपनी दाहिनी भुजा पर बांध लें।
बटुक भैरव अपने सुरक्षात्मक और इच्छा-पूर्ति करने वाले स्वभाव के लिए पूजनीय हैं। उनकी साधना से होने वाले लाभ व्यापक हैं और जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूते हैं।
साधना संपन्न होने के बाद जब पांच बार मंत्र उच्चारण कर वीर को आवाज दी जायेगी, तो आंखों के सामने वीर प्रत्यक्ष होगा और उस समय आप उसे जो भी आज्ञा देंगे, वह तुरन्त आज्ञा का पालन करेगा। और समीर की बहु प्रतीक्षित साधना प्रारम्भ हो गई। ...
हर हर महादेव
कुम्भ मेला अपने पूरे शबाब पर था। चारों ओर जान मानस का सैलाव उमड़ रहा था। समीर ने कापालिक के सानिध्य में अपनी साधना सफलता पूर्वक पूर्ण कर ली थी।
अस्मिता और समीर कालियादेह महल से कुम्भ मेले के अपने तम्बू में लौट कर आ गये थे। उज्जैन की इस जगह में दुनियां के कोने-कोने से लोग आ कर इकठ्ठा हो रहे थे। बारह साल बाद बने इस शुभ अवसर पर सभी का एक ही मकसद था क्षिप्रा में बस एक बार डुबकी लगाना।
यह जगह एक विश्व रिकॉर्ड बना रही थी जो था अब तक की सर्वाधिक मनुष्यों का एक स्थान पर इतनी संख्या में एकत्र होने का। यह था आस्था का मेला महाकुंभ।
हर बारह साल में जब भी एक नया कुंभ मेला लगता है तो एक नया विश्व रिकॉर्ड बनता है। यह जनसंख्या दुनियां के कई देशों से अधिक है। आज अंतिम शाही स्थान है। शाही स्नान एक विशेष अनुष्ठान है जो कुंभ मेले में किया जाता है।
यह स्नान पवित्र क्षिप्रा नदी में किया जाता है, और इसे विशेष रूप से साधु-संतों द्वारा किया जाता है। यह स्नान कुंभ मेले के सबसे पवित्र दिनों में से एक पर किया जाता है। जब ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति अत्यंत शुभ होती है।
अस्मिता- कुंभ मेले में "शाही स्नान" यकीनन इस विशाल हिंदू तीर्थयात्रा का सबसे शानदार और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण आयोजन है। यह लाखों भक्तों के लिए मुख्य आकर्षण है, लेकिन विशेष रूप से विभिन्न अखाड़ों के लिए। अखाड़े शाही स्नान करने वाले पहले अखाड़े हैं, और स्नान घाटों पर उनका जुलूस कुंभ मेले का सबसे शानदार और आध्यात्मिक रूप से भरा हिस्सा होता है।
विशिष्ट, ज्योतिषीय रूप से निर्धारित तिथियों पर किए जाने वाले औपचारिक और सबसे शुभ स्नान अनुष्ठान को संदर्भित करता है। माना जाता है कि ये तिथियाँ तब होती हैं जब ग्रहों की स्थिति सबसे शक्तिशाली होती है, और इस सटीक क्षण पर पवित्र जल में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल सकते हैं, मोक्ष पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति की प्राप्ति होती है, और अपार आध्यात्मिक पुण्य मिलता है।
अस्मिता- इस शाही स्नान के दिन शनिवार वैशाख शुक्ल तिथि पूर्णिमा सूर्योदय समय ग्रहों की स्थिति इस तरह थी सूर्य वृष में, चंद्रमा तुला में, मंगल वृश्चिक में, बुध मेष में, गुरु सिंह में, शुक्र वृष में, शनि वृश्चिक में, राहू सिंह में, केतु कुम्भ में थे। नक्षत्र: विशाखा (सायं 7.10 तक), योग: परिध (21-22 मध्य रात 1.00 बजे तक), चंद्रमा दोपहर 12.31 तक तुला राशि पर तथा उसके बाद वृश्चिक राशि पर प्रवेश करेगा, भद्रा रहेगी (दोपहर 1.44 तक)। दिशा शूल: पूर्व एवं ईशान दिशा के लिए, राहू काल: प्रात: 09.00 से 10.30 बजे तक।
प्रशासन तथा अखाड़ा परिषद के साथ बैठक में निश्चित किया गया की शैव्य तथा बैष्णव अखाड़ें एक साथ एक ही समय अलग-अलग स्थानों पर स्नान शुरू करेंगे।
अस्मिता- शाही स्नान की शुरुआत स्नान से नहीं होती, बल्कि एक शानदार जुलूस से होती है। यह देखने लायक नजारा होता है, जो अपने पैमाने और उत्साह में बेजोड़ होता है। सुबह-सुबह की तैयारी: शाही स्नान के दिन भोर से बहुत पहले ही अखाड़े अपनी तैयारियाँ शुरू कर देते हैं।
अस्मिता- वातावरण में उत्सुकता, मंत्रोच्चार और शंख तथा ढोल की ध्वनि गूंज रही होती है। प्रत्येक अखाड़ा अपने सदस्यों को इकट्ठा करता है, जो अपने संप्रदाय के आधार पर दिखने में भिन्न होते हैं। नागा साधु सबसे खास होते है। वे नग्न दिगंबर होते हैं, उनके शरीर पर पवित्र राख भस्म लगी होती है, जो भौतिक दुनिया से उनकी अलगाव को दर्शाती है।
वे जटाधारी बाल पहनते हैं और त्रिशूल, तलवार या भाले रखते हैं, जो आस्था के रक्षक के रूप में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को दर्शाता है। उनकी आँखों में अक्सर एक तीव्र, दूर की नज़र होती है। ऊर्ध्ववाहुर, साधु जो वर्षों तक अपनी भुजाएँ ऊपर उठाए रखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उनके अंग सूख जाते हैं। परिव्राजक, घुमक्कड़ लोग जिनका कोई निश्चित निवास नहीं होता। शीर्षासिन, जो लंबे समय तक खड़े रहते हैं।
अस्मिता- विभिन्न संप्रदायों के अन्य साधु भगवा वस्त्र या कम से कम पोशाक पहने, रुद्राक्ष की माला से सजे और अपने संबंधित प्रतीकों को लेकर चलते हैं। शाही जुलूस अपने आप में अद्वितीय भव्यता का एक उदाहरण है।
हाथी, घोड़े और रथ, कई अखाड़े राजसी और शक्ति के प्रतीक हाथियों से सुसज्जित अपने जुलूस का नेतृत्व करते हैं। घोड़े, ऊँट और विस्तृत रूप से सजाए गए रथ अक्सर प्राचीन रथों के रूप में प्रच्छन्न ट्रैक्टर-ट्रॉली वरिष्ठ महंतों और आचार्यों आध्यात्मिक नेताओं को ले जाते हैं।
अस्मिता- संगीत और मंत्र, ढोल, नगाड़ा, शंख और तुरही जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाने वाले बैंड जुलूस के साथ होते हैं। हवा "हर हर महादेव!" "जय महाकाल" "जय श्री राम!" और अन्य भक्ति नारे के जोरदार नारों से गूंजती है। झंडे और बैनर, प्रत्येक अखाड़ा अपने विशिष्ट झंडे और बैनर लेकर चलता है, जो उसके वंश और देवता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हथियार, साधु अपने पारंपरिक हथियारों त्रिशूल, तलवार, गदा को प्रमुखता से प्रदर्शित करते हैं। जो उनके ऐतिहासिक युद्ध कौशल की याद दिलाते हैं। शिष्य और भक्त: हजारों शिष्य और सामान्य भक्त अखाड़ों का अनुसरण करते हैं, साधुओं द्वारा अपना अनुष्ठान पूरा करने के बाद स्नान करने की
अपनी बारी का बेसब्री से इंतजार करते हैं। भीड़ की भागीदारी: मार्ग के साथ-साथ स्थानीय लोग सड़कों को रंगोली और फूलों की पंखुड़ियों से सजाते हैं। वे सड़कों पर कतार लगाते हैं, साधुओं पर फूल बरसाते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। यह एक अव्यवस्थित लेकिन अत्यधिक श्रद्धापूर्ण माहौल होता है।
अस्मिता- स्नान का क्रम, अखाड़ों की शीर्ष संस्था अखाड़ा परिषद प्रत्येक अखाड़े के लिए पवित्र डुबकी लगाने के लिए सख्त क्रम और समय स्लॉट पहले से निर्धारित करती है। नागा अखाड़े, विशेष रूप से जूना अखाड़ा सबसे बड़ा और सबसे पुराना, आमतौर पर शाही स्नान का नेतृत्व करते हैं। जो उनके सर्वोच्च आध्यात्मिक अधिकार और ऐतिहासिक मिसाल को दर्शाता है।
अन्य अखाड़े अपने निर्दिष्ट क्रम में चलते हैं। पुलिस और सुरक्षा बल भारी भीड़ को प्रबंधित करने और जुलूस और स्नान के सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास करते हैं। पवित्र डुबकी, शाही स्नान स्वयं निर्दिष्ट घाट स्नान क्षेत्र पर पहुँचने पर, सामूहिक विसर्जन, साधु, अपने महंतों और आध्यात्मिक नेताओं के नेतृत्व में, अक्सर खुशी और भक्ति के नारे लगाते हुए पवित्र जल में भागते हैं। यह आस्था का एक सहज और शक्तिशाली कार्य है। अनुष्ठान स्नान, वे कई बार डुबकी लगाते हैं, अक्सर खुद को पूरी तरह से डुबो देते हैं। यह क्रिया केवल शारीरिक सफाई नहीं बल्कि मुख्य रूप से आध्यात्मिक शुद्धि है।
मंत्रोच्चार और प्रार्थना, स्नान करते समय, साधु संगम या नदी की दिव्य ऊर्जा से जुड़ते हुए मंत्रों का जाप और प्रार्थना करते रहते हैं। प्रत्येक अखाड़े का स्नान समय अपेक्षाकृत छोटा होता है, ताकि सभी अखाड़ों और फिर आम जनता को अपनी बारी मिल सके। अखाड़े के लिए पूरी प्रक्रिया कुछ मिनटों से लेकर एक घंटे तक चल सकती है, जो उनके आकार और आवंटित समय पर निर्भर करता है।
शिविरों में वापसी, पवित्र स्नान के बाद, साधु फिर से इकट्ठा होते हैं और अपने-अपने शिविरों अखाड़ों में लौट आते हैं। अक्सर नए जोश और आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ, अपने मंत्रोच्चार और उत्सव जारी रखते हैं।
आध्यात्मिक चरमोत्कर्ष, अखाड़ों के लिए, शाही स्नान कुंभ मेले का पूर्ण आध्यात्मिक चरमोत्कर्ष है। यह वह क्षण होता है जब वे उस विशिष्ट ब्रह्मांडीय संरेखण में जल में मौजूद दिव्य ऊर्जा से सबसे अधिक तीव्रता से जुड़ते हैं।
शक्ति और एकता की अभिव्यक्ति, भव्य जुलूस और अनुशासित सामूहिक स्नान अखाड़ों की सामूहिक शक्ति, आध्यात्मिक अधिकार और एकता का एक शक्तिशाली प्रदर्शन है। यह हिंदू आध्यात्मिक परिदृश्य में उनकी उपस्थिति और प्रभाव की पुष्टि करने का उनका एक तरीका है।
अस्मिता- धर्म रक्षा, ऐतिहासिक रूप से, अखाड़े मठवासी सेनाएँ थीं। शाही स्नान, अपने सैन्य प्रदर्शन के साथ, हिंदू परंपराओं और मूल्यों के रक्षक के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाता है। जल को आशीर्वाद देना: ऐसा माना जाता है कि साधुओं द्वारा संचित गहन आध्यात्मिक ऊर्जा और तपस्या उनके शाही स्नान के दौरान जल में छोड़ी जाती है, जिससे लाखों आम भक्तों के लिए नदी और भी पवित्र हो जाती है।
पुण्य प्राप्त करना, साधुओं का मानना है कि इन शुभ दिनों पर स्नान करने से उन्हें अपार आध्यात्मिक पुण्य मिलता है और मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद मिलती है। सार्वजनिक तमाशा और विस्मय: आम जनता के लिए, अखाड़ों, विशेष रूप से नागा साधुओं के शाही स्नान जुलूस को देखना जीवन में एक बार होने वाला अनुभव है। यह विस्मय, श्रद्धा और प्राचीन आध्यात्मिक परंपराओं से गहरा जुड़ाव पैदा करता है। कई लोगों का मानना है कि इस शुभ अवसर पर साधुओं के दर्शन मात्र से ही बहुत पुण्य मिलता है।
अस्मिता- अखाड़ों द्वारा किया जाने वाला शाही स्नान केवल स्नान नहीं है; यह एक गहन आध्यात्मिक अनुष्ठान, एक ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन और एक अद्वितीय सांस्कृतिक तमाशा है जो कुंभ मेले के केंद्र में स्थित है।
शैव और वैष्णव अखाड़ों के लिए अलग-अलग घाटों पर स्नान की व्यवस्था की गई थी। पहली बार सुबह तीन बजे से उज्जैन में दत्त अखाड़ा घाट पर शैव्य तथा राम घाट पर वैष्णव अखाड़ों के साधुओं का शाही स्नान शुरू हुआ। आज के शाही स्नान के साथ ही कुंभ का समापन हो जाएगा।
अस्मिता और समीर रात भर जागते रहे तथा मेले में घूमते रहे। जब शैव्य अखाड़ों के नागा साधू पूर्ण शृंगार किये अपने शास्त्र लहराते, नाते गाते, खुशी से उछलते कूदते क्षिप्रा की ओर बड़ा रहे थे तो सामीर ने यकायक भीड़ में अनेक लोगों को पहचानना शुरू कर दिया। बहुत से लोग केवल इस स्नान के लिये ही अपनी साधना की गुफाओं से निकल कर आये थे। चारो ओर मुंड ही मुंड थे।
इन में अनेक अशरीर आत्माएं थी जो नागा साधु का वेश घर कर स्नान में भाग ले रही थी । नग्न साघुओं के शरीर सफ़ेद राख से पूरित थे। जटाये खुली हवा में लहरा रही थी। जय महाकाल का धोष चारों दिशाओं में गूंज रहा था।
डमरू, नगाड़े, संख्य, घड़ियाल बज रहे थे। वातावरण ऊर्जा से इतना उद्दीप्त था की हर कोई मंत्रमुग्ध हो सुध बुध खो बैठा था। नागा साघुओं के आगे उनके स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज की शाही सवारी थी। जो एक प्रसिद्ध भारतीय हिंदू आध्यात्मिक गुरु, लेखक और दार्शनिक हैं। वे जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर हैं, जो भारत के सबसे बड़े अखाड़ों में से एक है। उन्होंने लगभग दस लाख नागा साधुओं को दीक्षा दी है और वे हिंदू धर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष भी हैं।इनका आश्रम कनखल, ऋषिकेश में है।
अस्मिता- स्वामी अवधेशानंद गिरि का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के खुर्जा में एक खाण्डल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। ऐसा बताते हैं कि अपने बाल्य काल में स्वामी अवधेशानंद गिरि प्रायः अपने पिछले जन्म के बारे में बात करते थे। उन्होंने सत्तरह वर्ष की आयु में संन्यास के लिए घर छोड़ दिया। घर छोड़ने के बाद उनकी भेंट स्वामी अवधूत प्रकाश महाराज से हुई।
अस्मिता- स्वामी अवधूत प्रकाश महाराज योग के विशेषज्ञ और वेद शास्त्रों के बडे जानकार थे। स्वामी अवधेशानंद गिरि ने उनसे वेदांत दर्शन और योग की शिक्षा ली। गहन ध्यान और तप के बाद स्वामी अवधेशानंद जब हिमालय की कंदराओं से बाहर आए तो उनकी भेंट अपने गुरु, पूर्व शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि से हुई। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली और अवधेशानंद गिरि के नाम से जूना अखाड़ा में प्रवेश किया।
अस्मिता- हरिद्वार कुंभ में, जूना अखाड़े के सभी संतों ने मिलकर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी को आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में नियुक्त किया। वह श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के सदस्य हैं। वर्तमान में, स्वामी अवधेशानंद गिरि प्रतिष्ठित समनव्य सेवा ट्रस्ट, हरिद्वार के अध्यक्ष हैं, जिसकी भारत और विदेश में कई शाखाएँ हैं। इस ट्रस्ट में विश्व प्रसिद्ध, भारत माता मंदिर, हरिद्वार सम्मिलित हैं। वह वर्ल्ड काउंसिल ऑफ रिलीजियस लीडर्स के बोर्ड मेंबर हैं।
भारत में नदियों को माता का दर्जा दिया जाता है। हमारे शरीर में बहत्तर प्रतिशत पानी है। बारह प्रतिशत पृथ्वी, छह प्रतिशत वायु तथा चार प्रतिशत अग्नि है। शेष बचा छह प्रतिशत आकाश है। जीवन के लिए पानी एक महत्वपूर्ण तत्व है। हमारे शरीर तथा पृथ्वी पर बहत्तर प्रतिशत पानी है।
अस्मिता- सदियों के अनुभव के बाद यह ज्ञात हुआ कि पृथ्वी के कुछ स्थानों पर ऊर्जा अलग तरीके के काम कराती है। इसलिये उन स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। इसी कारण गरीब से गरीब व्यक्ति दो दिन कुंभ में भाग लेने के लिये एकत्र होते है। कुंभ के माध्यम से सनातन धर्म की दिव्यता तथा भव्यता देखने को मिलती है।
आस्था के कुंभ में आध्यत्म तथा डिजिटल तकनीक का अदभुत संगम है। जितना हमें बाहर दिखता है उससे अधिक वह घटता है जो आम लोगों के लिए अदृश्य होता है। लेकिन अमन इस अदृश्य को देखा पा रहा था। उसकी आंखों से लगातार अश्रुधारा बाह रही थी।
अस्मिता तथा समीर ने क्षिप्रा में ग्यारह डुपकियां लगा कर अमृत स्नान किया। सन्यासी से राख ले कर सिर पर लगाई। समीर का मन निर्मल हो रहा था। वह श्राप मुक्त हो गया था।
अस्मिता चुपचाप कभी नागाओं को देखती तो कभी अमन को देख रही थी। संन्यासी अपने देवता, निशान, ध्वज ले कर घोड़ों पर चल रहे थे। हर हर महादेव का स्वर हवा में गुंजायमान हो रहा है। सन्यासी अपने परंपरागत शास्त्र के कर दिगम्बर अवस्था में अपनी मां की गोद में उसी अवस्था में है जिस अवस्था में बच्चे का जन्म होता है।
इसी कारण सन्यासी भाग कर मां की गोद में दौड़ कर समां रहे है। जैसे छोटा बच्चा हर कीमत पर भाग कर अपनी माँ की गोद में जाना चाहता है। सन्यासी जब अपनी भीगीं जटा पीछे फटकारते है तो उछलते पानी की बूंदो में सतरंगी इन्द्रधनुष प्रत्यक्ष हो जाता है।
हाथी, घोड़ें, रथ पर जलूस चल रहा था। नदी का पानी ऐसे उछल रहा है मानों माँ क्षिप्रा अपने दोनों हाथ फैला कर अपनी संतानों को अपने अंक में समेट रही थी।आस्था की डुबकी लगाने देवता भी नर का रूप धार कर स्नान कर रहे है।
शृद्धालु जनों को आशीर्वाद दे रहे है। समीर इन की भीड़ में चला गया। वह सभी को प्रणाम कर माफ़ी मांग रहा था। चरण स्पर्श कर रहा था। आशीर्वाद ले रहा था।
समीर पर एक उन्माद छा गया था। अस्मिता को उस के साथ चलने पर बहुत कठिनाई हो रही थी। यकायक समीर बेहोश हो कर दत्त अखाड़े के घाट की सीढ़ियों पर गिर गया।
बड़ी मुश्किल से अस्मिता पुलिस को मदद से समीर को अस्थाई अस्पताल में ले गई। समीर को एक पलंग पर लिटा दिया गया। डॉक्टर ने आ कर समीर का ब्लड प्रेशर चेक किया। और उसे गुलोकोश की ड्रिप लगाई गई। उसकी नब्ज ठीक चल रही थी। वह बेहोशी में कुछ बड़बड़ा रहा था।
अस्मिता- शाम को ठीक होने पर क्षिप्रा पर बने अस्थाई पुल से चल कर राम घाट पर आ गये थे। समीर ने बहुत से विदेशी लोगों के भी चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। उन्होंने ने हरे कृष्णा कह कर अभिवादन किया। वे नाच रहे थे भजन गा रहे थे। मृदंग बजा रहे थे। अब समीर तथा अस्मिता समझ रहे थे कि दोष मुक्त हो कर जीवन को कैसे निर्मल बनाया जा सकता है। समीर ने इस कुंभ में अपने आप को पा लिया था।
ग़रीब नवाज़
अमन तथा अस्मिता कुंभ मेले से दिल्ली लौट गये। कुछ महा के अन्दर दोनों ने शादी कर ली। अमन तथा अस्मिता ने अपनी आई टी कम्पनी का स्टार्टअप शुरू किया। कुछ दिन दोनों इस कम्पनी के शुरूआती दौर की परेशानियों से जूझते रहे। इस बिच दोनों का एक बच्चा हुआ। इस का नाम उन्होंने रूद्र रखा। कम्पनी के काम से दोनों को अक्सर मुम्बई जाना पड़ता था।
अस्मिता की बहुत इच्छा थी कि एकबार पुनः उन्हें उस डॉक्टर से मिलाना चाहिये। अस्मिता ने डॉक्टर से अप्पोइन्मेंट लिया और वह दोनों अपने बच्चे के साथ डॉक्टर से मिले। उनके बच्चे से मिल कर डॉक्टर बहुत खुश हुई।
अस्मिता ने डॉक्टर से समीर की एक बार पुनः पास्ट लाइफ रिग्रेशन सेशन करने का अनुरोध किया। डॉक्टर ने अगले दिन सुबह नौ बजे का समय दिया। अगले दिन दोनों समय से डॉक्टर के पास पहुंच गये। डॉक्टर ने थैरेपी की तैयारी शुरू की। साथ ही साथ वह समीर से उसके उज्जैन के अनुभव भी पूछ रहीं थी।
समीर ने बहुत विस्तार से उन्हें अपनी पूरी यात्रा की जानकारी दी। डॉक्टर ने समीर को काउच पर लिटाया।
"तुम्हारा माथा भारी होता जा रहा है और चेतना मन की गहराई में घुसती चली जा रही है। तुम्हारा शूक्ष्म शरीर इस शरीर से डिटैच होता जा रहा है। तुम्हारा शूक्ष्म शरीर तुम्हारी चेतना के साथ दूर जा रहा है। जैसे पृथ्वी दिखाई दे रही है।
तुम्हारा चेतना खिची चली जा रही है। उस जगह के पास उस गॉव, शहर, कस्बा, जिला, फर्श, गली में जहा एक शरीर पड़ा हुआ है।
धरती पर कहीं किसी कोने में। जैसे तुम्हारी चेतना उस शरीर के अन्दर प्रवेश कर रही है। बैसे वह शरीर जीवित होता जा रहा है।"
पांच, चार, तीन, दो डॉक्टर ने गिनती गिनना शुरू की।
फिर जोर से कहा "वो शरीर जीवित हो चुका है व उस शरीर की सभी चीजें जीवित हो चुकी है। आस पास की सभी चीजें जीवित हो चुकी है। और ‘एक’
"देखों तुम अभी कहां हो। तुम कौन हो।" डॉक्टर ने पूछा।
समीर की आँखें बंद थी। शरीर निःस्पन्द पड़ा था। समीर के चेहरे के भाव बदलने लगे।
उसने कहा " मैं इल्तुमिश हूँ। दिल्ली का सुल्तान। यह दरगाह है। मैं रजिया के साथ चादर चढ़ाने आया हूँ।"
"किस की दरगाह है?" देखों। डॉक्टर ने आदेशात्मक स्वर में पूछा।
"पता नहीं" समीर बोला।
"देखों आस पास, ऊपर-नीचे कहीं लिखा होगा।" डॉक्टर ने कहा।
"हां ! उर्दू में दीवाल पर लिखा है।" समीर ने कहा।
"क्या लिखा है? बताओं।" डॉक्टर ने पूछा।
"ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती" समीर बोला।
डॉक्टर ने अगला सवाल पूछने के पहले अपने आई पेड इस जगह के बारे में जानने के लिये गूगल किया।
प्रसिद्ध रहस्यदर्शी संत ख़्वाजा उस्मान हारूनी के शिष्य ख़्वाजा पहले लाहौर, फिर दिल्ली और इसके बाद अजमेर पहुँचे।
ख़्वाजा का अजमेर में आगमन तराइन के युद्ध के बाद ऐसे समय हुआ, जब भारत में मुस्लिम शासन की शुरुआत हो रही थी। यह क़ुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश, आरामशाह, रुक़्नुद्दीन फ़िरोज़ और रज़िया सुल्तान का समय था।
ख़्वाजा बहुत कारामाती संन्यासी थे और रहस्यदर्शी थे। बताते हैं कि उनके यश को सुनकर उनसे मिलने एक बार रज़िया सुल्तान के साथ इल्तुमिश ख़ुद आए थे।
ख़्वाजा का अख़लाक़ ऐसा था कि अगर कोई करम कर नहीं सकता तो वह सितम तोड़ के देख ले। वह कहते थे कि इंसान किसी के भी ज़ुल्म का शांत रहकर बहुत ही सौंदर्यपूर्ण प्रतिकार कर सकता है। यही वह संदेश था, जिसकी प्यास उस समय हिंदुस्तान की रिआया के भीतर मचल रही थी।
ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने राजाओं और किसानों को अपने प्रवचनों से आकर्षित किया। अजमेर का नाम सुनते ही ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ और उनकी दरगाह की छवि मन में आती है। यह संत समुद्र की तरह उदार और धरती की तरह मेहमाननवाज़ थे।
कुरान की शिक्षाओं में एकेश्वरवाद, नैतिक मूल्य, सामाजिक न्याय और पारिवारिक मार्गदर्शन के सिद्धांत शामिल हैं। यह कुरान में हिंसा और प्रेम के बारे में गलतफहमियों को भी संबोधित करती है, शांति, करुणा और सभी के लिए सम्मान की इसकी शिक्षाओं पर जोर देती है।
कुरान शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, प्रेम और करुणा, गैर-विश्वासियों की समझ, हिंसा से बचने और अन्य धर्मों का सम्मान करने को प्रोत्साहित करती है। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, यह मुसलमानों को विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव और समझ को बढ़ावा देते हुए धार्मिक और पूर्ण जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन करती है।
कुरान को एक दिव्य रहस्योद्घाटन के रूप में सम्मानित किया जाता है, जो व्यक्तियों को धार्मिक जीवन जीने की दिशा में मार्गदर्शन करती है। समझ की इस यात्रा में हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इसके पवित्र पन्नों के भीतर ज्ञान को उजागर करते हैं।
कुरान क्या सिखाती है?
कुरान एकेश्वरवाद के सिद्धांतों की शिक्षा देती है, जिसमें आस्था, पूजा और अल्लाह के प्रति समर्पण पर जोर दिया जाता है। यह ईमानदारी, दया, धैर्य और क्षमा जैसे नैतिक मूल्यों को सिखाती है। यह सामाजिक न्याय, दान और हाशिए पर पड़े लोगों सहित दूसरों की देखभाल करने के बारे में बताती है। कुरान पारिवारिक जीवन, व्यक्तिगत आचरण और आध्यात्मिक विकास के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करती है, ज्ञान-प्राप्ति और आत्म-चिंतन को प्रोत्साहित करती है।
अंततः, यह मुसलमानों के लिए धार्मिक और पूर्ण जीवन जीने के लिए एक व्यापक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है। कुरान की शीर्ष शिक्षाएँ कुरान में कई शिक्षाएँ हैं जो मुसलमानों को उनके व्यक्तिगत और आध्यात्मिक जीवन में मार्गदर्शन करती हैं।
अल्लाह की एकता तौहीद कुरान तौहीद की अवधारणा पर महत्वपूर्ण महत्व देती है, जो अल्लाह की एकता में विश्वास को दर्शाता है।
यह मूर्ति पूजा की अस्वीकृति पर जोर देती है और इस्लाम में एकेश्वरवाद के महत्व को उजागर करती है। यह सिद्धांत इस्लामी आस्था की नींव बनाता है, जो विश्वासियों को केवल अल्लाह की पूजा करने और उसकी इच्छा के अनुसार जीने की याद दिलाता है।
पूजा और भक्ति, मुसलमानों को अल्लाह की पूजा और भक्ति के विभिन्न रूपों में संलग्न होने के लिए कुरान द्वारा निर्देशित किया जाता है। इसमें नियमित रूप से प्रार्थना करना, रमज़ान के दौरान उपवास रखना, ज़रूरतमंदों को दान देना और मक्का की तीर्थयात्रा करना शामिल है, जिसे हज के रूप में जाना जाता है।
ये अभ्यास अल्लाह के साथ व्यक्ति के संबंध को गहरा करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन को बढ़ावा देते हैं।
करुणा और दया, कुरान सभी प्राणियों के प्रति करुणा, दया और परोपकार को बढ़ावा देती है। कुरान दूसरों के साथ सहानुभूति, समझ और देखभाल के साथ व्यवहार करने पर ज़ोर देती है, चाहे उनकी पृष्ठभूमि या परिस्थितियाँ कुछ भी हों।
न्याय और निष्पक्षता: कुरान मुसलमानों के जीवन में न्याय और निष्पक्षता के महत्व पर ज़ोर देती है। यह व्यक्तियों से अपने व्यवहार में इन सिद्धांतों को बनाए रखने और दूसरों के साथ समानता, निष्पक्षता और धार्मिकता के साथ व्यवहार करने का आग्रह करती है।
धैर्य और दृढ़ता, कुरान सिखाती है कि कठिनाई और विपत्ति के समय धैर्य और दृढ़ता अल्लाह द्वारा अत्यधिक सम्मानित गुण हैं। यह चुनौतियों का सामना करने में दृढ़ और लचीला बने रहने के महत्व पर प्रकाश डालती है।
क्षमा और दया, कुरान मुसलमानों को दूसरों को माफ करने के लिए प्रोत्साहित करती है जिन्होंने उनके साथ गलत किया है और अपनी गलतियों के लिए सक्रिय रूप से क्षमा मांगते हैं। कुरान इस बात पर जोर देती है कि दया और क्षमा अल्लाह के स्वभाव में अंतर्निहित गुण हैं और विश्वासियों को उनका अनुकरण करना चाहिए।
विनम्रता और शालीनता, कुरान विनम्रता और शालीनता के मूल्यों पर जोर देती है, अनुयायियों से विनम्र व्यवहार के महत्व को पहचानकर और विनम्र दृष्टिकोण बनाए रखते हुए अहंकार और घमंड से दूर रहने का आग्रह करती है।
ईमानदारी और सच्चाई, कुरान मुसलमानों को अपने शब्दों, कार्यों और दूसरों के साथ व्यवहार में इन गुणों को अपनाने की सलाह देती है। यह जीवन के सभी पहलुओं में ईमानदार, पारदर्शी और भरोसेमंद होने के महत्व पर जोर देती है।
ज्ञान और शिक्षा, कुरान मुसलमानों के लिए ज्ञान प्राप्त करने, शिक्षा प्राप्त करने और निरंतर सीखने में संलग्न होने के लिए प्रेरणा का एक निरंतर स्रोत है।
कुरान विश्वासियों को दुनिया का पता लगाने, अल्लाह की रचना के संकेतों पर विचार करने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करती है जो व्यक्तिगत विकास, समझ और समाज की बेहतरी में योगदान देता है।
सार्वभौमिक भाईचारा, कुरान सार्वभौमिक भाईचारे के महत्व पर जोर देती है और एक समावेशी और समतावादी समाज को बढ़ावा देती है।
कुरान सिखाती है कि सभी व्यक्ति एक बड़े वैश्विक समुदाय के समान और परस्पर जुड़े हुए सदस्य हैं, चाहे उनकी जाति, राष्ट्रीयता या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
डॉक्टर ने पूछा- "तुमने ख़्वाजा से क्या पूछा।"
मैने पूछा- “क्या कुरान शांति सिखाती है?”
"उन्होंने क्या जबाव दिया ?" डॉक्टर ने सवाल किया।
ख़्वाजा ने शांति से जबाव दिया- “हाँ, कुरान शांति सिखाती है। यह न्याय, करुणा, क्षमा और समाज के भीतर सद्भाव को बढ़ावा देने जैसे सिद्धांतों पर जोर देती है। यह विश्वासियों को संघर्षों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के लिए प्रोत्साहित करती है और विभिन्न धर्मों के लोगों के प्रति सहिष्णुता को बढ़ावा देती है।
"फिर क्या पूछा" डॉक्टर का अगला सवाल था।
मैने पूछा- "क्या कुरान प्रेम करना सिखाती है ?"
ख़्वाजा ने जबाव दिया- “हां, कुरान इस्लाम में प्रेम को एक केंद्रीय मूल्य के रूप में सिखाती है। यह दूसरों के प्रति दया, करुणा और सहानुभूति दिखाने के महत्व पर जोर देती है, चाहे उनकी मान्यताएँ या पृष्ठभूमि कुछ भी हों।
कुरान मुसलमानों को पूजा-पाठ और भक्ति के माध्यम से और अपने परिवार, दोस्तों और समुदायों के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखने के माध्यम से प्रेम विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करती है।”
अल्लाह कहता है, "और उसकी निशानियों में से यह भी है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारे ही बीच से जोड़े बनाए, ताकि तुम उनके साथ शांति से रह सको और उसने तुम्हारे दिलों के बीच प्रेम और दया डाल दी है।"
“क्या कुरान हिंसा सिखाती है?” मैने पूछा
ख़्वाजा- “नहीं, कुरान हिंसा नहीं सिखाती है। कुरान का समग्र संदेश शांति, न्याय, करुणा और मानव जीवन की पवित्रता पर जोर देता है। यह विश्वासियों को सद्भाव की तलाश करने, संघर्षों को शांतिपूर्वक हल करने और सभी लोगों के प्रति न्याय और दया को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करती है।”
अल्लाह कहते हैं, "अच्छाई और बुराई बराबर नहीं हो सकती। पैगंबर, बुराई को बेहतर तरीके से दूर करें और आपका दुश्मन एक पुराने और मूल्यवान दोस्त की तरह करीब हो जाएगा, लेकिन केवल वे लोग जो धैर्य में दृढ़ हैं, केवल वे ही जो महान धार्मिकता से धन्य हैं, वे ऐसी अच्छाई प्राप्त करेंगे।"
जबकि कुरान की आयतें युद्ध और आत्मरक्षा का उल्लेख करती हैं, वे प्रासंगिक हैं और विशिष्ट ऐतिहासिक घटनाओं तक सीमित हैं। कुरान की समग्र रूप से व्याख्या करना महत्वपूर्ण है, इसके छंदों को उनके ऐतिहासिक और भाषाई संदर्भ में, साथ ही साथ इस्लाम की व्यापक शिक्षाओं के प्रकाश में भी समझना चाहिए।
“क्या कुरान काफिरों को मारना सिखाती है?”
ख़्वाजा- “नहीं, कुरान काफिरों को मारना नहीं सिखाती है। कुरान मुसलमानों को संवाद और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में शामिल होने और सभी व्यक्तियों के साथ सम्मान और निष्पक्षता से पेश आने के लिए प्रोत्साहित करती है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इस्लाम धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है और धर्म के मामलों में किसी भी तरह की बाध्यता के सिद्धांत को कायम रखता है।”
अल्लाह कहता है, “अपने रब के मार्ग पर बुद्धि और अच्छी शिक्षा के साथ बुलाओ और उनके साथ सबसे अच्छे तरीके से बहस करो। वास्तव में, तुम्हारा रब सबसे ज़्यादा जानता है कि कौन उसके मार्ग से भटक गया है और वह सबसे ज़्यादा जानता है कि कौन [सही] मार्ग पर है।”
“कुरान हत्या के बारे में क्या सिखाती है?”
ख़्वाजा- “कुरान अन्यायपूर्ण तरीके से जान लेने पर सख्त प्रतिबंध लगाती है और मानव जीवन की पवित्रता को बहुत महत्व देती है। यह सिखाती है कि जब तक आत्मरक्षा में या दंड के उद्देश्य से इस्लामी कानून की सीमाओं के भीतर हत्या न की जाए, तब तक हत्या करना एक गंभीर अपराध है।”
कुरान कहती है, "जो कोई किसी व्यक्ति को मारता है, जब तक कि वह हत्या के लिए या देश में भ्रष्टाचार फैलाने के लिए न हो, तो ऐसा लगता है जैसे उसने सभी मानव जाति को मार डाला है। और जो कोई किसी की जान बचाता है, ऐसा लगता है जैसे उसने सभी मानव जाति को बचा लिया है।”
कुरान शांति, दया और करुणा के सिद्धांतों को बढ़ावा देती है, मुसलमानों से संघर्षों में शांतिपूर्ण समाधान की तलाश करने और न्याय को बनाए रखने का आग्रह करता है। यह सभी जीवन के मूल्य पर जोर देता है और हत्या, आक्रामकता और आतंकवाद जैसे कार्यों की कड़ी निंदा करता है।
“कुरान आध्यात्मिक स्तर पर पुरुषों और महिलाओं के बारे में क्या सिखाती है?”
ख़्वाजा- “कुरान सिखाती है कि पुरुष और महिलाएँ अपने आध्यात्मिक मूल्य में समान हैं और उनके पास अल्लाह के मार्गदर्शन, दया और मोक्ष की तलाश करने के समान अवसर हैं। दोनों लिंगों को अल्लाह के साथ संबंध विकसित करने, पूजा-पाठ करने, ज्ञान प्राप्त करने और धार्मिकता के लिए प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।”
सूरह अल-हुजुरात में कहा गया है, "हे मानव जाति, हमने तुम्हें नर और मादा से बनाया है और तुम्हारे जातियाँ और कबीले बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचान सको। वास्तव में, अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे श्रेष्ठ वही है जो तुममें सबसे अधिक धर्मी है।"
कुरान लिंग भेद पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय व्यक्तिगत धर्मनिष्ठता, चरित्र और अल्लाह के प्रति समर्पण के महत्व पर जोर देती है। यह पुरुषों और महिलाओं के बीच आपसी सम्मान, करुणा और न्याय को बढ़ावा देती है और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव या अन्याय को हतोत्साहित करती है।
“कुरान अन्य धर्मों के बारे में क्या सिखाती है?”
ख़्वाजा- “कुरान सिखाता है कि एक अल्लाह है और उसने पूरे इतिहास में मानवता का मार्गदर्शन करने के लिए दूत भेजे, जिनमें नूह, अब्राहम, मूसा और यीशु जैसे व्यक्ति शामिल हैं। यह अन्य धर्मों और उनके अनुयायियों के अस्तित्व को स्वीकार करता है लेकिन इस बात पर जोर देता है कि इस्लाम अंतिम और सबसे पूर्ण रहस्योद्घाटन है।”
अल्लाह ने कहा, "धर्म को स्वीकार करने में कोई जबरदस्ती नहीं होगी। कुरान मुसलमानों को अन्य धर्मों के लोगों के साथ सम्मानजनक संवाद करने और उनके साथ दयालुता और निष्पक्षता से पेश आने के लिए प्रोत्साहित करता है। हालाँकि, यह इस विश्वास को भी बढ़ावा देता है कि इस्लाम सच्चा धर्म है और मुसलमानों से दूसरों को इसे अपनाने के लिए आमंत्रित करने का आह्वान करता है।
यह धार्मिक मार्गों की विविधता को स्वीकार करते हुए और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करते हुए एक सहिष्णु दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
हमेशा से धर्म तथा राजनीत को एक साथ जोड़ दिया गया। राजनैतिक फायदे के लिये धर्म की आड़ ली गई। हर राजनैतिक युद्ध धर्म के नाम पर लड़ा गया। निर्दोष लोगों को धर्म को बचने के नाम पर कुर्बान किया जा रहा है। उन्हें जन्नत तथा जन्नत में बहत्तर हूरे मिलने का वादा किया जाता है। धर्म फ़ैलाने गैर मुसलमानों को इस्लाम अपनाओं या मारे जाओं का विकल्प दिया जा रहा है।
जब उलेमाओं का एक समूह मेरे पास आया और मुझसे हिंदुओं पर "मृत्यु या इस्लाम" तथा "गजवा-ए-हिंद" का कानून लागू करने का अनुरोध किया, तो इल्तुतमिश ने निज़ाम-उल-मुल्क जुनैदी से उलेमा को उचित उत्तर देने के लिए कहा।
वजीर ने उन्हें उत्तर दिया:
"लेकिन इस समय भारत पर हाल ही में विजय प्राप्त हुई है और मुसलमान इतने कम हैं कि वे एक बड़े बर्तन में नमक की तरह हैं। यदि उपरोक्त आदेश हिंदुओं पर लागू किए जाते हैं, तो संभव है कि
वे एकजुट हो जाएं और एक सामान्य भ्रम पैदा हो जाए और मुसलमानों की संख्या इतनी कम हो जाए कि इस सामान्य भ्रम को दबाना संभव न हो। हालाँकि, कुछ वर्षों के बाद जब राजधानी और क्षेत्रों और छोटे शहरों में मुसलमान अच्छी तरह से स्थापित हो जाएँगे और सेना बड़ी हो जाएगी, तो हिंदुओं को "मृत्यु या इस्लाम" का विकल्प देना संभव होगा।"
इल्तुतमिश ने अपने दरबार में सैय्यद नूरुद्दीन मुबारक गजनवी जैसे रूढ़िवादी उलेमाओं से धार्मिक प्रवचन करवाए, लेकिन शाही नीतियों को तैयार करते समय उनकी सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया।
वह उन सीमाओं को समझता था, जिस तक इस्लामी शरिया कानून को बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिम भारत में लागू किया जा सकता था। अपनी बेटी रजिया को अपना उत्तराधिकारी नामित करने का अपरंपरागत निर्णय लेते समय उसने उलेमा से परामर्श नहीं किया था।
शरिया और उस समय की व्यावहारिक ज़रूरतों के बीच यह संतुलन दिल्ली में तुर्क शासन की एक विशेषता बन गया थी।
अस्मिता- धीरे-धीरे डॉक्टर समीर को ट्रेंच से बाहर ले कर आ गई। इतना कह कर समीर निढाल हो कर जग गया। समीर की आखों से अश्रु धारा लगातार बहुत देर तक बहती रही।
अस्मिता- समीर तथा डॉक्टर बातें कर रहे थे कि आज धर्म के नाम पर कितनी हिंसा हो रही है। पूरी दुनियां में जन साधारण मारे जा रहे है। शहर नष्ट किये जा रहे है। लोग भूख से मर रहे है। औरतें और बच्चे शिकार बनाये जा रहे है।
जबकि धर्म में ऐसा नहीं है। कोई किताब नहीं पढ़ता। सब व्हाटएप यूनिवर्सिटी से शिक्षा ले रहे है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जो लोगों को जोड़ने के लिए बनाये गए है वह नफ़रत और झूठ फ़ैलाने के माध्यम बन गए है। शैतानी ताकतों ने समाज के महत्वपूर्ण संस्थानों पर कब्ज़ा कर लिया है।
अस्मिता- वह लोग दिल्ली वापिस आ गये। समीर तथा अस्मिता नफरत रोकने के लिये काम करने वाले संगठन से जुड़ कर काम कर रहे है। अब वह मोटीवेशनल स्पीकर है और जहां तक सम्भव हो वह अपनी बात पहुंचना चाहता है। समीर ने परलोक की यात्रा की थी जहां संभवता यम ने ही उसे मृत्यु का रहस्य उदघाटित किया था। जिससे समीर का जीवन दृष्टिकोण बदल गया था।
अस्मिता ने कहा तो अब आप समझे कि प्रकृति में कोई भी गति सीधी नहीं होती है। सब वर्तुलाकार गतियां है। जो जहां से शुरू होता है उसका अंत भी वही होना निश्चित है। तो फर्क यह है कभी वर्तुल छोटा होता है और एक जीवन में समाप्त हो जाता है और कभी-कभी कई जन्म लग जाते है इसे पूरा होने में।
अस्मिता- तो आप समझे कि यह कहानी किस की थी? मेरी, समीर या इल्तुतमिश की ? और मोरल ऑफ़ द स्टोरी क्या है ? आप को पता लग जाय तो मुझे भी बताना।
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