ययाति सिंड्रोम

ययाति सिंड्रोम


डॉ.रवीन्द्र पस्तोर

प्रस्तावना 

दोस्तों ! सनातन धर्म में कहानियों के माध्यम से ज्ञान देने के लिये हर तरह की कहानियां उपलब्ध है। जरुरत है उन्हें आधुनिक सामाजिक समस्यों के निदान के लिए उपयोग करने के लिये उनकी व्याख्या आधुनिक तरीके से किये जाने की। यह मनोवैज्ञानिक समस्याऐं है जो मानव के जन्म से ही चली आ रही है। इन समस्यों का हल भी मनोवैज्ञानिक ही होगा। मतलब सही समझ विकसित कर इनका निदान करना। 

क्या आप को पता है कि पिता पुत्र का झगड़ा आदि काल से चला आ रहा है। भारतीय पुराणों तथा भागवत कथा में एक कहानी है सनत कुमारों की। जब ब्रम्हा जी ने सृष्टि का निर्माण करने का निश्चय किया तो इन्होंने अपने काम में सहायता के लिए चार मानस पुत्रों को जन्म दिया। उनके नाम थे सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार। जब इनके पिता ब्रम्हा ने इन्हें सृष्टि निर्माण में सहयोग करने का आदेश दिया, तो इन चारों ने मना कर दिया और चिर कुमार रह कर ज्ञान के विस्तार का काम चुना। 

मानव इतिहास में यह पहले पुत्र थे जिन्होंने अपने पिता का आदेश ना मान कर पिता के प्रीति विद्रोह किया। 

हर माता पिता अपनी अतृप्त कामनाओं की पूर्ति जाने अनजाने में अपनी सन्तान के माध्यम से करना चाहता है और यही से माता पिता और सन्तान के बीच संधर्ष की शुरुआत होती है। हम आज हर किसी के मुँह से सुनते है कि यह कलयुग है इसलिये सन्तान बात नहीं मानती है। आधुनिक मनोविज्ञान में इसे जनरेशन गेप कहते है। फ्रायड ने इसे सेक्सुअल राइवलरी के रूप में देखा क्योंकि पिता तथा पुत्र एक ही स्त्री का अटेंशन पाने की लिये प्रतियोगिता करते है। 

आज लाखों बच्चे अपने स्वाभाविक जीवन इसलिये नहीं जी पाते है क्योंकि उन्हें लगातार अपराधबोध रहता है कि वे अपने माँ बाप के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं कर पा रहे है। पढ़ाई के दौरान में माँ बाप की आकांक्षा अनुरूप परीक्षा में मार्क्स नहीं ला पाते। उस विषय में एडमिशन नहीं ले पाते जो माँ बाप चाहते है। उस लड़का या लड़की से शादी नहीं कर पाते जिससे वो चाहते है। उनकी अपेक्षा अनुरूप कैरियर नहीं चुन पाते, बच्चे पैदा नहीं कर पाते या उस जेण्डर का बच्चा पैदा नहीं कर पाते जो वह चाहते है। अंत में उनके अनुरूप बुढ़ापे में उनकी देखभाल नहीं कर पाते। यह सूची अनन्त है। 

तो जो बच्चे बहुत संवेदनशील होते है वे इन अपराधबोधों का जब भार नहीं ढ़ो पाते है तो आत्महत्या कर लेते है। आज अखबरों में जब इस तरह की खबरें आती है तो बच्च्चों के सूइसाइड नोट भी छपते है जिन में लिखा होता है कि "मुझे माफ़ करना मैं आपकी अपेक्षानुसार नहीं बन सका" 

परिवारों में कलह का कारण हमेशा आर्थिक तंगी नहीं होती बल्कि उल्टा होता है। जिन परिवारों में गरीबी होती है वहां आपसी झगड़े काम होते है क्योंकि सब लोग रोज आजीविका कमाने में लगे रहते है। जिन घरों में आर्थिक समृद्धि जीतनी ज्यादा होती है उन परिवारों में विवाद भी बहुत पेंचीदे होते है क्योंकि रोजी रोटी की समस्या नहीं है। समय पर्याप्त है, पुलिस, कोर्ट, कचहरी तथा वकील को देने के लिये फ़ीस के पैसे पर्याप्त है। 

समृद्धि किस तरह बर्बादी लाती है इस के उदाहरण समृद्ध परिवारों राज घरानों, औद्योगिक घरानों तथा पार्टनर्स के बीच के कोर्ट केशों में देखने को मिलते है। 

नहुष के अहंकार ने उसे कैसे नष्ट किया? और ययाति ने अपने बच्चे का बचपन अपनी इक्छाओं की पूर्ति की लिये कैसे छीन लिया? तथा आधुनिक औद्योगिक घराना कैसे विवादों में उलझ गया है? प्रस्तुत कहानी में इन्ही सवालों को ढूढ़ने की कोशिश है। अपनी रिसर्च तथा इन्टरनेट पर उपलब्ध जानकारी, अखबारों में छपी सामग्री को आधार बना कर इस कहानी का ताना बाना बुना गया है। आशा है पाठकों को इन धटनाओं को समझने की लिये एक नया परिपेक्ष मिले, यही प्रयास है। 

 डॉ.रवीन्द्र पस्तोर


स्वर्ग का राजा

आज कानपुर का इतिहास फिर दुहराया जा रहा है। हालांकि मेरे परिवार को कानपुर छोड़े कई वर्ष हो गये, लेकिन गंगा किनारे 'राजा के टीले' का श्राप आज भी मेरा पीछा कर रहा है। राजा ययाति का किला तब चर्चा में आया था जब पुराना गंगा पुल बनाने के लिए खोदाई की गई। हजारों साल पुराने अवशेष मिलने पर पुरातत्व विभाग ने टीले को संरक्षित कर दिया था।

मुझे मेरे दादा जी ने यह कहानी सुनाई थी कि भगवान् विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्र देव, चन्द्र देव और देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा के बीच हुये सहवास से बुध और बुध देव से वरदान में मिला इलानन्दन पुरूरवा। जबकि वास्तव मे इला वैवस्वत मनु के पुत्र थे जिनका नाम सुद्युम्न था जो इलावृत वर्ष के एक वन में गये थे सेना सहित वहा जाने पर वह स्त्री में परिवर्तित हो गए इला  हिंदू किंवदंतियों में एक देवता है, जो अपने लिंग परिवर्तन के लिए जाना जाता है। एक पुरुष के रूप में, उन्हें  सुद्युम्न के रूप में जाना जाता है और एक महिला के रूप में, उन्हें इला कहा जाता है। इला को भारतीय राजाओं के चंद्र वंश का मुख्य पूर्वज माना जाता है।  इला को आमतौर पर वैवस्वत मनु की बेटी या बेटे के रूप में वर्णित किया जाता है और इस प्रकार वह सौर वंश के संस्थापक इक्ष्वाकु की बहन है। जिन संस्करणों में इला का जन्म महिला के रूप में हुआ है, उनमें वह जन्म के तुरंत बाद दैवीय कृपा से पुरुष रूप में बदल जाती है। वयस्क होने पर गलती से एक पवित्र उपवन में प्रवेश करने के बाद, इला को या तो हर महीने अपना लिंग बदलने का श्राप मिलता है या फिर उसे महिला बनने का श्राप मिलता है। एक महिला के रूप में, इला ने बुध ग्रह के देवता और चंद्र देवता चंद्र सोम के पुत्र बुद्ध से विवाह किया और उनसे चंद्र वंश के पिता पुरुरवा नामक पुत्र को जन्म दिया। पुरुरवा के जन्म के बाद, इला फिर से एक पुरुष में बदल गई और तीन बेटों की माँ बनी। पुरुरवा का जन्म त्रेता युग में बुध और इला के पुत्र के रूप में हुआ था। बुध चंद्र देवता के पुत्र थे और इस प्रकार पुरुरवा चंद्रवंश के पहले राजा थे। चूँकि उनका जन्म पुरु पर्वत पर हुआ था, इसलिए उन्हें पुरुरवा कहा जाता था।

एक बार, पुरुरवा और उर्वशी नामक एक अप्सरा एक दूसरे से प्यार करने लगे। पुरुरवा ने उसे अपनी पत्नी बनने के लिए कहा, लेकिन वह तीन या दो शर्तों पर सहमत हुई। सबसे ज़्यादा दोहराई जाने वाली शर्तें ये हैं कि पुरुरवा उर्वशी की पालतू भेड़ों की रक्षा करेंगे और वे कभी एक दूसरे को नग्न नहीं देखेंगे प्रेम करने के अलावा।

पुरुरवा ने शर्तों पर सहमति जताई और वे खुशी-खुशी रहने लगे। इंद्र को उर्वशी की याद आने लगी और उसने ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कीं जहाँ शर्तें टूट गईं। सबसे पहले उसने भेड़ों का अपहरण करने के लिए कुछ गंधर्वों को भेजा, जब युगल प्रेम कर रहे थे। जब उर्वशी ने अपने पालतू जानवरों की चीखें सुनीं, तो उसने पुरुरवा को अपना वादा न निभाने के लिए डांटा। उसके कठोर शब्दों को सुनकर, पुरुरवा भूल गया कि वह नग्न था और भेड़ों के पीछे भाग गया। तभी, इंद्र ने बिजली चमकाई और उर्वशी ने अपने पति को नग्न देखा। घटनाओं के बाद, उर्वशी स्वर्ग लौट गई और पुरुरवा को दिल टूटा हुआ छोड़ गई। उर्वशी धरती पर उतरी और पुरुरवा को कई बच्चे पैदा किए, लेकिन वे पूरी तरह से फिर से नहीं मिले। आयु, श्रुतायु, सत्यायु, राय, जया और विजय पुरुरवा के पुत्र थे और नहुष, क्षत्रवृद्ध, रजि, रभ और अनेना आयु के पुत्र थे। याति, ययाति, संयाति, अयाति, वियाति, निशांत और कृति नहुष के पुत्र थे। ययाति की दो पत्नियाँ देवयानी और शर्मिष्ठा थीं और यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु, अनु और पुरु ययाति के पांच पुत्र थे और उनके वंश से यादव, कौरव और पांडवों का वंश चला।  

वृत्तासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा और वे इस महादोष के कारण स्वर्ग छोड़कर किसी अज्ञात स्थान में जा छुपे। इन्द्रासन ख़ाली न रहने पाये इसलिये देवताओं ने मिलकर पृथ्वी के धर्मात्मा राजा नहुष को इन्द्र के पद पर आसीन कर दिया। नहुष अब समस्त देवता, ऋषि और गन्धर्वों से शक्ति प्राप्त कर स्वर्ग का भोग करने लगे।

वृत्रासुर के वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त करने के लिए जब इंद्र एक हजार वर्ष तक तप करते रहे तब इस प्रकार इन्द्र के ब्रह्महत्या के दोष का निवारण हो जाने पर वे पुनः शक्ति सम्पन्न हो गये किन्तु इन्द्रासन पर नहुष के होने के कारण उनकी पूर्ण शक्ति वापस न मिल पाई। 

राजस्थान का मरुभूमि वाला पुर्वोतरी एवं पश्चिमोतरी विशाल भूभाग वैदिक सभ्यता के उदय का उषा काल माना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व भू-गर्भ में विलुप्त वैदिक नदी सरस्वती यहीं पर प्रवाह मान थी, जिसके तटों पर तपस्यालीन आर्य ऋषियों ने वेदों के सूत्रों की सरंचना की थी। सिन्धुघाटी सभ्यता के अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के परस्पर मिलन, विकास उत्थान और पतन की रोचक एवं गौरव गाथाओं को अपने विशाल आँचल में छिपाए यह मरुभूमि भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण अध्याय की श्र्ष्ठा और द्रष्टा रही है। जनपदीय गणराज्यों की जन्म स्थली और क्रीडा स्थली बने रहने का श्रेय इसी मरुभूमि को रहा है। इस मरुभूमि ने ऐसे विशिष्ट पुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने कार्यकलापों से भारतीय इतिहास को प्रभावित किया है।

इसी मरुभूमि का एक भाग प्रमुख भाग शेखावाटी प्रदेश है जो विशालकाय मरुस्थल के पुर्वोतरी अंचल में फैला हुआ है। इसका शेखावाटी नाम विगतकालीन पॉँच शताब्दियों में इस भू-भाग पर शासन करने वाले शेखावत क्षत्रियों के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है। उससे से पूर्व अनेक प्रांतीय नामो से इस प्रदेश की प्रसिद्दि रही है। इसी भांति अनेक शासक कुलों ने समय-समय पर यहाँ राज्य किया है। 

शेखावाटी उत्तर-पूर्वी राजस्थान का एक अर्ध-शुष्क ऐतिहासिक क्षेत्र है। राजस्थान के वर्तमान सीकर और झुंझुनू जिले शेखावाटी के नाम से जाने जाते हैं इस क्षेत्र पर आजादी से पहले शेखावत क्षत्रियों का शासन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम शेखावाटी प्रचलन में आया। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा, गोङियावास खंडेला, सीकर, खेतडी, बिसाऊ लामिया, सूरजगढ़, नवलगढ, मंडावा, बलौंदा पिलानी, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, कंकङेऊ कलां, डाबड़ी धीर सिंह,खाचरियाबास, अलसीसर,यासर,मलसीसर लक्ष्मणगढ,बीदसर आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे। 

वर्तमान शेखावाटी क्षेत्र पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व मानचित्र में तेजी से उभर रहा है। यहाँ पिलानी और लक्ष्मणगढ के भारत प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र है। वही नवलगढ़, फतेहपुर, गंगियासर, अलसीसर, मलसीसर लक्ष्मणगढ, बलोदा, मंडावा आदि जगहों पर बनी प्राचीन बड़ी-बड़ी हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है, जिन्हें देखने देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है। पहाडों में सुरम्य जगहों पर बने जीण माता|जीण माता मंदिर, शाकम्बरीदेवी का मन्दिर, लोहार्ल्गल के अलावा खाटू में बाबा खाटूश्यामजी का बर्बरीक का मन्दिर, सालासर में हनुमान जी का मन्दिर, कंकङेऊ कलां में बाबा माननाथ की मेङी,डाबड़ी धीर सिंह मे बालाजी महाराज का प्रसिद्ध मंदिर नई जोत डाबड़ी धाम शेखावाटी का एकमात्र भौमिया जी का मंदिर भी यही है,आदि स्थान धार्मिक आस्था के ऐसे केंद्र है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। 

इस शेखावाटी प्रदेश ने जहाँ देश के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले देश प्रेमी दिए वहीँ उद्योगों व व्यापार को बढ़ाने वाले सैकडो उद्योगपति व व्यापारी दिए जिन्होंने अपने उद्योगों से लाखों लोगों को रोजगार देकर देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया। भारतीय सेना को सबसे ज्यादाशेखावाटी युवक सैनिक देने वाला झुंझुनू जिला शेखावाटी का ही भाग है। 


धुंधर से राव शेखा ने अमरसर में राजधानी के साथ अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। वे पहले स्वतंत्र शासक थे। उनके बाद राव रायमल, राव सुजा और राव लूणकरण अमरसर के शासक बने। राव मनोहर ने अपने पिता राव लूणकरण के बाद मनोहरपुर बाद में शाहपुरा नाम दिया गया, की स्थापना की। शाहपुरा के वर्तमान शासक शेखावत उपवंश के टिकाई हैं। शेखावतों ने कैमखानियों के झुंझुनू, फतेहपुर और नरहर पर विजय प्राप्त की, और अपना शासन स्थापित किया और आगामी एक सौ सत्तर साल तक शासन करते रहे।

हमारे पूर्वज भी राजस्थान का शेखवटी रेगिस्तानी इलाका छोड़ कर काम की तलाश में कानपुर आ कर बसे थे। माना जाता है कि इस शहर का नाम ही सोमवंशी राजपूतों के राजा कान्हा सोम से आता है, जिनके वंशज कानहवांशी कहलाए। कानपुर का मूल नाम 'कान्हपुर' था। नगर की उत्पत्ति का सचेंदी के राजा हिंदूसिंह से, अथवा महाभारत काल के वीर कर्ण से संबद्ध होना चाहे संदेहात्मक हो पर इतना प्रमाणित है कि अवध के नवाबों में शासनकाल के अंतिम चरण में यह नगर पुराना कानपुर, पटकापुर, कुरसवाँ, जुही तथा सीसामऊ गाँवों के मिलने से बना था। 

पड़ोस के प्रदेश के साथ इस नगर का शासन भी कन्नौज तथा कालपी के शासकों के हाथों में रहा और बाद में मुसलमान शासकों के।अंग्रेजो से संधि के बाद यह नगर अंग्रेजों के शासन में आया, फलस्वरूप में यहाँ अंग्रेज छावनी बनी। गंगा के तट पर स्थित होने के कारण यहाँ यातायात तथा उद्योगों की सुविधा थी। अतएव अंग्रेजों ने यहाँ उद्योगों को जन्म दिया तथा नगर के विकास का प्रारम्भ हुआ। सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहाँ नील का व्यवसाय प्रारम्भ किया। ग्रैंड ट्रंक सड़क के बन जाने पर यह नगर इलाहाबाद से जुड़ गया।बाद में लखनऊ, कालपी आदि मुख्य स्थानों से मार्गों द्वारा जोड़ दिया गया। ऊपरी गंगा नहर का निर्माण भी हो गया। यातायात के इस विकास से नगर का व्यापार पुन: तेजी से बढ़ा।

पहले स्वतंत्रता के विद्रोह के पहले नगर तीन ओर से छावनी से घिरा हुआ था। नगर में जनसंख्या के विकास के लिए केवल दक्षिण की निम्नस्थली ही अवशिष्ट थी। फलस्वरूप नगर का पुराना भाग अपनी सँकरी गलियों, घनी आबादी और अव्यवस्थित रूप के कारण एक समस्या बना हुआ है। पहले स्वतंत्रता के विद्रोह के बाद छावनी की सीमा नहर तथा जाजमऊ के बीच में सीमित कर दी गई; फलस्वरूप छावनी की सारी उत्तरी-पश्चिमी भूमि नागरिकों तथा शासकीय कार्य के निमित्त छोड़ दी गई।पहले स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ के साथ-साथ कानपुर भी अग्रणी रहा। नाना साहब की अध्यक्षता में भारतीय वीरों ने अनेक अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया। इन्होंने नगर के अंग्रेजों का सामना जमकर किया किन्तु संगठन की कमी और अच्छे नेताओं के अभाव में ये पूर्णतया दबा दिए गए।

शान्ति हो जाने के बाद विद्रोहियों को काम देकर व्यस्त रखने के लिए तथा नगर का व्यावसायिक दृष्टि से उपयुक्त स्थिति का लाभ उठाने के लिए नगर में उद्योग धंधों का विकास तीव्र गति से प्रारंभ हुआ। इसके बाद नगर में रेलवे लाइन का सम्बन्ध स्थापित हुआ। इसके पश्चात् छावनी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सरकारी चमड़े का कारखाना खुला।सबसे पहले सूती वस्त्र बनाने की पहली मिल खुली। क्रमश: रेलवे संबंध के प्रसार के साथ नए-नए कई कारखाने खुलते गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् नगर का विकास बहुत तेजी से हुआ। यहाँ मुख्य रूप से बड़े उद्योग-धन्धों में सूती वस्त्र उद्योग प्रधान था। 

मेरे पूर्वजों ने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत कानपूर में की थी। इस आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक हिस्सा था, जो आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता था और भारतीय राष्ट्रवाद में योगदान देता था। यह भारतीयों में बढ़ते असंतोष के जवाब में शुरू हुआ। महात्मा गांधी ने इसे स्व-शासन स्वराज के लिए आवश्यक माना। इस आंदोलन ने गति पकड़ी क्योंकि धनी भारतीयों ने खादी और ग्रामोद्योग समितियों के लिए धन और भूमि दान की, जिससे स्थानीय कपड़ा उत्पादन को बढ़ावा मिला। स्वदेशी आन्दोलन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू  आत्म-विश्वास या आत्मशक्ति पर बल देना था|

 चमड़े के कारबार का यह उत्तर भारत का सबसे प्रधान केन्द्र है। ऊनी वस्त्र उद्योग तथा जूट की दो मिलों ने नगर की प्रसिद्धि को अधिक बढ़ाया है। इन बड़े उद्योगों के अतिरिक्त कानपुर में छोटे-छोटे बहुत से कारखानें हैं। प्लास्टिक का उद्योग, इंजीनियरिंग तथा इस्पात के कारखाने, बिस्कुट आदि बनाने के सोलह सूती और दो ऊनी कारखाने वस्त्रों में मिलों के सिवाय यहाँ आधुनिक युग के लगभग सभी प्रकार के छोटे बड़े कारखाने पूरे शहर में फैले हुए हैं। 

मान्यता है इसी स्थान पर ध्रुव ने जन्म लेकर परमात्मा की प्राप्ति के लिए बाल्यकाल में कठोर तप किया और ध्रुवतारा बनकर अमरत्व की प्राप्ति की। रखरखाव के अभाव में टीले का काफी हिस्सा गंगा में समाहित हो चुका है लेकिन टीले पर बने दत्त मन्दिर में रखी तपस्या में लीन ध्रुव की प्रतिमा अस्तित्व खो चुके प्राचीन मंदिर की याद दिलाती रहती है। बताते हैं गंगा तट पर स्थित ध्रुवटीला किसी समय लगभग उन्नीस बीघा क्षेत्रफल में फैलाव लिये था। इसी टीले से टकरा कर गंगा का प्रवाह थोड़ा रुख बदलता है। पानी लगातार टकराने से टीले का लगभग बारह बीघा हिस्सा कट कर गंगा में समाहित हो गया। टीले के बीच में बना ध्रुव मंदिर भी कटान के साथ गंगा की भेंट चढ़ गया। बुजुर्ग बताते हैं मन्दिर की प्रतिमा को टीले के किनारे बने दत्त मन्दिर में स्थापित कर दिया गया। पेशवा काल में इसकी देखरेख की जिम्मेदारी राजाराम पन्त मोघे को सौंपी गई। तब से यही परिवार दत्त मंदिर में पूजा अर्चना का काम कर रहा है। मान्यता है ध्रुव के दर्शन पूजन करने से त्याग की भावना बलवती होती है और जीवन में लाख कठिनाइयों के बावजूद काम को अंजाम देने की प्रेरणा प्राप्त होती है।


धीरे - धीरे हमारे पूर्वजों की मेहनत मेहनत रंग दिखने लगी। उन्होंने एक व्यवसाय से दूसरा व्यवसाय शुरू किया। भगवान की ऐसी कृपा हुई की जिस व्ययसाय में उन्होंने हाथ डाला वह सफल हो गया। व्यापार कानपुर से कलकत्ता तथा कलकत्ता से मुम्बई तक फैलता चला गया। परिवार के पितामह ने समय के साथ - साथ अपने तीनों बेटों में काम बात दिया। एक बेटा कानपूर में रहा, दूसरा कलकत्ते में और तीसरा मुम्बई में रहने लगा।कानपुर के इस प्रतिष्ठित अमीर खानदान ने केवल यूपी को ही नहीं बल्कि भारत के दूसरे शहरों को भी बहुत कुछ बिना किसी स्वार्थ के दिया। किसी व्यक्ति के पास जितना अधिक पैसा होता है, उसे उन परिसंपत्तियों को बनाए रखने और संरक्षित करने के लिए उतना ही अधिक काम करना पड़ता है। हमारा परिवार हाई नेटवर्थ परिवार की श्रेणी में सम्मिलित हो गया था, हाई नेटवर्थ  व्यक्ति वह होता है जिस के पास व्यक्तिगत निवेश के लिए  पांच  करोड़ रुपये से अधिक का निवेश योग्य अधिशेष राशि हो। कोई भी व्यक्ति  हाई-नेट-वर्थ व्यक्तियों से मोहित हुए बिना नहीं रह सकता। ये संपन्न व्यक्ति शानदार जीवनशैली जीते हैं और अत्यधिक आर्थिक प्रभाव डालते हैं, जिससे वे बाज़ारों, उद्योगों और समाज को आकार देने में प्रमुख बन जाते हैं। आज के तेज़ी से बदलते आर्थिक परिदृश्य में, आगे बने रहने के लिए हाई-नेट-वर्थ व्यक्तियों  को समझना महत्वपूर्ण है। 


अहंकार और काम

धन शक्ति है, शक्ति अहंकार है, और अहंकार से घमंड बढ़ता है।  जब नहुष को इन्द्र का राज्य मिल गया तब उन्हें इन्द्र का खजाना मिल गया। धन मिलने से उनकी शक्ति बहुत बाद गई। शक्ति बढ़ाने से नहुष का अहंकार बाद ने लगा, और अहंकार बढ़ाने से उनमें घमंड आ गया।  अब वे स्वयं की इंद्रा ही मानने लगे। देवी शची इंद्र की पत्नी थीं। उन्हें ऐन्द्री, पुलोमंजता, पुलोमनपुत्री, ऐन्द्रिला, इन्द्राणीदुर्गा, शकरानी, ​​जैष्णवी और इन्द्राणी भी कहा जाता है।  उन्हें अत्यंत सुंदर, गौरवान्वित और दयालु के रूप में वर्णित किया गया है। वह इंद्र देव की शक्ति या दिव्य पत्नी हैं। 

उन्होंने देवी गंगा और आदिपराशक्ति के आशीर्वाद से जयंती देवी शुक्राचार्य की पत्नी नीलांबर और जयंत को जन्म दिया, उन्होंने देवी उमा द्वारा दिए गए श्राप के कारण इंद्र के साथ संतान प्राप्त करने के लिए देवियों को प्रसन्न करने के लिए व्रत, जप और तप किया और कैसे उन्होंने देवी कौशिकी के साथ शुंभ और निशुंभ युद्ध में राक्षसों को मार डाला, उन्होंने मातृका रूप में राक्षसों की सेना को मारने में देवी चंडिका की मदद की।वह ईर्ष्या की देवी हैं या वह स्वभाव से बुरी या नकारात्मक हैं, पॉलोमी माता मातृका ऐंद्री हैं जिनकी हम दुर्गासप्तशती में नवरात्रि के दौरान पूजा करते हैं, वह स्वभाव से मातृका हैं, वह इंद्र की पतिव्रता पत्नी हैं और वह बिजली की देवी हैं।

अकस्मात् एक दिन नहुष की दृष्टि इन्द्र की साध्वी पत्नी शची पर पड़ी। शची को देखते ही वे कामान्ध हो उठे और उसे प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयत्न करने लगे। इंद्र ने अपनी पत्नी शची से कहा कि तुम नहुष को आज रात में मिलने का संकेत दे दो किन्तु यह कहना कि वह तुमसे मिलने के लिये सप्तर्षियों की पालकी पर बैठ कर आये। शची के संकेत के अनुसार रात्रि में नहुष सप्तर्षियों की पालकी पर बैठ कर शची से मिलने के लिये जाने लगा। 

मेरे परिवार का इतिहास जितना पुराना है, उनसे जुड़ा विवाद भी उतना ही बड़ा और चर्चा में रहा है।जितना  पुराना इसका इतिहास है, उतना ही पुराना इससे जुड़ा विवाद। परिवार और संपत्ति विवादों को लेकर ये कारोबारी घराना अक्सर सुर्खियों में रहा है। मेरे पूर्वज उस जमाने के उद्योगपतियों में थे, जब ब्रिटिश हुकूमत के दौरान कारोबार करना आसान नहीं था. उन्होंने कानपुर में कपास की खरीद बिक्री से बिजनेस शुरू किया, लेकिन थोड़े वक्त में ही कॉटन मिल ही खरीद ली। देश में  ग्रुप का साम्राज्य एक समय टाटा और बिरला जैसा ही था। कानपुर के मारवाड़ी परिवार में जन्मे मेरे पूर्वजों ने  समूह की स्थापना की, जिसका आज टर्नओवर हजारों करोड़ रुपयों से ज्यादा है। हमारे परिवार के लोग  अक्सर विलासितापूर्ण उत्पाद और सेवाएँ खरीदते हैं, जो ऑटोमोबाइल, रियल एस्टेट, कलाकृति और विशिष्ट अध्ययनों जैसे उच्च-स्तरीय बाज़ारों में प्रवृत्तियों को प्रभावित करते हैं। विकासशील प्रौद्योगिकी, दुर्लभ संग्रहणीय वस्तुओं, परोपकार, निजी प्लेसमेंट, मूर्त संपत्ति, जुनूनी व्यवसाय,  और वैश्विक नागरिकता की लिये  निवेश कर रहे थे। परिवार की नई पीढ़ी का व्यवहार, क्रय आदतों, मूल्यों और जीवन शैली में बदलाव हो रहा था। परिवार के कुछ लोगों में उच्च स्तर की उद्यमशीलता स्पष्ट  दृष्टिगोचर हो रही थी वे लोग निजी इक्विटी जैसे वित्तीय क्षेत्रों में निवेश कर उच्च आय कमाने लगे थे परिवार के एक हिस्से ने स्मार्ट रियल एस्टेट निवेश और स्टॉक और शेयरों के माध्यम से महत्वपूर्ण धन कमाया । धन में इस वृद्धि के साथ-साथ व्यवहार में परिवर्तन के कारण इन लोगों लोगों के व्यवहार और मूल्यों में बदलाव आया, जिसमें उनकी  जीवनशैली भी शामिल थी। 



ऋषियों का शाप

सप्तर्षियों को धीरे-धीरे चलते देख कर उसने 'सर्प-सर्प' शीघ्र चलो कह कर अगस्त्य मुनि को एक लात मारी। इस पर अगस्त्य मुनि ने क्रोधित होकर उसे शाप दे दिया, “मूर्ख! तेरा धर्म नष्ट हो और तू दस हज़ार वर्षों तक सर्पयोनि में पड़ा रहे।” ऋषि के शाप देते ही नहुष सर्प बन कर पृथ्वी पर गिर पड़ा और देवराज इन्द्र को उनका इन्द्रासन पुनः प्राप्त हो गया।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ मैं  ही रिश्ते संभालने में फेल रहा। मेरे पिता भी अपने संबंधों को संभालने में विफल रहे हैं। उन की अपने भाईयों से कभी नहीं बनती थी। संपत्ति को लेकर भाईयों से विवाद रहा। भाई के मरने के बाद मैने  उनकी पत्नी और दो बेटों को घर से बाहर कर दिया। अपने हक के लिए उन्होने मेरे साथ कानूनी लड़ाई लड़ी।

मेरे पूर्वज संभलकर खर्च करने वालों में से थे। वो अपनी पेंसिल भी तब तक यूज करते थे, जब तक वो बिल्कुल छोटी न हो जाएं। अगर पेंसिल हाथ में पकड़ आ रही है तो वो उसे जरूर यूज करते थे, फेंकते नहीं थे। उन्होंने एक - एक पाई जोड़कर यह परिवार को समृद्धि के पथ पर बढ़ाया था। परिवारों में आम कहा-सुनी सामान्य बात है. पुरानी कहावत है कि बर्तन जब साथ रहेंगे तो खड़केंगे ही।  लेकिन जब यही पारिवारिक झगड़ा किसी बड़े आदमी के घर में होता है और वो बात सड़क तक आ जाती है, तब वह मामला परिवार से ज्यादा सामाजिक हो जाता है। पिता और पुत्र के रिश्ते का मनोविज्ञान एक जटिल और महत्वपूर्ण विषय है, जो बच्चे के विकास, आत्म-सम्मान और भविष्य के रिश्तों को प्रभावित करता है। एक मजबूत पिता-पुत्र संबंध बच्चे को सुरक्षा, समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे वह भावनात्मक रूप से स्वस्थ और आत्मविश्वास से भरा व्यक्ति बन पाता है। 

व्यवसाय और धन के क्षेत्र में, पारिवारिक गतिशीलता अक्सर केंद्र में आ जाती है, खासकर जब इसमें बिजनिस परिवार के प्रमुख व्यक्ति शामिल हों। हम दोनों को व्यापार और रोमांच का शौक था। लंबे समय से चल रहे संपत्ति विवाद के कारण उनके रिश्ते में खटास आ गई। जो रिश्ता कभी पिता और पुत्र का था, वह अब नाराजगी और कानूनी लड़ाइयो में उलझा हुआ है, जिससे पारिवारिक विरासत धूमिल हो रही है जिसे कभी हम दोनों संजोकर रखते थे। कारोबार के बंटवारे को लेकर परिवार लंबी लड़ाई से जूझता रहा है। समूह अब तीन बड़े हिस्सों में बंट चुका है।मुझे सबसे ज्यादा दुःख तब हुआ जब मेरे बेटे ने कोर्ट में एक हलफनामे में कहा कि उनके पिता काफी ‘सामंती’ सोच रखते हैं। उनके और उनकी मां के साथ अच्छा व्यवहार नहीं रखते है।  इसलिए उन्हें सिंगापुर शिफ्ट होना पड़ा और दबाव में ही पिता की संपत्ति में अधिकार का दावा छोड़ने पर विवश होना पड़ा। 

मेरी व्यापार की सफलता ने मुझे धन के उच्च शिखर पर पहुंचा दिया, इतनी संपत्ति अर्जित की कि एक समय मैं भारत के कुलीन वर्ग में गिना जाता था। हालांकि, कानूनी विवादों और पारिवारिक कलह के कारण वित्तीय स्थिरता पर संदेह पैदा हो गया है, जिसके कारण किराए के मकान में मामूली जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है।

ओडिपस की कहानी सिगमंड फ्रायड की बदौलत, ओडिपस सिंड्रोम हममें से अधिकांश लोगों को पता है। कहानी में, एक दैवज्ञ ने थेब्स के राजा लायस से कहा कि उसका बेटा एक दिन उसे मार देगा। इसलिए जब उसकी पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया, तो उसने बच्चे को मारने के लिए कहा। लेकिन बच्चे को मारने का काम जिस व्यक्ति को सौंपा गया था, वह ऐसा नहीं कर सका। उसने बच्चे को मरने के लिए एक पहाड़ी की चोटी पर छोड़ दिया। किस्मत से, एक चरवाहे को बच्चा मिला और उसने उसे कोरिंथ के राजा पॉलीबस और उसकी पत्नी को गोद दे दिया।

लड़का बड़ा होकर ओडिपस बन गया। ओडिपस को पता चला कि उसे अपने पिता को मारने और अपनी माँ से शादी करने का भाग्य मिला है। राजा पॉलीबस को अपना पिता समझकर, ओडिपस ने राज्य छोड़ने का फैसला किया, और कभी कोरिंथ वापस नहीं लौटा। थेब्स के रास्ते में, ओडिपस का सामना राजा लायस से हुआ और एक लड़ाई में उसने उसे मार डाला। इस प्रकार दैवज्ञ की पहली भविष्यवाणी सच हुई। हमारे परिवार में यह श्राप शुरू से चला आ रहा है। पिता बच्चे के भावनात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. बच्चे नियम बनाने और उन्हें लागू करने के लिए अपने पिता की ओर देखते हैं।  वे शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से सुरक्षा की भावना प्रदान करने के लिए भी अपने पिता की ओर देखते। एक सहायक पिता-पुत्र संबंध बेटे के आत्म-सम्मान को बढ़ाता है।  पिता प्रोत्साहन, समर्थन और सलाह देकर बेटे को लचीलापन और आत्मविश्वास विकसित करने में मदद करते हैं। पिता अपने बेटे के लिए एक महत्वपूर्ण रोल मॉडल होते हैं।  बच्चे अपने पिता को देखकर सीखते हैं कि कैसे व्यवहार करना है, कैसे निर्णय लेने हैं और कैसे जीवन जीना है। 

मेरे पूर्वज राजस्थान के झूंझनू जिले के सिंघाना इलाके से निकलकर फर्रुखाबाद में आकर बस गए। मेरे दादा व परदादा भी राजस्थान के सिंघाना से थे।  उनके परिवार में बैंकर, व्यापार, साहूकार से भरा पड़ा था।  मेरे परदादा के छः बेटे थे। उन्हीं में एक मेरे दादा  थे।  जब भाइयों में परिवार में कारोबार का बंटवारा हुआ तो मेरे दादा कानपुर आ गए।  उनके पास सिर्फ आटा मिल ही थीं। उन्होंने दाल, कपास गन्ना की बिक्री जैसे पारंपरिक व्यवसाय से बाहर बड़ा कारोबार करने का जोखिम लिया। साथ ही  कानपुर कॉटन मिल्स और विक्टोरिया मिल्स में कपास की खरीद बिक्री के बड़े एजेंट थे। मेरे परदादा तथा मेरे दादा जी ने अपने नाम के पहले अक्षर ली कर पहले कॉटन मिल्स शुरू की। इसी नाम से कई मिलों की नींव रखी जिसमें आइस फैक्ट्री, ऑयल मिल्स, होजरी,शुगर मिल्स, ऑयरन एंड स्टील कंपनी, जूट मिल, कॉटन मिल कानपुर की शान थी। तब कानपुर भारत का मैनचेस्टर कहलाता था।

 स्वदेशी आंदोलन, जो में बंगाल के विभाजन के विरोध में शुरू हुआ था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसने स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देकर और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके आत्मनिर्भरता और भारतीय उद्योगों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाने और उत्पादों के आयात को कम करने के लिए इसे कलकत्ता के टाउन हॉल से औपचारिक रूप से शुरू किया गया था। इसका विचार सर्वप्रथम कृष्ण कुमार मित्र के पत्र संजीवनी में  में प्रस्तुत किया गया था| इस आन्दोलन में स्वदेशी नेताओं ने भारतियों से अपील की कि वे सरकारी सेवाओं,स्कूलों,न्यायालयों और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें और स्वदेशी वस्तुओं को प्रोत्साहित करें व राष्ट्रीय कोलेजों व स्कूलों की स्थापना के द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा को प्रोत्साहित करें। अतः ये केवल राजनीतिक आन्दोलन ही नहीं था बल्कि आर्थिक आन्दोलन भी था। स्वदेशी आन्दोलन को अपार सफलता प्राप्त हुई थी। बंगाल में जमींदारों तक ने इस आन्दोलन में भाग लिया था। महिलाओं व छात्रों ने पिकेटिंग में भाग लिया। छात्रों ने विदेशी कागज से बनी पुस्तकों का बहिष्कार किया। बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपत राय,बिपिन चन्द्र पाल और अरविन्द घोष जैसे अनेक नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया।अनेक भारतीयों ने अपनी नौकरी खो दी और जिन छात्रों ने आन्दोलन में भाग लिया था उन्हें स्कूलों व कालेजों में प्रवेश करने रोक दिया गया। आन्दोलन के दौरान वन्दे मातरम  को गाने का मतलब देशद्रोह था| यह प्रथम अवसर था जब देश में निर्मित वस्तुओं के प्रयोग को ध्यान में रखा गया। स्वदेशी आंदोलन में भी परिवार ने योगदान दिया। मेरे दादा और उनके बेटे  ने मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं के साथ स्वदेशी आंदोलन में सक्रिय सहयोग किया था। 

उन्होंने  कानपुर में मंदिर तथा टॉवर बनवाया, जो लंदन की बिग बेन स्टाइल में बना था। यहां आज भी  सीमेंट कंपनी का मुख्यालय है। मेरे दादा जी ने  गंगा नदी के किनारे बीस एकड़ से बड़े इलाके में आलीशान बंगला बनवाया, जिसे गंगा कुटीर नाम दिया गया। यहां ऐशोआराम की सारी सुविधाए हैं। मेरे दादा के तीन बेटे थे जिसमें से एक मेरे पिता थे। 

मेरे दादा ने जिस कारोबारी समूह की नींव रखी थी, आज उसका टर्नओवर हजारों  करोड़ रुपये से ऊपर का है तथा ग्रुप का कारोबार  पच्चीस से ज्यादा क्षेत्रों में  फैला हुआ है। 

कारोबार के बंटवारे को लेकर परिवार लंबी लड़ाई से जूझता रहा है। आज समूह अब तीन बड़े हिस्सों में बंट चुका है।  इनमें कानपुर में मेरे चाचा की फैमिली, मुंबई में मेरा परिवार  और दिल्ली में मेरे दूसरे चाचा का परिवार समूह से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करता है। 

परिवार के अलग - अलग सदस्यों ने  अपने निवेशों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए एक अनुभवी और समर्पित निवेश प्रबंधक या वित्तीय सलाहकार की सेवाऐं लेना शुरू कर दिया था। ये लोग निवेश प्रबंधन में वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करना, जोखिम प्रोफाइल तैयार करना तथा उन लक्ष्यों एवं जोखिम प्रोफाइल के अनुरूप विस्तृत निवेश योजनाएं बनाते रहते थे  इसमें कई निवेश विकल्पों जिसमें इक्विटी और डेट से लेकर म्यूचुअल फंड तथा वैकल्पिक निवेश फंड में निवेश करना भी शामिल होता जा रहा था। 

कर योजना बनाने के लिए अनुभवी कर पेशेवरों की सेवा ली जाती है ताकि निवेश को व्यवस्थित करके कर देयता को कम किया जा सके तथा उपलब्ध कर कटौती का उपयोग किया जा सके। साथ ही, जायदाद योजना में वकीलों की सेवा ली जाती है ताकि वे भविष्य की पीढ़ियों को अपनी इच्छा के अनुसार इस प्रकार से संपत्ति स्थानांतरित कर सकें ताकि कम-से-कम कर देना पड़े। यही से परिवार के सदस्यों के बीच स्पर्द्धा की शुरुआत हुई। 

अब खाने की टेबिल से ले कर शयन कक्ष में  निवेश विकल्पओं पर विचार चलता रहता था। जीवन में पैसे का महत्व व्यक्तिगत सम्बन्धों से अधिक हो गया था। हम लोग  आमतौर पर निवेश के विविध पोर्टफोलियो में निवेश करते, ताकि बाजार का जोखिम कम हो सके तथा बाजार के प्रतिकूल उतार-चढ़ाव से अपनी पूंजी की रक्षा कर सकें। हम लोग मुख्यरूप से सूचीबद्ध कंपनियों के स्टॉक में निवेश करते हैं। अपने वित्तीय लक्ष्यों तथा जोखिम प्रोफाइल के आधार पर वे लार्ज-कैप, मिड-कैप, स्मॉल-कैप या तीनों तरह के स्टॉक के मिश्रण में निवेश कर सकते हैं। 

कॉर्पोरेट बॉन्ड तथा सरकारी बॉन्ड दोनों में नियमित रूप से निवेश करते हैं। बॉन्ड और डिबेंचर में निवेश करने से उनके पोर्टफोलियो को कुछ जरूरी विविधता प्राप्त होती है तथा नियमित आय का स्रोत बनता है। दीर्घकाल में संपत्ति सृजन को सुनिश्चित करने के लिए, हम लोग भी अपनी निवेश पूंजी के एक हिस्से को म्यूचुअल फंड में लगाते हैं। फिर, अपनी जोखिम प्रोफाइल तथा वित्तीय लक्ष्यों के आधार पर भी  इक्विटी फंड, डेट फंड या हाइब्रिड फंड में निवेश करते हैं।  गैर-सूचीबद्ध कंपनियों की इक्विटी का एक हिस्सा खरीदकर उनमें भी निवेश करते हैं। निजी इक्विटी में निवेश  सामान्यतया तब तक निवेशित रहते हैं जब तक कि कंपनी आईपीओ जारी नहीं करती है, आईपीओ जारी होने पर हम सार्वजनिक निर्गम के माध्यम से अपनी हिस्सेदारी बेचकर बाहर निकल जाते हैं। निजी इक्विटी की तरह ही, हमारे परिवार के लोग  गैर-सूचीबद्ध कंपनियों को ऋण भी जारी करते हैं। 

ऐसे ऋणों को निजी ऋण कहा जाता है तथा ब्याज भुगतान के रूप में नियमित आय प्राप्त करने का एक यह अच्छा तरीका है। यद्यपि, बांड के विपरीत, निजी ऋण में ज्यादा जोखिम होता है तथा उच्च जोखिम उठाने की प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के लिए यह अधिक उपयुक्त होता है। उच्च नेट वर्थ वाले व्यक्ति भी प्रॉपर्टी खरीदकर या रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट में निवेश करके रियल एस्टेट में नियमित रूप से निवेश करते हैं।

यद्यपि इन निवेशों  के बहुत से लाभ हैं तथा कई प्रकार के निवेश विकल्पों तक  पहुँच हो जाती है, तथापि हमें नियमित रूप से अनेक जोखिमों और चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। 

शेयर मार्केट  में निवेश करने वाले मार्केट से जुड़े अनेक निवेश विकल्प कीमतों में उतार-चढ़ाव और अस्थिरता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। इससे मार्केट में प्रतिकूल उतार-चढ़ाव के कारण होने वाले नुकसान का खतरा बढ़ जाता है। अनियंत्रित निवेश के मामले में, उन्हें धोखाधड़ी से लेकर मजबूत नियामक हस्तक्षेप जैसे प्रमुख जोखिमों तक का सामना करना पड़ता है। जो व्यक्ति  बॉन्ड तथा दूसरी निश्चित आय प्रदान करने वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं, उन्हें अक्सर ब्याज दर जोखिम का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं, तो उनके निवेश का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा। निजी इक्विटी, निजी ऋण और रियल एस्टेट जैसे वैकल्पिक निवेश आमतौर पर बहुत अतरल होते हैं। इसके कारण अपने निवेशों को नकदी में परिवर्तित करना बहुत मुश्किल हो जाता है। बाजार की इन सब अनिश्चितताओं का प्रभाव हमारे निजी जीवन पर बहुत अधिक होता है। पारिवारिक सम्बन्धों के बनने बिगड़ने का यह बहुत बड़ा कारण है। 







मुक्ति

ऋषि अगस्त्य ने अधर्मी नहुष को दस हजार वर्षों तक अजगर योनि में रहने का श्राप दे दिया। जब नहुष ने अपनी गलती मानकर सर्प योनि से बचने का उपाय पूछा तो ऋषि अगस्त्य ने उसे मुक्ति का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि जो भी तुम्हारे पूछे प्रश्नों का उत्तर देगा, वही तुम्हें श्राप से मुक्त करा सकेगा। युधिष्ठिर ने नहुष को अजगर योनि से मुक्ति दिलाई। 

पाण्डवों के द्वैतवन में रहने के समय एक दिन भीमसेन आखेट खेलने के लिए गये थे कि वहीं एक महाशक्तिशाली अजगर के चंगुल में फँस गये। बहुत चेष्टा करने पर भी बलशाली भीम अपने-आपको सर्प की लपेट से छुड़ा न सके तो अति – विस्मित हो गये और उन्होंने सर्प को अपना वास्तविक परिचय देने को कहा। भीम की बात सुनकर अजगर ने कहा कि वह भूखा है, इसलिए उसे खाना चाहता है। सर्प के इस प्रकार के उत्तर को सुनकर भीम को अपनी मृत्यु की तो चिन्ता न हुई परन्तु वे यक्षों व राक्षसों से भरे जंगल में भाईयों की रक्षा के लिये व्याकुल हो उठे। इधर महाराज युधिष्ठिर जी नाना प्रकार के भयंकर अपशकुन देखने लगे। भीम जब बहुत समय तक नहीं आये तो युधिष्ठिर बहुत चिन्तित हो उठे। तत्पश्चात धनन्जय को द्रौपदी की रक्षा के लिये रखकर तथा नकुल व सहदेव को ब्राह्मणों की रक्षा का भार देकर स्वयं धौम्य’ के साथ भीम की खोज में निकल पड़े।

काफी रास्ता तय करने के बाद उन्होंने देखा कि ऊसर भूमि पर एक अजगर ने भीमसेन को जकड़ा हुआ है। चार दाँतों वाला अजगर अति – भयंकर था, उसका रंग सुनहरा व मुँह गुफा की तरह था। भीमसेन से सर्प के चंगुल में फंसने का सारा वृतान्त सुनने के बाद युधिष्ठिर महाराज ने महासर्प को अपना ठीक-ठीक परिचय देने को कहा। अपना परिचय देते हुए सर्प ने कहा – ‘मैं तुम्हारा पूर्व-पुरुष सोमवंशीय आयु राजा का पुत्र हूँ। मेरा नाम नहुष है। यज्ञ व तपस्या के बल से मैंने त्रिलोकी का ऐश्वर्य प्राप्त किया था। 

मैं स्वर्ग का अधिपति भी बना था परन्तु ऐश्वर्य प्राप्त करने के बाद मुझे घमण्ड हो गया और मैंने अपनी पालकी को ढोने के लिए एक हज़ार ब्राह्मणों को लगवा दिया था। ब्रह्मर्षि, देवता, गन्धर्व व राक्षस आदि त्रिलोकी के जीव मुझे कर दिया करते थे। मैं दृष्टि के द्वारा ही सभी का तेज हरण कर लेता था। एक दिन अगस्त्य मुनि जब मेरी पालकी का वहन कर रहे थे तो उसी समय दैववशतः मेरा पैर उनके शरीर पर लग गया और उन्होंने ‘सर्प योनि को प्राप्त हो जाओ’ – कहकर मुझे अभिशाप दिया। उसी से मेरी ये दुर्गति हुई। मेरे द्वारा नाना प्रकार के स्तव करने से वे सन्तुष्ट हुये तथा कहने लगे कि युधिष्ठिर महाराज तुम्हारा उद्धार करेंगे। यदि आप मेरे प्रश्नों का सही-सही उत्तर दे पायेंगे तो मैं भीमसेन को नहीं खाऊँगा, इन्हें छोड़ दूँगा।’

युधिष्ठिर महाराज ने जब उसके प्रश्नों को जानना चाहा तो सर्प ने पहले उनसे दो प्रश्नों का उत्तर जानना चाहा।

ब्राह्मण कौन हैं ?

वेद्य क्या हैं ?

इनके उत्तर में युधिष्ठिर महाराज कहने लगे –

सत्य, दान, क्षमाशीलता, अक्रूरता, तपस्या व दया – जिनमें दिखाई दें, वही ब्राह्मण हैं। जो सुख-दुःख रहित हैं तथा जिनको जानने से मनुष्य शोक को प्राप्त नहीं होता, वे परब्रह्म ही वेद्य हैं ।

इस प्रकार महासर्प के साथ कुछ समय युधिष्ठिर महाराज जी के प्रश्नोत्तर हुये । युधिष्ठिर महाराज से सभी प्रश्नों के सही-सही उत्तर पाकर नहुष प्रसन्न हुये तथा सोचने लगे कि मनुष्य शूर और सुबुद्धि होने पर भी प्रायः ऐश्वर्य के घमण्ड में मत्त होकर पतित हो जाता है, इसके उदाहरण वे स्वयं ही हैं। तत्पश्चात् नहुष ने भीमसेन को छोड़ दिया और स्वयं शाप – मुक्त होकर दिव्य देह धारण की । इसके साथ ही राजा नहुष भी अजगर योनि से मुक्त होकर स्वर्ग लोक चला गया। 

जैसे-जैसे में कानूनी लड़ाइयों और व्यक्तिगत क्लेशों के अशांत जल में आगे बढ़ता गया, मेरी ईर्ष्यापूर्ण विरासत एक चौराहे पर खड़ी है, जो रिश्तों की नाजुकता और अनसुलझे संघर्षों के स्थायी प्रभाव पर चिंतन करती है। जिससे मेरे रिश्ते की असली प्रकृति पर प्रकाश पड़ता है।अपने शानदार करियर और असंख्य उपलब्धियों के बावजूद, मेरी कहानी पारिवारिक कलह और कॉर्पोरेट उथल-पुथल के नुकसानों की चेतावनी देने वाली कहानी के रूप में रही है। मेरे जीवन के ताने-बाने में, जीत और उथल-पुथल के धागे जटिल रूप से बुने हुए हैं, जो एक ऐसे व्यक्ति की तस्वीर पेश करते हैं, जिसकी गरीबी से अमीरी तक की यात्रा पारिवारिक कलह की छाया से प्रभावित होती है। जैसे-जैसे एक अध्याय का सूरज डूबता है, सुलह और मुक्ति का वादा क्षितिज पर मंडराता है, जो प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में मानवीय भावना के लचीलेपन का प्रमाण है।


जन्म और पिता

नहुष ने अशोकसुंदरी से विवाह किया था। चन्द्रवंशी राजा नहुष के छह पुत्र थे, याति, ययाति, सयाति, अयाति, वियाति और कृति।

बड़े पुत्र याति के विरक्त स्वभाव की वजह से राजा ने ययाति को राजगद्दी पर बैठाया। ययाति का शासन अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा, थाईलैंड तक फैला था। उन्होंने जाजमऊ को अपनी राजधानी बनाया और गंगा के किनारे अपना महल। जनश्रुति यह भी है कि राजा ययाति ने ही जाजमऊ स्थित सिद्धनाथ मंदिर की स्थापना की थी। जाजमऊ को दूसरी काशी बनाने लिए राजा ने यज्ञ शुरू किए। निन्यानवे यज्ञ पूरे हो चुके थे और सौवां यज्ञ पूरा होते ही जाजमऊ को दूसरी काशी का दर्जा मिल जाता, लेकिन हवनकुंड में हड्डी गिरने से यज्ञ असफल हो गया।

एक समृद्ध विरासत वाले परिवार में जन्म होने से मेरी यात्रा मुंबई की चकाचौंध के बीच शुरू हुई। मेरे पालन-पोषण ने मेरे भविष्य के प्रयासों की नींव रखी, जिससे मुझे मेरा साहसी व्यक्तित्व का निर्माण हुआ जिसके लिए में जाता हूँ। जैसे - जैसे मुझे मेरे दादा जी से सुनी कहानी याद आ रही है मुझे लगाने लगा है की कानपुर का होने के कारण शायद ययाति की आत्मा का बास मुझ में है। पिता का बड़ा बेटा होने के कारण मुझे पिता का कारोबार सम्हालना पड़ा था। पिता और पुत्र का रिश्ता बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक बच्चे को जन्म भले ही मां देती हों लेकिन दुनिया दिखाने का काम पिता ही करते हैं। बचपन में शिशु पिता के साथ खेलता है, मस्ती करता है लेकिन कई सारे परिवारों में ऐसा होता है कि जैसे-जैसे पुत्र युवावस्था की दहलीज पर कदम रखता है पिता और पुत्र के बीच दूरियां आने लगती है। जबकि यह तो वो समय है जब पिता और पुत्र दोनों के बीच का रिश्ता और प्रगाढ़ होना चाहिए। रिश्ते में एक प्रकार का मैत्री भाव आना चाहिए जो कि कई सारे पिता-पुत्र के बीच होता भी है लेकिन अधिकांश घरों में यह लापता ही होता है जिस वजह से माताएं बेहद परेशान रहती हैं। पिता और पुत्र की उम्र में एक पूरी जनरेशन का अंतर होता है। ऐ

से में जो दुनिया पिता ने अपनी युवावस्था में देखी होती है, वह दुनिया पुत्र नहीं देख रहा होता है जबकि जो दुनिया पुत्र देख रहा है वो पिता के समय से बहुत भिन्न है तो ऐसे में दोनों के बीच एक दूरी आ जाती है जिसे मिटाने के लिए बहुत जरूरी है कि वह एक दूसरे के समय को जानें और समझने का प्रयास करें नहीं तो उन दोनों के मन में एक ही बात चलती रहेगी कि वे एकदूसरे को नहीं समझते हैं।जिस उम्र से पुत्र गुजर रहा होता है उसी उम्र से पिता भी गुजर चुके हैं तो ऐसे में उन्हें लगता है वे अनुभवी हैं, उम्र के इस पड़ाव पर बेटा किसी गलत दिशा में न चला जाए इसलिए वे उसे हर जगह जाने के लिए या हर काम के लिए हां नहीं कह पाते हैं। इस रोक-टोक में फिक्र छिपी होती है लेकिन पुत्र को लगता है कि पिता अभी भी उसे छोटा बच्चा ही समझते हैं इसलिए इतनी रोक-टोक कर रहे हैं। मन ही मन दूरियां बढ़ जाती है। पिता और पुत्र के बीच वैचारिक मतभेद होना बहुत सामान्य बात है। वैचारिक मतभेद वैसे किसी भी रिश्ते में हो सकता है लेकिन पिता और पुत्र के रिश्ते में दोनों ही तरफ पुरुष हैं और पुरुषों में मेल ईगो बहुत जल्दी जाग जाता है। ऐसे में वे किसी बात को एक जगह छोड़कर खत्म नहीं करते हैं बल्कि उसकी गांठ बांध लेते हैं जो कि आगे चलकर दोनों के ही दुख का कारण बनती है।मेरी उम्र बढ़ने के साथ - साथ मेरे और मेरे पिता के बीच रिश्ते बहुत उलझन भरे होते गये। 


देवयानी और शर्मिष्ठा

देवयानी असुरों के गुरु शुक्र की पुत्री थी। वह सुंदर और स्वाभिमानी थी और अपने पिता के प्रति समर्पित थी। देवयानी की सबसे प्रिय सहेली शर्मिष्ठा थी, जो उस राजा की बेटी थी जिसके सलाहकार शुक्र थे। दोनों युवतियाँ सब कुछ साथ-साथ करती थीं और बहनों की तरह थीं, हालाँकि उनका जीवन पूरी तरह से अलग था - शर्मिष्ठा का जीवन वैभव और विलासिता से भरा था जबकि देवयानी और उसके पिता ने वनवासियों के सरल तरीके अपनाए।

एक दिन, युवतियाँ शर्मिष्ठा के शाही दल के साथ नदी में स्नान करने गईं। उन्होंने अपने कपड़े नदी के किनारे छोड़ दिए और जल्द ही, वे खेल खेलने और पानी में मौज-मस्ती करने में पूरी तरह से लीन हो गईं। जब वे थक गईं और कपड़े पहनने के लिए नदी से बाहर निकलीं, तो देवयानी ने गलती से शर्मिष्ठा के कपड़े पहन लिए। जब ​​राजकुमारी शर्मिष्ठा ने यह देखा, तो वह क्रोधित हो गई। उसने देवयानी पर बढ़िया रेशम के कपड़ों की लालच करने और अपने पद से ऊपर उठने का आरोप लगाया। उसने देवयानी को याद दिलाया कि वह एक नीच कर्मचारी की बेटी थी - शर्मिष्ठा के पिता, राजा, देवयानी के पिता को वेतन देते थे। देवयानी हैरान रह गई और उसने पलटकर कहा कि वह एक ब्राह्मण की बेटी है और वास्तव में, शर्मिष्ठा सामाजिक रूप से नीच है। मौखिक अपमान जल्दी ही एक शारीरिक लड़ाई में बदल गया। शर्मिष्ठा ने देवयानी के पहने हुए वस्त्र को फाड़ दिया और नग्न महिला को एक कुएँ में धकेल दिया और घर चली गई।। सौभाग्य से राजा ययाति वहाँ से गुजर रहे थे। उन्होंने देवयानी को डूबने से बचाया। देवयानी घर गई और अपने पिता को सारी घटना बताई। उसने जोर देकर कहा कि जब तक राजा की बेटी अपने व्यवहार के लिए माफ़ी नहीं माँग लेती, तब तक वह राजा की सभी सेवा बंद कर दे। इसलिए राजा के गुरु शुक्राचार्य राजा के पास गए और घोषणा की कि जब तक राजा अपनी बेटी को सज़ा नहीं देते, तब तक वह सभी धार्मिक अनुष्ठान बंद कर देंगे।

लंबी कहानी को छोटा करके कहें तो राजा के पास सहमत होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। और राजकुमारी शर्मिष्ठा देवयानी की दासी बन गई।


ययाति का विवाह

इसी बीच राजा ययाति को देवयानी से प्यार हो गया और उन्होंने शादी करने का फैसला किया। राजा ययाति का विवाह दैत्य गुरु शुक्राचार्य की बेटी देवयानी से हुआ था। विवाह के बाद एक शर्त के तहत दैत्यों की राजकुमारी शर्मिष्ठा भी देवयानी के साथ दासी के रूप में ययाति के यहां आई थी। शुक्राचार्य ने ययाति से वचन लिया था कि वो कभी भी देवयानी के अलावा किसी और स्त्री से संबंध नहीं रखेगा। ययाति ने भी शुक्राचार्य को इस बात का वचन दिया था।

विवाह के कुछ समय बाद देवयानी गर्भवती हो गई। जब ये बात शर्मिष्ठा को मालूम हुई तो वह देवयानी से ईर्ष्या करने लगी। शर्मिष्ठा राजकुमारी थी, लेकिन एक दासी का जीवन व्यतीत कर रही थी। शर्मिष्ठा राजा ययाति के महल के पीछे कुटिया में रहती थी। उसने सोचा कि वह राजा ययाति को अपने सुंदर रूप से आकर्षित करके खुद भी जीवन के सभी सुख प्राप्त करेगी। अपनी योजना के अनुसार शर्मिष्ठा ने ययाति आकर्षित कर लिया।लेकिन शर्मिष्ठा में शाही भावना के साथ-साथ शाही खून भी था। ययाति ने उसे देख लिया। ययाति शुक्राचार्य को दिया हुआ वचन भूल चुके थे और उन्होंने शर्मिष्ठा से संबंध बना लिए। उन्होंने गुप्त रूप से विवाह किया और बच्चे हुए।

मेरा विवाह परिवार की सहमति से हुआ था। मुझे मेरे दादा जी ने सिखाया था कि पति-पत्नी के रिश्ते की मनोविज्ञान में, आपसी सम्मान, विश्वास, और खुले संचार को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। साथ ही, एक-दूसरे की ज़रूरतों और भावनाओं को समझना और उनकी कद्र करना भी बहुत ज़रूरी है। शादी होने के बाद महिलाओं की जिम्मेदारियां काफी ज्यादा बढ़ जाती हैं। आमतौर पर महिलाएं घर-गृहस्थी और तमाम तरह की छोटी-बड़ी जरूरतों में इतनी ज्यादा उलझ जाती हैं कि पति की जरूरतों पर बहुत ध्यान नहीं दे पातीं। लेकिन इस बारे में महिलाओं को ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि पुरुष खुलकर अपनी बातें नहीं कहते। पति कई बार पत्नी से छोटी-छोटी चीजों की अपेक्षा करते हैं और अगर उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो वे खामोशी से उसे सह लेते हैं। महिलाएं जितनी आसानी से अपनी बातें कह देती हैं, उस तरह से पुरुष खुद को एक्सप्रेस नहीं कर पाते। जब पुरुष खुद को बिल्कुल भी एक्सप्रेस ना करें, तो उन्हें समझना लगभग नामुमकिन हो जाता है। इसीलिए महिलाओं को अपना रिश्ता मजबूत करने के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि उनके पति की जरूरतें क्या है और क्या वे डिजर्व करते हैं। 



ययाति को श्राप

कुछ समय बाद देवयानी को ये बात पता चली तो वह अपने पिता शुक्राचार्य के पास आ गई। देवयानी ने शुक्राचार्य को पूरी बात बता दी। ये बात सुनकर दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को शाप दे दिया कि ययाति अपनी जवानी खो देगा और बूढ़ा और नपुंसक हो जाएगा। वह युवा अवस्था में ही वृद्ध हो जाएगा। इस शाप से ययाति वृद्ध हो गए। लेकिन फिर उन्हें एहसास हुआ कि एक बूढ़ा और कमजोर पति और राजा किसी के काम का नहीं होता। लेकिन एक बार दिया गया श्राप वापस नहीं लिया जा सकता। इसे केवल संशोधित किया जा सकता है।

 इसलिए क्षमा याचना के बाद शुक्राचार्य ने श्राप को संशोधित कर दिया। राजा ययाति को अपनी खोई हुई जवानी वापस मिल जाएगी यदि उनके पुत्रों में से कोई भी खुद पर श्राप स्वीकार करने के लिए सहमत हो जाए। शुक्राचार्य ने कहा कि अगर उनका कोई पुत्र उन्हें अपनी जवानी दे दे तो वह दोबारा से जवान हो सकते हैं। ययाति के पांच बेटे थे, यदु देवयानी और ययाति का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने खुद पर श्राप स्वीकार करने से इनकार कर दिया। 

पुरु शर्मिष्ठा और ययाति का सबसे छोटा पुत्र था। वह खुद पर श्राप स्वीकार करने के लिए तैयार हो गया। पुरू ने अपनी जवानी पिता को दान दे दी। 

बदलते समय के साथ पिता और पुत्र के रिश्तों में बहुत बदलाव आया है। पहले जहां बच्चे अपने पिता जी से बात करने में डरते थे, वहीं आज के बच्चे अपने पिता के सामने काफी फ्रैंक हैं। यही वजह है के पिता और बेटे की बॉन्डिंग पेरेंटिंग में बेहद अहम रोल निभाती है। कई बार जाने अनजाने में पिता या बच्चे ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जिसके बाद उनके रिश्ते पहले जैसे नहीं रहते। ऐसी गलतियां पिता और बच्चे के बीच बंधे नाजुक से रिश्ते पर असर डालती हैं।हालांकि मैं यह समझता था कि जब बच्चे उम्र में बड़े हो जाते हैं, तब उनकी अपनी दुनिया बन जाती है। जिस कारण वो कई बार अपने फैसले माता-पिता पर थोपने लगते हैं। इस कारण कई बार पिता के आत्मसम्मान को ठेस भी पहुंच जाता है।

मै शुरू में  समूह को अपने दो बेटों, के बीच विभाजित करने की संभावना पर विचार कर रहा था, जो उस समय दोनों निदेशक मंडल में थे। उस वर्ष की गर्मियों तक, बड़े बेटे के लिए समूह  के अंतर्राष्ट्रीय प्रभागों, के नियंत्रण के साथ सिंगापुर स्थानांतरित होने की एक अस्थायी योजना थी। हालांकि, दिसंबर में,बड़े बेटे  और उनकी पत्नी  ने इसके बजाय मेरे साथ  एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कम्पनी में उनकी हिस्सेदारी के साथ-साथ कुछ अन्य पारिवारिक संपत्ति जैसे कि रियल एस्टेट होल्डिंग्स को छोड़ दिया गया। प्रोत्साहन सभी के लिए बेहद जरूरी है। कई बार पिता अपने बच्चे की सफलता पर भी प्रोत्साहित नहीं करते हैं, जिस कारण बॉन्ड और कमजोर होने लगता है। साथ ही कई बार बच्चे भी अपने पिता के किए गए कार्यों को प्रोत्साहित नहीं करते हैं, जिसका प्रभाव पिता पर भी होता है।

इसके बाद वे मेरी उस पोती जिसे में सबसे ज्यादा प्यार करता था तथा उड़ान के समय उसकी फोटो डेशबोर्ड पर रखता था सहित अपने चार बच्चों के साथ सिंगापुर चले गए और  परिवार से कटु संबंध तोड़ लिए। कथित तौर पर मेरे व बेटे  के साथ प्रबंधन तकनीक को लेकर मतभेद था। फिर उन्होंने सिंगापुर की नागरिकता प्राप्त कर ली थी और एक परामर्श फर्म चला रहे थे। समय सभी के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन इस भागदौड़ भरे जीवन में भी पिता और बच्चों दोनों को ही एक-दूसरे के लिए समय निकालना चाहिए। अक्सर बच्चे बड़े होने के बाद पिता के साथ वक्त नहीं बिता पाते, जिस कारण उनके बीच दूरियां बढ़ जाती हैं।

बड़े बेटे के परिवार से अलग होने के बाद, मैने ने समूह का नियंत्रण छोटे बेटे को सौंपने का फैसला किया और चेयरमैन-एमेरिटस के रूप में बना रहा । फिर बड़े बेटे के चार बच्चों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में मुझ पर पर मुकदमा दायर किया, जिसमें दावा किया गया कि उनके माता-पिता और उनके बीच  समझौते में उनके अधिकारों को ध्यान में नहीं रखा गया था। 

वे चाहते थे कि समझौता रद्द हो और कंपनी सहित छोड़ी गई होल्डिंग्स में उनकी हिस्सेदारी की पुष्टि हो। इसके बाद ही मैने अपनी प्रारंभिक फाइलिंग के पांच दिन बाद, कंपनी  में अपने सभी शेयर, हिस्सेदारी, जिसकी कीमत करोड़ों में थी, छोटे बेटे  को हस्तांतरित कर दिए। अदालती कार्यवाही के हिस्से के रूप में, उनके पोते-पोतियों ने इस हस्तांतरण को रोकने के लिए अदालत से हस्तक्षेप करने की कोशिश की, लेकिन न्यायाधीश ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। 

अंततः वे अपने मामले में सफल नहीं हुए। यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती मैने की। मैं चाहता तो अपने बड़े बच्चे के साथ किये अपने व्यहार की गलती को सुधार सकता था।  लेकिन मैने एक और गलती कर अपने जीते जी अपनी सारी सम्पत्ति बेटे को दे कर अपने लिए यह परिस्थिति निर्मित कर ली। 




ययाति की जवानी

राजा ययाती ने अपने जीवन के सौ वर्ष पूर्ण कर लिए थे। इन सौ वर्षों में सौ रानियों के साथ ऐश्वर्य का उपभोग किया था। उनके सौ-सौ राजमहल और सौ ही पुत्र थे। जब सौ साल पूर्ण हो गए तो मृत्यु उन्हें लेने आ पहुंची और यमराज बोले, ‘‘चलो ययाति, तुम्हारा आयुष्य पूर्ण हो गया।’’

ययाति ने कहा, ‘‘अरे, मृत्यु तुम तो बहुत जल्दी आ गई। अभी तुम जाओ, थोड़े दिन बाद आ जाना। अभी तो जीवन के कई इंद्रधनुष देखने बाकी हैं।’’

मृत्यु किसी के द्वार आ जाए तो खाली हाथ वापस नहीं जाती। सो मृत्यु ने कहा, ‘‘राजन् अगर तुम्हारे स्थान पर तुम्हारे परिवार का कोई व्यक्ति मरने को तैयार हो जाए तो तुम्हें सौ वर्ष की आयु और मिल सकती है।’’

राजा ने अपने पुत्रों की ओर देखा। निन्यानवे पुत्रों ने तो मरने से इंकार कर दिया, पर सबसे छोटा पुत्र मरने को तैयार हो गया।

उसने कहा, ‘‘मेरे मरने से अगर मेरे पिता को सौ  वर्ष की आयु मिलती है तो  मैं यह कुर्बानी देने को तैयार हूं।’’

मृत्यु छोटे पुत्र को ले जाती है। 

कंपनी के शीर्ष पर अपने कार्यकाल के दौरान, मैने कंपनी को भारत में सबसे प्रसिद्ध कपड़ों के ब्रांडों में से एक बना दिया, यह मेरे कार्यकाल के अधिकांश समय में परिवार की किसी भी कंपनी में सबसे सफल रही। मेने एक औद्योगिक समूह में भी विस्तारित किया, इसे केवल ऊनी वस्त्र निर्माता से सिंथेटिक कपड़े, डेनिम, स्टील, फाइल और सीमेंट का उत्पादन करने के लिए ले गए। एक वक्त था, जब ‘द कंप्लीट मैन’ से लेकर ‘फील्स लाइक हैवन’ तक का सफर करने वाले ब्रांड  के बिना शादियां अधूरी रह जाती है। जब तक दूल्हे को शादी में मेरी कम्पनी का सूट न मिले, फंक्शन पूरा नहीं होता। सूट मतलब मेरा ब्रांड होता । सौ  साल पहले शुरू हुए इस देसी ब्रांड ने दुनियाभर में अपना डंका बजाया। मैंने पांच हजार घंटों से ज़्यादा उड़ान का अनुभव हासिल कर लिया था।


ययाति की वासना और महत्वकांक्षा

ययाति सौ वर्ष की आयु पा लेता है। पुन: सौ वर्ष बाद मृत्यु का पदार्पण होता है, पुनः वही नाटक होता है, पुन: सबसे छोटा बेटा अपनी आहुति देता है। इस तरह दस बार राजा बार-बार बेटे की कीमत पर एक हजार वर्ष जी लेता है, लेकिन उसकी कामनाएं और तृष्णाएं अपूर्ण ही रहती हैं। वह चाहता है कि कुछ और उपभोग कर ले, राजसत्ता भोग ले।

मौत कहती है राजन बहुत जी लिए पर राजा ने कहा तुम अगर मेरे बेटे से खुश हो जाती हो तो मेरे सौ बेटे हैं। निन्यानवे से काम चला लूंगा।दसवीं बार फिर सबसे छोटा बेटा तैयार होता है।इसलिए पुरु को बुढ़ापे का सामना करना पड़ा, जबकि उनके पिता, ययाति युवा रहे और उन्होंने अपना पूरा जीवन जिया। उन्होंने अपनी चिरस्थायी जवानी का आनंद तब तक लिया जब तक उन्हें यह एहसास नहीं हो गया कि युवावस्था और पौरुष संतुष्टि नहीं लाते हैं।अंत में, जब उत्तराधिकारी की घोषणा करने का समय आया, तो ययाति ने पुरु को अपना उत्तराधिकारी चुना।


मैं एक उत्साही एविएटर रहा हूँ। मैने 5000 घंटों से ज़्यादा उड़ान का अनुभव हासिल कर लिया था। मेरे एविएशन क्षेत्र में हॉवर्ड ह्यूजेस और जे.आर.डी. टाटा आदर्श थे ।मैने लंदन के बिगिन हिल एयरपोर्ट से नई दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट तक 23 दिनों में अकेले उड़ान भरकर माइक्रोलाइट एयरक्राफ्ट के लिए स्पीड-ओवर-टाइम धीरज का रिकॉर्ड बनाया। पूर्व रिकॉर्ड धारक ब्रायन मिल्टन और तत्कालीन राज्य मंत्री  ने उन्हें बधाई देने के लिए दिल्ली में टरमैक पर उनसे मुलाकात की थी । मेरे लिये यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा भूमध्य सागर के पार क्रेते और अलेक्जेंड्रिया के बीच उड़ान भरना था; मुझे गहरे पानी से डर लगता हैं तो मैने पैर को लाइफ़ जैकेट पहनकर और अपनी गोद में शार्क रिपेलेंट की कैन रखकर उड़ाया। जब मैं हवा में ऊब जाता था, तो वह अपनी दो साल की पोती अनन्या की तस्वीर के साथ काल्पनिक बातचीत करके समय बिताता था।

मेने अपने अमेरिकी सह-पायलट डैनियल ब्राउन ने  फेडरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनेल द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय विश्वव्यापी हवाई दौड़ में स्वर्ण पदक जीता, जो इसकी 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया था।मैने भारत के सम्मान में बाघ की तरह दिखने वाले सेसना कॉन्क्वेस्ट को उड़ाया; यह दौड़ में एकमात्र भारतीय था। मेने 56 घंटे और 4 मिनट की उड़ान भरी, 23 दिनों में नौ देशों से गुज़रते हुए मॉन्ट्रियल से रवाना हुए और वापस लौटा  जब मै जीत के साथ मॉन्ट्रियल वापस आया, तो मेरे बड़े बेटे  ने मेरे  सिर पर टरमैक पर शैंपेन डाली थी । मेरे पास 2023 तक हॉट एयर बैलून में ऊंचाई का विश्व रिकॉर्ड था। उड़ान मुंबई के एक रेसकोर्स से हुई, बहुत धूमधाम के साथ - वहां एक ब्रास बैंड बज रहा था, मुझे देखने के लिए सैकड़ों दर्शकों की भीड़ थी, और रिपोर्ट करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी वहां मौजूद था।

लेकिन मेरे छोटे बेटे को कार रेसिंग का शौक हैं और उसने  पिरेली फेरारी ओपन में दो रेस जीतीं और  फेरारी चैलेंज यूरोप चैंपियनशिप में डबल पोडियम फिनिश हासिल की, उनके पास मैकलारेन और लेम्बोर्गिनी जैसी महंगी सुपरकारों का संग्रह है। वह एक उत्साही कार चालक हैं और दुनिया भर में सबसे असाधारण कार संग्रह में से एक का दावा भी करता हैं। हाल ही में, उन्होंने अपने कलेक्शन में एक मासेराती  को जोड़ा है। हालाँकि, फेरारी  कार  उसने मासेराती से पहले खरीदी थी।  

मेरे हमेशा से एक ही कामना थी की मेरी कम्पनी का कारोबार देश में सबसे बड़ा होना चाहिए। मेरी महत्वाकांक्षा रही कि मेरे बाद  छोटा बेटा कम्पनी नई उचाईयों पर ले जाये। छोटा बेटा सब  तरह से योग्य है और मेरी बात मनाता है। ययाति के बड़े बेटों ने बात नहीं मानी थी।  उसके सबसे छोटे बेटे ने ही बाप का साथ दिया था। उसी तरह मेरा बड़ा बेटा मेरी बात नहीं मनाता था।  केबल छोटा बेटा ही मेरे साथ काम करने  को तैयार था। मेरे बड़े बेटे को हमेशा यह शिकायत भी रही थी कि मै अपने छोटे बेटे को अधिक चाहता हूँ। इसलिए कम्पनी के बटवारे को रोकने के लिए मैने अपने हिस्से के शेयर अपने छोटे बेटे के नाम कर दिये। कम्पनी की कमान भी उसे सौप दी। 




विवाद और संपत्ति का हस्तांतरण

मैने लगभग पैतीस साल कम्पनी की कमान सम्हाली। मेरे परिवार में सम्पत्ति बटवारे का श्राप हमेशा रहा है। हर पीढ़ी में कारोबार के बटवारे के मुकदमे रहे है। मुझे पता था कि जब बड़े बेटे को लगता है कि उसके पिता छोटे बेटे का पक्ष लेते हैं, तो इससे परिवार में असंतोष, संघर्ष और तनावपूर्ण संबंध पैदा हो सकते हैं, जिसका असर बड़े बेटे की भावनात्मक भलाई और उसके पिता और भाई के साथ भविष्य के संबंधों पर पड़ सकता है। परिवार में भाई-बहनों के बीच प्रतिद्वंद्विता सिबलिंग राइवलरी  एक सामान्य मनोवैज्ञानिक घटना है, जो बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या और कभी -कभी नकारात्मकता को जन्म देती है, खासकर जब वे माता-पिता का ध्यान और प्यार पाने के लिए संघर्ष करते हैं। अक्सर, भाई-बहनों के बीच प्रतिद्वंद्विता दूसरे बच्चे के परिवार में आने से पहले ही शुरू हो जाती है, और बच्चों के बड़े होने पर भी जारी रहती है और खिलौनों से लेकर ध्यान तक हर चीज़ के लिए प्रतिस्पर्धा करती है। जैसे-जैसे बच्चे विकास के विभिन्न चरणों में पहुँचते हैं, उनकी बदलती ज़रूरतें इस बात को प्रभावित कर सकती हैं कि वे एक-दूसरे से कैसे संबंध रखते हैं।मैने अपने बच्चों में अक्सर देखा है कि बच्चों के बीच आपस में बहुत ज्यादा लड़ाइयां होती थी  कभी बच्चों की  से शिकायत होती है कि उन्हें बराबरी का प्यार नहीं मिल रहा है, तो कभी बच्चे इस बात पर झगड़ जाते हैं कि उन्हें उनकी पसंद की चीजें नहीं मिल पाती है। भाईयों  के बीच प्रतिद्वंद्विता वयस्कता में भी जारी रही, और भाईयों के रिश्ते वर्षों में नाटकीय रूप से बदल गये। 

हालांकि मैने अपनी संतानों में सम्पत्ति के बटवारे के झगड़ों को टालने की भरसक कोशिश की। लेकिन होनी को कौन टाल सका है। मेरे व मेरे बड़े बेटे में जब मन मुटाओ बढ़ने लगे तो मेने अपना विदेश का कारोबार उसको सौप कर उसे विदेश भेज दिया। लेकिन जब उसके बच्चे बड़े हो गए तो उन्होंने सम्पत्ति का विवाद कोर्ट में दायर कर दिया। 

मैने समूह में अपनी पूरी हिस्सेदारी अपने बेटे को दे दी। इन शेयरों की कीमत उस वक्त करोड़ों रुपये थी। करोड़ों  की कंपनी मैने बेटे को सौंप दी। इसके बाद से बाप-बेटे का रिश्ता बिगड़ने लगा। एक फ्लैट को लेकर दोनों के बीच इतना विवाद हुआ कि बेटे ने अपने पिता को घर से बेघर कर दिया। इसके बाद पिता-पुत्र के बीच विवाद शुरू हो गया और मैने आरोप लगाया कि उनसे सब कुछ छीन लिया। जिस शख्स ने ब्रांड को घर-घर तक पहुंचाया, उसे खुद घर से बेघर होना पड़ा।

 तरक्की के सातवें आसमान पर पहुंचे ब्रांड के मालिक अपने चौतीस मंजिला हाउस से बेघर होकर किराए के मकान में रहने को मजबूर हो गए। मुंबई के अपस्केल ब्रीच कैंडी इलाके में स्थित 30 मंज़िला आलीशान घर है। यह घर शहर का दूसरा सबसे महंगा घर है। इस हवेली में निजी संग्रहालय, स्पा, जिम, हेलीपैड और सिंघानिया के लग्जरी कार कलेक्शन वाली पांच मंज़िला पार्किंग सुविधा सहित विश्व स्तरीय सुविधाएँ हैं। अपनी आकर्षक वास्तुकला और भव्य अंदरूनी हिस्सों के साथ, आलीशान जीवन शैली का उदाहरण है और मुंबई के कुलीन वर्ग में  परिवार की विरासत और धन के प्रतीक के रूप में खड़ा है।

मेरा बेटा अपने उल्लेखनीय व्यावसायिक कौशल और विलासिता के प्रति गहरी प्रशंसा के लिए जाना जाता हैं। उसका विशाल निवास, उनकी संपत्ति और परिष्कृत स्वाद का बयान दोनों के रूप में कार्य करता है। यह हवेली न केवल रहने की जगह है, बल्कि एक स्मारक है जो दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध आवासों की भव्यता को टक्कर देती है, जो परंपरा और आधुनिक विलासिता का मिश्रण पेश करती है।

यह हाउस अपने निवासियों को विश्व स्तरीय सुविधाओं की एक श्रृंखला के साथ अद्वितीय विलासिता का जीवन प्रदान करता है। निवास में एक निजी संग्रहालय है जो कपड़ा व्यवसाय में  परिवार की भागीदारी के उल्लेखनीय इतिहास का दस्तावेजीकरण करता है।घर के बाहर मेरे पिता की भव्य मूर्ति एक संगमरमर के विशाल मण्डप में लगाई गई है।   परम विश्राम के लिए, एक स्पा और वेलनेस सेंटर, एक अत्याधुनिक जिम और दो भव्य स्विमिंग पूल हैं। घर में सिनेमाई मनोरंजन के लिए एक होम थिएटर और निजी जेट द्वारा आसान पहुँच के लिए एक हेलीपैड भी है। ये सुविधाएँ सबसे समझदार स्वाद को पूरा करने और अत्यधिक आराम और गोपनीयता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।

इस हाउस की सबसे शानदार विशेषताओं में से एक इसकी विशाल पार्किंग सुविधा है। हवेली में पाँच मंजिलों में पार्किंग की जगह है, जो सुनिश्चित करती है कि मेरे बेटे  के लग्जरी वाहनों के संग्रह को अच्छी तरह से समायोजित किया जा सके। कारों के प्रभावशाली बेड़े में लेम्बोर्गिनी गैलार्डो एलपी570 सुपरलेगेरा, लोटस एलीज़ कन्वर्टिबल, निसान स्काईलाइन जीटीआर, फेरारी 458 इटालिया, ऑडी क्यू7 और होंडा एस2000 जैसे मॉडल शामिल हैं। ये वाहन बेटे  के बेहतरीन ऑटोमोबाइल के प्रति गहरे जुनून और सभी शानदार चीजों के प्रति उनके प्यार को दर्शाते हैं।इस स्थान से अरब सागर का दृश्य दिखाई देता है और जो इस हाउस को शहर के उच्च समाज में धन और प्रभाव का सच्चा प्रतीक माना जाता है।

मैने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि मैने अपने बेटे को सब कुछ देकर एक बड़ी गलती की थी। मैने आरोप लगाया कि  उनसे घर, गाड़ी और ड्राइवर छीन लिया। जो कभी हवाई जहाज उड़ाते थे, वो पैदल चलने को मजबूर हो गए। इतना ही नहीं नाम के साथ चेयरमैन-एमेरिटस लिखने तक का अधिक छीन लिया। हालात ऐसे है कि अपने ही घर में रहने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है ।


जीवन से असंतुष्टि 

मैने हमेशा कहा है कि में केवल  अपने पिता के कहने पर ही व्यवसाय में गए थे। उन्हें एक छात्र के रूप में वाणिज्य और अर्थशास्त्र के विषय पसंद नहीं थे, और उन्हें जीवन में बाद में ही इनकी सराहना करने का मौका मिला जब वह स्नातकोत्तर प्रबंधन कक्षाएं पढ़ा रहे थे। उन्होंने सोचा है कि अगर वह वैज्ञानिक या इंजीनियर बनते तो शायद उनका भला होता, क्योंकि स्कूल में गणित और विज्ञान उनके सबसे अच्छे विषय थे और उन्हें बाकी सभी विषयों में खराब अंक मिलते थे।

उनके एक और चचेरे भाई ही थे जो पिता की मृत्यु के बाद शुरू में कम्पनी को संभालना चाहते थे। हालांकि, कम्पनी के  वरिष्ठ अधिकारियों ने इस संभावना पर नौकरी छोड़ने की धमकी दी, और कहा कि वे केवल सबसे बड़े बेटे के लिए काम करेंगे। जो में ही था शुरुआत में उन्हें चेयरमैन पद में कोई दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि वे खुश थे, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के विचार सुनने के बाद वे इसे लेने के लिए सहमत हो गए।

जब मेरे बेटे ने मुझे कम्पनी व घर से बाहर कर दिया तो मेरे नौकर चाकर गायब हो गये। गाड़ी ड्राइवर चले गये। मेरा निजी काम जो करता था तथा मेरे निजी कागज जो सम्हालता था वह गायब है। ना तो फोन उठता है ना आता है।  आज मेरे पास कोई डाक्यूमेंट प्रूफ नहीं बचा है।  सब मेरे बेटे ने गायब कर इड़ा है। मुझ से मिलने कोई नहीं आता ना कोई बात करता है।  कभी - कभी मेरा बेटा उसकी माँ से मिलने आता है यदि उस समय में वहां से निकलू तो वह मेरी ओर देखता भी नहीं है। इन सब बातों से मैं इतनी ज्यादा मानसिक पीड़ा से गुजर रहा हूँ जो मर्मान्तक है। अब में अपने आप से ही बात करता रहता हूँ। मेरे दादा जी पिताजी कभी - कभी मेरे ख्यालों में मुझसे बात करते है। मुझे ययाति को कहानी सुनाते है।  समय काटने का यहीं मेरा तरीका है। 

जब तक आपके पास जरुरत का धन नहीं होता है तो आप कमाने में व्यस्त रहते हो।  आप को हर नया सवेरा एक आशा की किरण ले कर आता है। लेकिन जब आप के पास जरुरत से ज्यादा धन आ जाता है तो सब आशाऐं मर जाती है। जीवन में पहली बार आप को अहसास होता है कि धन से ख़ुशी नहीं मिल सकती। हालांकि धन से आप दुनिया की महगी से महगी बस्तुऐं खरीद सकते है, पर मन की शांति नहीं। मेरे जैसे लोगों  के लिए उपलब्ध विभिन्न निवेश विकल्पों के बावजूद, उन्हें कई जोखिमों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 



असफलताएँ 

हालांकि, उनके चेयरमैन पद के अंतिम समय में कंपनी को परेशानी का सामना करना पड़ा, क्योंकि मंदी ने कंपनी के मुनाफे को बहुत कम कर दिया। इस दौरान कंपनी ने अपने कई डिवीजनों को बिक्री के लिए रखा। अध्यक्ष पद को अपने बेटे को सौंप दिया, जिन्होंने अपने कार्यकाल की शुरुआत में कंपनी के सिंथेटिक्स, स्टील और सीमेंट डिवीजनों की बिक्री पूरी की, और बाकी को अपने पास रखने का विकल्प चुना। मैं गैर-कार्यकारी क्षमता में चेयरमैन-एमेरिटस के रूप में बना रहा। मेरे और बेटे के बीच विवाद शुरू हो गया। विवाद एक फ्लैट को लेकर शुरू हुआ था, जिसे मैं बेचना चाहता था, लेकिन बेटा इसे बेचना नहीं चाहता था। विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों के रिश्ते खराब होने लगा। बेटे ने मुझ को दरकिनार करना शुरू कर दिया।

हालांकि मैं काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था। मैं  चाहता  था  कि पत्नी मेरा और मेरे काम का सम्मान करे। मुमकिन है कि मैं अपने काम में बहुत ज्यादा अच्छे ना हों, लेकिन मुझे सम्मान मिलना ही चाहिए। रिलेशनशिप को मजबूत बनाए रखने के लिए यह काफी जरूरी हो जाता है। अगर किन्हीं वजहों से महिलाएं अपने पति को और उनके काम को महत्व नहीं देतीं, तो इससे उनके बीच दूरियां बढ़ जाती हैं और कई बार इससे रिश्ते बोझिल भी हो जाते हैं। पुरुष चाहते हैं कि आप उनकी छोटी-छोटी चीजों की सराहना करें और उन्हें प्रोत्साहित करें। उन्हें अच्छा लगता है जब उनकी पत्नी उनके काम की तारीफ करती है या उनके लिए किसी निर्णय को सही बताती है। घर-परिवार में जब महिलाएं अपने पति की प्रशंसा करती हैं या उन्हें सपोर्ट करती हैं तो यह चीज भी पति को काफी ज्यादा पसंद आती है। इन छोटी चीजों के मायने बहुत बड़े होते हैं। इससे पति-पत्नी के बीच संबंध मधुर बनते हैं और छोटी-मोटी बात पर तनाव नहीं होता।

पति जिंदगी के हर मोड़ पर अपनी पत्नी को साथ खड़ा देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि पत्नी उनके लिए ईमानदार रहे और उन पर भरोसा रखे। जीवन के उतार-चढ़ावों, फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स और घर-परिवार के विवादों के बीच अगर महिलाएं अपने पति का साथ निभाती हैं तो उनका रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत होता है। इन चीजों से पति का अपनी पत्नी पर विश्वास और भी ज्यादा बढ़ जाता है। लेकिन मेरे साथ ऐसा हो ना सका। मेरी पत्नी हमेशा से काम बालने बाली थी। इस कारण जितना अच्छा रिश्ता उनका अपने बेटे के साथ है उतना सहज मेरे साथ नहीं रहा। 

परिवार में प्रत्येक बच्चा यह परिभाषित करने के लिए प्रतिस्पर्धा करता है कि वह एक व्यक्ति के रूप में कौन है और यह दिखाना चाहता है कि वह अपने भाई-बहनों से अलग है। बच्चों को लग सकता है कि उन्हें अपने माता-पिता का ध्यान, अनुशासन और जवाबदेही असमान मात्रा में मिल रही है। बच्चे उन परिवारों में सबसे अधिक लड़ते हैं जहाँ न तो यह समझ है कि लड़ाई संघर्षों को हल करने का एक स्वीकार्य तरीका नहीं है और न ही ऐसे संघर्षों से निपटने का कोई वैकल्पिक तरीका है; जिन परिवारों में शारीरिक लड़ाई निषिद्ध है लेकिन गैर-शारीरिक संघर्ष समाधान जैसे, मौखिक तर्क की कोई विधि की अनुमति नहीं है, रोज़मर्रा के विवादों का लंबे समय तक चलने वाली शत्रुता में रूपांतरण और संचय लगभग विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है। माता-पिता और बच्चों के जीवन में तनाव भाई-बहन की प्रतिद्वंद्विता को बढ़ाते हुए संघर्ष पैदा कर सकता है।यह सब की समझ उस समय मुझ में नहीं थी और व्यापार के कारण मेरे पास परिवार को देने के लिये पर्याप्त समय भी नहीं होता था। आज में अपनी इन गलतियों की सजा ही भुगत रहा हूँ। 

खुद को एक बहुत ही अमीर व्यक्ति के रूप में कल्पना करें। आपने अपना पूरा जीवन अपने पैसे कमाने और रखने के लिए काम किया है और अब आपने काफी सारा पैसा जमा कर लिया है। आपने ऐसा क्यों किया? शायद इसलिए क्योंकि आपको लगता था कि ज़्यादा पैसे होने से आप अच्छा महसूस करेंगे। इससे आप तनावमुक्त, सफल और सहज महसूस करेंगे। आप खुद को ज़्यादा पसंद करेंगे। दूसरे लोगों से सम्मान पाएँगे। बदलाव के लिए खुद को सार्थक महसूस करेंगे। और अब जब आपके पास वो पैसा है...तो आपको कैसा लगता है?

आप उदास महसूस करते हैं। क्यों? क्योंकि इससे आपको वो शानदार एहसास नहीं हुए। हाँ, थोड़ी देर के लिए आपको बहुत अच्छा लगा। जब आप अपने पैसे से नई चीज़ें खरीदते थे जो आप चाहते थे तो आपको अच्छा लगता था। जब आप यात्रा करते थे तो आपको अच्छा लगता था। लेकिन फिर वो एहसास खत्म हो गए और आपको ऐसा लगने लगा जैसे आप अपना पूरा जीवन...अपर्याप्त, अयोग्य, अयोग्य, आत्मविश्वास की कमी, आदि। वो सारा काम बेकार था। आप वही पुराने मूर्ख हैं जो आप हमेशा से थे। और आप खुद को दुखी पाते हैं। 

और अब, क्योंकि आप अमीर हैं, इसलिए आप अपने सारे पैसे को सुरक्षित रखने के बारे में भी चिंतित हैं! क्या होगा अगर मंदी आ जाए? क्या होगा अगर आपको धोखा मिल जाए? क्या आप उन लोगों पर भरोसा कर सकते हैं जिन्हें आप इसे दे सकते हैं कि वे इसे आपके लिए समझदारी से निवेश करें? आपको इसे कहाँ निवेश करना चाहिए? अगर आप तय करते हैं कि आप दूसरों पर भरोसा नहीं कर सकते तो आपको इसे कहाँ रखना चाहिए? क्या आप अपने जैसे दूसरों पर भरोसा कर सकते हैं कि वे आपके लिए हैं और आपके सारे पैसे के लिए नहीं और आपकी उदारता के ज़रिए वे क्या खरीद सकते हैं? यह चिंता और चिंता का एक अलग स्तर है! और क्योंकि आपके पास ये सारी अच्छी चीज़ें हैं, इसलिए लोग आपको अलग नज़रिए से देखते हैं। हो सकता है कि वे आपके आस-पास सहज महसूस न करें। इसलिए, आप संभवतः दुनिया से ज़्यादा अलग-थलग और कटे हुए हैं।

आखिरकार, लेकिन महत्व में अंतिम नहीं, पैसा खुशी नहीं खरीद सकता क्योंकि खुशी सिर्फ़ हमारे भीतर से आती है। यह हमारे भीतर है और हमेशा से रहा है! आखिरकार आपको इतना सारा पैसा कमाने की ज़रूरत नहीं थी। अगर आपको यह पता होता, तो आप शायद उस समझ और बुद्धि का इस्तेमाल खुद पर काम करने और अपनी खुशी को खोजने के लिए करते ताकि यह बाहर निकलना शुरू हो जाए और आप जो हैं और जिस तरह से आप रहते हैं, वह बन जाए। साथ ही, जब आप इस तरह का विशेष काम करना शुरू करते हैं, तो आप केवल क्षणिक खुशी का अनुभव नहीं करेंगे, आप सच्ची खुशी का अनुभव करना शुरू कर देंगे। और यह एक दिन आपका आदर्श बन जाएगा, दुनिया में रहने का आपका तरीका। और जब आप उस बिंदु पर पहुँच जाते हैं, जिसे हम ज्ञानोदय कहते हैं, तो आपको अब पैसे की ज़रूरत नहीं होगी... कम से कम उस तरह से नहीं जैसा हम सोचते हैं। 

मुझे लगता है कि मैं ग्रीड सिंड्रोम का शिकार रहा हूँ क्योकि  मेरा व्यवहार अत्यधिक आत्म-केंद्रित व्यवहार रहा है। लालची लोग हमेशा दूसरों की ज़रूरतों और भावनाओं के बारे में बहुत कम परवाह करते हुए “मैं, मैं, मैं” कहते रहते हैं। ईर्ष्या और लालच जुड़वाँ भाई-बहन हैं। जहाँ लालच में ज़्यादा से ज़्यादा संपत्ति जैसे कि धन और शक्ति की तीव्र इच्छा होती है, वहीं ईर्ष्या एक कदम आगे जाती है और इसमें लालची लोगों द्वारा दूसरों की संपत्ति की तीव्र इच्छा शामिल होती है। लालची लोगों में सहानुभूति की कमी होती है। दूसरों की भावनाओं के बारे में चिंता करना-उनकी आदतों का हिस्सा नहीं है। इसलिए, उन्हें दूसरों को दर्द पहुँचाने में कोई हिचक नहीं होती। सहानुभूति न रख पाना, दूसरों के विचारों और भावनाओं में उनकी वास्तविक रुचि की कमी और अपने व्यवहार और कार्यों के लिए व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी लेने की उनकी अनिच्छा के कारण उनके साथ रहना बहुत मुश्किल होता है।

वे कभी संतुष्ट नहीं होते। लालची लोग दुनिया को एक शून्य-योग खेल के रूप में देखते हैं। यह सोचने के बजाय कि पाई के बड़े होने से सभी को लाभ होगा, वे पाई को एक स्थिर मानते हैं और सबसे बड़ा हिस्सा चाहते हैं। वे वास्तव में मानते हैं कि वे अधिक के हकदार हैं, भले ही यह किसी और की कीमत पर हो। लालची लोग हेरफेर करने में माहिर होते हैं। वे दूसरों द्वारा किए गए काम का श्रेय लेने में अत्यधिक प्रतिभाशाली होते हैं। वे आकर्षक हो सकते हैं, लेकिन उनका मुख्य एजेंडा अपने आस-पास ऐसे लोगों को रखना है जो उनके अहंकार को बढ़ावा दें। लालची लोग अल्पावधि में रहते हैं; वे अपनी तत्काल जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और परिणामों का सामना करने के लिए दूसरों पर छोड़ देते हैं। उदाहरण के लिए, निगमों के नेताओं के रूप में, वे भविष्य के नवाचार के लिए निवेश करने या अपने कर्मचारियों के साथ अर्जित लाभों को साझा करने के बजाय अपने बोनस प्राप्त करने में अधिक रुचि रखते हैं। अपनी भौतिक आवश्यकताओं की खोज में, वे कोई सीमा नहीं जानते। लालची लोग सीमाओं को बनाए रखने में अच्छे नहीं होते। वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नैतिक मूल्यों और नैतिकता से समझौता करेंगे। वे इस तरह के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए नियमों और विनियमों को चकमा देने के लिए खामियों या चतुर तरीकों की तलाश करते हैं।

मेहनत तो कई लोग करते हैं, लेकिन कामयाब सब नहीं होते. ऐसा इसलिए क्योंकि अमीरों में कुछ ऐसी आदतें होती है, जिनके बारे में आम आदमी सोच भी नहीं सकते। धन के प्रदर्शन या दिखावा, जिसे "शो ऑफ वेल्थ" कहा जाता है, अमीर लोगों द्वारा अक्सर किया जाता है, जो अपनी संपत्ति को दूसरों को दिखाने के लिए करते हैं, जैसे कि महंगी चीजें खरीदना या जीवनशैली में दिखावा करना। यह मेरे द्वारा हमेशा किया गया इसी कारण यह दुर्गुण मेरे बेटे में भी बहुत बाद चढ़ कर आगया। 

अमीर लोग अपनी सकारात्मक और नकारात्मक भावनाओं को काबू करने में माहिर होते हैं।  वे अपने आसपास की दुनिया के सामने अपनी भावनाओं को दिखाने से बचते हैं। वे ज्यादातर आम लोगों की तरह प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। वे एक्‍सट्रोवर्ट, आउटगोइंग और नए अनुभवों के लिए खुले रहते हैं। लोगों के मन में अमीरों को लेकर बनी एकांतप्रिय और इंट्रोवर्ट वाली छवि को खारिज करता है।  अमूमन लोग यही सोचते हैं कि अति-अमीर लोग ज्‍यादातर वक्‍त अकेला रहना पसंद करते हैं। उन्‍हें किसी से ज्‍यादा बातचीत करना पसंद नहीं होता है। 



ययाति का त्याग

मृत्यु उसे ले जाने के लिए आगे बढ़ती है तो वह कहता है, ‘‘मौत! बस एक मिनट के लिए ठहरो, तुम तो जानती हो मैं कौन हूं? मैं वहीं बेटा हूं, जो दस बार इस घर में जन्म लेकर बचपन में ही मरता रहा हूं लेकिन आज मरने से पहले पिता से एक सवाल जरूर करना चाहूंगा।’’

तब उसने पिता से पूछा, ‘‘पिता जी! आपने एक हजार वर्ष का जीवन जिया है, लेकिन क्या अभी तक तृप्त हो पाए हैं?’’

पिता ने कहा, ‘‘बेटा, यह जानने के बाद कि तुम ही वह मेरे पुत्र हो जिसने दस बार अपना जीवन गंवाया, यही कहूंगा कि सच्चाई तो यह है कि एक हजार वर्षों के भोगोपभोग के बाद भी स्वयं को अतृप्त-अधूरा ही समझता हूं।’’

छोटे बेटे ने कहा, ‘‘मृत्यु, मुझे मेरे प्रश्र का उत्तर मिल गया। अब मैं तुम्हारे साथ आराम से चल सकूंगा। यद्यपि पहले भी नौ बार जा चुका हूं लेकिन तब मेरे मन में थोड़ी दुविधा रहती थी कि मैं तो जीवन जी भी न पाया और जाना पड़ रहा है, लेकिन आज मन में संतोष है कि जो पिता एक हजार साल का जीवन जीकर भी असंतुष्ट और अतृप्त रहा तो मैं सौ साल का जीवन जीकर भी कौन-सा तृप्त हो जाऊंगा?

जब हम भी बच्‍चे थे तो अपने भाई-बहनों से बचकानी बातों पर भी बहुत बड़ा झगड़ा कर बैठते थे और आज सोचते हैं तो हंसी निकल जाती है। ये सब हमारे पेरेंट्स के लिए कितनी बड़ी सिरदर्दी होती थी। दोनों के बीच किसी एक को सही बताना और फिर दूसरे को मनाना, पेरेंट्स के लिए किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं होता था।

मुझे लगता है कि हर माँ बाप को पहलीवार माता पिता बनाने के पूर्व पेरेंटिंग की ट्रेनिंग होनी चाहिये ताकि वे समझ सके कि  दो बच्‍चों के बीच कभी तुलना नहीं करनी चाहिए। दो बच्‍चों के बीच तुलना करने पर उन्‍हें लगने लगेगा कि उन्‍हे अपने भाई या बहन से बेहतर बनना है और इस चक्‍कर में उनके अंदर आत्‍म-सम्‍मान को चोट पहुंच सकती है। भाई-बहन का रिश्ता तब माता-पिता-बच्चे के रिश्ते के कई पहलुओं को शामिल कर सकता है। 

बच्चों द्वारा अनुभव की जाने वाली पेरेंटिंग शैली इस बात को प्रभावित करती है कि भाई-बहन अपने कौशल और रुचियों के मामले में कैसे अलग-अलग तरीके से विकसित होते हैं। एक अध्ययन के अनुसार  "हालांकि वे औसतन पचास प्रतिशत आनुवंशिक रूप से समान होते हैं, और आमतौर पर एक ही घर में बड़े होते हैं, पूर्ण जैविक भाई-बहन आमतौर पर एक-दूसरे से उतने ही समान होते हैं, जितने वे अजनबियों से होते हैं"। बड़े परिवार की गतिशीलता के भीतर बच्चे की आत्म-छवि इन भिन्नताओं से प्रभावित होती है। माता-पिता द्वारा प्रारंभिक वर्गीकरण इस बात को प्रभावित करता है कि बच्चा परिवार में अपनी जगह कैसे देखता है। 

भाई-बहन के भेदभाव और , परिवार के भीतर खालीपन को भरने और पारिवारिक संसाधनों के लिए संघर्ष और प्रतिद्वंद्विता को कम करने के लिए भाई-बहन एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। यह तंत्र समय के साथ भाई-बहनों को एक-दूसरे से अलग करने का कारण बनता है। शोध के अनुसार, बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं जब उन्हें अपनी भावी उपलब्धियों के लिए उच्च उम्मीदें होती हैं। इससे माता-पिता द्वारा भाई-बहनों के साथ किए जाने वाले व्यवहार में अंतर आ सकता है। यह प्रदर्शित किया गया है कि कई माता-पिता अपने बेटों की तुलना में अपनी बेटियों से अधिक अपेक्षाएँ रखते हैं। 

कई परिवारों में, सबसे बड़े बच्चे से भी उच्चतम मानकों की अपेक्षा की जाती है। सफलता के लिए बच्चे की क्षमता के दृष्टिकोण में यह असमानता पक्षपात, उपेक्षा और अलगाव की ओर ले जा सकती है - शारीरिक और भावनात्मक दोनों रूप से। बच्चे इस बात से प्रभावित होते हैं कि वे अपने माता-पिता को अपने भाई-बहनों के संबंध में क्या करते देखते हैं। जो बच्चे जीवन में कम उम्र में दुर्व्यवहार और कठोर पालन-पोषण का अनुभव करते हैं या जो माता-पिता-बच्चे के बीच हिंसक बातचीत देखते हैं, उनके अपने भाई-बहनों के प्रति आक्रामक तरीके से प्रतिक्रिया करने की अधिक संभावना होती है। जबरदस्ती के सिद्धांत के अनुसार, अपर्याप्त पालन-पोषण जैसे कि पिटाई या डांटने जैसी कठोर सज़ा का उपयोग करना और बच्चे को अनुशासित करने में विफल रहने से भाई-बहनों के बीच शत्रुतापूर्ण, जबरदस्ती वाली बातचीत होती है।  "जब माता-पिता प्रभावी रूप से हस्तक्षेप करने में असमर्थ होते हैं परिवार प्रणाली के भीतर नकारात्मक व्यवहार को अनदेखा या अनुमति देकर, तो भाई-बहन का रिश्ता एक प्रशिक्षण मैदान बन सकता है जिसके माध्यम से शत्रुता को मजबूत किया जाता है और अंततः भाई-बहन की बदमाशी पीड़ित या उत्पीड़न में बदल जाता है।" अन्य लोगों के साथ बच्चों का आचरण इस बात से प्रभावित होता है कि उनके माता-पिता उनके साथ कैसे जुड़ते हैं। बचपन में अधिक आक्रामकता को अक्सर माता-पिता-बच्चे के विरोध और अपर्याप्त बच्चे की निगरानी से जोड़ा गया है। माता-पिता और बच्चों के बीच अधिक गर्मजोशी और कम दुश्मनी भाई-बहन के रिश्ते में दिखाई देती है, जो एक और पेरेंटिंग व्यवहार है जो भाई-बहन के रिश्ते की गुणवत्ता से संबंधित है। जिस तरह से माता-पिता एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं, वह इस बात के लिए एक महत्वपूर्ण रोल मॉडल के रूप में कार्य करता है कि उनके बच्चे दूसरों के साथ कैसे बातचीत करेंगे। "अंतर-माता-पिता संघर्ष और पारिवारिक हिंसा और पेरेंटिंग गुणों के संपर्क में आना बच्चों के भाई-बहन के उत्पीड़न से जुड़ा हुआ है और गंभीर शारीरिक भाई-बहन के उत्पीड़न का इन नकारात्मक पारिवारिक अनुभवों से सबसे अधिक संबंध है"। जीवन के अन्य चरणों की तुलना में, बचपन वह समय होता है जब परिवार के संपर्क पैटर्न का इस बात पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है कि बच्चे दूसरों से कैसे जुड़ना सीखते हैं। साझेदारी के सबसे स्थायी प्रकारों में से एक, भाई-बहन के रिश्ते युवाओं को संज्ञानात्मक और सामाजिक-भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद कर सकते हैं। माता-पिता की पेरेंटिंग शैली से बच्चे के दूसरों के साथ भविष्य के रिश्ते और साथ ही उनके भाई-बहनों के साथ उनके रिश्ते दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 

जीवन संतुष्टि जितनी दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा जटिल है; इस शब्द का इस्तेमाल कभी-कभी खुशी के साथ एक दूसरे के लिए किया जाता है, लेकिन वास्तव में ये दो अलग-अलग अवधारणाएँ हैं। जीवन संतुष्टि किसी व्यक्ति के पूरे जीवन का मूल्यांकन है, न कि केवल उसकी खुशी के मौजूदा स्तर का। बॉटम-अप थ्योरी के अनुसार हम जीवन के कई क्षेत्रों में संतुष्टि का अनुभव करते हैं, जैसे काम, रिश्ते, परिवार और दोस्त, व्यक्तिगत विकास और स्वास्थ्य और फिटनेस। इन क्षेत्रों में हमारे जीवन से हमारी संतुष्टि मिलकर हमारे समग्र जीवन की संतुष्टि का निर्माण करती है।

ग्रीड सिंड्रोम लालच एक ऐसी विशेषता है जो अधिकांश मानवीय प्रयासों में व्याप्त है और यह तब से चली आ रही है जब से हमारी प्रजाति पृथ्वी पर है। मानव जाति के इतिहास में, लालच को लेकर मिश्रित प्रचार हुआ है। एक ओर इसे आर्थिक विकास और मानव प्रगति का इंजन माना जाता है, वहीं दूसरी ओर, अनियंत्रित लालच को बहुत दुख का कारण माना जाता है, जैसा कि हाल के आर्थिक इतिहास ने बहुत नाटकीय रूप से दिखाया है। हमारी संस्कृति भौतिकवाद और, विस्तार से, लालच को उच्च मूल्य देना जारी रखती है। मैने अपनी कुछ अच्छी आदतें अपने बच्चे में भी देखी जैसे बड़े लक्ष्य पर निशाना, पहले बचत फिर खर्च, कई जगह से इनकम, खुद की केयर, हमेशा सीखते रहने की आदत, टू डू लिस्ट बनाना, नेटवर्क बढ़ाना, किताबें पढ़ना, टाइम मैनेजमेंट और समझकर इनवेस्ट करना। यह एक आम गलत धारणा है कि अमीर लोग कभी भी, कहीं भी पैसा खर्च कर देते हैं। यह बिलकुल भी सच नहीं है। वास्तव में, जब सुख-सुविधाओं और विलासिता की वस्तुओं पर पैसे खर्च करने की बात आती है तो वे काफी गणनात्मक होते हैं और यही बात उनकी वित्तीय स्थिति को बरकरार रखती है। उनकी जीवनशैली संरचित और व्यवस्थित होती है और वे ऐसी चीजें खरीदने से बचते हैं जिनका ज़्यादा मूल्य नहीं होता।


कलयुग का कालखंड

सनातन धर्म और वेदों में चार युगों की मान्यता है। माना जाता है कि सतयुग में स्वयं देवता, किन्नर और गंधर्व पृथ्वी पर निवास करते थे। हमारे धर्म ग्रंथों में किन्नरों और गंधर्वों के बारे में विस्तार से बताया गया है। सतयुग के बाद आया त्रेता युग। इस युग में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और वह स्वयं श्रीहरि विष्णु का अवतार थे। फिर द्वापर युग की शुरुआत हुई और इस युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने जिस तरह की लीलाएं रची, उनके बारे में प्रबुद्ध लोगों का कहना है कि भगवान इन लीलाओं के जरिए मानव मात्र को कलयुग में जीवन-यापन का पाठ पढ़ा रहे थे। कलयुग का कालखंड सबसे छोटा माना गया है और माना जाता है कि कलयुग में भगवान विष्णु का दसवां अवतार होगा, जिसका नाम होगा कल्कि। कलियुग में धर्म और सत्य का क्षय, असंतोष, स्वार्थ, हिंसा, और भ्रष्टाचार का बढ़ना, तथा भौतिकता और अज्ञानता का प्रभुत्व प्रमुख लक्षण माने जाते हैं।

पांडवों की माता कुंती, श्रीकृष्ण की बुआ थीं। ययाति को यादव और पांडवों का पूर्वज माना जाता है। ययाति के पुत्र यदु के वंश में कृष्ण का जन्म हुआ था। ययाति के पुत्र पुरु के वंश में पांडवों का जन्म हुआ था। 

जब पांडवों को जुए में छल से हराया जा चुका था और शर्त के अनुसार उन्हें वन में जाना था। तो उनके वन में जाने से पहले श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये। तब सहदेव ने उनसे पूछा – “हे कृष्ण! हमने तो आज तक कोई पाप नहीं किया फिर हमें ये कष्ट क्यों उठाने पड़ रहे हैं?” तब कृष्ण ने कहा – “प्रिय सहदेव! द्वापरयुग अपने अंतिम चरण पर है। ये सब जो हो रहा है वो आने वाले कलयुग का प्रभाव है।”

इस पर युधिष्ठिर ने आश्चर्य से पूछा – “वासुदेव! कलियुग तो अभी आया भी नहीं है और उसका इतना भयंकर परिणाम? जब कलयुग प्रारम्भ हो जाएगा तो क्या होगा? कृपया हमें कलियुग में काल की गति कैसी रहेगी ये बताने की कृपा करें।” इस पर श्रीकृष्ण ने कहा “आप सभी भाई वन में जाइये और जो कुछ भी दिखे आकर मुझे बताइये। उसी आधार पर मैं आपको कलयुग की गति बता पाउंगा।”

श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पांचों भाई वन में अलग-अलग दिशा में चल दिए। कुछ समय बाद जब सभी लौटे तो आश्चर्य से भरे हुए थे। कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा “अब आप लोग एक-एक करके बताइये कि आपने क्या-क्या देखा।” तब सभी भाइयों ने अपने आश्चर्यजनक अनुभव बताए, युधिष्ठिर ने कहा कि “हे माधव! मैंने एक दो सूंड वाले गज को देखा। इसका क्या अर्थ है?” तब श्रीकृष्ण ने कहा – “बड़े भैया! इसका अर्थ है कि कलयुग कलियुग में ऐसे लोगों का राज्य होगा, जो दोनों ओर से शोषण करेंगे। बोलेंगे कुछ और करेंगे कुछ। मन में कुछ और कर्म में कुछ। ऐसे ही लोगों का राज्य होगा। इसलिए इस तरह की स्थिति आने से पहले आप राज्य कर लीजिये।”

भीम ने कहा – “कृष्ण मैंने जो देखा वो अत्यंत आश्चर्यजनक था। मैंने देखा कि गाय ने बछड़े को जन्म दिया है। जन्म के बाद वह बछड़े को इतना चाट रही है कि बछड़ा लहुलुहान हो गया।”

इस पर श्रीकृष्ण ने कहा “मंझले भैया! इसका अर्थ ये है कि कलियुग का मनुष्य अपने पुत्र-पौत्रों का आवश्यकता से अधिक लाड़ करेगा। उनकी अपने संतानों के प्रति ममता इतनी बढ़ जाएगी कि उनकी संतानों को अपने विकास का अवसर ही नहीं मिलेगा। मोह-माया में ही घर बर्बाद हो जाएगा। किसी का बेटा घर छोड़कर साधु बनेगा, तो हजारों व्यक्ति दर्शन करेंगे, किंतु यदि अपना बेटा साधु बनता होगा तो रोएंगे कि मेरे बेटे का क्या होगा? इतनी सारी ममता होगी कि उसे मोह-माया और परिवार में ही बांधकर रखेंगे और उसका जीवन वहीं खत्म हो जाएगा। अंत में बेचारा अनाथ होकर मरेगा।”

अर्जुन ने कहा कि “हे माधव! मैंने जो देखा वह तो इससे भी कहीं ज्यादा आश्चर्यजनक था। मैंने देखा कि एक पक्षी के पंखों पर वेद की ऋचाएं लिखी हुई हैं और वह पक्षी मुर्दे का मांस खा रहा है। इसका क्या अर्थ है?”

तब श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा “पार्थ! कलयुग में ऐसे लोग रहेंगे, जो बड़े ज्ञानी और ध्यानी कहलाएंगे। वे ज्ञान की चर्चा तो करेंगे, लेकिन उनके आचरण राक्षसी होंगे। बड़े पंडित और विद्वान कहलाएंगे किंतु वे यही देखते रहेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और हमारे नाम से संपत्ति कर जाए। संस्था के व्यक्ति विचारेंगे कि कौन-सा मनुष्य मरे और संस्था हमारे नाम से हो जाए। हर जाति धर्म के प्रमुख पद पर बैठे विचार करेंगे कि कब किसका श्राद्ध हो। कौन, कब, किस पद से हटे और हम उस पर चढ़ें। चाहे कितने भी बड़े लोग होंगे, किंतु उनकी दृष्टि तो धन और पद के ऊपर मांस के ऊपर ही रहेगी। ऐसे लोगों की बहुतायत होगी, कोई कोई विरला ही संत पुरुष होगा।”

नकुल ने कहा “भैया! मैंने देखा कि एक पहाड़ के ऊपर से एक बड़ी-सी शिला लुढ़कती हुई आती है और कितने ही विशालकाय वृक्ष और शिलाओं से टकराकर उनको नीचे गिराते हुए आगे बढ़ जाती है। विशालकाय वृक्ष और शिलाएं भी उसे रोक न सके। अंत में एक अत्यंत छोटे पौधे का स्पर्श होते ही वह शिला स्थिर हो गई।” तब श्रीकृष्ण ने कहा “प्रिय नकुल! कलियुग में मानव का मन नीचे गिरेगा, उसका जीवन पतित होगा। यह पतित जीवन धन की शिलाओं से नहीं रुकेगा, न ही सत्ता के वृक्षों से रुकेगा। किंतु हरि नाम के एक छोटे से पौधे से मनुष्य जीवन का पतन होना रुक जाएगा। अतः कलियुग में हरि-नाम ही मोक्ष का एक मात्र मार्ग होगा।”

सहदेव ने कहा “मधुसूदन! मैंने देखा कि छह-सात कुएं हैं और आसपास के कुओं में पानी है किंतु बीच का कुआं खाली है। बीच का कुआं गहरा है फिर भी पानी नहीं है। ऐसा कैसे हो सकता है और इसका क्या अर्थ है?” इस पर श्रीकृष्ण ने कहा “वत्स! कलयुग कलियुग में धनाढ्‍य लोग लड़के-लड़की के विवाह में, मकान के उत्सव में, छोटे-बड़े उत्सवों में तो लाखों रुपए खर्च कर देंगे, परंतु पड़ोस में ही यदि कोई भूखा-प्यासा होगा तो यह नहीं देखेंगे कि उसका पेट भरा है या नहीं। उनका अपना ही सगा भूख से मर जाएगा और वे देखते रहेंगे। दूसरी और मौज, मदिरा, मांस-भक्षण, सुंदरता और व्यसन में पैसे उड़ा देंगे किंतु किसी के दो आंसू पोंछने में उनकी रुचि न होगी। कहने का तात्पर्य यह कि कलियुग में अन्न के भंडार होंगे, लेकिन लोग भूख से मरेंगे। सामने महलों, बंगलों में एशोआराम चल रहे होंगे लेकिन, पास की झोपड़ी में आदमी भूख से मर जाएगा। एक ही जगह पर असमानता अपने चरम पर होगी।’


राजा परीक्षित की भूल 

कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ महाभारत के युद्ध के ख़त्म होने पर द्वापर युग भी समाप्त हो गया था। अधर्म बढ़ने लगा था और यही देखते हुए युधिष्ठिर ने राजा का सिंहासन परीक्षित को सौंपा और खुद अपने चारों भाईयों और द्रौपदी के साथ हिमालय पर चले गए। परीक्षित बहुत ही न्याय प्रिय और अपनी प्रजा के प्रति निष्ठावान थे। राजा परीक्षित धनुर्धर अर्जुन के पौत्र और वीर अभिमन्यु के पुत्र थे। कलियुग का आगमन श्री कृष्ण के पृथ्वी छोड़ने के बाद हुआ था। 

एक  दिन की बात है, राजा परीक्षित शिकार के लिए जंगल गए। वहां उन्होंने देखा कि एक बैल और एक गाय आपस में कुछ बातें कर रहे हैं। धर्म के देवता बैल रूप में और पृथ्वी देवी गाय के रूप में वहां मौजूद थी। सरस्वती नदी के तट पर बैल गाय से पूछ रहा है आप इतनी दुखी क्यों हैं? क्या आप मेरा एक पांव देखकर दुखी तो नहीं हो रही हैं? बैल के मुख से ऐसी बातें सुनकर पृथ्वी देवी बोलीं हे धर्म देव! आप तो सब कुछ जानते ही हैं। जब से श्री कृष्ण मुझे छोड़कर गए हैं तभी से मैं दुखी हूं। 

तभी राजा परीक्षित ने देखा कि एक मुकुट पहना व्यक्ति धर्म रूपी बैल को डंडे से पीट रहा है और गाय को लात मार रहा है। गाय और बैल को इस तरह पीटता देख राजा परीक्षित क्रोधित हो उठे और पास आकर बोले, रे पापी! तुम इन दोनों को क्यों मार रहे हो? रे पापी तू कौन है ? मेरे राज्य में तुम्हे ऐसा करने का साहस कैसे हुआ? मैं इसकी सजा तुम्हें अवश्य दूंगा। इतना कहकर राजा परीक्षित ने तलवार निकाल ली और कहा आज तेरी मौत निश्चित है। अब तू मुझसे से नहीं बच सकता। राजा परीक्षित के हाथों में तलवार को देख वह व्यक्ति डर से कांपने लगा। फिर बोला महाराज मैं कलियुग हूं और यहां वास करने आया हूं।इतना कहकर वह राजा के चरणों में गिर गया। 

तब राजा परीक्षित ने कहा- तुम अब मेरी शरण में हो, अब मैं तुम्हे मारूंगा नहीं, लेकिन इसी समय मेरे राज्य से निकल जा। कलियुग ने कहा, महाराज पूरी पृथ्वी पर तो आपका ही राज्य है मैं कहां जाऊं? तब राजा परीक्षित ने उसे चार स्थान रहने को दिए। राजा ने कहा तुम गंदगी, हिंसा, वेश्यालय और जुए के धन में निवास कर सकते हो। राजा परीक्षित की बातें सुनकर कलियुग ने एक और स्थान रहने को मांगा, तब राजा ने उसे सोने अर्थात स्वर्ण में निवास करने को कहा। समय बीतता गया और एक दिन राजा सन्ध्योपासना के समय पवित्र होना भूल गए। उसी समय कलियुग ने उनके मुकुट में प्रवेश कर लिया जो सोने से बना हुआ था। 

वह एक बार जंगल में शिकार करने गए, जहां उन्होंने शमीक ऋषि मौन अवस्था में ध्यान कर रहे थे राजा परीक्षित, शमीक ऋषि से पीने के लिए पानी मांगते हैं, लेकिन ऋषि ध्यान में थे इसलिए वह राजा की बात का कोई उत्तर नहीं देते। 

राजा परीक्षित के सिर पर स्वर्ण मुकुट पर विराजमान कलियुग के प्रभाव से राजा ने इस अपना अपमान समझा। गुस्से के कारण राजा परीक्षित उनके गले में मरा हुआ सांप डाल देते हैं। जब इस बात का पता शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि को लगता है तो वह क्रोध में आकर राजा परीक्षित को शाप देते हुए कहा ऐसा अधर्म जिसने भी किया उसकी मृत्यु आज से ठीक सातवें दिन तक्षक नाग के काटने से  हो जाएगी। फिर ऐसा ही हुआ, सातवें दिन राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने काट लिया और उनकी मृत्यु हो गई। 


सबसे उत्तम कलियुग

वर्तमान समय में कलयुग ही चल रहा है। विष्णु पुराण कलियुग के वर्णन करते हुए कहा गया है कि कलियुग पाप इतना अधिक होता कि सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा। कन्याएं बारह साल में ही गर्भवती होने लगेंगी, मनुष्य की आयु औसतन बीस  वर्ष हो जाएगी। लोग जीवन भर की कमाई एक घर बनाने में लगा देंगे। इन सबके बावजूद जब पराशर ऋषि से सभी देवताओं ने पूछा कि सभी युगों में कौन सबसे बढ़िया है तो ऋषि ने वेदव्यासजी के कथनों का जिक्र करते हुे समझाया कि सबसे उत्तम कलियुग है। 

विष्णुपुराण में वर्णित एक घटना के अनुसार, मुनिजनों और ऋषियों के साथ चर्चा करते हुए वेदव्यास जी कहते हैं, हे मुनिजन सभी युगों में कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ युग है। 

क्योंकि दस वर्ष में जितना व्रत और तप करके कोई मनुष्य सतयुग में पुण्य प्राप्त करता है, त्रेतायुग में वही पुण्य एक साल के तप द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। 

ठीक इसी प्रकार उतना ही पुण्य द्वापर युग में एक महीने के तप से प्राप्त किया जा सकता है तो कलयुग में इतना ही बड़ा पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ समय है। यदि हम ज्ञान, तकनिकी, विज्ञानं, समृद्वि आदि की दृष्टि से देखे तो यह युग श्रेष्ठ दिखता है। 

हालाँकि, मेरे और बेटे  के बीच जल्द ही परेशानी शुरू हो गई। ययाति कितना भाग्यशाली था की उसका पुत्र पिता के प्यार में नौ बार अपने प्राणों की आहुति दे चूका था। दूसरी तरफ मेरा बेटा है जो अपनी पिता का ही बलिदान चाहता है। मेरे तथा मेरे बेटे के ऊपर यह कलयुग का प्रभाव ही है कि हम दोनों एक दूसरे के साथ ऐसा व्यवहार कर रहे है। 

इस सब से मैं बहुत परेशान हो गया। उन्होंने फ्लैट के स्वामित्व और फ्लैट तैयार होने के बाद अपने डुप्लेक्स पर भुगतान किए गए किराए की प्रतिपूर्ति के लिए मुकदमा दायर किया, और सार्वजनिक रूप से शेयरधारकों से पूछकर उनके समझौते का अपमान करने का आरोप लगाया, जब कि उन्हें को लगा कि निर्णय बोर्ड के भीतर रखा जाना चाहिए था। बेटे ने जवाब में प्रेस को बताया, "शेयरधारक हित सर्वोपरि है और परिवार के हित से ऊपर है।"  बदले में मैने  बेटे पर आरोप लगाया कि वह वास्तव में समझौते में उन्हें आवंटित फ्लोर स्पेस को अपने लिए रखना चाहते थे, क्योंकि बेटा हाउस में रह रहा था ।बेटे ने  प्रेस को बताया कि "निहित स्वार्थ" और "अवसरवादी" पिता को "गुमराह" कर रहे हैं और उन दोनों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

 मुझे अपने बेटे से विवाद के बाद घर और संपत्ति से वंचित होना पड़ा। आज मैं  किराए के मकान में रहने को मजबूर हो गया । कभी मैं कंपनी का सर्वेसर्वा रहा अब  इस समय काफी मुश्किल भरी जिंदगी जी रहा हूँ । अपने घर से बेदखल हो कर आज किराए के मकान में रह रहा  हूँ। मैं आज कल उन सभी माँ बाप को सलाह देता हूँ जो अपने जीते जी अपनी सारी सम्पत्ति अपने बच्चों के नाम कर देना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है कि या तो आप वसीयत लिखे और मरने के बाद अपनी सम्पत्ति हस्तानांतरित करे या कम से कम उतनी सम्पत्ति अपने पास रखे जो आप के जीवन के लिए आवश्यक हो। गलती से मेरे एक बैंक खाते में कुछ पैसा रखा था जिससे आज मेरा खर्च चल रहा है। 


ययाति की मुक्ति

अब मैं तुम्हारे साथ बिना शंका-संदेह के प्रेम से चलूंगा।’’

कहते हैं तब मृत्यु ने युवा बेटे को छोड़ दिया और ययाति को लेकर चली गई, क्योंकि जो व्यक्ति तृप्ति का अहसास कर चुका है, मौत उसे छू नहीं पाती। घोर तपस्या के बाद ययाति को स्वर्ग में स्थान मिला, लेकिन बाद में इंद्र के शाप से स्वर्ग से भी निष्कासित हो गए, लेकिन अंत में उन्हें अपने दौहित्रों की मदद से स्वर्ग में पुनः प्रवेश मिला। हर सुख भोगने से भी कामना उसी तरह बढ़ती है जैसे घी डालने से अग्नि, संपूर्ण पृथ्वी का भोग भी मनुष्य के लिए पर्याप्त नहीं है। वृद्धावस्था आने पर बाल व दांत कमजोर होने पर भी कामना कमजोर नहीं होती।

मैंने देखा है कि शादी के बाद, दोनों पार्टनर की रूटीन, खानपान और लाइफस्टाइल एक जैसी हो जाती है। वे एक साथ समय विताते हैं, एक जैसा खाना खाते हैं और एक जैसे फिजिकल एक्टिविटी करते हैं।  इसका असर शरीर पर भी पड़ता है, जिससे दोनों में कई समानताएं आ जाती है।सालों से साथ रहते-रहते कपल्स एक-दूसरे के इमोशनल और मेंटल इफेक्ट अपने आप अपना लेते हैं।  समय के साथ-साथ चेहरे के भाव, हंसी-मजाक और आदतों एक-दूसरे की एक जैसी हो जाती है, जिससे दोनों का पर्सनालिटी और लुक एक जैसा लगने लगता है।कुछ समय बाद, एक साथ रहते हुए दोनों एक-दूसरे की तरह बोलने, हंसने और दिखने लगते हैं, क्योंकि वे एक-दूसरे की आदतें और इमोशन्स को अपना लेते हैं। मेरे छोटे लडके व बहू का जीवन इसी तरह विकसित हुआ था। 

मुझे ना जाने क्यों कई सालों से ऐसा लगता रहा है कि मेरे बेटे व बहू के बीच ‘रूममेट सिंड्रोम’  विकसित हो रहा हैं। मेने कही पड़ा था कि अगर पति-पत्नी या फिर किसी रोमांटिक जोड़े के रिश्ते में प्यार और भावनात्मक लगाव की कमी हो जाए। उनके बीच शारीरिक संबंध बनना भी कम या खत्म हो जाए। लेकिन परिवार या जमाने के दबाव के चलते वे अलग न हों। ऐसे में वे एक छत के नीचे रहें, साथ में खाएं-पिएं, काम, खर्च और घर की जिम्मेदारियां भी आधी-आधी बांट लें, बाहर से दिखने पर पार्टनर्स की तरह नजर भी आएं, लेकिन उनके रिश्ते में प्यार नदारद हो। दोनों रिश्ते को बोझ की तरह ढोने लगें। मनोविज्ञान की भाषा में इसे ‘रूममेट सिंड्रोम’ कहते हैं। यह विभिन्न कारणों से किसी भी रिश्ते में पनप सकता है। लेकिन अगर कपल्स के बीच यह सिंड्रोम पैदा हो जाए तो यह रिश्ते को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगता है।

अक्सर मेने देखा है कि मेरा बेटा  डोमिनेटिंग है। ऐसे रिश्तों में लड़ाई-झगड़े काफी ज्यादा होते हैं। प्यार और शादी का रिश्ता तभी लंबा चलता है जब उसमें प्यार, सम्मान और फ्रीडम वाली फीलिंग होती है। हालांकि आज भी हमारे समाज में पुरुषों में डोमिनेट करने की सोच मौजूद है, लेकिन अब महिलाएं भी काफी बदल रही हैं।  वो किसी को अगर डोमिनेट नहीं करती तो किसी का डोमिनेशन भी नहीं सहती हैं।

साथ में निर्णय लें- कई बार जो डोमिनेटिंग पार्टन होते हैं वो सभी निर्णय खुद लेते हैं. डोमिनेटिंग पार्टनर हर चीज में अपनी चलाते हैं, कहां जाना है, क्या पहनना है, किससे बात करनी है, किससे नहीं करनी है, कैसे लाइफ को चलाना है। अगर आप इससे परेशान हैं तो खुलकर अपनी बात कहें। हमेशा एक के हिसाब से ज़िंदगी चले ये सही नहीं होता है. आपसी सहमति से निर्णय लेने की कोशिश करें। 

मै समझता हूँ  कि डोमिनेटिंग पार्टनर में एक और बात होती है कि ऐसे लोग हमेशा अपने साथी को लेकर बहुत कॉन्शस होते है। ऐसे लोगों को हर वक्त अटेंशन चाहिए होती है। ऐसे लोग अपने साथी की जरूरतों को ध्यान नहीं देते बल्कि उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पुश करते रहते हैं। अगर आपका पार्टनर आपकी निजता का सम्मान नहीं करता तो ये गलत है. हर किसी की लाइफ में कुछ पर्सनल चीजें होती हैं। आज के वक्त में हर बात और हर काम में दखल देना किसी को पसंद नहीं होता है।  आपके पार्टनर को ये बात समझनी चाहिए। आपसे बिना पूछे आपका फोन चेक करना या कोई पर्सनल चीज देखना ठीक नहीं है। 

मेने अपनी बहु व बेटे को समझाया भी था कि अगर पति के हमेशा अपनी चलाने या अपने हिसाब से चीजें करने के व्यवहार से परेशान हैं तो जरूरत है ये समझने की कि कैसे ऐसे लोगों को कंट्रोल किया जाए। कैसे इसे समझाया जाए कि आप किसी पर अपनी राय या विचार थोप नहीं सकते हैं। मैने उसे समझाया कि पार्टनर का सम्मान जरूरी है। प्यार या शादी के रिश्ते में सम्मान बहुत जरूरी है।  

एक दूसरे को नीचा दिखाने से रिश्ता खराब होता है। एक दूसरे की सोच और विचारों को हमेशा सम्मान दें।अगर आपका पार्टनर ऐसा नहीं करता, तो उनकी इस आदत को बदलने की कोशिश करो। रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए शेयरिंग जरूरी है। अगर आपका पार्टनर आपके साथ वक्त बिताता है। आपके साथ अपनी प्लानिंग और मन की बातें शेयर करता है तो ये अच्छे रिश्ते की निशानी है।  लेकिन अगर पार्टनर वक्त की कमी कहकर इग्नॉर करे तो ये ठीक नहीं है।

लेकिन मेरी तमाम कोशिशों के बाद अब बेटे ने अपनी पत्नी से अलग होने के ऐलान किया है। अलग होने के बाद पत्नी ने फैमिली सेटलमेंट के तहत अपनी दो बेटियों और खुद के लिए प्रॉपर्टी में से पचहत्तर फीसदी हिस्‍सा मांगा है। मेरे छोटे बेटे  ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा कि उसने और उसकी पत्नी ने अलग-अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया है। उसने ट्विटर पर लिखा, ‘यह दीपावली पहले जैसी नहीं होने वाली है। मेरा यह मानना है कि मेरी पत्नि और मैं यहां से अलग-अलग रास्ते अपनाएंगे…’ आखिर वह  अपनी पत्नी  से बत्तीस साल पुराना रिश्ता क्यों तोड़ रहा हैं? शादी से पहले दोनों करीब आठ  साल तक रिलेशनशिप में थे।इस शादी के लिए उसके  पिता तैयार नहीं थे, लेकिन बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसका और उसकी पत्नी का झगड़ा दीवाली पार्टी को लेकर शुरू हुआ। उसने ने ठाणे स्थित अपने फार्म हाउस  में एक पार्टी रखी थी। जिसमें पत्नी  को भी पार्टी में इनवाइट किया था। 

मेरी बहु ने जिसका वीडियो रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर अपलोड किया है। जो खूब वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो दिवाली वाले दिन आयोजित पार्टी का है, जो उनके पति ने अपने घर  पर रखी थी। जिसमें वह कह रही है कि इस पार्टी में मुझे भी आमंत्रित किया गया था। हालांकि, जब मैं अपने घर के मेनगेट पर पहुंचीं, तो मुझे अंदर जाने से रोक दिया गया। इसके बाद मैं मुख्यद्वार के बाहर ही जमीन पर बैठ गईं। उसने कहा कि उनके पति  ने उन्हें पार्टी में इनवाइट किया था। लेकिन जब वो वहां पहुंचीं, तो उन्हें पार्टी में शामिल नहीं होने दिया गया, उसने आरोप लगाया कि ऐसा जानबूझकर किया गया है। 

बेटे ने ट्विटर पर अपनी पोस्ट में लिखा, ‘मैं हाल के दिनों में हुए दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम पर विचार कर रहा हूं, हमारे जीवन के इर्द-गिर्द बहुत सी बेबुनियाद अफवाह फैलाई गई हैं।  मैं पत्नी से अलग हो रहा हूं, लेकिन हम अपने दो अनमोल हीरों के लिए बेहतर से बेहतर कार्य करते रहेंगे…’

लेकिन मेने हाल ही में सुना कि उस में और उसकी पत्नी  के बीच सुलह हो गई है। दोनों अब  साथ रहेंगे। मुंबई के बड़े परिवारों में झगड़े और समझौते होते रहते हैं। लेकिन, मेरे  परिवार की कहानी कुछ अलग है। क्योकि अलग होने के बाद उनकी पत्नी ने पति पर मारपीट का आरोप लगाया है। उसने  बताया  कि जन्मदिन पर उनके साथ उनके पति ने बुरी तरीके से मारपीट की थी। जिससे उनकी पीठ के नीचे की हड्डी भी टूट गई थी। चूंकि मेरी बहू पारसी हैं, इस वजह से कल्चरल डिफरेंस के चलते कई बार दोनों को समझौते भी करने पड़ते थे। बेटे ने एक इंटरव्यू में खुद कहा था कि पारसी लड़की से शादी करना और उसे पत्नी बनाना आसान नहीं रहा। 

अब इस विवाद में  मेरी भी एंट्री हो गई है। मैने  कहा कि  मैं विवाद में बेटे नहीं बहू के साथ हूँ। मैने टीवी पर समाचारों में सुना कि बेटे  के प्रवक्ता ने कहा कि फैलाई जा रही "शरारतपूर्ण गलत सूचना" पर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की जाएगी। प्रवक्ता ने  बताया, "निजी क्षेत्र के मुद्दों पर और दोनों बेटियों  के सम्मान में गरिमापूर्ण चुप्पी बनाए रखी जा रही है।"  बेटा, एक हिंदू, और बहू , एक पारसी, ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत अपनी शादी को औपचारिक रूप दिया था। अपनी अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के बावजूद,  हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत अपने पति की संपत्ति के आधे हिस्से पर उनका हक होने का दावा किया है। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का तर्क है कि यह विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आता है। वकीलों में से एक ने कहा, "हिंदू विवाह अधिनियम उस व्यक्ति पर लागू होता है जो धर्म से हिंदू है।"

बेटे ने इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि वे अपने पिता के साथ सुलह करना चाहते हैं। हाल ही में बेटे ने अपने पिता के साथ एक तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की, जिससे कयास लगाए जा रहे हैं कि पिता-पुत्र के बीच विवाद खत्म हो गया। मेरी कहानी में भी एक ऐसा मोड़ आया है, मुकदमे पर न्यायाधीश ने अनुरोध किया कि वे दोनों मामले को आगे बढ़ाने से पहले परिवार के भीतर चीजों को सुलझाने की कोशिश करें, यह देखते हुए कि उन्हें लगता है कि इस मामले को अदालत के समाधान की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। मैने कहा कि वह नहीं चाहते कि विवाद से कम्पनी की प्रतिष्ठा प्रभावित हो और वह इसे सुलझाने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करेंगे। मैं सोच रहा हूँ तथा  हैरान हूँ कि मैने बेटे को इतना कुछ दिया था, उसके बाद उसे मुकदमा करने की जरूरत क्यों पड़ी, और बेटे के "लालच" और "अहंकार और बेईमानी" को देखते हुए मुझे सन्देह है कि अगर में कोर्ट के बाहर  मामले को सुलझा भी लेते हैं, तो भी मैं सुलह कर पाऊंगा।

मेरे पास आजकल अपने जीवन का विश्लेषण करने का पर्याप्त समय होता है। कई बार मैं सोचता हूँ कि, पितृसत्तात्मक मूल्यों, अनसुलझे बचपन के अनुभवों, और शक्ति और नियंत्रण की गलत समझ से जुड़ी अनेक समस्याऐं होती है | पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें अधिकार के पद मुख्य रूप से पुरुषों के पास होते हैं। समाजशास्त्री मानव लिंग भूमिकाओं की तुलना अन्य प्राइमेट्स में लैंगिक व्यवहार से करते हैं और तर्क देते हैं कि लिंग असमानता पुरुषों और महिलाओं के बीच आनुवंशिक और प्रजनन संबंधी अंतर से उत्पन्न होती है। 

पितृसत्तात्मक विचारधारा पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर्निहित प्राकृतिक अंतर, दैवीय आज्ञा या अन्य निश्चित संरचनाओं के लिए लिंग असमानता को जिम्मेदार ठहराते हुए पितृसत्ता की व्याख्या और तर्कसंगतता करती है। सामाजिक निर्माणवादी समाजशास्त्री पितृसत्ता की जैविक व्याख्याओं से असहमत होते हैं और तर्क देते हैं कि समाजीकरण प्रक्रियाएं मुख्य रूप से लिंग भूमिकाओं को स्थापित करने के लिए जिम्मेदार हैं, वे आगे तर्क देते हैं कि लिंग भूमिकाएं और लिंग असमानता शक्ति के साधन हैं और महिलाओं पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए सामाजिक मानदंड बन गए हैं। ऐतिहासिक रूप से, पितृसत्ता ने विभिन्न संस्कृतियों के सामाजिक, कानूनी, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक संगठन में खुद को प्रकट किया है। अधिकांश समकालीन समाज, व्यवहार में, पितृसत्तात्मक हैं, जब तक कि सत्ता में महिलाओं के पूर्ण बहिष्कार के मानदंड लागू नहीं होते हैं।

मेरे पूर्वज सयुंक्त पारिवारिक व्यवस्था में रहे। मेरा लालन पालन भी सयुंक्त परिवार में हुआ। लेकिन मेरा परिवार एकल परिवार रहा, जिसमें आम तौर पर माता-पिता और मेरे  बच्चे शामिल रहे। एकल परिवारों की संरचना और गतिशीलता बच्चे के विकास, भावनात्मक कल्याण और मानसिक लचीलेपन को प्रभावित कर सकती है। एकल परिवार में, बच्चों को आमतौर पर अपने माता-पिता से पूरा ध्यान मिलता है, जिससे उनमें सुरक्षा और आत्म-सम्मान की भावना पैदा हो सकती है। हालाँकि, संयुक्त  पारिवारिक संपर्क की कमी का मतलब सीमित सामाजिक संपर्क भी हो सकता है, जो बच्चे के सामाजिक विकास में बाधा डाल सकता है। 

अब तो एकल परिवार भी टूटने लगे हैं। अगर इस रफ्तार को रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं जब समाज में विवाह का कॉन्सेप्ट ही खत्म हो जाएगा। ग्लोबलाइजेशन के बाद जिस प्रकार से वर्क कल्चर बदला है, उससे समाज पर जाने-अनजाने में नकरात्‍मक प्रभाव यह पड़ा है कि लोग अपने घर-परिवारों से दूर होते जा रहे हैं। यह सही है कि इकलौते बच्चों में, खासकर सिंगल पेरेंटिंग वाले परिवारों में, कुछ मनोवैज्ञानिक समस्या  होती ही हैं, जिनमें अकेलेपन की भावना, कम सामाजिक कौशल, और कभी-कभी चिड़चिड़ा स्वभाव या डिप्रेशन मुख्य है।मेरा मानना है कि हर परिवार में इस तरह की समस्या है।अकेला बच्चा कम उम्र में ही मेच्‍योर होने लगता है। अकेले रहने वाले बच्चे बिगड़ैल या आत्म-केंद्रित होते हैं क्योंकि उन्हें भाई-बहनों के साथ संसाधनों या ध्यान को साझा करने की ज़रूरत नहीं होती है। 

दो बेटों वाले परिवार में मनोवैज्ञानिक समस्याएं कई कारणों से हो सकती हैं, जैसे कि पारिवारिक तनाव, माता-पिता के बीच संबंध, बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा, या व्यक्तिगत समस्याएं।

जाजमऊ को दूसरी काशी बनाने लिए ययाति राजा ने यज्ञ शुरू किए। निन्यानवे यज्ञ पूरे हो चुके थे और सौवां यज्ञ पूरा होते ही जाजमऊ को दूसरी काशी का दर्जा मिल जाता, लेकिन हवनकुंड में हड्डी गिरने से यज्ञ असफल हो गया। मेरे भी निन्यानवे यज्ञ पूरे हो गये ना जाने क्यों सौ वे यज्ञ में हड्डी गिर गई।क्योंकि ययाति के छोटे बेटे ने हर बार उनकी बात मानी पर मेरे बेटे ने नहीं मानी।  

अब मेरी उम्र अस्सी साल के ऊपर हो गई है और अब मुझे इस लड़ाई में मजा आने लगा है। पता नहीं क्यों में ययाति नहीं बन पा रहा हूँ ? मैं कितने दिन जिन्दा रहूँगा, पता नहीं ? शायद मेरे दादा जी कुछ राह दिखा सके। मैं इंतजार करुँगा की कौन पहले आएगा। समाधान या मौत ? अब मैं सोचता हूँ की मुझे नहुष जैसा श्राप मिला है या ययाति जैसी नियति। 












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